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कविता

आगरम सागरम
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आगरम सागरम

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** आगरम सागरम बुद्धि के नागरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम हर समय लीन तुझमे सदा मैं रहूं अपनी विपदा कभी ना किसी से कहूं हो एके करम करते जाएं धरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम है तुममें सब सब तुममें है पर्वत सागर सब तुममें है कोई कुछ भी कहे ना कोई भरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम ओंकार कहता हे दिव्य दया निधिम ना क्षमता मेरी कहूं मैं केही विधिम हुई उसकी कृपा पहुंचा शिखरे चरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम आगरम सागरम बुद्धि के नागरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
जिंदगी
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जिंदगी

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** हूँ परेशान मगर, नाराज़ नहीं हूँ ! झूठे सपनों की, मोहताज़ नहीं हूँ ! जी हूँ ग़मों में भी मज़े के साथ, मैं बिगड़े सुरों का, साज़ नहीं हूँ ! देख लिए सभी ने सितम ढा कर, मैं उनकी तरह, दगाबाज़ नहीं हूँ ! रिश्तों को निभाया जतन से मैंने, पर चुप रहूँ मैं, वो आवाज़ नहीं हूँ ! ईमान से जीने की आदी हूँ, मैं कोई दिल में छुपा, राज़ नहीं हूँ ! शान से जियो मुझे ,मै जिंदगी हू कोई पापों की सजा नही हू! परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
कागज पर लिखे
कविता

कागज पर लिखे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कोरे कागज पर लिखने को लोग। अपनी कहानीयां छोड़ जाते है। तभी तो लेखक कुछ लिख पाते है। और लोगों को जिंदगी के मायने बताते है।। प्यार मोहब्बत से, जीना चाहता हूँ। आपकी बाहों में, झूलना चाहता हूँ। जब से दिल, तुमसे लगा है। जिंदगी जीने का, अर्थ समझ आया है।। न उम्मीद होकर भी, उम्मीद से जिया हूँ। प्यार मोहब्बत के लिए, हर दिन तरसा हूँ। पर अपनी उम्मीदों, पर कायम रहा हूँ। तभी तेरा प्यार, हमें मिल पाया है।। टूट जाते है सपने तब, जब आत्मविश्वास न हो। देख कर हालात तब, छोड़कर चले जाते है। और बीच मझधार में, अकेला छोड़ देते है। और हमारी जिंदगी में, अंधेरा कर देते है।। और लेखक को कोरे कागज पर, लिखने को छोड़ देते है। और कवि लेखक को एक अच्छा सा विषय लिखने को दे देते है। और लेखक अपनी भावनाओं को कागज पर उतार देता है।। परिच...
यह जीवन है
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यह जीवन है

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** रेल की दो पटरियाँ विछी हैं ज्यों दो क्यारियाँ साथ चलती हैं अनवरत बढती रहती हैं सतत रिश्तों की भी होती हैं संग बढने वाली पटरियाँ एक दूसरे पर जब चढ जाती हैं लिपट जाती हैं प्रेम वश ईर्ष्या वश कटुता वश तब भूचाल होता है संकट विशाल होता है। आहत होता है क्षत-विक्षत होता है तन-मन भी और आत्मा भी। बढने दो जीने दो अपने सुलक्ष्य पर यही प्रशांत मन है यही जीवन है परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वा...
खुशियाँ कहाँ है
कविता

खुशियाँ कहाँ है

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** खुशियों की कोई दुकान नहीं हैं कोई हाट बाजार नहीं हैं खुशियाँ कहाँ हैं ये हमारे देखने, समझने महसूस करने पर निर्भर है। बस नजरिए की बात है अपना नजरिया बड़ा कीजिए अपने आप में,अपने आसपास अपने परिवार, समाज में अपने माहौल में देखिये खुशियाँ हर कहीं हैं, आप देखने की कोशिश तो कीजिए अपने आंतरिक मन से बस महसूस तो कीजिए। हर ओर खुशियाँ बिखरी पड़ी हैं, जितना चाहें समेट लीजिये, अपनी सीमित खुशियों को हजार गुना कर लीजिए। कौन कहता है कि आप दुःखों से याराना करिए जब लेना ही है तो खुशियों को ही क्यों न लीजिए, दुःखों से दूरी बनाकर चलिए। बस एक बार खुशियों को देखने का नजरिया बदलिए, दु:खों को पीछे ढकेलना सीखिए, फिर कभी आपको सोचना नहीं पड़ेगा कि खुशियाँ कहाँ हैं, क्योंकि हर जगह खुशियों का बड़ा बड़ा अंबार लग...
बचपन
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बचपन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नन्हें बच्चों के पाँव में बँधी पायल ठुमकने से जब बजती कानों को दे जाती सुकून । दादा-दादी की पीठ पर नरम नरम पाँवों से चलाने का चलन अब कहा जिससे कभी दिनभर की थकान हो जाती थी छूमंतर। नन्हे बच्चों से बिस्किट, चॉकलेट की पन्नियां घरों में बिखरती। टूटे बिस्किट के कणों को दोस्त बनकर चुगने आजाती चिड़िया। दादी के तोतले मुख से मीठी लोरियों की आवाज सपनों की दुनिया में परियों के देश ले जाती कभी। अब कोलाहल में सपने गुम। सुबह नींद में आँखे मलते बच्चों के मुस्कुराते चेहरे सारे दिन घर मे रौनक भर देते। बचपन होता ही अनोखा बचपन को हर कोई खिलाना चाहता। एक गोदी से दूसरी गोदी हर एक के साथ फोटो पूरा मोहल्ला दीवाना बचपन होता ही जादू भरा। बेफिक्री आँखों में नन्हें खिलौने नन्हें दोस्त नन्ही जिद्ध नन्हें आँसू बचपन में...
एक कसक बाकी है
कविता

एक कसक बाकी है

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** आज भी अधूरा सा है जिंदगी कि यह सफर तुम्हारे बिना- दिल तो तन्हाइयों में पागल सा ढूंढता है आज भी तेरे निंशां- ये बेकरारी आज भी दिल की धड़कनो में देती है एक आहट सी- दिल के मुंडेरों पर उग आती है अक्सर हरी दूब जिसमें एक छुपाई हुई चाहत सी- अभी भी दिल के हवादानों पर ठहरी हुई श्वासों को तेरी गंध मन को बहला जाती है- नदी के पानी में डुबोये तेरे पैरों की वह छपछप और दूर दिशा से आती हुई पुरवाई तेरे यादों की बयार से नहला जाती है- यूं तो मुस्कराता हूं छुपा कर दर्द-ओ-ग़म दिल में आज भी भला कहां है सुकून-ए-जिंदगी तेरे बिना- इंतजार-ए-इश्क और बेकरारी आज भी कायम है दीदार-ए-यार को तेरे बिना- चल रहा हूं सफर-ए-जिंदगी में लिए तेरे अहसासों को मुंतजिर सा मगर- कर गया बेनूर सा मोहब्बत में चलने का यह हमारा सफर- तुम छुड़ा कर अ...
शुक्ल पक्ष में
कविता

शुक्ल पक्ष में

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्राद्ध पक्ष क्वाँर मास के शुक्ल पक्ष में जब आता है पितरों को तर्पण देकर तब हर नर सुख पाता है।। मात-पिता जो देवतुल्य हैं सदा स्नेह बरसातें हैं जीवन की हर कठिन घड़ी में हम उनसे आशीष पाते हैं।। भागवत पुराण में यमराज पूज्य श्राद्धदेव कहलाते हैं प्रसन्न हुए गर श्राद्ध से तो पितर मुक्त हो जाते हैं।। मृत्यु एक अटल सत्य है यह श्राद्धपक्ष बतलाता है सेवा प्रेम समर्पण ही पुण्य है जीवन का सबक सिखलाता है।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
हादसा हिज्र का
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हादसा हिज्र का

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कैसी कश्मक़श है ज़िंदगानी में। क्यूँ लगी फ़िर आग पानी में।। दीदार ए यार की हसरत नहीं थी। इश्क़ रूठा है उनसे जवानी में।। हिज्र का हादसा भी लिखा था। मेरे अरमानों की कहानी में।। तुम बेवफ़ाई का मुजस्समा हो। क्या कह दिया मैंने नादानी में।। सोचकर अब तलक़ हैरां हूँ "काज़ी"। क्या मोती जड़े थे उस दीवानी में।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
कर्मभूमि के पथ पर
कविता

कर्मभूमि के पथ पर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कर्मभूमि के पथ पर चलते-चलते जीवन की इस यात्रा में थक जाऊंँ तो साथ मेरा तुम छोड़ न देना।। सत्कर्म के कठिन मार्ग पर चलते-चलते ठोकर खाकर गिर जाऊंँ तो हाथ मेरा तुम छोड़ न देना।। जीवन संघर्षों से लड़ते-लड़ते लड़खड़ा जाऊँ तो मनोबल मेरा तोड़ न देना।। असत्य, अधर्म, अनीति के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की भांँति घिर जाऊँ तो जीवन रण में एकाकी छोड़ न देना।। श्री चरणों में भक्ति करते-करते राह यदि भटक जाऊँ तो शरण में अपनी ले लेना।। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर...
मैं नारी हुँ
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मैं नारी हुँ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मैं नारी हुँ मेरे अंदर भी एक नरम दिल है एक प्यारा प्यारा सा एहसास है मैंने भी कुछ सुनहरे ख्वाब देखा है पंक्षियों की तरह आसमां में उड़ना चाहती हूँ आज समाज में नारी सम्मान विडंबना है पुरुष प्रधान समाज से नारी मन आहत है आज नारी ही नारी के कारण सबसे असुरक्षित है कारण नारी ही नारी की शत्रु बन गई है बेवजह ही नारी को आरोपित किया जाता है जबरदस्ती झूठे लांछन लगाया जाता है अपनी कोख से असह्य पीड़ा सह जन्म देती है सीने को चीरकर दुग्ध की धारा बहाती है सारा कष्ट सहनकर भी वो मरहम लगाती है नारी है तो क्या गर्त में डाल दोगे सारा समाज नारी को बोझ समझता है गर्भ में ही मारकर दुनिया में आने से रोकता है पुरुष के संरक्षण में प्रताड़ित पल्लवित होती है मंदिर में नारी शक्ति की पूजा करता है घर की नारी शक्ति को प्रताड़ित करता ह...
तुझसे शीघ्र मिलन होगा
कविता

तुझसे शीघ्र मिलन होगा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा। दे रही है सांसारिक स्थिति संकेत, इजा तुझ से मिलन शीघ्र होगा।। खान-पान,रहन-सहन सभी का, अंतिम निष्कर्ष सामने शीघ्र होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझ से मिलन शीघ्र होगा।। हस्त, पाद, अक्षि, कर्ण, कटि, आदि का, यदि इस तरह ह्रास-गमन होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। शुष्क-कर्ण,हस्त-पाद को अब तो, आवश्यक न तो तेल लेपन होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। न होंगे सौभाग्य नियम फिर, न हाथ पर एक ही कंगन होगा। दे रही है शारीरिक स्थिति संकेत, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। तनाव न भोजन का रहेगा, न नियम कोई भाग शयन का होगा। वाम-दक्षिण त्याग शयन अब तो, इजा तुझसे मिलन शीघ्र होगा।। खंडित न सिद्धां...
उड़ता यौवन
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उड़ता यौवन

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नशे के साये में देखो छूट रहा है आज का बचपन, सिगरेट के छल्लों में दिखता, नजर आ रहा उड़ता यौवन।। न संस्कार दिखते हैं, न ही दिखता है अब बड़प्पन, बस मोबाइल और इंटरनेट पर बीत रहा है अब यौवन।। हर शख्स उलझा उलझा सा, नहीं समझता क्या है जीवन, बस झूठे आडम्बरों में फंसकर खो रहा है अपना यौवन।। लगता है गुजर जाएगा बर्बादी में अब ऐसे ही ये जीवन, वक़्त है अब भी सम्भल जाओ, नहीं तो उड़ जाएगा ऐसे यौवन।। चार दिन की है जिंदगी, निकल न जाये व्यर्थ ही जीवन,, अपनी सँस्कृति को पहचानकर, सवाँर लो अपना यौवन।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : म...
मन की कल्पना
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मन की कल्पना

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** करती नित्य प्रदत्त है, मुझे नए आयाम। मेरे मन की कल्पना, चंचल है अविराम। अनुपम चिड़िया कल्पना, भरती उच्च उड़ान। त्वरित चाल चलते सतत, इसके सब अभियान। भ्रमण करे दिन-रात ही, करे नहीं विश्राम। मेरे मन की कल्पना, चंचल है अविराम। मन की आँखें कल्पना, देखे दृश्य अनेक। होता उसके कृत्य से, भावों का अतिरेक। नहीं चैन उर को कभी, उलझन है परिणाम। मेरे मन की कल्पना, चंचल है अविराम। अविरल मन की शासिका, रहती मद में चूर। करे बहुत मनमानियाँ, रहे सत्य से दूर। अचरज में मस्तिष्क है, लगती है अभिराम। मेरे मन की कल्पना, चंचल है अविराम। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम•...
चलो केशव
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चलो केशव

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** चलो केशव तुम फिर से रण क्षेत्र में फिर से युद्ध करते हैं। बनो फिर से मेरे सारथी फिर से अन्याय के विरुद्ध हम लड़ते हैं। आज भी है कौरव घर-घर में आओ फिर से मिलकर उन सब का विनाश करते हैं। सखा बनो, बंधू बनो गुरु बनो फिर से संग चलकर आओ मिल सब शत्रुओं का विनाश करते है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
गरीबी अमीरी से जब
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गरीबी अमीरी से जब

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई गरीबी हुई खामोश तो अमीरी खुदा हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। दुआएं बिकने लगी अब बाजारों में गरीबों को तो दुआ भी अब बद्दुआ हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। आग और पानी का कोई मेल नहीं लेकिन आमिर के आगे वह भी मरहवा हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। अमीरी की हवा ही चली कुछ इस तरह गरीबी की हवा खुद हवा हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। गुनाहगार बचते रहे सजाओ से और बेगुनाहों को सजा पर सजा हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। गरीबी भी याद आने लगी उनको जब अमीरी जब उनसे खफा हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। "अरविंद" कहे ना कर तू घमंड अपनी अमीरी पर इतना वक्त के आगे वह भी फना हो गई। गरीबी अमीरी से जब जुदा हो गई।। परिचय :...
प्यासा प्यासा
कविता

प्यासा प्यासा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहीं कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए क्यों हुक सी उठती है फिर मिलने के लिए तमाम शब खोया रहा खयाल में उसके ज्यू खो जाता है चांद घटाओं में ना जाने कब तक रोती रही आंखें बेदर्द हाल मेरा देखकर दीवारें भी शिकवे करने लगी उस के कहीं कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए बीता लम्हा बीता अरसा सावन बीता भादो विता चंचल किरणों में पूनम विधि अंधियारी बीती रिति हर कोई था यहां सबका अपना अपना नदी किनारे मै ही था प्यासा प्यासा कहीं कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा स...
मैया तेरे स्वागत में
कविता

मैया तेरे स्वागत में

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** मैया तेरे स्वागत में रहें देव सारे। दैत्यों ने छीन लिए जब राजपाट सारे सबको बचाया आके आये जब द्वारे मैया तेरे स्वागत.... मैया के क्रोध का कोई पार नहीं पावे महिषासुर वध किया,शुम्भ निशुम्भ मारे मैया तेरे स्वागत .... मैया आओ वास करो आँगन द्वारे दूर हों संकट रिद्धि- सिद्धि पधारे मैया तेरे स्वागत.... धरती आकाश काँपे जब काली रूप धारे महागौरी बनकर खुशियों के खोल दे भंडारे मैया तेरे स्वागत................. फिर से पधारों माँ, जग को संवारो छाए हैं संकट कितने पाप अंधियारे मैया तेरे स्वागत.... परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
लाडली
कविता

लाडली

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आनंद मेरा बन के मुझको, कैसे सजा रही घुटनों घुटनों चल रही है, पास फिर बुला रही लाड लाड लाडली, ये लाडली, ये लाडली लाडली ये मेरी, लाड-लाड-लाड-लाडली... झुनझुने की ताल से, दासों दिशा है झूमती हँस के वो जो देखती है, खुशियां जैसे चूमती खुश हूं इतनी कि मैं सारी दौलते हूं पा रही लाडली ये मेरी, धीरे-धीरे मुस्कुरा रही.... लाडली ये मेरी, लाड-लाड-लाड-लाडली... सोम सी है आंखे, मसूड़ों से अब चबा रही हाथों में है कंगन, और तालिया बजा रही किलकारियों से मेरे घर को ये खिला रही लाडली ये मेरी, घर को गुलजार कर रही... लाडली ये मेरी, लाड-लाड-लाड-लाडली... चल रही है घुटनों घुटनों, नन्हे हाथ खींच कर हाथ में जो आ गया, वो फेंके आंखे मींच कर जाने कौन-कौन से वो गाने गुनगुना रही लाडली ये मेरी, शैतानियां भी कर रही... ला...
स्याही
कविता

स्याही

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रंग है तेरा स्याह, पर अद्भुत है तेरी सुंदरता खुद को खुद से सजाती हुई कभी हंसती, कभी रुलाती कभी गुदगुदाती भी है।। हर पल हर काल की साक्षी बनी है तू वर्णित किया है दुनिया का इतिहास, दिया वेद पुराण, महाग्रंथो का ज्ञान।। राम रहीम गुरुनानक ईसा, हर रूप का परिचय कराती कालांतर से तुम।। वीरों की गाथा, रचनाकार की रचना को जीवित किया है, पन्नों पर तुमने।। लोरियां कहानियां, गीत-गजल, को सुंदरता से उकेरती सी, जीवन के नौ रूप नौ रंगों को कारीगरी से उभरती हो तुम।। हर पोथी हर ग्रंथ को दिया है अकल्पनीय रूप तुमने।। ना हो सके अनुभूति जिन भावनाओं की, उनसे भी साक्षात्कार करती हो तुम।। ना मिटा सके कोई अस्तित्व तेरा, "इतना सुंदर अविष्कार हो तुम"!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी प...
अपनी राहों पर
कविता

अपनी राहों पर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बारूदों की, मस्तिष्कों में- देखो फसलें उगा रहे हैं, स्वार्थ सिद्ध करने के हेतु रोबोटों को जगा रहे हैं । युद्ध क्षेत्र या राजनीति है- राजमहल के अन्दर झाँको, कौन शत्रु व कौन मित्र है- तुम हर दल के अन्दर झाँको, पता नहीं जब तुमको भैया- फिर क्यों बुद्धि खपा रहे हैं । जैसे तुम ही बस राजा हो- यह अहसास कराया तुमको, कर्तव्यों को दूर हटाकर- अधिकार, समझाया तुमको, लौट आओ अपनी राहों पर- फंस जालों में, फंसा रहे हैं । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव,...
लक्ष्य पाने के सूत्र
कविता

लक्ष्य पाने के सूत्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अगर पैरो में हो चोट साथ में हो छोटी सोच। तो इंसान जिंदगी में आगे नहीं बढ़ सकेगा। इसलिए दोनों का इलाज इंसान के लिए जरूरी है। ये डाक्टर के इलाज से और खुदके आत्ममंथन ठीक होगा।। काम से पहीचान होती है इंसान की इसलिए कर्म करना जरूरी है। महंगे कपड़े तो दूकान के पुतले भी पहनाकर रखते है। इसलिए अपने जीवन को शो की चीज न बनाये। और खुदके कार्यो से अपनी एक पहचान बनाये।। कमाया गया परिग्रह को कुछ दानधर्म और परोपकार में लगाए। तो आपके परिणामों को स्वंय ही शांति मिल जायेगी। और स्वंय के स्वाध्याय से आपको आत्मबोध होगा। आत्मबोध से समाधि मिलेगी। इसलिए नियमित स्वाध्याय करे। और मोक्ष मार्ग को प्राप्त करे।। जो कार्य तपस्या से भी जिंदगी में नहीं हो सकता। वह भावना से हो जाता है। इसलिए भावों को शुध्द बनाये। और अच्छी भावनाएं आत्मा के...
शिक्षक का आदर्श भाव
कविता

शिक्षक का आदर्श भाव

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** विश्व के इतिहास में शिक्षक सदैव अमर ही रहेगा। जब तक साँस है शिक्षा का अलख जगाते ही रहेगा।। अंधकार भगाकर उजियारा में रहना सिखाता है दीपक बनकर दीप प्रज्वलित कराना सिखाता है। अपनी आभा बिखेरकर प्रतिभा को उकेरते ही रहेगा ... माता प्रथम गुरू जो अंगुली पकड़कर चलना सिखाती है, ममता वात्सल्य लुटाकर सदा आगे बढ़ना ही सिखाती है। मुश्किलों से लड़कर जीवन को धन्य बनाते ही रहेगा ... पिता द्वितीय गुरू जो पढ़ा लिखाकर गुणवान बनाता है, सद्गति कर्मो से ही पैरों में खड़ा होना ही सिखाता है। शुद्ध भाव से बच्चे माँ-बाप का फर्ज निभाते ही रहेगा ... सत्मार्ग दिखाकर एक अच्छा इंसान ही बनाता है, अपने बल बुद्घि और विद्या से हीरा ही तराशता है। जिंदगी को सँवारकर जीवनभर हुनर सिखाते ही रहेगा ... शिक्षक ही अध्यापक है जो स्वाध्...
हिंदी मेरा अभिमान है
कविता

हिंदी मेरा अभिमान है

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी मेरी आन है, हिंदी मेरी शान है सरस्वती का दिया हुआ, अद्भुत ये वरदान है हिन्द की गौरवगाथा है, ये कवियों के प्राण हैं माँ की ममता सी प्यारी, ये भारत की जान है हिंदी मेरा अभिमान है अनेकता में एकता की, परंपरा का ज्ञान है प्रांतों को जोड़े रखती सबकी यह मुस्कान है जिसके बिना हिन्द रुक जाए, ऐसा गौरवगान है हर काल को जिसने जीत लिया ऐसा सुगम उत्थान है हिंदी मेरा अभिमान है इसमें पंत की कोमलता है, जयशंकर का प्रसाद है दिनकर का इसमें ओज है शामिल, जायसी की तान है महादेवी का दर्द भरा, सुभद्रा की शक्ति का भान है मीरा की इसमें भक्ति बसी, तुलसी की ये प्राण है हिंदी मेरा अभिमान है हिंदी से ही हिन्द बना है हिंदी से हिंदुस्तान है आओ इससे प्रेम करें हम यही हमारी शान है हिंदी मेरा अभिमान है परिचय :- कीर्ति ...
दीवाने देश के ….
कविता

दीवाने देश के ….

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** गर जमाने में मिलते हैं कई दीवाने मगर भगतसिंह जैसा कोई नही होगा भोग विलास में डूब मरे कई शासक तिरंगे को कफ़न बनाने वाला वीर था भगतसिंह सिंह जैसे अदम्य साहस से भरे हुए रोम रोम से भारत माता का जय गान गूंजे अंतिम सांस तक देश का गुणगान किये जिंदगी से मोक्ष की कभी लालसा नहीं थी बस तिरंगे से लिपट कर जाने का अरमान था सिर्फ और सिर्फ वतन के लिए सोचता था वो भारत माता के कदम चूमता रहा जिंदगी में देशभक्ति रस में रसमय दीवाना था वो जीता था देश के लिए मर गए वतन के लिए अंजाम की कभी फिक्र नही दीवाने को बस आगाज की बातें करता था जिन्दगी भर वतन परस्ती के मिसाल बनकर इंकलाब लाया बसंती चोला पहनकर विदा हुआ वो मस्ताना था ना तन की चिंता ना धन का परवाह लहू का एक एक कतरा वतन के लिए दिया जिंदगी में बहुत कुछ कर गया वतन ...