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गद्य

पुस्तकों का जीवन में महत्व
आलेख

पुस्तकों का जीवन में महत्व

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहता है, जिसमें रहने के लिए बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्य का समाज में सामाजिक और मानसिक विकास भी होता है। पुराने मंदिर और इतिहास की चीजें नष्ट हो जाती है, लेकिन किताबों में सब कुछ सुरक्षित रहता है, जिसके द्वारा हम इतिहास के विषय में जान सकते हैं। अगर पुस्तक ना हो तो हम बहुत सी बातें हैं बातों से अनजान रह जाएंगे। जिस प्रकार तन को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता होती है। जीवन की वास्विकता का अनुभव करने के लिए पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुस्तकें ही हमारे ज्ञानकोष का भंडार है। पुस्तक इंसान की सबसे अच्छी मित्र है, हमेशा पास रहती है, वह बिना बोले ही सब कुछ कह जाती हैं। पुस्तक...
माँ बहन या बेटी
संस्मरण

माँ बहन या बेटी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** विगत दिनों आभासी दुनिया से जुड़ी मुंहबोली बहन की जिद पर पहली बार उसके निर्माणाधीन मकान पर जाना हुआ। जहां उसके चेहरे पर सचमुच की छोटी बहन जैसी खुशी देख मन गदगद हो गया। क्योंकि वह पहले ही बेटे और मजदूरों से इस बात की चर्चा कर चुकी थी कि बड़े भैया आ रहे हैं। वापसी की बात पर और वो जिद कर घर चलने का अनुरोध करने लगी, मना करने पर उसकी आंखों में आसूं भर आये, शायद ये भी सोचती रही होगी कि उसका अपना भाई भी क्या यूं ही मना कर देता? उसकी भावुकता ने मुझे हिला दिया और उसकी भावनाओं को सम्मान देते हुए मैंने स्वीकृत क्या दिया, वो कितनी खुश हो गई, ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन मुझे भी संतोष तो हुआ ही कि मेरे किसी कदम ने एक शख्स को खुश होने का अवसर तो दिया। वहां से निकलते हुए ही काफी विलंब हो चुका था। विद्यालय और मकान की व...
माँ की पीड़ा
स्मृति

माँ की पीड़ा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  पिछले दिनों अपने एक साहित्यिक मित्र की बीमार माँ को देखने जाना पड़ा। विगत हफ्ते से उनकी सेहत में सुधार नहीं हो रहा था। लिहाजा जाने का फैसला कर लिया। एक दिन पूर्व ही अपने एक अन्य कवि मित्र को अपने आने की सूचना दी और उसी शहर में अपनी मुँह बोली बहन को भी अपने आने के बारे में अवगत कराया, तो उसने भी मेरे साथ चलने की बात कही। स्वीकृत देने के अलावा कोई और और रास्ता न था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन कवि मित्र सूचनानुसार निर्धारित स्थान पर मिले। हम दोनों लोग पास में ही बहन के घर गए। हालचाल का आदान प्रदान हुआ। बहन के आग्रह का सम्मान करना ही था। अतः चाय पीकर हम सब अस्पताल जा पहुंचे। हमारे साथ बहन का बेटा भी था। हम चारों को मित्र महोदय बाहर आकर मिले और हम सब उनके आई सी यू में माँ के पास जा पहुंचे। वहां...
क्षमा- एक दिव्य गुण
आलेख

क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी 'सरस' अबोहर फाजिल्का (पंजाब) ******************** एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...
कन्या
लघुकथा

कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई। उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, "आंटी, कन्या खिलाएंगी?" सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, "देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!" लड़की फिर से बोली, "आंटी कुछ खिला दो।" नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, "मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।" सलिला बेटी को डांटकर...
देशदीपक
लघुकथा

देशदीपक

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नवविवाहिता नवोढ़ा पत्नी के साथ मधुमास बहुत जल्दी व्यतीत हो गया। बहुत शीघ्र वापस आंऊगा बोल कर, मनोज जाने की तैयारियां करने लगा। दबी आवाज में बस इतना ही कह पाई थी अंजु जल्दी आइयेगा। अब आप आयेंगे तो आपको मेरी और से बहुत अनुपम भेंट मिलेगी। वह पत्नी को प्यार कर, माता-पिता का आशीर्वाद लेकर चल दिया। इकलौता बेटा था, माता पिता का मन भर आया। अभी तो ब्याह हुआ हैं, बहू के साथ और कुछ दिन रहता। सीमा पर शत्रु का आक्रमण हो जाये, पता नहीं। इसी वजह से मनोज को तुरंत बुलावा आया था। अनहोनी होनी थी हो गई। मनोज फिर नहीं आया। अंजु बेटे को जतन से बड़ा कर रही थी। अपने सास-ससुर के साथ रह वह बेटे को पढ़ा लिखा रही थी। बचपन से बेटे के मन में बैठा दिया की देश सेवा के लिए ही तुम्हें जाना है, और उसी की शिक्षा लेनी है। लोग कहते कि आजकल त...
बूढ़ी अम्मा
लघुकथा

बूढ़ी अम्मा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  शीतला सप्तमी होने से सास बहू नहा धोकर रात में ही रसोई में जुट जाती हैं। पूड़ी सब्ज़ी, दही बड़े, गुलगुले आदि भोग के लिए अलग रख दिए हैं। नौकरी पेशा बहू भलीभांति सासू माँ के आदेशों का पालन करती है। पिछली बार चुन्नू को चेचक के प्रकोप से देवी माँ ने ही बचाया, ऐसा माजी का कहना है। बहू पूजा की थाल सजाकर तैयारियाँ कर लेती है ताकी बच्चे भी प्रसाद लेकर स्कूल जा सके। आदतानुसार सासू माँ याद दिलाना नहीं भूलती हैं, "चना दाल भिगोना व दही ज़माना मत भूल जाना। दीया ठंडा ही रखना है। याद है चिकित्सक भी चेचक होने पर कमरा ठंडा रखने को कहते हैं। और हम माता जी के आने पर दरवाजे पर नीम की पत्तियां लटकाते हैं।" "हाँ माँ ! आप हर साल दुहराती हैं, अब मैं पक्की हो गई हूँ।" बहू आश्वस्त करती है। सुबह सवेरे बहू लाल चूनर ओढे, पूजा की थाल लिए तैयार खड़ी है। सासू माँ ब...
होलिका और भक्त प्रहलाद
आलेख

होलिका और भक्त प्रहलाद

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** राक्षस राज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु प्रहलाद के जन्म से बहुत खुश थे। परन्तु प्रहलाद की भक्ति देख हिरण्यकश्यप बहुत परेशान रहने लगा। भक्त पहलाद के जन्म लेते ही वह भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा और जब यह बात उसके पिता राक्षस राज हिरणयकश्यप को पता लगी। तो उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया। कि वह भगवान विष्णु की भक्ति करना छोड़ दें, क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। और बदले की भावना में जलता रहता था।क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना करना नहीं छोड़ा। अंततः हिरण्यकश्यप ने हार मान कर भक्त पहलाद को मारने का निश्चय कर लिया। और उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली।ज्ञहिरणयकश्यप की बहन होलिका एक दुष्...
पापा
लघुकथा

पापा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "पापा ! आपको हो क्या गया है? देखिये, शर्ट आधी पेन्ट के अन्दर है, आधी बाहर। और बालों में कंघी क्यों नहीं की?" एक क्षण मुझे लगा बेटे तुषार के स्थान पर मैं खड़ा हूँ और मेरे स्थान पर मेरे पापा। मैं अपने पापा को अगाह कर रहा हूँ कि शर्ट ठीक ढंग से खोसी नहीं गई है। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे अनजाने में धीरे-धीरे पापा बनता जा रहा हूँ। लोगों को प्रभावित करने वाली बोली धीमी पड़ गई।पापा के समान टोका-टोकी की आदत बदल गई। ढेरों कपड़े अभी भी हैं पर चार कपड़ों से ही काम चला रहा हूँ। पुनः अपनी सोच से बाहर आकर अपनी शर्ट पूरी तरह पेन्ट में डाल, बालों में कंघी करके सब्जी का थैला कंधे पर डाल पापा के समान धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर निकल गया। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी :...
अनपढ़ चम्ची
लघुकथा

अनपढ़ चम्ची

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक गरीब परिवार था जिसमें चार बहनें और चार भाई थे। जिस कारण केवल लड़कों को ही स्कूल भेजा गया, लड़कियों को नहीं। लड़के सुबह स्कूल जाते थे और लड़कियां पशुओं को लेकर जंगल में चराने जाती थी। धीरे-धीरे सभी लड़कों ने इंटरमीडिएट की परिक्षाएं पास कर ली। सभी लड़कों की शादी करा दी गई। कुछ दिन बाद चारो लड़कियों में से सबसे बड़ी लड़की चम्ची का विवाह रसोईपुर में रहने वाले युवक चम्चे से करा दिया गया। चम्चे के पास एक बड़ा घर तथा अच्छी जमीन जायदाद थी। चम्ची के चार-पांच साल तो बहुत ख़ुशी-ख़ुशी गुज़रे परन्तु चम्चा अब शराब पीने लगा था। उसने धीरे-धीरे घर की सारी जमीन बेच दी। चम्ची ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया जिनमें एक लडका और एक लड़की थी। बच्चे भी बड़े हो रहे थे। दोनों बच्चे दस साल के हो चुके थे। वह इतनी शराब पीने लगा था कि कुछ ही दिनों में शर...
बिजी लोग
लघुकथा

बिजी लोग

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** आज छुट्टी थी, ऑफिस की और मैं फ्री था। बहुत दिनों से फेसबुक और मैसेंजर नहीं देख पाया था, दोपहर के खाने के बाद सब पोस्ट देख लूँगा टाइम निकालकर, दोपहर में नींद की झपकी लेना कैंसिल। पत्नी भी पहले तो दोपहर घर के काम काज से फ्री होकर होकर पास-पड़ोस में महिलाओं के घर चली जाती थी बतियाने। लेकिन अब वो भी दोपहर में मोबाइल लेकर बैठ जाती है, टाइम पास कर लेती है, इधर-उधर मोहल्ले की औरतों से तो मोबाइल ही भला, बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब दोनों दोपहर में साथ होते हैं। ज्यादातर तो छुट्टी के दिन भी वो ऑफिस निकल जाता है। लंच वगैरह से फ्री होकर उसने मोबाइल उठाया तो महिला मित्र की हॉट पिक सामने आ गई, यह महिला मित्र हमेशा ही अपने पिक डालती रहती थी, और उसने "वेरी नाइस" "सुपर" गिफ्ट कमेंट भेज दिया, फिर उसके बाद दूसरी पोस्ट को भी देखने लगा ज्यादातर...
पंचम आरा और कलयुग
आलेख, धार्मिक

पंचम आरा और कलयुग

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** २१००० हजार वर्ष का यह पंचम आरा है उसमें से विक्रम संवत २०२६ वर्ष पूरें हो चुके है। २१०००-२०२६=१८०७४ वर्ष बचें है, पांचवा आरा पूरा होनें में। इस पंचम आरें को कलयुग कहा है। इस युग में जीने की इच्छा से देवता भी धरती पर आना चाहतें है पर जन्म नही ले सकते क्योंकि "कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरे तारा" अगर प्रभु का स्मरण भाव से व केवल नाम का रटन मात्र से इन्सान भव तिर जायेगें। मगर मन इन्सान के पास नही होगा सो देवता धरती पर आकर क्या करेंगें। साल बितते वक्त नही लगता। समय जैसे पंख लगाकर बैठा है, पलक छपकतें ही बीतता जा रहा है और हमारी मात्र १०० वर्ष की आयु कहाँ बीत जाती है इन्सानों को पता भी नही चलता। ८४ लाख अवतारों में जन्म लेने के बाद ऐसा दुर्लभ मानव भव हमें भाग्य से मिलता है, और अगर इस भव में आकर मानव होने का महत्व नही समझ...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी बातों को ...
ताड़न की अधिकारी
लघुकथा

ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी। तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। "अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।" आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई। बोलो क्या बात है? "तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस! क्या है यह महिला दिवस ! तुम औरतें भी ना ! पता नहीं कौन सा फितूर सवार है ! घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने। तुलसीदास जी ने सही कहा है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सब ताड़न के अधिकारी।। यह सुनते ही...
शालू
कहानी

शालू

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शालू गुमसुम बैठी थी। मन में कई प्रकार के गुब्बारे उड़ रहे थे। सभी स्वछंद होकर बिना रोक-टोक के उड़ना चाह रहे थे। पढ़ाई जहां इंसान की बुध्दि का विकास करती हैं, वहीं नियम कायदे और अनुशासन किसी हद तक बांधने की कोशिश करते हैं। घर में ममा जहां बुद्धिजीवियों में श्रेष्ठ थी वहीं पापा चार क़दम आगे थे। सदा व्यस्त रहना पसंद करते थे। दोस्तों के साथ चौबीस घंटे गप लगाने को मिल जाए तो भी तैयार रहते थे। बातों में सारी दुनिया सिमट जाती थी। वैसे भी हमारे घर में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता था। दादी कहती "आजकल समाज का रवैया अजीब हो गया है। इसलिए चाल चलन, रहन सहन, बाल कटाने वाली तथा जींस का पहराव कतई नहीं होना चाहिए। ममा, पापा तो कभी लीक से जुड़कर चलते तो कभी लीक से हटकर चलते। मैं तो घबरा जाती हूं। जब मेरा रिंकू के साथ घूमना, उसके घर ...
काली चामुण्डा और पॉंच भूत
कहानी

काली चामुण्डा और पॉंच भूत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पिछले दिनों की बात है। जब चाचा का धौलाने से फोन आया कि तुम्हारी चाची पिछले कुछ दिनों से बीमार है। मैंने यहां और आस पास के सभी डॉक्टरों को दिखा लिया परन्तु कोई आराम नहीं हो रहा है। मैंने पूछा, "डॉक्टरों ने क्या तकलीफ़ बताई है?" वह बोलें डॉक्टरों के कोई बिमारी समझ ही नहीं आ रही है। वो तो केवल दवा देकर ये कह देते हैं कि शायद इस दवा से आराम हो जाए। कल गाजियाबाद एक बडे अस्पताल में दिखा कर लगाऊंगा। मैंने कहा कि डॉक्टर को सारी तकलीफ अच्छे से बता देना ताकि वो अच्छी दवा दे सके। चाचा बोले कि बता तो दूंगा परन्तु कुछ बातें तो ऐसी है, जिन्हें बताने में ऐसा लगता है कि कहीं डॉक्टर सुनकर हंसी ना बनाएं। मैंने कहा, "हंसी क्यू बनाएंगे?" चाचा बोले कि रात के समय इसे सांस लेने में परेशानी होती है। यहां तक तो ठीक है परन्तु इसी के साथ ही ये अपने ही गले...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी मजबूरी है ब...
तीन परियाँ
स्मृति

तीन परियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बालसुलभ रुचियों का भी एक अनोखा संसार है। कोई खिलौनों व मित्रों के साथ गपशप में मस्त रहते हैं तो किसी को गुड़ियों को सजाने में मजा आता है। परंतु मेरे अनमोल खिलौने थे परियों सी खिलखिलाती नन्हीं मुन्नी बच्चियाँ। बस मुझे ये कहीं भी मिल जाती पड़ोस या रिश्तेदारों में, उन्हें बहलाना व उनका ध्यान रखना मेरी दिनचर्या बन जाती थी। विवाहोपरांत मेरा सपना था कि मेरी प्रथम सन्तान बेटी ही हो। माँ बनने के अहसास से ही मैं आश्वस्त थी कि एक नाज़ुक सी कली ही मेरी बगिया में महकने वाली है। दिनरात सुंदर परियों के चित्रों से घिरी रहती और उन्हीं के सपने देखती थी। उसी दौरान मेरी मौसेरी बहन को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। और मुझे मिल गई मेरी परी। घर के बुजुर्गों की प्रतिक्रिया थी, "ये कैसा ईश्वर का न्याय? दोनों बहनें साथ साथ पली बढ़ी, एक को बेटा व दूसरी को बेटी क्यू...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
सपनों का संसार
कहानी

सपनों का संसार

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** जीना और मरना, ये जीवन के दो पहलू हैं। इस संसार में जिसने जन्म लिया है, उसे मरना तो है ही, यह तो जगत विदित है। जीना और मरना यह तो ईश्वर के हाथों में है, ना तो मेरे हाथों में है, और ना दूसरे के हाथों में, किंतु माध्यम मैं भी बन सकता हूं, और कोई दूसरा भी। पर यह थोड़ी है, कि हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी प्राणी को पीड़ा पहुंचाएं, यह तो न्याय संगत नहीं है। यह तो आपके ऊपर है, कि आप किस प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं। अपने सपनों का संसार या इस कहानी के जैसे- यह कहानी ऐसे किसान की है, जो अपनी जिंदगी से हार मान चुका है, और आगे जीना नही चाहता है। मानों की संसार के सारे दुख इसी को प्राप्त हुए हो, इस कारण से वह अपने बच्चे को जन्म लेने से पहले ही मार देना चाहता है। पर उसे क्या पता जो भाग्य में लिख...
जानवर जाने जानवर की भाषा
लघुकथा

जानवर जाने जानवर की भाषा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक अजीब सा चिड़ियाघर था जो किसी शहर में न होकर एक गॉंव के जंगल में स्थित था। इस चिड़ियाघर में अन्य जानवरों के साथ गीदड़ो को भी रखा गया था जो देखने में बहुत खूॅंखार थे। उनके दॉंत डरवाने लगते थे और उनके दॉंतो में लम्बे-लम्बे दॉंत जिन्हें कीलें कहा जाता है, उनके खूॅंखार होने का प्रमाण देते थे। हमारे गॉंव के लोगों के खेत भी उसी चिड़ियाघर के आस-पास ही स्थित थे। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ अपने खेत पर गया हुआ था और हम अपने खेत पर आम के पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रहे थे। तभी अचानक उस चिड़ियाघर से एक गीदड़ का बच्चा निकल कर हमारे पास आ गया। मैं उसे पकड़कर वापस चिड़ियाघर की तरफ ले जाने का प्रयास कर रहा था और इसी पकड़म पकड़ाई में उसका एक दॉंत मेरी उंगली में लग गया लेकिन मैं उसके दॉंत लगने के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुआ क्योंकि ...
सच्चा भक्त
लघुकथा

सच्चा भक्त

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग-अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं। मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन मे...
बदलाव
लघुकथा

बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया। "आज कैसे फुर्सत मिल गई?" शम्भू ने कहा- "कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।" "बोलो क्या बात है?" "आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।' उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए। बहु अनामिका सोचने लगी- "पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!" इतने में काशीनाथ जी घर आ गए। "शम्भू कहा है?" "ऑफिस गए है" बहू ने कमरे से जवाब दिया। शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- "...
हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व
आलेख

हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मानव जीवन पुरी तरह से संस्कृति पर आधारित होता है। बिना सस्कृति के जीवन निर्वाह सम्भव नही है। संस्कृति हमारी और अपने देश की पहचान होती है। वैसे तो हर देश की हर प्रांत की अपनी अलग-अलग संस्कृति होती है। और सभी को अपनी संस्कृति से बेहद प्यार भी होता है। और इसी संस्कृति से ही मानव, समाज, देश उन्नति-प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो पाता है। और इसी से ही वह अपनी परम्पराएँ रीति-रिवाज, धर्म-आस्था-विस्वास, सामाजिक-एकता, खान-पान, रहन-सहन को अक्षुण बना पाता है। और इस प्रकार से वह अपनी संस्कृति का पोषण कर पाता है। और वह पुष्पित पल्लवित हो पाता है। आने वाली नई पीढ़ी के लिए वह मार्गदर्शन का काम करती है। और उसी मार्ग पर चल कर वह अपने आप को एक सुसभ्य इंसान बनाने में सफल हो पाता है। एक तरह से यह संस्कृति हमारी थाती है। हमारा धरोहर है। हमारी पूंजी है। हम...