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कविता

संस्कृति की शान हिंदी
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संस्कृति की शान हिंदी

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिंदी, हिन्दू हिंदुस्तान है हिंदी निज गौरव का ये अभिमान हिंदी संकल्प है विश्व की भाषा बने हिंदी हम भारतीयों ये अभिलाषा हिंदी गौरव महिमा का गान बने हिंदी संसार का मान और सम्मान बने हमारे भारत की सभ्यता है हिंदी हिन्दू संस्कृति की सम्मान है हिंदी जाती धर्म से हटकर ऊपर है हिन्दी भारतीयों के शान की पहचान हिंदी है विश्व भाषा यह बने सर्वमान्य हिंदी जन जन की आशा और विश्वास है हिंदी विश्व भाषा का अनुवाद है हिंदी संवाद का अत्यंत सरल साधन हिंदी साहित्य जगत का सृजन है हिंदी सभी की सर्वमान्य भाषा बने हिंदी अपनेपन का भाव जगाए हिंदी सबका प्यारा सबका दुलारा हिंदी सब भाषा से रिश्ता रखती हिंदी समरसता का भाव जगाती हिंदी जन भाषा का संदेश बने हिंदी दृढ़ संकल्पों सभी की भाषा हिंदी विश्व पटल पे सम्मान मिले हिंदी बन...
न जाने कब वो
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न जाने कब वो

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** न जाने कब मेरी बोली सुनकर वो बोलना सीख गया। न जाने कब मेरी उँगली पकड़कर वो चलना सीख गया। उसके बचपन में, मैं अपनी ममता को जीती रही। मेरा चेहरा देखकर न जाने कब वो हँसना भी सीख गया। मेरी अमावस की रात सी ज़िंदगी में, वो चाँद की चाँदनी सा बिखरना सीख गया। न जाने कब उसका कांधा मेरे कांधे तक आ गया फिर वो अपनी ज़िदों पर मचलना भी सीख गया। कभी-कभी छुपा लेती हूँ अपने जज़्बात उससे-२ पर न जाने कब वो मेरी आँखों को पढ़ना सीख गया। जगाता था जो कभी रात भर मुझे रो-रो कर आज वो मेरी खैरियत में रातभर जागना सीख गया। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** आओं मिल राष्ट्र का मान बढ़ाएं, हर क्षेत्र में भाषा हिन्दी अपनाएं। जनचेतना का आधार है हिन्दी, माँ के वात्सल्य सी है हिन्दी।..... हिंदोस्तां की ज़ुबां है हिन्दी, वतन की आन बान शान है हिन्दी। हमारी असली पहचान है हिन्दी, भारतवंशी का अभिमान है हिन्दी। जनचेतना का आधार है हिन्दी।.... हिन्द राष्ट्र की आशा हिन्दी, जन जन की मातृभाषा हिन्दी। जात-पात के बंधन को तोड़ती हिन्दी, एकता सूत्र में सब को जोड़ती हिन्दी। जनचेतना का आधार है हिन्दी।..... गणराज्य की आधिकारिक भाषा है हिन्दी, हमारी संस्कृति-समृद्धता का प्रतीक है हिन्दी। राष्ट्रभक्ति भावना को प्रेरित करती हिन्दी, धाराप्रवाह से बोलने वाली मातृभाषा हिन्दी। जनचेतना का आधार है हिन्दी।..... दुनिया में सम्मान व स्वाभिमान दिलाती हिन्दी, हमारे प्रांतों की क्षेत्...
उठो वीर तुम
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उठो वीर तुम

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** उठो उठो तुम, वीर सपूतों, भारत का नवनिर्माण करो चिंगारी की ज्वाला बनकर, भारत का उद्धार करो उठो उठो तुम ....नवनिर्माण करो भ्रष्टाचार की जंजीरों को, अर्पण हुताशन को कर दो स्वप्न जो देखा है भारत का, उसे उजागर, तुम कर दो उठो उठो तुम ....नवनिर्माण करो विश्व गुरु का सपना जो, देखा है, वीर सपूतों ने भ्रष्टाचार की अग्निशिखा, फैली है चहु दिशाओं में उठो उठो तुम ....नवनिर्माण करो आजादी की लहरों को, फिर से उमड़कर आने दो सच्चाई की मूरत को, दिल में बसाकर तुम रख लो उठो उठो तुम ....नवनिर्माण करो परिचय :-  भुवनेश नौडियाल पिता : स्व. श्री जवाहर नौडियाल माता : मधु देवी निवासी : पालसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
अपनी प्यारी हिन्दी
कविता

अपनी प्यारी हिन्दी

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** हिन्दी भाषा आन है अपनी हिन्दी भाषा शान है अपनी। हिन्दी भाषा रत्न है अपनी। यह उत्सव है,जश्न हैअपनी। गागर में सागर यह भरती। चमत्कार शब्दों से करती। दादी,नानी के क़िस्सों में बसती। माँ की हर लोरी में सजती। खुशबू बनकर महक रही है। सूरज बनकर चमक रही है। सुंदर सरल अनोखी हिन्दी। है संस्कृत की बेटी हिन्दी। भारत की पहचान है हिंदी। हम सबका अभियान है हिन्दी। हिंदी अपनी और बढ़ेगी। दुनिया का सिरमौर बनेगी। अ से अज्ञानी तक चलती । ज्ञ से ज्ञानी तक ले जाती। जीवन की परिभाषा हिंदी। हम सब की अभिलाषा हिंदी। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच ...
सृजन भाषा हिंदी
कविता

सृजन भाषा हिंदी

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** देश का सम्मान हिंदी भाषाओं में महान हिंदी सुंदरता भरी राष्ट्रभाषा हिन्दी मेरे अस्तित्व की पहचान हिंदी मां के प्रेम की छाया हिंदी हिंदुस्तान की धड़कन हिंदी एकता की अनुपम परंपरा हिंदी हिंदुस्तान की गौरव गाथा हिंदी मेरी अपनी भाषा हिंदी जीवन की परिभाषा हिंदी एक मजबूत धागा हिंदी देश को बांध रखे है हिंदी हमारी चेतन वाणी का वरदान है हिंदी हमारी आत्म भावना शब्द है हिंदी उठो जागो संकल्प करो विकसित करके निज भाषा को परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
राम रहीम
कविता

राम रहीम

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दिल को घर ख़ुदा का बना लो। इंसान हो इंसान को अपना लो। मंदिर- मस्ज़िद यूं ही रहने दो, अब गले इक दूजे को लगा लो। यह नफरत की खाई पाट दो, खड़ी रंजिश की दीवार गिरा लो। मुश्किलें जो आ रही सामने, दोनों मिल बैठकर सुलझा लो। भूल से उजड़ गए जो आसियाने, फिर गुलशन ए गुलिस्तां सजा लो। राम-रहीम कंधे से कंधा मिलाकर, इक सुन्दर हिंदुस्तान बना लो। बहने दो मोहब्बत की गंगा-यमुना, अपनी दोस्ती को परवान चढ़ा लो। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्...
अनमोल हिंदी
कविता

अनमोल हिंदी

डॉ. दीपा कैमवाल दिल्ली ******************** क्यूं सिसके हिंदी कोने में? उससे बढ़कर जब न भाषा कोई। है गर्व हमें हिंदी पर है हर भारतवासी की पहचान यही। भावों की सुंदर अभिव्यक्ति जिसका है नहीं सानी कोई। संस्कार समाहित हैं जिसमें अनमोल, अमिट आभा इसकी। मुखरित होती मानवता जिसमें मनुष्यता की पहचान यही। जो लोग हीन खुद को पाते उनसे बढ़कर नहीं अनभिज्ञ कोई। माँ कहीं भुलाई जाती है क्या उसको छोड़ा जाता है। तुम भूल गए वो ना भूली बच्चों से क्या उसका नाता है। वो दुलार कहाँ से लाओगे आँचल में किसके समाओगे। मत मूर्ख बनो कुछ तो समझो उसके महत्व को अब तो समझो। वो तो है अनमोल कहीं विचरण करते जहां भाव सभी। भाषाएं कितनी कितनी बोली माँ से बढ़कर कब कोई हुई। इसका तो स्थान सबसे ऊपर ईश्वर के बाद अनमोल यही। आगे बढ़ने की चाहत में प...
वो रो रहे थे
कविता

वो रो रहे थे

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** वो रो रहे थे हम देख रहे थे अजीब सा आलम देख रहे थे ** उन्हे हुस्न पर नाज था शायद न जाने किस पर इतरा रहे थे ** शूरूर योवन का गुजर चुका वो फिर भी ठोकरे खा रहे थे ** हुरूर उन्हे किसी का रहा नही खामोश खड़े वो मुस्करा रहे थे ** जिंदगी तिश्नगी मे गुजर चूॅकी आड़ मे खड़े होकर ताक रहे धे ** हमने तो किनारा नहीं काटा फिर भी दर्द हमें जता रहे थे ** कहानी का अंत क्या होगा मन ही मन सोचे जा रहे थे ** खुदको इतना ना सताओ मोहन हरकोई इसे तमाशा बता रहे थे ** शुरूर--नशा हुरूर-डर, भय, ख़ोफ़ परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
गजानन
कविता

गजानन

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** लिख नहीं पाती है तुझको कलम की औकात क्या। बाँध ले तुझको धुनों पे ऐसा कोई साज क्या। क्या बयान तुझको करे है मति की परवाज क्या। जीत में बदलें हम निश्चित अपनी हार को। चरणों में मां बाप के पा लें हम संसार को। मन्त्र दे दिया हे गजानन भव सागर पार को। पा लिया है हमने अगर मात पिता के प्यार को। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.co...
जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** सफर है इस जीवन का, किसी दिन वह थम जाएगा। हजारों अश्रु नयनों में देकर, कहीं दूर वह छुप जाएगा। यादों का यह समुद्र है, फिर उमडकर वापस आएगा। ना जाने किन स्मृतियों में, हमको भी ढूंढा जाएगा। ईश्वर की इस परंपरा को, दिल से निभा कर जाऊंगा। यादों के इस संसार में, छाप अपनी छोड़ जाऊंगा। पुष्प बनकर खिल जाऊंगा, धूल पर एक दिन मिल जाऊंगा। ना जाने किस दिन में, अपनी यादों को छोड़ जाऊंगा। परिचय :-  भुवनेश नौडियाल पिता : स्व. श्री जवाहर नौडियाल माता : मधु देवी निवासी : पालसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
हिंदी भारत देश की बिंदी
कविता

हिंदी भारत देश की बिंदी

नंदिता माजी शर्मा (तितली) मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** हिंदी हूँ .....मैं हिंदी हूँ, भारत देश की बिंदी हूँ , हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सबके शब्दकोश में हूं छाई.. है मुझ में साहित्य का सागर, हर धर्म को करती मै उजागर, मैं ही जननी भाषा, बोली की, साहित्य प्रेमियों के होली की, है प्रगाढ़ ज्ञान चेतना मुझमें, जितना है नील व्योम नभ में, मैं हिंदी मेरा पहचान भारत से, मेरी शक्ति, मेरा सम्मान भारत से, उपन्यास, छंद, वेद में मुझे महारत, पहचान गीता, रामायण और महाभारत ..... परिचय :- नंदिता माजी शर्मा (तितली) सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्द...
कविता ऐसे जन्मी है
कविता, छंद

कविता ऐसे जन्मी है

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** प्रदोष छंद कविता प्रदोष छंद विधान :- यह १३ मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- अठकल+त्रिकल+द्विकल =१३ मात्रायें अठकल यानी ८ में दो चौकल (४+४) या ३-३-२ हो सकते हैं। (चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।) त्रिकल २१, १२, १११ हो सकता है तथा द्विकल २ या ११ हो सकता है। मन एकाग्रित कर लिया। चयन विषय का फिर किया।। समिधा भावों की जली। तब ऐसे कविता पली।। नौ रस की धारा बहे। अनुभव अपना सब कहे।। लेकिन जो हिय छू रहा। कविमन उस रस में बहा।। सुमधुर सरगम ताल पर। समुचित लय मन ठान कर।। शब्द सजाये परख के। गा-गा देखा हरख के।। अलंकार श्रृंगार से। काव्य तत्व की धार से।। पा नव जीवन खिल गयी। पूर्ण हुई कविता नयी।। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' ...
माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं
कविता

माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं

गौरव हिन्दुस्तानी बरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी देह का बढ़ता ताप जब कभी ज्वर का रूप धारण करता माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। तुम्हारी कोमल हथेलियाँ स्पर्श करती तपते माथे को तुम जान लेतीं मेरे देह के उच्च-निम्न ताप को, थर्मामीटर की आवश्यकता फिर कहाँ रहती माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। औषधियाँ भी हार जाती दहकती देह से, वैध होते जब संदेह में, तब ठण्डे पानी में डूबा तुम्हारा साड़ी का पल्लू जैसे संजीवनी बूटी हो जाता, कितना आराम पहुँचाता। कभी मेरा कुह्म्लाया चेहरा कभी मेरी देह को पोछती, तुम अपनी ममता के आँचल से, तुम्हारी आँखों से गिरतीं पानी की बूँदें, देह के उच्च ताप को निम्न कर देतीं माँ ! तुम कैसे भाँप लेतीं। मैं डूब जाता जब कभी निराशा के भँवर में तैरता, डोलता, उदासीनता की तरंगों में, हतोत्साह से घिर जाता थक कर बैठ जाता किसी भटकते पथिक की भांत...
बैचेन मन…
कविता

बैचेन मन…

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दिल की आह से- खोजती हैं नजरें किसे सूनी निगाह से- अतृप्त सी अभिलाषा मिलन की उत्कंठा लिए कौंधती सी आशा- निस्तब्ध सा खड़ा समय भी विचित्र है- दिल के कैनवास पर उभरता सा चित्र है- बांदलों की ओट से झांकता चांद सा- मन का मयूर भी हर आहट पर नाचता- अधर भी कांपते न जाने क्यों मौन हैं- तू भी चुप, मैं भी चुप, आहिस्ता दिल मे फिर बोलता सा कौन है- न जाने क्यों छिन गया दिल का सुकून है- किसी की चाहत का कैसा ये जूनून है- दिल की दिल से कैसी यह अनुरक्ति है- चाहत की धार भी रौके नहीं रूकती है- दिल के मिलन की अजीब सी ये रीति है- दिल तो अपना है पर दूसरे की प्रीति है- धड़कनें धड़कती, चलती जो श्वांस है- उनको भी किसी के आने की आस है- अपना भी अपने पर रहता कहां अधिकार है- शायद यही कहलाता शास्वत् प्यार है- बारिश की बूंदे ह...
प्रीत में डूबी
कविता

प्रीत में डूबी

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** नटनी नटखट आज बनी, बंजारन रूप । राह चलते तकती, उसी गुलाब का फूल ।। जीवन पथ में मिलता, सदा सदा यह हुक । रातों में रचती सपने, प्रेम यह पहली भूख ।। मन मंदिर में यह पूजा प्रीत लगाई आज । कल्पना में बह कर, भूल गई राह काज ।। बात बातों से ही रातें, करती रंगीन भोर । इन यादों के राह में रोड़े पढ़ता बैठा मोर ।। उड़ान भरी मन ने, जा पहुंचा बाजार । प्रीत में डूबी बंजारन, खरीदे गले हार ।। राधा जैसा रूप उसका, मन की लाग । गाती चिड़िया देखो, उसी वन में राग ।। जान है पहचान की, यह मन डोले मीत । देकर पुष्प आया हूं, उसी तीर नदी नीर ।। चला हूं उस पथ पर चले ना राग विचार । बंजारन को सांसों की सौप दी पतवार ।। मिलना - मिलाना चाहिए जीवन की धार । कर्म करुणा के काज में उल्टा गर्ग अपार ।। परिचय :-  भारमल गर...
फिर से
कविता

फिर से

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुमको जीवन की मर्यादा के लिए उठना होगा। तुमको मानवता की उदारता के लिए फिर से उस ईश्वर के आगे झुकना होगा। तुम्हें असत्य को हराने के लिए फिर से सत्य से जुड़ना होगा। तुमको मानवता की रक्षा के लिए फिर से हार कर भी जीतना होगा। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ...
भारत माता
कविता

भारत माता

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** राम की स्वर्ग भूमि है, महाभारत की युद्ध भूमि है वीरों की जन्मभूमि है, संतों की यज्ञ भूमि है देवों की पूज्य भूमि है, भरत की मातृभूमि है प्रकृति के सौंदर्य भूमि है, वायु की प्रवाह भूमि है सूर्य की प्रकाश भूमि है, मनुष्यों की दात्री भूमि है गुरुवों की ज्ञान भूमि है, शिष्यों की भक्ति भूमि है महिलाओं की कर्मभूमि है, पशुओं की संचरण भूमि है नदियों के उद्गम भूमि है, हिमालय की दृढ़ भूमि है परिचय :-  भुवनेश नौडियाल पिता : स्व. श्री जवाहर नौडियाल माता : मधु देवी निवासी : पालसैण, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
हिंदी मेरी भाषा
कविता

हिंदी मेरी भाषा

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** प्यारी - प्यारी सबसे न्यारी मेरी भाषा । हिंदी पर बिन्दी हिंदी प्यारी मेरी भाषा ।। देश - विदेशों मे है जिसका गुणगान । सब से अच्छी सबसे प्यारी मेरी भाषा ।। ज्ञान - विज्ञान का अखूट भण्डार है ये । इसलिए सब जन-जन पढते मेरी भाषा ।। हिंदी पढेगा गर भारत का बच्चा - बच्चा। सम्प्रेषण में भी उपयोगी होगी मेरी भाषा ।। खेल - सिनेमा जगत ने जिसको अपनाया । एकता का पाठ हमें पढ़ाने वाली मेरी भाषा ।। सब भाषाओं के संग जिसने मेल बिठाया । भाषायी-ज्ञान जन-जन तक लाई मेरी भाषा ।। राष्ट्र-भाषा का मान-सम्मान जिसको मिला । देव नागरी लिपि जिसकी वो वैज्ञानिक भाषा ।। सूफ़ी-संत - साहित्यकारों ने जिससे यश पाया । जाति, धर्म-पंथ सब के मुख शोभित मेरी भाषा ।। सविंधान ने जिस भाषा को गौरवान्वित किया । हिंदी दिवस के रुप में जिसे मनाते वो मेरी भाषा ।। ...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** कबो ना हिंसा करन कहय ना शोषण को भरन कहय जो अय सच्ची बातें वाही हरदम ओही करन कहय कदै ना झुठी बात बताई सच्चाई की राह ले जायी मानो खुद वो नईयां होयी जो पथिक को दरिया पार करायी उस गुरु को मैं याद किया करता हूं पग बंदन मैं करता हूं पग बंदन मैं करता है बिन शिक्षक मनु जीवन नाही लागत है वो पशु समानी जो चर चारा वन से आये पशु मनु मे फर्क ना आयी शिक्षा बिन जीवन अधुरायी जबै शिक्षक मनु जीवन आये तबै सबै मे समझ ओ आये कि होनो संतब मिठू वाणी कि होनो ढोंगी अनुनायी उस गुरु को मैं याद किया करता हूं पग बंदन मैं करता हूं पग बंदन मैं करता हूं परिचय :-  मनीष कुमार सिहारे पिता : श्री झग्गर सिंह निवासी : पटेली, जिला बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्व...
घर का भेदी लंका ढाए
कविता

घर का भेदी लंका ढाए

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** बहुत सुना था बहुत हो गया किंतु अब ना सहा जाए पहले भी सत्य था अब भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। धोखा देना परंपरा है तेरी फिर तुझ पर भरोसा कैसे किया जाए पहले भी सत्य था अब भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। कलंक है तू विश्वास पर फिर तुझसे क्यों मित्रता की जाए पहले भी सत्य था आज भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। विश्वासघाती की पहचान हो कैसे इस पर विचार विमर्श किया जाए पहले भी सत्य था आज भी सत्य है कि घर का भेदी लंका ढाए। परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
मेरा प्रेम
कविता

मेरा प्रेम

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिकने नहीं दूँगा कुछ। पर हम बेच देंगे सब। यही बात में सब को। हर समय कहता रहूँगा।। क्यों न बेचे हम अब। जब आन पड़ है संकट। क्यों ढूँढ़े हम समाधान। मिला है संपत्तियों का अभयदान।। जबतक रहेगी तब तक। उसे बेचते जायेंगें हम। अपना और अपनों का पेट। बिना परेशानी के भर देंगे।। बहुत नसीब लेकर आया हूँ। इसलिए इतनी संपदा मिली। भले बनाया हो औरों ने पर। भोगने का सुख मिला हमें।। पूत कपूत तो क्यों धन का संचय करना। और पूत सपूत तो क्यों धन का संचय करना। करना आता अगर प्रबंध तो नहीं होती कोई परेशानी। और कर लेते समस्याओं का अपने प्रबंधन से समाधान।। अल्ला दे खाने को तो क्यों जाए कमाने को। मिला है सब कुछ हमें बिना हाथ पाव चलायें। तो क्यों जोर दे दिल दिमाग और अपने हाथ पावों पर। इतना तो मिला है विरासत में कि हमारा समय निकल...
वक़्त और मैं’
कविता

वक़्त और मैं’

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज और कल में मेरा सब बीत गया जो कभी पीछे मुझसे था वो भी मुझसे जीत गया। हार का दंश मुझे अंदर से निचोड़ रहा था मेरे सपनों का महल फिर भी आगे खड़ा था। एक पल को सोचा हार मान लूँ पर जब गुज़रे रास्ते की दूरी देखी तो लगा कि ख़ुद में थोड़ी और जान डाल दूँ। फिर शुरू किया है मैंने सफ़र एक और बार इस बार मंज़िल ख़ुद कर रही है मेरा इंतज़ार। वक़्त के इम्तिहान भी क्या लाजवाब हैं तब वक़्त की कद्र न की हमने और आज वक़्त के साथ साथ मेरे पाँव हैं। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
हमारी पाठशाला
कविता

हमारी पाठशाला

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** स्कूल के वो दिन याद आते है हाफ पैंट पहनकर स्कूल जाना, सफेद शर्ट पर टाई लगाना छोटे बड़े गुरुजी कहकर बुलाना.. लघुशंका के लिए दोस्त साथ चल देना लंच टाइम का इन्तजार करना राष्ट्रीय शोक की छुट्टी की खुशी १५ अगस्त और २६ जनवरी के लड्डू.. होमवर्क न करके लाना फिर कॉपी गुमने का बहाना, सचमुच बहुत याद आते है दुबारा स्कूल मुझे जाना है.. ठंड में सोते रहना लेट होने पर पेट दर्द का बहाना, इंग्लिश ओर मैथ का वो डर आज के गम से बहुत कम था.. परीक्षा के पहले वाला डर रिजल्ट का इंतजार करना, अब सब मामूली लगता है दुनियादारी से स्कूल जाना अच्छा लगता है.. बारिश में भीगते हुए स्कूल जाना और आकर सर्दी हो जाना, आज के पीड़ा से कम था सचमुच स्कूल का टाइम मस्त था.. टूशन की वो मस्तिया स्कूल के बाहर खट्टा-मीठा चूर्ण खाना, आज के प...
हां, मैं शिक्षक हूं!
कविता

हां, मैं शिक्षक हूं!

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक एक ऐसा दीपक है, खुद अंधकार में रहता है। करता आलोकित पथ सबका, तिल - तिल करके खुद जलता है।। हो विकट परिस्थिति कितनी भी, मेहनत का पाठ पढ़ाते हैं। मन का विज्ञान समझकर ही शिक्षण में रुचि जगाते हैं।। होते हैं ज्ञान पिपासु स्वयं, संस्कारों का करते विकास। बच्चों के स्तर पर जाकर, सिखलाते हर संभव प्रयास।। अपनाते नवाचार शिक्षण, शिक्षा गुणवत्ता में सुधार। अगणित गतिविधियां अपनाकर, करते हैं शिक्षा का प्रसार।। कर सहन प्रहार कोराेना का, दायित्व निर्वहन में डटे रहे। ऑनलाइन पद्धति अपनाकर, निर्बाध शिक्षण करते रहे।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...