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कविता

गर्मियों की छुट्टी
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गर्मियों की छुट्टी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब बच्चों की टोली और हाथों में आमों की गुत्थियां, नजर आ जाता है जब आती गर्मियों की छुट्टियां, एक वो समय था जब हम छोटे थे, घरवालों की नजरों में सदा खोटे थे, तब छुट्टियां होते दो महीने का, मस्तियां हर जगह होती फर्क नहीं नानी या अपना घर होने का, पेड़ों की छांव में पूरा वक्त बिताते, खेलना छोड़ तब कुछ नहीं भाते, गर्मियों की छुट्टियां अब कितना सिमट गया, प्रशासन लाता है अब कई सारे चोंचले नया, टी वी मोबाईल समर कैंप, कौशल विकास, रोक रहा नेचुरल विकास, नन्हे दिमागों पर बोझ डालना कितना है सही, क्या धूप और गर्मी का तनिक ख्याल नहीं, खैर ग्रीष्म कालीन छुट्टियां लाता है उमंग, बस छुट्टी ही छुट्टी बालमन में नहीं घमंड। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं ...
मृत्यु मेरी दोस्त
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मृत्यु मेरी दोस्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे मृत्यु! तू इतना इतराती क्यों है? आखिर बेवकूफ बनाती क्यों है? आ जाने की धमकी देकर डराती क्यों है? तेरा सच मुझे पता है तुझे आना नहीं होता है तू तो हरदम सिर पर सवार रहती है सिर्फ डराती, धमकाती है पर अफसोस खुद बड़ी असमंजस में रहती है। तो सुन तू इतना हैरान परेशान न हो तू स्वतंत्र है जो करना है कर आने की धमकी देकर मुझे मत डरा तुझे अब, कहां आना है तू तो हमारे जन्म के साथ ही सुषुप्तावस्था में हमारे आसपास ही है बड़े असमंजस में समय काट रही है। उहापोह से बाहर निकल जो करना है खुशी मन से कर अपना कर्तव्य पूरा कर और खुश रहा करो मैं तुझसे डरता नहीं हूं, इसलिए बेवजह समय जाया न कर, डरने का कोई कारण भी तो नहीं है। आखिर मुझे जाना तो तेरे ही साथ है फिर भला मुझसे डरने का मतलब ही क्या है? अच्छा है जब त...
पिता
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पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पापा बताओं ना, कुछ पिता के बारे में। कोई छंद राग, अपनी कहानी के बारे में। क्या आपके पापा भी करते थे, इतना ही प्यार जितना, भर छाती आप उड़ेलते हो दोनों हाथों से। क्या उनके भी रहती थी, शिकन माथे पर और झलकती थी, चिंता आंखों से। ठगी गई थी अल्हड़ जवानी उनकी भी, ऐसे ही अबोध बच्चों के लिए। अधूरे लगते थे आंखों के सपने, घर परिवार अपनों के लिए। उनकी भी अथक भाग-दौड़, जीजिविषा और संघर्ष मय, कसक भरी कहानी रही होगी। हृदय के किसी कोने में, कुछ बचपन की, कुछ जवानी की इच्छाएं सिसकियां भरी होगी। चाहे होंगे आपके पापा भी, आपकी तरह दुनिया की हर खुशी, अपनों के दामन में महका देना। उनके कंधे भी झुकें होंगे हमेशा, ज़िम्मेदारियों से बोझिल हो, खुशियों को सहारा देना। उनकी भी मुस्कराहटों में, साफ़ झलकती होगी कसक, बड...
मैने सोचा इश्क करू
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मैने सोचा इश्क करू

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** इश्क करने के लिये सोचना नही पड़ता। वो स्वयं ही हो जाता हैं। मन किसी की यादों में खो जाता है। ****** इश्क कोई काम नहीं जो इसे सोच कर करें। दिल जिस पर आ जाये उसी से इश्क का इजहार करे। ****** इश्क करे तो इजहार जरूर करे। एक तरफा प्यार कभी परवान नही होता। ****** सुंदर चेहरा देखकर इश्क न करें। सूरत के साथ सीरत की भी जांच करें। ****** कोई आपकी सूरत से इश्क करते है कोई आपकी दौलत से इश्क करते है। इस दुनियां में सच्चे प्रेमी बहुत कम ही मिलते हैं। ****** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
आठ से साठ
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आठ से साठ

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** वक्त कब कैसे बीतता जीवनभर मन सोचता आठ वर्ष का बचपना खेलकूद से जी भरता कब जगते, खाते, सोते घरेलू नुस्खे उपजते खेलते कूदते बचपना बाल्यकाल में झगड़ते कब आया यौवनावस्था नही पता कैसे मस्त रहते बड़े बुजुर्ग गलतियों पर अक्सर वे कान पकड़ते आंख के इशारे से डरते चुप्प रहते मगर हंसते छोटीबड़ी बातें सुनते हंसते मुस्कुराते रहते कुर्सी में आगे बैठते बड़े पीछे कर देते पहले बुजुर्गवर्ग बैठते बचपना नही समझते हम अलमस्त हंसते युवावस्था, इन्हें समझते दिनप्रतिदिन यूं ही बीतते यौवनास्था से प्रौढ़ावस्था जिम्मेवारी में रहते रहते दुःखसुख स्वतः सुलझते सवारी थे ध्यान नही देते जन्मदिन आते बुलाते जाते तालियां बजाते हरदम अपने जीवन के खुशियों के दिन भूलते बस जीवन के दिन कटे जो हमे छोटे बच्चे कहते उम्र समय कैसे बीते ...
सौ जन्म भी कुर्बान जिसकी मुस्कान पर
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सौ जन्म भी कुर्बान जिसकी मुस्कान पर

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** सौ जन्म भी कुर्बान जिसकी मुस्कान पर। उसने कभी मुझको, गले लगकर नहीं देखा। खामोश लब हैं, और हम कुछ कह नहीं सकते। उसने अभी तक हाल ए दिल मंज़र नहीं देखा। रोता हूं मैं भी अक्सर, खामोश रात को। उसने कभी भी गौर से बिस्तर नहीं देखा। जिसके भी मन में आया, ज़ख्म देता ही गया। मैंने भी जान बूझकर खंजर नहीं देखा। उसके लबों पे हर तलक मुस्कान ही रहे। मैंने स्वयं का हाल ए दिल बंजर नहीं देखा। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
अपनों को जगाने
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अपनों को जगाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अपनों को जगाने, निम्न परिस्थितियों से ऊपर उठाने, अपनी बात कलमबद्ध करने खातिर सही अल्फ़ाज़ खोजना पड़ता है, जिस तरह हलधर को अन्न उपजाने अपनी कृषि भूमि जोतना पड़ता है, विभिन्न बेशकीमती धातुओं को पाने धरती का गर्भ खोदना पड़ता है, हां प्रयोग कर सकता हूं अपनी रचनाओं में क्लिष्ट शब्द, समझ न पाने पर मेरे कौम के लोग बेवजह हो सकते हैं स्तब्ध, तभी तो लिखता हूं आसान भाषा में, पढ़ कर कर सके सुधार इस अभिलाषा में, तो मित्रों लगा हुआ हूं अपने अभियान में, चमत्कार,पाखंड छोड़ सब विश्वास करने लगे वास्तविक विज्ञान में, बहकावे के जद में आकर क्यों सुनना पड़े दुष्प्रचार, वास्तविकता को सोचे समझे लेने खुद के हक़ अधिकार। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि स...
नियति
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नियति

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जो कल सब कुछ यही छूटना है, उसे आज अपने हाथों छोड़ देना एक कला है ! उसी में ब्रह्म है, मोक्ष है और पूर्णता है !! भीड़ में उलझा अशांत मन, उस पीड़ा की अनुभूति भी नहीं कर पाता, जो मुक्ति के लिए बेचैन है, पानी के बुलबुले सा बनता बिगड़ता इंसानी जीवन, समझ नहीं पाता ! जब स्वयं के भीतर ही नहीं जाना दूसरी उलझनों में क्या पाओगे ! इस जीवन को एक उपलब्धि जानो कर्तव्य कर्म है, प्रेम सृजन, स्वयं के हृदय के मौन को पहचानो !! जिस दिन तुम मौन में उतर एकाकी हो जाओगे, उस दिन एक हाथ अपने हाथ मे महसूस करोगे, वो दूर नहीं तुमसे, बस तुम पास जा नहीं पाते उसके, तुम भीड़ में इस कदर बे हुए हो, देख नहीं पाते उसको! स्वयं में छिपे हुए परब्रह्म को पहचानो , वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों, संकल्पनाओं से परे है! अंत ...
गर्मियों की जब छुट्टियां आई
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गर्मियों की जब छुट्टियां आई

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** गर्मियों की जब छुट्टियां आई, नाती-पोते को देखकर दादा -दादी के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान जो आई। नन्हें-नन्हें बच्चों को देखकर आंगन में जैसे खुशियां सी छाई। गर्मी से बचने के खातिर बुआ बच्चों के लिए नींबू पानी बना लाई। पीकर बच्चों ने जो धमा चौकड़ी मचाई दरवाजे के बाहर से बर्फ के गोले वाले भैया की आवाज जो आई। दादी-अम्मा ने बच्चों को आवाज लगाई। लो बच्चों अपनी-अपनी पसंद का बर्फ का गोला खा लो। अपनी लुगड़ी के पल्ले की गांठ से कुछ रुपए निकाल कर दादी फिर से मुस्कुराई। और बोली काला खट्टा मेरे लिए बुआ के लिए गुलकंद वाला शरबत और दादाजी के लिए सतरंगी बर्फ का गोला लेकर आना। फिर बच्चों ने जोर-जोर से बर्फ के गोले वाले भैया को अपनी अपनी पसंद बताई। खाकर बर्फ के गोले को बच्चों ने फिर अपनी-अपनी जीभ दिखाई, गर्मि...
देश का पर्व
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देश का पर्व

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** शपथ करेंगे आन करेंगे, वूथ पे जा मतदान करेंगे। पाँच वर्ष का कुंभ ये पावन, हम इसमें स्नान करेंगे। लोभ न लालच धौंस न धमकी, केवल होगी अपने मन की। लगा मुखौटे करें याचना, होगी न बस उनके मन की। योग्य व्यक्ति संधान करेंगे पाँच वर्ष का कुंभ ... हम जाऐं दो संग ले जाऐं, दिव्यांगों के मत डलवायें। उनको कोई मोल न ले ले, मत का मूल्य उन्हे समझायें। पुण्य सहित श्रम दान करेंगे। पाँच वर्ष का कुम्भ ये ... एक वोट की कीमत भारी, एक वोट होता चिंगारी। खुशहाली और बरबादी में एक वोट की जिम्मेदारी। हम सबसे आह्वान करेंगे पाँच वर्ष का कुंभ .... उंगली न दिखलाए कोई, वोट नहीं डाला है तुमने। सबको उंगली तुम दिखलाना, मत का दान किया है हमने। दूर सभी व्यवधान करेंगे। पाँच वर्ष का कुंभ .... मैं नहीं जाऊं तो क्य...
समय वक्त
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समय वक्त

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** समय की मार को सहना, यही हिम्मत है जीवन मै, सुख दुख के तराजू पर, खरा उतरे ये हिम्मत है। यही जीवन का पलडा़ है, यही समय की लीला है। इसे जो पार कर जाये, इसे हिम्मत जो कहते है -२ सुख आता है और जाता, यही धूप और छाँव है प्यारे, इन्हें सहना और गम खाना, यही जीवन का खेला है -२ कभी कोई साथ मै रहता, कभी कोई साथ है देता, कभी जीवन के पथ पर भी अकेला हे हमे चलना -२ यह पैसे की दुनिया हे, जब तक साथ है चलती, अर्थ की हे गजब महिमा, दुनिया साथ है चलती -२ परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्म...
माँ की बेटी
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माँ की बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** खुशीयाँ है बेटी, स्नेह है बेटी, भाव है बेटी प्रित है बेटी। मान हे बेटी सम्मान है बेटी, घर आंगन में बहार हे बेटी। शुभ हे बेटी, पूज्य हे बेटी, मर्यादा की मूरत है बेटी। गंभीर हे बेटी, संतोष हे बेटी, सबके मन का राज हे बेटी। दया हे बेटी क्षमा हे बेटी, शक्कर से भी मीठी है बेटी। काम में बेटी नाम मे बेटी, दीपक सा प्रकाश हे बेटी। साहस बेटी, शक्ति बेटी, आन बान और शान हे बेटी। किरण का सा तेज है बेटी, विजय की पहचान है बेटी। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक ...
अग्रगण्य बजरंगबली हैं
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अग्रगण्य बजरंगबली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अग्रगण्य बजरंगबली हैं, अतुलित बल पाया है। माता सीता पुत्र मानतीं, रघुवर का साया है। अग्रगण्य जो हैं दुनिया में, उनका वंदन होता। पर उपकारी का दुनिया में, है अभिनंदन होता। अग्रगण्य हैं श्री गणेश जी, घर-घर पूजे जाते। शुभारंभ में गौरा सुत को, मिलकर सभी मनाते। अग्रगण्य गुरुवर समाज में, अंधकार को हरते। सिखा ककहरा, हृदय शिष्य के, ज्ञान उजाला करते। अग्रगण्य ऋषि मुनि सन्यासी, हमें सुपथ दिखलाते। जीवन जीने का कौशल भी, हमें सदा सिखलाते। माता अग्रगण्य गुरुओं में, जीवन सुखमय करती। प्रथम पाठशाला बनाकर माँ, ज्ञान हृदय में भरती। जो सेवा में अग्रगण्य हैं, उनको मिलता मेवा। सेवक की रक्षा करते हैं, सदा गजानन देवा। अग्रगण्य बनकर जीवन को, हम खुशहाल बना लें। जो रूठे हैं स्वजन हमारे, चलकर उन्...
जिंदगी खंडहरों में
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जिंदगी खंडहरों में

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बिखरी हुई छोटी-छोटी खुशियों को, नजरंदाज करके, उलझी पड़ी है जिंदगी खंडहरों में। बेलगाम इच्छाएं, मुंह बाए खड़ी मौत सी, पाने की जद्दोजहद तिल तिल तनाव में। परिवार समाज को छोड़कर, अपनी नज़र से कभी खुद को देखो, तुम खुद पर फ़िदा हो जाओगे। धूल जम गई है हजारों सपनों पर, उन सपनों को बुनने लग जाओगे। एक बार फिर से सुन लिजिए, ध्यान मग्न मुनियों से, भर यौवन बहती नदी की कल-कल को। खिल उठोगे अबोध बालक से, चिंता को किनारे लगा, क्षण भर निहारे खिलते फूलों को। तितली के सुनहरे पंखों सी जिंदगी, गुनगुना ने दो भ्रमर को, गाने दो मन की कोयल को। संघर्ष और जिजिविषा, पहाड़ों की तलहटी में नदी से, सीख ले पत्थरों को चीरना। डूबने का डर छोड़कर जान ले, पानी के वक्ष पर नाव से चलना। कभी सुनो तो सही, बाग में बैठकर शांति से, खेलते बच्...
लम्हों में सिमटी ज़िंदगी
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लम्हों में सिमटी ज़िंदगी

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** ज़िंदगी लम्हों में सिमटी है। खुशी और गम में बंटी है। ******* कुछ लम्हें खुशी के होते हैं। कुछ लम्हें दुःख देते हैं। और हम ज़िंदगी भर यूं ही रोते हैं। ******* लम्हा जिंदगी का एक क्षण है। जो बदलता हर पल है। ******* लम्हें चाहें क्षण भर के हो। पर याद उम्र भर की होती हैं। इसी के सहारे हमें गम या खुशी नसीब होती है। ******* कभी फुरसत के लम्हें होते है कभी काम के लम्हें होते हैं। परन्तु हर वक्त मेरे प्रियतम मेरी यादों में होते है। ******* चुरा लो खूबसूरत लम्हें इस जिंदगी से क्योंकि कितनी बाकी है जिंदगी? किसीको पता नहीं। ******* लम्हों पर भारी पड़ गई है महंगाई। इसलिए फुर्सत के लम्हें नहीं मिलते मेरे भाई। ******* अफसोस न कीजिए बुरे लम्हों को। बुरे थे इसलिये जल्दी चले गये । *****...
मरा हुआ आदमी
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मरा हुआ आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मरा हुआ आदमी सबसे पहले मरने का इंतजार करता है, होते भी है या नहीं वो आत्मा भी मर जाती है, फिर मरा हुआ आदमी बोलना चाहता है, पता नहीं किस मंसूबे से मुंह खोलना चाहता है, पर मुंह खोल नहीं पता, कुछ भी बोल नहीं पाता, क्योंकि वो पहले से मरा हुआ जो है, वो चीखना चाहता है, चिल्लाना चाहता है, पर कुछ भी कर नहीं पाता, क्योंकि पहले कभी मुंह खोला जो नहीं था, समाज को कुछ बताना चाहता है, कुछ जताना चाहता है, पर कुछ कर नहीं सकता, क्योंकि समाज के बीच कभी गया नहीं, मरी हुई जिंदगी में सिर्फ तृष्णा के पीछे भागा था, समाज खातिर चंद लम्हा भी नहीं जागा था, इस तरह फिर से मर जाता है वो मरा हुआ आदमी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
ह्र्दयप्रदेश मध्यप्रदेश
कविता

ह्र्दयप्रदेश मध्यप्रदेश

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** भारत भूमि का अनुपम अंग सुख समृधि से भरा परिवेश। प्राणों से भी प्राण प्यारा है, ह्र्दयप्रदेश हमारा मध्यप्रदेश।। तीन सौ बाइस ईसा के पूर्व, चंद्रगुप्त मौर्य राज उदय हुआ। उन्नीस सौ पचास में बना म.प्र. कई रियासतों का विलय हुआ।। भोपाल बनी नव राजधानी नव खुशियों का आगाज़ हुआ। लड़े समर स्वतंत्रता हित कई तब स्थापित ये स्वराज हुआ।। बनी हमारी राजभाषा "हिंदी" "बारहसिंगा" बना पशु प्रथम। "माच" नाट्य शिरमोर हुआ नृत्य "राई" भी बना हमदम।। खेल भाया है "मलखम्ब" का, पक्षी "दूधराज" भी अनुपम है। सफेद "लिली" की निर्मल गंध चित्रकूट की छटा सर्वोउत्तम है।। "बरगद" वृक्ष शान राज की, भाता फल "आम" रसीला भी। ओरछा, सांची, खजुराहो, मांडू, का नीलाभ है कुछ हठीला भी।। समेटे हुए है जिले पचपन अब तहसील चार सौ अ...
जनम दिन के बधाई
आंचलिक बोली, कविता

जनम दिन के बधाई

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता जस किरती बाढ़य तोर, समे होवय सुखदाई। जनम बछर के प्रियांशी बिटिया ल, घेरी बेरी बधाई। दाई ददा के दुख पीरा म अपन हरदम साथ तैय देबे। अऊ डोकरा बाबा के तैय बन जाबे संगवारी जी जिनगी ल जे हार चुके हे, आंखी में जेखर आंसू भरे हे। दुखिया जान के हाथ बढ़ाबे, अईसे ओकर करबे तैय ओकर भलाई जी सादा जीवन अऊ उच्च विचार ले अपन जीवन ल सुघ्घर कर जाना हे घर परिवार अऊ संगी साथी संग मया पिरित के बंधना म अईसे तैय बंध जाबे, चाहे कतको मजबूरी होवय। दाई-ददा के संग अपन सपना ल सिरतोन करे बर, पढई-लिखई म अभी ले तैय जुड़ जाबे जी सगरो पराणी के आशीर्वाद मिलय अऊ तोर सपना कभु झन खाली होवय। मान अऊ मर्यादा के हितइशी बन, घर समाज के रखवाली होवय। जनम देवईया महतारी के अंचरा म, सबके होवय सहाई जी। अऊ जनम बछर के प्रियांशी ...
निःशब्द रात
कविता

निःशब्द रात

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** निःशब्द रात रात की चादर ओढ़ फिर आइ निःशब्द रात निर्जन तिमिर भरी राह की रात दुबके हुए चीखते चिल्लाते निशाचरों की ये रात !! ना जाने कहाँ गुम थे चांद सितारे अंधेरा तैरता हुआ घने बादलों की तरह फिर भी चल पडी तन्मयता से ओढ़ कर सन्नाटे की चादर यादो के दिए कि झिलमिल रोशनी अम्बर पर टिमटिमाते आंख फाड़े तारो की रात ! गुम हुए थे ये सारे रात के सहारे कभी पालकी सजा चलते थे ये हरकारे चाँद से मिलने के बहाने सुख दुख को गले लगाने, जाना है उसपार, जहां से वापस आना है दुश्वार! शनैः शनैः ढल रही है रात!! क्षितिज पर भोर ने दस्तक दी गहरी नींद से तब मैं भी जागी थी आप बीती सुना थक गई है रात गगन में सुनहरे सज रहे हैं तोरण द्वार निःसतबध कर गुजर गई निःशब्द रात!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्...
ऐ वक्त जरा ठहर जा
कविता

ऐ वक्त जरा ठहर जा

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ऐ वक्त जरा ठहर जा, मेरी भी सुन जरा रुक जा। तेरे जाने से मैं छुट जाऊंगा, तू चला गया तो मैं मंजिल को कैसे पाऊंगा।। ऐ वक्त जरा थम जा, आ मेरे साथ जरा विश्राम तो कर ले। मुझे अपनी मंजिल का बेसब्री से इंतजार है, जरा रूक जा अपने साथ मुझे भी ले जा।। ऐ वक्त जरा पीछे मुड़कर भी देख ले, तेरा पीछा करते-करते मैं भी आ रहा हूँ। मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच ले, समय का दो बूंद मेरे ऊपर भी सींच दे।। ऐ वक्त जरा मेरी बातें भी सुन ले, न बढ़ इतनी तेजी से जरा ठहर जा। तू इतनी जल्दी में कहां जा रहा है, बिना मंजिल के बस चलता ही जा रहा है।। ऐ वक्त जरा ठहर जा, एक पल मेरे ऊपर भी नजर तो उठा। कर न मुझे यूं अनदेखा, जरा थम जा मुझसे एक पल नज़र तो मिला।। तूझे रोकना मेरे सामर्थ्य में नहीं है, ऐ जाते हुए लम्हें मुझे अलविदा...
निशब्द
कविता

निशब्द

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसे पल हैं आते जब समझा समझा कर खुद का ही अन्तर्मन कोई समझ ना पाता और हम थक है जाते। शब्दों के कोलाहल में सब अर्थ अनर्थ हो जाते मन की व्यथा समझाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो जाते आपके हर तर्क के विरुद्ध अनेक प्रत्यर्थ हैं टकराते। तब सिर्फ एक मौन का ही सहारा समर्थ कर जाता है बिन कुछ कहे ही वो तो सारा भाव व्यक्त कर जाता है। चीखता तो घमंड है विनय तो बस मौन है हठ में तो कर्कशता है त्याग तो बस मौन है झूठ के हैं लाखों तर्क सत्य की भाषा तो मौन है। मौन है दर्पण मौन है तर्पण मौन है अर्पण मौन समर्पण मौन प्यार है मौन स्वीकार है मौन तकरार है मौन ही इकरार है। हर वाद-विवाद प्रतिवाद से मुक्त हो पाते हैं जब आपके शब्द निशब्द हो जाते हैं। जब आपके शब्द निशब्द हो जाते ...
युवा पीढ़ी में परिवर्तन
कविता

युवा पीढ़ी में परिवर्तन

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी है, धर्म से डिगनें ना पायें, कर्म करना जरूरी है।। भान अधिकारों का उनको बात यह है, बहुत अच्छी। किंतु कर्तव्य लौ जागे, तो यह सबके लिए अच्छी।। संगठन सद विचारों का बहुत होना जरूरी है, नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी है।। संभाले संस्कारों को रखें सिद्धांत जीवन में, स्वयं परिवार या हो राष्ट्र प्रगति की बात हो मन में।। सजग कर्तव्य पथ पर हों, भागीदारी जरूरी है। नूतन युग में नवनिर्माण वफादारी जरूरी है।। नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी है। न हो अन्याय अत्याचार न दूदम्य साहस हो। नैतिक सभ्यता हो, प्रेम मन के भाव समरस हों।। आस्था और आदर मान अनुशासन जरूरी है, ना हो पथभ्रष्ट जीवन में मार्गदर्शन जरूरी है।। नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी ...
मांँ
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मांँ

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** बताओ पापा ! मांँ कैसी होती है? जितना मैंने जाना मांँ भगवान की प्रतिरूप होती है। बताओ दीदी! माँ कैसी होती है? जितना मैंने पहचाना माँ ममता की मूरत होती है। बताओ भैया! माँ कैसी होती है? जितना मैंने समझा, हर मांँ सुंदर है, जिसके हृदय में स्नेह अपार होती है। मेरे पापा! मेरी दीदी! मेरे भैया! मैंने महसूस किया, माँ तारा बनकर भी हम सबके पास रहती है। माँ की सूरत कभी नहीं देखी, लेकिन मैं जान गया, माँ किसी से भेदभाव नही करती, माँ सबसे अच्छी होती है। परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
समझो क्या होती है मां
कविता

समझो क्या होती है मां

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मां सुबह से शाम, बिन आराम बच्चों का हरदम रखती है ध्यान खुद भूखी रहकर बच्चो को पहले कराती है जलपान मां पहले बेटे को खिलाकर भोजन लेती चैन करती आराम हिम्मत इतनी देती थकने का नहीं लेती नाम खुद आग के धुएं में रोटी पकाकर हाथों से सेंककर बच्चो को खिलाती बच्चों की दुःख विपदाओं में मां पहले आगे आती मां आंखों में आंसू नहीं कभी झलकाती मां होती है कितनी भोली दुःख दर्द पीड़ा बच्चो की सबसे पहले समझ जाती बच्चों के जीवन की खुशियां मां अन्तर्मन से खुशियां लाती बच्चों के कष्टों के बादलों को मां पल भर में चतुराई से खुद कष्ट झेलकर हटाती जीवन के सच्चे पाठ सिखलाती जीवन की नैया पार लगाती जीवन का जंजाल मां स्वयं गले लगाती बच्चो की खुशियां खातिर सारी मोहमाया हटाती बच्चों की खातिर मां सुबह से शाम तक बरामदे में बैठी...
वोट डालने जाना होगा
कविता

वोट डालने जाना होगा

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ष अठारह पार कर गए, नागरिक धर्म निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। ओ भारत के रहने वालो, निज कर्तव्य निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। हो किसान, मजदूर, व्यापारी, अपना फर्ज निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। शासकीय सेवक पद कोई, पद को आज भुलना होगा। वोट डालने जाना होगा।। महिला पुरुष देश सेवक बन, अपना फर्ज निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। टाल ना देना समय आलसी, काम देश के आना होगा । वोट डालने जाना होगा।। देशभक्त हो यदि तुम सचमुच, सबको यही सिखना होगा। वोट डालने जाना होगा।। भूल गए यदि मित्र पड़ोसी, उनको याद दिलाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। यदि असमर्थ दिखे जो कोई, उसे मदद पहुंचाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। मत पूछो किसको देना है, किसको दिया नकहना होगा। वोट डालने जाना होगा।। मत-...