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गद्य

पागल
लघुकथा

पागल

शुचि 'भवि' भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कैसी हो? फोन पर प्रश्न पूछते ही मानो भूकंप आया हो। सरिता स्तब्ध हो गयी थी कि अचानक रेणुका को ये हो क्या गया है। कितना अनाप-शनाप बोल रही थी वो और उसका ये रूप तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। इससे पहले कि सरिता कुछ बोल पाती, रेणुका ने फोन काट दिया था। सुदूर विदेश से सरिता चाह कर भी आ भी तो नहीं सकती थी अपनी बचपन की सहेली से मिलने। उसने कई बार दोबारा फोन लगाने की कोशिश की मगर नाकाम रही। सरिता ने रेणुका के भाई को फोन लगाया और रेणुका के संबंध में पूछा कि वो कैसी है। सरिता की चीख़ निकल गयी ये सुन कर कि एक सप्ताह पहले जो खिलखिलाती रेणुका थी वो आँसुओं के सैलाब में इस क़दर डूबी कि अपना अस्तित्व ही भूल गयी है। पति, देवर और पुत्र तीनों कोरोना की भेंट चढ़ गए थे। १५ दिन पहले ही घर में जश्न था, देवर की सगाई का। सरिता ने समझाया भी था कि...
गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा
आलेख, धर्म, धर्म-आस्था, धार्मिक

गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** तारा जयंती विशेष जयंती चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस वर्ष महातारा जयंती २१ अप्रैल २०२१, के दिन मनाई जाएगी। चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों और उनके भक्तों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। दस महाविद्याओं में से एक हैं-भगवती तारा। महाकाली के बाद मां तारा का स्थान आता है। जब इस दुनिया में कुछ भी नहीं था तब अंधकार रूपी ब्रह्मांड में सिर्फ देवी काली थीं। इस अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई जो माता तारा कहलाईं। मां तारा को नील तारा भी कहा जाता है। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप मान...
ओरा और कोरा
आलेख

ओरा और कोरा

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** ओरा के विषय में बहुत लोग जानते हैं। ओरा मनुष्य के विचार और कर्मों का शूक्ष्म प्रकाश होता है जो शरीर के बाहर प्रकट होता रहता है। इसे तेज भी कहा जा सकता है। जब हम किसी संत या महात्मा या चिंतक के करीब पहुंचते हैं तो उनके ओरा क्षेत्र में हमारे विचार बदल जाते हैं क्योंकि यह एक सूक्ष्म प्रकाश है और प्रकाश किसी को दिखाई नहीं देता बल्कि उससे वस्तुएं दिखाई देती हैं। भले ही वह वायु में तैरती धूल या अन्य वस्तुएं हों। इसी प्रकार ओरा किसी को दिखाई नहीं देता अच्छे विचारों के प्रभाव से हमारी बुद्धि अच्छा महसूस करने लगती है और यह भी होता है कि हमारी अपनी समस्याएं उस क्षेत्र में आकर अपने आप सुलझने लगती हैं। यही ओरा का प्रकाश होता है। यह प्रकाश दूसरे व्यक्ति को पकड़ भी लेता है या दिया भी जा सकता है। यह गंध जैसा घ्राण इंद्रिय द्वारा भी प्राप्त क...
वह गाड़ी वाली लड़की
कहानी

वह गाड़ी वाली लड़की

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीना जी, आज आप बहुत उदास लग रही है। क्या कोई खास कारण है? आपका हँसता हुआ चेहरा, आज मुरझाया हुआ क्यों लग रहा है? मैंने आपको इससे पहले कभी इतना उदास नहीं देखा। क्या आप मुझें अपनी परेशानी बता सकती हैं? अरे, सुरेश जी आप तो यूँ ही इतने परेशान हो रहे हैं। मेरे चेहरे पर लंबे सफर की थकान है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। थोड़ा आराम कर लूँगी। फिर सब ठीक हो जाएगा। क्या हम शाम को मिल सकते हैं, सुरेश जी? जी जरूर, आपकी हर फरमाइश सिर-आंखों पर। अच्छा मैं चलता हूँ, फिर मिलेंगे। वह सुरेश को जाते हुए देखती रही, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया। सुरेश वर्षों से मेरे साथ हैं। यह साथ करीब-करीब बीस साल पुराना है। जब हम कॉलेज में पढ़ते थे। सुरेश हमेशा से ही मस्ती में रहता हैं। उसे तो सिर्फ मजाक करने का बहाना चाहिए। मुझें नहीं लगता वह कभी गंभीर भी होता हैं। म...
नीना
लघुकथा

नीना

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन रात बढ़ते संक्रमण पर काबू पाते और मरीजों की सेवा करते डाॅक्टर नीना निढाल हो टेबल पर गर्दन रखते ही नींद के साथ अतीत के आगोश में चली गई थी। अरे! सुन, बेटीके लिए इतना अच्छा घर मिला है। देर सबेर नीना के हाथ पीले करने ही है। लेकिन पता नहीं उसके दिमाग में कोई कालेज का लड़का छाया हुआ है। जाति भी कुछ अलग है। साफ मना करती है शादी के लिए। देख शिबू नीना की सहेली कह रही थी। लड़के ने अपने परिवार की पसंद की लड़की से शादी भी कर ली है।एक साल होने आया है। फिर भी तेरी बिटिया मानती नहीं। प्रेम में पूरी दिवानी हो गई है। ध्यान रखना शिबू प्यार से समझाना नहीं तो उल्टा गलत काम कर लेगी तो समाज में नाक कट जायेगी। माँ आप इतनी चिन्ता मत करो। मुझे समाज की चिंता नहीं बेटी के भविष्य की चिंता है। पढ़ी लिखी जवान लड़की उसे बहुत सारे बड़े काम करने हैं यह कौन समझाए। मां आज...
आदमी से गधा बेहतर
कहानी

आदमी से गधा बेहतर

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** ‘गाढवे, तुम वास्तव में गधे ही हो।' साहब ने भले ही क्रोध में यह कहाँ पर राजाभाऊ गाढवे बिलकुल शांत ही थे। साहब पर उनकों कतई गुस्सा नहीं आया, बल्कि उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘धन्यवाद सर !‘ अब साहब ज्यादा ही नाराज हो गए। उन्हें लगा गाढवे उनका मजाक उड़ा रहें हैं। ‘गाढवे .....गाढवे, अरे मैं तुम्हें साफ़ साफ़ गधा कह रहा हूँ। धन्यवाद क्या दे रहे हो मुझे ?‘ ‘फिर क्या देना चाहिए सर आपको ? ‘ राजाभाऊ ने फिर विनम्रता से कहाँ। वह बिलकुल शांत थे। ‘कुछ भी नहीं।‘ साहब का पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था ।‘ मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है । तुम अपना काम ठीक से किया करो ।इतनी मेहरबानी तो कर सकते हो मेरे ऊपर ? ‘ ‘यस सर ।‘ राजाभाऊ गाढवे को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनकी गलती कहाँ हुई ? और साहब के इतना नाराज होने की वजह क्या हैं ? उन्होंने चुपचाप साहब के साम...
कवि और चप्पल
व्यंग्य

कवि और चप्पल

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   एक कवि मित्र ने स्व प्रयासों से जैसे-तैसे कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मैं भी निमंत्रित था। मंचीय स्टेज पर चढ़ने से पूर्व चरण पादुकाएं नीचे एक ओर व्यवस्थित रख दी थी। सम्मेलन निपटाकर ज्यों ही चप्पलें ढूंठी, नहीं मिली। सारा पांडाल खगांल मारा। किन्तु चप्पलों का नामों निशान तक न था। हडकंप मच गया कि चोरल वाले कवि महोदय की चप्पलें चोरी चली गयीं। मेरे लिए बिना चप्पलों के एक पग चलना भी दूभर हो रहा था। नंगे पैर घर कैसे जाता? कवि मित्र से प्रार्थना की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने बहुत देर तक विचार किया परन्तु कोई युक्ती नहीं निकली। रात्री के तीन बजे चप्पलों की दुकान कहां खोजते? अन्य कवि मित्रों ने आयोजक कवि मित्र पर दबाव बनाया की मानदेय भले न दें, लेकिन कवि महोदय की चप्पलों की व्यवस्था तो करें। आयोजक कवि मित्र मान...
घटते पाठक, बढ़ती चिंता
आलेख

घटते पाठक, बढ़ती चिंता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************   यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि शिक्षा और साहित्य के विस्तार के बावजूद पाठक वर्ग का अभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह कैसा जूनून है कि हम लिखते जा रहे हैं, औरों से अपने सृजन को पढ़कर प्रतिक्रिया भी चाहते हैं। परंतु अफसोस कि हम औरों को पढ़ना ही नहीं चाहते। आखिर हम जो सोचते हैं, वैसा ही कुछ और लोग भी तो सोचते हैं। तभी भी रचनकार अधिक और प्रतिक्रिया देने वाले मात्र गिने चुने ही होते प्रायः दिख जाते हैं। जो हमें ही आइना दिखाते प्रतीत होते हैं। हो भी क्यों न? बढ़ते आधुनिकीकरण ने हर क्षेत्र में सकारात्मक/नकारात्मक असर डाला है। फिर भला सृजन, पाठन कैसे अछूता रह सकता है। आज जब सृजन क्षमता का विकास अत्यधिक तेजी से हो रहा है, नये सृजनकार तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष कर कोरोना काल में साहित्य के क्षेत्र मे...
दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।
पुस्तक समीक्षा

दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पुस्तक का नाम- पैसा बोलता है रचनाकार- गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' संस्करण- प्रथम प्रकाशक- विश्व साहित्य प्रकाशन प्रयागराज पुस्तक कीमत-१०० पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल पिछले दिनों मैं संगम नगरी प्रयागराज की साहित्यिक यात्रा पर था। प्रयागराज के सुप्रिसिद्ध कवियों, शायरों से मुलाकात हुई। इस दौरान देश के युवा कुशल व्यंग्यकार गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' द्वारा विरचित काव्य कृति 'पैसा बोलता है' प्राप्त हुई। काव्य संग्रह का सघन अध्ययन करने के पश्चात मैंने पाया कि उक्त काव्य संग्रह में अंधी दौड़ में शामिल गिरावट के आखिरी पायदान पर पड़ी गिरती हुई आदमीयत और मानव जीवन के विविध् प्रसंगो को स्वंय में संजोए गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, मुक्तक, कविता सहित कुल ३२ एक से बढ़कर एक रचनाएँ हैं। गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' की कृतियाँ क्रमश: दूसरी आज...
हजार मुंह का रावण …!!
कहानी

हजार मुंह का रावण …!!

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** “ठहरो !“ डायनासोर से भी कई गुना बड़ा और भारी भीमकाय भ्रष्टाचार दौड़-दौड़ते बड़ी मुश्किल से ठहर पाया I फिर भी वह बहुत आगे तक आ ही गया था I उसके पावों में लाखों अश्वों का बल आ गया था और अनेक हाथियों के पेट से भी बड़ा भारी उसके पेट का आकार हो गया था, इसलिए उसने खुद को सम्हालने में बड़ा समय लियाI ठहरने के बाद वहीँ खड़े-खड़े बड़े कष्ट से उसने अपनी गर्दन घुमा कर थोडा पीछे की ओर देखा और पाया कि लोकतंत्र उसके पीछे-पीछे दौड़ा चला आ रहा थाI भ्रष्टाचार ने यह भी देखा कि लोकतंत्र के पीछे-पीछे लोकतंत्र के प्रहरी आम मतदाताओं की भी बहुत बड़ी भीड़ चली आ रही थी I लोकतंत्र हांफते हांफते भ्रष्टाचार के पास आकर रुका I “अरे ! कब से आवाज लगा रहां हूँ ? ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा? “थोडा ठहर जा !“ लोकतंत्र ने तनिक नाराजी भरे स्वर में कहाँ ! भ्रष्टाचार अपने भीमकाय शरीर क...
असली रंग
लघुकथा

असली रंग

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सोमेश जैसे ही ऑफिस से घर पहुँचा सीमा ने कहा चाय रेडी है पहले आप फ्रेश हो जाओ फिर बुलबुल को आज रंग गुलाल दिला लाना कब से यही रट लगाये बैठी है सोमेश ने कहा ठीक है बुलबुल से कहो रेडी होने मैं ले चलता हूं उसे। बुलबुल झट से तैयार हो कर आ गयी और बहुत खुश नजर आ रही थी। सोमेश बुलबुल के साथ मार्केट गये। वहाँ उसने बुलबुल की पसंद का सारा सामान खरीदा पर सोमेश ने एक बात नोटिस किया कि बुलबुल जो भी सामान लेती पापा एक और प्लीज कहकर सारा सामान का एक और सेट खरीद लिया और अलग-अलग कैरी बेग में रख लिया। लौटते वक्त पापा ने देखा कि आज बुलबुल बहुत खुश लग रही थी और उसे खुश देखकर पापा भी खुश थे। घर पहुँच कर सोमेश ने सीमा से कहा- पता है आज हमारी बुलबुल बहुत खुश है उसने सारा रंग गुलाल पिचकारी मास्क और भोपू के दो-दो सेट खरीदे हैं। इसी बीच बुलबु...
प्रीति चित्रण
कविता, डायरी

प्रीति चित्रण

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** मौन धारण कर वचन मेरे, लज्जा आए प्रीत मेरे। मगन प्रेम सांसे सत्य ही है, शब्द अनुराग है मेरे।। दुखद: प्रेम सदियों से चला आया। माया, लोभ ने विवश बनाया।। कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए, विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं। प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण मन को भाता यह बोध विधान।। बजता प्रेम का है यह अलौकिक संदर्भ जगत में। देखो सजना सजे हैं हम प्रेम इन जीवन अब हाट पे।। स्वर का विश्वास नहीं, देखो माया संसार में। वाणी के बाजे भी अब तो, टूट गए हैं आस में।। प्याला मदिरा का मनमोहक दृश्य लगे जीवन आधार में। बिखरे हैं यह सज्जन देखो, टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।। कलयुग में सजती है स्वर्ण कि यह लंका। ताम्र भाती प्रेम बना है, प्रेम यह संसार में।। मैं चला हूं उस पथ पर अग्रसर कटु सत्य वचन से। मिथ्य वाणी ना बोलता सदा करूं मनमोहक जीवन से।। एहसास है मेरे, हमदम प...
रंगबिरंगी
कहानी

रंगबिरंगी

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** मंच पर से वक्ता बोल रहा था। अचानक वह बोलते बोलते रुक गया। सबसे अंतिम पंक्ति की ओर उसने टेढ़ी नजरों से देखा, एक क्षण देखता रहा और फिर विषय से हट कर बोला, “मुझे ऐसा लगता हैं कि अंतिम पंक्ति में बैठे हुए चारों सज्जन अगर मेरी बात शांति से सुने तो बेहतर होगा, इससे वें भी मेरी बात ठीक से समझ सकेंगे और दूसरों को भी कोई परेशानी नहीं होगी और वें सब भी शांति से मेरी बात सुन सकेंगे। आखिर हम लोग सेवानिवृत्ति के पश्चात् आने वाली समस्याओं पर ही तो चर्चा कर रहें हैं, और यह सबके भले के लिए ही तो हैं।“ वें चारों सकपका गए, फिर मुस्करा दिए और गर्दन हिला कर शांति से भाषण सुनने का वक्ता को आश्वासन दिया। वक्ता फिर से विषय पर बोलने लगा। परन्तु उन चारों की हरकते बदस्तूर जारी थी। इन अभिन्न मित्रों की शरारती चौकड़ी अनेक वर्षों के उपरान्त एकत्रित हुई थी और जिगरी दोस्त...
पुतला
कथा

पुतला

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** मुग़ल बादशाह औरंगजेब को जिसने नाकों चने चबाएं, जिसने हिन्दवी स्वराज्य की नीव रखी, ऐसे राष्ट्रभूषण और महाराष्ट्र में घर घर पूजे जाने वाले, छत्रपति श्री शिवाजी महाराज का यहाँ इस शहर में इस चौराहे पर काले घोड़े पर विराजमान सुन्दर ऐसा मनमोहक बड़ा सा पुतला गर्व के साथ आने जाने वालों का बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता हैं। घोडा भी दो पावों को ऊपर कर, गर्दन ऊंची कर, मानों युद्ध में जाने के लिए तैयार हो इसी अंदाज में अकड के साथ खडा है। चौराहे के बायीं ओर थोडा ऊपर की ओर चढ़ने के बाद हनुमानजी का मंदिर हैं, और थोडा आगे जाने के बाद मेरा ऑफिस था। एकदम बायीं ओर मुड़ते ही कुछ झोपड़ियाँ थी। अब मेरा ऑफिस में जाने का रोज का यहीं रस्ता था। मैं भी क्या कर सकता था? रोज मुझे छत्रपति श्री शिवाजी महाराज और बजरंगबली के दर्शन अनायास हो ही जाते थे। हाल ही में मेरा तब...
मृत्यु का सुख
कहानी

मृत्यु का सुख

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** ताराबाई के शरीर से प्राण निकले और आखिरकार इस भवसागर से उसको मुक्ति मिल गई। अब ताराबाई के शरीर से प्राण निकले जरुर पर उसकी आत्मा का क्या? भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं, ‘जो मरता हैं वह शरीर। आत्मा कभी नहीं मरती। और प्रत्येक शरीर में एक अदद आत्मा भी तो होती ही हैं। अर्थात जिसे मृत्यु के मुख में जाना होता हैं वह शरीर और जिसका मृत्यु कुछ भी नहीं बिगाड सकती वह अजरामर आत्मा। इसीलिए हम सब को हमेशा यहीं बताया जाता हैं कि आत्मा हर जन्म में हमेशा शरीर रूपी कपडे बदलती रहती हैं और यह कि आत्मा अमर होती हैं । अब सवाल यह कि ताराबाई की मृत्यु के बाद ताराबाई का शरीर छोड़ने वाली और ताराबाई की अमर कहलाने वाली आत्मा अभी तक कहाँ भटक रही होगी? ज़रा ठहरिए। कहाँ भटकेगी? अभी तो इसी घर में, नहीं-नहीं इसी कमरें में भटक रहीं होगी? अभी तो ताराबाई की मृत देह जम...
वो नीलपक्षी
लघुकथा

वो नीलपक्षी

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ********************                               गर्मीं की रातों में नींद तो सुबह ही आती है। ओर उसमें भी रात को बिजली चली गईं हो। सुबह नींद लग ही रही थी कि नीम के झाड पर असंख्य चिड़ियों का मेला लगा था। वे चहचहा रहीं थीं मानों अपना दिनभर की योजना के बारे में चर्चा कर रहीं हों। मुझे उठना ही पड़ा। चाय लेकर बरामदे मैं बैठी तो एक नीले पंख की चिड़िया बरामदे में लगे शीशे पर बैठ शीशे में अपनी ही छवि को देख लगातार अपनी चोंच मार रही थी कि ये मेरे जैसी दूसरी चिड़िया कौन? देख मैं मुस्कुरा दी और सोचने लगी कि कितनी नादान है ये? आखिर थककर वह मुंडेर पर जा बैठी। यह उसका रोज का ही कार्यक्रम बन गया था। सूरज अपना साम्राज्य खोले उसके पहले ही इसकी हरकतें शुरू हो जातीं। मेरे बरामदे की बेल से नीम्बू के पेड़ से गुलाब के गमले में फुदकती पर पास लगे अशोका के पेड़ पर कभी न जाती। वह आँगन में ...
डायरी का वो पन्ना
लघुकथा

डायरी का वो पन्ना

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** अक्सर ये कहा जाता है कि मतलब या काम निकलने के बाद लोग सब भूल जाते हैं। शाम का समय था, दिनेश अपने घर के हाल में अकेले बैठा था कि डोर बेल बजी। दरवाजा खोल कर देखा तो सामने चाचा जी खड़े थे। जय श्रीकृष्णा चाचाजी, आइए पधारिए की ओपचारिकता के बाद दोनों सोफे पर बैठ गए। चाचाजी मुझे फोन कर दिया होता तो मैं ही बस स्टैंड पर लेने आ जाता। थोड़ी देर की बातचीत के बाद चाचाजी मै आपके लिए चाय बना के लाता हूं। चाय की चुस्कियां लेते हुए चाचा जी बात किए जा रहे थे कि अचानक से नाराजगी वाले अंदाज से बोले कि बेटा आज कल कौन किसको याद करता है। ये दुनिया बड़ी मतलबी है। काम या वक्त निकलने के बाद सब भूल जाते हैं। चाचाजी की बात दिनेश को समझ आ रही थी कि आखिर चाचाजी ऐसा क्यों कह रहे, कहीं मुझे ही लक्ष्य करके तो नहीं बोल रहे हैं। दिनेश चाचाजी से ऐसी बात नहीं ह...
शिव तत्व को आत्मसात करवाता नालागढ़ हिमाचल का प्राचीन पंचमुखी शिव मंदिर
आलेख

शिव तत्व को आत्मसात करवाता नालागढ़ हिमाचल का प्राचीन पंचमुखी शिव मंदिर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** देव-भूमि हिमाचल में जहां कण-कण में भगवान शिव विराजमान है। बस आपको अपने भीतर शिव तत्व को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जब आप ईश्वर का साक्षरताकार पा जाते हैं तो फिर आप बाहरी आडंबर, उनकी परिकल्पना से परे हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में नालागढ़ क्षेत्र के अंतर्गत भगवान शिव का पंचमुखी शिव मंदिर का इतिहास सोलहवीं सदी के लगभग माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना की बड़ी ही रोचक कथा है कहां जाता है कि राजा नलसेन जो कि उस समय के राजा थे महल परिसर में शिव मंदिर की स्थापना करवा रहे थे, पहाड़ पर ले जाते हुए अचानक उनके हाथ से भगवान शिव का प्रतिरूप शिवलिंग छूट गया और नीचे चोए में गिर गया। चोया हिमाचली भाषा में पानी के उस स्त्रोत को कहते हैं जो पहाड़ी क्षेत्रों में बहता रहता है। इस मंदिर का एक अन्य नाम चोय वाला मंदिर भी है। कहा जाता...
ज्ञान
लघुकथा

ज्ञान

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कश्मीर की घाटी और सरहदी इलाका। दो आतंकी एक घर में घुसे। पंडित जी और उनकी पत्नी घबरा गये। आतंकी ने बंदूक तानते हुए पूछा- "तुम हिंदू हो या मुस्लिम?" पंडित जी ने बहुत साहस कर बोला- ये दाढ़ी नहीं देख रहे, मैं भी तुम जैसा ही मुसलमान हूं। "अगर मुसलमान हो तो कुरान की आयत सुनाओ।" आतंकी ने कहा। पंडित जी तब पेशोपेश में पङा गये। मन ही मन भगवान को याद कर गीता का श्लोक सुना दिया। आतंकवादी वापस चले गये। पंडिताईन तब घबराती हुई बोली- "एक तो आपने इतना बड़ा झूठ बोला, ऊपर से कुरान के आयत के बदले गीता का श्लोक सुना दिया। अगर वो जान से मार देते तो?" "पंडित जी ने तब हंसते हुए कहा- "भाग्यवान, अगर उन्हें इतना ही ज्ञान होता तो आतंकवादी क्यों बनते।" परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
पेड़ की पीड़ा
लघुकथा

पेड़ की पीड़ा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर ८ दिन बाद मेरा जीप द्वारा उधर से निकलना होता था। सड़क कच्ची और पथरीली थी सड़क की दूसरी ओर घना जंगल था वहां हमेशा सन्नाटा पसरा रहता था। एक बार मै उधर से गुजर रही थी तो कुछ टकराने की आवाज सुनाई दी मैंने वाहन चालक से पूछा तुम्हें भी कुछ सुनाई दे रहा है, वह बोला हां कुछ ठोकने की आवाज आ रही है दूर से देखा कोई एक पेड़ को काट रहा था, पेड़ पर पड़ते आघात मेरे मन को आहत कर रहे थे। आंसू बहाता आकाश पत्नी धरती से कह रहा था... देख रही हो तुम्हारे द्वारा भेजा गया संदेश लेकर वह मेरे पास आ रहा था ऊपर उठ रहा था। की वह मुझे संदेश सुना सके, देखो कैसे उसे ऊपर चढ़ते चढ़ते नीचे गिरा दिया फिर से तुम्हारी गोद में सारे पत्ते झर गए कभी ना लगने के लिए वह अडीग छाया देने के लिए फल देने के लिए और वर्ष वर्षा करने में सहायक था, पर अब ऐसा नहीं होगा। अगर बदली बरस जा...
संयोग
आलेख

संयोग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है। अक्सर आभासी दुनियाँ में ...
सच्ची समाज-सेवा
लघुकथा

सच्ची समाज-सेवा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** संध्या देवी सुबह से समारोह की तैयारी में जुटी थी। आज उनके अनाथालय में वार्षिक सामरोह का आयोजन हो रहा था। हर साल की तरह इस बार भी उनके काम को सराहा जा रहा था। वह अनाथालय को अपना दूसरा घर समझती थी। सारी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उनकी मर्जी के बिना यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनके प्रयासों से ही अनाथालय तरक्की कर रहा था।यहां पर हर तरह का प्रबंध था। चाहे महिलाओं की शिक्षा का सवाल हो या उनके स्वालम्बन का ही। संध्या देवी एक-एक काम पर बारीकी से नजर रखती थी। उन्हें अब भी याद है, जब इस अनाथालय की शुरुआत हुई थी। उस समय यहां छोटी सी जगह थी, दो कच्चे कमरे थे।गाँव के बाहर ही उन्हें छोटी सी जगह दी गई थी। गाँव वाले उनके विरुद्ध थे। क्योंकि अनाथालय को लेकर बाजार काफी गर्म था कि अनाथालय में सेवा के नाम पर गलत काम होते हैं। कुछ लोगों का मानना था कि ...
हिचक
लघुकथा

हिचक

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** "काका कोरोना का टीका आ गया है। वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी। अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।" गोमू ने काका को समझाते हुए कहा। "नहीं, मैं यह टीका नहीं लूंगा- पता नहीं क्या हो जाय?" काका के स्वर में भय एवं हिचकिचाहट का मिला जुला भाव था। "काका कुछ नहीं होगा- बीमारी से लङने की क्षमता बढेगी।" "अब कौन सा मैं मुंबई शहर में हूं। पैदल ही सही पर अपना गांव तो आ गया। यहां कुछ खतरा नहीं है। नहीं लेना है टीका-वीका।" "काका आपको मुंबई से गांव आने में कितनी मुसीबतें झेलनी पङी और आने में लगभग दस दिन लग गये। पर कोरोना को पुनः शहर से गांव आने में चंद मिनट ही लगेंगे।" भतीजे की बात सुनकर काका पुनः सहम गया और हिचक गायब हो गई..... परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
प्रेम का वास्तविक स्वरूप
आलेख

प्रेम का वास्तविक स्वरूप

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने मित्र के व्हाट्सएप स्टेटस पर प्रथम बार गीत सुना "मुझे तु राजी लगती है जीती हुई बाजी लगती है" प्रेम का यह स्वरूप जब देखा तो लगा हम यह कहां आ गए? जिस प्रेम की पराकाष्ठा भक्ति है, जो प्रेम उस निर्गुण निराकार परमात्मा को सगुण साकार स्वरूप में धारण करने के लिए विवश कर देता है, वह एक हार जीत की बाजी हो गया। मेरे विचारों में यह प्रेम का सबसे विकृत रूप है। प्रेम तत्व मे तो दो होता ही नहीं है, प्रेम की पराकाष्ठा एक तत्व में विलीन हो जाना है और यदि प्रेम मे जब द्वेत भी होता है तो उस में समर्पण होता है, त्याग होता है, हारना होता है। प्रेम की किताब में या प्रेम के जगत में "जो जीता है वास्तव में वह तो हार ही गया है और जो हारता है वही वास्तव में जीता है" किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जो डूब गया सो पार गया, जो पार गया सो डूब गया" आज की युव...
नारी शक्ति
लघुकथा

नारी शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सुबह सवेरे बड़ा सा झोला लेकर निकल पड़ती है, बिना सन्देह के एक लक्ष्य लेकर कि आज दो-तीन किलो प्लास्टिक का कचरा मिल जावेगा तो पीहर आई बेटी को भरपेट खाना खिला सकूंगी। इसी उधेड़बुन में वह इस प्लाट से उस प्लाट तक कचरा खोजती हुई आगे बढ़ गई विचार मन में चालू थी कि अचानक पीछे से आवाज आई... इधर आओ वह घबरा गई पीछे मुड़कर देखा एक व्यक्ति खड़ा उसे आवाज लगा रहा था वह धीरे-धीरे पास गई वह बोला मैं सफाई कर्मचारी का अधिकारी हूं क्या तुम रोज कचरे के ढेर से पन्नी अलग छांटने का काम करोगी.... ४ घंटे काम करना होगा और तुम्हें ६० रु. मिलेंगे मंजूर हो तो मेरे साथ ऑफिस में चलकर नाम लिखवा दो। उसने मन में सोचा इतने पैसे से तो मैं अपने शराबी पति का इलाज भी अच्छी तरह से करा सकूंगी और बेटी को पेट भर खाना भी नसीब होगा यह सोच वह उस व्यक्ति के साथ आफीस गई और अपना न...