अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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संस्मरण (द्वितीय पक्षाघात का एक वर्ष)
गत वर्ष ११-१२ अक्टूबर की रात जब सोया तब क्या पता था कि सुबह का अनुभव इतना पीड़ादायक होगा। लेकिन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही सबकुछ चलता है और सुबह जब होकर उठने को हुआ तब मैं एक बार फिर मुझे पक्षाघात का शिकार हो चुका था।
तब से लेकर आज एक वर्ष पूरा होने तक मुझे पीड़ा के अलावा अनेकानेक खट्टे-मीठे अनुभवों से दो चार होना पड़ा। यह अलग बात है कि अभी पता नहीं है कि मुझे इस पीड़ा से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इस पीड़ा के बीच जिस कटु अनुभवों से दो चार होना पड़ा, उसने पक्षाघात से भी ज्यादा पीड़ा दी। ईमानदारी से कहूं तो विश्वास कर पाना खुद ही कठिन हो रहा है, मगर जो खुद महसूस किया, जिसका खुद साक्षी हूं, जो मेरे साथ हुआ है, उसे नजरंदाज कैसे कर सकता हूं और फिर नज़र अंदाज़ कर देने भर स...