भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…
अरुण कुमार जैन
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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मेरा देश, महान देश है, भरत चक्रवर्ती के नाम पर बना भारत। राजा थे चक्रवर्ती राजा, रिद्धि-सिद्धि उनके यहां स्थाई निवास करती थी, सुवासित बहती हवाएं, बाग-बगीचे महलों, हवेलियों में हर वक्त मुक्त रुप बहती थीं। पक्षियों के कलरव, कोकिल कंठी कोयलों के गान, सर उठाए खुला आसमान और सुंदर वितान। परिचारिकाएं और परिचारक रात दिन उनकी सेवा में रत फूले नहीं समाते थे, हर वक्त खुशी के गीत गाते थे। बागों में लहराती तितलियां, गुंजायमान भंवरे, खिले फूलों की सुवासित सुरभि में देश डूबा हुआ रहता था, सुंदर परिवेश, इंद्र के सारे वैभव विद्यमान चौबीसों घंटे आनंद स्नान।
जैसी नीव होती है उसी अनुरूप महल तामीर होते हैं, कालांतर में देश वैसा ही हुआ जैसा जन्मना शाही था। सारे विश्व की आंखें हम पर गड़ी रही। जो आया हम बांहे पसारे उसके स्वागत में वसुधैव कुटुंब...