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कविता

दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर
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दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। निर्धन, पीड़ित, शोषित की आशा और विश्वास के लिए, असहाय ,मजबूर, निर्बल की सहायता और सहारे के लिए, हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। कुव्यवस्था, अन्याय, बेबसी के शिकार, जिन पर न घर है न काम, जो हर हाल में हैं बेहाल, उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए, हम दीप हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। अंधकार में प्रकाश के लिए, राष्ट्रोत्थान की कामना के लिए, जन-गण-मन कल्याण के लिए, हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। साम्प्रदायिक सौहार्द के मानवता की मंगलकामना के लिए, जो चले गए उनकी आत्मशांति के लिए, हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़...
भारत के भाग्य विधाता
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भारत के भाग्य विधाता

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** भारत के भाग्य विधाता, हे बापू तुम्हे नमन। दिला गये आजादी हमको, करके खूब जतन ।। भारत के भाग्य विधाता हे बापू तुम्हे नमन दो अक्टूबर का वह शुभ दिन, गांधी जी ने जन्म लिया। पोरबंदर गुजरात प्रांत में, मातृभूमि को मान दिया।। खुशियाँ छाई भारत भू पर, हर्षित धरा गगन भारत के भाग्य विधाता हे बापू तुम्हे नमन देश गुलामी की जंजीरों, में जकड़ा था सदियों से। क्रंदन करती भारत माता, नीर बहाती अंखियों से।। देख दशा भारत की तेरा, ब्यथित हुआ तन मन भारत के भाग्य विधाता हे बापू तुम्हे नमन सत्य अहिंसा को तुमने, अपना हथियार बनाकर। किये संगठित जन जन को, भारत की ब्यथा सुनाकर।। चिंगारी जल उठी क्रांति की, बनकर खूब अगन भारत के भाग्य विधाता हे बापू तुम्हे नमन सत्याग्रह की राह में चलना, हम सबको सिखलाया। एक लकड़ी की लाठी...
नाविक
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नाविक

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** हर और निहारे नाविक तट को, हर और भरा जल ही जल है। कौन दिशा ले चलूं मैं अविरल, कहां दिखेगा भूतल ये। देखे,परखे रवि किरणों को, किस ओर बढ रहा दिनकर है। जांख रहा, हिल्लोर कहां है? कहां सुपथ, सलर है? कहां स्वच्छन्द, हवा का झौंका, किस ओर, सब का हल है? हर और निहारे नाविक तट को, हर और भरा जल ही जल है। अशांत, व्यथित,संतप्त हृयद ये, रोम रोम में हलचल है। दूर दूर तक तनहा दिखता, हर भाव-भंगिमा दूभर है। किस ओर बढूं, किस ओर मुडू? उर में ही उथल पुथल है। हर और निहारे नाविक तट को, हर और भरा जल ही जल है। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
काश ऐसा फिर हो जाए
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काश ऐसा फिर हो जाए

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खेल के मैदान में धरती माँ को चूम जाएं और हम बच्चे बन फिर बहुत धूम मचाएं उम्र के इस पड़ाव से कच्ची उम्र में लौट जाएं समय की चकरी फिर उल्टी घूम जाए काश ऐसा फिर हो जाए ।।१।। नीला आकाश देखकर मैं खो जाऊँ टिमटिम करते तारों की गिनती लगाऊं चाँद में सूत कातती अम्मा को निहारूं समय की चकरी को फिर उल्टा घूमाऊं काश ऐसा मैं कुछ कर जाऊँ ।।२।। वो बाग में तितलियों के पीछे दौड़ना वो चोरी से पड़ोसियों के फल तोड़ना वो मिटटी की गुल्लक में पैसे जोड़ना समय की चकरी का मेरा उस ओर मोड़ना काश ऐसा फिर हो जाए ।।३।। माँ के आँचल को पकड़कर के चलना गिरना संभलना फिर उठकर के चलना माँ की थपकियाँ संग माँ का वो पलना समय की चकरी का काश फिर यूँ ढलना काश ऐसा फिर हो जाए।।४।। काश मैं फिर वैसे पलकें झपकांऊ बचपन के जैसे झूमूं और गाऊं जरा सी रूठूं औ...
बेटी की भावना
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बेटी की भावना

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** थोड़ा सा सच कह दूं क्या? ना लगे बुरा तो सच्ची बात कह दूं क्या? बेटा पाने का अरमान जगाए दिल मे आपने बेटा पाने की आश में बेटी पाए आपने क्यों दुनिया के सामने झूठी मुस्कान अपनाया दिल में बेटे की जगह बनाया बेटी आपने जब पाया ऐसा क्या है खुश हो जाते हो बेटा पाकर बेटी होने पर भी बेटा की आश लगाते हो क्यों दुनिया को बताते हो बेटी से हम खुश हैं बेटी आने के बाद भी जब बेटे की चाह रखते है सोच ही लेते हो जब पराई है पराए घर जाना है फिर क्यों अपनेपन के झूठे सपने दिखाते हो जब अपने घर के लिए बहू लाना चाहते हो। फिर क्यों बेटी को घर खिलाने में कतराते हो क्यो ऐसी रीत बनाई है जब समता का पाठ पढ़ाना है घर में ही बेटी पराई होती है, जग को तो यही बताना है फिर भी न जाने क्यों ये बेटी दिल की यू नाजुक होती है रह...
अकेले गुजरे पल
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अकेले गुजरे पल

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मैं आज भी अकेले नदी के किनारे पर तुम्हारे इंतजार में रोज रेत के महल बनाती हूं अपने उंगलियों से सहला कर आहिस्ता आहिस्ता तुम्हारे कमरे का बिस्तर बिछाती हूं मोटे मोटे कंकड़ो परे कर नर्म रेत का तकिया बनाती हूं और हवा के झोकों या नदी की तेज लहर आने से पहले उसमें स्वप्नों के नये नये दरख्त उगाती हूं मैं जानती हूं कि पल भर में यह सब बिखर जायेगा लेकिन मेरी जिन्दगी का वह एक पल तो कम से कम तुम्हारे अहसासों से भर कर छलक जायेगा तुम्हारी धड़कनों की आवाजें सुकून से सोने कहां देती हैं शरीर की वह गंध और तुम्हारे स्पर्श का स्पंदन और तुम्हारी परिछायी तुम्हारी गुजरी राह में आज भी दिखाई देती है सच कहूं यह अकेलेपन की वेदना हर जगह उदास निगाहों से तुम्हें देखना बालों में तुम्हारी उंगलियों की संवेदना अधरों का अधरों पर प...
रब होती हैं बेटियाँ
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रब होती हैं बेटियाँ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्मी, सरस्वती, सीता और दुर्गा हैं बेटियाँ रोको मत लोगों संसार में आने दो बेटियाँ माता-पिता परिवार की गर्व होती हैं बेटियाँ घर आंगन ही नही रब की रौनक होती हैं बेटियाँ नाजुक दिल, बड़ी मासूम होती हैं बेटियाँ खुशी से खुशियों में भी रो पड़ती हैं बेटियाँ पतझड़ में भी बसन्त जैसी होती हैं बेटियाँ रोम रोम रो पड़ती हैं जब दूर जाती हैं बेटियाँ तितली की तरह आकाश में उड़ती हैं बेटियाँ सुने मकान को भी मंदिर बनाती हैं बेटियाँ जीवन के हर कष्ट में सम्बल देती हैं बेटियाँ साहस की प्रचण्ड प्रतिरूप होती हैं बेटियाँ सरस्वती बन खूब पढ़ती लिखती हैं बेटियाँ दुर्गा बनकर साहस शक्ति देती है बेटियाँ लक्ष्मी बनकर वैभव प्रदान करती हैं बेटियाँ माता जैसी अंतरिक्ष में ध्वज लहराती बेटियाँ अठखेलियाँ करती मल्हार गाती हैं बेटियाँ ...
हाल ए दिल
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हाल ए दिल

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** मुझे मोहब्बत तुम्हीं से है बस। ये दिल धड़कता तेरे लिए है।। तू ही है बस एक सुकून दिल का। ये ज़िस्म सिसकता तेरे लिए है।। तुम्हीं से ख़ुशबू ग़ुलों में है बस। ये दिन निकलता तेरे लिए है।। तुम्हीं से रोशन बहार मुझमें। ये दिल धड़कता तेरे लिए है।। हुस्न से तेरे शफ़्फाफ़ है शब। ये चांद ढलता तेरे लिए है।। तुम्हीं जुनूं हो बस मेरे रहबर। ये मन महक़ता तेरे लिए है।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...
जीवन के महासागर में
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जीवन के महासागर में

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन के महासागर में, संघर्षों की नित लहरे, जो डरे महज थपेड़ो से, वे न कभी उतरे गहरे.... जिन्हे अपने भुजबल पर सदा अटूट रहा विस्वास, सुख मोतियों की आस में, करते गए जो नित प्रयास, जीवन के परमानंद को, सदा उन्होंने ही चखा, कंटको के भय से जो न कभी पथ पर ठहरे.... जो डरे महज थपेड़ो से, वे न कभी उतरे गहरे.... दुखो में ही होती निहित, सुखों की सच्ची आशा, मोती भी मिले उन्हें ही, रही जिन्हें सच्ची प्रत्याशा, जिन्होंने सदा ही भार सहा, वे ही हीरक बनकर दमके, मिली मंज़िल उन्हें ही सदा, तोड़े जिन्होंने हर पहरे, जो डरे महज थपेड़ो से, वे न कभी उतरे गहरे.... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
बस एक बात कहनी थी तुमसे
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बस एक बात कहनी थी तुमसे

पूजा त्रिवेदी रावल 'स्मित' अहमदाबाद (गुजरात) ******************** बस एक बात कहनी थी तुमसे कहती हूं। तेरे सारे लेक्चर बेमन मैं बस सहती हूं। कितनी शिक्षा दोगे अब कबसे गिनती हूं। कैसे समझाऊं किस तरह मैं झेलती हूं। तुझसे तो अच्छी है वह गणित की टीचर, पहाड़ा याद कर उनसे चोकलेट तो पाती हूं! और अंग्रेज़ बने बगैर ही अंग्रेजी सिख पटर पटर बोल अंग्रेजी अब इतराती हूं। और क्या हाल था मेरी भूगोल का सोच, अब अमेरिका लंदन से अलग भांप पाती हूं। इतिहास के पन्नों पर मैं भी चमकूगी कभी, सोचकर आज भी मैं खूब मुस्कुराती हूं। गुजराती और हिन्दी की सारी कहानियां सुन अब मैं भी कहानी लिख जाती हूं। बस एक तू ही है जो एक्जाम पहले लेती है, वरना तैयारी करके अच्छा प्रदर्शन कर जाती हूं। लाड़ली बनती थी हर टीचर की मैं और टीचर अब मैं रोज़ खुद की ही बन जाती हूं। पर नहीं बनना लाड़ली तेरी सुन...
भादव की अंधियारी रात
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भादव की अंधियारी रात

केदार प्रसाद चौहान "आरजू" गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** भादव की अंधियारी रात चल रहे थे थाम कर हाथ कुछ दिखाई नहीं दे रहा था बस करते जा रहे थे बात एक अजनबी की तरह चलते जा रहे थे साथ कहीं बिछड़ ना जाएं हम इसलिए थामैं रखा था हाथ बरसों पुरानी पहचान थी मगर लग रही थी पहली मुलाकात जरा संभल कर चलना के.पी. यह है दिल की"आरजू"की बात और हम भूल ही गए की यह है भादव की अंधियारी रात परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान  "आरजू"  निवासी : गुरान (सांवेर) इंदौर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
भाषा
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भाषा

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** सरल सहज अभिव्यक्ति, दिल को सदा लुभाती। बहुत कठिन शब्दोंकी, भाषा नहीं मन को भाती। साहित्य जगत की, हमको समझ न आती भाषा। माँ हिंदी दुनिया में छाए, जन-जन की है ये आशा। भूषण** दिनकर, महादेवी, अज्ञेय, पंत या निराला। मानस की चौपाई दोहे, हरि बच्चन की मधुशाला। चक्रधर की अद्भुत शैली, नीरज जी की थी हस्ती। गुरु सत्तन की कविताएं, कुमार विश्वास की मस्ती। है सम्रद्धि हमारी भाषा** नित नूतन भाव जगाती। वो बहुत अभागे होते, जो कहते हिंदी नहीं आती। बिजू यदि ज्ञान नहीं हो, व्याकरण निष्ठ भाषा का। ह्रदय खोल कर रखिये, प्यार प्रीति परिभाषा का। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभा...
मास्क बनाओ ढा़ल।
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मास्क बनाओ ढा़ल।

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** उड़ती हुई धूल कण से, छोटे कोरोना कण हैं। हैं सुगंध कण जैसे लेकिन, गंध हीनता गुण है।। गोल गोल आकृति पाई है, गोल गोल ही सिर हैं। धूल कणों के साथ तैरते, चलें कभी स्थिर हैं।। कोरोना मरीज के तन से, उड़ते बन गुब्बारे। मानव तन से भूख मिटाने, फिरते मारे मारे।। स्वांसों से कर मेल, नासिका से प्रवेश वे पाते। स्वांस नली से तैर वायरस, फैंफडों में बस जाते।। ऑक्सीजन को हटा, छेद में अपने पैर जमाते। पल-पल में अपने जैसे, लाखों वायरस उपजाते।। साहस का है काम यहां, अपना एकांत बनाना। प्रभु है मेरे साथ स्वयं को, बार-बार समझाना।। जाना आना मास्क लगा, मत पास किसी के जाना। समय बुरा है कुछ दिन तक, घर में भी मास्क लगाना।। कोरोना अदृश्य वायरस है, शत्रु वत आ जाए। ढाल मास्क की धारण करना, ये ही जान बचाए।। विश्व युद्ध यह लड़ना ह...
कितनी उदास सुबह है
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कितनी उदास सुबह है

प्रेक्षा सक्सेना भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कितनी उदास सुबह है क्या इसी की प्रतीक्षा में काटी थो वो स्याह रात नहीं देखा कोई स्वप्न क्या इसी यथार्थ के भोग हेतु? पूर्ण नहीं होते कुछ स्वप्न दुराग्रह होती हैं कुछ आकांक्षाएँ अभेद्य होता है मोह का चक्रव्यूह प्रतिक्षण अटल होता निर्मम सत्य क्यों फिर अपने निकृष्टतम रूप में भी जीवन होता है मृत्यु से श्रेष्ठ? नयनों की कोर पर बनाकर बाँध समुद्र को सीमित करने के प्रयास किंतु दुस्साहसी लहरों का कोलाहल हृदय की गहराईयों तक गूँजता है क्यों रुदन पीड़ा की अभिव्यक्ति है जब रुदन से ही होता है जीवन प्रारंभ ? अनकहे शब्दों के अनुभूत स्पंदन और हृदय पर लिखा शिलालेख सा प्रेम जीवित हैं समर्पण की पराकाष्ठा पर स्वार्थ नहीं सींच पाता कभी शुद्ध प्रेम क्यों सदैव होना है अभिव्यक्त स्पर्श से जबकि सीप में छुपा अनछुआ मोती है प्रेम? ...
व्यथा
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व्यथा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम में मिले आँसू, नहीं होते अभिशाप! जब बहते हैं किसी प्रेमिका की आँख से तो उस बहाव में, अठखेलियाँ करती हैं, मधुर स्मृतियाँ.... जिनमें होते है प्रेम में बीते वे अनगिनत क्षण वो हाथों का स्पर्श!!!! जिनमें था साथ निभाने का वचन! वो माथे पर अंकित चुम्बन,... जो द्योतक था आत्मा के स्पर्श का वो विरह के क्षण,..... जिनमें था सदैव राह तकने का समर्पण प्रेम में मिले आँसू "सौगात" है उम्र भर की प्रतीक्षा की!!! ये प्रतीक्षा है, सच्चे प्रेम में पगे व्यथित हृदय की जो सदियों से करती आई है, एक स्त्री प्रेमिका के रूप में.... ओर पाती आयी है "सौगात" सदा के लिए प्रतीक्षा की.... परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समा...
श्राद्ध दिवस
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श्राद्ध दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! फिर इस बार भी श्राद्ध दिवस की दिखावटी ही सही औपचारिकता निभाते हैं, सामाजिक प्राणी होने का कर्तव्य निभाते हैं। जीते जी जिन पूर्वजों को कभी सम्मान तक नहीं दिया बेटा, नाती, पोता होने का आभास तक महसूस न किया, अपने पद प्रतिष्ठा और सम्मान की खातिर, बिना माँ बाप के खुद के अनाथ होन का प्रचार तक कर दिया। जिनकी मौत पर मैं नहीं रोया उनकी लाश तक को अपने कँधों पर नहीं ढोया, क्रिया कर्म को भी ढकोसला और फिजूलखर्ची के सिवा कुछ भी नहीं समझा। पर आज जाने क्यों मन बड़ा उदास है, एक अजीब सी बेचैनी है जैसे पुरखों की आत्मा धिक्कार रही है, लगता है श्राद्ध का भोजन माँग रही है। आखिर श्राद्ध का भोज मैं किस-किस को और क्यों कराऊँ? जब औपचारिकता ही निभानी है तो भूखे असहायों को खिलाऊँ मेरे मन का बो...
रुकना तेरा काम नहीं
कविता

रुकना तेरा काम नहीं

सविता वर्मा "ग़जल" मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) ******************** रुके ना तू, झुके ना तू रुकना तेरा काम नहीं हाँ,झुकना तेरा काम नहीं तू धरा बन, धैर्य धीरज ह्रदय बीच समाहित कर। तू हवा बन बहती जा रुकना तेरा काम नहीं अडिग हिमालय सी, दृढ़ निश्चयी बन हर मुश्किल के आगे, शीश उठाकर खड़ी रहे तू नदियां सी बहती जा रुकना तेरा काम नहीं कठिन परीक्षा की घड़ी में न किंचित तू घबरा जाना वक्त पड़े तो मनु बन दुश्मन से टकरा जाना तू समय की धारा बन रुकना तेरा काम नही।। परिचय :- सविता वर्मा "ग़जल" निवासी : मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) जन्म : १ जुलाई पति : श्री कृष्ण गोपाल वर्मा जन्म-स्थान : कस्बा छपार जनपद मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) संस्थापक अध्यक्ष : शब्द संसार साहित्यिक मंच, मुज़फ्फरनगर" प्रकाशित पुस्तक : "पीड़ा अंतर्मन की" काव्य संग्रह २०१२, "एक थी महुआ" कहानी संग्...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नारी जन्मते ही देने लगती है इम्तिहान, जिसे देने में उसे लग जाती पूरी जिन्दगी, जिसमें वह कभी भी पास नहीं होती, उसकी कॉपी भरी रहती है लाल-लाल निशानों से, जो उसके जिस्म को, दिल को करते रहते हैं लहुलुहान पिता, पति, फिर बेटा और समाज बारी-बारी से बनते रहते परीक्षक, कड़े पहरे में लेते रहते हैं इम्तिहान परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
गुरु शिष्य
कविता

गुरु शिष्य

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गुरु शिष्य का रिश्ता है प्रेम भाव से निभता है, गुरु ज्ञान रत्नों का भंडार है देकर शिष्य को, दिलवाता समाज में प्रतिष्ठा मान-सम्मान है। शिष्य गुरु चरणों में जब झुकता है, तभी तो उसको ज्ञान अमृत फल मिलता है। आओ, गुरुओं का मान करें मिलकर दिल से उनका सम्मान करें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
हवा से एक मुलाकात
कविता

हवा से एक मुलाकात

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** हवा से एक मुलाकात हुई, उसने अपनी व्यथा सुनाई। जो बहता था मंद सुगंध, कहते हैं हवा में वायरस समाई।। मुझसे जीवन मुझमें आश, कौन बुझाएगा मेरी प्यास। वृक्ष कटी हुआ प्रदूषित, वायुमंडल हुई अव्यवस्थित।। धरा प्रकृति हो रही धराशाई, भूतल पर ये विपदा आई। कैसे हो रही राम तेरी गंगा मैली, जल संरक्षण की मैली मैली।। चारों ओर आवाजों की शोर, डी जे जैसे हृदय झंकृत शोर। ध्वनि प्रदुषित का है आलम, मेरी ब्यथा कैसे होगा अंतिम।। हवा की बातें सुन हुआ सशंकित, राम तेरे राज में कैसे खिलेंगे पुष्पित। चारों ओर न कोलाहाल होंगा, प्रेम,अमन,शांति का आलम होंगा। वृक्ष लगाएंगे होगी वर्षा, सुख के बादल बरसेंगे। प्रकृति की श्रृंगार होगी, फिर जीवन हर्षित होंगे।। हरे भरे होंगे वन उपवन, प्रसन्न रहेगा मानव मन। मनु प्रगति के नई सोपान, श...
स्कूल का ताला
कविता

स्कूल का ताला

प्रीति धामा दिल्ली ******************** आज स्कूल से गुजरते वक़्त ताले ने आवाज़ लगाई,सुनों! मैं भी ठिठक कर रुक गई। कहने लगा कहो कब तक मुझें यहां से आज़ाद करवाओगे? कब से फिर बच्चों की चहलक़दमी से स्कूल सज़वाओगे। बड़ा दुःखी मेरा स्कूल पड़ा है, अब ये व्यथा कही नहीं जाती। रोते-बिलखते दोस्तों की पीड़ा सही नहीं जाती। आश्चर्य से देखकर मैं बोली दोस्त? कौन से भई? मेरा दोस्त "ग्राउंड" उसका वो सूनापन मुझसे देखा नहीं जाता, क्यों कोई बच्चा उसपे अब खेलने नहीं आता मेरा दोस्त "ढ़ोल" कब से मौन बैठा है कब से न कोई मीठी तान बजी, न बच्चों की प्रार्थनाओं की लाइनें ही सजी। मेरा दोस्त डेस्क न जाने क्यों उदास है, कह रहा था नींद आने पर बच्चा संजू कब मुझ पे फ़िर सिर टेक कर सोयेगा? "टंकी" का तो हाल बुरा है, रोते-रोते मंजू को याद बहुत वो करती है, टीचर की डांट डपट सुन वो यहाँ जब मुँह ध...
हिंदी
कविता

हिंदी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** स्वर व्यंजन की वर्णमाला जिसने शब्दों का शिखर है ढ़ाला शब्दानुशासन का व्याकरण से है नम्रता भरा आचरण रस, छंद और अलंकार से सजा साहित्य का सर्वोत्तम श्रृंगार हृदय में समेटे विशाल शब्दकोष मुहावरे और लोकोक्तियाँ जगा दे जोश साहित्य की जान सभ्यता की शान और राष्ट्र की पहचान "हिंदी" से सुशोभित हिंदुस्तान परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
तीक्ष्ण प्रखर दिनकर
कविता

तीक्ष्ण प्रखर दिनकर

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिमरिया के सरोवर में... प्रस्फुटित एक अद्भुत कमल! सौम्य तेजस्वी दिनकर!! मार्तंड सा था भास्वर! काव्य के दिव्य गगन में... दिनकर की वाणी प्रखर!! आजीवन गाते रहे मानवीय चेतना के उन्नायक: गायन अमर! कभी सिंधु गर्जन को ही दे दी चुनौती और बने युगधर्म के विकट हुंकार! रस में डुबो रसवंती रचा काव्य सरस सुंदर! उर्वशी का अद्भुत श्रृंगार!! आमजन के न्याय के हित रहे ललकारते ही सदा हारे न कोई जीवन समर। विद्रोह ओज के कवि तुम रश्मिरथी कुरुक्षेत्र में भर उठे प्रचंड हुंकार! पद्य के साथ गद्य में भी लिख डाले अध्याय चार! भारत संस्कृति के सुंदर!! राष्ट्रीय चेतना जाग्रत... कर जन-गण के अंतस में... बने राष्ट्रकवि दिनकर! रवि सम तेजोदीप्त छवि ! राग के संग आग का कवि !! विमल यश फैला संसार !!! ...
वो कुमकुम वाले पैर
कविता

वो कुमकुम वाले पैर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो कुमकुम वाले पैर, कलश गिरा कर जब आँगन में आते हैं न जाने कितनों के जीवन में वो ख़ुशियाँ ले आते हैं मेहंदी वाले हाथ जब बड़ों के पग लग जाते हैं न जाने कितनों के मन को वो हर्षित कर जाते हैं लालायित मन होता उसका भी अब ये घर मेरा होगा मायके रात आख़िरी बिता के आयी पिया के घर नया सवेरा होगा डोली में सज के आयी हूँ अर्थी में तुम ले जाना फ़र्ज़ करूँगी अपना पूरा बस तुम सच्चे साथी बन जाना। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
गांव की मिट्टी
कविता

गांव की मिट्टी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** गांव की मिट्टी पावन चंदन लगती है। लहलहाती फसलें शत्-शत् वंदन करती है। पीपल की शीतल छांव तले, झीने घूंघट में पनिहारी स्वागत करती है। रुनझुन घुंघरू बजते पग बैलों की जोड़ी, नाचे मोर पपिया कोयल गीत सुनाती है। खेतों में निपजे हीरे मोती, मीठी-मीठी खुशबू रोटी बाजरे की आती है। सूरजमुखी शर्मिली, नवयौवना सरसों, चंचल गैंहू की बाली झुक झुक नर्तन करती है। बालू के टीले नदी किनारे अन्नदाता की जननी, मेहनत कश गांव की मिट्टी अभिनंदन करती है। नन्हे गोपालक संग धेनु चलती खेतों में, कृषक बाला गुड्डियों का ब्याह रचाती है। घनीभूत भ्रमर का गुंजन खग कल्लोल करते, गांव की मिट्टी सब का आलिंगन कर लेती है। अनजान पथिक भी पाता यहां ठिकाना, ममता का सागर उमड़े प्रेम की गंगा बहती है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान...