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गद्य

आत्म-मूल्याँकन
लघुकथा

आत्म-मूल्याँकन

डॉ. कुँवर दिनेश सिंह शिमला, हिमाचल प्रदेश ************************ प्रतिभा ने एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में भौतिकी विषय में प्रवक्ता पद के लिए आवेदन किया। उसने पीएच.डी. कर ली थी और कुछ संस्थानों में अतिथि संकाय में शिक्षण का अनुभव भी अर्जित किया था। साथ में कुछ शोधपत्र भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के चर्चित जर्नलों में प्रकाशित करा लिए थे। उक्त पद के लिए प्रतिभा को साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया। उसकी प्रस्तुति से प्रसन्न होकर इंटरव्यू बोर्ड की अध्यक्षता कर रहे कुलपति ने पूछा, "आप वेतन कितना चाहते हो?" "जी, आपने नियत किया ही होगा इस पद के लिए ..." "नहीं, हमारे वेतन सरकारी वेतनमान से अधिक भी होते हैं; यह व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है। हमें तो आउटपुट अच्छी चाहिए, बस... कहिए आप स्वयं को कितने वेतन के योग्य मानती हैं?" प्रतिभा ने थोड़ा झिझक कर, रुक-रुक कर कह दिया, "जी, स...
आश्चर्य
लघुकथा

आश्चर्य

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ आज सुबह जितेश का फ़ोन आया, हिमांशु ने फ़ोन रिसीव किया बोला: हेल्लो, क्या हालचाल जितेश, कैसे हो? जितेश बोला, क्या भाई तबियत खराब है? "भाई जितेश तुम अब बार-बार बिमार कैसे हो जाते हो?" हिमांशु ने पूछा ! "भाई याद है मुझे आज भी वह दिन जब मै बच्चा था, और गाँव में रहता था। कोई डर नही,कोई गम नही। जो मन में आया खाया, खेला! कभी बिमार नही होता था। पर आज शहर में रहता हूँ, हर पंद्रह दिन पर बिमार हो जाता हूँ। आज भी वही खाना खाता हूँ, जो गाँव में खाता था। गाँव में कुएँ और चापाकल का पानी पीता था आज मिनिरल वॉटर पीता हूँ। फिर भी मैं बिमार हो जाता हूँ। "एक बात समझ नही आता गाँव के मुकाबले शहर में सेहत का ध्यान अच्छे से रखता हूँ, फिर भी यार हर पंद्रह-बीस दिन पर बिमार हो जाता हूँ। जितेश बोला। "हिमांशु उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ा रह ग...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था  भाग – ०६
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग – ०६

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रात आठ बजे से कर्फ्यू फिर से लगने वाला था। सब अपने अपने घरों की ओर जल्दी ही निकले गए। सांझ की दिया बाती भी हो गयी। सब का खाना भी हो गया। माँ को होश आया ही नहीं था। सब काम निपटा कर नानी कमरे में आयी। काकी तो मुझे लेकर ही बैठी थी। उनका क्या, वह थी गंगाभागीरथी (विधवा-केश वपन किये हुई)। एक ही समय खाना खाती थी। रात को कुछ भी नहीं लेती थी। नानी आकर माँ के सिरहाने बैठ गयी। माँ की हालत देख रह रह कर नानी की आँखे भर आ रही थी। काकी नानी से बोली, 'आवडे, ऐसी खामोश क्यों है तू?' 'माँ मुझे खूब रोने की इच्छा हो रही है।' 'फिर जी भर के रो ले। आ, मेरे पास में आ कर बैठ। मुझे तेरे मन की हालत समझ रही है। तुझे तेरी बिटिया की चिंता है पर मुझसे भी तो अपनी बिटियाँ की हालत नहीं देखी जाती। तू बता मै क्या करू? और रो कर क्या होगा?' 'क्यों क्या हुआ?' नानी ने प...
एक टुकड़ा डबल रोटी का
लघुकथा

एक टुकड़ा डबल रोटी का

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उन मासूम सी आंखों में दर्द के कतरे स्पष्ट झलक रहे थे। हाथों की हथेलियों में नीली लाल लकीरों का जाल बना था। चाय के दुकान के मालिक के हाथ की लपलपाती छड़ी अभी भी उसकी हथेली चूमने को बेताब थी। किंतु लोगों के जमघट ने उसे रोक रखा था। उस मासूम की दस साल की तजुर्बेकार आंखों में एक संबाल तैर गया।क्या भूख से निढाल हुई बीमार कराहती मां के एक निवाले की खातिर, ग्राहक की प्लेट में बचा डबलरोटी का एक टुकड़ा उठाकर जेब में रख लेना जघन्य अपराध है....? शायद हां....। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्...
एक घूँट भंग
कहानी

एक घूँट भंग

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सीहोर, (म.प्र.) ******************** जब कोई अपनी चाहत की वस्‍तु पा जाता है, तब वह उसके उपयोग में तन-मन से जुट जाता है। हेमन्‍त की निजी डायरी पाकर जैसे रेखा की दिली मुराद पूरी हो गई। यह अत्‍यन्‍त प्रफुल्‍लता व जिज्ञासा पूर्वक उसे पढ़ने में तल्‍लीन हो गई......। ........मैं वह दिन नहीं भूल सकता, जिस दिन मैंने गोरे-गोरे, सलोने हाथों की प्‍यारी-प्‍यारी, पतली-पतली नाजुक-नाजुक ऊॅंगलियों से प्‍याला लेकर नशीला घूँट कंठ से उतारा था। आँखें उस दिन का अनुपम द़ृश्‍य नहीं भूल सकती, जिस दिन उन्‍होंने, पानी की बूँदों के मोतियों से सुसज्जित तौलिये से झॉंकता हुआ सुन्‍दर सोने समान शरीर आँखों ने निहारा था। होली की खुमारी और मस्‍ती, अपने मदहोश रंगों की छटा लिये सम्‍पूर्ण वातावरण में मादकता घोल चुकी थी। मन में खुशियों की रंगीन तरंगें दौड् रही है। जब मेरी नज़रें तुम्‍हारे लावण्‍यमयी...
महामारी
लघुकथा

महामारी

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** रमेश अपने परिवार के साथ गांव में रहता था, गांव के सभी लोग रमेश के घर जाने से ग्रहणा करते थे। कुछ लोगों का कहना था, घर से गोबर की बदबू आती है घास पूला भरा हुआ है। हमारे बच्चे या हम जाएंगे तो बीमार पड़ जाएंगे। एक दिन अचानक गांव में महामारी का पूरे गांव में प्रभाव पड़ा पर रमेश का घर सुरक्षित था। लोगों की जिज्ञासा हुई इतनी भयानक महामारी जिसने पूरे गांव को जकड़ा हुआ था। रामेश का घर सुरक्षित कैसे? रिसर्च टीम रमेश के घर आती है, खोज में जुट जाती है, रमेश के घर में ऐसा क्या है.......?? रिसर्च टीम की खोज कुछ समय में पूरी होती है। टीम गांव वालों को कहती है। इस महामारी का इलाज मिल गया है। गांव वाले उत्सुकता और ध्यान पूर्वक सुन रहे थे.... टीम ने कहा "हम लोग अपनी वैदिक पद्धति को भूल गए हैं। आज यदि चोट लगती है तो डॉक्टर के पास भागते हैं क्या हम ऐसा क...
सुख
लघुकथा

सुख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** भागमभाग की जिंदगी। कभी व्यापार के सिलसिले में दस दिन बाहर तो कभी-कभी शहर में रहकर भी रात, बारह बजे तक घर नहीं आना। जिंदगी बड़ी तेजी से भागी जा रही थी और मुकेश को पल भर भी फुरसत नही थी। मां कहती तो कह देते कि, यही समय है कमाने का। पत्नि कहती तो कभी-कभी गुस्से में पारा चढ़ जाता की,....कमाउंगा नहीं तो यह सब सुविधाएं कहां से मिलेगी। तुमको घर में बैठकर क्या पता चलता है। हर दिन व्यंग सुनकर वीणा ने बोलना ही बंद कर दिया। अचानक परिस्थितियों ने सबको घर में रहने को मजबूर कर दिया। मुकेश को इन दिनों में लगा की कितना भागा में। जरुरत तो परिवार के प्यार की थी, जरूरत तो स्नेह की थी। भौतिक सुखों में आज कुछ काम नहीं आ रहा था। बस एक साथ बैठकर बतियाता परिवार सब सुखों से उपर था। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमी...
जान है तो जहान है
व्यंग्य

जान है तो जहान है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  वर्तमान फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम ने टीवी, वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को लॉकडाउन में चाहने लगे। कहने का मतलब है की दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है। यदि घर पर मेहमान आते और वो आपसे कुछ कह रहे। मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता। मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है। घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक, वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम-राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी। इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि-मैं ही ज्यादा होशियार हूँ। अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेंक खबर हो। उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य समझते है। पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने हो जाते। मगर क्या कहे भाई इन्हें तो बस दूर के ...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०५
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०५

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** एक दिन का मै... मुझे कहाँ से होगी रिश्तों की पहचान? वो तो धीरे-धीरे ही होगी। मुझे भी और आपको भी। रामाचार्य वैद्यजी कह रहे थे कि मेरा नसीब उन्हें नहीं मालूम। लेकिन रिश्ते जुड़ते है तो नसीब भी जुड़ ही जाते है न? अब ये बात मेरे जैसे एक दिन के बालक को आपको अलग से बताने की जरुरत है क्या? परन्तु फिर भी सब कहते है कि हर एक का नसीब अलग अलग होता है। यह कैसे हो सकता है। मै तो इतना ही जानता हूँ कि फिलहाल मेरी माँ के साथ मेरा नसीब जुडा हुआ है। एक दिन का मै, मेरी जन्मदात्री माँ ने तो अभी जी भर के मुझे देखा ही नहीं है। मुझे उसके आंचल की छाँव तक नहीं मिली, नाही माँ ने मुझे अपने सीने से लगाया। नाही मैंने माँ का दूध पिया है। सच तो यह है कि मेरा जन्म यह ख़ुशी की सौगात है। पर नसीब देखिये, सब माँ के स्वास्थ के कारण चिंतित है। सबकी ख़ुशी जाने कहाँ खो गयी है। क...
पिंजरा
लघुकथा

पिंजरा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** लॉकडाउन के दौरान घर की बालकनी में खड़ी मीरा आम के पेड़ पर बैठी चिड़ियां की बाते सुन रही थी। एक गौरैया पास बैठी डॉक्टर चिड़िया से बोली-"क्यो बहन आजकल इतना सन्नाटा क्यों हैं? सारे इंसान कहाँ गायब हो गए? डॉक्टर चिड़िया बोली - "हाँ बहन सुना है कोई कोरेना वायरस आया है, पूरे विश्व मे इंसानों को मार रहा है। लोग एक दूसरे से दूर रहेंगे तो बचेंगे वरना मर जायेंगे।" गौरैया बड़ी दुखी हुई और कुछ सोचने लगी! फिर बोली - "एक बार मैं उड़ती हुई एक घर मे चली गई थी, बहुत बड़ा और सुंदर घर था। वहाँ एक बड़े पिंजरे में तरह-तरह के पंछी थे। खूब सारा दान रखा था पर पीने के पानी के कटोरे औंधे पड़े थे। शहरों में इंसानों के खुद के लिए पानी की किल्लत है तो पंछी भी प्यासे थे। मुझे देख सारे पंछी उड़ने को फड़फड़ाने लगे। आज इंसान भी वैसा ही अनुभव कर रहे होंगे ना!" डॉक्टर चिड़िया ...
लॉकडाउन
कहानी

लॉकडाउन

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** ४६ वर्षीय अविवाहिता शिला उत्तर गुजरात की आर्ट्स कॉलेज में हिन्दी विषय की अध्यापिका है। वह अपने परिवार से ४०० कि.मी. दूर नौकरी कर रही है। वहाँ वह अकेली रहती है। अध्यापकीय कार्य और साहित्य ही उसकी दुनिया है। लिखना-पढ़ना, लिखवाना और पढ़ाना ही उसका जीवन कर्म है। छात्रों में आदर्श जीवन मूल्यों का सींचन करना उसके जीवन का प्रमुख लक्ष्य है। वह सोच रही है की अंतिम एक सप्ताह से कोरोना वायरस धीरे-धीरे भारत में अपना पाँव फैला रहा है। कॉलेज में छात्रों को छुट्टियाँ हो गई है। स्टाफ के लिए रोटेशन हो गया है तो मैं २४ मार्च की कॉलेज भरके परिवार के पास कुछ दिनों के लिए चली जाऊंगी। वह अपने पापा से फोन करती है : पापा : “बोल बेटी, कुशल तो है न!” “जी पापा, मैं २४ मार्च को कॉलेज समय के बाद घर आने के लिए निकलूँगी। २४ मार्च से ३१ मार्च तक की मैंने छुट्टि...
चुनौती
लघुकथा

चुनौती

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** अच्छा बच्चों अब हम कल नया पाठ पढ़ेंगे...कहते हुए नीलिमा ने मोबाइल ऑफ कर दिया। नीलिमा हायर सेकेंडरी स्कूल में रसायन शास्त्र व्याख्याता के पद पर पदस्थ है और इस लॉक डाउन के समय में मोबाइल पर ज़ूम एप के माध्यम से बच्चों को विज्ञान, केमिस्ट्री,बायोलॉजी आदि विषयों के पाठ पढ़ा रही है। मम्मी-मम्मी आपका फ़ोन दो ना, मुझे गेम खेलना है कहते हुए मिनी ने नीलिमा के हाथ से मोबाइल ले लिया, मिनी नीलिमा की बिटिया है जिसे अभी नौंवी कक्षा में जनरल प्रमोशन मिला है। ठीक है थोड़ी देर गेम खेलकर कुछ देर साइंस भी पढ़ लेना बेटा, नीलिमा ने मिनी को समझाते हुए कहा। ओके मम्मा,कहते हुए मिनी फ़ोन पर गेम खेलने लगी, नीलिमा किचन में जाकर खाने की तैयारी करने लगी, थोड़ी ही देर में मिनी आकर नीलिमा से बोली मम्मा ये फेस बुक पर चारु आंटी का चैलेंज है आपके लिए साड़ी में फ़ोटो डा...
गौरी मौसी
लघुकथा

गौरी मौसी

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** लोकडाउन के तीसरे दिन पडोसन गौरी मौसी दीन भाव से अध्यापिका डॉ. अर्पिता से कहती हैं : "बहन जी पाँच सौ रूपये की मदद हो सके तो करो न ! तीन दिन से मेरी अगरबत्ती का ठेला बन्द है। जब लोकडाउन पूरा होगा तब आपको लौटा दूँगी।" डॉ. अर्पिता बिना कुछ कहे, पूछे मधुर स्मित के साथ एक हज़ार रूपये उनके हाथ में थमा देती है। "चिंता मत करो, जरुरत पड़े तो माँग लेना, पर अपने घर में ही रहना। "इसके बाद डॉ. अर्पिता रोज जान बूझकर ज्यादा रसोई बना के उसे देती है : मौसी आज मुझसे ज्यादा बन गया है, लीजिए। "गौरी मौसी का चेहरा अहोभाव से खिल उठा....।। . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच...
अफवाह
लघुकथा

अफवाह

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** वह बदहवास सी दौड़ती आई थी। अम्माजी मुझे काम से न हटाइये, अम्माजी मुझ गरीब पर दया कीजिए। क्या हुआ कमली..... अचानक ऐसे क्यों दौड़ी चली आई है। कहा था ना तुझे अभी काम पर नहीं आना है। नहीं-नहीं अम्माजी मुझे कुछ नहीं हुआ है। कुछ लोग बोल रहे थे .... अब काम बंद तो पैसा बंद। महिने की पगार नहीं मिलेगी। अम्माजी बच्चों को क्या खिलाऊंगी। काम पर आती हूं तो सब घर से मुझे थोड़ा बहुत बचा हुआ खाने को मिल जाता है, मुझे भी चाय मिल जाती है। पगार भी नही और बचा-खुचा भोजन भी नहीं? बच्चें बीमारी से नहीं भूख से ...? नही-नही कमली तू इन फालतू की अफवाह पर ध्यान न दे और घर जा। रूलाई आ गई कमली को... बेबस कमली बस आंखों में बोल पड़ी... महामारी का नाश हो। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद...
अलविदा
कहानी

अलविदा

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** आज उसके घर के बाहर भीड़ लगी थी, लोग तरह -तरह की बातें कर रहे थे। ७० साल के भगवानदास कह रहे थे, लालची है ये लोग, बेचारी को पति सुख की चाह थी पर इन लोगों के लिए तो वह सोने की मुर्गी थी, हर माह मोटी रकम उसे मिलती थी, बेचारी की इच्छाओं की किसी को भी परवाह नही थी। रोज-रोज फरमाइश, पर उसके विवाह की किसी को चिंता नही थी। पहले पति की प्रताड़ना का शिकार हो वह अपने वालों के बहकावे मे आकर तलाक ले चुकी थी। १० वर्ष हो चुके थे। दोबारा शादी के लिए इतने फजिते होंगे ये वो जानती तो शायद तलाक ही न लेती ! किराने वाली सुशीला मां कहने लगी, वो भी मुवा ठीक नही था री। किसी की बेटी को ले गया और छोड़ दी केवल काम करनेवाली व "सोने का अंडा देने वाली" बाई बनाकर। उसकी बचपन की सहेली जिसने ज्योत्स्ना के साथ अंतिम क्लास तक पढ़ाई की थी, बबली जो उसी की उम्र की थी कहने लगी, ...
देश राग
लघुकथा

देश राग

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां.. इतनी सी है दिल की आरज़ू.... .. दीदी आज तो आपने सबको भावुक कर दिया, आप कितना मीठा गाती हो, प्रीति का गाना पूरा होते ही पास में खड़े बिट्टू ने प्रीति से कहा और सभी ने अपने अपने घरों से तालियां बजायीं। प्रीति कॉलेज में प्रोफेसर है, गरीब बस्तियों के बच्चों की शिक्षा पर भी काम करती है साथ ही अच्छी गायिका भी है। लॉक डाउन के दौरान आसपास वालों की फरमाइश पर वो रोज शाम को अपने घर के सामने ट्रैक पर माइक और स्पीकर लगाकर सभी को गाने सुनाती है। आज जब उसने ये गीत गाया तो सभी लोग देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत होकर भावुक हो गए। गाते गाते प्रीति की आंखें भी भीग गयीं, दीदी मुझे भी गाना सीखना है, आप मुझे सिखाओगी, बिट्टू ने माइक और स्पीकर उठाते हुए पूछा, हाँ हाँ बिट्टू क्यों नहीं? जरूर, प्रीति ने...
उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग-०४
उपन्यास

उपन्यास : मै था मैं नहीं था : भाग-०४

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रात्री के सात बजे मेरे नानाजी दाई को बुलाने जो घर के बाहर निकले, वे परिवार में सबका खाना निपटने के बाद भी वापस नहीं लौटे थेI बाद में सबके सोने का भी समय हो गया और सब सोने भी चले गए, तब तक भी नानाजी का कही पता नहीं था। नानी जरुर खूब परेशान और चिंतित हो गयी। नींद का तो सवाल ही नहीं था। मेरी माँ के पास बैठे उसे लगातार धीरज दिए जा रही थी। शायद अब शीघ्र ही सबसे मेरी मुलाकात का समय हो चला था। माँ का दर्द असहनीय हो चला था। वेदनाएं अलग थी। इधर नानाजी का पता ही नहीं था, इसलिए दुर्गाबाई दाई की भी किसी को खबर नहीं थी। माँ तो रोने ही लगी। "अक्का …। धीरज रख। मै माई को बुला कर लाती हूं। "इतना कह कर नानी कमरे के बाहर गयी। अब माई का परिचय भी आपको करवाना ही चाहिए। माई मतलब मेरी माँ की सौतेली दादी। सखारामपंत की दूसरी पत्नी गोपिकाबाई। मेरी नानी की सास।...
गुल्लक
लघुकथा

गुल्लक

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ आशा आंटी का फोन है... बेटा मुझे फोन देते हुए बोला... मैने पोछा बाल्टी में फेकते हुए दुपट्टे से हाथ पोछे और बेटे के हाथ से फोन झपट लिया। कैसी हो दीदी उधर से आवाज आई ! .ठीक है हम सब तू कैसी है? और तेरे परिवार के लोग.....मैं एक सी सांस मे कह गई? नहीं दीदी...वह रूकती हुई बोली - पर आपको सब काम हाथ से ही करना पड रहा है ना? और आपके पैरो का दर्द कैसा है? उधर से बुझी सी आवाज आई। हम लोग मिलजुल कर मैनेज कर रहे है। बच्चें भी काम मे हाथ बँटा रहे है.... वो सब तो ठीक है पर तू बता तुम लोग गाँव तो नहीं गए ना? और तेरे पति क्या अभी भी सब्जी बेचने जाते है? मै उसकी खैरियत पूछने के लिए एक सांस मे सब कह गई। वो दीदी मालिक मकान किराया मांगने लगा था। और फिर हमारे घर में खाने का सामान भी इन आठ दिनों मे खतम होने लगा था। आटा दाल का इंतजाम तो करना ही था सो जान जोख...
होमियोपैथी….  प्रयोग नहीं विज्ञान
आलेख

होमियोपैथी…. प्रयोग नहीं विज्ञान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व होमियोपैथी दिवस’ प्रत्येक वर्ष १० अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. हैनीमैन की जयंती १० अप्रैल को विश्व होमियोपैथी दिवस के रूप में मनायी जाती है। होम्योपैथी के संस्थापक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन महान विद्वान, भाषाविद् और प्रशंसित वैज्ञानिक थे। होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति दुनिया के १०० से अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी देश है कई महामारियो का उपचार होम्योपैथी से संभव है। लेकिन अभी तक इसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो सका है। होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। होमियोपैथी के उपचार का आधार खासतौर पुराने तथा असाध्यय कहे जाने वाले रोगों के लिये रोगी की केस हिस्ट्री लेते समय उनके लक्षणो को प्राथमिकता...
कोरोना वायरस का प्रभाव
आलेख

कोरोना वायरस का प्रभाव

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** सारे विश्व में कोरोना के कहर ने हंगामा मचा दिया है। अंबर और अवनि पर सन्नाटा छाया हुआ है। प्रदूषण फूँकते वाहन के पहिए थम गये हैं। सड़कों, दुकानों, मोल, शाला-कॉलेजों, ऑफिसों, कंपनियों, उद्योगों, मण्डी-बाजारों, आदि भीड़ वाले स्थान एक ही रात के आह्वान से कुछ ही घंटों में शून्य सा नजर आ गया है। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक वातावरण के साथ ही प्राकृतिक वातावरण भी शांत हो गया है। लोग अपनी, परिवार की और देश की जान बचाने के लिए अपने घरों में बैठकर देश को सहयोग दे रहे हैं। लोगों में निरंतर सावधानी जागृत करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से मीडिया कर्मी सतत सूचना देते रहते हैं। लोगों को मुश्किलें कम हो इसके लिए जितना हो सके उतना समाज सेवकों और सरकार द्वारा खयाल रखा जाता है। लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान, ...
बेग से मिली मन की विषालता
कहानी

बेग से मिली मन की विषालता

डॉ. सुरेखा भारती *************** दरवाजे के बरामदे में अपने जूते निकालकर, वह बैठक वाले कमरे में ही सौफे पर दोनों पैर पसार कर लेट गया। लेटे-लेटे ही उसने अपने टाॅय को खोलकर एक तरफ पटक दिया। आँखें बंद की और आवाज दी। नीत....नीता ऽ जरा पानी लाना.... नीता हाथ में ग्लास थामे उसी और आ रही थी लो...... मुझे पता था आप आ गए है, मैंने पैरों की आहट जो सुन ली थी। यह कह कर उसने ग्लास रोहित के हाथों में थमा दिया। रोहित उस की ओर देख कर बोला - ‘आज मैें इतना थक गया हूँ,...... दिल्ली वाले बाॅस जो आए थे, उन्हें शहर में शापिंग करवानी थी और किसी अच्छे रेस्टारेंट में जाकर लंच करवाना था। हाँ बिल की पेमन्ट तो मिल जाएगी, पर उनकी बातें सुनते-सुनते मैं बहुत उब गया हूँ....।, रितेश को कहा था की तुम बाॅस के साथ चले जाओ...। तो सुना.. उसने भी बहाना बना दिया - ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं हेै, वैसे भी तुम्हे करना क्या है, उनके साथ ...
कैलाश यात्रा
लघुकथा

कैलाश यात्रा

डॉ . भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** गाय दुहने के बाद माँ चिराग को आवाज देती हैं... बेटा, शिव के अभिषेक का दूध तैयार है, अरे हाँ, आज इक्यावन रूपये लेते जाना, शिव के चरणों में अर्पण कर देना। चिराग - जी मम्मी और कुछ ? बस भोलेनाथ सबको कुशल रखें। चिराग रोज मंदिर न जाकर अभिषेक का दूध एक वृद्धा बुढ़िया को पिलाके आशीर्वाद प्राप्त करता था। आज दूध के साथ फल लेकर गया था। पहली बार सोई हुई बुढ़िया को जगाकर फल और दूध का नास्ता खिलाके बहुत खुश था। शायद बुढ़िया का वह आखिर दिन होगा। शाम को वह कैलाश सिधार जाती है। दूसरे दिन माँ चिराग को शिव के अभिषेक के लिए पुकारती है तो वह कहता है... "आज भोलेनाथ मंदिर में नहीं है, कल से कैलास यात्रा के लिए गये हैं।" . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ ...
कुछ लिख रही हूँ
लघुकथा

कुछ लिख रही हूँ

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पति थका हारा आफिस से आता है पत्नि को आवाज़ देता है... सोनम ज़रा एक गिलास पानी और चाय देना आज बहुत थक गया हूँ, सर दर्द कर रहा है, चाय दे कर थोड़ा सा बाम सर में मल दो थोडा सो जाऊँगा तो आराम हो जायेगा। सोनम मैं कुछ लिख रही हूँ। आप पानी लेकर पी लो मैं बस यह लिख कर आप को चाय बना कर लाती हूँ फिर बाम लगा कर सर दबा दूंगी। पति जी पानी लेकर पी लेते हैं और कमरे में आकर कपडे बदल कर हाथ मुँह धोकर भगवान को अगरबत्ती भी जला देते है पर सोनम चाय लेकर नहीं आती। वो फिर आवाज़ देते है क्या हुआ चाय नहीं बनी... अरे बना रही हूँ, ला रही हूँ आप आराम करो ला रही हूँ... काफ़ी देर बात सोनम चाय लेकर आती है तो पति देव पूछ ही बैठते हैं... आप सारा दिन क्या लिंखती रहती है क्या कोई किताब लिख रही है? सोनम नहीं किताब नहीं सारा दिन मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती है, फ़ेस बुक, वाट...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग -०३
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग -०३

लेखक विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रिश्ते आदमी को जन्म से ही अपने आप मिल जाते है। भले ही रिश्तों का कोई आकार प्रकार ना हो, परन्तु रिश्ते धीरे-धीरे अपने आप जुड़ते जाते है और श्रृंखलाबद्ध हो जाते हैI अटूट बंधनों में बंध जाते हैं। कुछ रिश्ते अचानक कोई लॉटरी खुल जाए ऐसे भाग्योदय जैसे उस लॉटरी में खुले इनाम की तरह मिल जाते है। जैसे परिवार में किसी की शादी तय होती है और वरमाला पड़ते ही अचानक कई सारे रिश्ते जुड़ जाते है। कुछ रिश्ते पुष्प जैसे होते है, खिलते जाते है, बहार लाते रहते है, महकते जाते है और हमेशा खुशबूं ही बिखेरते रहते है। गुलाब की पंखुड़ियों में अक्षरों से लिपट जाते है। कुछ रिश्ते पत्थर जैसे जडवत रहते है। अक्षरशः गले में पत्थरों की माला जैसे बोझा बन लटकते रहते है और उन्हें जबरन ढोते रहना पड़ता है। कुछ रिश्ते मन में चिडचिडाहट पैदा करने जैसे होते है। बिलकुल हैरान परे...
अंतर्मन
लघुकथा

अंतर्मन

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** आंटी आंटी हमारी बॉल अंदर आ गई, प्लीज् दे दीजिए ना, दीप्ति ने खिड़की से झांककर देखा तो कॉलोनी में खेलते हुए बच्चे उसके घर के गेट पर खड़े होकर आवाज़ दे रहे थे, दीप्ति एक लेखिका और समाजसेवी है। आज रविवार होने से वह घर पर ही अपने लैपटॉप पर कोई आर्टिकल लिख रही थी। जिसका शीर्षक था "अंतर्मन"। दीप्ति ने बाहर निकलकर बच्चों को बॉल दी और फिर आकर लिखने बैठ गयी। तभी कॉलोनी की सफाईकर्मी मालती भाभी ने दरवाजा खटखटाया, दीप्ति के पूछने पर उसने कहा कि बेटी को कॉपी और पेन की जरूरत है और कल जन्मदिन है तो वो नए कपड़ों की जिद कर रही है। दीप्ति ने उसे कॉपी पेन देते हुए कहा की भाभी ऐसे ही बिटिया की पढ़ाई पर ध्यान देना और जो भी जरूरत हो आकर बात देना। दीदी आपकी बजह से ही तो मेरी बिटिया पढ़ रही है, अगर आप फीस नही भरती, स्कूल में एडमिशन नही दिलाती तो हमारी हैस...