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गद्य

जीना इसी का नाम है
आलेख

जीना इसी का नाम है

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** (भाव-पल्लवन) ज़िन्दगी बड़ी ख़ूबसूरत है, हर पल को खुशी से जियो! जाने आनेवाला कल कैसा होगा? उसकी चिंता में इस पल को बेकार न करो! जिंदगी को खूबसूरत बनाना है कैसे? इस पर विचार करो ! हर समस्याओं का समाधान तुम्हारे पास है, माना कि आज के दौर में रहन-सहन, खान-पान बदला है, ऐसे में अपने आप को समाज में स्थापित करना चुनौती का सामना करने जैसा है और इन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं तो निराशा, उदासी, आदि से घिरे हुए होते हैं, क्षण-प्रतिक्षण मस्तिष्क में अनेकों सवाल लहरों की भांँति आते- जाते रहते हैं, अशांत मन बेचैन रहता है, जब कोई तूफान आनेवाला होता है तो सागर शांत हो जाता है, ऐसे क्षण में व्यक्ति को एकांत में आत्म-चिंतन मनन, ध्यान अवश्य करना चाहिए। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आय का स्रोत नहीं है, लेकिन उनके प...
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक
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भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष २६ जनवरी को ७४वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। १५ अगस्त सन् १९४७ को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं। संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। २ वर्ष...
विदिशा का जन्मदिन
लघुकथा

विदिशा का जन्मदिन

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** विदिशा आज बहुत खुश थी। उसका चौथा जन्मदिन जो था। शाम को उसके दोस्त घर पर आने वाले थे। मां आकांक्षा ने मटर पनीर, पराठे, पकौड़े और खीर की तैयारी कर ली थी। वह अपनी ही दुनिया में मस्त थी। तभी उसके पापा आशीष ने आवाज़ लगाई, बिटिया रानी नहा-धोकर तैयार हो जाओ। पहले मंदिर फिर बाजार चलेंगे। विदिशा ने शीघ्र ही तैयार होकर हर वर्ष की तरह दादा-दादी के पांव छुए। फिर खुशी से उछलते हुए पापा-मम्मी के साथ चली गई। खरीदारी हो जाने के बाद वे केक और चॉकलेट की दुकान पर पहुंचे। विदिशा की पसंदीदा चॉकलेट की तरफ इशारा करते हुए आशीष ने दुकानदार से उसे पैक करने के लिए कहा पर, नहीं अंकल, उसे नहीं पैक करना सुनकर आकांक्षा चौंक गई और विदिशा से कहा, पर बेटा वह तुम्हारी फेवरिट चॉकलेट है पिछली बार भी तुमने अपने दोस्तों को वही चॉकलेट दी थी। पर इस बार नहीं ...
संवेदना
सत्यकथा

संवेदना

उमेश्वरी साहू धमतरी (छतीसगढ़) ********************  आज से लगभग तीन महीने पहले रेलवे स्टेशन में बड़ी ही विचित्र घटना घटी। यह घटना मुझे आज भी झकझोर देती हैं। यह उस समय की बात है जब मैं अपने पति के साथ शिर्डी घूमने जा रही थी। लगभग ४:०० बजे हम लोग रेलवे स्टेशन पहुंचे। उसके बाद मेरे पति ने मुझे गेट पर ही छोड़कर गाड़ी पार्किंग करने के लिए चले गए। मैं वही किनारे पर खड़ी होकर उनका इंतजार करने लगी। ठीक उसी समय एक बीमार अपाहिज आदमी एकदम गन्दे, मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए लगभग ४-५ साल की बच्ची के साथ सामने से आता हुए दिखाई दिया। बच्ची बहुत रो रही थी जिसके कारण मेरा ध्यान बरबस उसके तरफ चला गया। इतने में वह आदमी अपनी बच्ची को चुप कराने की कोशिश करने लगा फिर उसने बच्ची से कुछ पूछा। मैं दूर खड़ी थी इसलिए मुझे कूछ भी सुनाई नही दिया की उस बच्ची ने क्या कहा? पर ऐसे लगा जैसे बच्ची को बहुत भूख लग रही ...
प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण
आलेख

प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** जीत तू जरूर छू ऊंचाइयों को, कर मेहनत जरूर, सपने कर पूरे बस तू , कर मेहनत आज के आधुनिक दौर में आगे निकलने की दौड़ में सभी अपना वजूद ही खोते जा रहे हैं ।जो है उनके पास स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं ।माता-पिता प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने बच्चे को ही प्रथम लाना चाहते हैं। अच्छी बात है, पर दूसरों के साथ तुलना करके क्यों? सभी बच्चों में कौशल होता। हालांकि ये अलग बात है कि प्रतिभा अलग-अलग है। जैसे कोई चित्रकारी में, कोई नृत्य में, कोई गाने में, कोई पढ़ने में, कोई खेल में, कोई अपने घर के कार्यों में, पर अभिभावक चाहते हैं की हमारा बच्चा ही हर काम में प्रथम आए। हमें सिर्फ अपने बच्चे की प्रतिभा को देखना है। वह किस क्षेत्र में अच्छा है, उसकी प्रशंसा करना, ना की उस पर इतना दबाव बनाना की वह अवसाद में चला जाए। आज के दौर की सबसे बड़ी...
कर्तव्यबोध
लघुकथा

कर्तव्यबोध

माधवी तारे लंदन ******************** दरवाजे की बेल बजी– “आंटीजी दरवाजा खोलो मैं आई हूं” ये कामवाली की आवाज थी. द्वार खोलते ही मैंने उससे कहा – “अरे... तुम्हारे पति शांत हो गए हैं न ... तुमने अपनी जगह दूसरी बाई दी थी। वो दो दिन से अच्छी तरह से काम कर रही है फिर तुम आज कैसे?” “आंटीजी माफ करना, काहे का पति, और काहे का बच्चे का पिता... आज २५ साल पहले बिना कहे वो मुझे और मेरे चार साढे चार साल के बेटे को बेसहारा छोड़ कर गया था... हमें नहीं मालूम, तब से आज तक उसने ये तक न पूछा कि हम जिंदा हैं कि मर गए... अपने कर्तव्य से मुंह फेर कर गुलछर्रे उड़ा रहा था... पर कर्म ने किसे छोड़ा है क्या ! २५-२७ साल तक न उन्हें हमारी याद आई न अपने परिवार की.... पर अबकी बार बीमार हो कर अपनी बहन के घर आ गया।” ननंद जी को मैंने कहा कि “आपने मुझे क्यों बताई ये बात... जबसे गया तभी से मैंने बेटा बड़ा किया, उसकी प...
भारतीय परिधान साड़ी
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भारतीय परिधान साड़ी

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** आज साड़ी दिवस पर आप सभी के समक्ष अपने विचार रखना चाहूंगी। साड़ी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। साड़ी ही एक ऐसा परिधान है, जो देश विदेशों में भी सम्मानित रूप से देखा जाता है और इसी आदर के साथ धारण करना हर भारतीय के लिए गर्व की बात है, इस विशेष परिधान को हमारे राजा-महाराजाओं के जमाने से भी पूर्व से स्त्रियां सम्मान पूर्वक धारक कर रही है। "ऐसा नहीं है कि, किसी परिधान में कोई खराबी है या कोई परिधान छोटा या बड़ा है, परंतु साड़ी की विशेषता (बात) ही अलग है! अलग-अलग प्रांत में साड़ी को अलग-अलग तरीके से पहना जाता है परंतु फिर भी साड़ी हमेशा ट्रेंडी बनी रहती है इसे आजकल नव युवतियां, और भी क्रिएटिव तरीके से पहनती हैं कभी ब्लाउज के साथ कभी शर्ट के साथ तो कभी कुर्ती के साथ और तो और आजकल स्कर्ट के साथ भी साड़ी को देखा जा सक...
सुरक्षा कवच
लघुकथा

सुरक्षा कवच

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** अरे ! अरे ! मैं तुझे कुछ नहीं कहूंगी। बाहर आओ ! बाहर आओ ! देखो मेरे बच्चे भी खेल रहे हैं। हम सब मिलकर खेलेंगे । बहुत मज़ा आ रहा है।आ जाओ तुम भी। नहीं-नहीं चिंटू मत जाना मम्मा ने मना किया है कि बिल से बाहर जाते ही खतरा ही खतरा है, और यह बिल्ली तुझे खा जाएगी चिंटू। बहन ने उसे समझाते हुए कहा पर यह तो खेलने के लिए बुला रही है। तभी तो मैं कह रही हूं बाहर नहीं जाना नहीं तो मैं मां को बताऊगीं। लेकिन चिंटू बार-बार बाहर जाने की जिद कर रहा था। इतनी देर में ही चूहिया बाहर से आ जाती है। जिनको आते ही बच्चे सारी बातें बता देते हैं। कैसे बिल्ली हमें बाहर बुला रही थी। चूहिया ने तीनों को समझाते हुए कहा, यह बिल ही तुम्हारा सुरक्षा कवच है। जैसे ही बिल से बाहर निकले जिंदा नहीं बचोगे। इसलिए जब भी मैं खाना लेने बाहर जाऊं तुम अंदर ही रहना। पर मां...
सूर्य का संदेश
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सूर्य का संदेश

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** संक्रान्ति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य का बल ही इस दिन को पर्व बना देता है। भौतिकवैज्ञानिकों ने सूर्य के भौतिक स्वरूप को प्रतिपादित किया है, धर्मप्रवर्तकों ने उसको सूर्यदेव कहकर पुकारा। इनके अतिरिक्त सूर्य के दर्शन होने पर एक प्रकार की नैतिक एवं आध्यात्मिक अनुभूति भी होती है। प्रतीत होता है मानो सूर्य हम मानवों को कुछ संदेश देना चाहता है। संक्रान्ति के पावन पर्व पर सूर्य का यह संदेश सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचे, इस लेख का आशय यही है। सूर्य प्रबलतम् एवं बलवान है किंतु अहंकारहीन एवं विनम्र। अहंकार संस्कारहीनता है, विनम्रता मानवधर्म, जीवनधर्म है। जितना बलवान उतना ही विनम्र, जितना समर्थ उतना ही सम्यक् दृष्टि युक्त। हमें सूर्य से शिक्षा लेनी चाहिए- सर्वशक्तिमान किंतु विनम्र, बलवान किंतु संस्कारयुक्त, निष्ठा...
इस संक्रांति
लघुकथा

इस संक्रांति

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात वर्ष गुज़र गए बेटे पलाश को लंदन गए। वहाँ ब्याह भी कर लिया। पार्थ व जुही भी आ गए। गनीमत की बीबी मायरा भारत से ही थी। शेखर आवाज़ लगाते हैं, "अरे शारदा ! कब तक तिल गुड़ के लड्डू बना-बना कर बेटे बहू को भेजती रहोगी। क्या पता वो लोग खाते भी हैं या नहीं?" शारदा सजल हो बुदबुदाती है, "क्या करूँ? मन मानता ही नहीं। लेकिन इस बार बच्चे कहेंगे तभी भेजूँगी।" उधर पार्थ व जुही बड़ी बेसब्री से दादी के तिल गुड़ के लड्डू का इंतजार करते हैं, "पापा ! दादी कहीं बीमार तो नहीं हो गई।" शेखर सोचने को मजबूर हो जाता है। ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए माँ पापा कितने पीछे छूट गए। वह ख़ुद अपने बच्चों के बगैर एक दिन भी नहीं रह सकता है। फ़िर बेचारे माँ पापा... कैसे रह रहे होंगे अकेले ? तभी पार्थ, दादी की चिट्ठी लाता है। पूरे पन्ने पर पड़े आँसुओं के दाग माँ का दर्द ब...
रक्तदान
लघुकथा

रक्तदान

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ******************** कॉलेज के कैंपस में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था। उसमें श्रेयस ने भी अपनी स्वेच्छा से रक्तदान किया। उसके दस साल बाद एक सड़क दुर्घटना में श्रेयस का अ‍ॅक्सीडेंट हो गया। गहरी चोट लगने से बहुत रक्त स्त्राव हो गया था। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। उसकी हालत देखकर 'उसे रक्त देना पड़ेगा। जल्दी से रक्त का प्रबंध करो।' ऐसा डॉक्टर ने कहा। रक्त देने के लिए माता-पिता और कई रिश्तेदार तैयार हो गए पर श्रेयस की दीदी ने उसका रक्तदान का प्रमाणपत्र रक्तपेढ़ी में दिखाया और जल्द ही रक्त का प्रबंध हो गया। दूसरे दिन श्रेयस जब होश में आया तब उसकी दीदी ने कहा- "भैया, तेरे रक्तदान ने आज तुझे ही जीवन दान मिला है।" हास्य करते हुए श्रेयस ने कहा- "मुझे कहां मालूम था कि, आगे चलकर मुझे ही जीवनदान मिलने वाला है। पर, आज मैं यह समझ गया हूं...
मृत्यु की रात
लघुकथा

मृत्यु की रात

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** घर में निर्मला की मम्मी उसका भाई राजू छोटी बहन पिंकी घर में थे। पिता भोपाल से बाहर अपनी छोटी बहन की सगाई करने गए थे। तभी दो और तीन दिसंबर की रात १९८४ को मृत्यु की रात बन कर आई। निर्मला की मकान मालिक ने दरवाजा खटखटाया बोली धुआं-धुआं फैला है और आंखों में जलन हो रही है। जैसे ही दरवाजा खोला तो बाहर भीड़ दौड़े जा रही जान बचाने। निर्मला का भाई भी मोहल्ले वालों के साथ जान बचाने कहां गया पता ही नहीं। निर्मला की मां बहन छोटी अपनी सहेली के घर पहुंचे सहेली से बोली- "चलो हम भी कहीं चलते हैं।" सहेली के पति भी बाहर गए हुए थे। उनके तीन बच्चे थे। वह बोली- "हम कहीं नहीं जाते"। हम तो यही घर में रहते हैं। जिसको भी उल्टी आ रही है। उल्टी घर में ही कर लो, लेकिन घर में ही रहेंगे, तो कम से कम घर वालों को अपनी लाश मरने के बाद मिल तो जा...
सायरा का दायरा
लघुकथा

सायरा का दायरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं मंगोड़ी की थाल लिए जीना चढ़ने ही वाली थी कि पीछे से सायरा बानो बोली, "लाओ आंटी मैं रख दूँगी धूप में, ऊपर ही जा रही हूँ।" यह उसका रोज का धंधा है। आते-जाते भाभी, दीदी, भैया सबके काम हँसते-हँसते निपटाना। सभी से आत्मीय सम्बंध बना लेना उसका स्वभाव ही है। मैं बालकनी में बैठी सोचने लगी कि वह सभी घरों का अटाला, कपड़े, पुरानी चीज़े आदि सहर्ष ले जाती है। जैसे ही वह ऊपरी मंजिल से उतरी मैं जिज्ञासावश पूछ बैठी, "सायरा ! मैं तुम्हें इतने सूट...।" वह बीच में ही बात काटते हुए बोली, "आंटी ! मैं तो बस कॉटन ही पहनती हूँ, आप रोज देखते ही हो। लेकिन मेरी सब सहेलियाँ रास्ता ही देखती है कि कब मैं पोटला लाऊँ? वे सब अपने हिसाब से छाँट बाँट लेती हैं।" "और दूसरा सब सामान....।" मैने टोका। बातूनी सायरा तपाक से बोली, "रब की दुआ से मेरे पास तो सब कुछ है। आप लो...
‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी
कहानी

‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** यू हेव अराइव्ड। योर डेस्टीनेशन इस ओन राइट। गाड़ी पार्क की और इधर-उधर देखा। सुभम मन-ही- मन बहुत खुश था कि जहाँ पर वह जगह खरीदने जा रहा है, यहाँ की लोकेशन तो अच्छी है। पार्क है, मंदिर है। चौड़ी सड़कें हैं और मुख्य मार्ग के पास में ही है। अभी तो पाँच बजे हैं। छह बजे के लिए बोला था। प्रोपर्टी वाला या उसका कोई दलाल आएगा। कोई बात नहीं जगह अच्छी है। आज मंगलवार भी है तो क्यों न मंदिर में जाकर हनुमान जी के दर्श्न कर लिए जाएँ और मन्नत भी माँग ली जाए कि सौदा ठीक-ठीक पट जाए क्योंकि आजकल जमीन के मामलों में बड़ी धोखेवाजी चल रही है। सुभम ने मंदिर में प्रवेश किया, हाथ जोड़े प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए। लेकिन अचानक किसी आवाज ने उसकी धड़कनें बढ़ा दीं। कुछ भ्रमित-सा हुआ लेकिन जल्दी ही वो आवाज मंदिर के प्रांगण से बाहर निकल गई लेकिन सुभम...
पाँच घण्टे
लघुकथा

पाँच घण्टे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक अभिभावक मीटिंग में प्राचार्या जी समझ नहीं पा रही क्या करे? अजीबोग़रीब प्रश्न पूछे जा रहे हैं, "बच्चे कहना नहीं मानते, ऊपर से झूठ बोलते हैं। दिनरात फ़ोन पर लगे रहते हैं। देर रात पार्टी करते हैं। फैशन के पीछे दीवाने हो रहे हैं। बात बात में झूठ बोलते हैं। आप स्कूल में यही शिक्षा देते हैं क्या ? प्राचार्या जी सादगीपूर्ण वर्दी में बैठे स्टॉफ की ओर इशारा करती हैं, "देखिए हमारे शिक्षक शिक्षिकाएं अनुशासन में रहते हैं। अपनी तरफ से बच्चों को व्यहारिक रूप से मूल्य सिखाते हैं। स्वयं रोल मॉडल बन समझाते हैं।" फ़िर मेडम अभिभावकों की ओर मुखातिब होती हैं, "मैं स्पष्ट देख पा रही हूँ कि लगता है आप किसी फैशन परेड में आए हो। बताइए मुझे, क्या बच्चों के दादा-दादी साथ रहते हैं? आप अपनी पार्टियों में व्यस्त रहते हो, देर रात आते हो। नानी-दादी का साथ च...
नीनू चली जादू नगरी
लघुकथा

नीनू चली जादू नगरी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू सोचने लगी मैं गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाऊँ? लेकिन उसके सारे प्रयास विफ़ल। नीनू ललचा कर माँगती है, "बस एक गुजिया दो ना मम्मा, सच्ची बस एक ही।" माँ फटकार लगा देती है, "बिलकुल नहीं, सब भोग के बाद।" नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो जाती है। वह जादू की नगरी में पहुंच जाती है। वहाँ देखती है...वह एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रही हैं। रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन आदि-आदि और उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो बल्ले-बल्ले हो जाती है। वह सोचती है, पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ। ज्यों ही वह सामने देखती है, "अहा ! शिकंजी के ताल में इमरती की नौका, मजा आ गया।" नीनू ...
विकल्प
लघुकथा

विकल्प

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शराबी अय्याश पति संकेत की प्रताड़ना से व्याकुल सरिता बदनामी के डर से मन मसोसकर रह जाती। अंतर्जातीय प्रेम विवाह के बाद भी सरिता का चयन गलत निकला। माता-पिता से विद्रोह कर चुकी सरिता ससुराल में भी सम्मानजनक स्थान नहीं बना पाई। देर रात शराब के नशे में धुत संकेत सरिता पर चिल्लाने लगा "तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया। मेरे भावनाओं का फायदा उठाकर शादी कर ली। अब मैं तुमसे छुटकारा पाना चाहता हूं।" सरिता "हमारी शादी कुछ सालों तक प्रेम सम्बन्ध रहने के बाद आपसी सहमति से हुई है। अब आपको मुझमें खोट नजर आने लगी।" संकेत "अपने पिता की इकलौती संतान हूं। मेरे पास अच्छी खासी धन दौलत है। लड़कियों की कतारें लगी रहती थी। तुमने अपने प्रेम जाल में फंसाकर मुझे अंधा कर दिया था।" सरिता "नादान तो मैं निकली। आप पर आंख मूंदकर भरोसा करती रही। आपने मेरे भरोस...
थाती
लघुकथा

थाती

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** दीपावली हेतु सफाइयाँ जोर-शोर से चल रही थीं। पुराना सामान हटाते-हटाते अचानक सुधा के हाथ में एक मखमली लाल थैला लग गया। मानो उसके हाथ में यादों का पुलिंदा ही आ गया हो! नन्हें-नन्हें कपड़े, छोटे-छोटे कुछ टूटे-फूटे खिलौने, कुछ छिली-अधछिली पेंसिलें, रंग बिरंगी चौक के टुकड़े, कुछ ट्रॉफियाँ और न जाने कौन-कौन-सी "थाती" सहेज कर रखी थी अपने चारों चहेते बच्चों की, सब एक चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घूम गया और वह ममता के सागर में गोते लगाने लगी! परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट...
स्त्री संवेदना संदर्भ छुटकारा कहानी
आलेख

स्त्री संवेदना संदर्भ छुटकारा कहानी

काजल कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** ममता कालिया की कहानियों में स्त्री पात्र अस्तित्वहीन होकर अपने अस्तित्व की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान युग की स्त्रियां पुरुषों के समक्ष ही नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान और अपने वजूद को कायम करने के लिए संघर्षरत हैं। सदियों से प्रताडित नारी एक अघोषित युद्ध के के खिलाफ संघर्ष कर रही है। समाज से लेकर परिवार कर तक वे संघर्ष कर रही हैं। और इसी संघर्ष ने उन्हें अपने अंदर एक अभूतपूर्व आत्मविश्वास को जगाया है। नारी जहां इस प्रतिसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष कर रही है, वहीं वे मेहनत तथा अदम जिजीविसा के बल पर समाज एवं परिवार में अपने धूमिल पड़े अस्तित्व को एक निखारने के साथ दी साथ एक अलग पहचान दी है। •स्त्रियों के संदर्भ में स्त्री लेखिकाओं का नजरिया बहुत ही महत्वपूर्ण है। * सिमोन दा बोउबार - "स्त्रियां ...
उपहार
लघुकथा

उपहार

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** दीपावली की तैयारियों के लिए कमल अनोखीलाल सेठ के बंगले पर रंग बिरंगी झालर लगाने में व्यस्त था। सेठ जी कमल को उचित दिशा निर्देश देकर बगीचे की ताजी हवा का आनंद ले रहे थें। शालू खेलते-खेलते अपने दादाजी के पास आई। सुंदर गुलाबी रंग के कपड़ों में वह परी-सी लग रही थी। सेठ जी ने उसे-स्नेह से गले लगा लिया। यह देख कमल का दिल भर आया। उसे याद आया की उसकी बेटी पूजा ने भी कहा यहां की "बाबा इस बार तो मुझे अच्छे नये कपड़े दिलवाओंगे ना?" इसी उधेड़बुन में वह कार्य करना भूल गया। अनोखीलाल-"कमल कार्य समाप्त हो गया क्या?" "नहीं मालिक थोड़ा-सा ओर बचा है?" शाम को लौटते समय सेठजी ने उसे मेहनताना दिया। कमल धन्यवाद देकर जा ही रहा था कि घर की सेठानी कांशीदेवी ने रोका- "भैय्या ये छोटा-सा उपहार भी लेते जाओ। "कमल प्रसन्न हुआ और शीघ...
श्राद्ध से श्रद्धा तक
आलेख

श्राद्ध से श्रद्धा तक

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब तक जीवित हैं...हम प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन मनाते हैं। हाँ, मनाने के तरीके भले प्रथक हो। किन्तु हम यह एहसास नहीं भूलते कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। यह हमारी भारतीय परंपरा है कि मृत्योपरांत भी हम अपने परिजनों को भुला नहीं पाते। उनकी स्मृति बनी रहे... इस हेतु श्राद्ध करते हैं। कहने को यह एक धार्मिक अनुष्ठान है किंतु इसके साथ भावनाएँ भी जुड़ी हैं। अनन्त चतुर्दशी पर गजानन की विदाई के पश्चात पूर्णिमा से श्राद्ध आरम्भ हो जाते हैं। इन्हें सौलह श्राद्ध भी कहते हैं। मृत्युतिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं। स्वच्छता व विधिविधान से किसी ब्राह्मण को भोजन हेतु न्यौता जाता है। किंतु पण्डित लोगों को भी कुछ विशेष अवसरों पर ही पूछा जाता है। सही है कि दक्षिणा के लालच में कइयों का आग्रह मान लेते हैं। थोड़ा बहुत ग्रहण कर अगले यजमान के यहाँ पहुँच जाते हैं।...
ये परोपकार कमाने वाले
व्यंग्य

ये परोपकार कमाने वाले

सुरेश सौरभ लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) ********************  हाथ दिया वह रूक गये। ‘कोई सवारी नहीं मिल रही आज लिए चलो बाबू जी! मेरे विनयपूर्वक आग्रह को वे टाल न सके। आफिस के सहकर्मी जो ठहरे। मसाला भरा मुंह पीछे घुमाकर बैठने का इशारा किया। मैं उनके पीछे बाइक पर लद लिया। अभी चन्द दूरी ही चले होंगे..पिच पिच.पिच..गला खंगालकर बोले-नई गाड़ी है। डबल सवारी नहीं बैठाता, हां कभी-कभी हल्की-फुल्की डाल लेता हूं। और ट्रिपलिंग तो कभी नहीं?..हां हां बिलकुल नहीं... बाइक पर कभी भी तीन नहीं बैठना चहिए।... अब बैठ लिया तो क्या कहें, रपट पड़े तो हर गंगा वाला मेरा हाल था। साथ यह भी खयाल था कि मेरे पचास किलो वजन पर बेचारे ने तरस खाया है। अपने गन्तव्य पर पहुंच कर उन्हें ऐसे सलामी दी, जैसे बड़ी मुसीबत झेल, बेचारे ने दुश्मन का बार्डर पार करा के लाया हो मुझे। कई दिन बाद मैं बस अड्डे पर, आफिस जाने के लिए...
स्थानीय निकायों के दस्ते
व्यंग्य, हास्य

स्थानीय निकायों के दस्ते

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** प्लास्टिक बंदी का दौर आया है स्थानीय निकायों ने बाजारों में रेड करने के क्षेत्र वाईस दस्ते बनाए है पर लगता है माल सुताई मौसम आया है कार्रवाई में भाई भतीजावाद समाया है अपनों पर कार्रवाई नहीं करने का मन बनाया है कुछ जातिवाद को प्रथा भी अपनाई है मलाई की चाहत भी दिखलाई है दस्ते ने अपनी दादागिरी दिखलाई है स्थानीय निकाय के अन्य विभागों से भी भीड़ कर्मचारियों की साथ लाई है पुलिस बनकर कार्रवाई की राह अपनाई है फैक्ट्रियों पर से नजर बिल्कुल हटाई है छोटे दुकानदारों पर सख्ती दिखाई है माल सूतो नीति अपनाई है हफ़्ता खोरी की नीति चलाई है दस्ते वालों समझो पीएम तक खबर पहुंचाई है मन की बात से बात बतलाई है। अब तुम पर कार्रवाई की नौबत आई है संभल जाओ वक्त की दुहाई है परिचय :- किशन सनमुखदास...
हर बार अंदाजा सही नहीं होता
स्मृति

हर बार अंदाजा सही नहीं होता

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रेल अपनी स्पीड से चली जा रही थी। परन्तु रमा की टिकट कन्फर्म नहीं हुई थी परन्तु उनका जाना बहुत जरूरी था इसलिए रमा अपने तीन बच्चों के साथ बिना टिकट कन्फर्म ही ट्रेन में चढ़ गए थे। सोचे हो ही जाएगी, पर बैठने के बाद पता चला टिकट कन्फर्म नहीं हुई। टीटी ने उन्हें सीट पर बैठने को कहा,जैसे ही बैठे एक महिला ने कहा ये हमारी सीट है बड़े ही रोब से ।बेचारी को कुछ राहत मिली ही थी। उसे क्या पता था कि उसकी खुशी बस कुछ ही पल की थी।एक आस लगाए टकटकी लगाए उसी महिला को बार -बार इस उम्मीद में निहार रही थी कि शायद वह अपनी एक सीट हमें दे दें क्योंकि उसके दो बच्चे थे और एक बच्चा लगभग 4 साल का था ।उसकी मां ने उसे पास ही अपनी सीट पर सुला रखा था ।पर उन्होंने चार सीट बुक करवा रखी थी। 3 सीटों पर ही बैठे थे चौथी सीट खाली थी। रमा ने जैसा सोचा था ऐसा कुछ नही...
परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण
आलेख

परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आज के भागदौड़ भरे इस आधुनिक जीवन में किसी के पास वक्त ही नहीं है। एक घर में रहकर भी घर के सदस्य एक-दूसरे के साथ बैठकर खाना नहीं खा पाते, बात नहीं कर पाते हैं। ऐसा नहीं है बात नहीं करना चाहते। सभी करना चाहते पर घर-परिवार की जिम्मेदारियां और फिर कमाने की जद्दोजहद में सब व्यस्त रहते हैं। सोचते हैं इस वर्ष की बात है अगले वर्ष सब ठीक हो जाएगा परंतु अगले वर्ष करते-करते कब बुढ़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता? एक आदमी को सिर्फ कमाना ही नहीं होता बल्कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, घरवालों के ख्याल के साथ-साथ बहुत से खर्चों का ध्यान रखना पड़ता है। उसे हमेशा एक ही चिंता रहती है कहीं घरवालों की जरूरतें पूरी ना हो, या कहीं कोई क़िस्त समय पर ना जाएं या फिर बच्चे की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस लेट ना हो जाए। त्योहारों पर बच्चों की जरूरतों का सामान...