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गद्य

दीयों की दीपावली पर महत्ता
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दीयों की दीपावली पर महत्ता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कुम्हारों के वंशागत पेशे से जगमगाती आ रही है दीपावली। आधुनिक युग में आधुनिक साज सज्जा की रोशनी में ध्यान केंद्रित है। दीपावली की रौशनी में भी आधुनिकता परोसने की घुड़दौड़ मची है। देशी विदेशी कम्पनी अपनी नई छाप छोड़कर नई रौशनी को परोसकर दीपावली की रौशनी के रंग बिखेरना चाहती है। यह उत्सव संस्कृति, परम्परा के निर्वाह से गहरा जुड़ा है। इसमें दीयों का होना आवश्यक है। कहा जाता है बिन दूल्हे के बारात का कोई महत्व नहीं ठीक दीयों के बिन दीपावली सुनी समझी जाती है। घर की मांगलिक महालक्ष्मी की पूजा पद्धति, सजावट, घर की रौशनी में दीयों की खरीददारी अनिवार्य होती है। आधुनिक सामग्रियों को कितना ही क्यों न व्यवहृत किया जाए, दीये के स्थान को छीन पाना असम्भव है। पूजन पद्धति संस्कृति परम्परा के निर्वाह में दूसरी सामग्री मूल्यहीन होती है सिर्फ मिट्ट...
उठते ही रहना
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उठते ही रहना

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये एक सौ चालीस करोड़ लोगों का देश है। कुछ लोग चांदी का चम्मच लेकर जन्म लेते होंगे, पर कितने रोज जन्म ले रहे, कई घिसट रहे, कोई तड़प रहे, किसी ने कुछ पा लिया तो वह उसके स्वाद की चुस्कियां ले रहे, कोई पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा, कुछ उसी में पिस रहे, कुछ गिर के खड़े हो रहे, तो कुछ बार बार गिर रहे, कुछ एक दम गायब हो रहे जिनका अतापता ही नही। दुनिया रेलम पैला है। स्टेशन जैसी हड़बड़ी में सब है। कोई चढ़ गया कोई उतर गया कोई लटक के लहलुहाँ हुआ। कितने नज़ारों से भरी दुनिया है, किसी की कहानी दूसरे की कहानी से मिलती ही नही। सबके किरदार सबके मंच व अदायगी है। पर एक चीज जो सबमे सामान्य है शाश्वत है, विश्वव्यापी है, वह है गिर गिर के उठना, हर उठने की प्रक्रिया में कुछ सीखना, सीखे हुए में कुछ दूसरा मिला कर पहले की गलती को न दोहराते हुए कुछ अच्छा बड़ा करने...
भारतीय मतदाताओं का दृष्टिकोण
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भारतीय मतदाताओं का दृष्टिकोण

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** स्वत्नत्रता के ७५ वर्षों में हमारे देश का लोकतंत्र जितना सुदृढ़ और परिपक्व हुआ है, हमारा मतदाता उतना ही संकुचित होता जा रहा है। इसे एक विडम्बना भी कह सकते है। परन्तु यह वास्तविकता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण, पहले भी और आज भी भारत में राजनीतिक दलों का वैचारिक दृष्टि से परिपक्व न होना है। उनकी सोच राष्ट्र के लिए न होकर अपने दल के लिए और इससे बढ़कर भी नेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु होती है। लोकतंत्र यह लोगों द्वारा, लोगों के लिए ,लोगों की व्यवस्था होती है, यह मूल मंत्र राजनीतिक दलों द्वारा भुला दिया गया है। राजनीतिक दलों द्वारा भारतीय राजनीति का हित शुरू से ही मतदाताओं को अशिक्षित रखने में ही समझा गया। आजादी के बाद से ही हमारे देश में शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर बहुत कम खर्च किया गया है। परिवार और समाज में अगली पीढ़ी को शिक्षित, स्वस्थ ...
इच्छारोधन तप
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इच्छारोधन तप

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गाय को चरते देखा है, वह चरागाह में घांस जब खाती है ऊपर से घांस को खाते हुए आगे बढ़ती है। धीरे-धीरे मैदान की घांस कम हो जाती तब वह पूर्व स्थान पर आती तब तक फिर से घांस उग जाती। याब आप गधे को देखिए दोनो शाकाहारी जानवर है व घांस ही खाते हैं, गधा घांस को उखाड़ कर खाता व जड़ समाप्त हो जाती है। मनुष्य जाति गधे की तरह आचरण कर रही है, जो भी चीज मिलती है, उसको जरूरत है तो उसका भरपूर दोहन कर लेती है। पहले कोयले से बिजली बनाई वह भंडार जब खत्म होने को आया तो वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में पानी, पवन चक्की सोलर ढूंढ लिया। नदी की रेत निकाल कर उसको कंगाल कर दिया। पहाड़ो से कितनी चट्टाने आएगी व रेत बनेगी। बनने व उपभोग में बड़ा अंतर है याब रो रहे छलनी हो गई नदिया। ग्रामीण अंचल में लकड़ी ,बांस, बल्ली व बड़े पत्तो से झोपडी बनती, पुरानी होती तो जलावन बनती, नई क...
देश का कानून पहले अंधा था अब काना हो गया है
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देश का कानून पहले अंधा था अब काना हो गया है

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कानून देश की जाति, धर्म, लिंग,‌ अमीरी-गरीबी व औदा इन सबसे सर्वोपरि होता है। कानून समाज की एक सीमा होता है, जिसकी दीवारें विभिन्न कानूनी धाराओं से मिलकर बना होता है। देश के संविधान के अनुसार कानून से बड़ा कोई भी नहीं है। इसको आम जनता से लेकर आला हुक्मरानों को भी मानना पड़ता है तथा इसी कानून के दायरे में रहकर ही जीवन निर्वाह करना पड़ता है। जो भी इंसान अपने देश या क्षेत्र में बने किसी भी कानून का उलंघन करता है या फिर उसके दायरे से बाहर अनाधिकृत कार्य करता है तो उसको विधि द्वारा स्थापित नियमों के तहत दण्ड भुगतना पड़ता है। हांलांकि कानून समय के साथ परिवर्तन होता रहता है, क्योंकि समय के साथ व्यक्ति की परिस्थितियां भी बदल जाती है। जीवन जीने का नज़रिया यहाँ तक की मनुष्य की सोच भी बदल जाती है। कानून अंधा होता है, कोई दिक्कत नहीं...
वीगन
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वीगन

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वीगन का बड़ा प्रचार प्रसार है, कई बड़ी बड़ी हस्तियां वीगन भोजन कर रही है सन २००४ में जब अमेरिका गई तो एक वीगन परिवार में रुके। उन्होंने जो वीगन खाना खिलाया हमे तो कुछ फर्क लगा ही नही, टोफू की आइसक्रीम तो दो बार लेकर खाई उन्होंने बाद में बताया, भारतीय परिवार था। उन्होंने तो चार सौ लोगों की पार्टी भी की। अब तो भारत मे सड़को पर भी लिखा दिखने लगा है। जेनेलिया व देशमुख खुद तो वीगन है ही उनके बच्चों को बना दिया है। ये पौधों से पैदा हुआ खाना ही खाते है पशु उत्पादन नही अर्थात घी, दूध, दही, पनीर, बटर कुछ भी नही। इनका मानना है कि इस भोजन में धरती सब देती है। सारे मेडिकल टेस्ट बच्चों के भी कराए तो अच्छे परिणाम थे।हमारे विराट कोहली भी वीगन है, क्या धुंआधार बल्ले बाज़ी कर रहे। यानी कि मांसाहार व घी पुष्ट होंने की गारंटी नही है। ये लोग सारी मिठाई ...
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- ८
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राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- ८

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** एशिया में ढोल, ढोलक लोक संगीत का मुख्य अंग हैं। इसीलिए लोक ढोल या ढोलक विषयी गीत बहुतायत से मिलते हैं। यहाँ तक कि फिल्मों में भी ढोल/ढोल विषयी गीत मिलते हैं। राजस्थानी लोकगीतों में ढोलक विषय राजस्थानी लोक गीत तन और मन से सुन्दर नारी में सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति करने कला प्रति स्वाभाविक आकर्षण का उक सुन्दर उदाहरण है। राजस्थानी लोक गीत इंगित करता है कि गीत, संगीत और नृत्य का मानसिक प्रवृति के साथ घनिष्ठ संबंध है। एक सौन्दर्य उपासक नारी अपने प्रिय से ढोलक बजाने का आग्रह करती है। ढोलक बजाने के आग्रह में स्वाभाविक समर्थन भरा है। नारी कहती है कि हे प्रिय तू ढोलक ढमका और मै तरह के श्रृंगार कर साथ चलूंगी। थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो मै वारी जाऊं सा। मै वारी जाऊं सा। बलिहारी जाऊं सा। थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो बादल म्हारो लंहगा जी, किरण है ...
कुछ अलग सोचे
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कुछ अलग सोचे

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रावण था धरती पर इसलिए राम का जन्म हुआ फिर कैसे क्या हुआ सबको पता है। अब हर दशहरे पर खूब लेख लघुकथा कविता व्यंग सब खूब छपता है। रावण के गुणों का बखान भी बहुत होता, पर रोज नए आकार प्रकार के रावण प्रकट हो जाते है, इसराइल फिलिस्तान आ गये तो यूक्रेन खत्म हो गए क्या। हर त्योहार पर बुराई का नाश की बात होती है। नवरात्रि में एक बार बाजार निकल गई तो सड़क अधबने रावणों से पटी पड़ी थी, तब तो एक था अब हज़ारों रावण बनते व जलाए जाते है। क्या हम बनाने की प्रक्रिया को बंद कर सकते है क्या, बडे से बड़े बनाते, खरीदते, जलाते, देखते वक्त रावण ही प्रमुख हो जाता है। जितना हो हल्ला जलाने बनाने में हो रहा, शायद उतना ही रावणत्व पनप रहा। जलाने से बढ़ रहा तो गाड़ी रिवर्स में डाल के देखो तो सही, जिस की चर्चा करते, वही चीजें बढ़ती है इसके बदले अपना कीमती समय धन रामत्...
भाषा दीवार नही
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भाषा दीवार नही

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कलाम साहब ने पूरी शिक्षा तमिल भाषा मे ली, उनको अंग्रेजी नही आती थी। आप जानते है कि वे एक चोटी के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक है। बाद में उन्होंने कामचलाऊ अंग्रजी सीखी। ये कहना व सोचना की ज्ञान अंग्रेजी में ही पाया जा सकता है, सिरे से गलत है, अपनी मातृभाषा में हम ज्यादा चीजे कम समय मे सीख जाते है, जब बुद्धि परिपक्व हो जाय तब कोई भी भाषा सीखेंगे तो समय बहुत कम लगेगा क्योंकि मूल ज्ञान आपकीं भाषा मे आपके पास है तो अन्य भाषा की कोई भी बात से आसानी से जुड़ जाएंगे परन्तु अभी हर बच्चा ए फ़ॉर एप्पल में ही पूरी क्षमता व उर्जा समाप्त कर रहा है। नई शिक्षा नीति पर ध्यान देकर बालको को मेधावी बनाया जाय फिर अच्छे बेसिक के साथ जर्मनी जाए चाहे जापान सब कर लेगा। मध्यकाल में देशी भाषा के ज्ञान से बड़े काम किये ही थे। पर अब तो मोबाइल पर अनुवाद की खूब सुवि...
पशु मूत्र चिकित्सा पर्यटन
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पशु मूत्र चिकित्सा पर्यटन

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** पशु मूत्र चिकित्सा भारत में स्वमूत्र (५००० वर्ष प्राचीन) व पशु विशेषकर गौ मूत्र चिकित्सा ३००० व पहले से प्रसिद्ध चिकित्सा है। पंचगावय घृत व गौ मूत्र मंत्रणा तो प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। चरक संहिता सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश में मूत्र चिकित्सा हेतु विशेष अध्याय हैं। चरक संहिता के सूत्रस्थानम भाग के ९३ वे श्लोक से १०६ वे श्लोक तक मूत्र विवेचना है। इसी तरह सुश्रुत संहिता बागभट्ट संहिता में बे पशु मूत्र की विवेचना की गयी है। चरक संहिता ने निम्न पशु मूत्र से चिकत्सा पद्धति बतलायी है - १- भेड़ मूत्र २- बकरी मूत्र ३-गौ मूत्र ४-भैंस मूत्र ५- हस्ती मूत्र ६- गर्दभ मूत्र ७-ऊंट मूत्र ८-अश्व मूत्र चरक ने मूत्र के गुण इस प्रकार बताये हैं - गरम तीक्ष्ण कटु लवण युक्त पशु मूत्र निम्न रूप से औषधियों में उपयोग होते हैं - ...
विजयादशमी का सामाजिक महत्व
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विजयादशमी का सामाजिक महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत त्योहारों का देश है। इनकी महत्ता हर क्षेत्र को प्रभावित करती है। किंतु समाज, जो जनसमूह से बनता है, के हितार्थ ही मानो त्योहारों की संरचना हुई है। समाज को चलाने में नैतिक मूल्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। दशहरा उत्सव की जड़ में है रावण जिसने सीता को हरा था। इसके पीछे रावण का अहंकार व विजेता बनने की लालसा थी। मर्यादा के प्रतीक राम ने रावण को हराया अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत। समाज के भी नियम होते हैं...सदाचरण यानी नारी मात्र का आदर करना। जो यह नहीं पालन करता, उसे सजा मिलनी ही चाहिए। रावण के दस सिर दिखाए गए हैं व आज भी बनाए जाते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, वासना ये पाँच विकार हैं। रावण के दस सिर यानी पाँच स्त्री के विकार व पांच पुरुष के। समाज में ये विकार नहीं होने चाहिए। प्रेम सुख शान्ति चरित्र की पवित्रता व दुर्गुणों से ल...
संशयात्मा विनश्यति
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संशयात्मा विनश्यति

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहा जाता है संशयात्मा विनश्यति। इसका अर्थ है संशय करने वाली आत्मा विनाश को प्राप्त करती है। परन्तु सामान्य जीवन मे जो शंका करता है वही आगे बढ़ता है, न्यूटन, गेलिलियो नचिकेता शंकराचार्य जो भी किसी भी क्षेत्र के हो जिसने कब क्यों कहाँ कैसे नही पूछा वे वही खड़े रहे आकार प्रकार में बड़े हुए होंगे पर ज्ञान कला गुणों का विकास तो जिज्ञासा से ही होता है, सेव नीचे क्यों गिरा उस पर विचार किया तो गुरुत्वाकर्षन की खोज हुई फिर उसी को आधार मान कर पूरा स्पेस साइंस की खोजे हुई है। जो जितने ज्यादा सवाल पूछता अध्यापक का प्रिय पात्र बनता व वे भी उसको आगे तुम्हे कैसे व क्या पढ़ना चाहिए के लिए निर्देश देते है। कोलंबस वास्कोडिगामा मेगस्थनीज़ सब शंका उत्पन्न हुई तो खोज कर पाए। जो है उसको अगर यथावत स्वीकार लेते तो आज पाषाण युग मे ही जीते। पर जिज्ञासु सब हो ...
अनुभवों संग पक्षाघात बना  वरदान
संस्मरण

अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** संस्मरण (द्वितीय पक्षाघात का एक वर्ष) गत वर्ष ११-१२ अक्टूबर की रात जब सोया तब क्या पता था कि सुबह का अनुभव इतना पीड़ादायक होगा। लेकिन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही सबकुछ चलता है और सुबह जब होकर उठने को हुआ तब मैं एक बार फिर मुझे पक्षाघात का शिकार हो चुका था। तब से लेकर आज एक वर्ष पूरा होने तक मुझे पीड़ा के अलावा अनेकानेक खट्टे-मीठे अनुभवों से दो चार होना पड़ा। यह अलग बात है कि अभी पता नहीं है कि मुझे इस पीड़ा से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इस पीड़ा के बीच जिस कटु अनुभवों से दो चार होना पड़ा, उसने पक्षाघात से भी ज्यादा पीड़ा दी। ईमानदारी से कहूं तो विश्वास कर पाना खुद ही कठिन हो रहा है, मगर जो खुद महसूस किया, जिसका खुद साक्षी हूं, जो मेरे साथ हुआ है, उसे नजरंदाज कैसे कर सकता हूं और फिर नज़र अंदाज़ कर देने भर स...
गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
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गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या (गढ़वाली व राजस्थानी लोक गीत तुलना श्रृंखला) जल जीवन है। सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने परम्परा होती थी। राजस्थान हो या गढ़वाल-कुमाऊं का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य या परम्परा थी। भौगोलिक विशेषताओं के कारण दोनों क्षेत्रों में, जल सोत्र, पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग-अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग-अलग हैं। दोनों क्षेत्रों में जल भांड भी भिन्न होते हैं। देखें लोक गीतों में उत्तराखंड व राजनस्थान क्षेत्र की क्या क्या विशेषताएं होती हैं। राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या राजस्थान में पानी की कमी है, पानी भरने दूर कुँएँ तक जाना होता है और पानी लेन की क्या क्या समस्याएं हैं वह इस गीत म...
नौ स्वरूप माता के
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नौ स्वरूप माता के

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इन नौ दिनों में पूरी भक्ति से मां दुर्गा की उपासना की जाएगी। नवरात्रि का हर दिन मां दुर्गा को समर्पित है। नवरात्रि के नौ दिनों तक दुर्गा मां के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के अंतिम दिन को महानवमी कहा जाता है और इस दिन कन्या पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कि नवरात्रि में किस दिन माता के किस स्वरूप को पूजा जाएगा। १. माँ शैलपुत्री माँ दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री है। शैल का मतलब होता है शिखर। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार देवी शैलपुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री है, इसीलिए देवी शैलपुत्री को पर्वत की बेटी भी कहा जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। मां के ...
चंद्रयान और चांदी
व्यंग्य

चंद्रयान और चांदी

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चंद्रयान ३ की सफलता के बाद भारत भर में खुशियां छाई हैं, सुदूर चांद तक इसकी ऊंचाई है। पूरे देश में बहुत ही जोश-खरोश से जश्न मनाया गया, मिठाईयां बांटी गई तो कहीं पटाखे फोड़े गए, सबने अपने अपने ढंग से और पूरे मन से इस चंद्र पर्व को मनाया। न वर्ग गत और न ही दलगत राजनीति इसमें आड़े आई, सब तरफ बस खुशी छाई। अभी पूरा सप्ताह हमारा चंद्रमय हो गया। मन में इतना उत्साह था की क्या बताएं। जो बचपन से चंदा मामा आसमान पर टांका हुआ था, लगा जैसे अचानक हमारे हाथ आ गया। कितनी गर्मी, सर्दी, बरसातें, देख ली आसमान में ताकते हुए, कभी किसी सुंदरी का सुंदर चेहरा न दिखा तो चांद को देख लिया, भारतीय उत्सव प्रियता का एक अदद बिंदु चांद करवा चौथ वाली बहुओं का झीनी जाली से देखा जाने वाला चांद जो अपने पति की लंबी उम्र की कामना में कई उपवास खुलवाता है और ...
भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…
व्यंग्य

भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ********************  मेरा देश, महान देश है, भरत चक्रवर्ती के नाम पर बना भारत। राजा थे चक्रवर्ती राजा, रिद्धि-सिद्धि उनके यहां स्थाई निवास करती थी, सुवासित बहती हवाएं, बाग-बगीचे महलों, हवेलियों में हर वक्त मुक्त रुप बहती थीं। पक्षियों के कलरव, कोकिल कंठी कोयलों के गान, सर उठाए खुला आसमान और सुंदर वितान। परिचारिकाएं और परिचारक रात दिन उनकी सेवा में रत फूले नहीं समाते थे, हर वक्त खुशी के गीत गाते थे। बागों में लहराती तितलियां, गुंजायमान भंवरे, खिले फूलों की सुवासित सुरभि में देश डूबा हुआ रहता था, सुंदर परिवेश, इंद्र के सारे वैभव विद्यमान चौबीसों घंटे आनंद स्नान। जैसी नीव होती है उसी अनुरूप महल तामीर होते हैं, कालांतर में देश वैसा ही हुआ जैसा जन्मना शाही था। सारे विश्व की आंखें हम पर गड़ी रही। जो आया हम बांहे पसारे उसके स्वागत में वसुधैव कुटुंब...
मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण है काव्य संग्रह- जीजिविषा
पुस्तक समीक्षा

मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण है काव्य संग्रह- जीजिविषा

काव्य संग्रह का नाम- जिजीविषा रचनाकार का नाम- मोनिका प्रकाशक- बीएफसी पब्लिकेशन गोमती नगर लखनऊ पुस्तक की कीमत- २७० रूपए। पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी "निर्मल" (रीवा मध्य प्रदेश) देश की वरेण्य कवयित्री लखनऊ निवासी मोनिका जी की काव्य संग्रह जीजिविषा पढ़ने को मिली। इस काव्य संग्रह में मानवीय संवेदना से परिपूर्ण कुल चालीस नई विधा की कवितांए हैं।यह काव्य संग्रह पाठक को चिंतन के धरातल पर ले जाता है। जीवन के सच्चे लगाव को प्रकट करती इन कविताओं मे मानव मन के सरल निश्चल भावों की अभिव्यक्ति समायी है। कविता में चिंतन उसके अर्थ को गहराई प्रदान करता है।काव्य संग्रह 'जीजिविषा' में रचनाकार के सरोकारों का दायरा विस्तृत है और वैयक्तिक भावों के अलावा कवयित्री मोनिका के सामाजिक सरोकार भी बेहद पैनी और सधी भाव भंगिमा भी इन कविताओं में समाहित है। कविता जीवन से आत्मीयता और प्रेम प्रकट करने वाली विधा है। क...
आदमी और कुत्ता
व्यंग्य

आदमी और कुत्ता

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ********************  मेरे एक मित्र ने नया मकान बनवाया, अक्सर वे मुझसे बड़े भाई की हैसियत से सलाह ले लिया करते हैं। बड़े भाई लोग दो तरह के होते हैं, एक वह जो शहर को सम्हाले रखते हैं और उनकी भाईगिरी के चर्चे थानों से लेकर बाजारों तक और बड़े क्लब, मॉल, थिएटर, होटलों से लेकर, बाजारों के। व्यापारिक संगठनों, रेहड़ी संगठन, ऑटो रिक्शा संघ, ट्रक ऑनर एसोसिएशन, भू माफियाओं, कैसिनो, और तमाम तरह के जरायम पेशा धंधों चोर, गिरहकटियों, उठाईगिरों आदि जिन्हें की सभी को अब संगठित शक्ल दे दी गई है, इन सभी जगह के छोटे-छोटे भाईयों के ऊपर बड़े भाई के कंधे हैं उसी पर रखकर ये छुटभैय्ये अपने निशाने साधते रहते हैं, ये बड़े मजबूत कंधे सबका बोझ सम्हाले हुए रहते हैं और ये सभी उन्हें कभी दशहरा की पांवधोक के बहाने, तो कभी ईद की ईदी के नाम, कभी दीपावली की मिठाई के नाते, तो क...
गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)
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गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती मनुष्य विकास के कारण मनुष्य में अन्य जानवरों के गुण पाए जाने से गंध, सुगंध का अति महत्व है। हमारे पांच इन्द्रियों में सबसे अधिक महत्व गंध का है। हम जो पढ़ते हैं या देखते हैं वह कुछ दिनों में भूल जाते हैं, जिसे छूते हैं उसका स्मरण कुछ माह तक होता है जो सुनते हैं कुछ समय तक याद रखा जा सकता है किन्तु जो सूंघते हैं (भोजन स्वाद भी सूंघने से पैदा होता है) व सबसे अधिक समय तक याद रहता है। हमारे कम्युनिकेशन में ४५% कार्य सुगंध या गंध का हाथ होता है। हमारी किसी के प्रति चाहत, प्रेम, उदासीनता, घृणा में गंध इन्द्रिय का सर्वाधिक हाथ होता है। हम अन्य इन्द्रिय प्रबह्व को परिभासित कर सकते हैं किन्तु गंध का विवरण देना नामुमकिन ही सा है। किड़ाण या खिकराण को परिभाषित करना कठिन है। गंध/सुगंध पर्यटन का मुख्यांग है ...
गढ़वाली और राजस्थानी लोकगीतों में देवी देवताओं का आम मानवीय आचरण
आलेख

गढ़वाली और राजस्थानी लोकगीतों में देवी देवताओं का आम मानवीय आचरण

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन : भाग- ५ भारत में सभी देवताओं को महानायक प्राप्त है। फिर भी लोक साहित्य में देवताओं को मानवीय व्यवहार करते दिखाया जाता है। राजस्थानी और गढवाली लोक गीतों में देवताओं को मानव भूमिका निभाते दिखाया जाता है। लोक गीतों में देवता अपनी अलौकिकता छोड़ में क्षेत्रीय भौगोलिक और सामाजिक हिसाब से में मिल गये हैं। लोक गीतों में शिवजी-पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु सभी देवगण साधारण मानव हो जाते है। लोक साहित्य विद्वान् श्री विद्या निवास मिश्र का कथन सटीक है कि "शिव, राम, कृष्ण, सीता, कौशल्या या देवकी जैसे चरित्र भी लोक साहित्य के चौरस उतरते ही अपनी गौरव गरिमा भूल कर लोक बाना धारण करके लोक में ही मिल जाते हैं। यहाँ तक कि लोक का सुख-दुःख भी वे अपने ऊपर ओढ़ने लगते हैं। उसी से लोक साहित्य की देव सृष्ठि भ...
“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है
पुस्तक समीक्षा

“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कृति - संवेदना के स्वर कृतिकार - डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ पृष्ठ संख्या - ८० मूल्य - १०१ रू. प्रकाशन - पाथेय प्रकाशन, जबलपुर समीक्षक - प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे, (प्राचार्य) शा. जे. एम. सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.) वर्तमान की सुपरिचित लेखिका, कवयित्री, लघुकथाकार डॉ. संध्या शुक्ल ’मृदुल’ की ताजातरीन कृति लघुकथा संग्रह के रूप में जो पाठकों के हाथ में आयी है, वह है ‘संवेदना के स्वर’। इस उत्कृष्ट लघुकथा संग्रह में समसामयिक चेतना, परिपक्वता, चिंतन, मौलिकता, विशिष्टता, उत्कृष्टता व एक नवीन स्वरूप को लिए हुए उनसठ लघुकथाएं समाहित हैं। पाथेय प्रकाशन, जबलपुर से प्रकाशित यह लघुकथा संग्रह अस्सी पृष्ठीय है जिसमें वर्तमान के मूर्धन्य साहित्यकारों एवं स्वनामधन्य व्यक्तित्वों ने अपनी भूमिका, आशीर्वचन लिखा है जिनमें डॉ. क...
गणपति बप्पा
कहानी

गणपति बप्पा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मम्मा बहुत रो रही थी। उसकी आंखें रोते हुए सूज गई थी। लाल आंखों से सूना पूजा घर देखते ही फफक पड़ती थी। पापा ने सभी मूर्तियां फोटो एक बेग में भरकर रख दिए थे। उन्हें नदी में विसर्जित करने के लिए गाड़ी बाहर निकालने के लिए चले गये। मम्मा रोते हुए बोल रही थी, इसमें इन देवी देवताओं का क्या दोष है। भले घर में रहने दो पूजा अर्चना नहीं करेंगे। ऐसा सूना पूजा घर अच्छा नहीं लगता है। पलट कर पापा ने कहा, सारा दिन देवताओं की कृपा कहना और सही पुरुषार्थ को राम राम कहना। करतबगार बनना, देवो जैसा बनना ये भावनाएं तो बाजू में रह गई, बस सब कुछ भगवान की कृपा कहते इतीश्री करना, ऐसा धंधा किसने कहा। सुनकर भी मैं थक गया हूं। क्रोध से भरें पापा ने पीछे देखा ही नहीं और गेट की ओर चल पड़े हाथ में झोला था। उसे गाड़ी में रख दिया। गणेश चतुर्थी के लिए भी चार दिन ही ...
वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी
आलेख, धार्मिक

वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** चंदनं शीतलं लोके चं चंद्रमा। चन्द्रचन्दनद्वयोर्मध्ये शीतलाः साधुसंगतिः॥ वर्तमान में आप श्रमण संस्कृति के सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संत हैं। आप वर्तमान शासननायक भगवान महावीरस्वामी की परंपरा में हुए आचार्य आदिसागर अंकलीकर, आचार्य महावीरकीर्तिजी, आचार्य विमलसागरजी एवं आचार्य सन्मति सागरजी महाराज की निग्रंथ वीतरागी दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के प्रतिनिधि गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज से दीक्षित, उनके बहुचर्चित व ज्ञानवान शिष्य हैं। तथा अपनी आगम अनुकूल चर्या एवं ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं । आज से ०२ वर्ष पूर्व २०२१ में जब इटावा चातुर्मास के दौरान होने वाली पत्रकार संपादक संघ संगोष्ठी में आपके समक्ष पहुंचने का अवसर मिला और आपका वात्सल्य और आशीष से ही में अभिभूत हो गया और ऐसा लगा कि - बहती जिनके मन...
मानवीयता
लघुकथा

मानवीयता

माधवी तारे लंदन ******************** कई साल से विदेश में मरीजों की सेवा करने वाले प्रख्यात चिकित्सक अपने अस्पताल की ड्यूटी खत्म होने के बाद अपनी क्लिनिक में आकर बैठे। वहाँ भी मरीजों की कतार लगी थी। एक-एक मरीज लाइन से आकर अपने समस्या बताकर दवाई की पर्ची ले जा रहा था। अभी लाइन खत्म ही नहीं हुई थी कि एक वृद्ध महिला के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। उसके पैर में गहरा जख्म था, वेदना असह्य हो रही थी। वह बहुत ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी उसके साथ उसकी बेटी थी, चिल्लाने की आवाज सुनकर डॉक्टर अपनी सीट छोड़कर बाहर आए और पूछा – “क्या हुआ बेटा” ? परिस्थिति की गंभीरता देखकर डॉक्टर ने लोगों से उस महिला को टेबल पर लिटाने को कहा, बाकी मरीजों को छोड़कर डॉक्टर उस महिला के जख्म का इलाज करने लगे। फिर डॉक्टर दूसरे मरीजों को देखने चले गए और उस महिला को और क्लिनिक के पलंग पर लेटे रहने दिया, महिला की स्थिति को देख...