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कविता

शिव पर्व हरेला
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शिव पर्व हरेला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** पर्व हरेला कुमाँऊ का, मनाते हैं उत्तराखंड में। निवास जिन श्री महादेव का, विराजते वह कैलाशखंड में।। घर ससुराल महादेव का, है जब पुण्य उत्तराखंड में। तभी हरेला पवित्र सावन का मनाते हैं हम उत्तराखंड में।। प्रतीक हरेला हरियाली का, सदा सुसमृद्धि सूचक है। ब्रत पूजन उमा-महेश्वर का, जीवन समृद्धि सूचक है।। स्वागत सावन हरेले का, आरंभ सप्तदिन पूर्व करते हैं। श्रद्धा से सप्तधान्य का, गृह में बपन सप्तदिन पूर्व ही करते हैं।। स्वरूप जिस तरह धरा का, हरा भरा सावन में होता है। उसी तरह आशीष महेश्वर का, फलीभूत जीवन में होता है।। पूजन विशेष श्री महादेव का, हरेले से लोग यहां पर करते हैं। जन-जीवन शिवार्चन का, जिया लोग यहाँ पर करते हैं।। महापर्व यह देवभूमि का, प्रतिवर्ष श्रद्धा से हम मनाते हैं। हो कल्याण समस्त भारतभूमि का, शिव ...
आस्था और विश्वास
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आस्था और विश्वास

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* इस जगत की यह सच्चाई, मिथ्या ना हो कोई आस। हर रिश्ते की है मजबूती, दो शब्द आस्था और विश्वास।। सच्ची आस्था का यह सत्य, न मानो अगर तो है पत्थर। कर लिया दृढ़ विश्वास तो मानव, निर्मित हो उठता है ईश्वर ।। अटूट प्रेम की सुंदर आस्था, एक पत्नी की पति के लिए। जीवन भर बना रहता रिश्ता, सच्ची विश्वसनीयता के लिए।। गुणवान बिटिया करती आस्था, जन्म देने वाले अपने पिता पर भेज देते हैं लाडली को अपनी, हेतु शिक्षा सिर्फ विश्वास पर।। अबोध शिशु को भी है विश्वास, रहता उसको अपने तात पर। हवा में उछाले पुत्र को अपने, आस्था अटूट पुत्र की पिता पर। अभिभावक अपने बच्चों को, छोड़ देते हैं आस्था के सहारे। गुरु देंगे सुशिक्षित प्रगाढ़ ज्ञान, दृढ़ विश्वास कभी ना हारे ।। जीव के लिए ईश्वर ने , दो शब्द बनाए हैं अनमोल। जिए सरलता से पृथ्वी पर ...
बिटिया की बिदाई
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बिटिया की बिदाई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नन्हें दोनों हाथों से कंकू के छापे अपने पिता को लगाती फिर लिपट के रोती विदा होते ही सबकी आँखों की कोर में आँसू आ ठहरते और आना सुखी रहना कह ढुलक जाते आँसू रिश्ता आँखों और आंसुओ के बीच मन का होता जो डबडबाए नैना अंदर से मन को रुलाता पिता से पूछ कर बिदा होती लगने लगता आसुंओं का बांध फूट गया हो सारी बातें बचपन से लेकर बड़े होने की घूमने लगती आँखों के सामने बिदा के बाद घर आने पर खाना बिना आसूं गिरे खाया हो ये कभी भी ना हुआ दर्द का सच पिता को कुछ ज्यादा ही महसूस करता रोता मन किसे कहे बिटियाँ की बिदाई का दर्द कंकू के छापे जिन्हें देखकर आँसुओं से डबडबाने लगते सूने नयन। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल स...
आईना
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आईना

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आईना खुद देख,तब दिखा आईना, तरफदारी में उतरता नहीं आईना। मेरे चेहरे पे पड़ जो रही झुर्रियां, नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना। टूटकर बिखर जाना, गवारा इसे, झूठ का पैर छूता नहीं आईना। क्या जाने भेद, गोरे -काले का ये, जैसा जो दिखता, दिखाता आईना। सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो, किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना। फितरत समझता है हर आदमी का, सच से बे-खबर नहीं रहता आईना। बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ, उन्हें नज़र नहीं आता वही आईना। गला कोई दबाता झूठ आज बोल, खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना। फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा, पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना। वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो, यही मंत्र हमको सिखाता आईना। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा :...
बूंद-बूंद जीवन बरसे
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बूंद-बूंद जीवन बरसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बूंद-बूंद जीवन बरसे, देख-देखके मन तरसे, जब जब बारिश होती, आसमान बादल गरजे। जल जीवन का आधार, कर ले जल से तू प्यार, अमृतमय होता है जल, महिमा होती है अपार। अद्भुत द्रव्य कहलाता, शीतलता तन दिलाता, क्रोध अगर जब आये, पल में ही शांति लाता। किसान रहता है निर्भर, बहता नदियों में झरझर, बच्चे नहाते खुशी-खुशी, पसीनों से हो तर बतर। नदी, नाले और हैं सागर, जल भरे देता बड़ा गागर, जल लाता खुशियां हजार, हर जन को जल से प्यार। बूंद-बूंद जीवन बरसता, लेकर चले हल किसान, जल होगा तो कल रहेगा, जल बचत को रहे तैयार। बूंद-बूंद जीवन बरसेगा, आयेगी बागों में बहार, पपीहा बोलेगा वन में, आएं अनेकों ही त्योहार। जल बरसेगा जब आंगन, मन में उठे प्यार की लहर, बादल फट जाते हैं कभी, टूट पड़ेगा तब एक कहर। बूंद-बूंद जीवन ब...
खत का क्या महत्व
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खत का क्या महत्व

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** क्या होते थे उस समय के खत हमारे और तुम्हारे लिए। पर समय परिवर्तन ने किया कुछ इस तरह का खेल। बंद होने लगे पत्रों को लिखने का वो दौर। क्योंकि आ गये है अब संचार के नये उपकरण। जिसके कारण स्नेह प्रेमभाव और आत्मीयता मिट रही है।। क्या दौर हुआ करता था जब दिलकी बातें कहने। सुख दुख और बातें बताने के लिए हाथ से खत लिखते थे। और लिखने से पहले बहुत सोचा करते थे। फिर सब समाचारों को क्रमश: खत में लिख पाते थे। और खत लिखते हुए उन्हें अपने करीब पाते थे।। खास बात तो ये होती थी। कि लिखने और पाने वाले को। खत आने का इंतजार रहता था। इसलिए डांकिया की प्रतिक्षा करते थे। और घर के अंदर बहार बारबार आके देखते थे।। खत को पाकर और पढ़कर जो जो चैंन और सकून मिलता था। उसे हम व्यां नहीं कर सकते बस ख़तको दिलसे लगाते थे। और उसे बार बार पढ़...
है लालसा यही अब मेरी
कविता

है लालसा यही अब मेरी

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** लावणी छंद में कविता है लालसा यही अब मेरी .. बादल बनकर बरसूँ मैं। सबके ताप हरण मुझसे हों .. सेवा करके हरसूँ मैं।। मेढक मोर पपीहा खुश हों .. देख मुझे ही झूम उठें। धरती की मैं प्यास बुझाऊँ.. माथा मेरा चूम उठें।। १ सावन का बादल बन जाऊँ.. रिमझिम-रिमझिम बरसूँ मैं। गीला कर दूँ सूखे को यूँ.. मौसम ठंडा करदूँ मैं।। मैं भी सागर से जल लेके.. आऊँ-जाऊँ सावन में। मेरा भी मन मीत खड़ा हो.. मुझको देखे आँगन में।। २ पानी के बिन सूना सूना.. जीवन मरता रहता है। मेढक अपनी बोली बोले.. मोर पपीहा कहता है।। पलता जीवन सब जीवों का.. बादल जल बरसाते हैं। आमों पर बैठे तोते भी ... मीठू मीठू गाते हैं।। ३ मैंने एक लालसा पाली .. बादल बनना मुझको है। नभमंड़ल में उड़ता जाऊँ.. दृश्य देखना मुझको है।। बादल भी सेवा करते हैं.. बारिश...
रूठी हुई महफ़िल
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रूठी हुई महफ़िल

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महफ़िल में तेरा इन्तज़ार करते-करते सुबह हो गई, जो नूर मेरे चेहरे पर था उस नूर से मेरे चेहरे की कलह हो गई। सितारों वाला दुपट्टा ओढ़ा था मैंने तुम्हारे लिए, वो दुपट्टा तुमसे रूठ गया और उसके सितारों की चमक भी बेज़ार हो गई। दिल में अरमान लिए तेरी ख़ातिर सज कर महफ़िल में आए थे हम, रूठ गईं मेरी चूड़ियाँ भी तुमसे और उनकी खनक कम हो गई। मैंने वही पायल पहनी थी जो तुमने मुझे तोहफ़े में दी थी, छम-छम करना भूल गईं वो भी और उदास हो गईं। आँखों में काजल डाल बिंदिया सजाई थी मैंने माथे पर, काजल मेरा आँसुओं में धुल गया और बिंदिया भी तुमसे नाराज़ हो गई। क्यूँ मेरी मोहब्बत को महफ़िल में रुसवा किया तुमने इस तरह, कि वो सजी हुई महफ़िल तेरे इंतज़ार में तबाह हो गई। उस महफ़िल में तेरा इंतज़ार करते-करते .....। परिचय :...
ये नियति का लगान है
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ये नियति का लगान है

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** ज़ख्म लगे होने हरे, औ' चेहरे पर मुस्कान है, तुम कहो पीड़ा है मेरी, मैं मानूँ ये इम्तिहान है। जिंदगी होने का सबब, सिर्फ खुशी होती नहीं, यह सफर है सुहाना, कहीं बाग है, वीरान है। धैर्य साहस से जुटा हो, आनंद भी वही पायेगा, बोझ सर लेकर जो बैठा, वही सदा परेशान है। अपने खातिर जी लिया, औरों का भी ख्याल कर, कुछ त्याग-पीड़ा भोग ले, ये नियति का लगान है। परउपदेश कुशल बहुतेरे, आसानी से कह दिया, क्या कहे 'प्रदीप' उन्हें, वे समझे-बुझे नादान है। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन : देश के समाचार पत्रों में सैकड़ों पत्र, परिचर्चा, व्यंग्य लेख, कविता, लघुकथाओं का प्रकाशन , दो काव्य संग्रह(पग-पग शिखर तक और रीता प्याला) प्रकाशित। सम्मान : अटल काव्य सम्म...
एक शिक्षक
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एक शिक्षक

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी उसे उदास नही देखा चाहे हो उसके जीवन में लाख परेशानियां पर कभी उसे चिंतित नहीं देखा कभी खुद के लिए ना जीकर मैने उसे दूसरो के लिए जीते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। चाहे जिंदगी की परेशानी हो या हो किताबो की परेशानी मैने उसे बताते ही हल करते देखा कभी रुकने के लिए नही हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। निरंतर चलने का उसका वो इरादा मैने बच्चो के भविष्य को बनाते देखा परिवार है उसका भी पर मैने दूसरो के बच्चो को अपना बच्चा बनाते देखा और अपने परिवार से अलग हटकर विद्यालय को भी परिवार बनाते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। जीवन में कभी पूर्ण विराम न लगने देना ऐसा उनको समझाते देखा किसी भी बात क...
कलम जब बोलती है
कविता

कलम जब बोलती है

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** मन में बिखरे भावों को शब्दों का रूप देती है कह न पाते जो जुबां से बात वो भी कह देती है कलम जब बोलती है। अंतर्मन में जो होता है प्रकट उसे कर देती है भावों को शब्द रूप दे साहित्य सृजन करती है कलम जब बोलती है। भूत-वर्तमान-भविष्य के सभी राज खोलती है कलम जब बोलती है। कभी-कभी प्रहार ये तलवार से तेज करती है कभी-कभी प्रहार तलवार का रोक देती है कलम जब बोलती है। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
सामाजिक अवधारणा
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सामाजिक अवधारणा

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** जात बदलकर अपनी माँ पर लांछन लोग लगाते हैं। रक्त पिता का किया कलंकित ख़ुद को श्रेष्ठ बताते हैं॥ जन्म लिया जिस जाति में तुमने उसका अपमान किया। स्वयं बदलकर प्यारे तुमने जग में ऐसा, क्या काम किया॥ अपनी हीं नजरों में तुमने अपना मान गिराया हैं। कौन करें सम्मान तुम्हारा ख़ुद को हीं झुठलाया हैं॥ अभी समय हैं परिवर्तन का मन में अलख जगालो। जागो प्यारे स्वाभिमानी ख़ुद की लाज बचालो॥ अनुनय विनय "विमल" करता हैं पतन नही होने देना। सामाजिक अधिकारो का तुम हनन नही होने देना॥ शीश कटा लेना, पर अपनी जात नही खोने देना। परिवर्तन की आँधी हैं ये अस्तित्व नही खोने देना॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विश...
तू ही बता जरा
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तू ही बता जरा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरी यादों के समुद्र में डूबू , या इन आंसुओं में बह जाऊँ | तू ही बता जरा तेरी वेवफाई, मैं हंस के कैसे सह जाऊँ || तेरे सपनों में खो जाऊँ, या इस दुनियाँ से खो जाऊँ | तू ही बता जरा तेरी वेवफाई, में जी जाऊँ या फिर मर जाऊँ || तेरे धोखे को याद करूँ, या तेरे प्यार में खो जाऊँ | तू ही बता जरा तेरी वेवफाई, के बाद रातो में कैसे सो जाऊँ || तुझे ही दिल में रखूँ, या अब निकाल जाऊँतू ही बता जरा तेरी वेवफाई के बाद, तेरा ही रहूँ या किसी ओर का हो जाऊँ || परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट ...
लोक अदालत और गांधी दर्शन
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लोक अदालत और गांधी दर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सभी सुखी खुशहाल रहे सब, गांधी जी का ये सपना था। भले कोई कितना दुश्मन हो, वो भी तो उनका अपना था।। गांधी के सपनों का भारत, ये था इसको याद रखें हम। उनके पदचिह्नों पे चलकर, भारत को आबाद रखे हम।। सत्य अहिंसा की ताकत से, कब तक कतराएगी दुनिया। है विश्वास यकीनन एक दिन, इस पथ पर आएगी दुनिया।। जिसकी लाठी भैंस उसी की, क्या ये सोच बनी फलदाई। झगड़े से झगड़ा बढ़ता है, क्या दिल से आवाज न आई।। सदा युद्ध के परिणामों में, जीता एक, एक हारा है। पर क्या हार जीत ने बोलो, समाधान को स्वीकारा है।। समाधान की दिशा अहिंसा, इसमें कोई हार नहीं है। जश्न जीत का दोनों ही मिल, मना सकें त्यौहार यही है।। नही फैसले, समाधान की, ओर बढ़ें तो सुख पाएंगे। लोक अदालत गांधी दर्शन, है ये सब को समझाएंगे।। ****** जड़...
वीर सिपाही
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वीर सिपाही

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। वादा जो किया है माता से, उसको भुल न जाना तू। जब याद तुम्हारी आयेगी, आंखो से पानी आयेगा। राखी लेकर रोए बहना, कौन उसे समझाएगा । मिलन की तमन्ना बच्चों की, उसको न भूल जाना तू। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। आना पापा लौटकर, बेटी के आँसू कहते है। छोड़ कर जब से आप गये, टूटे टुटे से रहते हैं। लेकर तिरंगा हाथों मे, आगे बढ़ते जाना तू। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। जाते जाते कह गये थे बच्चों से, खिलौना लाने को। खिलौना चाहे मत लाना, पर कह दो जल्दी आने को। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। वादा जो किया है माता से, उसको भुल न जाना तू। पत्नी से भी कहा था होली पर आने को । रंग बिरंगी चूडियां चाहे न लाना, पर कह दोसजने सजाने को, ...
मैं मज़दूर
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मैं मज़दूर

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** मैं मज़दूर घर से बहुत दूर लालसा में दाल, भात, नून की रोटी दो जून की, मुन्ने को, मुनिया को अपनी प्यारी सी दुनिया को ममता की छाँव को छोड़कर गाँव को नदी को नहर को आ पहुँचा शहर को। खाली बैठना बेमतलब ऐंठना काम से जी चुराना नहीं था गँवारा मेहनत से अपनी शहर को सँवारा। कैसी करते हैं बात लगा रहा दिन रात आँधी, बारिश, सर्दी, गर्मी हालात चाहे जो हों मैं कभी नहीं डरा और पूरी ईमानदारी से शहर की तिजोरियों को भरा। सूखी रोटी संग पीकर जल सजाए हमने जिनके महल जुटाए जिनके लिए ऐश्वर्य के साधन, कितना संकुचित निकला उनका मन सोच कर देखिए भाई जब कोरोना ने मुसीबत ढाई तो बिना देर किए मदद करने की बजाय कैसे मुँह फेर लिए मानो जानते न हों पहचानते न हों, ये धन्ना सेठ धन के नशे में इतने चूर हैं कोरोना से ज्यादा तो ये महलों वाले क्रूर हैं।...
जिंदगी एक अनबुझ कहानी तो है
कविता

जिंदगी एक अनबुझ कहानी तो है

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** जिंदगी एक अनबुझ कहानी तो है, कोई समझे या ना नही समझे तो, जन्म और मृत्यु की ये कहानी तो है, कोई पागल यही नही समझे तो, प्यार की ये अनबुझ कहानी तो है, कोई मानें या ना नही मानें तो, बचपन, जवानी, बुढ़ापे तो है, कोई जाने या ना नही जाने तो, खेल, पढ़ाई और जॉब की रवानी तो है, कोई निभाये या ना निभाये तो है, प्यार और धोखा की ये रुबानी तो है, कोई विश्वास करे या ना नही करे तो, गाँव, शहर और नगरों का ये अंतर नही, अपनी जीवनशैली बदलने से क्या फायदा, गीत, गजल और कविता मे वो बात नही, जो अध्यात्मिक भजनों मे मिलती हमें, मनुष्य, जीव-जंतु और पेड़-पौधे एक ही है, फिर सबको मसलने से क्या फायदा, जाति धर्म, रंग-भेद और खान-पान से मतलब नही, फिर सबसे दुश्मनी करने से क्या फायदा, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका खून ए...
जनसंख्या विस्फोट
कविता

जनसंख्या विस्फोट

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** देख रहे हैं कातिल मंजर जनसंख्या विस्फोट संसाधन पर करता रहता है यह भारी चोट भूखे नंग़े लोग भागते रोटी की ख़ातिर पर नेता जी गिनते रहते मेरे किरने वोट पैदा करते हैं हम यारों एक कंगारू देश यहाँ भी हम देखेंगे एक दिन सोमाली परिवेश कुदरत के मत्थे मत मढ़िए अपनी कुत्सित सोच मुखिया हो तो देना होगा इल्म भरा संदेश हर मसले को नहीं जोड़िए धर्म से आप सुजान कर्म से ही बस पूरे होंगे अपने सब अरमान तर्कहीन तकरीरों का अब बंद करो ये खेल नई सोच से रिश्ता जोड़ो मिट जाए अज्ञान बोझिल धरा बेचारी सोचो कैसा होगा काम दो बच्चे में ख़ुश हो जाएँ पंडित और इमाम बनिए साहिल मातृभूमि का यही वक़्त की माँग बेहतर होगाल पालन - पोषण ऊँचा होगा नाम परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्...
महंगाई
कविता

महंगाई

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** महंगाई से लोग परेशान हैं, खुश न तो खेत न ही वो खलिहान हैं। पाई - पाई के लिए लोग मोहताज़, कुछ का तो पैसा ही भगवान है। लगी है आग रोज डीजल- पेट्रोल में, कीमत उसकी सातवें आसमान है। पसारी ली है ऐसा पांव बेरोजगारी, लगता आदमी जैसे बेजान है। मंहगाई का असर सीधे जेब पर, अच्छे बाणों से खाली कमान है। कैसे हो ऐसे रिश्तों की तुरपाई, हर एक घर की अपनी दास्तान है। वोटों की फसल तक सीमित जनता, घड़ी- घड़ी वोटरों का इम्तिहान है। धूप पर जैसे निर्धन का हक़ नहीं, मुट्ठीभर लोगों का ये आसमान है। गुजरती है जिंदगी घुटने बटोर कर, अंदर से छाती लहूलुहान है। मजे में वो जिसकी ऊपरी कमाई, बाकी जनता बेचारी परेशान है। बेचकर चेहरा कुछ बीता रहे दिन, ऐसे यौवन का क्या सम्मान है। मीठी-मीठी बात से पेट नहीं भरता, सबसे ज्यादा किसान परेशान है। कागज ...
औरत
कविता

औरत

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ईश्वर की अदभुत रचना हे जो कई रुपों में ढलती हैं। हर एक अवस्था में औरत अपना स्वरूप बदलती हे॥ हर नए रिश्ते में औरत अपनी रीत निभाती हैं । कभी तो बनती हैं बेटी कहीं बेहन बन जाति हे॥ कहीं तो हे दादी नानी कहीं तो माँ केहेलाती । कहीं पे बनती राधा प्यारी कहीं अर्धांगि बन जाती हैं ॥ सबसे बड़ा रिश्ता हैं माँ का बच्चो की नीव जो भर्ती है। धूप पढ़े जब बच्चो पर तो शीतल साया करती हैं॥ बेहन बने तो मर्यादा की होती हे इक पावन रेखा । घर को जगमग करे रोशन कोई मित्र नही एन्सा ॥ होती हे जब राधा प्यारी तन्हाई में मन बेहेलाती हे । दिल के वीराने उपवन में यादों के फूल खिलाती हे॥ और बने जब जीवनसाथी घर को वो स्वर्ग बनाती हे। अपना घरबार बसाने को अपना अस्तित्व लुटाती हे॥ पुरुष की खातिर खोती अपना तनमन सुं...
अनदेखे अनसुने
कविता

अनदेखे अनसुने

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ बातें अनकही हैं कुछ जज्बात अनसुने है कुछ चेहरे अनदेखे हैं कुछ ख्वाब अनसुने है कुछ रिश्ते अनदेखे हैं कुछ हसरतें अनकही है कुछ पहलू अनसुने है कुछ कहानियां अनदेखी है कुछ अंदाज अनसुने है कुछ लोग अनदेखे हैं कुछ गीत अनसुने है कुछ रास्ते अनदेखे हैं परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
भारत की बेटी
कविता

भारत की बेटी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। सदा ही वीरो के नाम से लोगो ने भारत को जाना है। घिनोनी हरकतों से कलंक मत लगाओ भारत को। लक्ष्मी बाई जैसी नारी हुई, जान देश पर वार दी। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझ पर अत्याचार। मातृभूमि को जब सर आँखों पर रखते हो तो, एक बेटी पर क्यो पाप करते हो। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। जिस भारत की अहिंसा पहचान थी, यहां क्यो मोमबतियां लोगो ने थामी है। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। बागी भी हुए यहां पर, लेकिन उन्होंने बेटी, बहू को इज्जत दी, तुम ना बनो हैवान। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। बेटी यहां की बर्दी पहन, रहती है,सदा तैयार देश पर कब हो जाऊँ क़ुर्बान। मैं भारत की बेटी हूं, मत करो मुझपर अत्याचार। विश्व मे...
खुशी प्रदायिनी
कविता

खुशी प्रदायिनी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। बहुधा कविता का साथी, अलमारी का कोना है पुस्तक क्रय बात अलग,मिली भेंट क्या खोना है शिवशक्ति संगम जैसा, लेखन संदेश भी त्राण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। रुचिकर भोजन स्वभाव, पसंद का भवन लेता यारी परिवार संबंध हेतु, नाविक नैया खुद खेता पसंद नापसंद से सर्वस्व, करता मनुज निर्माण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। स्मृति पटल पे बने रहना, स्वभावों की हद बनती कविता संदर्भों की चर्चा, प्रभाव का कद गढ़ती कब कैसे कितना कथन, मानव हक परिमाण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण ...
रिश्तों की दीवार…
कविता

रिश्तों की दीवार…

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** संभाल न सके जो रिश्तों की दीवार, बेदर्दी से अपनों को कर दिया, किनार, देखते-देखते ये साल भी बीता जा रहा, उनकी यादों से सजा रखा, मैने घर द्वार, तस्वीर से तेरी नज़रें कभी हटा नहीं पाते, जन्म दिवस पर, आपको कैसे देंगे पुष्प हार, हम लोग वक्त, फिज़ूल कभी, जाया न करते, सपने, हमने भी देखें थे, भविष्य के, बेशुमार, कभी-कभी सालता है ये तनहाई का आलम, चंद सांसों का जीवन भी न मिल सका, उधार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लो...
ए जिंदगी
कविता

ए जिंदगी

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** ए जिंदगी में कितना खुश नसीब हूं मन की आहट सांसों का निरंतर चलना, सुबह का खिलना एक मधूर मुस्कान के साथ स्वागत, अभिनन्दन, अभिनन्दन शुभ प्रभात नई ऊर्जा के साथ है ईश्वर तेरा अभिवादन करता हूं नतमस्तक हूं प्रथम कुसुम खिलें उषा की किरणों के साथ एक प्यारी सी मिठी सी मुस्कान लिए समर्पित हूं ईश्वर अभिनन्दन, अभिनन्दन में सर झुका कर करता हूं। शशि चंद्र धुमिल हुए, प्रखर लालिमा लिए प्रकट समय-चक्र सूर्य नारायणन गतिशीलता लिए एक नई दिशा जिंदगी को देने अपनी ऊर्जा से पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शन करने जागो नई उमंग लिए मिठी सी मुस्कान के साथ है ईश्वर शुभ प्रभात की नई किरणों के साथ अभिनन्दन अभिनन्दन करता हूं। सरिता की पावन जल लहरें, जल प्रपातों से करती अटखेलियों निखार रही परिंदों कलाबाजियां शिखर पर हैं प्रातः उषा काल में दि...