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गद्य

बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग
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बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** साभार : डॉ. बलबीर सिंह रावत कंडली, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरिस्क्रित पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है। क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है, हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहाँ थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है। उत्तराखंड में इसकी बहुलता है, और इसे मनुष्य भी खाते हैं, दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायन तनों को गहथ झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते है। कन्डालि में जस्ता, ताम्बा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी१ , बी२, बी३, बी५, सी, और के, होते हैं, तथा ओमेगा ३ और ६ के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। इसकी फोरमिक ऐसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ा दायक, आसानी से चुभने वाले, सुईद...
कुछ संकल्प कुदरत के नाम …
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कुछ संकल्प कुदरत के नाम …

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भोर के साथ ही हमारे कर्म प्रारंभ हो जाते हैं। इतनी व्यस्त और विशिष्ट जिन्दगी की गति कैसे दिन रात गुजार लेती है, इसकी सुध लेने की भी फुर्सत नहीं होती। लेकिन विचारणीय है कि जो काम हम कर रहे उसका प्रभाव पर्यावरण पर कैसा डाल रहे हैं। हमारी गतिविधियां ही पर्यावरण के प्रति हमारी सोच को दर्शाती है। उम्मीदों से भरे इस नववर्ष में हर कोई संकल्प लेता है लेकिन हम उन बातों को नजर अंदाज कर जाते हैं, जो हमारे लिए सबसे जरूरी है।कुदरत जो प्राणवायु से लेकर हर जरूरतों को पूरा करता है। उसके लिए हमें इस वर्ष भी नया संकल्प लेना चाहिए। जैसे प्लास्टिक का उपयोग या जीवाष्म ईंधन का उपयोग न हो। हमें यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि हमारी वजह से पर्यावरण को कोई नुक़सान न हो। पानी और ऊर्जा की बचत करें। गंदगी एवं कचरा स्वयं की ओर से कहीं न डालें। नियमों के मुताबिक चर्य...
दुख:द !! भारत में १४०० सालों से उत्पादक शीलता पर चर्चा ही नहीं होती !
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दुख:द !! भारत में १४०० सालों से उत्पादक शीलता पर चर्चा ही नहीं होती !

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ********************  भारत आज सब ओर से संघर्षरत है। प्रजातंत्र में पर खचांग लगाने नहीं प्रजातंत्र को समाप्त करवाने परिवारवाद का हर प्रदेश में नहीं हर पार्टी में बोलबाला है। जब चुनाव आते हैं, फिर से चुनाव में जीतने या विरोधी को लतपत चित्त करने हेतु विकास, मुफ्त, गरीबी हटाने आदि की चर्चा में अग्यो लग जाता है। मुफ्त, विकास व गरीबी हटाना आवश्यक है। होना भी चाहिए। किन्तु भारत पिछले १४०० सालों से एक विभीषिका से लड़ रहा है और सिरमौर (सर्वश्रेष्ठ, मुकुट) देश हर तरह से पिछड़ रहा है या मात खा रहा है। यह विभीषिका है भारत में उत्पादकशीलता याने प्रोडक्टिविटी पर चर्चा न होना। उत्पादकशीलता विचार गुप्त काल के पश्चात भारत से सर्वथा लुप्त हो गया है। प्रोडक्टिविटी ट्रेडिंग के पैर धो उसे चरणामृत समझ पी रही है। गुप्त काल के पश्चात राजकीय उठा पटक होते रहे और उत्पादनशीलता यान...
भारत में मृदा चिकित्सा पर्यटन से पर्यटन विकास
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भारत में मृदा चिकित्सा पर्यटन से पर्यटन विकास

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** भारत मेडिकल टूरिज्म में कई सकारात्मक तत्वों के कारण प्रगति कर रहा है। मेडिकल टूरिज्म में प्राकृतिक चिकित्सा का योगदान भी अब वृद्धि पर है जैसे केरल व उत्तराखंड। प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन विकास में में मृदा चिकित्सा या मड थेरेपी टूरिज्म का महत्वपूर्ण योगदान है। मृदा चिकित्सा पर्यटन के विकास हेतु कई बातों पर ध्यान देना होगा। वैकल्पिक पर्यटन अथवा प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन विकास में मृदा अथवा मड चिकित्सा सुविधा आवश्यक है। मृदा चिकित्सा में मिट्टी मुख्य माध्यम होता है। मृदा चिकित्सा से निम्न लाभ मिलते हैं- मिट्टी सूर्य की किरणों से रंग चुस्ती लाती है और शरीर को प्रदान करती है। गठिया व त्वचा सुधर हेतु मृदा चिकित्सा लाभकारी है मृदा स्नान से त्वचा में बसे सूक्ष्म जीवाणु निकल जाते हैं मृदा स्नान या मृदा लेप से त्वचा रंध्र खुल जाते हैं मृदा ...
ऑनलाइन
लघुकथा

ऑनलाइन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "मित्र सुदेश! यह लॉकडाउन तो गज़ब का रहा? क्या अब फिर से लॉकडाउन नहीं लगेगा।" सरकारी स्कूल के टीचर आनंद ने अपने मित्र से कहा। "क्या मतलब? "सुदेश ने उत्सुकता दिखाई। "वह यह सुदेश ! कि पहले तो कई दिन स्कूल बंद रहे तो पढ़ाने से मुक्ति रही, और फिर बाद में मोबाइल से ऑनलाइन पढ़ाने का आदेश मिला, तो बस खानापूर्ति ही कर देता रहा। न सब बच्चों के घर मोबाइल है, न ही डाटा रहता था, तो कभी मैं इंटरनेट चालू न होने का बहाना कर देता रहा। बहुत मज़े रहे भाई ! "आनंद ने बड़ी बेशर्मी से कहा। "पर इससे तो बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुक़सान हुआ।" सुदेश ने कमेंट किया। "अरे छोड़ो यार! फालतू बात। फिर से लॉकडाउन लग जाए तो मज़ा आ जाए।" आनंद ने निर्लज्जता दोहराई। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...
समरांगण से… पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा

समरांगण से… पुस्तक समीक्षा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पुस्तक समीक्षा समरांगण से... आज की पीढ़ी के लिए अनूठा उपहार ओज के युवा हस्ताक्षर शिक्षक कवि हेमराज सिंह "हेम" की प्रथम कृति "समरांगण से... " को पढ़ते हुए बहुत गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे बीच का एक युवा ओज लिखते-लिखते इतनी गहराई में उतर गया कि आध्यात्मिकता से भरपूर श्रीमद्भगवत गीता को सरल शब्दों में काव्यमय रुप में आम जनमानस के बीच संपूर्ण गीता को सहज ग्रहणीय कृति के रूप प्रस्तुत करके नई पीढ़ी के कलमकारों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। पूज्य पिता श्री राजेन्द्र सिंह जी और माताश्री श्रीमती प्रभात कँवर जी को समर्पित हेम प्रस्तुत महाकाव्य "समरांगण से......की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार विजय जोशी जी ने लिखा है कि अपने परिवेश में सजगता से यात्रा करता हुआ व्यक्ति जब अपनी संस्कृति और संस्कार के सानिध्...
अयोध्याधाम में “मतंग के राम”
संस्मरण

अयोध्याधाम में “मतंग के राम”

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  १५ नवंबर २०२२ का दिन, जब हमारे प्रिय आ. आर.के. तिवारी मतंग जी सपत्नीक हमारे बस्ती प्रवास स्थल पर गोरखपुर से लौटते हुए मेरा कुशल क्षेम लेने आये, आपसी बातचीत और संवाद के बीच ही मई जून २३ में अयोध्या में एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं पुस्तक विमोचन आयोजन कराने की इच्छा व्यक्त की, तभी तत्काल इस बारे में मतंग जी से प्रारंभिक तौर पर आयोजन के संबंध में हमारी मंत्रणा, वार्ता का श्री गणेश हो गया था, और निरंतर आभासी संवाद के माध्यम से हम दोनों निरंतर आयोजन की रुपरेखा को अंतिम रूप देने में सफल हो, जिसका परिणाम आप सभी के सामने "मतंग के राम" आ.भा. कवि सम्मेलन, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह के रूप में जनमानस के बीच साकार रूप में सामने आया। जिसके प्रत्यक्ष गवाह आप सभी की एक छत के नीचे एक साथ एकत्र होकर बन चुके हैं। य...
दीपक की रोशनी
कहानी

दीपक की रोशनी

नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी महराजगंज, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** चार दिन गुजर चुके थे, टूटी-फूटी मढ़इय्या में सन्नाटे का बोलबाला था। वेदना पांव पसार रही थी, दहलीज से गलियारे पर कुछ हलचल देखी जा सकती थी, लेकिन जर्जर कोठरी की मायूसी को नहीं। कुछ घरेलू सामान अस्त व्यस्त पड़ा था, बर्तनों में जूठन तक नहीं थी, चूल्हे की आग उदर में जल रही थी। झूला बनी खटिया पर रह-रह कर ननकू के कराहने की आवाज मानो उसके जीवित होने का प्रमाण दे रही थी। बेबसी, लाचारी और बीमारी उपहासिक संयोग कर रही थी, सहसा अति कोमल लेकिन रूदित आवाज में रोशनी ने कहा "मां बर्तन भी भेज दोगी तो जब कभी रोटी बनेगी तो? मां कुछ बोल पाती तब तक दीपक ने धीरे से आंचल खींचते हुए कहा "मां अनाज के पैसे से दुकानदार ने पूरी दवा नहीं दी" मां मुझे भूख नहीं लगी, कुल दीपक के चेहरे पर रोशनी की चिंता दिख रही है, रोजदिन की तरह पड़ोसियों का...
भाग्य
लघुकथा

भाग्य

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** निशा का जन्म होते ही खुशी की ठिकाना नहीं रहा बरसो बात अजय के आंगन मे किलकारी गूँजी आँखो का तारा दुलारी आयी। दुर्भाग्य वश चार दिनों के बाद अचानक माँ का दुखद निधन हो गया खुशी मातम मे छा गयी अब क्या होगा? गंभीर समस्या थी यह देख बहन ने कहा इसकी परवरिश मे करुगी उनके कोई बेटी नहीं थी दो बेटे थे वह खुशी-खुशी बच्ची को ले गये सोचा घर की घर में रहेगी और मुझे भी बेटी का सुख और साथ में पुण्य मिलेगा घर में रौनक होगी अपने ही भाई की संतान है आँखों पे रखूंगी मेरे दो नहीं तीन आंखों के तारे होगे। यह देख पिता की आंखों में थोडा साहस मिला बेटी को सौंपते हुऐ चल दिये विधाता को यहीं मंजूर था मासूम टिमटिमाते तारे को निहारते हुऐ बेसुध हो गये। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९...
कटु वाणी
लघुकथा

कटु वाणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्या हुआ?" "लक्ष्मी आई है।" "खाक लक्ष्मी आई है।तीसरी बार भी लड़की ही।" और, सासू मां ने अनीता को वहीं अस्पताल में ही कोसना शुरु कर दिया। शोर शराबा सुनकर अनीता का ऑपरेशन करके उसके बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर बाहर आई और सासू माँ पर गुर्राते हुए बोली- "माँ जी! क्या आप नहीं जानतीं, कि बच्चे को पहले नौ माह पेट में रखना, फिर जन्म देना, वह भी ऑपरेशन से, कितना कठिन होता है? आपने पोते की चाहत में अपनी बहू को तीसरी बार ख़तरे में डाल दिया। आज का ऑपरेशन तो बहुत ही जटिल था, और बड़ी मुश्किल से अनीता की जान बची है। वैसे तो हर बार ही बच्चे को जन्म देना माँ के लिए पुनर्जन्म होता है, पर आप यह समझिए कि आज तो आपकी बहू मौत के दरवाजे से ही वापस लौटी है। और-आप संतोष का अनुभव करने की जगह उसे कोस रही हैं। लानत है आप पर। इतने विषैले ब...
स्त्री का अंधकार
आलेख

स्त्री का अंधकार

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** कितना मुश्किल है स्त्री होना और उससे भी ज्यादा मुस्किल उसका स्त्री बने रहना। एक स्त्री असीमित शक्ति की स्वामिनी होती है। वैसे तो प्रकृति और स्त्री एक ही है पर प्रकृति ने स्त्री की शारीरिक रचना को जितना जटिल बनाया है उसकी सोच को उससे भी ज्यादा जटिल और शारीरिक क्षमता मे अपेक्षाकृत कुछ कमजोर भी। जब स्त्री एक जीवन को जन्म देकर गहन अंधकार से प्रकाश में लाकर उसे को प्रकृति का हिस्सा बनाती है तब उसकी शारीरिक पीड़ायें इस जटिलता की कहानियां कहती हैं।कितना सुखद और पीड़ादायक है मां बनना। इस पीड़ा को सुखद भी एक स्त्री ही बना सकती है। क्योंकि वो एक शक्ति है। अक्सर स्त्री जाने-अनजाने बहुत सारे बंधनो में बांधकर स्वयं को संचालित करती रहती है जो या तो समाज, रूढ़ी, परम्पराओं इत्यादि द्वारा दिए हुए होते है और कुछ के आवरण वो स्वयं से ओढ़े रहकर ख...
‘द्वेषद्रोही’ : अधूरी प्रेम कहानियों और जीवन के विगलित रूपों का डरावना दस्तावेज
पुस्तक समीक्षा

‘द्वेषद्रोही’ : अधूरी प्रेम कहानियों और जीवन के विगलित रूपों का डरावना दस्तावेज

  समीक्षक : राजेश ओझा ग्राम वा पोस्ट मोकलपुर जनपद गोण्डा जनपद न्यायालय गोण्डा में विधि व्यवसाय देश के बड़े पत्र पत्रिकाओं में कहानियाँ, लघुकथाएं, पुस्तक समीक्षा आदि का नियमित प्रकाशन।   द्वेषद्रोही दो दिन पहले ही पढ़कर समाप्त किया है। 'देहाती लड़के' के बाद शशांक भारतीय का यह दूसरा उपन्यास है जो हिन्द युग्म प्रकाशन से आया है। शशांक भारतीय मूलतः व्यंग्यकार हैं, लेकिन मन से संवेदनशील भी। चीजों को वे अप‌नी सूक्ष्म दृष्टि से देखते हैं। संवेदनशील मन सदैव वर्तमान की जांच-परख करता रहता है। अपने अद्यतन समाज की जिन्दगी और हर तरफ उठ रही त्रासद झंझाओं का संस्पर्श उसे व्यक्त करने को विवश कर देता है। शशांक जीवन के उन अन्धड़ों को महसूस करके उसका ना केवल यथार्थ निरुपित करने वाले अपितु भविष्य के लिए बेहतर रचनात्मक सुझाव देने वाले उपन्यास कार के रुप में अपने दूसरे उपन्यास 'द्वेषद्रोही'...
स्वास्थ्य के प्रति हम कितने सजग
आलेख

स्वास्थ्य के प्रति हम कितने सजग

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "मानव प्राणी का स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है" देह की सुरक्षा एक प्रमुख कर्तव्य है। देही का सुरक्षा कवच है। सदा स्मृति में रहे कि मैं देही इस काया रुपी मंदिर में विराजमान हूं। शरीर के शीर्ष स्थान पर दोनों भृकुटी के बीच अकाल तख्त पर बैठी हूं। शरीर के समस्त कर्म इन्द्रियों की राजा हूं। "जब आत्मा स्वस्थ हैं तब तन पर शासन भी स्वस्थ होगा।" हमारा प्रश्न है हम स्वास्थ्य के प्रति कितने सजग है तो समझना होगा "स्वास्थ्य ही शारीरिक, मानसिक, सामाजिक कल्याण की स्थिति है। "क्योंकि मुझे उसमें रहना है। लेकिन वातावरण परिस्थितियां, परम्पराएं बहुत तेजी से बदल रही है। जो स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है। लेकिन बाल, युवा वृध्द प्रदूषित वायुमंडल से गहराई से प्रभावित हो रहा है। वह भूल चुका है कि मैं कौन, कहां से आती हूं, क्या करना है। अज्ञान अंधेरे में भटकते स...
वो लड़की
लघुकथा

वो लड़की

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** थोड़ा ध्यान पढ़ाई पर भी दिया करो हर थोड़ी देर मैं कक्षा के बाहर जाने का बहाना बनाती रहती हो। पढ़ना लिखना कब सीखोगी? कभी-कभी गुस्से में और ना जाने क्या-क्या कह जाती। शायद उसे पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वह कभी मेरी स्नेह पात्र नहीं रही। पर उसे तो जैसे मेरी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उस दिन मुझे सुबह से ही सिर दर्द और बुखार सा महसूस हो रहा था कक्षा में भी अनमने ढंग से कुछ पढ़ाई कराई फिर ज्यादा तबीयत खराब होने लगी तो सर टेबल पर टिका दिया। बच्चे चिंतित होने लगे क्या हुआ मैम ..क्या हुआ.....? कर-कर के फिर अपनी बात और अपने काम में लग गए। भोजन अवकाश में मैं अपने ऑफिस में आकर बैठ गई तो फिर वही लड़की आई मैंने थोड़ा चिढ़कर कहा अब क्या है? खाना खा लो और हम लोगों को भी यहां चैन से बैठने दो। उसने थोड़ा सकुचाते हुए अपन...
कहानी नदियों की
कहानी

कहानी नदियों की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** परिवेश के साथ प्रकृति की प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन सम्भव है। होली हो गई रेन डांस व बसन्त पंचमी अब है वेलेंटाइन डे तो नदियाँ अपनी जीवन शैली क्यूँ न बदले भला। डिजिटल दुनिया तो नदियाँ भला कैसे पीछे रहती। वर्तमान आभासी संसार की देखा-देखी नदी परिवार की मुखिया माँ गंगा ने एक कॉन्फ्रेंस काल मीट में आदेश निकाल दिया, "सभी नदियाँ अपनी खुशियाँ व गम परस्पर साँझा किया करें। जब तक समस्याएँ पता नही होगी, समाधान कैसे ढूंढेंगे ?" माँ नर्मदे तो मानो भरी हुई बैठी थी। क्या क्या बताए? अतीत की भयावह स्मृतियाँ भुला नहीं पा रही हैं। यदा कदा चट्टानों में विचरती ताप्ती को दिल का हाल सुना देती हैं, "बहना, तुम जानती हो मुझमें आने वाली उफ़नती बाड़ों को। उन विकराल लहरों को याद कर मेरी रूह काँप जाती है। होशंगाबाद जैसे कई इलाकों में घरों की छतों तक पानी पहु...
ये दाग़ कौन धोएगा…?
आलेख

ये दाग़ कौन धोएगा…?

माधवी तारे लंदन ******************** लंदन में यहां की संसद में राहुल गांधी का वक्तव्य सुन कर मन द्रवित हो गया। आज तक कितनी बार मैं यहां आई हूं पर ऐसा अनुभव मुझे कभी नहीं हुआ। भारत के लोकतंत्र का चीरहरण और खासकर देश के प्रधानमंत्री की बुराइयां, बीबीसी जैसे ख्यात न्यूज चैनल पर सुनकर मुझे गुस्सा आया। परदेश की सर जमीं, जहां पर अपने ही देश का मूल निवासी जो उच्च पद पर आसीन है, उनके सम्मुख देश के लिये अपमानजनक शब्दों को सुन कर गुस्सा नहीं आएगा क्या? परदेश में अपने देश की बुराई सुनकर मैं शर्मसार हो गई। गुस्से में मैंने मेरे बेटे को टीवी बंद करने को कह दिया। एक साधारण सा सांसद, जिनके पूर्वजों ने ७० साल तक इस देश की बागडोर संभाली और अनिर्बंध रूप से शासन चलाया। उनके एक शख्स का देश के प्रजातंत्र पर कुठाराघात करते हुए आलोचना करना, हमारे जैसे भारतीयों की नाक कटवाने जैसा है। वर्तमान में अपना सर उ...
सबरस समाहित अद्वितीय कृति है ‘निहारिका’
पुस्तक समीक्षा

सबरस समाहित अद्वितीय कृति है ‘निहारिका’

  पुस्तक का नाम- निहारिका समीक्षक- आशीष तिवारी "निर्मल" रचनाकार- कवि उपेन्द्र द्विवेदी रूक्मेय प्रकाशक- विधा प्रकाशन उत्तराखंड कीमत- २२५ कवि सम्मेलन यात्रा से मैं लौटकर रीवा पहुंचा ही था कि देश के तटस्थ रचनाकार कवि उपेन्द्र द्विवेदी जी का फोन आया कि अल्प प्रवास पर रीवा आया हूं शीघ्र ही राजस्थान निकलना है। मैं बिना समय गवाएं उपेन्द्र जी से मिलने पहुंचा तो एक गर्मजोशी भरी मुलाकात के बाद उन्होंन अपनी एक अद्वितीय व दूसरी कृति 'निहारिका' मुझे भेंट की। इसके पहले मैं उनकी एक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कृति राष्ट्र चिंतन पढ़ चुका था। अत: दूसरी कृति पाकर मन प्रसन्न हो गया। उपेन्द्र जी एक संवेदनशील कवि हैं। वे सबरस कविता और गद्य लेखन दोनों में सामर्थ्य के साथ अपनी रचनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। कवि उपेन्द्र द्विवेदी काफी समय से लेखन में सक्रिय हैं। दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ...
मेरी पहली पदयात्रा
यात्रा वृतांत

मेरी पहली पदयात्रा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज तो पुरे परिवार का शाम का भोजन मौसी के घर पर था। सभी एकत्रित हुए मिल-जुल कर भोजन किया और हम सब बाते करने लगे तभी अचानक मेरी माँ ने कहा कि गढ़बोर चारभुजा की पैदल यात्रा करनी है, तो वहा चले क्या तो सभी ने एक बार तो हाँ कर दी। सभी यात्रा की योजना बनाने लगे कि सुबह कितनी बजे निकलना है कैसे क्या करना है, यहाँ से कितना दूर है। सब कुछ जैसे ही तय हुआ की एक-एक करके ना जाने के कुछ बहाने बनाने लगे। ये सब कुछ दो घण्टे तक ऐसे ही चलता रहा कोई चलने के लिए हाँ करता तो कोई ना करता, समय बितता गया और वापस सभी अपने घर जाने लगे। सभी ने एक दूसरे को शुभ रात्रि कहा और तभी मेरी भाभी ने कहा कि आपके भैया ने हाँ कर दी तो मै चलने के लिए तैयार हूँ, फिर कुल मिलाकर हम पाँच ने हाँ की जाने के लिए। घर पर आए तब तक रात के दस बज गये थे, फिर थोड़ी देर बाद हमने जो व्हा...
अनासक्ति भाव
आलेख

अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** केशव स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन-सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें........??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन-सम्पत्ति, मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहे परिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के ब...
राधा भाव
आलेख

राधा भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्याहम। परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे। अपने कान्हा तभी अवतरित होते हैं जब धरती पुकारती है, जैसे त्रेता युग में ´जय-जय सुर नायक, जन सुख दायक´ कहकर पुकारा था।द्वापर युग का अंत समीप था, पृथ्वी कंसों व दुर्योधनों के भार से बोझिल हो रही थी। कलि-काल के उदय का पूर्वाभास होने लगा था। तभी तो वो चुपचाप कारागार में आए। महल में पदार्पण करते तो नंदगाँव, गोकुल, वृन्दावन को कैसे तृप्त करते। उन्होंने युग परिवर्तन को देखते हुए प्रारम्भ की अपनी लीला उस धरती माँ से जिसने उसका पालन किया। कुछ तो कारण था कि उस धरती ने कन्हैया को पुकारा ओर वो चले आए अपनी सोलह कलाओं सहित। वो शैशव काल में ही पूतना वध सेअपनी कलाओं द्वारा अपन...
धर्म और विज्ञान
आलेख

धर्म और विज्ञान

माधवी तारे लंदन ******************** धर्म: रक्षति रक्षित: ऐसा एक वाक् प्रचार है जिसका भावार्थ है धर्म ही धर्म की रक्षा करने वाले का रक्षण करता है। प्राचीन ग्रंथों और पुराणों ने यह बात सिद्ध करके दिखाई है। हमें उनकी चर्चा में आज नहीं पड़ना है। वास्तविक बात यह है कि ज्ञान विज्ञान और अध्यात्म या धर्म दोनों ही मनुष्य को आत्मोन्नति के मार्ग पर चलने में सहायक होते हैं। एक अंदर से या मन-मस्तिष्क से तो दूसरा भौतिकता से या बाह्य जगत के ज्ञान से, दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं परंतु खोज उत्कर्ष अथवा स्व की उन्नति को ही महत्व है। सारांश यह है कि विज्ञान बाह्य रूप से और धर्म अंतर स्वरूप से ब्रह्मांड की खोज करने की कोशिश में लगे रहते हैं। राक्षसों द्वारा डूबी पृथ्वी को धर्म ने संवारा तो उसका हर तरह से विकास करना विज्ञान में संभव कर दिखाने की ठानी है। कहां पैदल यात्रा भ्रमण करने वाले, कहां पैदा, कह...
महामानव
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महामानव

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** शान्तमय वातावरण भी कितना भयावह लगने लगता है, जब किसी के पास बोलने को कुछ भी ना बचे, सोचने समझने की शक्ति जैसे जड़ हो जायें, क्या ऐसा भी जीवन में कुछ घटित हो सकता हैं, निःशब्दता वास्तव में इतना भयावह माहौल क्यूँ बना देती हैं, की बस उठो और ज़ाओ कहीं बाहर। पूरे दिन के कोलाहल के बाद कुछ घंटों का मौन खलने लगता हैं, ना ख़ुशी ख़ुशी ही रहती हैं, ना ग़म ग़मगीन ही करता हैं, सिर्फ़ टकटकी लगा के एक शून्य हुए को शून्य होकर निर्बाधता से देखे जाना कहाँ तक सही हैं। दूसरे के अंतर्मन की पीड़ा का अनुमान चंद लम्हे उसके साथ बैठकर नहीं लगाया जा सकता, जब तक आप स्वयं उसी पीड़ा से ना गुजरे हों। पीड़ा के भी रूप अनेकानेक हैं, मैं ये कह ही नहीं सकती की किसको कितना अधिक सहना पड़ा होगा, ना ही कोई बराबरी हैं किसी के दर्द की, बस एक आर्तनाद हैं ज़ो निरंतर प्रवाहमान हैं, स...
पलायन
आलेख

पलायन

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** गांव की आबादी आज घटती जा रही है। गांव के लोग शहरों की तरफ रुख़ कर रहे हैं । इसका कारण सबका अपना-अपना मत होगा। परंतु बेरोजगारी और सुविधाओं की कमी से गांव वाले ना चाहते हुए भी अपना घर छोड़ कर शहर के छोटे-छोटे कमरों में रहने को मजबूर हैं। क्योंकि हमारे गांव में बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार नहीं है। मैं सभी गांव की बात नहीं कर रही। परंतु बहुत गांवों में यह समस्या आज भी मौजूद है। शहरों का विकास तेजी से हो रहा है और गांव में जाकर देखो शिक्षा के नाम पर एक प्राइमरी या हाई स्कूल। वह भी सभी गांव में नहीं है। आगे बेचारे गरीब बच्चे पढ़ने कहां जाए? गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। यातायात- गांव में यातायात की सुविधा नहीं होती कैसे जाए पढ़ने के लिए बाहर। उनके पास दो विकल्प होते हैं या तो पढ़ाई छोड़ दे...
तेरी-मेरी कहानी
लघुकथा

तेरी-मेरी कहानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "हैप्पी वेलेन्टाइन डे, माय डियर, एंड आय लव यू।" कहते हुए सुनील ने एक लाल गुलाब अपनी पत्नी रत्ना के हाथ में दे दिया। "आय लव यू टू, माय लाइफ।" कहते हुए रत्ना ने अपनी खुशी व्यक्त की। इस पर दोनों ठीक चार दशक पहले की कॉलेज की यादों में खो गए। "सुनील जी! क्या आपके पास यूरोपियन हिस्ट्री की बुक है?" "हां! जी है।" "मुझे कुछ दिन को देंगे, क्या....?" "जी अवश्य..." और सुनील ने यूरोपियन हिस्ट्री की किताब एमए प्रीवियस की उसकी क्लास में आई नवप्रवेशित सुंदर, आकर्षक और शालीन लड़की रत्ना को दे दी। फिर रत्ना ने नोट्स बनाने में सुनील की मदद की। सहपाठी तो वे थे ही, आपस में दोनों का मेलजोल बढ़ता गया। कक्षा में दोनों ही सबसे होशियार थे, इसलिए दोनों के बीच स्पर्धा भी थी, पर पूरी तरह स्वस्थ। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के दिल में समाते ग...
वे दिन भी क्या थे
संस्मरण, स्मृति

वे दिन भी क्या थे

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब गर्मी की छुट्टियों में मुंबई से मेरे बड़े ताऊ जी-ताई जी, पापा, भैया-भाभी महानगरी ट्रेन से गाँव आते थे। घर के सभी लोग बहुत ख़ुश होते थे। कि मई माह तक सभी लोग साथ में रहेंगे। १९९० तक मेरे घर का पिछला हिस्सा मिट्टी और खपरैल से, आगे का ओसारा ईंट-सीमेंट से बना हुआ सुंदर लग रहा था। उत्तर मुखी घर का दिशा होने के कारण घर की बायीं तरफ़ एक नीम का पेड़ था। नीम के पेड़ के नीचे छोटा चबूतरा था जिस पर सुबह-शाम लोग बैठकर चाय पीते थे। पास में ही बहुत सुंदर पक्का बैठिका, उससे लगा हुआ आम का बग़ीचा जो बैठिका के पीछे तक फैला हुआ था। घर और बैठिका के सामने ख़ूब बड़ा-सा द्वार, घर के दाहिने ठंडी के मौसम में गाय, भैंस, बैल को रहने के लिए मिट्टी, लकड़ी, खपरैल से बना हुआ घर था। ठीक उसी के सामने बड़ी-सी चरनी थी जिसमें...