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गद्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?
आलेख, बाल साहित्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुद्धी और ज्ञान दुनियां में बहुत महत्वपूर्ण हैं, फिर वह किसीसे भी प्राप्त हो, उसे अनुभव से प्राप्त कर आत्मसात करना होता हैं। ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने वाला शिष्य और ज्ञान देने वाला या प्राप्त करवाने वाला गुरु होता हैं। ऐसा यह गुरु और शिष्य का बुद्धी, ज्ञान और अनुभव का रिश्ता होता हैं। ज्ञान तथा अनुभव लेनेवाले एवं देनेवाले की उम्र का इससे कोई संबंध नहीं होता, सिर्फ ज्ञान देनेवाला अपने विषय में निष्णात होना चाहिए, और ज्ञान लेनेवाले का देनेवाले पर विश्वास होना चाहिए। यहीं इस रिश्ते की पहली शर्त होती हैं। बच्चें की पहली गुरु का मान यह उसकी माँ का होता हैं। इसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ज्ञान और अनुभव देनेवाले गुरु की आवश्यकता महसूस होती रहती हैं। ‘गुरुपूर्णिमा‘ यह सभी गुरुओं को आदर और श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का दिन हैं। गुरुपूर्णिमा को ‘व...
रौनक
लघुकथा

रौनक

कुमुद दुबे इंदौर म.प्र. ******************** आँफिस से लौटे साठे जी, घर मे कदम रखते ही पत्नी शोभा से बोले शोभा ! मैं कुछ दिनों से देख रहा हूॅ अपनी कालोनी के अतुल जी के यहाँ, जहाँ हमेशा सन्नाटा छाया रहता था, आजकल रौनक बनी हुयी है। देर रात तक घर की लाईटें जलती रहती हैं और लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। क्या बात है? शोभा बोली! मैने उनकी पडोसन माला से पूछा था, वह बता रही थी-अतुल जी के माता पिता साथ ही रहते थे। दम्पती बहुत ही मिलनसार, व्यवहारिक और काॅलोनी के लोगों की किसी भी प्रकार की परेशानी हो सहायता के लिये सदा तत्पर! बच्चे बडे बूढे सभी के चहेते रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद अधिकांशतः समय अपने गाँव में ही व्यतीत कर रहे हैं! फिलहाल कुछ दिनों के लिये आये हुये हैं। . लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३...
चाय की चुस्की
कहानी

चाय की चुस्की

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************   चाय के प्यालों की भाप ने सम्पूर्ण कमरे में एक अलग ही तरह का वातावरण निर्मित कर दिया है। कमरे के चारों तरफ मध्यवर्गीय चाय की महक आ रही है।दोस्तों की महफिल सजी है। “छोटे-छोटे शहरों में बसे लोगों की एक अजीब-सी दास्तान है, रहते तो ये छोटे शहरों में हैं परन्तु सपने इनके बहुत बड़े-बड़े होते हैं ”एक दोस्त ने कहा। “छोटे शहरों में रह कर बड़े-बड़े काम कर जाना कोई आसान बात नहीं होती “फिर दूसरे दोस्त ने बात आगे बढ़ाई। “बड़े-बड़े सपनों वाले छोटे शहरों के नागरिक साधनों और संपर्कों की कमी के कारण पिछड़ जाते हैं, चाहे वो शिक्षा हो, कारोबार हो या फिर कला का कोई भी क्षेत्र, वे प्राय: योग्य होने के बावजूद भी पिछड़ जाते हैं भूमंडलीकरण के इस विस्तारवादी दौर में हर कोई उन्नति करना चाहता है “पहले दोस्त ने फिर कहा। “कला के पक्ष से देखें तो प्रत्त्येक कल...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मैं बिलासपुर स्टेशन से इंदौर आई। जैसे ही मैं स्टेशन पर ट्रेन से नीचे उतरी। एक बूढ़ा व्यक्ति जिसकी कमर झुकी हुई थी, आंखों में मोटे ग्लास का चश्मा था, मुंह में झुर्रियां पड़ गई थीं, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। मेरे पास जल्दी-जल्दी आया और बोला मैडम आपको कहां जाना है? मैं आपको छोड़ देता हूं, और मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरा सूटकेस लेकर चलने लगा मैं उसके पीछे-पीछे चलने लगी, जब मैं उसके रिक्शे में बैठी तो उसने रिक्शा खींचना शुरू किया, कुछ ही दूर जाकर उसका श्वास फूलने लगा। वह पसीना पसीना हो गया मैं तुरंत उसके से उतर गई और सौ का नोट उसके हाथ में रख दिया। बड़ी हिम्मत करके मैने पूछ ही लिया, कि बाबा आप बूढ़े हो गए हो, और आपकी उम्र रिक्शा चलाने की नहीं आराम करने की है। तुम्हें इस उम्र में रिक्शा में रिक्शा नहीं चलाना चाहिए। क्या करूं मेडम...
सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध
आलेख

सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध

मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) ******************** सोशल मीडिया वर्तमान में अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां लोग अपनी रचनात्मकता और कलात्मकता का प्रयोग कर अपनी प्रतिभा को सभी के सामने रख सकते है। शायद यही कारण है कि कम समय में यह प्लेटफार्म युवाओं के दिल और दिमाग पर राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर सक्रिय होना बुरा नहीं है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस प्लेटफार्म का प्रयोग अपने अनुसारकर रहे है। जिसके अच्छे और बुरे परिणाम हमारे सामने वीडियो वायरल होने से लेकर दरिंदगी की खौफनाक घटनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं। खुद को जनता के बीच चर्चित करने या फिर अपने टैलेंट को दिखाने के लिए भी इसका इस्तेमाल बखूबी हो रहा है। अच्छे और बुरे परिणामों की बात करने वाद अहम सवाल यह उठता है कि क्या सोशल मीडिया बुरा है या फिर उसके उपयोग कसे का तरीका? आपका भी जवाव शायद तरीका ...
मान
लघुकथा

मान

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** अरी  सुलक्षणा कल "हरतालिका तीज" है, याद है ना। अरे माँ मैं तो भूल ही गई थी। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, ठीक है कर लूँगी। "अरे माँ आपने अभी तक चाय नहीं बनाई सुबह-सुबह किसको फोन करने बैठ गयीं?" सीमा अपनी माँ के गले में हाथ डालते हुए बोली।" तेरी भाभी को ही फोन लगा रही थी, उसे याद दिला रही थी कल हरतालिका तीज है, व्रत कर लेना "और भाभी ने कहा होगा ठीक है मैं कर लूंगी। "हां तेरी भाभी बोल रही थी कि माँ मैं तो भूल ही गई थी अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।"  देख मैं उसे याद दिला देती हूं तो निधि बड़ी खुश हो जाती है। पर माँ आपको पता है न कि भाभी व्रत नहीं कर पाती हैं, उन्हें भूख सहन नहीं होती है। फिर क्यों याद दिलाती हो? अब उसकी इच्छा होगी तो कर लेगी नहीं तो कोई बात नहीं है। मैंनें अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। पर देख बेटा मेरा मान तो रख लेती है। कभी म...
मेज के उस पार की कुर्सी
लघुकथा

मेज के उस पार की कुर्सी

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** सुनों आज भी मैं खिडकी के पास रखी कुर्सी पर बैठी हूँ। बाहर बगीचे में ओस से भीगा आँवले से लदा पेड हरे काँच की बूँदों सा लग रहा है। इन दिनों गुलाब में भी बहार आई हुई है। सुर्ख लाल गुलाब पर मंडराती रंग-बिरंगी तितलियां मौसम को और भी खुशनुमा बना रही है। मौसम भी इस बार कुछ ज्यादा ही उतावला है नवम्बर में ही गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है। ये गर्म काँफी मुझे अब वो गर्माहट नहीं देती क्योंकि मेज के उस पार खाली कुर्सी और काँफी मग का वो रिक्त स्थान तुम्हारी कमी महसूस करवा रहा है। मै अपनी बेबसी ठंडी कर काँफी के हर घूँट के साथ पीती जा रही हूँ। जानते हो ये हवा जो ठंड से भीगी हुई है, ये अब भीगोती नही है। भीगना और गीले होने का अंतर तुम्हारे बिना समझ में आया। मैं हथेलियों की सरसराहट से उस गर्माहट को महसूस करना चाहती हूँ, जो कभी तुम्हारी हथेलियों ने थाम कर गर्मा...
क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?
आलेख

क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** स्त्री और पुरुष उस सर्वशक्तिमान की अमूल्य भेंट है। आजतक के विकास में स्त्री और पुरुष की समान हिस्सेदारी भी है। इतना होते हुए भी हर समय यश, प्रसिद्धी, मानसन्मान, निर्णय लेने का अधिकार हमें हरस्तर पर आज पुरूषों के लिए ही दिखाई देता है। देश में हर स्तर पर महिलाओं के लिए ५० प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए परन्तु ३३ प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भी पुरूषों के अड़ियल और महिलाओं के प्रति उनके नकारात्मक द्रष्टिकोण के कारण अनेक वर्षों से लोकसभा में लंबित था। वैसे भी वर्तमान में महिला सशक्तिकरण की अनेक योजनाये कार्यरत है, परन्तु लचर मानसिकता और भ्रष्टाचार के कारण वांछित परिमाण देश में दिखाई नहीं दे रहे है। पुरुष सत्तात्मक समाज में आज भी महिलाओं को पुरूषों के बाद का ही दर्जा दिया जाता है। समानता को स्वीकार करने की मानसिकता ही दिखाई नहीं देती। मजे की बात ...
अपना घर
लघुकथा

अपना घर

सीमा निगम रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** अपने घर का सपना सबका रहता है और आज मेरे घर का सपना पूरा होने जा रहा है तो आप अम्मा-बाबूजी को साथ चलने के लिए मत कहना। "मानसी अपने पति अमित को सख्त लहजे में बोल रही थी। "ये कैसी बात कर रही हो तुम एक ही शहर में अम्मा बाबूजी को अलग छोड़कर रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे" अमित ने समझाया पर मानसी जिद में अड़ी रही अम्मा-बाबूजी ने दुखी मन से जाने की इजाजत दे दी। पिछले साल ही किश्तो में कर्ज लेकर नई कालोनी में घर लिये थे नये घर मे आकर मानसी उसे सजाने संवारने में लग गयी। गृहप्रवेश भी बहुत धूमधाम से किया। नये घर का आकर्षण अकेले रहने का रोमांच मानसी को लग रहा था कि जिन्दगी में सुख ही सुख है। हर रविवार को अमित अम्मा-बाबूजी से मिलने जाता व उनकी दवाई और जरूरी सामान रख आता।                    अपने घर में रहते मानसी को छः माह हो गए। धीरे-धीरे आर्थिक समस्या ह...
उतरन
लघुकथा

उतरन

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** देवकी सुनो, जी दीदी चलो मेरी मदद करो। दीपावली की साफ सफाई करनी में, चलो पहले मेरा कमरा साफ करते हैं। ऐसा करो मेरी अलमारी पहले साफ कर दो। अलमारी के सारे कपड़े निकाल लो, और जो पुराने हैं उन्हें अलग रखना, और जो नये हैं उन्हें अलग। फिर आवाज आई, देवकी देख तो यह सलवार सूट कितना सुंदर है? हाँ दीदी बहुत सुंदर है। तो ऐसा कर इसे अपनी बेटी ममता के लिए ले जा। इसे पहनकर ममता बहुत सुंदर लगेगी। और यह उसे  आ भी जाएगा। मैं तो केवल एक-दो बार ही पहनीं हूं। दीदी पर अरे ! पर वर कुछ नहीं, प्यार से दे रही हूं ना तो रख ले। यह  बात नहीं  है दीदी, मैं तो आपकी दी हुई हर साड़ी पहन लेती हूं, कभी मना नहीं करती। पर अपनी बेटी को उतरे हुए कपड़े नहीं पहनाऊंगी दीदी। देवकी के मुंह से यह बात सुनकर प्रभा के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवा...
परवरिश
लघुकथा

परवरिश

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** कॉफी हाउस से गुस्से में उठ स्नेहल बदहवास सी बिना रुके चलती ही जा रही थी स्वाति ने आवाज दी स्नेहल रुक जाओ मगर स्नेहल अनसुना कर वहां से निकल गई उसे मंजिल की खबर नहीं थी। ना जाने वह किस बात की सजा खुद को दे रही थी? आनंद और स्वाति कुछ ना कर सके। स्नेहिल जिंदगी से खफा थी सब कुछ होते हुए भी जिंदगी में कड़वाहट थी। मां बाप के बीच की दूरी ने उसके अंदर एक अजब अहसास पैदा कर दिया था। जाने अनजाने कब वह दोनों से दूर हो गई पता ही नहीं चला। स्वाति ने स्नेहल के पैदा होने पर अपनी दुनिया को बहुत छोटा कर लिया था। उठते बैठते उसे सिर्फ और सिर्फ स्नेहल का ख्याल था। जी जान से उसकी परवरिश में खो गई यहां तक कि नौकरी भी छोड़ दी मगर फिर भी स्नेहल को बांध ना सकी। बच्चों की परवरिश में कितना ही समय दो मगर बात फिर वही जन्मों के संबंधों और किस्मत के लिखे पर आ जाती है, चाहे अनचा...
बुढापे की लाठी
लघुकथा

बुढापे की लाठी

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** शंभु जी और उनकी पत्नी बहुत खुश है। उनका बेटा संजय उनके दिए संस्कारों तले बड़ा हुआ है। परिवार में भी सबका सम्मान करता है। समाज, देश का सच्चे नागरिक की तरह सभी जरूरतमंदों की सहायता करता है। जिला अधिक्षक होते हुए भी शंभू जी की बीमारी की खबर सुनकर घर आया है। "पापा आपकी तबियत कैसी है? आप और माँ मेरे साथ चलिए।" संजय बोला। "मैं स्वस्थ हूँ। तुम चिन्ता मत करो। तुम अपनी ड्यूटी पर ध्यान दो। हमलोग यहाँ बिल्कुल ठीक हैं।" शंभू जी बोले। "नहीं पापा, अब आप लोग यहाँ नहीं रहेंगे। यहाँ आप लोगों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं है। आप लोग मेरे साथ रहेंगे ...........मुझे खुशी मिलेगी। "संजय बोला। दोनों खुशी-खुशी संजय के साथ चल दिए। मन ही मन संजय को ढेरों आशीष दे रहे हैं। वह उनके अपेक्षा पर खड़ा उतरकर बुढापे की लाठी बना है।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका...
बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज
आलेख

बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** सृष्टि की रचना में सब समान है मगर हम इंसानों ने अपने हिसाब से नियम कानून बनाकर समाज की स्थापना की है। किसी भी नियम कानून व्यवस्था को इसलिए बनाया जाता है की जीवन सुचारू रूप से चल सके मगर हम इंसान ही उन नियमों कानूनों का उल्लंघन कर और उनकी आड़ में समाज में कुरीतियां पैदा कर देते है। मगर यहां यह समझना जरूरी है की कोई भी नियम जो किसी भेद विशेष को लेकर  बनाया जाए वह इंसानियत के विरुद्ध है। जो समय के साथ साथ एक विकराल रूप ले लेता हैं। प्राचीन काल से ही मर्द औरत के बीच केवल मात्र लिंगभेद को लेकर बहुत से नियम कानून औरतों के लिए बनाए गए और उन्हें सामाजिक तौर पर सदैव दबाया गया जो इंसानियत के विरुद्ध है। समय के बदलाव के साथ नारी जाति के उत्थान के लिए बहुत से शिक्षित लोग आगे आए जिन्होंने समाज द्वारा बनाई गई कुरीतियों का खंडन किया और उसे एक सामान्य जीवन जीने...
मित्रता : बच्चों के साथ
आलेख, नैतिक शिक्षा

मित्रता : बच्चों के साथ

अंजू खरबंदा दिल्ली ******************** हम पति पत्नी ने शुरू से ही आदत बनाई हुई है कि बच्चों को महीने मे दो बार बाहर डिनर के लिये लेकर जाते है। एक पंथ दो काज। इससे दो बाते होती है - पहली साथ बिताने के लिये समय मिलता है और दूसरा बच्चे बाहर घूमने के लिये यारों दोस्तों का साथ नही ढूंढते। आर्डर देते समय ये निर्णय करने मे अक्सर समय लगता कि - "आज क्या मंगाया जाये!" "इस भोजनालय की सूचि मे स्पेशल क्या है !" पर बच्चे तो बच्चे है - "आज ये नही खाना, पिछली बार भी तो यही खाया था! आज कुछ और मंगाते हैं !" कभी-कभी कोफ्त सी होने लगती व इंतजार भारी सा लगने लगता तो बच्चों को कहना पड़ता - "जल्दी निर्णय करो! देखो और लोग भी प्रतीक्षा मे खड़े हैं!" बच्चों के साथ कही जाओ तो बहुत धैर्य रखना पड़ता है । हमें देख कर ही तो बच्चे सीखते है फिर हम ही जल्दी परेशान हो जायेगे तो उसका असर सीधा बच्चों पर पड़ेगा ही! एक ...
मृत्युदंड क्यों नही
आलेख

मृत्युदंड क्यों नही

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पता चला है कि हैदराबाद में फिर एक बेटी के साथ हैवानियत करने के बाद भी दरिंदों का मन नहीं भरा। तो उसकी लाश को ट्रक के पीछे बांधकर दूर ले जाकर जला दिया गया, तब प्रशासन क्या कर रहा था। क्या नेताओं और समाज के ठेकेदारों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगवाया जाता है, और दूसरी तरफ हर रोज बेटियाँ दरिंदों की हवस का शिकार बनती जा रही हैं। क्या गलती थी डॉ प्रियंका की? क्या औरत अपना जिस्म लुटाने के लिए ही बनी है? कि जिसका जब मन किया उसे अपने हवस का शिकार बना ले। क्या उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं? बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमेशा बेटियों की गलतियां निकालते हैं कि कपड़े छोटे पहनना होगें अपना जिस्म दिखा रही होगी। फिर बताइए कि जो बच्ची मां का दूध पी रही है उसके साथ भी क्यों हैवानियत होती है उसे भी दरिंदे नहीं छोड़ते...
स्वर्ग
कहानी

स्वर्ग

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** प्रत्युष अपने माँ -पिताजी के साथ गंगिया गाँव में रहता है। उसके पिताजी गाँव के ही मध्य विद्यालय के शिक्षक हैं। वह अपने माँ-पिताजी का दुलारा लाल है। प्रत्युष बचपन से ही शरारती एवं मनमौजी है। वह अपने माँ-पिताजी के बातों पर ध्यान नहीं देता है। बिना बताए घर से कहीं भी चला जाता है। "बेटा कहीं जाते हो,तो मुझे बोल दो।" उसकी माँ समझाती है। "मैं कहीं भी जाऊँ, आप इससे मतलब नहीं रखे।" प्रत्युष अपनी माँ की बातों पर ध्यान नहीं देता है। उल्टे गुस्सा कर दो-चार बातें अपनी माँ को सुना देता है। उसकी माँ अपने लाल के रूखे व्यवहार से चिंतित है। उसके माँ-पिताजी आपस में अक्सर बात करते हैं, "प्रत्युष का व्यवहार ठीक नहीं है। वह हमारे बुढापे का लाठी बनेगा कि नहीं?" धीरे-धीरे समय का पहिया आगे बढता जा रहा है। प्रत्युष अभियंता बन गया है। उसकीशादी सुन्दर और सुशी...
हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?
आलेख

हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कर्तव्य अर्थ :- किसी भी कार्य को पूर्ण रूप देने के लिए सजीव व निर्जीव दोनों नैतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। तथा दोनों कर्तव्य के साथ अपनी भागीदारी का पालन करते हैं। हम जानते हैं कि कर्तव्य से किया गया कार्य हमे एक विशेष परिणाम उपलब्‍ध करवाता है। जो वर्तमान एवं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंसान को कर्तव्य का प्रभाव केवल इंसानों में ही नजर आता है। परन्तु इस धरा पर इंसान के अलावा पशु - पक्षी और निर्जीव वस्तुएँ भी अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य अदा कर रहे हैं l यह किसी को नजर नहीं आता है l क्योकि वर्तमान में इंसान अपने स्वार्थ को पूरा करने में दिन - रात दौड़ भाग कर रहा है। उसके लिए एक पल भी किसी को समझने का नहीं है l आईए कर्तव्य को विभिन्न विश्लेषण के साथ समझने का प्रयास करते हैं। मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- मनुष्य ...
मोबाइल की लत
आलेख

मोबाइल की लत

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** मोबाइल फोन जैसे जीवन में प्रवेश कर चुका है। यह अत्यंत लाभकारी और विनाशकारी दोनों ही साबित हो रहा है। छोटे बच्चों का बचपना इस मोबाइल और इंटरनेट में कहीं गायब सा कर दिया है, जिस उम्र में बच्चे खेल कूद किताबें पढ़ना व व्यायाम अन्य लाभकारी शारीरिक और मानसिक विकास बढ़ाने वाले कार्य करते हैं उस उम्र में छोटे छोटे बच्चे भी आजकल मोबाइल में लगे रहते हैं, स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बच्चे सारा सारा दिन मोबाइल में वीडियो गेम यूट्यूब फेसबुक इत्यादि चलाते हैं, और एक अलग ही काल्पनिक दुनिया बना लेते हैं ,जिसके कारण उनका मानसिक और शारीरिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता। यह स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि बहुत से माता-पिता तो बच्चों मेंमोबाइल की लत छुड़ाने के लिए चिकित्सक की सहायता ले रहे हैं। मोबाइल यदि हिसाब से चला जाए तो लाभकारी है किंतु इ...
अंतर्द्वंद
लघुकथा

अंतर्द्वंद

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** बहुत दिनों बाद बचपन की सहेली रीना से मिलने के लिए मैं अति उत्साहित थी। और इसी खुशी में पूरी रात जगी रह गयी। गुज़रे दिनों की सारी बातें चलचित्र की तरह मानस पटल पर चल रही थीं। महाविद्यालय की वो शांत सी बाला जब काफी अरसे बाद फेसबुक पर दिखी तो पहचानने में बिलकुल वक्त नहीं लगा मुझे। और फिर फोन ने तो वर्षों की दूरियों को पल भर में घनिष्ठ कर दिया। जब भी बात होती रीना की खनकती आवाज उससे मिलने की इच्छा और बढ़ा देती। मिलने की व्यग्रता में अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से समय निकाल कर मैं उसके गाँव पहुँच गई। गांव का खुले आंगन वाला घर कितना साफ और सलीके से सुसज्जित था। आखिर रहता भी क्यों न इस घर की मालकिन सुशिक्षित सौम्य महिला जो थी। रीना की सारी पड़ोसन मुझसे मिलने आ गयी थीं। ऐसा लग रहा था मैं सिर्फ रीना की सहेली नहीं उन सभी की रिश्तेदार हूँ। इस अपनापन ने भावा...
उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
आलेख

उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** जिस प्रकार मानव को जीवित रहने के लिए पानी और हवा की आवश्यकता है इसी प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है जहां कुछ लोगों पर खाने के लिए कुछ  नहीं है वहीं कुछ लोग भोजन का अनादर कर देते हैं और इतना खाना वेस्ट करते हैं जो कि बिल्कुल ही गलत है आपने शादी विवाह में देखा होगा कि लोग अपनी थाली में इतना खाना ले लेते हैं कि वह खा भी नहीं पाते और बाकी खाना फेंक देते हैं जो कि बेहद ही गलत है हमें उतना ही भोजन थाली में लेना चाहिए जितना हम खा सकें खाने को बिल्कुल भी नही छोड़ना चाहिए शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति खाने का अनादर करता है वह पाप का भागी बनता है जहां कुछ एनजीओ और संस्थाएं शादी विवाह आदि में बचे खाने को गरीब और असहाय लोगों में जिन पर खाने के लिए कुछ भी नहीं है उनको देकर पुण्य के भागी बन रहे हैं वहीं कुछ लोग खा...
रिश्ते
आलेख

रिश्ते

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रिश्ते आदमी को जन्म से ही अपने आप मिल जाते है। भले ही रिश्तों का कोई आकार प्रकार ना हो, परन्तु रिश्ते धीरे धीरे अपने आप जुड़ते जाते है और श्रृंखलाबद्ध हो जाते है। अटूट बंधनों में बंध जाते हैं। कुछ रिश्ते अचानक कोई लॉटरी खुल जाए ऐसे भाग्योदय जैसे उस लॉटरी में खुले इनाम की तरह मिल जाते है। जैसे परिवार में किसी की शादी तय होती है और वरमाला पड़ते ही अचानक कई सारे रिश्ते जुड़ जाते है। कुछ रिश्ते पुष्प जैसे होते है, खिलते जाते है, बहार लाते रहते है, महकते जाते है और हमेशा खुशबूं ही बिखेरते रहते है। गुलाब की पंखुड़ियों में अक्षरों से लिपट जाते है। कुछ रिश्ते पत्थर जैसे जडवत रहते है। अक्षरशः गले में पत्थरों की माला जैसे बोझा बन लटकते रहते है और उन्हें जबरन ढोते रहना पड़ता है। कुछ रिश्ते मन में चिडचिडाहट पैदा करने जैसे होते है। बिलकुल हैरान परेशान ...
अपना अपना देश प्रेम
यात्रा वृतांत

अपना अपना देश प्रेम

बाबुलाल सोलंकी रूपावटी खुर्द जालोर (राजस्थान) ******************** गांव से अहमदबाद जा रहा हूं। मेहसाणा बस डिपो पर दस मिनिट के लिए बस रुकी है। थोड़ी आरामदेही के लिए डिपो के चौड़े आंगन से टहलता हुआ हाइवे तक पहुँचा। कोई १०-१२ साल का एक लड़का और फटे-पुराने कपड़ो से लदी उसकी माँ तिरंगी टोपी व तिरंगा झंडा लिए जोर जोर से चिल्ला रहे थे .....तिरंगा लेलो .......झंडा लेलो.......! देश प्रेम नी एकज ओळखान.......(आगे की पंक्तिया समझ नही आई)......! हाइवे पर सरपट दौड़ती मारुति आल्टो ८०० से बी एम् डब्लू जैसी कारो वाले देश भक्त लोग भी है तो साइकिल से लेकर रॉयलफील्ड व महंगी स्पोर्ट्स बाइको पर सवार लोग भी है। कोई ईधर नजर घूमाता कोई न भी। कोई महँगी कारो की ए.सी. से हल्का सा ग्लास नीचे कर पूछता - अल्या केटला पइसा ? सेठ...ए....क....ना दस रुपिया, बीस रुपया ! देशप्रेम महंगा हो गया, ग्लास ऊंचा हो जाता और गाड़ी रवाना ! ल...
माँ से मिलना है …
लघुकथा

माँ से मिलना है …

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** आज सुबह-सुबह दोस्त के यहाँ चंडीगढ़ गृह प्रवेश हवन पूजा के लिए जाते समय अचानक रास्ते में कार का टायर पंचर होने पर ड्राइवर ने कहा सर! टायर बदली करने में थोड़ा समय लगेगा। मैंने खिड़की खोली और बाहर निकला तो देखा कि...एक बूढ़ी अम्माँ गेट पर खड़ी-खड़ी अपने थूक से पल्लू को गिला करके चश्मा पौंछ-पौंछकर मुझे बार-बार ऐसे निहार रही थी जैसे कोई उम्र कैद की सजा पाया हुआ कैदी किसी के आने का इंतजार कर रहा हो और फिर एक हाथ से इशारा करके मुझे बुलाने लगी। मैंने ड्राइवर से कहा कि....तुम टायर बदली करो मैं आता हूँ। जब मैं थोड़ा नजदीक पहुँचा तो बूढ़ी अम्मा ने वापस जाने का इशारा कर दिया। मैं समझ नहीं पाया ... मेरे पैर जाने को कह रहे थे पर मन बूढ़ी अम्माँ के वापस लौटने के इशारे पर काम कर रहा था। मैंने पैरों की भाषा को पहचाना और बुढ़ी अम्माँ के पास...
वो कोई ख्वाब ही थी
बॉलीवुड गॉसिप, सिनेमा, स्मृति

वो कोई ख्वाब ही थी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** ईरान के अब्दुल सलीम अस्करी और शदी हबीब आगा के घर में पैदा हुई मुमताज़ ने भारतीय सिनेमा पटल पर जो धूम मचाई, वो किसी भी अभिनेत्री और उसके दर्शकों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं। कसा हुआ बदन, छोटी नाक, अदाएँ बिखेरते हुए लव, अनार से भी लाल गाल और ज़ुल्फ़ों में उमड़ता-घुमड़ता बादल देखकर केवल और केवल मुमताज़ का नाम ही जहन में आता है। दो रास्ते फिल्म का गाना "ये रेशमी ज़ुल्फ़ें, ये शरबती आँखें, इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी "मुमताज़ की अदाओं को सौ फीसदी सही साबित करते हैं। अपने शुरूआती दिनों के संघर्ष में दारा सिंह के साथ कई फिल्मों में काम करने के बाद जब उनका सिक्का चलना शुरू हुआ तो फिर वो चलता ही गया। उस दौर में एक अभिनेत्री के लिए एक अच्छी नर्तकी होना लाजिमी समझा जाता था। उस दौर की वहीदा रहमान, आशा पारेख, हेमा मालिनी सभी बेहतरीन नृत्य करने में परिपक्व थी।...
निंदाई में पनपा प्रेम
लघुकथा

निंदाई में पनपा प्रेम

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** खेतों में चल रही निदाई कि निगरानी के लिए हमें घर से दोपहर ११ के आस पास बजे खेदा गया आज एक अद्वितीय प्रेमी से भेट होगी हमने यह सोचा भी नहीं। घर से ५ सेर पानी और आधा सेर गुड़ लेकर चला और नदी पार खेतों तक पहुच कर निंदाई कर रही मजदूरनी को पानी और गुड़ थमाया फिर निंदाई से उखड़े खरपतवार उठा-उठा कर मेड़ पर रखने लगा मेघों कि कृपा विशेष रही उनके रिमझिम करने से काम में थकान नहीं हो रही । लगभग आधे घंटे के बाद कुछ खेतों आगे एक कृष्णवरण का जवान युवक लगभग ७-८ माह के बच्चे को सिर पर बिठाकर कुछ गीत गुनगुनाते हुए सीधे आ रहा। मैने पास निंदाई कर रही औरतों से उसके बार में पुछा तो एक अधेड़ औरत बोली मेरा लडका है और इसका पति (बगल खड़ी औरत को छू कर)। मैं झुक कर अपने काम में बारिश कि बूदें थोड़ी तेजी से और व्यक्ति छाता लगाकर खेत तक अलौकि...