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गद्य

एक पहल ऐसी भी
लघुकथा

एक पहल ऐसी भी

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे सचिन  का ट्रांसफर पूना हो गया था। एक नये बने काम्प्लेक्स के केम्पस में सचिन ने फ्लेट ले लिया था। जिसमें स्विमिंग पुल, पार्क, बच्चों के लिये प्ले ग्राउंड, झूले, फिसलपट्टी, कम्यूनिटी हाॅल, सभी कुछ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी। सचिन की पत्नि सुचिता और छः साल का बेटा प्रमेय बहुत खुश थे। रोजाना शाम सभी बच्चे पार्क में एकत्रित होकर खेलते। बच्चों की मम्मियों में भी आपसी परिचय अच्छा हो गया था। सुचिता को बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत लगाव था। साथ ही स्वच्छ वातावरण में रहने की वह आदि थी। शाम के समय पार्क में छोटे-बडे़ सभी बच्चे  इकट्ठे होते थे। कुछ बच्चों की मम्मियां बच्चों के खाने-पीने की सामग्री भी अपने साथ लेकर आने लगी थीं। बच्चे प्ले एरिया में कागज व फलों के छिलके फेंक देते! तो सुचिता को यह पसन्द नहीं आता। उसने एक-दो...
सूखा सावन
लघुकथा

सूखा सावन

=========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान आंगन में लगा आम का पेड़ पूरी कॉलोनी में एकमात्र फलदार, छायादार वृक्ष जिसकी छांव में आज भी मां - बाबूजी कुर्सी डालकर हरियाली का आनंद लेते हैं। फ़ल के समय लटालूम आम ना केवल इंसानों को बल्कि परिंदों को भी तृप्त करता है। अल सुबह मिट्ठू, दिनभर गौरैया और कोयल की कूक से आँगन चहक उठता.... तो कभी, गिलहरी की अठखेलियां देख मन का सावन झूम उठता। हरा भरा आंगन अब सड़क चौड़ीकरण की जद में आ गया। कल ही विकास के नाम पर रंगोली डाली थी और कुल्हाड़ी, आरी वृक्ष के नीचे रख गए थे ....सरकारी मुलाजिम। रात भर से पक्षियों का उपवास है, पक्षियों के चहकने और अठखेलियो पर विराम लग चुका, यही नही बादल का एक झुण्ड पड़ोस के मोहल्ले से गुजर गया। अबकी बार लगता है, मां-बाबूजी सूखा सावन देखेंगे, अपने आंगन। लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन...
जानलेवा तम्बाकू का सेवन
आलेख

जानलेवा तम्बाकू का सेवन

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" विश्व मे ८० लाख लोग प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन के पश्चात होने वाले असाध्य रोगों की वजह से काल के गाल में समा रहे है, वही भारत देश मे प्रतिवर्ष १० लाख लोग जान गंवा रहे है।       विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ विश्वभर के राष्ट्र और समाजसेवी संगठन तम्बाकू के सेवन से होने वाले रोग और होने वाली मौतों से बचाने के लिए विश्वव्यापी अभियान चलाए हुए है। इतना कुछ होने के बावजूद लोग इस कचरे को खाना नही छोड़ रहे है। इसके बनाये उत्पादों पर स्पष्ट चेतावनी लिखी होने के पश्चात भी इसका सेवन करने वालों की संख्या में कमी ना के बराबर हो रही है।      मैं दो घटनाएं और तम्बाकू के उत्पादन के बारे में बताने जा रहा हूँ, घटनाएं तो दिलचस्प है पर उत्पादन गन्दगी से सराबोर......        मैं कक्षा तीसरी का छात्र था, मेरे समाज बन्धु और पुराने घर के सामने वाले जो मेरे साथ पढ़ रहे थे, मुझे बड़े प्य...
पानी की महामारी
लघुकथा

पानी की महामारी

========================================================== रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शहर में पानी के लिए त्राहि-त्राहि हो रही थी सप्ताह में एक दिन नल आते थे लोग मीलों दूर लंबी कतार बनाकर पानी के लिए भागते नजर आते थे। वह बड़े घर की बहू थी नौकर चाकर ठाट बाट सब कुछ था, महलनुमा घर के पिछवाड़े में गहरा कुआं था जिससे पाइपलाइन जोड़कर घर के सभी नलों में पानी आता था उन्हें पानी की कमी कभी न होती किंतु इस बार तो उसके कुएं से भी लोग पानी ले जाने लगे, धीरे धीरे वह भी सूख गया। अब तो पाइप सेभी पानी नहीं चढ़ता उन्हें भी पानी की परेशानी होने लगी किंतु अब तो गजब हो गया जिसे कुएं से पानी खींचना आता था वह नौकर बीमार पड़ गया। तीन दिन बाद हालात ये थे कि घर में केवल दो लोटे पानी बचा था, मालकिन ने दो दिन का निर्जला व्रत रख लिया, क्योंकि बच्चों को पानी बचाना जरूरी था किंतु वह भी खत्म हो गया। सड़क प...
वार्तालाप
लघुकथा

वार्तालाप

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सड़क की पगडंडियों से गुजरता अनुपम गर्मी की तपिश से परेशान हो रहा था। सरकारी स्कूल की नौकरी ऐसी थी। कि गाँव की पाठशाला का भार उसी के जिम्मे आ गया था। गर्मी में स्कूल की छुट्टियां होने के बावजूद भी कोई ना कोई काम से उसे जाना ही पड़ता। आज उसे नए नियमों से स्कूल की भर्तियों को लेकर प्रारूप तैयार करना था। इसी सिलसिले को दिमाग में रखते हुए, वह धूल भरे गुबार से गुजर रहा था। तभी जोरो से आँधी शुरू हो गई। वह सिर छुपाने के लिए जगह की तलाश कर रहा था। तभी उसे वहाँ एक सूखा सा बंजर पेड़ दिखाई दिया। वह उसी पेड़ के नीचे थोड़ी देर के लिए रुका तो ऊपर से उस पर कुछ बूंदे पानी की गिरी। उसने देखा आसमान तो साफ है। फिर यह पानी की बूंद कहां से गिरी। उसने ऊपर नजर उठा कर देखा। तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वह आँधी के रुकने का इंतजार कर रहा था। ...
बेटे का खत माँ के नाम
लघुकथा

बेटे का खत माँ के नाम

============================== रचयिता : अर्चना मंडलोई थैक्यू माँ ....      ओह! माँ तुम पास हो गई। कितनी खुश हो तुम आज मेरा रिजल्ट देखकर। टीचर जी ने तुम्हें मिठाई खिलाते हुए बधाई दी तो तुम रो ही पडी थी। मैं पास खडा, ये सब देख रहा था, और मन ही मन ईश्वर को शुक्रिया कह रहा था - यहाँ धरती पर तुम जैसी माँ जो मिली है, मुझे संभालने के लिए। मुझे पता है, माँ मैं उन आम बच्चों में शामिल नहीं हूँ, जिसे दुनिया नार्मल कहती है। और तुम भी दुनिया की तमाम माँ के समान ही हो। पर माँ मेरे साथ तुम भी खास हो गई हो। मैं जानता हूँ माँ हर रोज तुम मेरे स्कूल के गेट पर छुट्टी होने के समय से पहले ही खडी रहती हो। दौडते भागते बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए, मैं जानता हूँ उन बच्चों में तुम मुझे खोजती हो। वैसे तो माँ तुमने कभी किसी से मेरी तुलना नहीं की, फिर भी मेरी क्लास के टापर्स बच्चों की तुम खुशामद करती हो औ...
फ़र्ज़
लघुकथा

फ़र्ज़

========================================================= रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी करीब बारह वर्ष की थी गुड़िया।  दादाजी के सभी पोते और पोतियों में सबसे लाड़ली थी वो। "चलो गुड़िया, आज "बड़े-घर" जाना है हमको, बड़ी दादी के पास। उनकी तबियत ठीक नहीं है। "ऐसा कहते हुए दादाजी ने गुड़िया को लाल कपडे में लिपटी हुई एक किताब थमा दी और कहा "इसका एक पाठ बड़ी दादी को पढ़ कर सुनाना है तुम्हें, अब चलो।" "बड़े-घर" में एक चारपाई पर बड़ी दादी लेटी हुई थीं। गाँव के डाक्साब (डॉक्टर) भी बैठे थे। पूरा परिवार बड़ी दादी के पास इकठ्ठा हो चुका था। दादाजी के इशारा करते ही गुड़िया ने किताब खोली और दादाजी के कहे अनुसार उसका अट्ठारहवाँ पाठ पढ़ना शुरू कर दिया। पाठ पूरा होते ही बड़ी दादी ने अपना कंपकपाता हाथ गुड़िया के सिर पर फेरा और आशीर्वचन देते हुए चिर-निद्रा में सो गयी। ये वृतांत गुड़िया के कोमल मन पर गहराई से अं...
सेवाराम जी
लघुकथा

सेवाराम जी

=========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान सेवाराम जी यथा नाम तथा गुण वाले सेवाराम जी, अपनी सेवा कार्यों के कारण जात-समाज और मोहल्ले में इसी नाम से जाने जाते हैं। उनका मूल नाम तो दशरथ जी है, बड़ा दिल और तन-मन-धन से हर किसी के लिए मदद को हर पल तैयार! शायद इसीलिए लोग प्यार से उन्हें सेवाराम जी पुकारते हैं। हर दम समाज को नई दिशा दिखाने के पक्षधर सेवाराम जी ने नुक्ता प्रथा, दहेज प्रथा और अब मामेरा प्रथा बंद कराने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़े हैं। नई दिशा की ओर, आपकी पहल कल भी देखने को मिली जब इंदौर वाली ब्यान जी भर्ती थी तो उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए सेवाराम जी अपने साथ घर से ५ खंड का टिफिन जिसमें रोटी के फूलके, दो तरह की सब्जी, अचार, पापड कतरन और थरमस में झोलियां भर कर मिलने पहुंच गए। अस्पताल में काफी लोग थे वे सब सेवाराम जी का या व्यवहार देख मन ही मन प्रशंसा क...
भाग्य की गति
लघुकथा

भाग्य की गति

भाग्य की गति =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका बहुत मिन्नते की थी उसने --- कोई अपना बच्चा मुझे गोद दे दो ---- बाहर से बच्चा लाने के लिए सासू मां तैयार नही थी! घर का बच्चा गोद रखने से घर के संस्कार  आयेंगे ! घर का खून, गोत्र, रिश्ता सब रहेंगे! सासू मां का कहना था! वह सबको मनाती रही! जेठ, देवर, भाई बहन, ननंद कोई भी न माने! जेठ को पांच बच्चे थे, उसमे एक शरीर से अशक्त! न बोल सकता न चल सकता! जेठ  उसे देने को तैयार हुए! उसमे भी उसने हामी भर दी पर बच्चे की स्थिति नही थी की बदली वाली नौकरी मे उसे हर बार परिवर्तन कराया जाये! बात जमी नही! समय  आगे बढता गया! अचानक  उसके पति को दिल का दौरा पड़ा और वह दफ्तर मे ही चल बसे! घर की दूरी ,पास मे कोई नही! एक भोजन बनाने वाला और  उसका तीन साल का बेटा! बस तभी से महीने भर मे वह  उसका बेटा हो गया और  उसे नाम, संस्कार...
रायचंद
लघुकथा

रायचंद

रायचंद  =========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान पिछले दिनों मां के पेट में दर्द की शिकायत को लेकर काकू-अन्नू अस्पताल पहुंचे। चिकित्सीय परीक्षण करने के बाद, चिकित्सक ने सलाह दी कि पेट में १ गेंद के बराबर गठान है, हमे भय है कि, कहीं गठान में कैंसर के जीवाणु ना हो! मशीनी परीक्षण की पुष्टि दो अन्य चिकित्सकों में भी कर दी। अब मां की शल्यक्रिया के लिए मन सहमत हो चुका था।  उधर अस्पताल में मां से मिलने वाले लोगों का जमावड़ा लगने लगा। मंजू जीजी कह रही थी कि, अस्पताल वाले लूटते हैं, आप तो अन्य पद्धति से इलाज कराओ! शोभा आंटी ने भौहे चढ़ाते हुए कहा...भला,  यह कोई उम्र है मां की? जो ऑपरेशन झेलेगी? कूना भैया ने राय दी, कि इन गांठो का इलाज लेजर पद्धति से भी हो सकता है! वही राजू बेन ने तो गंडे डोरे और ताबीज का सुझाव दे डाला। जितने लोग उतनी बातें ....  माँ, सभी के सुझाव के ...
👓दो चश्मे👓
लघुकथा

👓दो चश्मे👓

👓दो चश्मे👓 ================================================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख 'कुंद-कुंद' में हमारी साहित्यिक संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था। मेरे काव्य पाठ की भी वीडियो रिकॉर्डिंग हुई थी। कार्यक्रम के समापन पर अपने एक मित्र के साथ उनकी बाइक पर बैठकर घर लौटा। ज्यों ही मैंने सांध्यकालीन पत्र पढ़ने के लिए चश्मा खोजा तो वह कहीं नहीं मिला। बार-बार सभी जेबों और झोले को टटोला किन्तु व्यर्थ! पत्नी उलाहनापूर्वक कहने लगी, "आप चश्मे का ध्यान कब रखते हैं! "पुत्र ने दिलासा के स्वरों में कहा, " पापा, आपका जन्मदिन दो दिन बाद ही है। मैं अपनी ओर से आपको चश्मा भेंट करूँगा। मेरे साथ चलना कल ही आपकी आँखों की जांच करवाने के बाद चश्मा बनवा दूंगा। "पत्नी के चश्मे से मैंने मोबाइल देखा। वाट्सअप में प्रेषित वीडियो में उसी खोए हुए चश्मे में मेरा काव्य पाठ...
माँ तुम
लघुकथा

माँ तुम

माँ तुम रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर ============================================ चुनाव के प्रचार प्रसार का जुलूस गॉव के कोने से गुजर रहा था। जुलूस की आवाजें सुनकर,काम से लौट रही माँ का हाथ छूटाकर भूरी आवाज़ की दिशा में भागी। सात साल की भूरी देखे ही देखते माँ की आँखों से ओझल हो गई। भूरी जब उस भीड़ में फस गई तो उसकी आँखों मे भय कॉप रहा था। वह बैचेन निगाहों से माँ को ढूंढने लगी। तभी एक व्यक्ति  भूरी को अकेला पा कर उसे फुसलाने की कोशिश करने लगा। इधर माँ चिंतित नज़रो से चारो ओर भूरी को ढूंढ रही थी। उसे भूरी कही भी नजर नही आई। तभी उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी वह भूरी का हाथ थामे उसे कुछ कह रहा था। लॉस्पिकर की आवाज में वह कुछ सुन ना सकी। भीड़ को चीरते हुए वह उस व्यक्ति तक पहुँची ओर जोर से उसके गाल पर तमाचा मारा वह उसके मन्तव्य को समझ चुकी थी। डरी सहमी भूरी माँ को देखते ही किसी कोमल फूल की तरह खिल उठी...
काबिलियत
लघुकथा

काबिलियत

काबिलियत ===================================================== रचयिता : संगीता केस्वानी आज ज़ीनत बहुत खुश है, मानो भाव -विभोर है, कि जैसे उसके आखों से आँसू नही थम रहे और होठों पे एक प्यारी सी मुस्कान है। हो भी क्यों न आज उसे अपनी मेहनत और तपस्या का फल जो मिला था। आज "रज़िया" ने दसवीं की परीक्षा में पूरे स्कूल में टॉप किया  है। उसकी सफलता और ट्रॉफी देख अनायास ही रो पड़ी और यादों के गलियारे से होते हुए उसे वो सारे मंज़र याद आगये, जब अहमद ने उसकी काबिलियत पर सीधा-सीधा तंज कसा था और उसे तलाक का जोरदार तमाचा मारा था।जो शारीरिक रूप से ना सही मगर मानसिक रूप से उसे घायल कर गया था।       आज मानो उसका सारा सफर, मेहनत और संघर्ष उसकी आँखों के सामने एक चल -चित्र सा घूम रहा था।जो उसने अपनी बेटी रज़िया को इस काबिल करने में तय किया था। अहमद से अलग होने बाद से लेके उसके  जॉब और जीवन-चक्र को चलाने की जदओ- ...
स्नेहबंधन
लघुकथा

स्नेहबंधन

स्नेहबंधन =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे       शिखा लगभग तीस वर्ष बाद अपने पति सुनील के चचेरे भाई प्रखर की शादी में शामिल होने जबलपुर जा रही थी। शिखा की मां ने कह रखा था बेटा जब जबलपुर जा ही रही हो तो जगदीश चाचाजी और चाचीजी से भी मिल आना। चाचा का फोन आता रहता है। चाचा-चाची तुझे बहुत याद करते हैं क्योंकि तू ही उनके पास ज्यादा रहा करती थी। चाची के हाथ का शुद्ध घी से बना हलुआ तुझे बहुत पसंद था। वह जब भी बनाती तुझे जरूर बुलाती।        उनकी बेटी शशी और दामाद कुछ दिन पहले ही हमसे मिलकर गये हैं वे भी कह रहे थे बाबूजी-अम्मा आप सबको बहुत याद करते हैं। बेटा उनकी भी उमर हो चली है, वे सालों बाद तुझे देखकर बहुत खुश होंगे। तुझे तो याद ही होगा, अपन जब जबलपुर में रहा करते थे, तेरे पापा का अधिकतर टूरिंग जाॅब था तब उन लोगों का बहुत सहारा हुआ करता था।     शिखा ...
चाय
लघुकथा

चाय

मजदूरी =========================================================================================================== रचयिता : मित्रा शर्मा गावँ में एक आदमी का नोकरी लग गया। गावँ बहुत पिछड़ा  था। जब वह आदमी छुट्टी में घर गया तो खाने पीने का सामान याने की बिस्कुट चाय पत्ती बगैरह लेकर गया। पहली बार परदेश से गावँ में आने के खुशी में परिवार और गावँ के लोग का मजमा लग गया। छोटे बच्चे बगैरह मिठाई चाकलेट बगैरह बाटने के बाद बड़े लोग के लिए नास्ता पानी की ब्यबस्था होने लगा। चाय बनाने के लिए अपनी माँ को आवाज  लगाकर उसने वह पुड़िया पकड़ाई। नास्ते के साथ माँ  ने चाय पत्ती भी छोंक लगाकर परोसा। बेटा ने पूछा "यह क्या चीज है माँ ?  "माँ ने जवाब दिया तूने बनाने को दिया था न मैंने चटनी बनाई  । क्यों स्वाद नही आया क्या नमक मिर्च का ?  बेटे को हँसने के अलावा कोई चारा नही था ... विशेष :- लेखिका हिंदी भाषा सिख रह...
खिड़की
लघुकथा

खिड़की

खिड़की =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका बहुत जोर की ताली बजाती वह, जब भी गाड़ी उतार, चढ़ाव पर रहती। खिड़की के पास बैठना बस पसंद था तनया को। मां कहती देखो मानती नहीं ना, हवा के सामने बैठी हो, हवा लग गई। कैसी नाक बहने लगी है। पर हमेशा कही भी जाना हो, रेलगाड़ी की छुक-छुक और उसकी खिड़की जैसे जादू था, तनया के लिए। रेलगाड़ी की गति और समय आगे पीछे हो गये, वह चल पड़ी नई यात्रा पर। उसकी सोच और आनन्द बदलने लगे। अब वह खिड़की पर बैठती तो पतिदेव कहते तुम सामने बैठो। जब भी बाहर जाना होता यही होता। फिर बच्चों को भी खिड़की पसंद आने लगी। इस बार की यात्रा और खिड़की, ने झंझावात ला दिया उसके मन में। तुम उधर बैठो, में खिड़की के पास। वह बोली आप खिड़की के पास ही है। पतिदेव का जवाब था, नहीं में उसी तरफ की खिड़की के पास बैठना पसंद करता हूं, जिस और गाड़ी आगे बढती है। ...
अंतिम साँस
लघुकथा

अंतिम साँस

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चौंच में तिनका दबाए नन्हीं गौरैय्या मुनिया ऐसे आशियाने की तलाश में थीए जहाँ वहाँ अपनी आने वाली सन्तति के लिए घोंसला बना सके तेज गर्मी में मुनिया का जी हलकान हो रहा था। पखेरू तक ना कोई हरा पेड़ दिख रहा था ना कोई पानी को जगह घने धुएँ व प्रदूषित हवा उसकी चेतना को क्षिण करने लगे, अर्ध मूर्च्छा में मुनिया अपनी माँ की नसीहत याद करने लगीए रे मुनिया जंगल और एसी शुद्ध हवा छोड़ के यहाँ वहाँ मत जाया कर। तू जी न सकेगी। पर कहा मुनिया ये सब मानती, नयी उम्र की तरंग और मन की उड़ान उसे दूर इस शहर में ले आए थे। कुछ दिन इस घर से घर ऊँची इमारतों की छत पर इतराती मुनिया सीमेंट के जंगल में ही रह गयी। सच में अब उसका जीवन दूभर हो गया। पूरी ताकत समेटती मुनिया पुनः माँ के पास लौटना चाह रही थी। तिल तिल छीजती मुनिया अर्द्ध मुर्छित होने लगी, प्रदूषित आबोहवा का जिम्...
विरहणी
लघुकथा

विरहणी

विरहणी =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका बहुत बोलती थी, सासू मां। हर बात पर टोकना। उसके किसी भी काम को कभी प्रोत्साहित नही किया। बड़ी उलझन होती थी, विमला को। पति से विमला कोई शिकायत नही करती। वह जानती थी की वो अपनी मां के विरूद्ध कभी कुछ नहीं कहेंगे। पहले सामूहिक परिवार में सासू मां, ससुर जी, दादा ससुर जी, देवर, नंनद सबके साथ बहुत समय रही। अपने पति का तबादला दुसरे शहर में होने पर भी वह घर आती जाती रही। इस बार सासू मां विमला के पास आई थी। दस पन्द्रह दिन तो कुछ बोली नहीं, लेकिन एक दिन अपने बेटे को पड़ोस में बैठा देखकर, उन्होंने मौका देखकर धीरे से विमला से कहा, देख विमला अब बार बार बबुआ को छोड़ घर न आया कर और देख बच्ची भी पढ़ने लगी है। विमला को हंसी आ गई। वह सोचने लगी हमेशा परिवार की जिम्मेदारी बताने वाली सासू मां को एकदम क्या हो गया। सासू मां विम...
गृहलक्ष्मी
लघुकथा

गृहलक्ष्मी

गृहलक्ष्मी =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे   बुआजी के घर के सामने आकर कार रुकी। क्षमा कार के शीशे में से देखकर ड्रायवर से बोली यही घर है भैया, गाडी यहीं रोक दो, हम यहीं उतर जाते हैं। आगे प्ले ग्रांउड है वहां गाडी पार्क कर देना। हम फ्री होकर तुम्हें फोन कर देंगे। क्षमा और रघुनाथ बुआजी के घर में घुसते ही देखते हैं, बैठक में बडा-सा टीवी लगा है और बुआ-फूफाजी टीवी देख रहे हैं। दोनों ने बुआ-फूफाजी को प्रणाम किया। थोडी देर वार्तालाप के बाद क्षमा ने पूछ ही लिया बुआजी मधु भाभी दिखाई नहीं दे रहीं हैं? बुआजी बोलीं क्या बतायें बेटा मधु की मां की तबियत खराब चल रही है इसलिये राजेश सुबह ही उसे मंदसौर की बस में बैठाकर आया है। राशी बिटिया (पोती) की स्कूल की छुट्टियां लग गई हैं सो मधु चार-पाॅच रोज मां के साथ रह लेगी। थोडी देर बाद बुआजी ने राशी को आवाज दी बेटा राश...
लक्ष्मी अम्मा
लघुकथा

लक्ष्मी अम्मा

लक्ष्मी अम्मा =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे   अम्मा तुम आज घुमने नहीं गयीं ? रश्मि ने घर की सीढियां चढते हुये अम्मा से पूछा। अम्मा बोलीं बेटा आज मनी और आर्यन हैदराबाद को जा रहे हैं उसी को तैयारी है। रश्मि आश्चर्य मुद्रा में बोली अरे क्या बात है, अचानक क्यों? अम्मा सहज भाव से बोली श्री का विशाखापटनम ट्रांसफर हो गया है, तो अभी हम हैदराबाद में रहेगा, वहां मनी का मम्मी पापा रहता है ना, श्री का बाहर रहने से उनका हेल्प रहेगा। विशाखापटनम जाने का पहले श्री हमकु सेटल करको जायेगा। हैदराबाद में मनी को टीचर का इंटरव्यू देने का है आर्यन के लिये स्कूल का एडमीशन ट्राय करेंगे, और रेंट का घर देखेने का है इसीलिये ....। और आप कब जायेंगी? बात के बीच में ही रश्मि बोल पड़ी। अम्मा बोलीं - मैं वन वीक बाद जायेगी..... जब श्री वापस आको थोड़ा पेंडिंग काम और सामान लेको ज...
कुल्फी वाला
लघुकथा

कुल्फी वाला

वो लम्हें ====================================== रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे राजू से पहले कई कुल्फी वाले घर के सामने से निकलते हैं पर सतीश के पूरे परिवार को रोज स्वादिष्ट क़ुल्फ़ी के लिये राजू  कुल्फी वाले का ही इंतजार रहता है। आज राजू को आने में देरी हो गयी थी। आर्यन सतीश से कह रहा था, पापा कुल्फी वाले अंकल अभी तक नहीं आये। इतने में दूर से घंटी सुनाई दी। सतीश कुल्फी वाले को देखने घर से बाहर आया, उसके पीछे दौडकर आर्यन भी आ गया। राजू बिना कहीं रूके, तेज-तेज ठेला लेकर सतीश के घर की ओर आता दिखाई दिया। आते ही राजू ने एक कुल्फी तैयार  की और आर्यन के हाथ में पकड़ा दी। सतीश कुछ कहता, इससे पहले ही वह बोला - साहब आज एक ही कुल्फी है, हम यह आर्यन बाबा के लिये बचाकर लाये हैं। इस पर सतीश तुनक कर बोला क्यों खत्म हो गई कुल्फी? हम तो तुम्हारे रोज के ग्राहक हैं। जी साहब ! पर आज के लिये क्षमा करि...
दादू 
लघुकथा

दादू 

दादू  ========================================================= रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी                 “दादी बोलो ना, माँ घर कब आएगी?" "बस अभी आती ही होगी बेटा" कहकर दादी ने छह साल के मुन्ना को बहलाने की कोशिश की| पर थोड़ी देर बाद फिर वही सवाल| "देखो ना दादी अँधेरा भी हो गया है, माँ तो हमेशा उजाले में ही घर आ जाती है|" पोते की एक ही रट सुनकर दादी से रहा नहीं गया और लगीं दादू को कोसने| "इधर उसका ऑफिस जाने का समय होता है और आप उसकी गाडी की चाबी कहीं रख कर भूल जाते  हो| रोज़ देर से जाती है| देखो मुन्ना कितना परेशान हो रहा है|  मुन्ना बोला "पर दादू तो बिल्ली का रास्ता काटने जाते हैं |" "ये क्या-क्या बोलता रहता है मुन्ना तू ?  चुप-चाप बैठ जा, माँ आती ही होगी|" इतने में आरती घर आ जाती है| मुन्ना उससे भी यही सवाल करता है| "बेटा क्या करूँ? दादू रोज़ मेरी गाड़ी की चाबी कहीं रख कर भूल ज...
छैनी
लघुकथा

छैनी

रचयिता : विजयसिंह चौहान =========================================================================================================== छैनी गर्मी की तपिश ने सभी को हालाकान कर दिया मगर लूहार की झोपड़ी में गर्मी का असर कहीं नजर नहीं आता। लोहे को गर्म कर, पीट-पीट कर छैनी जो बनाना है इसलिए पूरा परिवार लगा रहता है। परिवार का मुखिया लोहे को गर्म कर लालसुर्ख करता और फिर शुरू होता है काम शुरू होता गुल्लो का। वजनी हथोडे को पूरी ताकत से लोहे पर प्रहार करती और आकार देती है छेनी को। छैनी वही, जो पत्थर तराशने, मूर्ति बनाने की लिए काम आती है। आकार और साकार का यह क्रम गुल्लो और छेनी बखूबी करते हैं, तभी गुल्लो की बिटिया, झूला बंद होने पर रोने लगती है। गुल्लो, छैनी पर चोट करते-करते बच्ची को दुलारती, पुचकारती, बचपन सँवारती, और पसीना पोछ कर फिर जुट जाती है, आकार देने के लिये, तराशने का यह क्रम ज...
मजदूरी
लघुकथा

मजदूरी

रचयिता : मित्रा शर्मा =========================================================================================================== मजदूरी दिनभर मजदूरी करने के बाद घरमे शाम को मा का इंतजार में बैठे बच्चे को मा ने दस रुपये थमाते हुए बोली किराना के दुकान से आटा ले आ जल्दी भूख लग रहि है । पहले से भूखे बैठे बच्चे आपस मे लड़ने लग गए मैं जाता हूँ तू देर करेगा। दोनो बच्चे के लड़ाई और नोटकी खींचातानी में नोट दोनो के हाथ मे आधा आधा हो जाता है । एक दूसरे को देख रहे चुप होते बच्चे के ऊपर कहर बरसाने की बारी म की थी परिचय :- मित्रा शर्मा महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नं...
कामना
लघुकथा

कामना

रचयिता : अर्चना मंडलोई =========================================================================================================== कामना वह लकडियों के ढेर के बीच बैठा, उनिंदा सा जली हुई लाशों की राख के ढेरों को देख रहा था। अपनी जर्जर होती काया को सहलाते हुए सोचने लगा - लाशों को जलाने के लिए लकडियाँ बेचते-बेचते एक दिन स्वयं भी राख के ढेर में बदल जाऊँगा। निर्धनता और जीविकोपार्जन की कोशिशों ने इस श्मशान में रहते-रहते मेरे जीवन को भी मृतप्राय बना दिया हैं। उसने आसमान की ओर देखा -! सूर्यास्त का समय होने को था - कातर आँखों से अपने पाँच वर्षीय पुत्र की ओर देखते हुए वह सोचने लगा - क्या आज एक भी लाश नहीं आयेगी? क्या आज रात का भोजन नहीं बन पाएगा? तभी रघु पति राघव की धुन उसके कानों पर पडी ! उसने अपनी सोच को विराम दिया, और फुर्ती से उठकर लकडियाँ तोलने की तैयारी करने लगा। तराजू के हिलते पलडों के...