थोड़ा सा इंतजार …
सुधा गोयल
बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश)
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"राम-राम रामधन काका"- दोंनो हाथ जोड़ दिए मेघा ने। काका को देखकर मेघा के चेहरे पर खुशी नाच उठी। "सुखी रहो बिटिया। कैसी हो?" अच्छी हूं काका, सामने तो खड़ी हूं"-हंस पड़ी मेघा "वही तो देख रहा हूं क्या बढ़िया कोठी है। देखकर आंखें जुड़ा गईं। अरे बिटिया बाहर जो चौकीदार खड़ा है अंदर ही ना आने दे रहा था। मैंने भी कड़क कर कहा कि तुम हमें जानत ना हो। हम साब की ससुराल से आए हैं। सो बिटिया वो हमें नीचे से ऊपर तक देखने लगा। हमें फिर जोश आ गया। अबे ऐसे क्या देखत हो कभी आदमी नहीं देखा। जा मेरी बिटिया को बुला ला और तभी आवाज सुनकर तू बाहर निकल आई। ससुरा अंदर भी आने देता या बाहर से ही लौट जाना पड़ता"- कहते-कहते काका ने अपने दोनों पर सोफे पर रख दिए।
पर्दे के पीछे खड़े राही और गौरा ने देखा तो हंस पड़े और बोले -"स्टूपिड... पता न...