मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा
ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस"
अमेठी (उत्तर प्रदेश)
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सुंदरी सवैया छंद (अवधि भाषा)
मुसकातु अहै उ कपाटु धरे मनवा हुलरै पियवा अजु आवै ।
भिनही कगवा मुँडरा चढ़िके कहवाँ-कहवाँ भलुके दुलरावै ।
ननदा बिहँसै जरि जायि हिया सनकी-मनकी करि खूबि खिझावै ।
ढुरकैं जबहीं सुरजू तबहीं फँसि जायि परानु कछू नहिं भावै ।।१।।
परछायि दिखै दुअरा दुलरा दुलही जियरा खुलिके हरसावै ।
कबहूँ अँगना महिं नाचि करै कबहूँ ननदा बहियाँ लिपिटावै ।
चुपके-चुपके नियरानि जबै अँखियाँ लड़ितै घुँघटा लटकावै ।
कहिजा मँखना अँगना तड़पै कबुलौं दहकै कसिके समुझावै ।।२।।
तुहिंसे लड़ना सजना जमुके बतिया दुइठूं करना तुम नाहीं ।
इसकी उसकी परके घरकी नथिया-नकिया धरना तुम नाहीं ।
फिरकी फिरकी अपनी-अपनी भलुके भरिके फँसना तुम नाहीं ।
रचिके बचिके चँदना बहकौ कपरा सबुके सजना तुम नाहीं ।।३।।
पतझारि दिखै जिनिगी...