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गद्य

कल आज और कल
व्यंग्य

कल आज और कल

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** केवल आनंद के लिए लिखा गया किसी की धार्मिक भावना आहत करने का मकसद नहीं है। सभी लोग फुरसत में हैं, भक्ति, मेडीटेशन सब यथाशक्ति कर रहे हैं। मैं भी कर रहा हूँ बार-बार सुने हुए सुंदरकांड में आज कुछ नए-नए अर्थ निकल के आये, नई-नई प्रेरणाएं मिली। आज के परिप्रेक्ष्य में ... समस्याएं आज भी सुरसा की तरह बड़ी होती जाती है आपको उनसे दुगुनी शक्ति से सामना करना होता है। लोग पहले भी सबूत मांगते थे आज भी मांगते हैं, नही तो हनुमान को रामजी मुद्रिका क्यों देते, और सीताजी चूड़ामणि उतार के क्यों देती। केजरीवाल और कांग्रेस को सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के सबूत मांगते देखा है। लोग पहले भी विश्वास नही करते थे आसानी से अब भी नही करते, सीताजी को हनुमानजी की क्षमता पे संदेह हुआ तो कनक भूधराकार शरीर दिखाना पड़ा तब विश्वास हुआ। जनता आज भी मोदीजी पे विश्वास कहा...
गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते
आंचलिक बोली, लघुकथा

गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** एक दिन के बात आय समारू घर म कोनो नई राहय घर के जम्मो लईका सियान हर अपन ममा घर घुमे बर चल देते। फेर क घर ह पुरा सुन्ना होगे समारु जईसे तईसे दिन भर बिताए के बाद म संझा के बेरा होगे, तब समारू हर नंग्गत के अघाए भुखाय घलो रथे कबार कि बहिनिया कुन बोरे बासी भर ल खाय रथे। समारु लकर धकर हाडी कुरिया म जईसे मुच्चा ल उठआईस त पाते कि कुरवी म एको कन अन्न के दाना नई राहय। ये सब ल देख समारु भुख पियास म तरमिर-तरमिर करे लागिस फेर क करय गघरा म पानी भराय राहय समारू गघरा ले लोटा भर पानी निकाल सांस भर के पीये लागिस, अईसे-तईसे करके समारू कुछ समय बिता डरिस। फेर वोहर रोज अन्न के दाना खाय बिना वोला नींद घलो नई आवय समारू हाडी कुरिया म जेवन बनाय बर भीड़ जथे जइसे आगी सपचाय बर छेना लकड़ी ल देखते त सबे हर सिरा गे रईथे। ये सब ल देखत समारू के मति फेर छरिया ज...
महंगाई की मनमानी
व्यंग्य

महंगाई की मनमानी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** तीन दिन पहले की बात है। मुझे चाय पीने की इच्छा हुई और मैं रसोई में गया। मध्यम वर्ग वालों की रसोई होती ही कितनी है, बस एक आदमी मुश्किल से खड़ा हो पाता है। मैं चाय बनाने की कोशिश कर ही रहा था कि मैंने देखा कि एक मृगनयनी चुपचाप अंदर दाखिल हुई। उसे बेधड़क अन्दर घुसते देख मैंने आदतन कहा कि आंटी जी आप कौन? आंटी जी संबोधन सुनते ही वह बिदक गई और बोली- मरघिल्ले ! एक पैर केले के छिलके पर और दूसरा कब्र में लटका है और मुझे आंटी कह रहा है? अरे! आप हो कौन जो मेरी रसोई में घुसकर मुझे ही गरियाने लगी? मैं नई-नवेली जीएसटी हूँ। अभी मैंने सोलह वसंत भी पार नहीं किए और तुम मुझे आंटी कह रहे हो। उसने ठसक के साथ उत्तर दिया। ठीक है कि तुम जीएसटी हो पर मेरी रसोई में क्यों घुस रही हो? मैंने तो तुम्हें नहीं बुलाया? कैसे नही बुलाया? तुमने मुझे खुल्ला न्यौता दिया है।...
विश्वगुरु
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विश्वगुरु

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम विश्वगुरु थे और हमारा ये स्थान हमसे कोई नही छीन सकता। हमारा दोगला चरित्र और हर मामले में स्वार्थ कि राजनीति करने की महारत हमे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। हम बातें सर्वधर्म सद्भभाव की करते है, कण-कण में भगवान की करते है लेकिन हमारा बर्ताव ठीक इसके विपरीत है। नैतिकता की बातें विश्व मे हमसे अच्छी कोई नही कर सकता, हम भाषणवीर हैं, हमारे खिलाड़ी कागजी शेर हैं, हमारे नेता हमारी ही तरह भृष्ट और दोगले चरित्र के हैं। यही सब खूबियां हमे विश्व मानचित्र पे एक ध्रुव तारे का स्थान देती है। हमारा भूतकाल बहुत समृद्ध था, उसकी बातें और सपनों से बाहर आना ही नही चाहते। हम वर्तमान में हर वो काम करने में लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों को कहीं का न रखे। कुल मिला कर हमारा भविष्य सिर्फ अंधकारमय हो सकता है, रोशनी की कोई किरण अगर हम दिखती भी है तो हम...
अंधेरी दुनिया …
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अंधेरी दुनिया …

अमन सिंह अलीगढ (उत्तर प्रदेश) ******************* नशा आजकल एक महाजनसंख्या की समस्या बन चुका है जिससे हर तरह के लोग प्रभावित हो रहे हैं, विशेषकर युवा वर्ग। यह समस्या समाज की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन चुकी है क्योंकि यह सिर्फ नशे के संभावित हानिकारक प्रभावों को ही नहीं लेकर आता है, बल्कि इससे अन्य सामाजिक, आर्थिक, और परिवारिक समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। नशा आमतौर पर या तो मनोरंजन के लिए या तनाव और दुख को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, इसके लाभ केवल समय के लिए होते हैं, और इसके बाद के परिणाम अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं। नशे में धुत होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि परिवारिक प्रेशर, योजनाबद्धता की कमी, सामाजिक दूरी, आदि। युवा वर्ग नशे के प्रभाव में ज्यादा प्रभावित होता है क्योंकि वे अपने जीवन की पहली स्टेज में होते हैं और उन्हें अपने आप को ढूंढने और पह...
हरावल दस्ता
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हरावल दस्ता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जो लोग राजपूती युद्धशैली से वाकिफ हैं वो इसका अर्थ भली-भांति जानते हैं। हरावल सेना का वो दस्ता होता है जो युद्ध की भेरी बजने पे दुश्मन सेना से आमने सामने की भिड़ंत करता है। मकसद होता है सामने वाले को अधिकाधिक क्षति पहुंचाना और अपने राजा या सेनापति को सुरक्षित रखना। सर्वाधिक नुकसान भी इस अग्रिम दस्ते का ही होता है और वीरगति भी इन्ही की ज्यादा होती है। आज के भारत के परिप्रेक्ष्य में समझे तो साम्प्रदायिक दंगे, प्राकृतिक आपदा या युद्ध में सर्वाधिक हानि किनकी होती है। सड़क के किनारे या कच्ची बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर वर्ग की। कभी सुना है की भूकंप में, बाढ़ में, या साम्प्रदायिक दंगे में नेताओ या धनाढ्य लोगो के परिवार तबाह हुए हो। भाई ऐसे परिवारों के बच्चे तो सेना में भी कहाँ भर्ती होते है। आज हरावल दस्ते में सिर्फ वंचित और शोषित ...
महादेवी वर्मा व्यक्तित्व एवं जीवन परिचय
जीवनी

महादेवी वर्मा व्यक्तित्व एवं जीवन परिचय

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्रद्धेया महादेवी वर्मा का जन्म २१ मार्च १९०७ को फर्रुखाबाद (यू.पी.) में होली के पावन पर्व के दिन हुआ था। पिता का नाम श्री गोविन्द प्रसाद तथा माता का नाम श्रीमती हेमरानी था। परिवार में सात पीढ़ियों पश्चात पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। अतः उनका महादेवी नामकरण हुआ। और यथार्थ में भी वे विश्व सहित्याकाश में विद्या की देवी शारदा स्वरूपा सिद्ध हुई। मुहँबोले भाई महाकवि निराला जी उन्हें सरस्वती कहा करते थे। उनके जन्म के दिन होली के रंग भी बरस रहे थे। इन्हीं सप्तरंगों की इंद्रधनुषी आभा को अपनी रचनाओं में बिखेर दिया। सात वर्षीय नन्हीं बालिका की पहली कविता है,"बांके ठाकुर जी बोले हैं..." बालवय में दुल्हन बनी और सत्रहवें वर्ष में वे पिया श्री स्वरूप नारायण के घर पहुँची। रंग-रूप में साधारण थी किन्तु अति सुंदर ह्रदय व अथाह ज्ञान से परिपूर्ण दि...
तृण धरी ओट कहती वैदेही
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तृण धरी ओट कहती वैदेही

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। सुंदरकांड में यह दोहा सुन-सुनकर बड़े हुए मेरे जैसे पुरातनपंथी लोगो को आज की महिलाओं को ऐसे वस्त्रो में देख के अजीब लगता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता अपनी मर्जी के जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता स्वतंत्रता के अर्थ ये हैं क्या !!! इन अल्पवसना नारियों को हम लोग शायद रावण लगते होंगे। आप ऐसे वस्त्र पहने जो छुपाते कम और दिखाते ज्यादा हो तो आपकी स्वतंत्रता है। लेकिन अगर कोई मनचला टिप्पणी करदे तो बवाल काटेंगे। पर्दा प्रथा के विरोधी होने का मतलब ये तो नही की बिल्कुल बेपर्दा हो जाये। सीता जी रावण से तिनके की ओट धर के बात करती थी। आज की नारी ....... मुझे आज ऐसे देवर की तलाश है ..... लक्ष्मण उवाच- नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले। नूपुरे त्वभिजानामि न...
भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार
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भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** बॉलीवुड में हर साल अलग-अलग जॉनर की कई फिल्में रिलीज होती हैं। कॉमेडी एक ऐसा जॉनर है, जिसे देखना हर कोई पसंद करता है। लेकिन आज बॉलीवुड जितना कॉमेडी के लिए फेमस है उतना आज से ८० साल पहले नहीं था और महिला कॉमेडियन तो भूल ही जाइए। उस दौर की फिल्मों में महिलाओं को हम रोने-धोने के किरदार में देखते हुए आ रहे थे। सिनेमा में मेल कॉमेडियन बहुत देखने को मिल जाते लेकिन फीमेल कॉमेडियन नहीं। लेकिन धीरे-धीरे उस जमाने में भी कुछ ऐसी साहसी महिलाएं आगे आई जिनकी सोच ने भारतीय सिनेमा का रुख बदल दिया। यदि आप पीछे मुड़कर देखें, तो आपको ऐसी कई अभिनेत्रियां मिलेंगी जो अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए जानी जाती हैं। जैसे ब्लैक एंड व्हाइट युग से टुनटुन और मनोरमा, ७० के दशक की चुलबुली-मजेदार प्रीति गांगुली और अस्सी के दशक की सदाबहार गुड्डी मारुति। इस लेख में हम आपक...
जब महिला होगी सशक्त, तब देश उन्नति में न लगेगा वक्त
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जब महिला होगी सशक्त, तब देश उन्नति में न लगेगा वक्त

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** आज के आधुनिक समय में महिला उत्थान एक विशेष विचारणीय विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके उत्थान की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। यह आवश्यकता इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता, सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्यस्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा रही। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि रही। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वारा कई कारणों ...
कमाल की दवाई
लघुकथा

कमाल की दवाई

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "कमरे से बाहर जाओ ... !!" सुहानी ने बच्चों को डांटते हुए कहा। "नहीं हम बाहर नहीं जायेंगे। हम होस्टल से घर हमारी दादी से मिलने आये हैं। पूरा समय उनके साथ रहेंगे। सुहानी नर्स थी। परेशान हो गई। बच्चों को डांटने लगी। आवाज सुनते ही दादी ने आंखें खोली। और सुहानी को कहा, बच्चे मेरी ताकत है। तुम्हें मेरी देखभाल के लिए नियुक्त किया है। इन्हें डांटने के लिए नहीं। दादी मैं तो आपकी भलाई के लिए कह रही हूं, रूआंसी हुई सुहानी कमरे को संवारने लगी, कनखियों से दादी को देखते हुए आश्चर्य चकित थी। अस्पताल से डाक्टर ने यूं कहकर घर भेज दिया था कि ये कुछ दिनों की मेहमान है। उसने सुना बच्चे कह रहे थे, दादी, मम्मी पापा तो आफिस गये हैं आप ही हमें आपने हाथ से खिला दो ना। दादी का चेहरा चमक रहा था। सुहानी को आवाज लगाई। मुझे रसोई में ले चल। बच्चों को मैं अपने ह...
विश्व में हिन्दी का परचम
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विश्व में हिन्दी का परचम

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा था कि हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है‌। दुनिया भर में हिन्दी का विकास, प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल विश्व हिन्दी दिवस दस जनवरी को मनाया जाता है। हिन्दी अब अपने साहित्यिक दायरे से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना गौरव फ़ैलाने की तैयारी में है‌। संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाने का प्रयास अविरत चल रहा है। इसके पूर्व देश में सरल, सुबोध, सशक्त, मीठी हिन्दी भाषा के प्रति सम्पूर्ण जागरूकता एवं अनुराग पैदा कर देश का हर बच्चा कहें हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा है। हिन्दी की वैश्विक प्रभुता, उपयोगिता और महत्ता दर्शाने के उद्देश्य से आयोजित हो रह...
अच्छे सत्कार्य
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अच्छे सत्कार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर्यटन कई प्रकार के होते है। सबका उद्देश्य भी अलग होता है। यूँ तो बहुत बदनाम हुए है बाबा उनके आश्रमो ने बहुत गंदगी व दरिंदगी फैलाई। उससे अच्छे व सच्चे बाबा जी जनकल्याण की गतिविधियों से जुड़े थे उनका बहुत नुकसान भी हुआ। पर कहते है बादल आकाश को ढक के अंधेरा तो कर सकते है पर सूर्य को कौन निगल सकता है सिर्फ हनुमान, पर जो संत महात्मा कुम्भ में अपने डेरे डाल के देश विदेश के ज्ञान पिपासुओं को तृप्त करते है। उनके प्रताप को कोई आच्छादित नही कर सकता है। सदियों से चलने वाले मेले चार जगह लगते हैं। अर्ध कुम्भ भी लगते है। अन्य सारे पर्यटन को अलग करदे तो ये पर्यटन कितना बड़ा है कितना अर्थव्यवस्था को लाभ देता है। हां टेक्नोलॉजी बढ़ी है, पर इसरो के वैज्ञानिक भी लॉन्चिंग के पहले अपनी उत्तेजना पर काबू पाने अपने इष्टों को याद करते टीवी पे दिखाए गए थे।...
जर्जर घर
लघुकथा

जर्जर घर

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** कभी-कभी कहानियां इंसान नहीं सुनाते। टूटे, उजड़े घर जो कभी शोरगुल से भरे थे भी कहानियां सुनाते हैं। जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, जहां कभी पायल की झंकार सुनाई पड़ती थी ..... आज वो घर अकेला, जर्जर खड़ा है। अपने मायके के घर के बाहर आँगन में खड़ी वान्या यही सोच रही थी कि एक समय था जब यहाँ उसकी और भाई की हँसी, मस्ती और लड़ाईयाँ गूँजा करती थी। पापा और मम्मी का लाड़, दुलार, नसीहतें, प्यार भरी डाँट बरसती थी। हर त्यौहार पर घर सजता था। पकवान बनते थे। गीत, संगीत ,खुशियाँ होती थी। दोस्तों की टोली की शैतानियों, पड़ोस की आँटीयों की बातों से गुलजार इस घर की शामें होती थी । फिर पापा के ऑफिस से आने के बाद दिन भर के किस्सों की महफिल सजती थी। माँ के हाथ के गरम खाने के स्वाद और पापा की सीख भरी कहानियों के साथ निंदिया की नगरी की सैर की जाती थी ...
नाक रगड़ना
लघुकथा

नाक रगड़ना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अबे साले, आज भी तूने स्कूल के सामने खड़े होकर लड़कियों को छेड़ा। तुझे शर्म आनी चाहिए। कुछ उम्र का तो लिहाज रखता, कहते हवलदार ने आव देखा न ताव, हाथ का डंडा पीठ पर दे मारा। वह हे राम ! कहते, लड़खड़ाते नीचे गिर पड़ा। अब राम याद आ रहा है। घूरकर देखते समय आंखें निकाल लेता, मारने के लिए हवलदार के हाथ का डंडा ऊपर ही रह गया। सोहन ने हाथ पकड़ कर कहा, देखो हवलदार साब आप सही नहीं है, जानकारी पूरी लेकर हाथ चलाना चाहिए। सोहन गुरुकुल का समझदार लड़का था। प्यारेलाल फटेहाल प्रौढ़ था। वह अक्सर स्कूल से घर जाती बालिकाओं पर नजर इसलिए रखता था कि, कहीं मनचले लड़के तंग न करें। चल जा, "बड़ा आया अपनी ताक़त दिखाने वाला। तुम्हें क्या मालूम ये आदमी कैसा है।" सोहन को झटककर बाजू में कर दिया। प्यारेलाल ने हवलदार के सामने ख़ूब नाक रगड़ी, लेकिन उसने उसे छोड़ा नही...
दर्शन विशुद्धि
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दर्शन विशुद्धि

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई भी दर्शन अपने आप मे अच्छा, ही होता है, क्यों कि जिसने भी प्रतिपादित किया उसने कितना चिंतन करके प्रतिपादित किया है, इसका तत्कालीन समाज ने विरोध किया तब भी स्थापित हुआ, यानी कोई तत्व तो सुदृढ होगा ही। इसलिए जब तक कोई दर्शन, दर्शन रहता वह विस्तार पाता है तब तक सब अच्छा चलता भी है। परंतु जब वह संगठन या सम्प्रदाय बन जाता है तो उसमे विकृतियां आ जाती है व्यक्तिवाद रूढ़ हो जाता है फिर अति विकृत होते ही दर्शन गौण व संगठन प्रमुख हो जाता फिर उसमे सडांध पैदा हो जाती है, फिर कोई चिंतक उसी दर्जे का आता है तो पुनरोद्धार हो जाता है, जैसे महर्षि दयानंदसरस्वती, यविवेकानंद या महर्षि अरविंद। मार्क्सवाद अच्छा था कई देशों में फैला भी रूस चीन बड़े अनुयायी थे। मार्क्सवादी पार्टी जब बनी कुछ दिन ठीक चला फिर वामपंथ जैसी अवधारणा के कारण क्षरण होता चला गय...
मकर संक्रांति का महत्व
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मकर संक्रांति का महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत के विभिन्न त्योहारों में से, विशेषकर ज्योतिष विज्ञान पर आधारित, मकर संक्रांति एक है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है और पृथ्वी के सबसे निकट होता है। धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश से यही नाम रखा गया। ऋतु परिवर्तन का संधिकाल अर्थात जाड़े की विदाई व ग्रीष्मा रानी का आगमन। पौष माह से माघ में प्रवेश। अमूमन यह चौदह जनवरी को आता है किंतु कभी-कभी मौसम परिवर्तन से तेरह या पँद्रह जनवरी को भी पड़ जाता है। पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। ज्वार मक्का की धानी, सिके चने व मुमफली जैसे चना-चबीना,बीच में आग जलाकर बाँटते व खाते हैं। दक्षिण में केरल व कर्नाटक में संक्रांति तथा तमिलनाडु में पोंगल मनाते हैं, नई फ़सल के उपलक्ष में। सुंदर फूलों आदि से रांगोळी बना पूजा-नृत्य करते हैं। घरों में नए अनाज की खाद्य सामग्री बनती...
मानते हैं पर करते नहीं
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मानते हैं पर करते नहीं

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नर व नारी...मनु व शतरूपा से बने हमारे समाज में जब भी तीसरी प्रजाति का ज़िक्र आता है, मन करुणा से भर जाता है। सामाजिक संस्थाबाएँ बस इनकी गणना करवाती हैं ताकि भीड़ जुटा कर फोटो खिचवा सके। नलसा निर्णय भी इनकी गिनती करवाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। इनका अवतरण प्रकृतिजन्य त्रुटि ही है। जैसे मशीनों द्वारा भी कुछ आधे-अधूरे प्राडक्ट रह जाते हैं। इसमें किसी का क्या कुसूर भला ? युगों से यह परंपरा चली आ रही है। ये जनोत्पति का हिस्सा रहे हैं। पुराण व इतिहास भी इसके साक्षी हैं। यह तीसरी प्रजाति मूलत: हिमालय क्षेत्र की मानी जाती है। अर्जुन व एक नागकन्या के प्रेम का परिणाम है उनका पुत्र इरावन । इन्हें ही किन्नरों का देवता माना जाता है। अर्जुन स्वयं वनवास काल में किन्नर बन कर रहे थे। कहते हैंं इरावन का विवाह नहीं होने से स्वयं कृष्ण ने नारी रूप धर ...
विनोबा जी के सतकार्य
आलेख

विनोबा जी के सतकार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विनोबा जी व गांधी दोनो साथ रहे गाँधीजी राजनीतिक संत थे तो विनोबा जी आध्यात्मिक संत थे जो राजनीति में भी सक्रिय तो थे पर मूल उनका आध्यात्मिक ही था देश प्रेमी के साथ अध्ययनशील भी थे। विनोबा जी पवनार आश्रम से अपनी गतिविधियां चलाते थे। भूदान आन्दोलन से भूमिहीनों को भूमि दिलवा कर, आत्मसम्मान से जीना सिखाया मजदूर से मालिक बनाया। बड़े जमीदारों से सिर्फ छह प्रतिशत जमीन मांगी उनकी सदाशयता देख दी भी, खुशी से ये उनकी संतई थी। जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया था। गीता रहस्य तो लिखा, पर अंत समय जैन मुनि से संथारा लिया जो तीन दिन में सींझा। जैन कुल में जन्म लेने से बड़ी बात है, इसके सिद्धांत में गहन आस्था व निष्ठापूर्वक पालना। हमे अपने से परे जाकर यह भी देखना होगा कि कौन अजैन जैन दर्शन की पताका को प्रशस्त कर रहे है। ताकि हम युवाओं को प्रेरित कर सके...
परख
लघुकथा

परख

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** "क्या हुआ दीपू बेटा? तुम तैयार नहीं हुई? आज तो तुम्हें विवेक से मिलने जाना है।" दीपिका को उदास देखकर उसके दादा जी ने उससे पूछा। "तैयार ही हो रही हूँ दादू।" दीपिका ने बुझे मन से कहा। "पर तुम इतनी उदास क्यों हो?" "पापा ने मुझे कहा है कि आज ही विवेक से मिलकर शादी के लिए कन्फर्म कर दूं।" "तो इसमें प्रॉब्लम क्या है बेटा?" "आप ही बताओ दादू! एक बार किसी से मिलकर उसे शादी के लिए कैसे फाइनल कर सकते हैं ?" "तो एक-दो बार और मिल लेना। मैं तुम्हारे पापा से बात कर लूंगा।" "पर दादू एक-दो बार में तो हर कोई अच्छा ही बनता है।" दीपिका ने मुँह बनाते हुए कहा। "अच्छा ये सब छोड़, मुझे कुछ खाने का मन कर रह है तो पहले ऐसा कर मेरे लिए पका फल ले आ।" दीपू गई और किचेन से एक पीला-पीला मुलायम अमरूद ले आई, "ये लीजिए दादू आपका फल।" "दीपू बेटा एक बात बता, क...
अन्न-जल
संस्मरण

अन्न-जल

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मैं बद्दी (हि.प्र.) में रहता हूं और मेरी बुआ दमोह(म.प्र.) में रहती हैं। तीन महीने पहिले बुआजी का फोन आया। उन्होंने बताया कि २५ दिसंबर को मेरे पोते की शादी है और तुम्हे जरूर आना है। वैसे भी शादी के अवसर पर ढेर सारे रिश्तेदारों से मुलाकात हो जाती है इसलिए मेरा भी प्रयास रहता है कि मैं इस प्रकार के प्रत्येक कार्यक्रम में जरूर उपस्थित रहूं। २५ दिसम्बर को उनके यहां शादी थी मैने २३ दिसम्बर को अपना रेल आरक्षण करा के रख लिया। मैं २३ दिसम्बर को बस से दिल्ली के लिए रवाना हुआ क्योंकि दिल्ली से आगे के लिये रेलगाड़ी में आरक्षण करा के रखा था। बस जैसे ही दिल्ली की सीमा में घुसी ट्रैफिक बहुत जाम था एक से डेढ़ घंटा इस ट्रैफिक से निकलने में लग गया। बस से उतर कर ऑटो से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा यहां पर भी ट्रैफिक में जाम लगा हुआ था। स...
बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए
आलेख

बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीजें हैं अपना समय और अच्छे संस्कार। एक श्रेष्ठ बच्चे का निर्माण सौ विद्यालय बनाने से भी बेहतर है।" -स्वामी विवेकानन्द बाल-विकास की अवधि गर्भावस्था से परिपक्वता तक मानी जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु पर माता के खान-पान, आचार-विचार एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। माता को "भए प्रगट कृपाला" जैसे पाठों का वाचन-श्रवण करने की सलाह दी जाती है। अभिमन्यु, चक्रव्यूह प्रवेश की जुगत माँ के गर्भ से सीखकर आया था। ईंट अपने साँचे जैसी ही ढलेगी। १ से ५ वर्ष तक शैशवास्था में बच्चा परिवार में रहता है। गीली मिट्टी से जैसा कुम्भ चाहो गढ़ लो। संस्कार किसी मॉल से नहीं, घर-परिवार के माहौल से मिलते हैं। कहते हैं... "बुढ़ापे में रोटी औलाद नहीं, हमारे द्वारा दिए संस्कार देते हैं" "बातों से संस्कार का पता चलता है" ५ से १२...
पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी
आलेख

पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पानी रे पानी तेरा रंग कैसा... रंग पूछ रहे हो मुझसे मेरा। मेरा अपना कोई रंग है ही नहीं। मैं बेरंगा पारदर्शी तरल पदार्थ हूँ। किन्तु मैं परिस्थिति के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेता हूँ। उच्चस्तरीय शीतलता पाकर बर्फ़ बन जाता हूँ। ऊष्मा पाकर वाष्प बन जाता हूँ। अपने स्वरूपों में बदलाव लाते हुए रिमझिम वर्षा बनकर धरा को निहाल कर देता हूँ। कभी माँ के गर्भ में समा जाता हूँ तो कभी पिता आसमान की गोद में जा बैठता हूँ। किन्तु मैं अपना उपकारी स्वभाव विस्मृत नहीं करता। और तुम मूर्ख मानव ! अभी तक मुझे समझ नहीं पाए। कब तक करूँ मैं तुम्हारी गलतियाँ माफ़ ? मुझसे ही कुछ सीख लो। याद करो... सुबह उठने से लेकर तो रात में सोने तक मुझे कितना बर्बाद करते हो। उठते से ही गए वाशबेसिन पर। धड़ाधड़ खोला नल और बहा दिया पूरा आधा बाल्टी। यही काम एक मग से भी हो सकता है...
भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६
आलेख

भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गुप्त कालीन आभूषण - गुप्त कला के शुरुवात कब हुयी पर अभी तक चर्चा होती ही रहती है व यह सत्य है कि सभी गुप्त युग को चौथी सदी के प्राम्भिक वर्षों से मध्य आठवीं सदी तक माना जाता है। वेशभूषा व आभूषण - बुध गुप्त के बुध गुप्त के अभिलेख पढने से गुप्त साम्राज्य के निम्न सम्राटों की सूचना मिलती हैं - महाराजा श्री गुप्त महाराजा श्री घटोंत कच्छ महाराजधिराज श्री चंद्र गुप्त प्रथम समुद्र गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय कुमार गुप्त प्रथम स्कन्द गुप्त पुरु गुप्त नरसिंघ गुप्त कुमार गुप्त द्वितीय बुद्ध गुप्त विनय गुप्त भानु गुप्त साक्ष्य - मुद्राएं, आदेश, अजंता, एलोरा उड़्यार, कई अभिलेख, यात्रियों की आत्मकथा, बाणभट्ट, कालिदास सरीखों के साहित्य आदि पुरुष वेशभूषा गुप्त सम्राटों ने कुषाण युग की शैली को अपनाया कि वेशभूषा पद व सम्मान के अनुसा...
तालियाँ
लघुकथा

तालियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रादेशिक नृत्य प्रतियोगिता के लिए नाम दर्ज हुआ था "मृणाल रेगे"। एक नाज़ुक सा साया मंच पर आया। मंच पर रोशनी होले-होले पसरने लगी। इस स्वप्न सुंदरी के आने से मंच और भी प्रकाशित हो गया। नाज़ुक सी नार-नवेली छा गई। गुलाबी चूनर से ढका मुखड़ा व रंगबिरंगी घेरदार कलियों वाला घाघरा। बगैर कुछ बोले उसने हाथ जोड़े और लगी नाचने...मैं ससुराल चली जाऊँगी...। दर्शक मंत्रमुग्ध हो निहारने लगे। शायद तालियाँ बजाना ही भूल गए। निर्णायकगण खड़े हो गए। अंत में घूमर का जलवा दिखाया। ज्यों ही घूँघट हटाया और नमस्कार बोला, अचंभित हो सब देखने लगे। एक निर्णायक से रहा नहीं गया, पूछ बैठे, " आप लड़के... हो। " सिहरती-सहमती मर्दानी आवाज़ सुनाई दी, "जी, मैं मृणाल, न लड़का और न लड़की।" हॉल में सन्नाटा, कहीं से सिसकियाँ भी सुनाई दी। जजों ने ख़ूब सराहा, "एक बार सब मृणाल के लिए जो...