रिश्तों की दीवार…
सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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संभाल न सके जो
रिश्तों की दीवार,
बेदर्दी से अपनों को
कर दिया, किनार,
देखते-देखते ये साल
भी बीता जा रहा,
उनकी यादों से सजा
रखा, मैने घर द्वार,
तस्वीर से तेरी नज़रें
कभी हटा नहीं पाते,
जन्म दिवस पर, आपको
कैसे देंगे पुष्प हार,
हम लोग वक्त, फिज़ूल
कभी, जाया न करते,
सपने, हमने भी देखें थे,
भविष्य के, बेशुमार,
कभी-कभी सालता है
ये तनहाई का आलम,
चंद सांसों का जीवन भी
न मिल सका, उधार
परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लो...