मन
उषाकिरण निर्मलकर
करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़)
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मन ही मन में जोड़ ली, मन से मन का तार।
मनका कान्हा नाम का, मन में जपूँ हजार।।१।।
मन-मंदिर में श्याम है, मन मे है विश्वास।
दूजा अब आये नही, मेरे मन के पास।।२।।
मन को मेरे भा गया, मनमोहन की प्रीत।
मधुर-मधुर मुस्कान से, मन मोहे मनमीत।।३।।
मन जीती मन हार के, मिली प्रेम सौगात।
कहे कृष्ण से राधिका, समझो मन की बात।।४।।
मन मेरा माने नही, समझाऊँ हर बार।
मन अपने मन की करे, मानी मैं तो हार।।५।।
मन चंचल होवे सदा, दौड़े पवन समान।
जल थल नभ में घूमता, बैठ एक ही स्थान।।६।।
मन मैला मत कीजिए, घटता निज सम्मान।
काँटे बोये आप तो, मिले वही फिर जान।।७।।
परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर
निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...