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कविता

कौन हूं मैं
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कौन हूं मैं

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** प्रगटा जब यहां तो सारा, कायनात शून्य था। नेत्रों से दृश्य सब, मैं दृश्यों के तुल्य था।। नीकल जूंबा से चीख मेरे, कानो में धुन्न था। रंगीन कायनात भी, रंगों से अपुर्ण था।। मेरे पुर्व यहां सभी, नामों से भी बेनाम था। मै खड़ा था जहां, वो जगह भी अनजान था।। इस जग से वाकिफ क्या, मैं खुद से अनजान हूं।। मन मे ये सवाल है, की कौन हूं मैं कौन हूं। मन में ये सवाल है, की कौन हूं मैं कौन हूं। कण कण से बना मैं, ना आदि का संयोग हूं। हूं ना काव्य रस मैं, पर रस से परिपूर्ण हूं।। मुझी से ये जमाना है, जमाने से मैं ना हूं। मन में ये सवाल है, की कौन हूं मैं कौन हूं। कर्म मार -काट का, तो मैं एक क्षत्रिय हूं। वो ही ज्ञान बांट का, तो मैं एक ज्ञानिय हूं।। कर्मों से जानू मैं , ऐसा ना कर्मजान हूं। मुझी से सब बने यहां, मैं...
स्वयं दीप बनकर
कविता

स्वयं दीप बनकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जब तक ये अंधेरे, चाल चलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। कोने-कोने में सत्ता को षड्यंत्र फैले, हो गए, अपने मस्तिष्क के मंत्र मैले, तम मिटाने को सपने तो पलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। सदां की तरह आँधियाँ आएं तो क्या, ज्योति, कभी डगमगा जाएं तो क्या। हम जलते रहेंगे, और संभलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। हमने दादा से सुनी है, पुरानी कहानी। निश्चित ही, एक दिन तो है भोर आनी। हम तब तक तेल-बाती बदलते रहेंगे। हम स्वयं दीपक बनकर, जलते रहेंगे। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके ...
प्यारा भैया
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प्यारा भैया

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** भाई दूज त्योहार है पावन। भाई मेरा बड़ मनभावन।। प्यारा भैया राज दुलारा। सब की आँखो का है तारा।। भैया है लाखों में एक। भाई दूज की रीती नेक।। है अनमोल रत्न ये प्यारा। लगे प्रेम से रिश्ता न्यारा।। भाई दूज की पावन वेला। कभी रहे ना कोई अकेला।। भाई बहन से रौनक जग है। त्योहारों का चमक अलग है।। भाई दूज पावन त्योहार। घर घर हो सुख की बौछार।। भैया की ले रही बलैया। सदा रहे खुश प्यारा भैया।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
ग़ुलाब
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ग़ुलाब

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** पत्ती-पत्ती, पंखुड़ि-पंखुड़ि, ख़ुद में एक कहानी गढ़ते। भोर सुहाना, दिन मस्ताना रंग निराले ख़ुद में भरते। तोड़े बिना डाल से इनको, ध्यान मग्न हो देखा करिये। टूट रूठकर गिरें जमीं पे, अंजुरि भर, मत फेंका करिये। प्रीति ग़ुलाबों सी होती है, महक़ परिंदे सम उड़ती है। सूख जाएं तरु के प्रसून, ख़ुशबू कभी न कम होती है। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं। सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप ...
प्रकाश पर्व
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प्रकाश पर्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** झिलमिल-झिलमिल प्रकाश पर्व पर जन-जन को है बधाई शुभकामना मेरी पहुंचे घर आंगन अमराई शुभ संकेत स्वस्तिक निकले हर घर के आंगन में शुभ लाभ का जोड़ा रचे हर घर की दीवारों में यही कामना मेरी हरदम आंगन चंदन रोली नववधू दीप थाल सजाए मंगल दीप ज्योति से भर जाए बहू बेटी बहना सजे सजे घर सारा और सजे मिताई रुनझुन-रुनझुन बाजे पैजनिया और बजे शहनाई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती...
भू पर दीप जले हैं
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भू पर दीप जले हैं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कुम्भकार के हाथों में ही, जन्मे और पले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। देह भूमि की मिटटी की है, चक्के पर चढ़ आए। कुम्भकार ने इन दीपों के, शुभ आकार बनाए। तेज ताप में काया तापी, तप कर ठोस ढले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। दीप आज आलोकित अगणित, किरणें भाग रहीं हैं। आज रात में सकल दिशाएँ, तम को त्याग रही हैं। देख रश्मियों को अँधियारे, बैठे दीप तले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। जब प्रकाश करते हैं दीपक, होता है मन पुलकित। कीट-पतंगे हों या मानव, होते हैं सब हर्षित। रात में सभी की आँखों को, लगते नित्य भले हैं। स्नेह और बाती को पाकर, भू पर दीप जले हैं। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू...
शर्मीला चाँद
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शर्मीला चाँद

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** मेरा चांद बहुत शर्मीला है, चांद रातों को भी दीदार नहीं होते। जो आ जाता तू एक बार आसमां में, हर शब हम यूं बीमार नहीं होते।। तेरे इश्क की चांदनी में डूबे हैं, अंधियारी रात के शिकार नहीं होते। लुका छिपी तेरी आदत बन गई है, तेरे इस खेल के हिस्सेदार नहीं होते।। अदाओं से करता है वार मुझ पर, पास मेरे हथियार नहीं होते। लिपटना चाहता है जब वो हमसे, उस वक्त मग़र हम तैयार नहीं होते। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
आओ मिलकर दीप जलाएँ
कविता

आओ मिलकर दीप जलाएँ

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएं, सबके जीवन में खुशियॉं लाएँ आओ मिलकर दीप जलाएँ। हर घर आँगन चौवारों पे, मन मन्दिर और शिवालयों में, यह रात अमावस्या की धोखा खा जाए, आओ मिलकर दीप जलाएं। किसी झोपड़ी, किसी गली और चौराहे पे, कहीं अंधेरा रह न जाए आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। नहीं जलाएँगे आतिशबाजी, नहीं जलाएँगे बम धमाके, प्रण ऐसा जन-जन में कर जाएँ, जीवन को न नरक बनाएँ, वातावरण शुद्ध बनाएंँ आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। अध्यात्म, विज्ञान का लाभ उठाकर, घर आँगन लक्ष्मी बुलाकर, पर्यावरण का दीप जलाकर, राष्ट्र प्रेम का दीप जलाकर, आओ प्रदूषण राहित दिवाली मनाएँ , सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओमिलकर दीप ज...
आजमाइश
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आजमाइश

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रास्ते में कांटे बहुत है चलो थोड़ी सी साफ सफाई की जाए। बहुत हो चुकी है मोहब्बत चलो थोड़ी सी नफरत कर, सब की ज़रा आजमाइश की जाए। रास्ते में कहने को अपने बहुत है, चलो किसी अजनबी पत्थर से टकराकर, अपनों के बीच खड़े परायो की ज़रा आजमाइश की जाए। रास्ते में दिखने को आज कल मोहब्बत बहुत है चलो किसी एक शख्स से प्यार कर इश्क की आजमाइश की जाए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
जिंदगी को महकाना
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जिंदगी को महकाना

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** त्योहारों के दिन आते ही गरीब की मुश्किलें बढ़ती जाती है अच्छे कपड़े, अच्छे भोजन नाना प्रकार के सामग्रियों की जरूरत गरीब की कमर तोड़ देती है अभावग्रस्त जीवन चूल्हे की बुझी राख भूख और बेचारगी से बिलखते बच्चे हताशा और निराशा के अंधेरे में तड़फता बिलबिलाता जीवन गरीब का मन कचोटता है उस गरीब का देखकर अपने बच्चों की हालत दूसरी तरफ विलासितापूर्ण जीवन सांस्कृतिक परम्परा आधुनिकता की बलि चढ़ रही मंहगे-महंगे तोहफ़ों का लेन देन का झूठा दिखावा आरम्भ हो जाता ये महंगे तोहफे कभी भी रिश्तों को मजबूत नही बनाते हैं रिश्ते अपने रिश्तेदारों से अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करता हुआ दिखता है रूपयों में इतनी ताकत सच्ची होती रिश्तों की सच्चाई कुछ और ही होती भावना और भावनाओं को समझने क्षमता नहीं वरना अपने व गैरों की ...
कुछ तो बोलो न
कविता

कुछ तो बोलो न

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कब तक मन ही मन घुटते रहोगे तन्हाइयों में यूं ही जीते रहोगे देखा नहीं जाता तुम्हारी खामोशी को ग़म हो या खुशी अपनों से बांटा करते हैं कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो ना अगर किसी ने दिल तोड़ा है तुम्हारा खता तुम्हारी भी तो कहीं रही होगी वो तुम्हारे लिए नहीं जो पास नहीं समझो न लेकिन यूं खुद से खुद की दूरी बनाओ न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न ग़म बांटकर तो देखो अश्कों में बहा दो न बुरा ख्वाब समझ जीवन में बढ़ चलो न कब तक खुद से खुद को सजा दोगे मन ही मन घुटते रहोगे थोड़ा बाहर निकलो न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न जिंदगी खूबसूरत है बहती नदिया सी उसको बहने दो जिन्दगी को यूं ठहराओ न होंठों पर मुस्कान बिखेरते आगे को बढ़ जाओ न एक पड़ाव पार कर अब आगे बढ़ मंजिल पा लो कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न परिचय ...
दीपावली यह मंगलमय हो
कविता

दीपावली यह मंगलमय हो

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** बृहस्पतिवार के स्वभाव से, चित्रा- नक्षत्र अति उर्जामय हो | सुंदरतम् प्रीति-योग से, दीपावली यह मंगलमय हो | | चंद्राऽर्क स्थित तुला राशि में, भोम-बुध भी तुलामय है हो | मंद-वृहस्पति मकर में तो, दीपावली यह मंगलमय हो || वृष में राहु वृश्चिक में केतु, धनु राशि आज शुक्रमय हो | ऐसे शुभग्रह पंचांग योग में, दीपावली यह मंगलमय हो || शुभ-लक्ष्मी सुलक्ष्मी आए गृह में, शारदाऽनुकंपा से जग सुज्ञानमय हो | हो शिव शक्ति की कृपा कुटुंब में, दीपावली यह मंगलमय हो || करुँ मैं "सुरेश " शिव लधून वंदन, परिवार शुभचिंतकों का शुभमय हो | सदा ऽनुकंपा शिव शक्ति की मिले, दीपावली यह मंगलमय हो || मायाशांति की लालसा मन में, हर्षिता हृदया शिवानी शिवम्मय हो | कहे "सुरेश" हिमराज सुता से, दीपावली सबकी मंगलमय हो || दीपावली सबकी यह मंगलमय हो, दी...
गुमसुम बैठ न जाना साथी !
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गुमसुम बैठ न जाना साथी !

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** गुमसुम बैठ न जाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी ! !! सघन कालिमा जाल बिछाए, द्वार देहरी नज़र न आए, घर की राह दिखाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! घर औ' बाहर लीप-पोतकर, कोने-आंतर झाड़-झूड़कर, मन का मैल छुड़ाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! एक हमारा, एक तुम्हारा, दीप जले, चमके चौबारा, मिल-जुल पर्व मनाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! आ सकता है कोई झोंका, क्योंकि हवा को किसने रोका ? दोनों हाथ लगाना साथी ! दीपक एक जलाना साथी !! परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
आओ प्यार का दीप जलाए
कविता

आओ प्यार का दीप जलाए

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** आओ प्यार का दीप जलाए हर चेहरो पर मुस्कान लाए ** निर्धन हो या अमीर तुम यारो हर दुखियों के साथी बनजाएं ** विश्व में नया सवेरा लाकर हम घर घर का गुलशन महकाएं ** रावन बन बैठै आज भी लोग दीपक बन कर राह दिखाए ** राग द्वेष भूला कर आपसी खुशियो का हम दीप जलाएं ** रह जाए गर कही अंधेरा यारो हम उनके घर भी चल आए ** भूखे नंगे सो रहे मोहनआज उन घरो का अंधेरा दूर भगाएं ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
अब की आई ऐसी दिवाली
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अब की आई ऐसी दिवाली

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब की आई ऐसी दिवाली कुछ आंसू कुछ दीपों वाली, जग सारा जगमग जगमग है रोशन हर इक गली डगर है, देश नगर भर कर उमंग में नए चरम को छूता है, अंधकार और तम विनाश को लड़ियां झूमर झालर लाए सजी रंगोली बंदनवार सजाए हमने, पूजन-पाठ आरती मंगल दीप धूप महकाया सबने, नए-नए रंग रूप संवारे सज धज लगते सभी प्यारे खीर-पूरी पकवान पकाए सब लोगों ने मौज उड़ाए, द्वार खड़े हम कुछ यूं खोए सब आए हैं, सब आयेंगे, बस मेरे पापा ना आए, फ़ोन कॉल के लिए तरसते रह गए मेरे कान, मेरे प्यारे बाबूजी की हैप्पी दिवाली सुन पाने को, अबकी आई कुछ ऐसी दिवाली, कुछ आंसू कुछ दीपों वाली।। परिचय :- सरिता चौरसिया पिता : श्री पारसनाथ चौरसिया शिक्षा : एम. ए. हिंदी (बी.एड.) जन्म स्थान : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
वीरांगना झलकारी बाई
कविता

वीरांगना झलकारी बाई

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** २२ नवम्बर २०२१ को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की सेनानी वीरांगना झलकारी बाई की १९१ वीं जयन्ती पर। झाँसी की रानी के समान, झाँसी की एक निशानी है। है सदा शौर्य की प्यास जहाँ, पिघले लोहे सा पानी है।। बचपन से लेकर मरने तक, मरती ही नहीं जवानी है। वीरता लहू में बहती है, घर घर की यही कहानी है।। बुन्देले तो बुन्देले हैं, जिनकी गाथा अलबेली है। उस पर गर्वित बुन्देलखण्ड, हर कौम यहाँ बुन्देली है।। मैं कथा सुनाऊँ यहाँ एक, योद्धा झलकारी बाई थी। जो मर्द न थी पर मर्दों के, भी कान काटने आई थी।। वह वीर व्रता अपनी रानी, झाँसी के लिए समर्पित थी। लक्ष्मीबाई की सेना में, दुर्गा दल की सेनापति थी।। हूबहू लक्ष्मी बाई सी, वीरता भवानी जैसी थी। वय में भी लगभग थी समान, सूरत भी रानी जैसी थी।। तलवार पकड़ते ही कर में...
आओ दीपक बन दीप जलाऍ
कविता

आओ दीपक बन दीप जलाऍ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आओ दीपक बन दीप जलाऍ, अंतर्मन की ज्योति दमकाऍ। ईर्ष्या,द्वेष त्याग करके हम, प्रेम-भाव की किरणें बिखराऍ। माटी की काया का क्या गुमान? किस बात की तूझे अभिमान? जिंदगी रहते बंदगी कर लें, आज ही गंदगी को दूर भगाऍ। राम के आदर्शों को अपनाऍ, सीता माई से सतीत्व पाऍ। लक्ष्मण जी से लक्ष्य निभाऍ, भाईचारे की ज्योति जगमगाऍ।। परिवार में रहकर प्यार बांट लें, नवल दीपक बन प्रकाश फैला दें। हर ग्राम अयोध्या नगरी बन जाऍं, हर दिन हर पल रोशनी बिखराऍ।। नशा दुर्व्यसन से मुक्त करा दें, नवल ऊर्जा नव उमंग भर दें। नव किरणें नई तरंगें लहराऍ, नये आयामों से पर्व मनाऍ।। बेटी रूप ही असली लक्ष्मी है, संस्कारों के दीप जला दें। शक्ति-भक्ति का पाठ पढ़ा दें, सारे कष्टों को दूर भगा दें। व्याप्त बुराईयों को दूर भगाऍ, नवाच...
दीपावली
कविता

दीपावली

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** वसुधा पर छाई दिव्य धारा दीपों की सुधा निधि द्वारा दीपावली पर्व है निराला चमके सबके भाग्य का तारा काली अंधयारी रात में आलोकित जग को कर डाला अज्ञानता का तिमिर मिटाकर दीपावली त्यौहार है आया देश सनातन संस्कारों का इंतजार करें अपने प्रभु का मनाएँ त्यौहार श्री राम का स्वागत अयोध्या धाम का दीपों का यह पर्व दिवाली सुखद और है आशावादी रहे सभी घर में उजियारा अँधियारा हो लोपित सारा खील पताशें हम सब बाँटे भाईचारा सीख बैर को छाँटें मानवता के बंधन बाँधकर दीपों का त्यौहार मनाएँ धरा प्रकाशित हो अविरल आओ मिल दीपमालिका सजाएँ परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर "निधि" निवासी : बडौदा (गुजरात) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
संसार
कविता

संसार

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** क्या खूब बनाया ईश्वर ने संसार। यहाँ करते हम सबसे प्यार।। होकर एक सभी को रहना। नही पराया किसी को कहना।। ईश्वर की रचना है प्यारी। रीति यही सबसे है न्यारी।। हैं सब प्राणी हमको प्यारे। श्रेष्ठ कर्म हो सदा हमारे।। इस संसार में मिल कर रहना। सुख दुख सबको संग में सहना।। आये इस संसार में हम हैं। प्रभु कृपा से कुछ ना गम है।। प्रभु की रचना है यह सुंदर। इस सम और नही कोई दूसर।। इस पर जीना इस पर मरना। उत्तम कर्म हमे है करना।। पाया है संसार में सब कुछ। नही चाहिए और हमे कुछ।। स्वच्छ रहे संसार हमारा। हम सब में हो भाई चारा।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्प...
इस बार दिवाली पर
कविता

इस बार दिवाली पर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** इस बार दिवाली पर पटाखे नहीं चलाएंगे। इस बार दिवाली पर पूरे देश को वैक्सीन से, कोरोना मुक्त बनाएंगे। इस बार दिवाली पर कोरोना से कमजोर हुई अर्थव्यवस्था को, मजबूती से फिर से आगे हम बढ़ाएंगे। इस बार दिवाली पर चाइना का सामान नहीं घर लाएंगे। शिक्षा के दीपक घर-घर जलाएंगे। इस बार दिवाली पर अंधविश्वासों की पकड़ से मानव को बचाएंगे। इस बार दिवाली पर स्वर्णित भारत के सपनें को, पटाखों से नहीं हरित दिवाली से सजाएंगे। इस बार दिवाली पे, आत्मनिर्भर जन जन को बनायेंगें। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
धनतेरस आई
कविता

धनतेरस आई

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कार्तिक मास कृष्ण पक्ष। तेरस तिथि धनतेरस आई। संग अपार खुशियां लाई। भारत भू-वासी धनतेरस। पर्व मना अति हर्षित हो गाई। चहुँओर आनंद,उमंग छाई। धनतेरस दिवस समुद्र मंथन। काल वेदध धनवंतरी अमृत। कलश भारतावासी पाई। आज सकल जन धन्वंतरी। देव पूजन अर्चन कर। निरोगी काया आशीर्वाद पाई। सबहि निरोगी काया। वरदान पा उर हर्ष भायी। सबहि जन धन्य-धन्य हो जाई। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
दीपावली का कर्ज
कविता

दीपावली का कर्ज

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कर्ज से परेशान मांगू ने सोचा अब दीपावली कैसे मनायेगा अच्छा तो यह है कि वह. गोली खाकर मर जायेगा। काम से लौटकर घर आया आते ही धनिया ने सारा किस्सा सुनाया क्या करता क्या कहता ऐसे दुख रोज ही सहता। फिर धनिया बोली चलो छोड़ो हाथ पांव धोलो बची खुची खिचड़ी आज बना ली है में और तुम बचे हैं बच्चों ने अपने-अपने हिस्से की खा ली है। दोनों ने मिलकर खाना खाया मांगू बोला में थोड़ा टहलकर आया टहलकर आया बीबी बच्चों को सोता पाया सोचा अच्छा है अब गोली खा लूंगा सारी मुसीबतों से एक साथ छुटकारा पा लूंगा। उसे क्या मालूम धनिया ने खिचड़ी नहीं खाई है परिवार के लिए पानी पीकर डकार लगाई है खाली पेट नींद नहीं आ रही थी खाट पर हाथ पांव हिला रही थी। मांगू ने मौका पाकर गोली खाने की हिम्मत जुटाई इतने में धनिया की आवाज आई सुनते हो रामू के ब...
ये बेटियाँ लावणी छंद
कविता

ये बेटियाँ लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** घर की रौनक होती बेटी, है उमंग अनुराग यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।। जब हँसती खुश होकर बेटी, आँगन महक उठे सारा। मन मृदङ्ग सा बज उठता है, रस की बहती है धारा।। त्योंहारों की चमक बेटियाँ, मन मन्दिर की ज्योति है। प्रेम दया ममता का गहना, यही बेटियाँ होती है।। महक गुलाबों सी बेटी है, कोयल की है कूक यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।। बसते हैं भगवान जहाँ खुद, उनके घर यह आती है। पालन पोषण सर्वोत्तम वह, जिनके हाथों पाती है।। पल में सारे दुख हर लेती, बेटी जादू की पुड़िया। दादा दादी के हिय को सुख, देती हरदम ये गुड़िया।। माँ शारद लक्ष्मी दुर्गा का, होती है सम्मान यही। बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही। मात पिता के दिल का टुकड़ा, धड़कन बेटी होती है। रो पड़ता है दिल अपना जब, द...
अब की बार ऐसी हो दिवाली
कविता

अब की बार ऐसी हो दिवाली

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** अबकी बार मनाओ ऐसी दिवाली। गाँव-शहर में हो जाए खुशहाली।। प्रदूषण से हो जाए गलियाँ खाली। सब मिल कर मनाओ ऐसी दिवाली।। लक्ष्मी जी की पूजा करने वालों। भ्रूण हत्या रोकें ऐसी हो दिवाली।। शोषण से मुक्त हो जाएगी हर नारी। रावणवृति हम त्यागें ऐसी हो दिवाली।। बुराई को रोकें नैतिकता से नातां जोड़ें। राम-राज्य हम लाएं ऐसी हो दिवाली।। जातिवाद-साम्प्रदायिकता की जड़ काटें। मानवता का पाठ पढाएं ऐसी हो दिवाली।। पाखण्डी-लोगों व आतंक का हो अंत करें। 'नाचीज़" प्रेम-भाव हो ऐसी मनावें दिवाली।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
आज कई कोस
कविता

आज कई कोस

राम कुंवर (दिल्ली) ******************** आज कई कोस लोगो को पैदल चलते देखा है दो वक्त की रोटी के लिए भूख से तङपते देखा है अमीरो को हवाई जहाज से वतन लौटते देखा है गरीबो को वतन मे दर-बदर भटकते देखा है। परिचय :-  राम कुंवर दिल्ली विश्वविद्यालय। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindi...