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गद्य

अधखिला फूल
लघुकथा

अधखिला फूल

रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे =========================================================================================================== अधखिला फूल        संजू , ओ संजू, कब तक खेलेगा दिन चढ़ रहा है..?        काम पर चले जा बच्चा... समय पर ना पहुंचा तो सेठ दहाड़ी का पैसा काट लेगा। रमा ने अपने आठ वर्षीय बेटे को आवाज दी।  संजू मां की आवाज सुन दौड़कर आया और लड़ियाने के अंदाज में मां के कंधे पर झूलते हुए बोला मां मैं आज से काम पर नहीं जाऊंगा होटल के सेठ ने मोहन चाचा को काम से निकाल दिया है, और बडे़-बडे़ बर्तन सब मुझ से मंजवाता है। ठीक से साफ नही हुए कहकर, रुपिया भी काट लेता है।       रमा ने प्यार से संजू को समझाने की कोशिश की ...। बेटा, वहां न जा कोई और काम ढुंढ ले। इस पर संजू  पैर पटकते हुये बोला नहीं मां मैं काम पर नहीं, सामने वाले बंगले के दीपू की तरह नीली पेंट सफ़ेद क़मीज़ पहन स्कूल ...
धरा बचाओं-जीवन बचाओं (पृथ्वी दिवस विशेष)
आलेख

धरा बचाओं-जीवन बचाओं (पृथ्वी दिवस विशेष)

रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" =========================================================================================================== धरा बचाओं-जीवन बचाओं (पृथ्वी दिवस विशेष)          आज हमारी धरती माँ का दिन है यानि "विश्व पृथ्वी दिवस" - जिस धरा पर हमारा जन्म होता है और जन्म से लेकर मृत्यु तक का सम्पूर्ण समय हम इसी पावन पुनीत धरा पर व्यतीत करते है। यह हमारे जीवन की सबसे अनमोल धरोहर है और सबसे पवित्र स्थान है। जिस प्रकार माँ नौ महीने कोख में रख कर हमें जीवन देती है और हमारे जीवन का संरक्षण करती है उसी तरह धरती माँ हमारे सारे जीवन को सदैव संरक्षण प्रदान करती है। हमारे जीने के लिये आश्रय स्थान,खाने के अनाज और जीवन-यापन के लिये जो भी आवश्यक वस्तुयें चाहिये वह समस्त वस्तुयें इस धरा से ही प्राप्त होती हैं। यदि इस धरती में रहकर हम इसको बचाने के लिये जागरुक नहीं...
मतलब
लघुकथा

मतलब

रचयिता : मित्रा शर्मा =========================================================================================== मतलब वह बिना पैसे का चौकीदार था। दिन रात घर की रखवाली करता और बदले में दो टाइम सूखी रोटियां खा कर घर के सामने पड़ा रहता था। पिछले कुछ दिनों से वह गली का कुत्ता बीमार होने लगा। घर की गृहणी ने अपना फर्ज समझ उसे डॉक्टर को दिखाया। वो कोई बड़ा नस्ल या खरीदा हुआ नही था इसलिए उसकी दवाई पर पैसे खर्च करना परिवार को खूब खटकता। उसकी बीमारी की वजह से पड़ोसियों को भी परेशानी होने लगी। वे बोलने लगे इसके कारण सबको तकलीफ हो रही है आप पाप की भागीदार बन रही हो इसको कहीं दूर ले जाकर छोड़ दो। उसकी रुलाई फूट गई, घर में उसके पति भी बार बार कहरहे थे पैसे खर्च करवाता है कभी कोई आए भोंकता तो है नही। अब की बार तो इसे कहीं छोड़कर ही आऊंगा। वो सोचने लगी कैसी स्वार्थी दुनिया है बेचारा चौकीदारी करता था तब त...
 मन की धारा
लघुकथा

 मन की धारा

रचयिता : विजयसिंह चौहान ===========================================================================================  मन की धारा कॉलेज की अभी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी कि योगेश की आंखें, आंचल की छांव, जुल्फ और कजरारी आंखों में समाने लगी । एक तरफा दिन दे बैठा रमा को। अब योगेश का मन  पढ़ाई में कम और उसके इंतजार में ज्यादा लगता था। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टा के संदेश और उसके इंतजार में पढ़ाई भी प्रभावित होने लगी। गुड मॉर्निंग से गुड नाइट तक नियमबद्ध हर संदेश पर नजर गड़ाए योगेश भावी जीवन के ढेरों सपने बुन चुका था। रमा भी जानती थी, उसके मन की बात।  मगर कभी कह नहीं पायी, शायद इसीलिए योगेश के संदेश के जवाब में वह महज स्माइली और सेड़ी  इमोजी ही  भेजती थी जिससे योगेश खासा परेशान रहता। एक दिन कट्ठा मन करके रमा ने योगेश को एक संदेश भेजा जो कि इस प्रकार था:- मोहब्बत पहले अंधी हुआ करती थी । इला...
ममता
लघुकथा

ममता

रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे =========================================================================================================== ममता  रश्मि आज ऑफिस से जल्दी घर आ गई थी, राकेश अभी लौटे नहीं थे। राकेश के इन्तजार में वह गलियारे मे टहल रही थी। चहलकदमी करते हुये रश्मि का ध्यान अपने बेटे प्रवीण की ओर चला गया जो जाॅब के सिलसिले मे 5 वर्ष पहले आस्ट्रेलिया गया था और वहीं सटेल हो गया।रश्मि का मन विचारों के गोते लगाने लगा। पूरा सप्ताह निकल गया प्रवीण व्यस्तता के चलते मिलने नहीं आ सकता तो क्या फोन पर मां - बाप की खैर खबर लेने का वक्त भी नहीं निकाल सकता। जब बेचलर था, रोजाना ऑफिस से लौटने के बाद फोन पर मां बाप के हाल जाने बगैर सोता नहीं था और शादी के बाद पत्नि- बच्चे का होकर रह गया.... कि फोन की घंटी ने रश्मि के विचारों मे लिपटी निंद्रा को तोडा दिया । उसने तेज कदमों से भीतर जाकर रिसीवर ...
ममता
लघुकथा

ममता

रचयिता : सत्य प्रकाश भारद्वाज ============================ ममता महिला कल्याण समिति की सभा में श्रीमती जॉर्ज ने अध्यक्षीय भाषण में विशेष जोर देते हुए कहा--- "बच्चों को पाउडर वाला दूध पिलाना चाहिए अपना' गाय या भैंस का दूध नहीं पिलाया जाए। इससे अनेक शारीरिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। विदेशों में महिलाओं ने इस ओर विशेष ध्यान देकर अपनी जवानी तथा सुंदरता को बनाए रखा है।" इसके प्रभाव से उन धनाढ्य कालोनी में महिलाओं ने बच्चों को अपना दूध पिलाना बंद कर दिया। श्रीमती कपूर ने अपनी आया को कहा, 'देखो!.. मुन्ने को आज से यह पाउडर का दूध पिलाना है। मैं इसे अपना दूध नहीं पिलाउंगी ।' 'यह आप क्या कह रही हैं?.... ''बीबीजी मां का दूध तो बच्चे के लिए बहुत फायदेमंद होता है। 'मैं तो अपने लल्ला को अपना ही दूध पिलाती हूं।' 'बहस ना करो! जैसा मैं कहती हूं वैसा ही करो।' बच्चा डिब्बाबंद पाउडर का दूध पीने लगा। दूध...
पागल – कहानी
कहानी

पागल – कहानी

रचयिता : जितेंद्र शिवहरे =============================== पागल स्मिता और उसकी सहेली निशा आज हाॅस्पीटल की ड्यूटी पूरी कर शहर के मेघदूत उपवन में कुछ पल सुस्ताने आई थी। सायं चार-पांच बजे का वक्त हो रहा था। दोनों सहेलियां शहर के भण्डारी हाॅस्पीटल में नर्सिंग का कोर्स कर रही है और अन्य शहर से होकर इसी हाॅस्पीटल के हाॅस्टल में रहती है। उवपन में बैठने के लिए समुचित स्थान तलाशती उनकी आंखे एक कोने में रखी छायादार बेंच पर पड़ी। बेंच पर पुर्व से ही एक युवक बैठा था। उसके हाथों में एक किताब थी। वह उसे ही पढ़ रहा था। बेंच पर अभी दो व्यक्ति और बैठ सकते थे। धुप की तपन के बीच स्मिता और निशा ने बिना वक्त गंवाये उस बेंच की ओर पैदल ही दौड़ लगा दी। मई का महिना चल रहा था। चारों ओर तपन ही तपन थी। गार्डन में छायादार पेड़ शीतल हवा बरसा रहे थे। गार्डन की जमीन पर माली द्वारा अभी-अभी छिड़काव किये गये पानी की ठण्...
वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर “आरोप-प्रत्यारोप” की राजनीति
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वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर “आरोप-प्रत्यारोप” की राजनीति

रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ==================================== वास्तविक मुद्दों को गुमराह कर "आरोप-प्रत्यारोप" की राजनीति भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहाँ सभी वर्गों, जातियों एवं सम्प्रदायों से जुड़े लोगो को अपनी बात कहने और अपना पक्ष रखने की स्पष्ट रूप से स्वतंत्रता है। लेकिन, अगर हम भारत देश की वर्तमान राजनीति की बात करते है तो दिलो-दिमाग में बहुत ही नकरात्मक छवि सामने आती है क्योंकि आज की राजनीति का स्तर दिनोंदिन नीचे गिरता जा रहा है और वर्तमान राजनीतक छवि पूर्णतया दूषित होती जा रही है। राजनीति के इस गिरते हुये स्तर के कारण जनमानस की वास्तविक एवं मूलभूत आवश्यकतायें और प्रमुख मद्दे गायब होते जा रहे हैं। राजनीति के ठेकेदारों के द्वारा जनता को सिर्फ वायदों का लालच देकर ठगा जाता है और इस तरह उनके साथ सिर्फ और सिर्फ छलावा ही किया जाता है।राजनेता एक-दूसरे पर व्यक्तिग...
क्षमा
लघुकथा

क्षमा

क्षमा रचयिता : विजयसिंह चौहान ===================================================================================================================== दो ढाई साल की उम्र, मगर बेहद समझदार जैसे परिपक्वता लेकर जन्म लिया हो ! प्यार से सभी उसे डिस्को कह कर बुलाते थे। समय पर खाना-पीना और अपने नित्य कर्म करना, डिस्को की समय पाबंदी को दर्शाता है। शाम को 6:00 बजे तक यदि वर्मा जी घर ना आए तो पूरा घर सिर पर उठा लेता। इतनी कम उम्र में सबका ध्यान रखना बार-बार घड़ी  देखना,  गुस्सा करना, सबको प्यार करना और इधर-उधर डोलते रहने के कारण ही घर के सब लोग उसे डिस्को कहकर पुकारते हैं। कल शाम की ही बात है, वर्मा जी के साथ डिस्को घूमने निकला चूंकि डिस्को कद काठी से मजबूत होने के कारण गली के कुत्तों से कहीं ज्यादा तगड़ा है। चहल कदमी के दौरान एक मरियल सा कुत्ता उसे देख-देख घूरने लगा। डिस्को चूकी वर्मा जी के ह...
पेट का सवाल
लघुकथा

पेट का सवाल

पेट का सवाल रचयिता : सतीश राठी ===================================================================================================================== ‘’क्यों बे ! बाप का माल समझ कर मिला रहा है क्या ?‘’ गिट्टी में  डामर मिलाने वाले लड़के के गाल पर थप्पड़ मारते हुए ठेकेदार चीखा| ‘’कम डामर से बैठक नहीं बन रही थी ठेकेदार जी ! सड़क अच्छी बने यही सोचकर डामर की मात्रा ठीक रखी थी|’’ मिमियाते हुए लड़का बोला| ‘’मेरे काम में बेटा तू नया आया है| इतना डामर डालकर तूने तो मेरी  ठेकेदारी बन्द करवा देनी है|‘’ फिर समझाते हुए बोला – ‘’ये जो डामर है, इसमें से बाबू, इंजीनियर, अधिकारी, मंत्री सबके हिस्से निकलते हैं बेटा ! ख़राब सड़क के दचके तो मेरे को भी लगते हैं|.. ..चल इसमें गिट्टी का  चूरा और डाल|” मन ही मन लागत का समीकरण बिठाते हुए ठेकेदार बोला| लड़का बुझे मन से ठेकेदार का कहा करने लगा| उसका उतरा हुआ चेहरा ...
एक फूल दो माली
लघुकथा

एक फूल दो माली

एक फूल दो माली अविनाश अग्निहोत्री ===================================================================================================================== रॉय साहब व उनकी पत्नी, एक सड़क दुर्घटना में अपने इकलौते बेटे व बहु को खो देने के बाद। उनकी आख़री निशानी अपने आठ वर्षीय पोते की परवरिश उसी लाड़ प्यार से कर रहे थे। जैसी कभी उन्होने अपने बेटे मधुर की करी थी। यह देख रॉय साहब के एक पुराने मित्र उन दोनों से बोले, आपके बेटे मधुर ने शादी के बाद आप दोनों से जैसा व्यवहार किया। ऐसा तो कोई सौतेला भी न करे। और उसकी पत्नी ने तो आप जैसे देवपुरुष व सीधी साधी भाभी को। दहेज प्रताड़ना का झूठा आरोप लगा। इस बुढ़ापे में,जेल तक के दर्शन करवा दिये। तब भला आप उनकी ही इस संतान को किस उम्मीद से इतने लाड़ प्यार से पाल रहे है। अपने मित्र की बात सुन, रॉय साहब गोद मे बैठे अपने पोते के सर पर हाँथ फेरते हुए। गम्भीर स्व...
उम्र की कहानी
आलेख

उम्र की कहानी

उम्र की कहानी रचयिता : रामनारायण सोनी ===================================================================================================================== "उम्र की बीती कहानी याद फिर आयी कहीं से।" अतीत की कन्दराओं में उकेरे भित्तिचित्रों में भी कई आख्यान उभरते हैं। जिन में से कुछ हमने बनाए है कुछ कोई और चितर गया है। ये बोलते भी हैं जैसे बुन्देले हरबोलो के मुख से झाँसी का इतिहास फूट पड़ता है। इन आख्यानों में छुपे होती है कुछ रहस्य, कुछ स्मृतियाँ, कुछ अनुभूतियाँ। इनमें समाहित हैं जीवन से जुड़े यथार्थ, खट्टे-मीठे, कषाय-तिक्त और संगतियों-विसंगतियों के भिन्न भिन्न आस्वादन। इनका सम्मिश्रण भी एक अजीब केमिस्ट्री है। जहाँ धुआँ है वहाँ आग होगी ही, जहाँ उजास है वहाँ कहीं आस पास ही अन्धकार भी होगा। खूबसूरत गुलाब काँटों के बीच हैं। नागफ़नी के फूलों का सौंदर्य अनोखा होता है। नैसर्गिक गुण धर्मों से लप...
मातृत्व
लघुकथा

मातृत्व

मातृत्व रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== अपनी बेच में टॉप करने के कारण आज काॅलेज के दिक्षांत समारोह में शिवांश का विशेष सम्मान होने वाला  था। परिवार  के सदस्यों को भी इस कार्यक्रम में आमन्त्रित किया गया था। शिवांश जब पाँच वर्ष का था तब मां ललिता का देहांत हो गया था। पिता संदीप ने रिश्तेदारों के दबाव में आकर अनमने मन से दूसरी शादी ‘सुजाता’ से कर ली थी। सुजाता भले ही सौतेली मां थी, लेकिन उसकी बदोलत ही आज शिवांश डाॅक्टर बन पाया था। संदीप को पी एम टी की परीक्षा की फीस भरने के लिये सुजाता ने ही मनाया था। शिवांश के माता पिता को भी आज के समारोह में सम्मान मिलना था। सुजाता सोच रही थी कि स्टेज पर बेटे शिवांश के साथ संदीप और स्वर्गीय ललिता का ही नाम पुकारा जायेगा। एकाएक उसके कानों में आ...
मां
लघुकथा

मां

मां रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" ===================================================================================================================== जंगल में अपनी मां के साथ किलोल करते हुए हिरण शावक बहुत दूर चला गया था। हिरणी जितना उसका पीछा करती, वह उतना ही आगे बढ़ता जाता। अंत में वह एक ऐसे स्थान पर पहुंच गया जहां एक शेरनी आंखें बंद कर लेटी हुई थी तथा अपने शावकों को दूध पिला रही थी तथा ममता वश उन्हें चाटे भी जा रही थी। अबोध हिरण शावक को क्या पता था कि "शेर और हिरण का कोई मिल नहीं होता,..... यदि होता भी है तो...... "बस भूख और भोजन का!" जब हर ने उसका पीछा करते-करते वहां पहुंची तो यह दृश्य देख वह आतंकित हो उठी। हिरणी को समझते देर न लगी कि "अब तो उसके बच्चे की जीवन लीला कुछ ही क्षणों में समाप्त होने वाली है!" यह सोच कर वह अंदर तक हिल गई थी। ..... "परंतु.. कर भी क्या सकती थी?" अब वह...
फर्क
लघुकथा

फर्क

फर्क रचयिता : सुषमा दुबे ===================================================================================================================== बेटी के साथ हुई ज्यादती कि रिपोर्ट लिखवाने पहुचे पिता -पुत्री से थानेदार ने उल जुलूल प्रश्न करना शुरू कर दिए। लड़की का पिता ने कई सवालों के जवाब में सर झुका लिया। फिर शुरू हुआ प्रवचन का सिलसिला, अरे आजकल कि लड़कियां मौज मस्ती के लिए लड़को से दोस्ती करती है, जब बात नहीं बनती इल्जाम लगा देती है............ कहकर एक लम्बा चौड़ा लेक्चर दे दिया। दोनों बाप-बेटी सर झुकाये उसकी बाते सुनते रहे। तभी थानेदार लड़की के पिता की और मुखातिब होकर बोला -"धिक्कार है तुम्हे जो ऐसी बेटी को जन्म दिया, इसकी जगह यदि मेरी बेटी होती तो तो मैं पुलिस थाने में आने कि जगह उसे आग लगा कर ख़त्म कर देता। अब तक चुपचाप सुनती रही लड़की ने मुहं खोला वह थानेदार से बोली -"सर एक बात पूछू...
आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”
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आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”

आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का "अन्तिम-संस्कार" रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ===================================================================================================================== विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी धर्मो को मानने वाले लोगों का बसेरा है एवं सभी जातियों व संप्रदायों के अनुयायी यहाँ निवासरत है। भारत देश प्राचीनकाल में 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था क्योंकि यहाँ पर निवासरत समस्त लोगो में एकता और एकजुटता के प्रमुख गुण सहजता से मिलते थे। लोगो के लिये उनके संस्कार और संस्कृति व सभ्यता सबसे महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी थे। उस समय लोगों में सामजिकता और सामंजस्यता के बड़े अद्भुत नजारें देखने को मिलतें थे। उस समय की लोगों के मन में दया, प्रेम एवं परोपकार के भाव बड़ी ख़ूबसूरती से विद्यमान होते थे। सभी एकजुट होकर एक दूसरे की मदद के लिये तत्परता से आगे आते...
गीतों चलन होता अमर 
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गीतों चलन होता अमर 

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ===================== गीत  की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन  की मधुरता  कानो  में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों  की राग, संगीत  जरिए  घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी, रेडियों, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान होता का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी - प्रे...
उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो
आलेख

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो रचयिता : डॉ सुरेखा भारती ===================================================================================================================== अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है सनातन धर्म में उत्सवों की एक श्रृंखला होती है। दीपावली, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, नववर्ष प्रतिपदा, श्रीरामनवमी जितने भी उत्सव आते हैं, उन्हे धर्म से, आध्यात्मिकता से जोड़ा गया है। इसी सच्चाई के लिए यह घोषणा की गई की मनुष्य जाति एक है। जो भौतिकवाद से जुडे़ हैं, वह नहीं कहतें कि हम एक है। क्योकि वहाँ एक-दूसरे का स्वार्थ आता हेै। जिस मंच से, जिस धरातल से यह बोला गया है कि मनुष्य जाति एक है वह आध्यात्मिक धरातल है। अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है और भौतिकता व्यक्ति को तोडती है। आधात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है आध्यात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है। आध्यात्मिक व्यक्ति समाज म...
निश्चिंतता
लघुकथा

निश्चिंतता

निश्चिंतता रचयिता :  कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== मनन शादी के बाद पहली बार पत्नी माला को लेकर लखनऊ से भोपाल आ रहा था। उसने पहले से किराये का घर लेकर गृहस्थी की आवश्यक सामग्री जुटा रखी थी। मकान के ऊपरी तल पर मकान मालिक सिंह दम्पती रहते थे। उनकी एक ही बेटी थी जो शादी के बाद दिल्ली में सेटल थी। मनन ने माला को शादी के पहले बता रखा था कि पापा के बिजनेस के कारण माँ और पापा भोपाल में हमारे साथ नहीं रह पायेंगे। मेरा ऑफिस रहेगा, तुम्हें दिनभर घर में अकेले ही रहना होगा। माला समझदार थी, उसने सहजता से आने वाली परिस्थिति को स्वीकार कर लिया था। फ्लाईट में बैठे मनन सोच रहा था कि संयुक्त परिवार में पली-बडी माला, दिनभर अकेले कैसे रहेगी ? वह सोच में डूबा हुआ था कि फ्लाईट भोपाल पहुँच गई। मनन ने ...
वक्त
लघुकथा

वक्त

वक्त रचयिता : माधुरी शुक्ला दसवीं कक्षा में पहुंचे पोते मनु के बदले रंग ढंग को दादा ब्रजकिशोर की बूढ़ी और अनुभवी आंखों ने मानो पढ़ और समझ लिया है। फिर कल उसे मोहल्ले के बिगड़ैल लड़कों के साथ घूमते  देख उनकी फिक्र बढ़ गई है। ब्रजकिशोर बेटे दिनेश से कह रहे हैं सिर्फ कमाने में ही मत लगा रहा कर घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान दे। मनु की फिक्र भी किया कर वह बड़ा हो रहा है और गलत संगत में भी पड़ता दिखाई देने लगा है। उनका इतना कहना था कि बहू सरिता बरस पड़ती है बाबूजी की तो पता नहीं क्यों मनु से आजकल कुछ दुश्मनी हो गई है। वह कुछ भी करे इन्हें गलत ही लगता है। यह सुन ब्रजकिशोर खामोश हो जाते हैं। जानते हैं अब कुछ बोले तो बहस हो जाएगी। इस बीच दिनेश ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगता है खूंटी पर टंगा मनु की पैंट गलती से उससे नीचे गिर जाती है। जब पैंट  टांगने लगता है तो जेब से सिगरेट का पैकेट बाहर झांकता ह...
प्रहार कर
लघुकथा

प्रहार कर

प्रहार कर रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== कुनाल अपनी जिंदगी से इतना नाखुश था कि उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था, उसकी जिंदगी मानों थमती और चलती जा रही थी, कुनाल की जिंदगी में सबने ही दखल डाला था यहाँ तक की उसकी खुद भी जिंदगी ने उसपर दखल ऐसे दी थी कि उसने हार मानते मानते भी हार नहीं मानी थी, कुनाल के परिवार में छः सदस्य थे जिसमें कुनाल सबसे छोटा है उसके ऊपर लेकिन बोझ इस प्रकार है मानों वो परिवार में सबसे बङा हो, घर का सारा काम देखना अपने पिता की खेती का सारा काम देखता और स्वयं खेती में काम भी मेहनत से करता फसल आती बेची जाती और सारा धन घर के कामों व भाई बहन की पढ़ाई में खर्च होता है जिसपर कुनाल ने कभी भी जरा सा सोच भी नहीं किया कि आखिर मुझे भी पढ़ना है और क्या करना है सिवाय क...
पल दो पल की खुशियां
कहानी

पल दो पल की खुशियां

पल दो पल की खुशियां रचयिता : जितेंद्र शिवहरे संध्या आज पहली बार प्रभात के साथ सफ़र कर रही थी। त्यौहार के सीज़न के कारण बस वाले छोटी यात्रा करने वाले पेसेन्जर को बस में बैठा नहीं रहे थे। उस पर जो बस वाले बैठा भी लेते तो बैठने की सीट मिलना मुश्किल थी। संध्या की समस्या अभी खत्म नहीं हुयी थी। उसने देखा सड़क पर चक्काजाम की स्थिति निर्मित हो गयी है जो इस सड़क पर एक आम समस्या थी। संध्या ने विचार किया की आज स्कूल पहुंचने में वह निश्चित ही विलंब से पहुंचेगी। स्कूल के हेडमास्टर की डांट से वह भली-भांति परिचित थी। उसका विलंब से स्कूल पहुंचने का कारण अधिकतर सड़क जाम होना ही होता था। सड़क पर वाहनों के जाम की स्थिति का हवाला देते-देते वो थक गई थी। क्योंकि हेडमास्टर चिरपरिचित इस समस्या का हल संध्या को पुर्व में बहुत बार सुझा चूके थे। या तो संध्या मोपेट से स्कूल आया करे क्योंकि मोपेट से आने-जाने में सड़क...
मेरा राम मेरे साथ है
लघुकथा

मेरा राम मेरे साथ है

मेरा राम मेरे साथ है रचयिता : डॉ सुरेखा भारती शाम हो गई थी राधिका ने अपने को, थोड़ा संवारा और वह तुलसी क्यारी में दीपक लगाकर अपने पूजा घर में रामायण पढ़ने बैठ गई। यह उसका रोज का नियम जो था। अंकुर की शादी हुए दो महिने बीत गए थे। अंकुर की पसंद-नापंसद, उसके लिए क्या बनाना है, क्या नहीं, पहले उसकी चिंता रहती थी, पर यह सब तो अब बहु ही देखने लगी थी। बहु तो अच्छी है पर राधिका और अधिक अकेला पन महसूस करने लगी थी। अंकुर भी अब आते से ही पूछने लगा है, सीमा ऽ सीमा तुम कहां हो .......?, लगता था अब माँ को वह भूल गया है। पहले जरूर उसके इस बदलाव से मन में अजीब सी चुभन होती थी। पर अब अपना मन भगवान के स्मरण में लगाना सीख लिया था। रामायण पढ़ते हुए, वह श्री रामचरित्र में खो गई थी, की सहसा फूलों की सुगंध वातावरण में घूमने लगी, उसने सोचा अंकुर बहु के लिए फूल ले कर आया होगा, आज उसका जन्मदिन जो है। पर अचानक उस...
धुरी
लघुकथा

धुरी

रचयिता : माधुरी शुक्ला अरे, पूजा जल्दी करो, देर हो रही है डॉक्टर साहब निकल जायेंगे। अजय का यह स्वर कई बार गूंज चुका है। आई बस, कुछ देर और यह कहती पूजा बेटे चिंटू और सास के लिए खानपान का पूरा इंतजाम करने में जुटी है। उसे लग रहा है कि बुखार तो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा ऐसा ना हो डाॅक्टर अस्पताल में एडमिट होने को कह दे। ऐसा सोचती है तभी इस बार अजय कड़क आवाज़ में पुकारता है कितनी देर, छोड़ो यह सब बाद में देख लेना। पसीना पोंछती वह किचन से निकलती है और अजय के साथ डाॅक्टर के पास जाती है। डाॅक्टर उसकी हालत देख तुरंत एडमिट होने को कह देता है। अब अजय का चेहरा देखने लायक हो जाता है। वह डाॅक्टर से पूछता है शाम तक छुट्टी हो जाएगी ना। वह हंसते हुए कहते हैं इलाज तो शुरू होने दो पहले। अजय के सामने बूढ़ी मां और चार साल के बेटे का चेहरा घूमने लगता है। सोचता है अगर  यह एक-दो दिन अस्पताल में रह गयी तो घर ...
दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन
आलेख

दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन

रचयिता : डाॅ. संध्या जैन दहेज हमारे समाज को लगी हुई कैंसर से भी अधिक भयानक बीमारी है। यदि शीघ्र ही इस बीमारी से ग्रसित समाज को राहत नहीं दिलाई गई तो वह पतन के गड्ढे में जा गिरेगा। ऐसी कुत्सित प्रथा के पक्ष में लिखना तो ठीक वैसा ही है जैसा कि ‘अन्धे को लाठी दिखाना।’ समाज में व्याप्त इस दहेज-प्रथा ने अनके परिवारों को उजाड़ दिया है। विशेषतः निम्न और मध्यम वर्ग के परिवार इसके शिकार हुए हैं। इस दहेज की कुत्सित वृत्ति के कारण अनेक माता-पिता विवश होकर अपनी लड़की को कुरूप या वृद्ध वर के हाथों बेच देते हैं। यही नहीं वरन् लड़कियों की जिंदगी को भ्रष्ट करने में भी दहेज-प्रथा का बहुत बड़ा हाथ है। कितनी ही लड़कियाँ जीवन से हताश हो आत्म-हत्या कर लेती हैं तथा गलत कामों की ओर उन्मुख हो जाती हैं। तलाक, बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, आर्थिक ढाँचा चरमराने पर माता-पिता द्वारा आत्म-हत्या, बहू को जिंदा जलाकर मार डालन...