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कविता

मां
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मां

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। संतान में माॅं होती संस्कार। मां ही जग की तारणहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को माॅं की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
मैं तुमसे दूर
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मैं तुमसे दूर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। जिंदगी तेरे नाम कर दी, जान भी-जान भी। दिल तेरे नाम कर दिया, मान भी-मान भी।। माना था सभी को अपना, चाहा था भरपूर। चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। यादों की परछाईयाँ, धुँधली होने न पाई। तेरी बातें मुझे, पल-पल बहुत रूलाई।। जूदा होके अभी से, जा रहा हूँ सुदूर। चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। खुश रहना सदा, हँसते-मुस्कुराते रहना। थाम आशाओं का दामन, समय के संग में बहना।। कड़ी मेहनत से मिलेगी, कामयाबी का सुरूर। चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित...
काया
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काया

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज मैंने अपनी काया से पूछा तुम्हें और क्या चाहिए, इतनी लंबी यात्रा हुई कोई तो वज़ह होगी कुछ तो चाहत होगी चलते रहने की औषधियाँ तो बहुत हुई अब कौन सा परिपूरक चाहिए ? आकार पर बहस छिड़ी जो रंग रूप पर आकर ठहरी समय ने कई निशान दिए हैं भेंट स्वरूप इन खिंचाव भरे निशान पर चिंतन करना चाहती है कोमलता नहीं दृढ़ता चाहती है, पडती हुई सिलवटों को रोकना चाहती है उन सभी जानी अनजानी औषधियों से दूर होना चाहती है जो पुनः जीवित होने का ढोंग रचती हैं, "स्वयं" के बंधन तोड़ना चाहती है नश्वर जगत को समझना चाहती है उसके सारे प्रश्न धीरे-धीरे तैयार हो रहे थे तभी कानों में धीमी सी फुसफुसाहट सुनाई दी क्या अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतु...
वो एक लमहा
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वो एक लमहा

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वो एक लमहा अब तक नहीं पकड़ पाया मैं जब बदल गयीं थी दिशाएँ हमारी गुज़रते वक्त से बार-बार गुज़रकर मैं अब भी ढूँढता हूँ वो पल जो ले गया तुम्हें दूर मुझसे न जाने वो क्या था जो अदृश्य सा तैरता रहा हमारे बीच और जिसके रहते तय न हो सके फासले कभी ! वक्त का एक बड़ा सा टुकडा बेरहमी से भाग रहा है हमारे बीच कहते हैं कि वक्त के साथ सब बदल जाता है मै देखना चाहता हूँ तुम्हे भी तुम्हारे बदले हुए रूप में तो क्या अब तुम नहीं पहनती वो आसमानी नीली साड़ी जिसे देखते ही मैं बन जाता था उफनता पागल सा सागर ! शायद अब तुम्हारी डायरी के पन्ने किसी और रास्ते से गुजरकर मुकम्मल होते होंगे और शायद तुमने अब मीठे की जगह नमकीन खाना भी सीख लिया होगा शायद तुम छोड़ चुके होंगे मेरे न होते हुए भी मु...
मौन पाषाण मन‌
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मौन पाषाण मन‌

डॉ. रमेश चंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रात के सन्नाटे में भूत होते देवदार चांद को चिढ़ाकर परछाईं देख रहे। झिझकते तारे गगन छोड़कर अधरों से जला रहे पहाड़ की गोद को। पत्तियों पर रैंगती अनगिनत चींटियां जीवन तलाश रही टहनियों से चिपक। असीम व्यथा समेटे सिसकते पहाड़ अब हवाओं की मार से चीखकर सुलग रहे। मौन पाषाण पर्वत आंसूओं को पीकर प्रेम की प्रतिक्षा में एकांत काटते विवश। मिलन को उतावले विकल कीट पतंग असमय होम हो रहे दावानल में डुबकर। परिचय : डॉ. रमेश चंद्र शर्मा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
मजदूर हूँ मजबूर नही
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मजदूर हूँ मजबूर नही

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** मजदूर हूँ मजबूर नही, करता कभी ग़ुरूर नही! सींचा श्रम से कण-कण, तोड़ा कभी दस्तूर नही!! मेरे उर से जन्मा उत्थान मैंने किया नूतन-निर्माण! छुपा पेट भर रोटी में, मेरी, सकल सृस्टि का कल्याण!! धरती बनाई दुल्हन मैंने, सही हसके हर उलझन मैंने! रहा बांटता खुशियां अगनित, पर की न मैली चितवन मैंने!! चलता रहा सुबह-से शाम नही किया क्षणिक विश्राम! भाता मेहनत का कमाया ही लगे मुफ़्त के हीरे-मोती हराम!! गम नही, नही पास महल यूंही जाते हैं बच्चे बहल! 'आज' हमारा ही है जीवन, क्या भरोसा कल का चहल!! भाती है मेहनत की रोटी, हमसे ही हैं बंगला-कोठी! नही ज़माने से कोई गिला, समझना नही नियत खोटी!! परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
अजीब दास्तां
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अजीब दास्तां

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अंदर ही अंदर लोग कफ़न ओढ़ रहे है मोहब्बत के नाम पर दफन हो रहे है। देखते नहीं सुनते नहीं समझते भी नहीं बस मोहब्बत के नाम पर गम ढो रहे है। अपनों का परायों का यहां कोई भेद नहीं अपने मतलब के लिए बस छल कर रहे है। जीत का हार का किसी को कोई मतलब नहीं बस अपने रुतबे के लिए औरों को गिरा रहे है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
ज़रा मुस्कुराइए
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ज़रा मुस्कुराइए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुस्कुराहट है एक भावना छुपाए है भाव संभावना कई होते हैं सौभाग्यशाली उनके चेहरे ही मुस्कुराते हैं कइयों के थोबड़े ही ऐसे हैं किस्म किस्म की मुस्कान असली नकली मासूम सी भेदी, वहशी, हास-परिहास नशीली, चुटीली, अट्टहास पर मस्त है मोनोलिसा की सच, मुखौटा होती मुस्कान छुपा लेती दिल के दर्दों को कर देती खुश, जो भी मिलता दिल की सेहत का है नुस्खा तो ज़नाब, मुरकुराइए ज़रा हाँ, हँसी में शामिल होइए किसी के ऊपर ना हसिए हँसी में उड़ाइए हर दर्द को हर मर्ज़ का इलाज़ है यह तो हँसते रहो हँसाते रहो ख़ज़ाना खुशी का लुटाते रहो हर ओठ पे मुस्कुराहट लाते रहो जीवन का लुत्फ़ उठाते रहो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
वो मजदूर
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वो मजदूर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो कभी भूखा नहीं रह सकता जो मेहनत कर सकते हैं, काम कर सकते हैं, उन्हें होता ही है फायदा, ये है प्राकृतिक कायदा, मगर जो आलसी होते हैं उनका भूखे रहना तय है, एक एक क्षण उनके लिए हो जाता कष्टकारी समय है, मजदूरों ने इस बात को पढ़ा है, दुनिया के हर कार्य को पसीने से गढ़ा है, वो नेता, अधिकारी या किसी ऑफिस में बैठा बाबू नहीं है, तभी तो उनकी जिंदगी मेहनतों से भरा जरूर रहता है पर बेकाबू नहीं है, चैन की नींद उसके हिस्से में होता है, पैसे वाला और ज्यादा के लिए रोता है, शोषण सहकर भी वो नहीं बनता शोषक, वो एकमात्र नव निर्माण का है द्योतक। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हाँ-हाँ अब मैं बासठ की हो गई
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हाँ-हाँ अब मैं बासठ की हो गई

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हाँ-हाँ अब मैं बासठ की हो गई। अब पहले जैसी कार्य क्षमता कहॉं गई पता नहीं। ना तो सिर में अब पहले जैसे बाल हैं। ना ही अब पहले जैसे फूले हुए गाल हैं। अब तो घने बालों की लंबी चोटी भी नहीं। अब तो पिचके हुए गाल हैं। तरुण अवस्था में जो स्निग्ध, चिकनी त्वचायुक्त चेहरा था। वह भी तो लुप्त हो गया। अब तो मुख पर गहरी आड़ी-तिरछी, रेखाएं दिखाई पड़ती हैं। जैसे कोई उबड़-खाबड़, टूटी-फूटी सड़क। चेहरे पर झुर्रियां दिखने लगी। अब पहले जैसी तीव्र याददाश्त भी नहीं रही। शरीर की त्वचा भी ढीली हो लटकने लगी, मानो किसी ने बहुत ढीले वस्त्र पहन रखें हो। त्वचा तो छोड़ो अब तो शरीर की अस्थियां भी, गठिया रोग से ग्रसित हो गया, कभी हाथ, कभी पॉंव, कभी घुटना, कभी हाथों की उंगलियां, तो कभी पैरों की उंगलियों, में तीव्र द...
लागी तुझसे लगन साँवरे
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लागी तुझसे लगन साँवरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लागी तुझसे लगन साँवरे, तेरे बिना न जीना। तेरे बिन, लगता है मुझको, काल कूट विष पीना। रहा नहीं जाता तेरे बिन, दिल में भी तू छाया। नहीं समझ में आती मोहन, मुझको तेरी माया। तुझसे लगन लगाई मोहन, तुझको अपना माना। है उद्देश्य यही जीवन का, केशव तुझको पाना। तुझको देखे बिना कन्हैया, होता नहीं सवेरा। तेरे बिना हुआ है मोहन, दुखमय जीवन मेरा। माखन मिश्री लेकर प्रतिदिन, तेरी राह निहारूँ। निष्ठुर, बेदर्दी मनमोहन, तुझ पर तन मन वारूँ। छुप जाता तू जानबूझकर, तुझको दया न आती। पागल हूँ, तेरे बिन मोहन, तेरी याद सताती। तुझसे लगन लगाकर मैंने, अमन चैन खोया है। तेरे बिना कन्हैया हर पल, मेरा मन रोया है। मनमोहन विनती है तुमसे, मुझको पास बुला लो। अपना मान कन्हैया मुझको, अपने अंक लगा लो। परिच...
लागी तुझसे लगन
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लागी तुझसे लगन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** उड़ गई निदिया रातों की, जल-जल जाए वदन, जबसे देखा चांद-सा चेहरा, लागी तुझसे लगन। जब भी देखूं,जहाँ भी देखूं, आये तुम ही नज़र, अपलक राह तके नयन, होकर ख़ुद से बेख़बर। तुम्हारी यादों में ही गुज़रे, अब तो मेरे दिन-रैन, जो आ जाओ मेरे सामने दिले-बेक़रार पाए चैन। यूं तो लाखों है दुनिया में, पर तुमसा कोई कहां, तुम्हें ही अपना "मत्स्य" माना, तुम्ही हो मेरे जहां। है बिन तेरे अब नामुमकिन, जग में तन्हा जीना, तेरी ही चाहत में रहे गुज़र, मेरे दिन साल महीना। आकर देख ज़रा अब मेरा, दर्दे-दिल ओ बेदर्दी, कितने ही सावन बरस गए, आया न तू हद करदी। जोड़ा तुमसे ही नाता मैंने, ओ मेरे जाने -जिगर, आ अब गले लगा ले मुझे, बनकर मेरा हमसफ़र। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) ...
संघर्ष से सफलता पाएगा
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संघर्ष से सफलता पाएगा

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** मंजिल का क्यों नहीं ध्यान तुझे, कैसे हो जाती है, थकान तुझे, खुद की नहीं है, पहचान तुझे, समय का क्यों नहीं, भान तुझे? पथ से कैसे, भटक गया है तू? बाधाओं में कैसे, अटक गया है तू? झूठी तकरारों में लटक गया है तू, अगर-मगर में सिमट गया है तू। तोड़ दीवारें आगे बढ़ने की ठान, अपनी ऊर्जा को पहचान, ग्रहण कर,हो सके जितना ज्ञान, सबको हो तुझ पर अभिमान, बड़ी सोच का जादू चला, दुनिया मुट्ठी में कर दिखा। काम में अपने जुटा रह , प्रगति के पथ पर डटा रह। संघर्षों से मंजिल पाएगा, दुनिया में नाम कमाएगा। औरों को राह दिखाएगा, जीवन सफल हो जाएगा। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
श्रमिकों की वंदना
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श्रमिकों की वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** श्रमिकों का नित ही है वंदन, जिनसे उजियारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खींच रहे हैं भारी बोझा, पर बिल्कुल ना हारे। ठिलिया, रिक्शा जिनकी रोज़ी, वे ही नित्य सहारे।। मेहनत की खाते हैं हरदम, धनिकों पर धिक्कारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति के वाहक । अन्न उगाते, स्वेद बहाते, जो सचमुच फलदायक ।। श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा। यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा।। संघर्षों की आँधी खेले, साहस जिन पर वारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। ऊँचे भवनों की नींवें जो,उ त्पादन जिनसे है। हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिवादन ...
हालत और हालात
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हालत और हालात

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** हालत और हालात करे मुक्का लात हालात ने बनायी ये हालत हालत से बने ये हालात दोनों मे छिड गयी ऐसी बात तू डाल-डाल मै पात-पात करे विरोधाभासी मुलाकात हालत से हालात परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) ...
उम्मीद का चिराग
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उम्मीद का चिराग

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तन्हाइयो का सफर हैं तेरा और मेरा तन्हा कैसे कट पाये सफर अब मेरा आप तड़पते बैठे हो अकेले ही वहाँ जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीद का चिराग ही जला पा रहे हैं साथ होगा दिल को समझा पा रहे हैं जाने किस विधि साथ होगा अब तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा कैसे भी हालात अब जीना ही पड़ेगा गम के आंसु खुद को पीना ही पड़ेगा कभी तो सफऱ में साथ मिलेगा तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा क्या कभी हम साथ-साथ हो पायेंगे हर हाल में पिया तेरे साथ जी पायेंगे कभी मन निराश ना हो मेरा और तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीदों के सहारे जीवन काट लेंगे गम व ख़ुशी आपस में ही बाँट लेंगे तू बने राधा मेरी मै घनश्याम हूँ तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा जी रहे केवल साथ की ही आश में बचा जीवन का सफर हो विश्वास में रब ...
चुनाव का महापर्व
कविता

चुनाव का महापर्व

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** चुनाव का महापर्व चुनाव है लोकतंत्र को मजबूत करने का महापर्व मतदान का महायज्ञ खुद का अधिकार खुद को होता है गर्व किसी से न होता डर आता है जब चुनाव नेता को चयनित का बटन दबाकर करते गर्व मतदान की कतार में मतदान का दिखता महापर्व मतदान केंद्र में मतदाता भारी उत्सकुता से आता मतदाता कतार लगाता मतदान से निर्णय दे जाता चुनाव अधिकारी मतदाता का हिसाब चुनाव में रखता जाता चुनाव परिणाम में मतदाता का मतदान मुख्य भाग्य विधाता कहलाता चुनाव का अधिकार मतदाता को लोकतंत्र मजबूत की परिभाषा बताता मतदान केंद्र में एक एक मत का कितना है दम समझो कि है देश के मतदाता एक एक मत से लोकतंत्र मजबूत बनाते हम मतदान केंद्र में जाने का सबको समझाओ अर्थ अपने अधिकार का चुनाव दिखलाता अर्थ यही है चुनाव यही मतदान का महापर्व परिच...
मोहब्बत भी इबादत है
कविता

मोहब्बत भी इबादत है

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** उसकी नजरों ने छू लिया पहली दफा जब उसे देखा था वो ख्वाब है या हक़ीक़त उस रात इस उल्झन में डूबा था, तकते रहे उसकी राहें ये पन्ने भी डलती हूई शामों को उससे मिलने का इंतज़ार था हर मौसम ज़िन्दगी का सुहाना हो गया इन रातों को भी उससे मिलने का खुमार था, शाम जलने लगी उसके नूर से खूबसूरती का मंज़र जन्नत से कम नहीं था वो पल शायद ही मैं लिख पाता उसे सजाने के लिए इस शायर के पास कोई रंग नहीं था, उसके हर पहलू में खोया रहूँ उसकी हर एक अदा में मुझे सुकून मिलता है उससे मिलकर ये जाना मैंने कि हक़ीक़त में चाँद कितना खूबसूरत लगता है, उसका मुस्कुराना मेरे दिल को राहत देता है ज़िन्दगी जीने का जरिया देता है बेवजह ही अब मुस्कुराता रहता हूँ हर पल उसके ख्याल में बिताना मुनासिब लगता है मेरी मोहब्बत की आशीमा का मुझे खुद अंदा...
गुमसुम बचपन
कविता

गुमसुम बचपन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** हाय! हुआ गुमसुम बचपन यह कैसी सीख है। लदे हुए बस्ते भारी-भारी दबी हुई हर चीख़ है।। ग़ायब हुई कश्ती कागज़ की बरसाती पानी से। सिमट गया दौर किस्सों का बरगद-सी नानी से।। कोमल करों में ढेरों क़िताबें, कैसी यह पढ़ाई है। कूड़े में भाग्य ढूंढ़े बालमन, कैसी यह बड़ाई है।। ख़त्म बात विश्वास की, मन में कैसा मेल आया। जलता बालपन दीप-सा छटता ना तृषि साया।। शिक्षा व्यवसाय बनी संस्कृति से नही सरोकार। रिश्ते रद्दी कागजी लगे, नातों से मुक्त व्यवहार।। समय रहे करना होगा, बचपन का नव इंतज़ाम। वरना रहो भुगतने तैयार भीवत्स लाखों अंजाम।। आओ बचाएं बचपन प्यारा, मोबाइल के जाल से करें विचार मिलजुल अभी, पीड़ा किस सवाल से।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं ...
जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कोई जीवन कविता है, कोई बना कहानी कोई समाज का दर्पण, कोई बना इतिहास लिये जीव की अंतिम सांस। कोई विज्ञान बना है, कोई कोषागार कोई कला का सागर, कोई छुए आकाश लिये ह्रदय में प्यास। कोई मरुभूमि बना है, कहीं खेत हरियाता कोई किनारा अधबिसरों का, कोई सागर सा लहराता लिये मिलन की आस। जितने मन हैं उतने ढंग, जितने जीवन उतने रंग तरह-तरह के करे प्रयास, अंत मिले अनंत का वास भाव ये मन में, भरें मिठास। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति...
गुमनाम
कविता

गुमनाम

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गंभीर स्वभाव गंभीर विचार, गंभीर भाव गंभीर है चाल। शेर जैसी जिसकी दहाड़ बाज जैसा निशाना, शुक जैसी जिसकी वाणी, राजनीति को जो हे खिलाड़ी, रीझे जिस पर, साधु- संत-महंत और ज्ञानी। देश विदेश में देखो ख्याति, हर शब्द देखो हे वाणी, तरकस से छूटे जैसे बाण। सनातन का पक्का वह प्रहरी, गरीबो का वह कृपा निधान। ध्यान योग तप और साधना, हे जिसके जीवन मै ज्ञान। देश प्रेम और देश सेवा ही जिसका है परम उद्देश्य। आप बताओ कौन है देश मै? राजा, संत महंत या त्यागी, सबके मन का जो है मीत। चित्त मे जिसके हरदम रहता सनातन और देश प्रेम का जज्बा? परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित...
चंचल मन
कविता

चंचल मन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर अम्बर, अम्बर सागर सागर मे अम्बर प्रति बिम्बित कहीं कुछ जाना नहीं शून्य सा रिता अम्बर सागर में अथाह उत्साह। अम्बर के गहरे में मन्थन मन्थन को मन का सम्बल सम्बल पाने दौड़े तन मन। मन चंचल है पार दिवारे जाऊं कहां ढुंढे आंचल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित व वर्तमान में र...
झूठI कौन
कविता

झूठI कौन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकांड विद्वान ने अपनी वैज्ञानिक आविष्कार के लिए रात-दिन एक करते हुए एक प्रयोग आरंभ किया, इंसानी मनोभावों का किया निरंतर अध्ययन, कुछ खास भावों का किया चयन, आभासी दुनिया का निर्माण उनका मूल लक्ष्य था, शुरुआत किया जाये कैसे बहुत बड़ा प्रश्न यक्ष था, कपोल कल्पना, फ़रेब, झूठ, इन सबसे कैसे मचाया जाये लूट, लोग धीरे-धीरे होने लगे इकट्ठे, सीखने लगे मारना झपट्टे, कौन छोटा कौन बड़ा पढ़ाया जाने लगा, लोगों में ये सुरूर सर चढ़ छाने लगा, सब समान है ये भाव क्यों सहें, बिना विशेषाधिकार वो क्यों रहे, लक्ष्य के सामने जो आये उन्हें क्रूरता से रौंदना जरूरी था, वज्रपात कुछ सरफिरों के लिए कौंधना बहुत जरूरी था, नयी खोज के लिए पूरे देश से एक सोच वाले वैज्ञानिक बुलाये गए, क्या करना है बताये गये, सामाजिक ताने-...
ये ज़िन्दगी
कविता

ये ज़िन्दगी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** द्वारे-द्वारे वन्दनवारे मुस्काती ज़िन्दगी हंसते गाते मुखड़े देख गीत गाती ज़िन्दगी सिसकती झुर्रियों के बीच अश्रु बहाती ज़िन्दगी दर्दों की दुनिया देख कर लँगड़ाती ज़िन्दगी कुचली कली के दुखों पे शरमाती ज़िन्दगी हैवानियत की हद कहाँ? है बौराती ज़िन्दगी उलझी डोरें रिश्तों की भी सुलझाती ज़िन्दगी प्यार से संग उड़ती पतंगें नहीं कटाती ज़िन्दगी डोलती कश्ती को कभी नहीं डुबोती ज़िन्दगी बिन तैरे ही मझधार पार नहीं कराती ज़िन्दगी सुप्त सिंह के मुख में मृग लाती नहीं ज़िन्दगी बुलन्द हौंसलों को ही है बढ़ाती ज़िन्दगी मंज़िल को हाथों में देने नहीं आती ज़िन्दगी पहला कदम तो बढ़ा राहें खुलवाती ज़िन्दगी दिल में उतरे सज्जनों को संभालती ज़िन्दगी दिल से उतरे से सम्भलना है सिखाती ज़िन्दगी परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्...
प्रेम क्या है
कविता

प्रेम क्या है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम क्या है क्या ये किसी रिश्ते का नाम है या इसका संबंध देह से है नहीं 'प्रेम' तो इक 'अनुभूति' है वह मोहताज नहीं रिश्तों का क्योंकि रिश्ते तो अपना मूल्य मांगते हैं मूल्य न मिलने पर सिसकते, टूटते, बिखरते हैं फिर यहाँ प्रेम कहाँ. क्या प्रेम देह से जुड़ा है नहीं जिस तरह पूजा के बाद अमृत, पानी नहीं रह जाता तो प्रेम का पर्याय देह कैसे हो सकता है? प्रेम का न कोई मूल्य होता है न ही कोई दैहिक सम्मोहन प्रेम इन सब से परे है प्रेम इबादत है. प्रेम इन्सानियत है प्रेम बन्दगी है प्रेम भक्ति है प्रेम विश्वास है इसमें ना खोना है न पाना है बस करते चले जाना है. फिर ये प्रेम मनुष्य का मनुष्य से हो या मनुष्य का ईश्वर से हो या ईश्वर की किसी कृति से हो. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक...