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गद्य

संयोग
आलेख

संयोग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है। अक्सर आभासी दुनियाँ में ...
सच्ची समाज-सेवा
लघुकथा

सच्ची समाज-सेवा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** संध्या देवी सुबह से समारोह की तैयारी में जुटी थी। आज उनके अनाथालय में वार्षिक सामरोह का आयोजन हो रहा था। हर साल की तरह इस बार भी उनके काम को सराहा जा रहा था। वह अनाथालय को अपना दूसरा घर समझती थी। सारी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उनकी मर्जी के बिना यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनके प्रयासों से ही अनाथालय तरक्की कर रहा था।यहां पर हर तरह का प्रबंध था। चाहे महिलाओं की शिक्षा का सवाल हो या उनके स्वालम्बन का ही। संध्या देवी एक-एक काम पर बारीकी से नजर रखती थी। उन्हें अब भी याद है, जब इस अनाथालय की शुरुआत हुई थी। उस समय यहां छोटी सी जगह थी, दो कच्चे कमरे थे।गाँव के बाहर ही उन्हें छोटी सी जगह दी गई थी। गाँव वाले उनके विरुद्ध थे। क्योंकि अनाथालय को लेकर बाजार काफी गर्म था कि अनाथालय में सेवा के नाम पर गलत काम होते हैं। कुछ लोगों का मानना था कि ...
हिचक
लघुकथा

हिचक

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** "काका कोरोना का टीका आ गया है। वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी। अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।" गोमू ने काका को समझाते हुए कहा। "नहीं, मैं यह टीका नहीं लूंगा- पता नहीं क्या हो जाय?" काका के स्वर में भय एवं हिचकिचाहट का मिला जुला भाव था। "काका कुछ नहीं होगा- बीमारी से लङने की क्षमता बढेगी।" "अब कौन सा मैं मुंबई शहर में हूं। पैदल ही सही पर अपना गांव तो आ गया। यहां कुछ खतरा नहीं है। नहीं लेना है टीका-वीका।" "काका आपको मुंबई से गांव आने में कितनी मुसीबतें झेलनी पङी और आने में लगभग दस दिन लग गये। पर कोरोना को पुनः शहर से गांव आने में चंद मिनट ही लगेंगे।" भतीजे की बात सुनकर काका पुनः सहम गया और हिचक गायब हो गई..... परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
प्रेम का वास्तविक स्वरूप
आलेख

प्रेम का वास्तविक स्वरूप

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने मित्र के व्हाट्सएप स्टेटस पर प्रथम बार गीत सुना "मुझे तु राजी लगती है जीती हुई बाजी लगती है" प्रेम का यह स्वरूप जब देखा तो लगा हम यह कहां आ गए? जिस प्रेम की पराकाष्ठा भक्ति है, जो प्रेम उस निर्गुण निराकार परमात्मा को सगुण साकार स्वरूप में धारण करने के लिए विवश कर देता है, वह एक हार जीत की बाजी हो गया। मेरे विचारों में यह प्रेम का सबसे विकृत रूप है। प्रेम तत्व मे तो दो होता ही नहीं है, प्रेम की पराकाष्ठा एक तत्व में विलीन हो जाना है और यदि प्रेम मे जब द्वेत भी होता है तो उस में समर्पण होता है, त्याग होता है, हारना होता है। प्रेम की किताब में या प्रेम के जगत में "जो जीता है वास्तव में वह तो हार ही गया है और जो हारता है वही वास्तव में जीता है" किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जो डूब गया सो पार गया, जो पार गया सो डूब गया" आज की युव...
नारी शक्ति
लघुकथा

नारी शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सुबह सवेरे बड़ा सा झोला लेकर निकल पड़ती है, बिना सन्देह के एक लक्ष्य लेकर कि आज दो-तीन किलो प्लास्टिक का कचरा मिल जावेगा तो पीहर आई बेटी को भरपेट खाना खिला सकूंगी। इसी उधेड़बुन में वह इस प्लाट से उस प्लाट तक कचरा खोजती हुई आगे बढ़ गई विचार मन में चालू थी कि अचानक पीछे से आवाज आई... इधर आओ वह घबरा गई पीछे मुड़कर देखा एक व्यक्ति खड़ा उसे आवाज लगा रहा था वह धीरे-धीरे पास गई वह बोला मैं सफाई कर्मचारी का अधिकारी हूं क्या तुम रोज कचरे के ढेर से पन्नी अलग छांटने का काम करोगी.... ४ घंटे काम करना होगा और तुम्हें ६० रु. मिलेंगे मंजूर हो तो मेरे साथ ऑफिस में चलकर नाम लिखवा दो। उसने मन में सोचा इतने पैसे से तो मैं अपने शराबी पति का इलाज भी अच्छी तरह से करा सकूंगी और बेटी को पेट भर खाना भी नसीब होगा यह सोच वह उस व्यक्ति के साथ आफीस गई और अपना न...
विडंबना
लघुकथा

विडंबना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिसंबर की कड़ाके की ठंड में वह अपने फटे कंबल से शरीर को ढकने की कोशिश करता हुआ सड़क के किनारे बैठा था। सड़क की दूसरी ओर एक चाय की गुमटी पर बहुत सारे लोग अपने शरीर को गरम करने के लिए चाय की चुस्कियां ले रहे थे, उसे लगा कोई उसे भी एक प्याला चाय पिला दे इस आशा से वह गुमटी पर खड़े लोगों की ओर तथा चाय की पत्ती ली से निकलती भाप की ओर अपलक देख रहा था कि कोई उसकी और देखें परंतु सब अपने मैं व्यस्त थे। किसी की नजर उस पर नहीं पढ़ रही थी, वह इसी आशा से बार-बार उधर देख रहा था की कोई तो देखें उसे परंतु किसी को उसकी ओर देखने की फुर्सत नहीं थी, सब अपने मैं मस्त हो चाय की चुस्की ले रहे थे, यह कैसी मानव की विडंबना है या उसकी नियति यह सब समझ से परे है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप...
नाईट लैम्प
लघुकथा

नाईट लैम्प

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जमाना प्राचीन काल और इस वर्तमान युग में अगर अंतर देखा जाए तो बहुत सुविधाएँ और इंसान को चीजो से.... जैसे जो हाथ से चीजें...बनाई जातीं थीं वर्तमान में ज्यादा तर खत्म हो चुकीं हैं। रानी अपनी सास से कहते-कहते काम कर रहीं थीं। लेकिन बीच रतनलाल.... रानी की बातें सुन कर कहने लगे..... तुम बहुत सही कह रही हो और कड़वी बात भी कह रही हो। जो हाथ की कलाकारी करते थे... दिखाते थे वो ही घाटे में जा रहे हैं क्योंकि कारीगर कम हैं तथा कीमत समान, साड़ियों, चित्रकला की जरूरत से ज्यादा है। आम आदमी खरीदे कैसे मन मार कर रह जाते हैं क्योंकि घर चलाना होता है, बच्चों की पढ़ाई के खर्च इत्यादि के कारण पीछे रह जाता है। आजकल हाथ की चीजें सिर्फ अमीरों के शौक हो कर रह गए हैं। अपने से ही रानी तुम देख लो.... तुम्हें ये सूती साड़ी तैयार करनी है दिन में तुम्हें वक्त नह...
पिता का मर्म और कर्म
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पिता का मर्म और कर्म

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                              माँ की ममता की चर्चा तो खूब होती है,पर पिता के मर्म को, उसके कर्म को, उस की अनुभूति को वही समझ सकता है जिसने उसके संघर्षमय जीवन के एहसास को महसूसा हो। ऐसे भाग्यशाली पिता बहुत कम हैं, जिनके बच्चे ऐसे हैं अधिकतर तो जीवन में थोड़ा सा मुकाम पाते ही कह देते हैं, तुमने हमारे लिये किया ही क्या है, नई पीढ़ी की सोच पूरी तरह से आत्मकेंद्रित हो गई है। पिता सूरज की तरह गर्म हैं पर न हों तो अंधेरा ही है। पिता खुशियों का इंतज़ार हैं, पिता से ही हजारों सपने हैं, बाजार के हर खिलौने अपने हैं।पिता से परिवार हैं, उसी से ही माँ को मिला माँ कहने का अधिकार है। बिन्दी, सुहाग, ममता का आधार है। पिता के फैसले भले ही कड़े हों, पर हम उसी से ही खड़े होते हैं। बच्चे यह बड़े हो कर यह भूल जाते हैं, माँ से जीवन का सार ह...
ईश्वर की आवाज
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ईश्वर की आवाज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             सभी जानते, मानते हैं कि हम ईश्वर की ही सृष्टि हैं, ईश्वर का ही निर्माण हैं। फिर यह भी यथार्थ है कि बिना ईश्वरीय विधान के पत्ता तख नहीं हिलता। ऐसे में कर्ता तो मात्र ईश्वर ही हुआ न। फिर भी मानव अपने स्वभाव के अनुरूप खुद को ही सर्व समर्थ मानने की गर्वोक्ति करता रहता है। परंतु सच यह है कि ईश्वर के हाथों में ही हमारे सारे क्रियाकलापों की डोर है, तब यह मानना ही पड़ता है कि जो भी हम करते हैं वह ईश्वरीय इच्छा है। ठीक इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वह ईश्वर की ही आवाज़ है, हम वही बोलते हैं जो ईश्वर चाहता है या यूं कहें कि हम मात्र ईश्वरीय प्रतिनिधि के तौर पर इस दुनियाँ में हैं और प्रतिनिधि को वही सब करने की बाध्यता है, जो उसका नियोक्ता चाहता है। ऐसे में यह हमें अच्छी तरह जितनी जल्दी समझ में आ जाये तो ब...
बस एक रात की बात
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बस एक रात की बात

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साक्षी सड़क के किनारे बने चबूतरे पर बैठी लगातार इधर-उधर देख रही थी, पता नहीं वह किसका इंतजार कर रही थी? पप्पू लगातार उसे देख रहा था, उसे देखकर पप्पू को अतीत की कुछ यादें स्मरण हो आई, जब पप्पू सोलह साल का था, वह घर से भागकर मुंबई जैसे शहर में आ गया था। उसके पास कोई ठोर ठिकाना नहीं था। उसे चारों तरफ इंसान ही इंसान दिखाई दे रहे थे। दिन हो या रात उसे भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी। वह मन ही मन में सोच रहा था, क्या यहाँ रात भी नहीं होती? रात को भी दिन से अधिक चकाचौंध रहती है। पर उसने सुन रखा था कि महानगरों में रात को भी लोग काम करते हैं। उनके के लिए दिन और रात एक समान होते है। पर हमारे गाँव में तो आठ बजे रात हो जाती है। पूरे गाँव में सन्नाटा पसर जाता है। आदमी तक दिखाई नहीं देता। वह अक्सर रात को घर से बाहर निकलने से घबराता था। वैसे भी उसे दाद...
देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंँगा" इस सम्मोहक कालजयी नारे के प्रणेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के देदीप्यमान सितारे और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। जिन्होंने भारत के आजादी के लिए प्राण-प्रण से लड़ाई की और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी के नाजी नेतृत्व और जापान के शाही सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन कर उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया और उन्हें इस देश को छोड़कर अपनी जन्मभूमि जाने पर विवश कर दिया। अत्यंत प्रभावशाली युवा व्यक्तित्व श्री सुभाष ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दरम्यान भारतीय राष्ट्रीय सेना (आई एन ए) की स्थापना की और उसमें अपनी प्रभावशाली भूमिका एवं अग्रणी प्रखर नेतृत्व के द्वारा "नेताजी" की उपाधि अर्जित की! आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व उन्हें बड़े ...
मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द
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मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जीवन मे मुझे कुछ शब्दों से काफी नाराज़गी मिली जो कभी पूरा हुआ ही नही भले उसे किसी तरह उपयोग किया जाये अगर हुआ भी तो सिर्फ भाग्य-वालो का ही ! जैसे-रिश्ता जिसमे कभी ना कभी मन-मुटाव आ ही जाता है कैसा भी रिश्ता हो माँ से बेटा का, पिता से बेटा का, चाचा से भतीजे से, भाई से भाई का, बहन से भाई का प्रेमी से प्रेमिका का रिश्ता जैसे हाल ही मे बहुत घटना पेपर, टी.वी पर सुनने को मिलता है, आरूषी तलवार का रिश्ता माँ बाप का रिस्त्ता ! इसी प्रकार प्यार या प्रेम का रिश्ता जो जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है जिसका जीवन मे सबसे ज्यादा एव खास स्थान है! वो बिरले ही पूरा होता है खास तौर पे देखा जाये तो अधूरा ही होता है जैसा प्रेमी प्रेमिका, माता-पिता, भाई-बहन इस आधुनिकता मे अधूरा एक शौक हो गया है जैसे लैला मजनु का रिश्ता, शीरी फरहाद का रिश्ता आदी! अगला ले ले तो...
सासु मां …
लघुकथा

सासु मां …

कुमारी सोनी गुप्ता जोगेश्वरी ईस्ट, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पूर्वा की कल ही शादी हुई थी, और आज ससुराल में पहला दिन था। आँखों में ढेर सारे सपने, हृदय में बहुत सी नए जीवन की आशाए संजोये थी लेकिन मन में एक डर भी छुपा था कहीं। हर सुबह माँ-माँ पुकार के होती थी पूर्वा की, आज वो माँ को बहोत याद कर रही थी। सास के बारे में सुना था बहुत ही अनुशासन प्रिय थी और न जाने बाकि घर वालो का स्वभाव कैसा हो। तो थोडा डर लग रहा था। सुबह तैयार हो कर जब बैठक में गयी तो शादी में आई सब बुजुर्ग महिलाओ ने सास से पूर्वा की माँ के घर से आई चीजे देखने की इच्छा जताई। सास ने पूर्वा को बुलाके सारा सामान सबको दिखाया देखके अन्दर-अन्दर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई, फिर उनमें से एक बुजुर्ग महिला जो की ससुर की बुआ थी वो मुंह बनाके बोलने लगी ये क्या दिया हे लड़की को ना कार, न बाइक, न फ्रीज, नाही पलंग... बस थोड़े से कपड़े...
छुटकी
सत्यकथा

छुटकी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                               दिसंबर २०२० के आखिरी दिनों की बात है। सुबह-सुबह एक फोन काल आता है। नाम से थोड़ा परिचित जरूर लगा, परंतु कभी बातचीत नहीं हुई था, क्योंकि ऐसा संयोग बना ही नहीं। उधर से जो आवाज सुनाई दी कि मन भावुक सा हो गया। उस आवाज में गजब का आत्मविश्वास ही नहीं, बल्कि अपनत्व का ऐसा पुट था कि सहसा विश्वास कर पाना कठिन था कि वो मुझे जानती न हो। जिस अधिकार से उसनें अपनी बात रखी, उससे उसका हर शब्द यह सोचने को विवश कर रहा था कि किसी न किसी रुप में हमारा आत्मिक/पारिवारिक संबंध जरूर रहा होगा, भले ही वह पिछले जन्म का ही रहा हो। उससे बात करने के बाद मन इस बात को मानने को तैयार नहीं था कि उससे किसी न किसी रुप में मेरे साथ माँ, बहन या बेटी जैसा रिश्ता नहीं रहा होगा। अब तो मेले में बिछुड़े भाई बहन सरीखे किस्से कहानियो...
प्रकृति और किसान
आलेख

प्रकृति और किसान

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ********************                              प्रकृति हमारी माता है, हमारी जगत जननी है। प्रकृति के द्वारा है हम सभी प्राणी पृथ्वी पर जीवित रह पाते हैं। प्रकृति के द्वारा ही हम पृथ्वी पर अपने जीवन को सुचारू रूप से चला पाते हैं और सरलता पूर्वक अपना जीवन बिताते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर उपस्थित सभी छोटे-बड़े प्राणियों को प्रकृति के द्वारा कुछ ना कुछ मिलता रहता है ,जिससे सभी प्राणियों का जीविकोपार्जन होता है और सभी प्राणी सांस ले पाते हैं। प्रकृति सदा देना जानती है और हमेशा कुछ न कुछ देती रहती है। उदाहरण के तौर पर :- शुद्ध जल, शुद्ध हवा, फल, सब्जियां, जड़ी बूटियां और भी बहुत सारी आवश्यकताओं की वस्तुएं इत्यादि हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है। कभी-कभी तो मन करता है कि प्रकृति के विशाल और ममतामयी गोंद में जाके बैठ जाऊं और उसके प्रेम को महसूस करूं, उसका आलिंग...
प्रतिज्ञा
कहानी

प्रतिज्ञा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** शालिनी घर लौट रही थी। उसकी आँखे नम थी। कितनी खुश थी वह अपनी शादी को लेकर। पर यह शादी उसके जी का जंजाल बन गई थी।रोज का झगड़ा, हाथा-पाई तंग आ गई थी इससे। उसके सारे सपने बिखर गए थे। वह पढ़ाई में कितनी अच्छी थी। सारा कॉलेज उसकी प्रतिभा को लोहा मानता था। किसी विषय पर वाद- विवाद हो। उसे सबसे पहले चुना जाता था। यह सब गुण उसे अपने पापा से ही मिले थे। प्रतिदिन उसे दो घंटे अखबार पढ़ना अनिवार्य था। ध्यान लगाना उसके पूरे परिवार की दिनचर्या में शामिल था। प्रतिदिन अखबार पढ़ना, शुरू में उसे बोर करता था। उसका मन नहीं चाहता था। राजनीतिक खबरें उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। वह राजनीतिक विषय पर कुछ भी बोलने से कतराती थी। पर पापा को राजनीति की खबरें बहुत पसन्द थीं। रोज दफ्तर से आते एक कप चाय पीते और चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता। फिर तो समझो गए तीन-चार घंटे,...
खुद का निर्माण करें
आलेख

खुद का निर्माण करें

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          मानव जीवन अनमोल है, इस बात से इंकार कोई नहीं करता। परंतु यह भी विडंबना ही है कि ईश्वर अंश रूपी शरीर का हम उतना मान सम्मान नहीं करते, जितना वास्तव में हमें करना चाहिए। यह सच है कि हम अपने मिट्टी के पुतले सरीखे शरीर के ऊपरी सौंदर्य की चिंता बहुत करते हैं, अनेकानेक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग निरंतर करते हैं, किंतु इस शरीर के भीतर बैठे ईश्वर और उसके निवास रुपी मंदिर के प्रति कभी सचेत होना ही नहीं चाहते। इसीलिए हम वाहृय निर्माण और भौतिक सुख दुख के चक्रव्यूह में उलझे रह जाते हैं और खुद के निर्माण के प्रति लापरवाह बने रहते हैं।जिसका खामियाजा न केवल खुद हमें बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और समूचे संसार को किसी न किसी रुप में भुगतना ही पड़ता है। आज की अगर सबसे बड़ी जरूरत की बात करें तो वह है खुद के निर्...
प्रायश्चित
लघुकथा

प्रायश्चित

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** दीदी! आपकी तबियत कैसी है? "सवेरे सवेरे मेरी देवरानी ने मेरेपैर छूते हुऐ पूछा।" मैंने अपने पैर सिकोड़ लिये। आज के समय में पैर छूना। उम्र में दोवर्ष ही तो बड़ीहूँ। जब पैर छूती, तो लगता बुजुर्ग हूँ। खैर बेमन से जवाब दिया ठीक ही हूँ। उसने मेरे माथे को हाथ लगाया और चिंतित स्वर में बोली- आपको तेज बुखार है, हिलना भी नही । पूरा दिन वह मेरे आसपास बनी रही और उसके स्वर मेरे कानो में पड़ते रहे- दीदी! दूध पीलो, दीदी! जूस पी लो, दीदी! बच्चो, की चिंता न करो। मैंने उनकी पंसद का खाना खिला दिया। पूरे सात दिन से वह मेरी सेवा में जुटी है और मैं पश्चाताप की आग में दहक रही हूँ। सोच रही हूँ लाकडाऊन में बिना मेड के मेरा और बच्चो का क्या होता। साधारण रंगरूप और कम पढी-लिखी होने से मैं उसे पंसद नही करती थी। लाक डाउन ने उसके आंतरिक सौन्दर्य के दर्शन करा दिये।...
बस एक चाहत
लघुकथा

बस एक चाहत

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************     चित्रा, दीदी मुझें जीजू बड़े अच्छे लगते हैं। अच्छा जी, मुझें तुम्हारे इरादे से ठीक नहीं लग रहे। रीता ने हँसते हुए कहा, दीदी सावधान हो जाओ। मैं जीजू को आप से चुरा लूँगी एक दिन। क्या तुम सच कह रही हो? कमल, तुम्हें इतने पसंद है। दीदी, उनकी हँसी बिल्कुल बच्चों जैसी हैं। कितने शर्मीले है, बोलना तो जैसे उन्हें आता ही नहीं है। रंग-रूप तो सभी को लुभाता है, पर मुझें तो उनका स्वभाव बहुत अच्छा लगता हैं। क्या बात जीजू का बड़ा बारीक अध्ययन हो रहा है? चित्रा बोलती जा रही थी। मैं मूक-दर्शक बनी उसे देख रही थी। वैसे भी दीदी बड़ी शान्त स्वभाव की है। हमेशा हम दोनों एक ही चीज की जिदद करती थी बचपन में, हम दोनों को एक तरह के कपड़े और खिलौने चाहिए थे। वह मुझसे दो साल छोटी थी। मम्मी बताती थी, जब मेरा स्कूल में एडमिशन करवाया गया था, तो उसमें रो-रो कर बुरा...
बैंक एफडी
लघुकथा

बैंक एफडी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                        राजमोहन गांव के बड़े जमींदार थे। गांव वालों की नजर में उनकी छवि सदा ही एक सम्मानित एवं साफ सुथरी व्यक्ति की रही। राजमोहन हमेशा ही दीन, हीन, भिक्षु, विकलांग वा आमजन के प्रति उदार भावना रखते थे। खुशियां सबसे बांट लेते लेकिन दुख दर्द अकेले ही झेल जाते थे। इसके पीछे उनका निजी दृष्टिकोण था। राजमोहन का बड़ा बेटा राधे घर में रहकर घर के काम खेती, किसानी में हाथ बंटाता था। एक दिन राजमोहन अपने बड़े बेटे के साथ घर में बैठे कुछ विषयों पर बात ही कर रहे थे, कि गांव के ही एक व्यक्ति राजबली अचानक आ पहुंचे। राजबली के चेहरे और हाव भाव को देखकर ही राजमोहन समझ गये कि हो ना हो इनको किसी तरह की मदद की जरूरत है। इसलिए अचानक ये हमारे पास आये....। राजमोहन बिल्कुल भी देरी ना करते हुए राजबली को बैठने को कहते हुए बोले- कहिए कैसे आना ह...
क्षतिपूर्ति
कहानी

क्षतिपूर्ति

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीतू ऐसा क्या हो गया हैं? जो नौबत यहाँ तक पहुँच गई है। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी, तुम्हारे साथ ऐसा हो सकता है। पति-पत्नी में कहा-सुनी होना कोई बड़ी बात नहीं है। हर घर में ऐसी स्थिति बन जाती है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक-दूसरे को छोड़ने को तैयार हो जाओ। तुम तो पढ़ी-लिखी हो, फिर तुमने समझदारी से काम क्यों नहीं लिया? पति-पत्नी दोनों को ही कुछ बातों को नकार देना चाहिए। इससे रिश्तों में दरार पड़ने से बच जाती है। माँ कहे जा रही थी। गीतू चुपचाप सुन रही थी। आखिर कब तक अपने संबंधों में दरार पड़ने से बचाती। मैं तो हमेशा ही सतर्क रहती थी। झगड़े की हर वजह को उसी समय नकार देती थी। ताकि झगड़ा किसी बड़े कलह का कारण ना बन जाए। वह अपनी माँ की इकलौती संतान थी। पिता जी माँ को अकेला छोड़ कर जा चुके थे। किसी नाचने वाली के चक्कर में। जब मै दस वर्ष की हुई ...
आओ लौट चलें अपने गांव…
आलेख

आओ लौट चलें अपने गांव…

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   अचानक आज शाम को राम निहोर काका की याद आ गई, आए भी क्यों न, शाम को वर्षों तक किस्सा सुनाते जो आए थे। एक थे राजा, एक थी रानी (राजा ब्रिज व रानी सारंगा) से शुरू होकर, राजमहल से जंगल तक की सैर कराते थे, मिलन, विरह, श्रृंगार, करुण, वीर सभी रसों से सराबोर कर देते थे। कभी-कभी आकाश विचरण भी करा देते थे, चारपाई पर लेटे-लेटे ही, मैं और बड़े भाई-कम-बचपन से आज तक के जिगरी दोस्त डॉ सेवाराम चौधरी (अवकाश प्राप्त वरिष्ठ जेल अधीक्षक) हुंकारी भरते-भरते कब सो जाया करते थे, पता ही नहीं चलता था, मानों काका हम लोगों को सुलाने ही आते थे। आज राम निहोर काका चिर निद्रा में चिर शांति के लिए विलीन हो गए हैं, उनकी याद में आंख का कोना गीला हो जाना स्वाभाविक है। उन्हें परमात्मा शांति दें व अपने चरणों में स्थान। हम लोग...
मोक्ष का मार्ग
लघुकथा

मोक्ष का मार्ग

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** आज मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के साथ आदरणीय अटलबिहारी बाजपेई जी की जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरी क्रिसमस कहने पर बहुत से लोग तपाक से ये रिप्लाई सोशल मीडिया पर कर रहे थे। ये बात २५ वर्ष के पोते ने दादा को बड़ी बेचैनी से बताई। बोला दादू ये तीन पर्व तो हर साल ही तिथि से मनाए जाते है ना! हाँ बेटा पर कभी इस प्रकार मनाते नहीं देखा। अटलजी जब तक जीवित थे तो उनके जन्मोत्सव की शुभकामना का आदान प्रदान नहीं हुआ। पोता बोला- ये वही लोग हैं जो साम्प्रदायिक वैमनस्य से ऐसा करते हैं। हाँ बेटा पहले तो गुड़ी पडवां पर नया साल मनाते थे। ये क्रिसमस और न्यू ईयर ज्यादा लोगों को नहीं मालूम था। इन पर्वों को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सब मनाने लगे ऐसे बहुत से पर्वो की शुभकामना का आदान प्रदान सालभर होता है पर आज एकादशी और गीताजयन्ती सौभाग्य से अटलजी की जनमदिन ...
भाई की डांट
लघुकथा

भाई की डांट

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आनंद तब से अपने बड़े भाई राजीव को जोर-जोर से डांटे जा रहा था। आनंद का कहना था- कि तुम घर से बाहर मत जाया करो। आसपास मुहल्ले के लोगों से बोलचाल मत रखो। तुम्हारी सहजता, सरलता, मृदुभाषिता के चलते लोग तुम्हारी कोई इज्जत नहीं करते। तुम सबसे प्रणाम, दुआ, सलाम करते रहते हो तो लोग तुम को हल्के से लेते हैं। हर किसी से हंसकर मुस्करा कर बात मत किया करो। लोगों की नजरों में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं है। कोई कुछ भी काम कह दे तो फौरन कर देते हो। लोगों को समय देते हो यह सब पूरी तरह बंद करो। गंभीर बनो, लोगों से बातचीत नहीं करो। घमंडी दिखो, स्वभाव से स़ख्त रहो तब लोग इज्जत देंगे सम्मान देंगे तुम्हारी अहमियत समझेंगे। राजीव जो इतनी देर से सब ख़ामोश होकर सुन रहा था अचानक उसने ख़ामोशी तोड़ते हुए कहा कि तुम मेरे छोटे भाई होकर जब मुझे सम्मान नहीं देते। म...
बेटी
लघुकथा

बेटी

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** आज बाबूजी बहुत ही उदास और अनमने से थे। उन्हें अपनी पत्नि सुमित्रा की बहुत याद आ रहा थी। उनके जन्मदिन पर वह उनकी पसंद के तरह तरह के व्यंजन बनाती थी। सुबह से शाम होने आयी किसी ने भी उन्हें जन्मदिन की बधाई नहीं दी। यही सोच रहे थे तभी उनकी बेटी स्मिता का फोन आया। जन्मदिन की बधाई बाबूजी, बाबूजी खुश हो कर बोले अरे बेटा तुझे याद था मेरा जन्मदिन तभी बहू ने आकर सुना और कहने लगी उम्र हो गयी है और इन्हे इस बुढ़ापे में भी जन्मदिन मनाना है। बाबूजी सोचने लगे बेटी दूर होकर भी कितने पास है। यह वही बेटी है जिसे हम जन्म से पहले मार देना चाहते थे। बाबूजी की पलकों से आँसू छलक उठे। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...