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पद्य

मन
दोहा

मन

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन ही मन में जोड़ ली, मन से मन का तार। मनका कान्हा नाम का, मन में जपूँ हजार।।१।। मन-मंदिर में श्याम है, मन मे है विश्वास। दूजा अब आये नही, मेरे मन के पास।।२।। मन को मेरे भा गया, मनमोहन की प्रीत। मधुर-मधुर मुस्कान से, मन मोहे मनमीत।।३।। मन जीती मन हार के, मिली प्रेम सौगात। कहे कृष्ण से राधिका, समझो मन की बात।।४।। मन मेरा माने नही, समझाऊँ हर बार। मन अपने मन की करे, मानी मैं तो हार।।५।। मन चंचल होवे सदा, दौड़े पवन समान। जल थल नभ में घूमता, बैठ एक ही स्थान।।६।। मन मैला मत कीजिए, घटता निज सम्मान। काँटे बोये आप तो, मिले वही फिर जान।।७।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
प्रेम-तरंगिणी:
कविता

प्रेम-तरंगिणी:

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** तुम शिला बन अरुणाचल पर, मैं निर्झर बहता जल हूँ। तपते तव मौन-तप में, मेरा स्वर सागर-सा ढल हूँ॥ तुम वेदों के अग्नि-सूत्र हो, मैं हवि बन जलता धुआँ। प्रेम यज्ञ की ज्वाला में, दोनों एकाकार हुए आँ॥ तुम्हारी आँखों के तारों ने, नभ का मौन तोड़ा है। मेरी पृथ्वी की गोद में, उनकी ज्योति बिखरा दी है। तुम्हारे स्पर्श की लहरें, वसंत की पुष्प-वृष्टि लायीं। मेरे विरह के शरद में, पत्ते सूखकर राख बन गयीं॥ तुम वटवृक्ष, मैं उसकी छाया, जड़ों में गूँथा सन्नाटा। तुम नभ के गगन-गायक, मैं धरती का अधूरा गाथा॥ तुम सिन्धु हो, मैं तट बन बैठा, लहरों से गूँथे बंधन। बंधन में स्वतंत्रता का रस, यही प्रेम का महामंत्र॥ तुम मेरे नभ के चन्द्रमा, मैं तुम्हारी रात का सन्नाट। मिलन में अमावस्या बनी, विराट व्रत की यह बात॥ तुम्हारे हृदय की गुफा म...
दर्पण फूट गए
गीत

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहा है, श्रृद्धा का कोड़ा। मार ठोकरें हटा रहा है, पथ का हर रोड़ा।। हर धमनी में विष भरते जो, हो रिक्रूट गए।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आसमान खाली है
गीत

आसमान खाली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले-हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। मुँह छिपाकर रोती चाँदनी, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर -मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानि...
घाम पियास के दिन आगे
आंचलिक बोली, कविता

घाम पियास के दिन आगे

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) लकलक-लकलक घाम करत हे। घाम पियास म मनखे मरत हे। काटें काबर रुख-राई ल संगी, ताते-तात आज हवा चलत हे..!! बर पिपर के छईयाँ नंदागे । बिन छईयाँ के चिरई भगागे। आगी अँगरा कस भुइयाँ लागे, भोंमरा जरई म गोड़ भुंजागे.!! रुख राई के लगईया सिरागे। डारा पाना सबो हवा म उड़ागे। घाम पियास ले सबला बचइया, हरियर धरती घाम म सुखागे…!! जंगल झाड़ी रुख राई कटागे। तरिया डबरी के पानी अटागे। पसीना चुचवाय के दिन आगे, खोधरा छोड़ के चिरई भगागे। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
जीवन क्रीड़ा
कविता

जीवन क्रीड़ा

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सोच न बंदे गंदगी तु कर ले ईश्वर की बंदगी। यही तो जीवन की मर्यादा है तु खुद का ही भाग्य विधाता है। अजर अमरता को रहने दें जीवन को विभिन्न सुर में बहने दें। जीवन में जो भी आता है उसको उल्लास से आने दें। जीवन से जो भी जाता है उसको भी मुस्कुराते हुए जाने दें। मस्ती को अपनी हस्ती में रहने दें जीवन को सस्ती बस्ती में बहने दें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र
कविता

कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में भारत पाकिस्तान कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र। भाई, भाई का नहीं है प्यार, पडोसी बन गये रिश्तेदार,। नही शर्म नही कोई लाज, बैठ के खाये ये पकवान । भाई, भाई को नही जानते, रावण विभीषण बर्ताव जानते, शत्रु एक दिन करेगा राज, गुलामी की जंजीरे हाथ। आपस में प्यार मोहब्बत को लो, शत्रु को ना घर मे भर लो, नही तो लंका ध्वस्त हो जाएगी आज, ताल बजायेगा दुश्मन यार। बन्द मुट्ठी एकता का पाठ, खुल जाये तो पत्ता साफ, जीवन जियो सीना तान साथ, दुश्मन बैठा है दर पर आज। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जै...
मानवता के प्रहरी तुम हो
गीत

मानवता के प्रहरी तुम हो

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता के प्रहरी तुम हो, तीर्थंकर भगवान तुम। सत्य, धर्म के संरक्षक हो, न्याय, नीति का मान तुम।। गहन तिमिर तो हर्षाता अब, प्यार दिलों से गायब है। दौर कह रहा झूठा-कपटी, ही बनता अब नायब है।। करुणा को फिर से गहरा दो, महावीर तुम ताप हो। पावनता के उच्च शिखर हो, आप असीमित माप हो।। काम, क्रोध के प्रखर विजेता, अविवेकी को ज्ञान तुम। सत्य, धर्म के संरक्षक हो, न्याय, नीति का मान तुम।। इंद्रियविजेता, सत्यपथिक हो, दया-नेह के सागर हो। उच्च चेतना, नव विचार हो, मीठे जल की गागर हो।। भटक रहा है मानव उसको, तुम दिखला लो रास्ता। नहीं रखे जिससे मानव अब, अदम कार्य से वास्ता।। पाप कर्म के हंता हो तुम, युग को नवल विहान तुम। सत्य, धर्म के संरक्षक हो, न्याय, नीति का मान तुम।। महावीर हे! वर्धमान तुम, फिर से जगत जगा...
मैं पुरुष हूं
कविता

मैं पुरुष हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं पुरुष हूं मर्दानगी की सूली पर चढ़ा हूं कठोर हूं, निर्मम हूं ,निर्भय हूं इस तरह ही मैं गढ़ा गया हूं. मैं पुरुष हूं खारिज भी किया गया हूं कभी बेटा नालायक कभी पति नामर्द कभी पिता नाकाबिल बताया गया हूं. मैं पुरुष हूं मुझे यह भी बताया गया है : बस जिस्म तक सोचता हूं मैं हवस की दलदल में धंसा हवस का पुजारी कहा गया हूं. मैं पुरुष हूं दर्द से मेरा क्या रिश्ता मैं पत्थर हूं आंसुओं से मेरा क्या वास्ता मगर सच तो ये है कि मैं भी रूलाया गया हूं. जब भी किसी गलत को गलत कहता हूं अपने ही घर में जालिम करार दिया जाता हूं मैं पुरुष हूं, ऐसे ही दबा दिया जाता हूं. मैं पुरुष हूं, लेकिन~ मुझमें भी हैं परतें मुझमें भी पानी बहता है खोल सकोगे जो परतें मेरी तो देखोगे : मुझमें भी सैलाब रहता है....
खुद से रूठा बैठा हूं
कविता

खुद से रूठा बैठा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खुद ही खुद से रूठा बैठा हूं, जाने क्यों इस कदर ऐंठा हूं, जिंदगी में कभी निखर नहीं पाया, सौंपा गया कार्य कर नहीं पाया, सामान्य तालीम मिली थी तलवे चाटने वाली, इंसानों को इंसानों से बांटने वाली, खुराफाती सोहबत में रहकर भी, मानसिक गुलामी वाली परिस्थितियां सहकर भी, उगा था मन में एक कोमल फूल, उठा लूं मैं भी सामाजिकता का धूल, चल पड़ा था उस कठिन राह में, डूबकर रहना था समाज के पनाह में, यह राह जितना समझता था था नहीं उतना आसान, जनजागृति पर रखा पूरा ध्यान, लोग मिलते गए हृदय में समाते गए, अपने कार्य से मनमस्तिष्क में छाते गए, पर देख न पाया कइयों का दूसरा रूप, विद्रोह हो रहा था समाज से खामोशी से रह चुप, एक से एक नई खेप मिशनरियों के आ रहे थे, कुछ सच्चे चुपचाप लगे तो काम में तो कुछ धुर विरोधियों में गोद ...
खेली थी कभी होरी
कविता

खेली थी कभी होरी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम भी क्या याद रखोगी गोरी! खेली थी कभी होरी । खेली खूब है होरी सखी री! खेली खूब है होरी।। बजने लगा जब मृदंग मजीर, तुम घर में छुपी थी गोरी! पर मनवा न माने, प्रेम डोर खिचे ताने, आयी विवश हुई तू चकोरी! प्रिय से नजर मिलाते छुपाते भागी थी गलियों में गोरी! अंग अंग प्रस्वेद-प्रकम्पन, लज्जा ने मारी पिचकारी बन्द आंँख जब खोली तो देखी, थी भीगी चुनरिया सारी... खिसक गई तेरी सर से चुनरिया, भीग गयी तेरी चोली। खेली खूब है होरी सखी री, खेली खूब है होरी।। अंग-अंग में मस्ती छायी, नशा था चितवन का आंँखों से मारी पिचकारी, रंग था यौवन का भीगी पिया संग गोरी, मले गालों से गालों पे रोरी मन में प्रेम रस फूटा, मुस्कुराई, दिया गारी कैसे नखरे दिखाए, कैसे करे सीनाजोरी बोलो हे गोरी! बोलो हे गोरी! बोलो हे गोरी! खेली...
हमने ‌क्या सीखा
कविता

हमने ‌क्या सीखा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवि सिखाता ‌अनुशासन नदी सिखाती आगे बढ़ना पर्वत दे सीख‌ अडिगता की वृक्ष सिखाता है देना। सीख लता की, तन्वी कोमल सी ले संबल आगे बढ़ती कुछ देने को तना सहारे पत्ते हिलते प्राणवायु सबको देने को। मानव मानव को सभ्य बताते लड़ते-झगड़ते बढ़ते जाते प्रकृति मां की गोद में पलते पर उससे कुछ सीख भी पाते? चींटी पक्षी कीट पतंगे न लड़ते न द्वेष वो करते न लूट न पत्थरबाजी अपने दल में घूमा करते। मानव सीखें इनसे अनुशासन क्यों इतना आतंक‌ मचा है क्यों धरती विव्हल है क्यों धरणी रोती पल-पल है? कहां तहजीब और नफासत संस्कार वो लुप्त हुए हैं वो पौरुष के भाव कहां, किसी गुफा में सुप्त पड़ें हैं? प्रभु सृष्टि तुम्हारी है कुछ तो करना भयभीत हिरन सी व्याकुल है कुछ कोमल भाव स्नेह सने से यहां वहां बिखरा देना। परि...
मन का मैदान
कविता

मन का मैदान

शकुन्तला दुबे देवास (मध्य प्रदेश) ******************** मैदान तो मैदान होता है धरा का हो या मन का। मार लिया जिसने मनका मैदान। जीत लिया उसने सारा जहान। मन का मैदान नहीं औरसे चौरस वो तो निरा गोल है। कोना नहीं है कोई, ना कोई छोर। इसलिए नहीं पकड़ पाते मन की डोर। विचारों का अंधड़ कोई बीज बो जाता है वो मानस के पावस से हरा हो जाता है। तब मन का मैदान बनता है बगीचा। जैसे सुन्दर फूलों का गलीचा। किन्तु जब होती है ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट की अतिवृष्टि। दल-दल में बदल जाती समुची सृष्टि। मानस मैदान को कीच से बचाना है। मन को दोष रहित, विमल बनाना है। तो बोते रहिए बीज विश्वास के, गाते रहिए प्रेम के गान। अखिल सृष्टि खिल उठे, हरियाता रहे। मन का मैदान। परिचय :- शकुन्तला दुबे निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र। सम्प...
वो बंद कमरें
कविता

वो बंद कमरें

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** (१) जी हाँ! जेहन में आज भी जीवित हैं, वो बंद कमरें जहाँ दीवारों के कान, इंसानों के कानों से ज्यादा समर्थ हैं, सुनने में वो ख़ामोश आवाज, ह्रदय को विचलित कर देने वाला असहनीय शोर इन यादों को आज भी संजोये रखें हैं, वो बंद कमरें (२) परिस्थितियों को अपने अनुकूल मोड़ देने कि उम्मीद लिए, आज भी वो लड़के खूब लड़ते हैं, खुद से, इस समाज से अपने वर्तमान से अपने वर्तमान के लिए लेकिन इन हालातों को जब वो, कुछ पल संभाल न पाते हैं तो फिर इन लड़कों को, संभालते हैं, वो बंद कमरें (३) दरअसल मैं एक बात स्पष्ट कर दूं वो बंद कमरें, कोई साधारण कमरें नहीं हैं, वो इस जीवन कि प्रयोगशाला हैं जहाँ टूटने व बिखरने से लेकर सम्भलने व संवरने तक के अध्याय, इनमें समाहित हैं (४) मुझे संकोच नहीं हैं कहने में वो बंद कमरें भी एक, विश्वविद्यालय हैं...
जिद्दी व्यक्तित्व
कविता

जिद्दी व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम कितनी भी कोशिश करो बिखराने की हमें हम बिखर कर भी फिर से जुड़ जाएगे। तुम कितनी भी कोशिश करो जलाने की हमें हम जली राख़ से भी अपना मका बना लेंगे। तुम कितनी भी कोशिश करो राहों मे गिराने की हमें हम गिर कर भी फिर उठ चल पड़ेगे। तुम कितनी भी कोशिश करो हमें हराने की हम हार कर भी फिर अपना मुकाम जीत जाएंगे। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
हनुमत-वंदना
दोहा

हनुमत-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** संकटमोचन देव हैं, कहते हम हनुमान। असुर मारते, धर्म हित, जय हो दयानिधान।। सदा राममय ही रहें, पावन हैं हनुमान। जो उनके चरणों पड़े, उसकी रखते आन।। रुद्र अंश धारण किया, राम हितैषी तात। जय-जय हो हनुमान जी, देव सदा सौगात।। भूत-पिशाचों पर कहर, हर संकट पर मार। जहाँ रहें हनुमानजी, वहाँ पले उजियार।। वायु पुत्र शत्-शत् नमन्, विनती बारम्बार। करना मुझ पर तुम दया, करो मुझे भव पार।। लाल अंजना तुम सदा, रखना सिर पर हाथ। कैसी भी विपदा पड़े, नहीं छोड़ना साथ।। हनुमत तुम बलधाम हो, पावन और महान। सारा जग तुम पर करे, हे भगवन् अभिमान।। राम काज करके बने, रामदुलारे आप। वेग, शौर्य, प्रतिभा, समझ, कौन सकेगा माप।। कलियुग के तुम आसरे, परमबली वरदान। ला दो इस युग में सुखद, फिर से नया विहान।। "शरद" करे विनती सतत्, वंदन ...
जंगल हमर जिनगानी आय…
आंचलिक बोली, कविता

जंगल हमर जिनगानी आय…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) जंगल के महत्तम ल जम्मों झन जानत हव। फेर जंगल ल काटे बर लाहो काबर लेवत हव।। बेंदरा, भालू, हिरन के घर ल काबर उजारत हव। घर म गुस के, घर ले बाहिर काबर करत हव।। काकर बुध म आके तुमन जहर ल बाँटत हव। हरियर हरियर रुख राई ल काबर काटत हव।। जीव-जन्तु के पीरा तुमन काबर नइ सुनत हव। अपने मन के तुमन काबर मनमानी करत हव।। छानी म चड के तुमन काबर होरा भुंजत हव। जंगल काटे के उदिम तुमन काबर करत हव।। आवँव संगी मिल जुर के वनजीव ल बचाबोन। जिनगी के आधार जंगल के मान बड़हाबोन।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
प्यारे वचन बड़े अनमोल होते जगत में
कविता

प्यारे वचन बड़े अनमोल होते जगत में

सुनील कुमार "खुराना" नकुड़ सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वचन ही होते सबके जीवन का सार सबका प्यारे जीवन नदियां की धार प्यारे होते वचन बड़े अनमोल जगत में यहां हर पल लगता जग में दुनिया का मेला कोई आ रहा जग में कोई जा रहा जग से कुछ के गीत गाए ये दुनियां सारी बखत में वचन की खातिर मिट देश पर वीर शिवाजी कितने वीरों ने लगाई जान की अपनी बाजी नाम अमर गए वीर अपना अपने भारत में वचन से ही है ये प्यारी धरती और आसमान मिटा गए भीम अपने जीवन के सारे अरमान भीम की गूंज गूंजे आज इस सारे गगन में परिचय :-  सुनील कुमार "खुराना" निवासी : नकुड़ सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) भारत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
महावीर स्वामी
दोहा

महावीर स्वामी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** वर्धमान महावीर को, सौ-सौ बार प्रणाम। जैन धर्म का कर सृजन, रचे नवल आयाम।। तीर्थंकर भगवान ने, फैलाया आलोक। परे कर दिया विश्व से, पल में सारा शोक।। महावीर ने जीतकर, मन के सारे भाव। जीत इंद्रियाँ पा लिया, संयम का नव ताव।। कुंडग्राम का वह युवा, बना धर्म दिनमान। रीति-नीति को दे गया, वह इक चोखी आन।। वर्धमान साधक बने, और जगत का मान। जैनधर्म के ज्ञान से, किया मनुज-कल्याण।। पंच महाव्रत धारकर, दिया जगत को सार। करुणा, शुचिता भेंटकर, हमको सौंपा प्यार।। जैन धर्म तो दिव्य है, सिखा रहा सत्कर्म। धार अहिंसा हम रखें, कोमलता का मर्म।। तीर्थंकर चोखे सदा, धर्म प्रवर्तक संत। अपने युग से कर गए, अधम काम का अंत।। मातु त्रिशला धन्य हैं, दिया अनोखा लाल। जो करके ही गया, सच में बहुत कमाल।। आओ ! हम सत् मार्ग के, बने...
महाकुंभ महिमा
भजन

महाकुंभ महिमा

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** गंगा, जमुना और सरस्वती तीनों हैं इक साथ में तीनों नदियों का संगम है तीर्थ राज प्रयाग में १. उज्जवल श्यामल पानी मिलकर बहे निर्मल जल धारा कण-कण में है इसके अमृत, कितनों को है तारा ब्रह्मा, शिव का तेज समाया इस निर्मल जल धार में २. इस तीर्थ महिमा की गाथा वेदों ने है गायी यहाँ ऋषि और मुनियों ने हैं कितनी सिद्धियाँ पायीं ज्ञान मिले अध्यात्म जगे संगम के पुण्य प्रताप में ३. भारद्वाज मुनि का आश्रम यहाँ प्रभु राम जी आए थे माता सीता और लक्ष्मण संग में आशीष पाए थे प्रभु राम ने चरण पखारे इस निर्मल जल धार में ४. दरस परस कर महाकुंभ में पुण्य प्रताप जगा लो पावन इस जल की धारा में मन का मैल मिटा लो पाप कटे संताप मिटे इस पावन जल की धार में परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ ...
चक्रव्यूह
कविता

चक्रव्यूह

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जागृत है सारे सहोदर, दिमाग में भरा है पूरा गोबर, रहते रचते रात दिन वक्रव्यूह, बड़े शान से कह रहे उसे चक्रव्यूह, माना कि चक्रव्यूह भेदना सबके बस की बात नहीं, पर कैसे कहें कि रचने वाला खुद भी है पूरा सही सही, करना नवनिर्माण जायज है, पर विध्वंसक रचना नाजायज है, खुद का बनाया हथियार हो सकता है खुद के लिए घातक, असलहा धरे रह जाते हैं जब सामने आती दिमागी ताकत, दिमाग होता झुंड बराबर नहीं अकेली टूटती लकड़ी, अपने बनाये शानदार जाल में फंस मर जाती है एक दिन मकड़ी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
आयु अपनी शेष हो गई
कविता

आयु अपनी शेष हो गई

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आयु अपनी शेष हो गई पीड़ा की पहनाई में अब भी सपने सुलग रहे देखे जो तरुणाई में काजल सी काली अंधियारी यह रात ढलेगी संभव आशाएं मुस्काए पूरब की अरुणाई में चैता की वो विरह गीतिका कब तक सिसके कभी संदेशा आने का मिल जाए पुरवाई में इन सांसों की उलझन में क्यों जीवन उलझे हरियाए उपवन भी, कलियों की अंगड़ाई में क्यों ना पाए समझ, झुकी दृष्टि की लाचारी क्यों नहीं डूबकर देखा चुप्पी की गहराई में सहमे-सहमे गलियारे हैं दरकी-दरकी दीवारें पहले कैसी चहलपहल होती थी अंगनाई में जब स्वयं को भूल गए हम, अपने ही भीतर कितना बेगानापन लगे अपनी ही परछाई में मन की सारी व्यथा लिखी, इन गीतों छंदों में पूरे सफर की कथा लिखी पांव की बिवाई में परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फ...
संत्रास ही संत्रास है
गीत

संत्रास ही संत्रास है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** संत्रास ही संत्रास है, वक्ष पीटें हम खड़े। टूट कर बिखरा हृदय है, ठौर कोई अब कहाँ। अश्रु झरते हैं नयन से, मात्र मातम है यहाँ।। सूखे नातों के बल पर, किससे कौन अब लड़े। भाग्य को शनि-ग्रह लगा है, व्यथा कथा कौन कहे। शकुनि करें गुप्त मंत्रणा, पीर कितनी अब सहे।। भरा स्वार्थ से जग सारा, नयन लज्जा से गड़े। ग्रहण लगा है दिनकर को, कपटी उजाला छले। शक्ति आसुरी के कारण, पत्थर मोम बन गले।। व्याकुल प्यासे हैं चातक, मगर कितने खग अड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदे...
कलियुग में राम
कविता

कलियुग में राम

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** धनुष बाण कर उर में धारे, धरती से प्रभु भार उतारे, विप्र धेनु सुर संत के हित, अवतारे श्री राम, निशाचर हीन प्रभु करि भूमि को, यज्ञ के रखवाले श्रीराम धनुषबाण पर चाप चढ़ाते, दुष्टो को प्रभु मार गिराते, यज्ञ की रक्षा करते राम। कलियुग में प्रभु हे आजावो, अति दुष्ट आत-ताई जग में, नारी असुरक्षित, संत प्रताड़ित, धर्म गर्त में हे प्रभु आज, धनुषबाण कर उर मे धारो। सनातनियो को शक्ति दो प्रभु, राम-कृष्ण सी भक्ति दो प्रभु, धरती भी करती है पुकार, धनुषबाण ले आओ राम, दुष्टो को संहारो राम। विधर्मीयो को मार गिराओ राम। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जब...
अकेला हूँ मैं
कविता

अकेला हूँ मैं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सासों का सिलसिला हूँ मैं माया के झन्झावातो मे आवा जाही मे साजो की माटी का पुतला हूँ मैं। पल-पल आथात होता दिल पर पल-पल मे पलक पर अश्रु बटौरता हूँ मैं कहने को कांरवा है कहाँ तक साथ चले। पत्ते उलचती पगडन्डी पर अकेला हूँ मैं। पल मे पीछे पथिक था जाने कहां खो गया उस साथी के वियोग मे अकेला हूँ मैं रवि, चन्द्र भी साथ नही चलते इसी तरह विधी के बन्धन मे बन्धा हूँ मैं अकेला हूँ मैं, अकेला हूँ मैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ ...