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पद्य

सिंदूरी  सूरज
कविता

सिंदूरी सूरज

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** सुहानी सी ढलती शाम नजरें टिकी थी अस्त होते सूरज पर खोया खोया सा मन कैसे खोजूं चढते भानु की दैदीप्यमान अरूणिमा गरिमा की द्योतक से उभरता मन ललचाता वो लाल रंग कहाँ नजर आ रहा था तमतमाता भास्कर आँखे चुंधियाते चमचमाते दिवाकर का वो सुनहरा रंग बस नजर आ रहा है दिन और दोपहर के रंगों का मिश्रण धुंधला धुंधला सा निस्तेज मगर फीकी फीकी लाली लिए क्षितिज में डूबते सूरज का सिंदूरी रंग बना गया सूरज को सिंदूरी सूरज....! परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र...
वास्तविक रहस्य
कविता

वास्तविक रहस्य

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गली-गली फिरती युवती बन राधा प्रेम भयो न कोई। गली-गली फिरते संत बन योगी ध्यान मग्न न कोई। गली-गली फिरते साधक बन तपस्वी चिंतन करत न कोई। गली-गली फिरते ज्ञानी बन सुविज्ञ आत्मज्ञान करत न कोई। गली-गली फिरते अनुरागी बन कृष्ण आत्म समर्पण करत न कोई। गली-गली फिरते नायक बन योद्धा आत्म द्वंद्व करत न कोई। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
माँ
कविता

माँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** लुका छिपा सा माँ का प्रेम, अति गहरा माँ का है प्रेम, परछाई सा लुकाछिपा, सूरज सा उजला हे प्रेम, वृक्ष सी गहराई इसमें, फूलो सी महकाई इसमें, स्तब्ध गगन आकाश सी व्यापक व्यापक व्योम सितारों सी चमक, शान्त चित्त वो प्रेम की मूरत, घर को स्वर्ग बनाती माँ है। सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग, हर युग मे प्रेम परीक्षा माँ है, कभी देवकी कभी यशोदा, कभी कौसल्या सी परीक्षा माँ है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२...
भार हुई अम्मा
गीत

भार हुई अम्मा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रुख़सत होते ही बाबा के, लाचार हुई अम्मा। ताने सुन शूलों से तीखे, बेजार हुई अम्मा।। नींव बनाने में जिस घर की, अपनी देह हवन की। रोम-रोम में गंधसार बन, जो सुहाग तक महकी।। उस घर के कोने तक अब, स्वीकार हुई अम्मा।। जठर ज्वाल में जो संतति के, चूल्हे जैसा धधकी। सुबह-शाम वे बूढ़ी आँखें, भूख-प्यास में फफकी।। जिनका बोझ उठाया उन पर, अब भार हुई अम्मा।। बन शहतीर खड़ी हो जिसने, छत का बोझ सँभाला। बैरी कहते जिन्हें खिलाया, मुख का रोज निवाला।। अब भव के नौका की टूटी, पतवार हुई अम्मा।। बेबस हर महिने पेंशन की, करती रही निकासी। छाप अँगूठे की धर देखे, तीरथ मथुरा काशी।। अधिकार पत्र पर जीवन के, दुत्कार हुई अम्मा।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मे...
लहरा गए तिरंगा
कविता

लहरा गए तिरंगा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** वो थे वीर साहसी निडर देश के असंख्य पुरुष महिला अनगिनत देश के नौजवान।। मर मिटे गए वो खुद हुए थे लहूलुहान बढ़ाते ही गए शक्ति समन्वय बढाये अपने देश का सन्मान।। बिछाया था जाल देश की खातिर मरने मिटने का देश की मिट्टी में झलकाये थे वे कमाल।। गुलामी की जंजीरें तोड़करलहरा गए वो भारत का प्यारा तिरंगा।। विश्वभर में भारत की गुलामी से मुक्त कर बचा गए वो मचा गए वो दिखा गए वो साहस और शक्तिवे थे भारत के वीर शान।। वे बजा गए खुशियों का मधुरिम डंका वे थे देश की रक्षार्थ सच्चे नोजवान।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सरहद का दीपक
कविता

सरहद का दीपक

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** इस देश का दीपक हर सेनानी सरहद पर बैठा हर सेनानी जगमग करता भारत को नमन करें हम उस दीपक को। भारत का बच्चा बच्चा ऋणी बना उस दीपक का जो बर्फ की चादर पर बैठा तीन सौ पैंसठ दिन जलता। न केवल मात पिता का दीपक न वो अपने दादा का कुलदीपक वो भारतमाता का दीपक है वो हर उर का जलता दीपक है। सैनिक अपना रखवाला है हर घर का वो उजियाला है उसके साहस से इस रज का कण-कण होता प्रज्ज्वल है। सेना का दीप जो बुझ जाए तो देश नहीं बचने वाला देश पे हमला हो जाए तो सैनिक नहि झुकने वाला। शिवरात्रि होली और दिवाली हम उनके बल पे मानते हैं जो सेना पर प्रश्न करे वो कालिक ख़ुद अपने मुंह पे लगाते हैं। भारतमाता के दीपक से अपना मस्तक ऊँचा है उनके आगे हम नत्मस्तक हैं वो भारत की सरहद के दीपक हैं वो भारत की सरहद के दीपक हैं। ...
युवा दिवस
दोहा

युवा दिवस

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** स्वामी जी थे युगपुरुष, संस्कारों की शान। जो कायम करके गए, गति-मति के सँग आन।। विश्व सभा में छा गए, फैलाया आलोक। मूल्य सनातन की चमक, कौन सकेगा रोक।। युवा चेतना की दमक, युगों रहे बन इत्र। समझ रहे हैं हम सभी, बनकर मानव मित्र।। आज जयंती पर दिखा, फिर से नवल विवेक। आओ! हम निश्चित बनें, अब से मानव नेक।। सकल विश्व में गूँजता, स्वामी जी का नाम। बने चेतना के पुरुष, मौलिकता के धाम।। मूल्य सनातन श्रेष्ठतम, हुआ वेग में सत्य। स्वामी जी का यश हुआ, मानो हो आदित्य।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय प्रका...
रद्दी का मोल
कविता

रद्दी का मोल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बचपन से शौक था उसे पढ़ने का, नई इबादत गढ़ने का, हरपल आगे बढ़ने का, हर परिस्थिति से लड़ने का, मगर समय निकलता गया, चुनौतियां आता गया नया, वो अड़े थे बड़े पद के ख्वाब में, ठसक आ चुका था रुआब में, नहीं अपनाया चाह से कोई छोटा पद, जेब भी अब नहीं कर रहा था मदद, थक हार कर बन गया बाबू, मगर दुनिया का चलन हो चुका था बेकाबू, समझौते कर परिस्थितियां कबूला, किताबों को भूला, अब उन्हीं ज्ञान भरी किताबें को मन नहीं कर रहा था रख सहेजने का, निर्णय ले लिया उस रद्दी को बेचने का, ले गया उसे एक किशोर खरीददार, जिन्हें था किताबों से असीम प्यार, और लग गया मन लगाकर पढ़ने, समय लगा गुजरने, चार साल बाद वह किशोर आया सामने, फूल माला दे सब लगे हाथ थामने, पहचान उसने उस बाबू को बोला समय ने मेरा इम्तिहान लिया, ...
एक दिन एक “बूंद”
कविता

एक दिन एक “बूंद”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वयं के अस्तित्व को आजमाने महासागर को छोड़ चली उसे दुनिया मे भ्रमण करना था दुनिया देखना था बड़ी ही प्रसन्नता से इधर-उधर, स्वतंत्रता का आनंद उठाने लगी धीरे-धीरे अकेलापन उसे सताने लगा उसे महासागर की याद आने लगी वो सोचने लगी, कैसे वापस जा पाऊँगी कितना विरोध किया था महासागर ने मेरे अकेले निकलने का, उसका जीवन नारकीय गंदगी से गुजरता हुआ बड़े कष्ट से बीतने लगा! जब भी उसकी जीवन मे चुनौतियां आतीं उसे महासागर की बहुत याद आती महासागर से मिलने की उसकी तीव्र इच्छा होने लगी वो बहुत हताश और उदास रहने लगी एक दिन सूरज बहुत तेज गरम था सूरज की तेज रोशनी ने उसे ऊपर उठा दिया, बहुत ऊपर बादलों के पास से और भी बूंदो क़े साथ नीचे फेंक दिया, बूंद को बहुत दर्द अनुभव हुआ वो एक नदी में गिरी, कई दिनों...
आओ मिलजर मनाएं मकर सक्रांति
कविता

आओ मिलजर मनाएं मकर सक्रांति

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** पौष जाए माघ आए शीत की छटा बह आये मकर सक्रांति पर खुशियाँ घर घर आये।। घरपरिवार में तिल गुड़ चिड़वा मुड़ी लाये मकरसक्रांति पर्व की खुशियाँ तनमनमे छाए।। मकर सक्रांति पर्व है ऐसा दान धर्म स्नान भाये वस्त्र अन्न बर्तन कम्बल का दानपुण्य बढ़ जाए।। तीर्थों में आनाजाना, मकर सक्रंति पर्व बताये भारतवर्ष के हर कोने में, मकरसक्रांति मनाए।। नदियां कुंड तालाब पोखरे में ठंडे जल से नहाए मकर सक्रांति पर्व की परंपरा की रीत निभाए।। दही चिड़वा घेवर खानपान में आनंद खूब लाये एक संग में शीत की लहर में अलाव को जलाए।। आसमान की रौनक चारो तरफ यह पर्व महकाये रंग बिरंगी लाखों पतंगों को उड़ाने की मस्ती लाये।। मकर सक्रांति माघ महीने का है दान धर्म का पर्व परंपरा को परम्परागत निभाये, सन्देश सब फैलाये।। आओ हम सभी प्...
छेरछेरा : दान के परब
आंचलिक बोली, कविता

छेरछेरा : दान के परब

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता झटकुन सूपा म, धान देदे, झन कर तंय बेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। ए ओ नोनी, फईका ल खोल दे। देबे के नहीं तेला बोल दे।। कोठी ल झाँक ले। मोर मन ल भाँप ले।। काठा-पैली भर हेर-हेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। बड़े बिहनिया ले लईका मन आए। जाके घरों-घर सबला जगाए।। होगे हवन जइसे बगरे पैरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। एक खोंची, दू खोंची देदे मोला। सबे घर जाए के का मतलब मोला।। मन के बात बताहूँ, तोर मेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। मुँह ल सुघ्घर तंय धोले। रात के बासी ल पोले।। मोला भीतरी कोती बला ले। तोर कोठी म मोला चघा ले।। जादा लालच नइहे, मोला थोरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निव...
देश संविधान से चलता है
कविता

देश संविधान से चलता है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बताओ देवतुल्य अपना जहर कहां रखते हो, उड़ेल उड़ेल क्यों नहीं थकते हो, रह रह फिजां में विष घोल देते हो, माजरा समझे बिना कुछ भी बोल देते हो, अधिकार हनन बिना भी चिल्लाते हो, दूसरों का हक़ बेदर्दी से खाते हो, बचा खुचा खुरचन भी डालते हो खुरच, क्या डर नहीं लगता हो न जाये अपच, क्या जहां और देश आपके लिए बना है, हैवानियत कर क्यों सीना तना है, देखो अपना लेकर बैठे हो संपूर्ण आरक्षण, किस बात से आ रहा हीनता वाला लक्षण, कुंडली हर जगह है तो करो सबका रक्षण, कर्तव्य भूल कर रहे हो भक्षण पर भक्षण, हां आपकी पीड़ा इसलिए है कि व्यवस्थाई नियम खुद नहीं बनाये हो, अपने अनुसार व्यवस्था न होने पर बौखलाये हो, अच्छा बता दो औरों को कितना सम्मान देते हो, अस्पृश्यता की नजर रख इम्तिहान लेते हो, आपके भ्रामक नजरिये ...
कर्मठता का गीत
गीत

कर्मठता का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं। नहीं अनमनापन हम में है, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है। वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। शीश कटा, सर्वस्व गंवाकर, जिनने वतन बनाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। नहीं अनमनापन उन में था, जिनने फर्ज़ निभाया। वतनपरस्ती का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण गँवाते हैं।...
मार पड़ी महँगाई की
गीत

मार पड़ी महँगाई की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मार पड़ी महँगाई की है, नहीं सूझती बात। मिली आज की दौर की हमें, आँसू ही सौग़ात।। रोते बच्चे मिले बटर भी, कुछ रोटी के साथ। पल्लू से आँसू पोंछे माँ, पर मारे-दो हाथ।। छूट गया काम क्या करे अब, खाओ सूखा भात। रोज़ गालियाँ देता पति भी, आती उसे न लाज। कटे जीवनी कैसे उसकी, करे न कोई काज।। पीने दारू बेचें जेवर, रोती बस दिन-रात। घूरे के भी दिन आते हैं, उर रखती बस आस। काम मिलेगा कल फिर उसको, पूरा है विश्वास।। तगड़ा नेटवर्क उसका भी, देगी सबको मात। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्या...
वल्लरी
कविता

वल्लरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिपटी हुई वृक्ष वल्लरी वृक्ष से झुककर गहन कूप के जल में अपना प्रतिबिम्ब देखकर कुछ लजाई हरित परणमे। कोमल कांति कदम्ब तले वल्लरी सब के मन को भाई पर्ण, पर्ण संग पुष्प किले हैं मंडराते भंवरे, पांखी। मदमाती सुगन्ध दिख, दिगंत में बसती मन्द पवन के झोंकों ने वल्लरी को स्पर्श किया भय नहीं थावल्लरी को क्यों, क्योकि उसे था वृक्ष, धरा का सम्बल प्यारा। झूम, झूमकर नाजती वल्लरी गाती स्वर में सरगम। उपवन में कोयल गाती संग नदियों कल, कल स्वर में गाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय...
शांति नववर्ष
कविता

शांति नववर्ष

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नया साल नया पैगाम लाया नफ़रत के बगीचे में महोब्बत का गुलाब खिलाया। छोड़ चुके हैं जो हमें उनको भी हमारा मुस्कुराना याद आया। जलते हैं जो हमारे कार्य से उनको भी हमारा काबिल किरदार याद आया। हार चुके हैं जो जीवन से उनको भी अपना कोई जिंदादिल यार याद आया। थक चुके है जो निज के युद्ध से उनको भी शांति का पैगाम याद आया। नया साल विश्व शांति की अद्भुत सौगात लाया। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
मुर्दों की बस्ती में
ग़ज़ल

मुर्दों की बस्ती में

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन मुर्दों की बस्ती में यहाॅं ज़िंदा कोई नहीं। आवाज़ हक़ की डर से उठता कोई नहीं।। हद पार हो गई है ज़ुल्मों सितम की अब। किस पर करें भरोसा की अपना कोई नहीं।। अपने भी अपने अब यहाॅं अपने रहे कहाॅं। नफ़रत की ऑंधी चल रही अच्छा कोई नहीं।। मरना है सबको पैदा यहाॅं पर हुआ है जो। ज़िंदा रहा जहाॅं में हमेशा कोई नहीं।। ऑंखों में पट्टी बाॅंध के बे-अक़्ल जीते हैं। ये चार दिन की ज़िंदगी समझा कोई नहीं।। किसका शिकार हो रहा किसका विकास है। सब दिख रहा है मुल्क में अंधा कोई नहीं।। बेख़ौफ़ है दरिंदे ये कैसा निज़ाम है। इस बे-लगाम भीड़ में इंसाॅं कोई नहीं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी...
रफ्तार
कविता

रफ्तार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां थे बहुत लोग उसके बनकर या कहें सब थे गिरफ्तार, रफ्तार का था शौकीन नाम था रफ्तार, जिस अंदाज में आता था, उसी अंदाज में जाता था, कुछ लोग उन्हें देखकर ताली बजाते थे, कुछ लोग उन्हें देखकर गाली सुनाते थे, उनका अलग ही धुन था, जल्दबाजी उनका अपना गुन था, उसी रफ्तार ने उसे बुला लिया, मौत ने एक दिन नींद भर सुला दिया, जिस रफ्तार से आया था, उसी रफ्तार से चला गया, एक जिंदगी तेजी के द्वारा छला गया, वो नादान था, दुनियादारी से अनजान था, तभी तो उनका जीवन जीने का तरीका रहा धांसू, ताउम्र रहेंगे परिजनों की आंखों में आंसू। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
पीड़ाओं के घट
गीत

पीड़ाओं के घट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पीड़ाओं के घट भरते सब, घोर विरोधाभास। संकट की पगडंडी चलते, वन गुलमोहर आज। बोधिवृक्ष नित काटे जाते, बस बबूल का राज।। डोर भावनाओं की काटे, गर्वित हो उपहास। आतिशबाजी है युद्धों की, होगी किसकी जीत। बारूदों के ढ़ेर लगे पर, कोयल गाती गीत।। मानवता का नाम नहीं है, गुदड़ी सोता दास। झूठों के बाज़ार लगे हैं, समय बड़ा बलवान। श्रमकण धूल मिला है अब तो, शहरी जीवन शान।। दर्पण मैला है शुचिता का, सच भेजा वनवास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्...
जीवन हो गतिमान … सरोठा
सरोठा

जीवन हो गतिमान … सरोठा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन हो गतिमान, यही कामना मैं करूँ। बढ़े सभी की शान, सुख को जियरा में भरूँ।। हर पल में आनंद, अच्छाई को यदि वरूँ। बुरे काम कर बंद, अपना सारा दुख हरूं।। मैं-मैं करना छोड़, हम के पथ पर हम चलें। अहंकार को तोड़, मृदु बन जाएँ, क्यों खलें।। कितना कटु है आज, तज दें यह कहना अभी। सबके दिल पर राज, कर सकते हैं अब सभी।। कितना प्यारा रूप, संतों का लगने लगा। लगे खिली हो धूप, हर गुण लगता है सगा।। जीवन मंगल गान, खुशियों का मेला लगा। कर लो अनुसंधान, मन होता नित शुभ पगा।। फैल रहा अँधियार, साधें हम आलोक अब। अवसादों को मार, बन जाएँ खुशहाल सब।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक...
साँसें साँसत में
गीत

साँसें साँसत में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चलें धार पर रहीं हमेशा, साँसें साँसत में। एक कुल्हाड़ी और दराती, मिली विरासत में।। रोज उज्ज्वला सिर पर ढोती, लकड़ी का गट्ठर, पथ पर भूखे देख भेड़िये, देह स्वेद से तर, भूख-प्यास लेकर बैठी है, देह हिरासत में।। कानी-खोटी सुनकर पाया, दाम इकाई में, नमक-मिर्च भी लाना मुश्किल, इस महँगाई में, है गरीब का सस्ता सब कुछ, यहाँ रियासत में।। पाँच बरस में एक बार ही, मंडी खुलती है, जिसमें अपने जीवन भर की, किस्मत तुलती है, वोट तलक अपनापन मिलता, हमें सियासत में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
प्रयाग-कुम्भ
कविता

प्रयाग-कुम्भ

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** यह कुम्भ धर्म से संगम है साहित्य संस्कृति सर्जन का। उत्थान पतन चिन्तन मन्थन मन मर्दन मन संवर्धन का।।१।। आलिंगन का आलिंपन का आलम्बन का अवलम्बन का। तर्कों के खण्डन मण्डन का कचमुण्डन पिण्डन पुण्डन का।।२।। यह कुम्भ धर्म से .............।। अंजन मंजन मन रंजन का भय भंजन का दुख भंजन का। कन्दर कानन के आँगन से निकले सन्तानन पादन का।।३।। चतुरानन का पंचानन का सप्तानन और षडानन का। आवाहन का अवगाहन का आराधन का अवराधन का।।४।। यह कुम्भ धर्म से .............।। मोहन मारण उच्चाटन का भोजन भाजन भण्डारण का। चारण उच्चारण तारण का कुल कारण और निवारण का।।५।। गायन नर्तन संकीर्तन का पूजन अर्चन पदसेवन का। वन्दन अभिनन्दन चन्दन का फिर खुलकर आत्मनिवेदन का।।६।। यह कुम्भ धर्म से .............।। स्पर्शन ...
आत्मवंचना
कविता

आत्मवंचना

माधवी तारे लंदन ******************** पंचतत्व में विलीन मनमोहन मत सुनो जनता की वलगना आयु सागर में डुबकी लगा कर प्रशंसा के स्तुति मौतिक लाए ये जन बंधवा दिए इन्होंने स्तुति के पुल। दुनिया की है यह रीति पुरानी जीते जी तो करे मनमानी श्मशानभूमि पर करे वंदना स्तुतिसुमनों की उछाले रचना। विपक्ष जब खोले शब्द खजाना उम्र और पद का रखे न पैमाना संविधान की करे अवमानना जब सत्तांध का मद चढ़े सातवें आसमाना। तुष्टिकरण का चुनावी बाणा मुक्त हस्त से बांटे जन मेहनताना अर्थनीति के दम को तोड़ना देशभक्ति का पहन कर जामा। लाए उबार आप राष्ट्र कोष मौन की बहुत उड़ाई खिल्ली काम किए पर मिली न प्रशंसा जाने पर दौड़ी वाहवाही को दिल्ली। इसलिए कहते हैं कवि दुनिया की सबसे बड़ी सेवा खुद को संतुष्ट कर खुश रहना दे श्रद्धा सुमन जो दिल से उन्हें ही आप सच्चा मानना। परिचय :-  माधवी तारे वर्तमा...
रिश्ते में है अनमोल खुशी
कविता

रिश्ते में है अनमोल खुशी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** रिश्ते में है रहता अटूट स्नेहप्रेम प्यार रिश्ते में विद्यमान चैन सांस, रिश्ते में सकुशलता, जीने की सफलता रिश्ते में बहती प्रेम बंधन की सरिता।। रिश्ते में खून का नहीं देखते रिश्ता, रिश्ते में अपनेपन अहसास का जुड़ा होता रिश्ता रिश्ते बिना समूचा जग सुना सुना। रिश्ते से बढ़ता एक सशक्त अपना परिवार।। रिश्ते में रहती खुशियां और चाहत बहार रिश्ते में धन दौलत का नहीं रहता मोल रिश्ते में दिलों के रिश्ते होते अनमोल देते मन को तौल रिश्ते में न रहे दरार, बढ़े हरदम प्यार।। रिश्ते में सदैव बसा रहे करुणा, प्रेम प्यार रिश्ते में रोज रहे आपसी आना जाना रिश्ते में दुःख सुख में संगी हो नहीं बनाए बहाना रिश्ते की दीवार में भेदभाव हरदम घटाना।। रिश्ते में रखना सीखो रखो एक थाली रिश्ते में एक संग खाने की लाएं हरियाली रिश्ते में ...
नया साल मुबारक हो
कविता

नया साल मुबारक हो

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जो पहले था नया साल, अब अतीत बन गया। आने वाला नया साल, विश्वासी मीत बन गया।। केक काटो, पटाखे फोड़ो, मनाओं सभी जश्न। परिवर्तन कर पाओगे परिस्थिति, यही मेरा प्रश्न? दुःख, सुख में बदलेगा, मन को मिलेगी शांति। खुशी ढूँढ रही है दुनिया, यह सबकी है भ्रांति।। असफलताओं के कैदखाने में कैद हैं आदमी। निराशा के जाल में फँसे वेशभूषा बदले छद्मी।। अच्छाई का मुखौटा पहने रह रहे सभ्य समाज में। अति प्राचीन रीति-रिवाजों के रूढ़िवादी राज में।। तुम तो पहले जैसे थे, तुम आज भी वैसे ही हो। बदल ना पाए स्वभाव, शब्द जहर उगलते हो।। धर्म और जाति बंधन से परे मानवता हो मूल मंत्र। भाईचारे से गले मिलो, समानता जन-जन में तंत्र।। कर्म क्रांति की मशाल से नवजीवन सुधारक हो। शानदार सफलता मिले, नया साल मुबारक हो।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेल...