Thursday, January 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

गुरु की महिमा
कविता

गुरु की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आओ गुरु की वंदना करें, जो सच्ची बात बतलाते हैं। गुरू की सुमिरन जो करें, सो जीवन बदल जाते हैं।। पुरानी परम्परा में आचार्य जी, कठोर नियमों का पालन किया। यम नियम संयम में ही रहकर, चेला जो गुरू का सम्मान किया।। यही गुरू चेला का संबंध बतलाते हैं ... जीवन में कई गुरु मिलते हैं, पर सब सीख जरूर देते हैं। असतो मा सद् गमय सुक्ति ऐसे शिष्य गुरुकुल में सीख लेते हैं।। जो सद्कल्याण का पाठ पढ़ाते हैं ... माता पिता भी प्रथम गुरू हैं, समाज के लिए संस्कार शुरु हैं। शिक्षक का भी क्या कहना, छात्र जीवन का असली गहना।। जो सर्वांगीण विकास कराते हैं ... श्रवण की बात समझ लें प्यारे, जो गुरुवर क महिमा गाते हैं ... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद ...
गुरुवर
कविता

गुरुवर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की राहों पर चलना आपसे सीखा है, हर मुश्क़िल से पार निकलना गुरुवर आपसे सीखा है।। कच्चे धागे जैसे थे हम, पल-पल टूट जाया करते थे, मन को मजबूत कर रस्सी बनना गुरुवर आपसे सीखा है।। हर काम आसान नहीं, सोचकर छोड़ दिया करते थे, असम्भव को संभव बनाना, हाँ गुरुवार आपसे सीखा है।। समझ न थी सही गलत की, हर बात में गलती होती थी, सत्य की पहचान करना, गुरुवर आपसे सीखा है।। जब भी दुविधा में होती हूँ, तो आप ही राह दिखाते हैं। आपके वचन मेरे लिए ईश्वर की वाणी बन जाते हैं। भाग्यशाली हूँ बहुत, जो गुरु का सानिध्य मिला है, गुरु के आशीष से ही आज मुझको सबकुछ मिला है, सबकुछ मिला है....।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। धनपत राय श्रीवास्तव से, प्रेमचंद हो, जीवन का संपूर्ण व्यवधान लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, समाज में फैली बुराइयों को, दूर करने का संकल्प लिखा। मानसरोवर के आठ भागों में, देकर कहानियों के ३०१ मोती। उस युग का महा त्राण लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। कर्मभूमि की राहों में, रंगभूमि का नया आयाम लिखा। नारी की दुर्दशा सहेज कर, मंगलसूत्र का प्राण लिखा। विधवा विवाह की कर अगवाही, कायाकल्प का आगाज़ लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। देकर नवजीवन, नवल सोच साहित्य को, वह कथा सम्राट नौ कहानी संग्रह, नौ उपन्यास का, कर योग गया। प्रथम अनमोल रत्न साहित्य का, कर गोदान, कफन में, ...
सपनों का घर
कविता

सपनों का घर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ख़ूबसूरत ख़्वाबों की तरह वो अपना घर बसाना चाहती है वो अपने घर को ख़ुशियों से भर देना चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। घर के प्रवेश द्वार पर हों गणपति, कोने-कोने को वो रोशनी से जगमगाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। रसोई में उसकी पसंद के बर्तन हों, खिड़की दरवाज़ों पर उसकी ही पसंद के कर्टन हों सिर्फ़ इतना ही तो वो चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। पलंग के सिरहाने एक लैम्प रखा हो और पलंग पर पसंद का चादर बिछा हो और क्या वो चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। टेबल पर रखी प्लेट को फूलों से भरकर घर का कोना कोना महकाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। दीवारें अपनों की तस्वीरों से सजी हो उदासियों का नमोनिशां नहीं हो उन तस्वीरों में ख़ुशियों के रंग भरना चाहती है हाँ वो अ...
बेटी का सम्मान करो
कविता

बेटी का सम्मान करो

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बेटी को ना कोस, उसका सम्मान कीजिये बेटी होने के डर से, भ्रूण हत्या मत कीजिये बेटी को बोझ समझ, अपमान मत कीजिये ना ही दहेज दीजिये, ना ही दहेज तुम लीजिये बेटी को भी तुम अब, बेटे सा ही प्यार दीजिये बेटी बेटे में अब ऐसे, भेदभाव ना ही कीजिये बेटी को भी, अफसर बनने का अवसर दीजिये बेटी को पढाने में ना, तुम कंजूसी अब कीजिये परिवार को बनकर जरा, माली अब तुम सिचिये गुलाब को भी, और चमेली को भी पानी दीजिये अपने घर के कुल को, बेटी से भी रोशन कीजिये समाज में आगे बढने कि, तुम स्वयं हिम्मत दीजिये नितिन एक साथ मिलकर, अब सब प्रतिज्ञा लीजिये बेटी का ना अपमान करीये, ना ही होने अब दीजिये परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मी...
कारगिल के शूरों की वाणी
कविता

कारगिल के शूरों की वाणी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिंह हम दहाड़ कर! शत्रु को पछाड़ कर!! सबक दिया पाक को झंडा अपना गाड़ कर!! कर उठे जो सिंहनाद! अरि कहाँ फिर आबाद!! राष्ट्र हवन कुंड में आहुति का आह्लाद!! करके वज्र हुंकार! शत्रु को चीर - फाड़!! कर भस्म समर में पहने हम विजयहार!! राष्ट्र कोई मेष नहीं! पाक सिंह-वेश नहीं जो ले दबोच अंक में हिंद कोई दरवेश नहीं!! अरि के हर घात का सौ सौ प्रतिघात का दिया मुँहतोड़ जवाब हर विश्वासघात का! हम नहीं हैं डरने वाले! मातृभूमि पर मरने वाले!! पग तले कुचलके मसलके अरि का गर्व हरने वाले!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
दर्द
कविता

दर्द

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** दर्द जो था तेरे जन्म का, जननी ही जाने दर्द को। भला निष्ठुर दर्द क्या जाने, आया है सहने तू दर्द को।। है तू खिलौना एक दर्द का, क्या तू देगा इस दर्द को। तेरा तो साथी दर्द है रे संवारेगा वही तेरे दर्द को।। ना होता तू दर्दी तो, संभालता कौन दर्द को। है तू आसरा दर्द का, मौन सहेज ले दर्द को।। न मिटाया किसी ने दर्द तेरा, क्यों भला मिटाये दर्द को। न कर्म उसका दर्द मिटाना, वह जुडा ही दर्द देने को।। मिला जन्म से दर्द तुझे तो, चाहता क्यों छोडना दर्द को। न छोडेगा कभी तुझे दर्द तो, अपनाले तू स्वयं ही दर्द को।। जिया है जिसके दर्द के लिए, उसने ही बढाया तेरे दर्द को। जियेगा जिसके दर्द के लिए, वही बढायेगा तेरे दर्द।। भुलायेगा प्यारे अगर दर्द तू , तो अपनायेगा कौन दर्द को। अनुपथगामी है तेरा दर्द तो, सदा दे तू सहारा इस दर्द ...
जनम का साथ
कविता

जनम का साथ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू तेरा मेरी जिंदगी में आना फकत इक सपना सा ही है मुझे मालूम तेरे जीवन में बस एक जिम्मेदार किरदार हुँ मैं बेइन्तहा मोहब्बत करता हूँ मुझे ज्ञात तेरे लायक नहीं था तूने भी मोहब्बत बे इंतेहा की एहसान-ए-जिंदगी बन गई मेरी मैंने चाहा है जान से बढ़कर जीना है आब-ए-हयात बनकर मालूम है तुझे गंवारा नहीं मेरा साथ दे सांस टूटते तलक दामन का नही तेरे साये का फिर भी हक जताना चाहता हूं माना कि खण्डहर सा जीवन है नूतन निर्माण की चादर समेटे जज्बातों का कारवां सजा कर साथ नई कहानी गढ़ना चाहता हूं एक नए किरदार के मानिंद तू नए जीवन का आरम्भ समझकर गर तुझे साथ मेरा गवारा हो तो तेरे जज्बातों का सपनों के साथ अपनाकर तेरी हर यादों वादों का तेरा हमसफ़र मैं बनना चाहता हूं अब तलक सूना सूना ये जहां अपलक तेरे आने की राह ताकती खुश...
गजल है जिंदगी
कविता

गजल है जिंदगी

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खूब "गजल है जिंदगी" मचलते दिल की तड़प है जिंदगी। कहीं खुशियों का महल है जिंदगी, कहीं आँखों से बहता काजल है जिंदगी।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" जिंदगी भी तो एक आईना है, कुछ खरोंच आ ही जाती है। कितना भी एहतियात बरतो, पर,कुछ कसर रह ही जाती है।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" जिंदगी में आते हैं प्यार के रहनुमा, मिलते हैं तो जिंदगी होती है खुशनुमा। न मंदिर की घंटी,न मस्जिद की धूम, हर तरफ सुनाई देती है बस प्यार की गूँज।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" मौत तो आसाँ है जीना मुश्किल है दोस्त, हिम्मत है तो तेरे लिए सब मुमकिन है दोस्त। ठोकर लगे तो भी तू रुकना मत ए दोस्त, एक नजर तो डाल सामने मंजिल है दोस्त।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि स...
सावन का सोमवार
कविता

सावन का सोमवार

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सावन माह शिव को समर्पित, करते हैं जप, तप, व्रत विचार, सोच समझकर खाना लेते जन, शिव की भक्ति अमिट अपार। सावन का जब आये सोमवार, शिव आराधना का दिन होता, पूरे साल जिसने पाप किया है वो भी अपने पाप कर्म धोता। अपार शक्ति लिये होते शंभू, जिसके आगे शक्ति है जीरो, उसकी भक्ति में सुख मिले, बन सकता है जग में हीरो। शिव तपस्या का होता माह, शिवरात्रि का आता है पर्व, शिवभक्त कांवड़ लाते चल, होता उन भक्तों पर ही गर्व। सावन माह का बड़ा महत्व, उससे महत्वपूर्ण है सोमवार, शिव आराधना दिनभर चले, शिव शक्ति जग का आधार। विभिन्न रूपों में समाये शिव, त्रिनेत्र धारी जग में कहलाते, अल्प ज्ञान से उनको पुकारो, शिवभोले बस चलकर आते। सावन का आता है सोमवार, भर देता मन उमंग और प्यार, बेलपत्र, गंगाजल से कर पूजा, जग में कभी नह...
तितली बन उड़ जाने दो
कविता

तितली बन उड़ जाने दो

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** मुझे मत मारो इस स्वर्ग सी कोख में मुझे इस जग में अपना अस्तित्व बनाने दो मुझे समझो ना तुम एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक पेड़ इस धूप में मुझे इस जग में अपना छाया फैलाने दो मुझे समझो ना एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं नही एक बोझ सी घर में मुझे दो घरों को संभालना है मैं आपकी पैसे लेने नही पापा ढेर सारी खुशियां बांटने आई हु मुझे उन खुशियों को बाटने दो मुझे समझो ना एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक छोटी सी परी इस जमाने की मुझे पापा की रानी बन जाने दो मुझे समझो ना एक कली की बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक छोटी सी चिड़िया इस दुनिया में जो दो घरों को संभालेगी मुझे जीने दो मैं कुछ करना चाहती हूं मुझे भी कुछ करने दो मुझे समझो ना एक फूल की क...
सुंदर प्रतिफल
कविता

सुंदर प्रतिफल

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** महा विभीषिका का संत्रास, कल इतिहास में अंकित होगा; जब मनुष्य हुआ था कैद घरों में, मुक्त विचरते थे पशु पक्षी। मानव असहाय मूक दर्शक बन, रहा देखता अजब नजारे; वृक्ष फलों से लदे हुए थे, कोई न उनकी ओर निहारे। धरा दोहन से मुक्त होकर, पुष्पों की चुनरी ओढ़ सजी थी; नदियां साफ सुथरी सी होकर, मदमाती मस्त कल कल बहती थीं। अदृश्य जीवाणु ने कुपित होकर, जग में हाहाकार मचाया था; अस्त्र शस्त्र बेकार हुए, जीवन गति पर विश्राम लगा था। दुनियां को छोटा कहने वाले, लक्ष्मण रेखा में सिमट गए थे; चांद तारों को छूने वाले, जीने को मोहताज हुए थे। मानव ने तब हिम्मत बांधी, लेकर धैर्य संयम का संबल; और अंततः विजयी हुआ वह, पाया संकल्पों का सुंदर प्रतिफल। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निव...
गुरु की महिमा
कविता

गुरु की महिमा

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** मिट्टी को जो भगवान बना दे, मूर्ख को जो विद्धवान बना दे, ग्वार को जो इंसान बना दे, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। गुरु वही जो मन को शांति दे, गुरु वही जो धर्म से जोड़ दे, गुरु वही जो सत्कर्म का रास्ता दिखाए, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। जिसे माया का लोभ नही, सच जिसकी जुबान में हो, सादा जीवन उच्च विचार, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। गुरु हो तात्या टोपे सा, जिसने साधारण कन्या को, भारत का कान्तिवीर बना दिया, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक...
आजाद
कविता

आजाद

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** धन्य धन्य हे माता जगरानी बदरका भावरा की माटी का कण कण धन्य।। कोख और माटी ने मिलकर भारत को दिया अनमोल रत्न पंडित सीताराम पिता गौरव पल।। जुलाई तेईस सन ऊँन्नीस सौ छः माँ भारती का लाल चन्द्रशेखर आजाद जन्म।। लालन पालन सत्य सनातन नित्य निरंतर संस्कृति संस्कार अन्याय अत्याचार का प्रतिकार पुरुषार्थ।। भारत के जन-जन घुट-घुट कर जीता जाता परतंत्रता की पीड़ा का घूंट पिता जाता समय काल प्रतीक्षा।। चंद्रशेखर नाम दिया मां बाप ने आज़ाद स्वय का दिया नाम राष्ट्र के अन्तर्मन की वेदना आज़ादी की चाह।। आजादी के संकल्पों प्रतिज्ञा पराक्रम का स्वयं आज़ाद जन जन के भाँवो का प्रतिबिंब प्रतीक आजाद।। युवा उमंग उत्साह ऊर्जा हुंकार नौजवानों की टोली जैसे राष्ट्र अस्मत की रक्षा के जवान।। भगत सिंह राज गुरु बिस्मिल असफा...
हर कोई रंज में डूबा जैसा
कविता

हर कोई रंज में डूबा जैसा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मुल्क का मंजर ऐसा। हर कोई रंज में डूबा जैसा। हर कोई अरज करे ऐसा, मरज दूर हो जैसा। मुल्क पर कोरोना खंजर ऐसा। हर कोई लहू में डूबा जैसा। मुल्क पर कोरोना अंगार ऐसा। हर कोई आग में जल रहा जैसा। मुल्क पर कोरोना की धुंध छाई ऐसी। हर कोई आग में जल रहा जैसा। मुल्क पर कोरोना की धुंध छायी ऐसी। हर कोई तड़प रहा चंद सांसों के लिए जैसा। मुल्क पर कोरोना विपदा बस्ती पर ऐसी। हर कोई अपनी डूबती कश्ती बचा रहा जैसा। मुल्क पर कोरोना की गंध ऐसी। हर कोई अपने घर बंदी बना जैसा। मुल्क का मंजर ऐसा कई मइयते देखी ऐसी। हर कोई कोरोना तपन में जलने लगा जैसा। मुझे मेरे मुल्क पर गुरुर ऐसा। मेरा मुल्क मेरा चमन जैसा। मेरे मुल्क पर कोरोना। इनायत कर ऐसे। मेरा मुल्क गुलशन बनेगा जैसे। मेरे मुल्क में कोरोना का इलाज होगा ऐसे। एक ...
क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे
कविता

क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे

विकास शुक्ला दिल्ली ******************** राम सा भाई सब चाहें, क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे, जो चौदह वर्ष भार्या से दुर रहा, क्या तुम एक वर्ष रह पाओगे... निज राम चरण की धूल बना, वह धुप छाँव बन साथ चला, अरण्य में अपने भाई के, जो बिन स्वार्थ खिदमत को चला गया... उस भरत के ह्रदय को तो देखो, जो अनुराग का सागर बन आया, राज पाठ सब छोड़-छाड़ कर, तात चरण में खुद आया... चरण पादुका को सर लेकर, सिंहासन पर शोभित कर आया, निज भ्रात के कारण योगी बन, खुद भी अरण्य में पड़ा रहा... बोलो ऐसे भरत बनोगे, क्या वही लक्ष्मण बन पाओगे, राम सा भाई सब चाहें, क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे... क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे...।। परिचय :- विकास शुक्ला निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
अच्छा लगा
कविता

अच्छा लगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा हँसना, रुठना, मनाना, अच्छा लगा। जरा जरा सी बातों पर तुनक कर तेरा मुँह को फुलाना, अच्छा लगा। महफ़िल में या यूँ ही अकेले कहीं तेरा गले से लगाना, अच्छा लगा। सौंपकर मुझको खुशियाँ अनमोल तेरा यूँ नखरे दिखाना अच्छा लगा। तुझ पे लिखा हूँ जितनी भी नज़्में तेरा उनको गुनगुनाना अच्छा लगा। वहशी तरीके तुम टूटती हो मुझ पर मुझे सितमगर बताना अच्छा लगा। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष त...
अनहदें…
कविता

अनहदें…

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है, मैंने सरहदों के दायरों में रहकर ये जीवन जिया है, मैंने शिखरों की चाह नहीं थी, सरहदों की परवाह थी हमें, गुजर गयी वो हदें जिनकी परवाह थी हमें, वो अनहदों के दायरे आज भी गूँज रहे हैं। वो नयनों की रोशनी कहीं खो गयी है, पर तुम्हारी खुशबू चंदन की तरह महसूस हो रही है वो शिरोमणि चमक रही है कानों में तुम्हारी आवाजें गूँज रही हैं।। मैं शान्त और शालीनता से तुम्हें महसूस कर रही हूँ, अभी भी अनहदों से गुजर रही हूँ, वो हल्की सी मुस्कराती हुई सुबह, वो शीतल होती हुई शाम, बन्द नयनों से महसूस किये जा रही हूँ,। बन्द कानों से तुम्हारी आहटों का अहसास जम़ी पे तुम्हारे कदमों को इस मखमली दूब के सहारे महसूस किये जा रही हूँ,।। अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है मैंने, सरह...
जरा देख के चलो
कविता

जरा देख के चलो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** फूल हैं कम, कांटे हैं ज्यादा, जरा देख के चलो। भरोसा कम है, धोखा ज्यादा, जरा देख के चलो। मुस्कान कम, तनाव है ज्यादा, जरा देख के चलो। आधी हक़ीक़त, आधा फ़साना, जरा देख के चलो। आसमां कम, औ ऊँचे मकां ज्यादा, जरा देख के चलो। फायर ब्रिगेड कम, शार्टसर्किट ज्यादा, जरा देख के चलो। परिन्दे हैं कम, बहेलिए ज्यादा, जरा देख के चलो। खरे इंसान कम, खोटे ज्यादा, जरा देख के चलो। सूरज है क़ैद, सितारे सोये, जरा देख के चलो। ये रंग-रलियां औ वो कहकहे, जरा देख के चलो। जिस्म का बाज़ार, उड़ते पैसे, जरा देख के चलो। रेशमी आँचल, अश्क़ से भींगा, जरा देख के चलो। रेंग रही मौत, उड़ते वायरस, जरा देख के चलो। ये तूफ़ान, वो बाढ़ का पानी, जरा देख के चलो। पलभर की जवानी, लंबी जुदाई, जरा देख के चलो। अम्न, तहज़ीब की बिगड़े न खुशबू, जरा देख के चलो। ...
देशप्रेम
कविता

देशप्रेम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज हम सब को एक साथ आना होगा मिलकर ये सौगंध सभी को लेना होगा, देशप्रेम का चढ़ रहा जो छद्म आवरण उससे हम सबको बचना बचाना होगा। ओढ़ रहे जो देश प्रेम का छद्म आवरण नोंच कर वो आवरण नंगा करना होगा, देशप्रेम के नाम पर भेड़िए जो शेर हैं ऐसे नकली शेरों को बेनकाब करना होगा। देशभक्तों पर उठ रही जो आज उँगलियाँ उन उँगलियों को नहीं वो हाथ काटना होगा, देश में गद्दार जो कुत्तों जैसे भौंकते है, ऐसे कुत्तों का देश से नाम मिटाना होगा। जी रहे आजादी से फिर भी कितने हैं डर डर का मतलब अब उन्हें समझाना होगा, देश को नीचा दिखाते आये दिन जो गधे हैं रेंकते, ऐसे गधों को अब उनकी औकात बताना होगा। उड़ा रहे संविधान का जब तब जो भी मजाक भारत के संविधान का मतलब समझाना होगा, समझ जायं तो अच्छा है देशप्रेम की बात वरना समुद्र...
दर्द की सज़ा
कविता

दर्द की सज़ा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हुआ न दर्द मुझे भी हुआ करता था, जब तुम बेमतलब मुझे तकलीफ देते थे। आए न आंखों में आंसू मेरी आंखों में भी आते थे, जब तुम बिना मेरे कुछ बोले मुझे दर्द दिया करते थे। टूटा न दिल मेरा भी टूट जाता था, जब तुम पास होकर भी अनजान बन निकल जाते थे। हुई न तकलीफ मुझे भी हुआ करती थी, जब तुम औरों के लिए मुझे छोड़ चले जाते थे। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
पिता
कविता

पिता

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** जो अपने पूरे परिवार के लिए है हर समय जीता, जो अपने सपनों को छोड़ बच्चो के ख्वाब है सिता, जो कभी न बताए की उस पर क्या-क्या है बिता, वो दुनिया का अनमोल रत्न है पिता। मेरा स्वाभिमान, मेरा सम्मान, मेरा अभिमान, है मेरे पिता। अपने बारे में कभी न सोचते, बस हमारे ही सपने संजोते, मेरा मान मेरी उड़ान, है मेरे पिता। गलती होने पर तुरंत कर देते माफ, उनका दिल है कितना साफ़, बाहर से सख्त अंदर से नरम, उनकी डाट भी है कितनी अनुपम। मेरी जान है मेरे पिता, दुनिया का अनमोल रत्न है पिता, जो हमेशा सब को देता, पर खुद के लिए कभी कुछ न लेता। वो महान इंसान है पिता, वो भगवान है पिता। परिचय :- ज्योति लूथरा संस्थान : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : लोधी रोड, (नई दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ...
सावन का आगमन
कविता

सावन का आगमन

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** आगमन सावन का देख है हर्षचित्त सारा वन हुआ, खिल उठी हैं पुष्प कलियां है प्रमुदित हमारा मन हुआ। भवरों की गुंजा शोर करती चढ़ा पत्तियों पर नव-यौवन है, तितलियां नित्य नृत्य हैं करतीं आया झरता देख सावन है। मयूरी की नुपुरें छम हैं करती देखो झूमें ये सारा उपवन है, पंछियों के मीठे स्वरों से देखो हुई सुगंधित ये शीतल पवन है। सरिता की धारा बहती वेग से उल्लासित हुआ ये गगन है, आकाश से देखो धरा मिल गई कैसे इक होकर लागे मगन है। मेढ़कों की गुंजा है सुनती कोयल की कू-कू को नमन है, बगियों में झूले पड़ गए हैं देखो झूमता ये सावन है। परिचय :- आरती यादव "यदुवंशी" निवासी : पटियाला, पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
मेरी यह अभिलाषा है…
कविता

मेरी यह अभिलाषा है…

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ********************                लावणी छंद में कविता मेरे मन की यह अभिलाषा, प्रेम बढे जग खिल जाये । राग द्वेष से हटकर प्राणी, प्रेम गले से मिल जाये ।। प्रेम से बढकर कौन जहां मे, मुझको प्यारे बतलाओ । नम्र निवेदन यही करूँगा, पाठ प्रेम का सिखलाओ ।। १ बिना प्रेम के जग की रचना, मन कैसे हो पायेगी । प्रेम रूप ही ईश्वर का है, देख अक्ल आ जायेगी ।। सच्चा ज्ञान प्रेम है मानो, काली रातें कहतीं हैं । ये कटतीं हैं प्रेम मग्न हो, अंधकार को सहतीं हैं ।। २ तुलसी सूर कबीर कहें सब, प्रेम ड़गर चलते जाना । ईश्वर तुम से दूर नहीं हैं, जाओ तो मिलते जाना ।। मीरा गाये प्रेम मग्न हो, मैं तो हरि की हो गई रे । हरि की चादर ऐसी ओढ़ी, प्रेम गली में सो गई रे ।। ३ नारद वींणा वादन करते, भज नारायण कहते हैं । जगत सार बस हैं नारायण, प्रेम गली में रहते हैं ।।...
समर्पण रिश्तो का
कविता

समर्पण रिश्तो का

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए पूर्ण समर्पण जरूरी है, कमियो को करके नजर अंदाज, खूबियो को अपनाना जरूरी है! कटु वाणी को नियंत्रण मे रखकर, मृदु भाषी होना जरूरी है! गैर भी हो जाते है अपने, बस वाणी मे मिठास जरूरी है, सिर्फ लेने का भाव ना होके, देने का भाव जरूरी है! झूठ से ना जीती गई कोई लडाई, साथ सच का होना जरूरी है! गलत की भीड मे ना होकर शामिल, साथ सच्चाई के चलना जरूरी है! आईना दूसरो को दिखाने से पहले, अंतर्मन मे झांकना जरूरी है! षड्यंत्रो से रची जाती है महाभारत, मधुर संबंधो के लिए निष्पक्षता जरूरी है! भूल जाएंगे सब तेरी जिन्दगी भर की अच्छाई, बस तेरी एक गलती होना जरूरी है! किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए पूर्ण समर्पण जरूरी है! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...