पतझड़ के बाद बसंत
जगदीशचंद्र बृद्धकोटी
जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
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हरे भरे वृक्षों की छाव में
वह कोयलों की बोलियां,
सुन खिल उठा आनंद से मन
मुग्ध होने है चला।
पतझड़ में मौसम टूटता सा
लगे सब कुछ छूटता सा,
वृक्ष की हर एक डाली
पतझड़ में हो जाती है खाली।
लेकिन बसंत बहार लाया
मौसम में पूरा प्यार लाया,
खिल उठे हैं प्रत्येक वृक्ष
कर रही कोयल आज नृत्य।
हो पुनः विकसित वृक्ष होकर
यह हमें बतला रहा है ,
क्यों भागता है मूर्ख प्राणी
अब बसंत तो आ रहा है ।
जीवन में आए अगर पतझड़
मार्ग ना छोड़ो कभी,
नित रोज के संघर्ष में
एक दिन बसंत तो आएगा।
बिन ज्ञान जीवन के सफर का
आज या कल अंत है,
पतझड़ के बाद बसंत है
पतझड़ के बाद बसंत है
परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी
निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...