Wednesday, January 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गद्य

जर्जर घर
लघुकथा

जर्जर घर

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** कभी-कभी कहानियां इंसान नहीं सुनाते। टूटे, उजड़े घर जो कभी शोरगुल से भरे थे भी कहानियां सुनाते हैं। जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, जहां कभी पायल की झंकार सुनाई पड़ती थी ..... आज वो घर अकेला, जर्जर खड़ा है। अपने मायके के घर के बाहर आँगन में खड़ी वान्या यही सोच रही थी कि एक समय था जब यहाँ उसकी और भाई की हँसी, मस्ती और लड़ाईयाँ गूँजा करती थी। पापा और मम्मी का लाड़, दुलार, नसीहतें, प्यार भरी डाँट बरसती थी। हर त्यौहार पर घर सजता था। पकवान बनते थे। गीत, संगीत ,खुशियाँ होती थी। दोस्तों की टोली की शैतानियों, पड़ोस की आँटीयों की बातों से गुलजार इस घर की शामें होती थी । फिर पापा के ऑफिस से आने के बाद दिन भर के किस्सों की महफिल सजती थी। माँ के हाथ के गरम खाने के स्वाद और पापा की सीख भरी कहानियों के साथ निंदिया की नगरी की सैर की जाती थी ...
नाक रगड़ना
लघुकथा

नाक रगड़ना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अबे साले, आज भी तूने स्कूल के सामने खड़े होकर लड़कियों को छेड़ा। तुझे शर्म आनी चाहिए। कुछ उम्र का तो लिहाज रखता, कहते हवलदार ने आव देखा न ताव, हाथ का डंडा पीठ पर दे मारा। वह हे राम ! कहते, लड़खड़ाते नीचे गिर पड़ा। अब राम याद आ रहा है। घूरकर देखते समय आंखें निकाल लेता, मारने के लिए हवलदार के हाथ का डंडा ऊपर ही रह गया। सोहन ने हाथ पकड़ कर कहा, देखो हवलदार साब आप सही नहीं है, जानकारी पूरी लेकर हाथ चलाना चाहिए। सोहन गुरुकुल का समझदार लड़का था। प्यारेलाल फटेहाल प्रौढ़ था। वह अक्सर स्कूल से घर जाती बालिकाओं पर नजर इसलिए रखता था कि, कहीं मनचले लड़के तंग न करें। चल जा, "बड़ा आया अपनी ताक़त दिखाने वाला। तुम्हें क्या मालूम ये आदमी कैसा है।" सोहन को झटककर बाजू में कर दिया। प्यारेलाल ने हवलदार के सामने ख़ूब नाक रगड़ी, लेकिन उसने उसे छोड़ा नही...
दर्शन विशुद्धि
आलेख

दर्शन विशुद्धि

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई भी दर्शन अपने आप मे अच्छा, ही होता है, क्यों कि जिसने भी प्रतिपादित किया उसने कितना चिंतन करके प्रतिपादित किया है, इसका तत्कालीन समाज ने विरोध किया तब भी स्थापित हुआ, यानी कोई तत्व तो सुदृढ होगा ही। इसलिए जब तक कोई दर्शन, दर्शन रहता वह विस्तार पाता है तब तक सब अच्छा चलता भी है। परंतु जब वह संगठन या सम्प्रदाय बन जाता है तो उसमे विकृतियां आ जाती है व्यक्तिवाद रूढ़ हो जाता है फिर अति विकृत होते ही दर्शन गौण व संगठन प्रमुख हो जाता फिर उसमे सडांध पैदा हो जाती है, फिर कोई चिंतक उसी दर्जे का आता है तो पुनरोद्धार हो जाता है, जैसे महर्षि दयानंदसरस्वती, यविवेकानंद या महर्षि अरविंद। मार्क्सवाद अच्छा था कई देशों में फैला भी रूस चीन बड़े अनुयायी थे। मार्क्सवादी पार्टी जब बनी कुछ दिन ठीक चला फिर वामपंथ जैसी अवधारणा के कारण क्षरण होता चला गय...
मकर संक्रांति का महत्व
आलेख

मकर संक्रांति का महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत के विभिन्न त्योहारों में से, विशेषकर ज्योतिष विज्ञान पर आधारित, मकर संक्रांति एक है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है और पृथ्वी के सबसे निकट होता है। धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश से यही नाम रखा गया। ऋतु परिवर्तन का संधिकाल अर्थात जाड़े की विदाई व ग्रीष्मा रानी का आगमन। पौष माह से माघ में प्रवेश। अमूमन यह चौदह जनवरी को आता है किंतु कभी-कभी मौसम परिवर्तन से तेरह या पँद्रह जनवरी को भी पड़ जाता है। पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। ज्वार मक्का की धानी, सिके चने व मुमफली जैसे चना-चबीना,बीच में आग जलाकर बाँटते व खाते हैं। दक्षिण में केरल व कर्नाटक में संक्रांति तथा तमिलनाडु में पोंगल मनाते हैं, नई फ़सल के उपलक्ष में। सुंदर फूलों आदि से रांगोळी बना पूजा-नृत्य करते हैं। घरों में नए अनाज की खाद्य सामग्री बनती...
मानते हैं पर करते नहीं
आलेख

मानते हैं पर करते नहीं

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नर व नारी...मनु व शतरूपा से बने हमारे समाज में जब भी तीसरी प्रजाति का ज़िक्र आता है, मन करुणा से भर जाता है। सामाजिक संस्थाबाएँ बस इनकी गणना करवाती हैं ताकि भीड़ जुटा कर फोटो खिचवा सके। नलसा निर्णय भी इनकी गिनती करवाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। इनका अवतरण प्रकृतिजन्य त्रुटि ही है। जैसे मशीनों द्वारा भी कुछ आधे-अधूरे प्राडक्ट रह जाते हैं। इसमें किसी का क्या कुसूर भला ? युगों से यह परंपरा चली आ रही है। ये जनोत्पति का हिस्सा रहे हैं। पुराण व इतिहास भी इसके साक्षी हैं। यह तीसरी प्रजाति मूलत: हिमालय क्षेत्र की मानी जाती है। अर्जुन व एक नागकन्या के प्रेम का परिणाम है उनका पुत्र इरावन । इन्हें ही किन्नरों का देवता माना जाता है। अर्जुन स्वयं वनवास काल में किन्नर बन कर रहे थे। कहते हैंं इरावन का विवाह नहीं होने से स्वयं कृष्ण ने नारी रूप धर ...
विनोबा जी के सतकार्य
आलेख

विनोबा जी के सतकार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विनोबा जी व गांधी दोनो साथ रहे गाँधीजी राजनीतिक संत थे तो विनोबा जी आध्यात्मिक संत थे जो राजनीति में भी सक्रिय तो थे पर मूल उनका आध्यात्मिक ही था देश प्रेमी के साथ अध्ययनशील भी थे। विनोबा जी पवनार आश्रम से अपनी गतिविधियां चलाते थे। भूदान आन्दोलन से भूमिहीनों को भूमि दिलवा कर, आत्मसम्मान से जीना सिखाया मजदूर से मालिक बनाया। बड़े जमीदारों से सिर्फ छह प्रतिशत जमीन मांगी उनकी सदाशयता देख दी भी, खुशी से ये उनकी संतई थी। जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया था। गीता रहस्य तो लिखा, पर अंत समय जैन मुनि से संथारा लिया जो तीन दिन में सींझा। जैन कुल में जन्म लेने से बड़ी बात है, इसके सिद्धांत में गहन आस्था व निष्ठापूर्वक पालना। हमे अपने से परे जाकर यह भी देखना होगा कि कौन अजैन जैन दर्शन की पताका को प्रशस्त कर रहे है। ताकि हम युवाओं को प्रेरित कर सके...
परख
लघुकथा

परख

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** "क्या हुआ दीपू बेटा? तुम तैयार नहीं हुई? आज तो तुम्हें विवेक से मिलने जाना है।" दीपिका को उदास देखकर उसके दादा जी ने उससे पूछा। "तैयार ही हो रही हूँ दादू।" दीपिका ने बुझे मन से कहा। "पर तुम इतनी उदास क्यों हो?" "पापा ने मुझे कहा है कि आज ही विवेक से मिलकर शादी के लिए कन्फर्म कर दूं।" "तो इसमें प्रॉब्लम क्या है बेटा?" "आप ही बताओ दादू! एक बार किसी से मिलकर उसे शादी के लिए कैसे फाइनल कर सकते हैं ?" "तो एक-दो बार और मिल लेना। मैं तुम्हारे पापा से बात कर लूंगा।" "पर दादू एक-दो बार में तो हर कोई अच्छा ही बनता है।" दीपिका ने मुँह बनाते हुए कहा। "अच्छा ये सब छोड़, मुझे कुछ खाने का मन कर रह है तो पहले ऐसा कर मेरे लिए पका फल ले आ।" दीपू गई और किचेन से एक पीला-पीला मुलायम अमरूद ले आई, "ये लीजिए दादू आपका फल।" "दीपू बेटा एक बात बता, क...
अन्न-जल
संस्मरण

अन्न-जल

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मैं बद्दी (हि.प्र.) में रहता हूं और मेरी बुआ दमोह(म.प्र.) में रहती हैं। तीन महीने पहिले बुआजी का फोन आया। उन्होंने बताया कि २५ दिसंबर को मेरे पोते की शादी है और तुम्हे जरूर आना है। वैसे भी शादी के अवसर पर ढेर सारे रिश्तेदारों से मुलाकात हो जाती है इसलिए मेरा भी प्रयास रहता है कि मैं इस प्रकार के प्रत्येक कार्यक्रम में जरूर उपस्थित रहूं। २५ दिसम्बर को उनके यहां शादी थी मैने २३ दिसम्बर को अपना रेल आरक्षण करा के रख लिया। मैं २३ दिसम्बर को बस से दिल्ली के लिए रवाना हुआ क्योंकि दिल्ली से आगे के लिये रेलगाड़ी में आरक्षण करा के रखा था। बस जैसे ही दिल्ली की सीमा में घुसी ट्रैफिक बहुत जाम था एक से डेढ़ घंटा इस ट्रैफिक से निकलने में लग गया। बस से उतर कर ऑटो से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा यहां पर भी ट्रैफिक में जाम लगा हुआ था। स...
बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए
आलेख

बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीजें हैं अपना समय और अच्छे संस्कार। एक श्रेष्ठ बच्चे का निर्माण सौ विद्यालय बनाने से भी बेहतर है।" -स्वामी विवेकानन्द बाल-विकास की अवधि गर्भावस्था से परिपक्वता तक मानी जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु पर माता के खान-पान, आचार-विचार एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। माता को "भए प्रगट कृपाला" जैसे पाठों का वाचन-श्रवण करने की सलाह दी जाती है। अभिमन्यु, चक्रव्यूह प्रवेश की जुगत माँ के गर्भ से सीखकर आया था। ईंट अपने साँचे जैसी ही ढलेगी। १ से ५ वर्ष तक शैशवास्था में बच्चा परिवार में रहता है। गीली मिट्टी से जैसा कुम्भ चाहो गढ़ लो। संस्कार किसी मॉल से नहीं, घर-परिवार के माहौल से मिलते हैं। कहते हैं... "बुढ़ापे में रोटी औलाद नहीं, हमारे द्वारा दिए संस्कार देते हैं" "बातों से संस्कार का पता चलता है" ५ से १२...
पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी
आलेख

पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पानी रे पानी तेरा रंग कैसा... रंग पूछ रहे हो मुझसे मेरा। मेरा अपना कोई रंग है ही नहीं। मैं बेरंगा पारदर्शी तरल पदार्थ हूँ। किन्तु मैं परिस्थिति के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेता हूँ। उच्चस्तरीय शीतलता पाकर बर्फ़ बन जाता हूँ। ऊष्मा पाकर वाष्प बन जाता हूँ। अपने स्वरूपों में बदलाव लाते हुए रिमझिम वर्षा बनकर धरा को निहाल कर देता हूँ। कभी माँ के गर्भ में समा जाता हूँ तो कभी पिता आसमान की गोद में जा बैठता हूँ। किन्तु मैं अपना उपकारी स्वभाव विस्मृत नहीं करता। और तुम मूर्ख मानव ! अभी तक मुझे समझ नहीं पाए। कब तक करूँ मैं तुम्हारी गलतियाँ माफ़ ? मुझसे ही कुछ सीख लो। याद करो... सुबह उठने से लेकर तो रात में सोने तक मुझे कितना बर्बाद करते हो। उठते से ही गए वाशबेसिन पर। धड़ाधड़ खोला नल और बहा दिया पूरा आधा बाल्टी। यही काम एक मग से भी हो सकता है...
भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६
आलेख

भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गुप्त कालीन आभूषण - गुप्त कला के शुरुवात कब हुयी पर अभी तक चर्चा होती ही रहती है व यह सत्य है कि सभी गुप्त युग को चौथी सदी के प्राम्भिक वर्षों से मध्य आठवीं सदी तक माना जाता है। वेशभूषा व आभूषण - बुध गुप्त के बुध गुप्त के अभिलेख पढने से गुप्त साम्राज्य के निम्न सम्राटों की सूचना मिलती हैं - महाराजा श्री गुप्त महाराजा श्री घटोंत कच्छ महाराजधिराज श्री चंद्र गुप्त प्रथम समुद्र गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय कुमार गुप्त प्रथम स्कन्द गुप्त पुरु गुप्त नरसिंघ गुप्त कुमार गुप्त द्वितीय बुद्ध गुप्त विनय गुप्त भानु गुप्त साक्ष्य - मुद्राएं, आदेश, अजंता, एलोरा उड़्यार, कई अभिलेख, यात्रियों की आत्मकथा, बाणभट्ट, कालिदास सरीखों के साहित्य आदि पुरुष वेशभूषा गुप्त सम्राटों ने कुषाण युग की शैली को अपनाया कि वेशभूषा पद व सम्मान के अनुसा...
तालियाँ
लघुकथा

तालियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रादेशिक नृत्य प्रतियोगिता के लिए नाम दर्ज हुआ था "मृणाल रेगे"। एक नाज़ुक सा साया मंच पर आया। मंच पर रोशनी होले-होले पसरने लगी। इस स्वप्न सुंदरी के आने से मंच और भी प्रकाशित हो गया। नाज़ुक सी नार-नवेली छा गई। गुलाबी चूनर से ढका मुखड़ा व रंगबिरंगी घेरदार कलियों वाला घाघरा। बगैर कुछ बोले उसने हाथ जोड़े और लगी नाचने...मैं ससुराल चली जाऊँगी...। दर्शक मंत्रमुग्ध हो निहारने लगे। शायद तालियाँ बजाना ही भूल गए। निर्णायकगण खड़े हो गए। अंत में घूमर का जलवा दिखाया। ज्यों ही घूँघट हटाया और नमस्कार बोला, अचंभित हो सब देखने लगे। एक निर्णायक से रहा नहीं गया, पूछ बैठे, " आप लड़के... हो। " सिहरती-सहमती मर्दानी आवाज़ सुनाई दी, "जी, मैं मृणाल, न लड़का और न लड़की।" हॉल में सन्नाटा, कहीं से सिसकियाँ भी सुनाई दी। जजों ने ख़ूब सराहा, "एक बार सब मृणाल के लिए जो...
नकद का मूल्य
आलेख

नकद का मूल्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इनाम किसी को भी मिले मज़ा बहुत आता है। पर कई बार इनाम जीतने वाला प्रतिभा सम्पन्न हो पर कड़का हो तो उसको इनाम ने नकद रकम की दरकार होती है, वह उधार की चीजे पहन के गया हो तो अगर इनाम में बांड मिल जाये जो एक साल बाद कैश होगा ब्याज के साथ, तो सोचिए कितनी विडंबना हो जाती है। हमारे देश मे कई खिलाड़ी संघर्ष रत होते है जिन्हें नकद राशि ही चाहिए होती है। एक विश्वप्रसिद्ध कहानी है जिसमे एक लड़की दुआ करती है कि मेरे भाई को सेकंड प्राइज मिले क्योंकि उसमे जूते मिलने वाले थे, वे दोनो भाई बहन जूते बारी बारी से पहन कर दौड़ने की प्रैक्टिस करते थे, भाई को प्रथम पुरस्कार मिला तो रोने लगी, कारण जब बताया तो आयोजको की आंखे खुली कि संघर्ष का जज्बा क्या होता है नकद की कीमत क्या है। इनांम गिफ्ट में जो चीजे दी जा रही है सोचा तो जाना ही चाहिए कि क्या दिया जाय। ...
आमाशय
आलेख

आमाशय

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महिला जो बुजुर्ग होने के कारण सात्विक तो थी ही बाहर का कुछ खाती नही थी। किसी विवाह समारोह से सड़क यात्रा से आरहे थे। रास्ते मे बैतूल आया हमारे मित्र रहते थे। उनके घर खाना खाने का सोचा, साथ मे था ही मिलना व चाय हो जायेगी। वहां बहुत प्यार से चाय पिलाई गई। गप्पे चली, सासुमा का रात्रिभोजन का समय हो गया उनको मैने पूरी व उनका मसाला एक प्लेट में रखा व दिया। मेरी मित्र ने कई चीजें परोसने का आग्रह किया, मगर अपने नियम धरम के चलते उन्होंने कुछ भी नही लिया। अब मेरी मित्र कहने लगी माताजी पूरी के साथ कौन सा मसाला खा रही है। मैंने जवाब दिया तेल में जीरा डाल नमक व मिर्ची दो बूंद पानी बस। मुझे चखना है मैंने उनको दिया उनको बहुत ही टेस्टी लगा। ये वो महिला थी जो ग्रुप की पाककला में निपुण मानी जाती थी हमेशा कुछ नया खिला कर चमत्कृत करती थी। भोजन का...
श्रम साधना
लघुकथा

श्रम साधना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** चिमनी की टिमटिमाती रोशनी में रामू चटनी के साथ बाजरे की रोटी का कोर मुंह में चबाते हुए पत्नी से शिकायत भरे लहजे में कहा - 'यह लगातार तीसरा महिना है, जिसमें हमारी बनाई ईंटों में ठेकेदार ने कमी निकालकर पैसे काट लिए' गौरी मेरे समझ में नहीं आता, हमारे बाद आकर भट्टे पर लगी भंवरी की ईंटें हमारी बनाई ईंटों से अच्छी कैसे हो सकती है। गौरी चूल्हे पर रोटी सेंकतीं हुई अपने पति की बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी। वो फिर खीझ और झुंझलाहट से बोला, तुझे रोज कहता हूं गारा (गीली मिट्टी) अच्छी तरह मिलाया कर लेकिन तू मेरी सुनतीं कहां है, अब देख सारा पैसा कट गया, बैंक की किस्त फिर बाकी रहेगी, बैंक का ब्याज दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। रामू फिर बोला 'ठेकेदार भंवरी की ईंटों का पूरा भुगतान किया है, वो कह रहा था 'भंवरी गारा अच्छी तरह मिलाती ह...
धुँधला होता रंग
आलेख

धुँधला होता रंग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अभी-अभी पान पर एक लेख पढ़ा। सच इस पान प्रकरण ने कई यादें ताज़ा कर दी। यूँ देखा जाए यह शनै-शनै विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में भी आ सकता है। मुखवास के नए साधनों की कमी नहीं है। कई तरह के पान मसालों से बाज़ार पटा पड़ा है। एक ज़माने में प्रत्येक घर में एक पीतल या चाँदी का पाँच-सात खानों वाला अदद पानदान हुआ करता था। लौंग, इलायची, सौंफ, सुपारी, पिपरमिंट, जायत्री, गुलकन्द आदि भरे रहते थे। कत्था व चूनादानी अलग से होती थी। और गीले कपड़े में लिपटे पान बेड़ामाची (पंडेरी) पर मटके के साइड में रखे रहते। भोजनोपरान्त सबको प्यार से पान खिलाया जाता था। इस कार्य का दायित्व घर के बुजुर्ग निभाया करते थे। हाँ, चाय का रिवाज़ नहीं होने से मेहमानों का स्वागत भी पान से होता, पान बहार से नहीं। पान हमारी परंपरा बनकर छा गया है। धार्मिक क्रियाओं में पान की प्रमुखता र...
रिस्क से इश्क
आलेख

रिस्क से इश्क

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इश्क कई तरह के होते है, किसी से भी किया जा सकता है। मगर दुनिया मे सबसे चर्चित इश्क वह है जो रिस्क से होता है। जो जब तब रिस्क लेता रहता है दुनिया उसको दीदे फाड़ के देखती है। रतन टाटा बंगाल में नैनो का तंबू गाड़ चुके थे, ममता जी अड़ गई, फिर टाटा का ही कलेजा था जो गुजरात मे चले गए। सारा तंबू उखाड़ कर रातों रात शिफ्ट होना उनके ही बूते की बात है। पूरा देश चकित था, क्या होगा हुआ यथासमय गाड़ी आई बिकी भी सफल भी हुई, गरीब की गाड़ी फिर रीविजन भी हुआ फिर मॉडिफिकेशन हुआ फिर चल पड़ी। ऐसी ही रिस्क मोदी जी ने ली, दुश्मन के घर मे घुस कर मार के आना बिना एक भी जान का नुकसान किये। इंदिराजी हार गई, चुप बैठी, फिर तैयारी से हुंकार भरी फिर प्रचंड बहुमत से ताज पहन लिया। इंदिरा जी जो भी थी, कठोर निर्णय तो लेती ही थी। बंगला देश को झुका देना, कितनी रिस्क थी पर म...
सूर्य का अक्षय भंडार
आलेख

सूर्य का अक्षय भंडार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विश्व की सभी समस्याओं का समाधान किसमे हो सकता है? यदि इस प्रश्न का उत्तर खोजें तो पता चलेगा, अनादि, आदि, अविनाशी, सूर्य की असीम शक्ति इनका निराकरण सहज करती है। सूर्य के पास ज्ञान, तेज, अद्भुत शक्ति का अक्षय स्त्रोत है। सूर्य दर्शन, सूर्य नमस्कार, सूर्य अर्घ्य, सूर्य पूजा सभी भारतीय संस्कृति में महत्व रखते हैं। तात्पर्य चमकता हुआ अप्रतिम सूर्य सौन्दर्य की खान तथा उत्साह, विकास, आशा का प्रतीक है। सम्पूर्ण सृष्टि पर निरन्तर कर्मनिष्ठ गतिशील सूर्य प्राणी जगत के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। यदि हमें सूर्य का प्रकाश कम मिले तो आलस्य सुस्ती तथा शारीरिक व्याधी में वृध्दि हो जाती है। सूर्य का सभी सभ्यताओं तथा मानव प्राणी के साथ सीधा संबंध रहा है। क्यों कि सूर्य अपना कार्य सभी के कल्याणार्थ सम्पन्न करता है। देश के अनेक पर्व भी सूर्य से संबं...
मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका
आलेख

मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मनुष्य का जीवन दुख विपदाओं, नाना समस्याओं का संगी है। गौर करें तो उलझनें सुलझाने में अक्सर जटिल रूप धारण करती है, यानि जीवन को अंतहीन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती है। विवेकपूर्ण निर्णय से सरल जीवन जीने की कला में सुख की कलाएं प्रत्यक्ष होती है। बस आपाधापी जीवन संग्राम में लक्ष्य प्राप्ति हेतु लगन, इसमें बतौर संकल्प व एकाग्रता नितांत जरूरी है। मनुष्य जीवन कठिन सँघर्षरत तो है ही, सरलता, कुशलता से खुशहाली में ढालना एक विशेष कला है इसमें ढालकर व्यक्ति सुख की अनुभूति का अहसास करता है असम के सुविख्यात गायक, गीतकार, संगीतकार, कवि, साहित्यकार, सुधाकंठ डॉ भूपेन हजारिका में यह विशेषता अक्सर झलकती थी। कठिन डगर में बिन लड़खड़ाये खुशहाली से जीवन बिताये, अपने अंदर छुपी तमाम् कलाओं, प्रतिभाओं को जनमानस के बीच सरलता सादगी जीवन में पारदर्शी ...
गुंजलक
आलेख

गुंजलक

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बिटिया को, उसकी भुआ ने बताया तू जब छोटी थी तुझे बाल्टी में बिठा के नहला देते, गर्मी की छुट्टियां होती तो, तुम बाहर निकलने को तैयार ही नही होती, एक बार बाहर निकालने को तेरे ऊपर पानी उछाला तो बहुत रोई बहुत रोई हम समझ नही सके तुझे क्या हो गया। वही लड़की बड़ी होकर पानी से बहुत डरती थी। कोई नदी तालाब झरना दिख जाता तो आंख बंद कर लेती। पिकनिक पे सब नहाते तब भी वह बाहर खड़ी रहती थी। बस बरसात से कोई परहेज न था। बाद में उसके सिवा सबने तैरना भी सीख लिया। विवाह के बाद हनीमून पे पहाड़ गई तो भी उसके पति आश्चर्य में थे कि झरना देख आंख बंद क्यों कर लेती हो, बोटिंग भी नही की, उनको बड़ा अजीब लगा क्यों कि ट्रिप में अधूरा पन जो था। दो तीन वर्ष बाद पीहर के विवाह समारोह में रात की महफ़िल में वही बाल्टी वाला किस्सा भुआजी ने सुनाया, पति को एकदम रहस्य पकड़ ...
लोकतंत्र का पर्व
लघुकथा

लोकतंत्र का पर्व

माधवी तारे लंदन ******************** “ये लोकतंत्र का पर्व है सामने काल खड़ा है तू वोट कर, तू वोट कर” आशुतोष राणा जी की प्रभावी वाणी में ये कविता सुनते-सुनते मुझे १९९८ में लोकसभा मतदान का दिन याद आ गया। सड़कों पर समूहों में चर्चा करते हुए लोग, बूथ पर जाकर मतदान कर रहे थे। तो कई लोग इसे छुट्टी का दिन समझ कर घूमने भी चले गए थे। सुहासिनी के घर के सभी लोग मतदान कर आए थे। उसके पति कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे थे और कमजोरी और दर्द से कराहते हुए बिस्तर पर लेटे थे। वह उनके जागने से पहले ही मतदान कर आई थी। कुछ समय के बाद सुहासिनी ने उनकी आवाज सुनी – “अरे मेरा सफारी सूट तो लाओ जरा मैं मतदान के लिये जाने का सोच रहा हूं कहीं मेरे एक मत का अभाव पार्टी पर भारी न पड़ जाए।” उसने कहा – “आप कैसे जा सकते हैं, ज़रा खुद की स्थिति तो देखिये” पर आत्मविश्वास से वे बोले- “मेरी जाने की इच्छा है” “दो तीन म...
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी
आलेख

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  सभी को ज्ञात होगा कि रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखी है। नारी अवधी भाषा का शब्द है जो नाली शब्द का अपभ्रंश है। नारा जिसे हिंदी में नाला कहते हैं, का अर्थ अवधी भाषा ‌मे है जलवाहक, जिसमें दोनों ओर बांध (ताड़ना का एक अर्थ बांधना भी है) होते हैं। बांध न हो तो जल प्लावन हो जाए। उसी का स्त्रीलिंग है नारी। समुद्र ने स्वयं अपने लिए नारा ‌शब्द का प्रयोग किया। काव्य में तुकबंदी के लिए तुलसीदास जी ने नारा का नारी लिखा। इतने, परमज्ञानी, स्वयं अपनी पत्नी का इतना सम्मान करने वाले, स्त्री जातिमात्र (शबरी को माता कहकर पुकारा है भगवान राम ने रामचरितमानस में) का आदर करने वाले भक्तज्ञानी गोस्वामी तुलसीदास जी यह नहीं जानते थे कि ५०० वर्ष बाद भारतीयों के अज्ञान की पराकाष्ठा होगी, व उनके नारी शब्द के अर्थ का इतना बड़ा...
प्रकाश का महापर्व
आलेख

प्रकाश का महापर्व

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धन त्रयोदशी से पांच दिन दीपावली महापर्व आरम्भ होता है। इस पर्व का साल भर बेसब्री से इंतजार होता है। ये सनातन धर्म का महा उत्सव है। रूप चौदस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा से होते हुए पांचवें दिन भाई दूज पर पूरा होता है। लेकिन उसका आनन्द मन में तुलसी विवाह तक बना रहता है। भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार की महत्ता बहुत अधिक है। यही जीवन का सर्वोच्च आनन्द बिंदु है। खुशी, विजय, उल्लास, सामाजिक जुड़ाव और उजास के इस पर्व में प्रेम, स्नेह से मिलन समारोह मनाये जाते हैं। अनेक वर्षों के मन मुटाव भी मीट जाते हैं। भाई-बहन का अटूट प्रेम का प्रतीक भाई दूज पर्व पांच दिन की खुशियां बटोरकर झोली में डाल देता है। बीते दो वर्षों में इस पर्व पर कोरोना रुपी दानव का साया छाया हुआ था। इस संक्रमण के रोग के कारण हम इस उजास के पर्व को उत्साह से नहीं मना पाये ...
बेगारी एक अभिशाप
आलेख

बेगारी एक अभिशाप

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्वाधीनता दिवस के बारे में सोचते सोचते अंग्रेजों द्वारा बरपाई क्रूरता याद आ गई। और वे यह सिखा गए हमारे उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों को। वर्षों पूर्व के वाकये हैं ये... सरकारी उच्च अधिकारियों के घर पर निम्न श्रेणी कर्मचारियों को घरेलू कार्य करने हेतु तैनात किया जाता था। उनसे अमूमन लोग झाड़ू-बर्तन-कपड़े, लीपना -पोतना, खाना बनाना, बच्चों को खिलाना, प्रेस-पालिश सब कुछ करवाते। मिर्ची-मसाले भी लगे हाथ कुटवा लेते। यह तो एक तरह की प्रताड़ना ही हुई। ऐसा जब भी मैं देखती करुणा से भर जाती थी। मेरे घर भी आते थे। सबसे पहले मैं उन्हें चाय नाश्ता खाना वगैरह करवाती। फ़िर रोज़ का कार्य करवाती। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोतना मुझे कभी नहीं गवारा। साथ वाली मेडम जी...सो काल्ड बाई साब लोग कहती, "आप भी न... ऐसी दया किस काम की। अरे! इन्हें सरकार पगार-भ...
७० घंटे देश क़ी प्रगति क़े
आलेख

७० घंटे देश क़ी प्रगति क़े

 संगीता सनत जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नारायण मूर्तिजी द्वारा भारत देश क़े युवाओं को सप्ताह मेँ ७० घंटे तक काम कर देश को विकसित देश मेँ शामिल करने क़े आव्हान पर देश ज़हिर तौर पर दो घड़ो मेँ बँटा है। प्रधानमंत्री जी क़े किसी वक्तव्य पर इतनी रायशुमारी नहीं हुई, जितनी इनफ़ोसिस क़े फाउंडर और मिलेनियर नारायण मूर्तिजी क़े इस एक व्यक्तव्य नें बुद्धिजीवी और व्यावसाईक जगत को अपनी राय रखने पर मजबूर कर दिया है। यहाँ यह बताना उचित होगा क़ी क़ानूनी रूप से भारतीय कारखाना अधिनियम १९४८ क़ी धारा ५१ क़े अनुसार एक कर्मचारी प्रति सप्ताह ४८ घंटे काम करेगा, जिसका ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त १० घंटे ३० मिनिट हो सकता है। लगातार ५ घंटे काम करने क़े बाद ३० मिनट का ब्रेक और ओवरटाइम क़े पैसे अलग से दिये जायेगे। ८ घंटे काम क़े ८ घंटे सोने क़े और ८ घंटे स्वयं और परिवार क़े लिये। हम कह सकते है कि भारत युवाओं का ...