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गद्य

हमारा लॉकडाउन
लघुकथा

हमारा लॉकडाउन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** पूरा शहर बंद हो गया था। पता नहीं महामारी से कब तक देश में लॉकडाउन रहेगा? वर्षा सब कुछ सुन रही थी पर चुप थी। उसका मन तो कर रहा था। इसे आज ही एहसास हुआ है कि लॉक-डाउन सुबह से चालू हो गया हैं। आज से सभी दुकानें बंद रहेगी। स्कूल, कॉलेज बंद रहेंगे।यात्रायात के सभी साधन बंद रहेंगे। घर में किस तरह रहेगा यह, बंद होकर इसकी अय्याशी जो बंद हो जाएगी। रोज की महफिले, वही दारू पीकर तमाशा करना। जिस महफिल में रोज मजा मारता है वह बंद हो जाएगा। कॉलेज भी बंद हो गया है, वह कर रहा था। बेटे की पढ़ाई का क्या होगा? साल खराब हो जाएगा। वर्षा मन ही मन सोच रही थी वैसे कौन सा बेटा पास हो जाएगा? वह भी तो बाप पर ही गया है। किताबे तो उसे हमेशा दुश्मन दिखाई देती है। मैं ही उसकी किताबों को समेटती रहती हूँ। किताबे तो ज्ञान का भंडार होती हैं। ऐसा ही कहते थे मेरे पिताजी। ...
सवेरे-सवेरे
लघुकथा

सवेरे-सवेरे

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** सवेरे-सवेरे पूना से किसी नारायण जी का फोन आया, गिड़गिड़ाते हुऐ बोले- बेटा! वाट्सएप पर किसी ने आपका संदेश फारवर्ड किया है कि आप कोरोना मरीजों को खाना भिजवा रहे हैं, मेरे भाई इन्दौर के 'महक अस्पताल में भरती हैं, अकेले भर्ती हैं, क्या आप उन्हें खाना भिजवा सकते हैं ? मैंने उन्हें आश्वस्त किया तो वे रोने लगे। मैंने अपने कुछ साथियों के साथ ऐसे लोगों के लिये भोजन बनवाना शुरू किया जो किसी ऐसे अस्पताल में भर्ती हैं, जहाँ चिकित्सा तो हो रही है पर भोजन नहीं मिल रहा। अधिकतर ऐसे मरीज जो अकेले रहते हैं, या पढने या नौकरी के सिलसिले में इन्दौर में रहते हैं। झटपट पूनावाले के बुजुर्ग भाई की सब जिम्मेदारी ले ली। आज वे अस्पताल से डिस्चार्ज हो गये और अपने घर चले गये। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल नि...
फिजुल ख़र्च
लघुकथा

फिजुल ख़र्च

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मां- "बेटा पंडित जी को ५०० रु. देना, तुम्हारे नाम से ज्योत जला देंगे।" दीपक पंडित जी को ५०० रु. बेमन से दे देता है। पंडित जी के जाने के बाद दीपक मां से- ये क्या मां आजकल तुम बहुत फिजुल ख़र्च करने लगी हो, कभी यहां दान करो, कभी गौशाला के लिए चारा दे आओ, कभी पंडित जी को दान, हर साल आज के दिन मंदिर में ज्योत जलाना, ये सब क्या है मां बहुत खर्च हो रहा है कुछ कम करो।" ऐसा कहकर दीपक चला गया, मां ने कुछ नहीं कहा, ऐसे भी मां कहां कुछ कहती हैं, फिर आज तो दीपक का जन्म दिन है। रात होते तक घर में दीपक के दोस्तों की महफ़िल सज़ चुकी थी, जहां महंगें शराब का दौर चल रहा था। जुए पर दांव भी लगाएं जा रहें थे, भले ही शौक के लिए खेला जा रहा था पर सब खेल रहे थे। मां अपने कमरे में बैठकर सोच रही थी कि फिजुल ख़र्च कहां हो रहा है। परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूष...
मासूमियत
लघुकथा

मासूमियत

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   'वक्त की कैद में जिंदगियाँ हैं, मगर चंद घड़ियाँ हम सब सब्र करें, प्राण वायु की आपूर्ति के लिए तो कम से कम।' संपूर्ण विश्व की त्रासदी से हम सब वाकिफ हैं। एक अनाहत भय से हर शख्स परेशान सा है। बच्चें, बूढ़े एवं युवा सब-के-सब आज की स्थिति का गुनहगार स्वयं को मान रहे हैं। स्वार्थांध होकर मानव ने प्रकृति के साथ की हुई ज्यादतियां या खिलवाड़ का नतीजा वर्तमान स्थिति में कैसा भारी पड़ रहा है, सब देख रहे हैं, मान भी रहे हैं। 'वनराजी, वृक्षबेलियाँ हमारे सगे-संबंधियों जैसी है', यह हमारे देश की परंपरा युगों-युगों से चली आ रही है। ऐसे में एक घर की बुजुर्ग महिला सुबह-सुबह उठकर, नहा-धोकर, पुजा की थाल हाथ में लेकर जंगल की ओर निकल पड़ती है। दरवाजे की आहट सुनकर उसका छोटा पोता उठकर, "दादी माँ, रुको। मैं भी आपके साथ जंगल की और आता हूँ," कहकर जल्दी से ह...
तेजू की धुन
लघुकथा

तेजू की धुन

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** लंबे इंतजार के बाद वातावरण बदलने लगा था। महामारी और लाॅकडाउन से लोगों को निजात मिलने लगी थी। रामबाबू भी अपने रूकें कामों को पूरा करने में जुट गये थे। स्कूल के पट खुलने लगे थे। सबके कारोबार गति पकड़ ही रही थी, तो कोरोना की दूसरी लहर बेभान हो उछाले मारने लगी। तेजू अपनी झोपड़ी के बाहर टूटी सी खटिया पर बैठे कभी मुस्कुराता तो कभी गंभीर चेहरा बनाये टेढ़े बांके हाथ किये कुछ बड़बड़ाता था।आते जाते लोग कहते विक्षिप्त है। बच्चे उसकी पीठ पर मारते तो कोई खाने की चीज उसके सामने डाल देते थे। उसे महामारी से कोई सरोकार नहीं था, लेकिन चौकस रहता था। लोगों की भेंट की चीजें लेते समय कहता 'जागते रहो, अरे! पगले भला हो कहते हैं। राम बाबू हमेशा उसे टोकते किन्तु तेजू ने अपनी चाल नहीं बदली। राम बाबू की समाज सेवा में तेजू और उसकी माँ को प्राथमिकता थी। उन्हें तेजू से प्...
महादान
लघुकथा

महादान

कु.चन्दा देवी स्वर्णकार जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** ज्योत्सना अपनी पति जगदीश के साथ हॉस्पिटल में ३ दिन से एक ही बेंच पर बैठी टकटकी लगाए उस कमरे की ओर देख रही है जहां उसका बेटा भर्ती है डॉ. उसे मिलने नहीं दे रहे हैं सड़क दुर्घटना में वह इस तरह से घायल हो गया है की उसे डॉ. किसी भी तरह से नहीं बचा पा रहे हैं। इन ३ दिनों में पति ने अनेकों बार उसे कुछ खा पी लेने के लिए कहा किंतु वह टस से मस न हुई और मन ही मन अनेक देवता देवी देवताओं को मनाती रही कि मेरे पुत्र को जैसे भी बने वैसे ठीक कर दो। अन्दर से डाक्टरों का समूह जैसे ही बाहर निकला उनमें से एक ने जगदीश को अपने पास बुलाकर जो कुछ समझाया उसे सुन कर जगदीश के हाथ पैर ढीले पड़ गये वे एकदम से गिरते-गिरते बचे। पत्नी ने पति के काँधे पर हाथ रखा और कहा- "मुझे बताते की जरूरत नहीं मैंने सब कुछ सुन लिया है। मेरा चिराग कुछ ही पल में जाने वा...
एक पल
लघुकथा

एक पल

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कुछ पल की चहलकदमी के बाद एक जगह ठहर गई 'पिया' उसका पोर पोर दर्द की वेदना से भरा था! कितने हाथ पैर मारे थे! पर उसकी कौन सुनता 'जब भौकाल चरम पर होता है तो सबकी मानसिकता ही बदल जाती है! पर अब क्या 'निपट अकेली रह गईं थी! पिया' निरीह वो सारे वादे बिना निभाये जा चुका था! खुद को ठगा महसूस कर रही थी! पर वो न भूली थी 'उसकी भरी आंखें' चंद बूँदे अश्रु की जो उसने भरसक छुपाने की कोशिश की थी! नही वो भटकाव न था! वो उसका प्रेम ही तो था! जिसे पाने की खतिर खैर उसनें एक लम्बी सांस ली उसे पता था! अब वो कभी वापस नहीं आऐगा' बुखार से तन तप रहा था उसका 'कुछ तो समझ न आ रहा था! उसे'तो 'सच मे चला गया हमेशा के लिऐ वेदांत'.... एक सिसकी और एक और लुढक गई पिया की गरदन 'उसकी निस्तेज आंखों मे लिपटा काली तिरपाल मे वेदांत का शरीर और अब न रही: 'एक पल की प्रतिक्षा..... !! ...
बेबस
लघुकथा

बेबस

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आज, मेरा चिंटू नज़र नहीं आ रहा हैं, पापा ने ऑफिस से आते ही दीपा से पूछा? दीपा बिना कुछ कहें ही किचन में चलीं गई। वह बड़ा हैरान रह गया! उसे लगाआज जरूर "दाल में कुछ काला है"। दीपा, हाथ में चाय का कप लिए उसके सामने खड़ी हो गई। लो चाय, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। क्या हुआ, दीपा, कुछ कहोगी या नहीं? क्या कहूँ, आप पर तो किसी बात का कोई असर नहीं होता? वह चुपचाप सब सुन रहा था। अच्छा, छोड़ो क्या तुम मेरे साथ पार्क में चल रहीं हो? क्यों, क्या अब मेरी भी नाक कटवानी बाकी हैं? दीपा, क्यों छोटी सी बात को इतना बड़ा बनानें पर तुली हो? छोटी सी बात, सुबह चिंटू को रमेश जी, ने खूब खरी-खोटी सुनाई। तो क्या हुआ, वो हमारे पड़ोसी हैं, अगर बच्चे गलती करेंगे तो... वह इतना ही कह पाया था। दीपा, का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका चेहरा लाल हो गया, वह चिल्ला...
परिचित-अपरिचित
कहानी

परिचित-अपरिचित

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** सुबह के नौ बजे थे I गुरु परिचित अपने नित्यकर्म निपट कर चिंतन की मुद्रा में अपने एसी कक्ष में बैठे थे I पर आज उनका मन चिंतन में नहीं लग रहा था I वह सुबह से ही अशांत था और सूर्योदय से अभी तक गुरु परिचित को स्वस्थ चिंतन नहीं करने दे रहा था I गुरु परिचित का मन अस्वस्थ होने का भी एक कारण था I कल देर रात को उनके ख़ास और परमप्रिय लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को एक फार्महाउस में देर रात चलने वाली रेव्ह पार्टी में नशे में धुत , एक लड़की के साथ आपत्तिजनक अवस्था में पुलिस ने गिरफ्तार किया था I गुरु परिचित को यह बात रात में ही सेवक ने जगा कर बताई थी I गुरु परिचित तुरंत पुलिस थाने में जाकर उनके लाडले शिष्य कुमार अपरिचित को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर छुड़ाकर लाए थे I इस बात की उन्होंने किसी को भी कानोकान हवा तक नहीं लगने दी और मिडिया से बचाते हुए नशे मे...
बड़ा भिखारी
लघुकथा

बड़ा भिखारी

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************   नवरात्रि का समय था, सभी देवी मंदिरों में काफी भीड़ लगी हुई थी। आज मंदिर में सभी वर्गों के लोग देवी को प्रसन्न करने में लगे थे।एक सेठ भी अपने परिवार सहित दर्शन करने आए थे। सेठजी पूजा करके अपनी कार की तरफ जाने लगे, तभी एक भिखारी उनसे टकरा गया। सेठजी गुस्सा होकर चिल्लाने लगे, इस पवित्र जगह पर इन मैले-कुचले कपड़ों में घूमते भिखारियों का क्या काम है, पता नहीं ये लोग यहां कहां से आ जाते हैं। "भिखारी बहुत दुखी हुआ। पास में ही भिखारी का अपाहिज बेटा बैठा था, उसने हाथ जोड़कर सेठ से कहा-" सेठजी ये देवी का मंदिर है यहां छोटा बड़ा कोई नहीं होता, फिर भी आप ऐसा सोचते है तो आप ही बताइए कि यहां आप जैसे लखपति लोग देवी के सामने करोड़पति होने की भीख मांगते हैं, वे बड़े भिखारी हुए या हम जैसे अपाहिज, जो सिर्फ दो वक्त की रोटी ही यहां मांगने आते हैं वे बड़े भिखा...
पागल
लघुकथा

पागल

शुचि 'भवि' भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कैसी हो? फोन पर प्रश्न पूछते ही मानो भूकंप आया हो। सरिता स्तब्ध हो गयी थी कि अचानक रेणुका को ये हो क्या गया है। कितना अनाप-शनाप बोल रही थी वो और उसका ये रूप तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। इससे पहले कि सरिता कुछ बोल पाती, रेणुका ने फोन काट दिया था। सुदूर विदेश से सरिता चाह कर भी आ भी तो नहीं सकती थी अपनी बचपन की सहेली से मिलने। उसने कई बार दोबारा फोन लगाने की कोशिश की मगर नाकाम रही। सरिता ने रेणुका के भाई को फोन लगाया और रेणुका के संबंध में पूछा कि वो कैसी है। सरिता की चीख़ निकल गयी ये सुन कर कि एक सप्ताह पहले जो खिलखिलाती रेणुका थी वो आँसुओं के सैलाब में इस क़दर डूबी कि अपना अस्तित्व ही भूल गयी है। पति, देवर और पुत्र तीनों कोरोना की भेंट चढ़ गए थे। १५ दिन पहले ही घर में जश्न था, देवर की सगाई का। सरिता ने समझाया भी था कि...
गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा
आलेख, धर्म, धर्म-आस्था, धार्मिक

गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** तारा जयंती विशेष जयंती चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस वर्ष महातारा जयंती २१ अप्रैल २०२१, के दिन मनाई जाएगी। चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों और उनके भक्तों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। दस महाविद्याओं में से एक हैं-भगवती तारा। महाकाली के बाद मां तारा का स्थान आता है। जब इस दुनिया में कुछ भी नहीं था तब अंधकार रूपी ब्रह्मांड में सिर्फ देवी काली थीं। इस अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई जो माता तारा कहलाईं। मां तारा को नील तारा भी कहा जाता है। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप मान...
ओरा और कोरा
आलेख

ओरा और कोरा

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** ओरा के विषय में बहुत लोग जानते हैं। ओरा मनुष्य के विचार और कर्मों का शूक्ष्म प्रकाश होता है जो शरीर के बाहर प्रकट होता रहता है। इसे तेज भी कहा जा सकता है। जब हम किसी संत या महात्मा या चिंतक के करीब पहुंचते हैं तो उनके ओरा क्षेत्र में हमारे विचार बदल जाते हैं क्योंकि यह एक सूक्ष्म प्रकाश है और प्रकाश किसी को दिखाई नहीं देता बल्कि उससे वस्तुएं दिखाई देती हैं। भले ही वह वायु में तैरती धूल या अन्य वस्तुएं हों। इसी प्रकार ओरा किसी को दिखाई नहीं देता अच्छे विचारों के प्रभाव से हमारी बुद्धि अच्छा महसूस करने लगती है और यह भी होता है कि हमारी अपनी समस्याएं उस क्षेत्र में आकर अपने आप सुलझने लगती हैं। यही ओरा का प्रकाश होता है। यह प्रकाश दूसरे व्यक्ति को पकड़ भी लेता है या दिया भी जा सकता है। यह गंध जैसा घ्राण इंद्रिय द्वारा भी प्राप्त क...
वह गाड़ी वाली लड़की
कहानी

वह गाड़ी वाली लड़की

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीना जी, आज आप बहुत उदास लग रही है। क्या कोई खास कारण है? आपका हँसता हुआ चेहरा, आज मुरझाया हुआ क्यों लग रहा है? मैंने आपको इससे पहले कभी इतना उदास नहीं देखा। क्या आप मुझें अपनी परेशानी बता सकती हैं? अरे, सुरेश जी आप तो यूँ ही इतने परेशान हो रहे हैं। मेरे चेहरे पर लंबे सफर की थकान है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। थोड़ा आराम कर लूँगी। फिर सब ठीक हो जाएगा। क्या हम शाम को मिल सकते हैं, सुरेश जी? जी जरूर, आपकी हर फरमाइश सिर-आंखों पर। अच्छा मैं चलता हूँ, फिर मिलेंगे। वह सुरेश को जाते हुए देखती रही, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया। सुरेश वर्षों से मेरे साथ हैं। यह साथ करीब-करीब बीस साल पुराना है। जब हम कॉलेज में पढ़ते थे। सुरेश हमेशा से ही मस्ती में रहता हैं। उसे तो सिर्फ मजाक करने का बहाना चाहिए। मुझें नहीं लगता वह कभी गंभीर भी होता हैं। म...
नीना
लघुकथा

नीना

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन रात बढ़ते संक्रमण पर काबू पाते और मरीजों की सेवा करते डाॅक्टर नीना निढाल हो टेबल पर गर्दन रखते ही नींद के साथ अतीत के आगोश में चली गई थी। अरे! सुन, बेटीके लिए इतना अच्छा घर मिला है। देर सबेर नीना के हाथ पीले करने ही है। लेकिन पता नहीं उसके दिमाग में कोई कालेज का लड़का छाया हुआ है। जाति भी कुछ अलग है। साफ मना करती है शादी के लिए। देख शिबू नीना की सहेली कह रही थी। लड़के ने अपने परिवार की पसंद की लड़की से शादी भी कर ली है।एक साल होने आया है। फिर भी तेरी बिटिया मानती नहीं। प्रेम में पूरी दिवानी हो गई है। ध्यान रखना शिबू प्यार से समझाना नहीं तो उल्टा गलत काम कर लेगी तो समाज में नाक कट जायेगी। माँ आप इतनी चिन्ता मत करो। मुझे समाज की चिंता नहीं बेटी के भविष्य की चिंता है। पढ़ी लिखी जवान लड़की उसे बहुत सारे बड़े काम करने हैं यह कौन समझाए। मां आज...
आदमी से गधा बेहतर
कहानी

आदमी से गधा बेहतर

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** ‘गाढवे, तुम वास्तव में गधे ही हो।' साहब ने भले ही क्रोध में यह कहाँ पर राजाभाऊ गाढवे बिलकुल शांत ही थे। साहब पर उनकों कतई गुस्सा नहीं आया, बल्कि उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘धन्यवाद सर !‘ अब साहब ज्यादा ही नाराज हो गए। उन्हें लगा गाढवे उनका मजाक उड़ा रहें हैं। ‘गाढवे .....गाढवे, अरे मैं तुम्हें साफ़ साफ़ गधा कह रहा हूँ। धन्यवाद क्या दे रहे हो मुझे ?‘ ‘फिर क्या देना चाहिए सर आपको ? ‘ राजाभाऊ ने फिर विनम्रता से कहाँ। वह बिलकुल शांत थे। ‘कुछ भी नहीं।‘ साहब का पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था ।‘ मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है । तुम अपना काम ठीक से किया करो ।इतनी मेहरबानी तो कर सकते हो मेरे ऊपर ? ‘ ‘यस सर ।‘ राजाभाऊ गाढवे को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनकी गलती कहाँ हुई ? और साहब के इतना नाराज होने की वजह क्या हैं ? उन्होंने चुपचाप साहब के साम...
कवि और चप्पल
व्यंग्य

कवि और चप्पल

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   एक कवि मित्र ने स्व प्रयासों से जैसे-तैसे कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मैं भी निमंत्रित था। मंचीय स्टेज पर चढ़ने से पूर्व चरण पादुकाएं नीचे एक ओर व्यवस्थित रख दी थी। सम्मेलन निपटाकर ज्यों ही चप्पलें ढूंठी, नहीं मिली। सारा पांडाल खगांल मारा। किन्तु चप्पलों का नामों निशान तक न था। हडकंप मच गया कि चोरल वाले कवि महोदय की चप्पलें चोरी चली गयीं। मेरे लिए बिना चप्पलों के एक पग चलना भी दूभर हो रहा था। नंगे पैर घर कैसे जाता? कवि मित्र से प्रार्थना की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने बहुत देर तक विचार किया परन्तु कोई युक्ती नहीं निकली। रात्री के तीन बजे चप्पलों की दुकान कहां खोजते? अन्य कवि मित्रों ने आयोजक कवि मित्र पर दबाव बनाया की मानदेय भले न दें, लेकिन कवि महोदय की चप्पलों की व्यवस्था तो करें। आयोजक कवि मित्र मान...
घटते पाठक, बढ़ती चिंता
आलेख

घटते पाठक, बढ़ती चिंता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************   यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि शिक्षा और साहित्य के विस्तार के बावजूद पाठक वर्ग का अभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह कैसा जूनून है कि हम लिखते जा रहे हैं, औरों से अपने सृजन को पढ़कर प्रतिक्रिया भी चाहते हैं। परंतु अफसोस कि हम औरों को पढ़ना ही नहीं चाहते। आखिर हम जो सोचते हैं, वैसा ही कुछ और लोग भी तो सोचते हैं। तभी भी रचनकार अधिक और प्रतिक्रिया देने वाले मात्र गिने चुने ही होते प्रायः दिख जाते हैं। जो हमें ही आइना दिखाते प्रतीत होते हैं। हो भी क्यों न? बढ़ते आधुनिकीकरण ने हर क्षेत्र में सकारात्मक/नकारात्मक असर डाला है। फिर भला सृजन, पाठन कैसे अछूता रह सकता है। आज जब सृजन क्षमता का विकास अत्यधिक तेजी से हो रहा है, नये सृजनकार तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष कर कोरोना काल में साहित्य के क्षेत्र मे...
दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।
पुस्तक समीक्षा

दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पुस्तक का नाम- पैसा बोलता है रचनाकार- गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' संस्करण- प्रथम प्रकाशक- विश्व साहित्य प्रकाशन प्रयागराज पुस्तक कीमत-१०० पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल पिछले दिनों मैं संगम नगरी प्रयागराज की साहित्यिक यात्रा पर था। प्रयागराज के सुप्रिसिद्ध कवियों, शायरों से मुलाकात हुई। इस दौरान देश के युवा कुशल व्यंग्यकार गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' द्वारा विरचित काव्य कृति 'पैसा बोलता है' प्राप्त हुई। काव्य संग्रह का सघन अध्ययन करने के पश्चात मैंने पाया कि उक्त काव्य संग्रह में अंधी दौड़ में शामिल गिरावट के आखिरी पायदान पर पड़ी गिरती हुई आदमीयत और मानव जीवन के विविध् प्रसंगो को स्वंय में संजोए गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, मुक्तक, कविता सहित कुल ३२ एक से बढ़कर एक रचनाएँ हैं। गंगा प्रसाद त्रिपाठी 'मासूम' की कृतियाँ क्रमश: दूसरी आज...
हजार मुंह का रावण …!!
कहानी

हजार मुंह का रावण …!!

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** “ठहरो !“ डायनासोर से भी कई गुना बड़ा और भारी भीमकाय भ्रष्टाचार दौड़-दौड़ते बड़ी मुश्किल से ठहर पाया I फिर भी वह बहुत आगे तक आ ही गया था I उसके पावों में लाखों अश्वों का बल आ गया था और अनेक हाथियों के पेट से भी बड़ा भारी उसके पेट का आकार हो गया था, इसलिए उसने खुद को सम्हालने में बड़ा समय लियाI ठहरने के बाद वहीँ खड़े-खड़े बड़े कष्ट से उसने अपनी गर्दन घुमा कर थोडा पीछे की ओर देखा और पाया कि लोकतंत्र उसके पीछे-पीछे दौड़ा चला आ रहा थाI भ्रष्टाचार ने यह भी देखा कि लोकतंत्र के पीछे-पीछे लोकतंत्र के प्रहरी आम मतदाताओं की भी बहुत बड़ी भीड़ चली आ रही थी I लोकतंत्र हांफते हांफते भ्रष्टाचार के पास आकर रुका I “अरे ! कब से आवाज लगा रहां हूँ ? ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा? “थोडा ठहर जा !“ लोकतंत्र ने तनिक नाराजी भरे स्वर में कहाँ ! भ्रष्टाचार अपने भीमकाय शरीर क...
असली रंग
लघुकथा

असली रंग

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सोमेश जैसे ही ऑफिस से घर पहुँचा सीमा ने कहा चाय रेडी है पहले आप फ्रेश हो जाओ फिर बुलबुल को आज रंग गुलाल दिला लाना कब से यही रट लगाये बैठी है सोमेश ने कहा ठीक है बुलबुल से कहो रेडी होने मैं ले चलता हूं उसे। बुलबुल झट से तैयार हो कर आ गयी और बहुत खुश नजर आ रही थी। सोमेश बुलबुल के साथ मार्केट गये। वहाँ उसने बुलबुल की पसंद का सारा सामान खरीदा पर सोमेश ने एक बात नोटिस किया कि बुलबुल जो भी सामान लेती पापा एक और प्लीज कहकर सारा सामान का एक और सेट खरीद लिया और अलग-अलग कैरी बेग में रख लिया। लौटते वक्त पापा ने देखा कि आज बुलबुल बहुत खुश लग रही थी और उसे खुश देखकर पापा भी खुश थे। घर पहुँच कर सोमेश ने सीमा से कहा- पता है आज हमारी बुलबुल बहुत खुश है उसने सारा रंग गुलाल पिचकारी मास्क और भोपू के दो-दो सेट खरीदे हैं। इसी बीच बुलबु...
प्रीति चित्रण
कविता, डायरी

प्रीति चित्रण

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** मौन धारण कर वचन मेरे, लज्जा आए प्रीत मेरे। मगन प्रेम सांसे सत्य ही है, शब्द अनुराग है मेरे।। दुखद: प्रेम सदियों से चला आया। माया, लोभ ने विवश बनाया।। कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए, विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं। प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण मन को भाता यह बोध विधान।। बजता प्रेम का है यह अलौकिक संदर्भ जगत में। देखो सजना सजे हैं हम प्रेम इन जीवन अब हाट पे।। स्वर का विश्वास नहीं, देखो माया संसार में। वाणी के बाजे भी अब तो, टूट गए हैं आस में।। प्याला मदिरा का मनमोहक दृश्य लगे जीवन आधार में। बिखरे हैं यह सज्जन देखो, टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।। कलयुग में सजती है स्वर्ण कि यह लंका। ताम्र भाती प्रेम बना है, प्रेम यह संसार में।। मैं चला हूं उस पथ पर अग्रसर कटु सत्य वचन से। मिथ्य वाणी ना बोलता सदा करूं मनमोहक जीवन से।। एहसास है मेरे, हमदम प...
रंगबिरंगी
कहानी

रंगबिरंगी

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** मंच पर से वक्ता बोल रहा था। अचानक वह बोलते बोलते रुक गया। सबसे अंतिम पंक्ति की ओर उसने टेढ़ी नजरों से देखा, एक क्षण देखता रहा और फिर विषय से हट कर बोला, “मुझे ऐसा लगता हैं कि अंतिम पंक्ति में बैठे हुए चारों सज्जन अगर मेरी बात शांति से सुने तो बेहतर होगा, इससे वें भी मेरी बात ठीक से समझ सकेंगे और दूसरों को भी कोई परेशानी नहीं होगी और वें सब भी शांति से मेरी बात सुन सकेंगे। आखिर हम लोग सेवानिवृत्ति के पश्चात् आने वाली समस्याओं पर ही तो चर्चा कर रहें हैं, और यह सबके भले के लिए ही तो हैं।“ वें चारों सकपका गए, फिर मुस्करा दिए और गर्दन हिला कर शांति से भाषण सुनने का वक्ता को आश्वासन दिया। वक्ता फिर से विषय पर बोलने लगा। परन्तु उन चारों की हरकते बदस्तूर जारी थी। इन अभिन्न मित्रों की शरारती चौकड़ी अनेक वर्षों के उपरान्त एकत्रित हुई थी और जिगरी दोस्त...
पुतला
कथा

पुतला

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** मुग़ल बादशाह औरंगजेब को जिसने नाकों चने चबाएं, जिसने हिन्दवी स्वराज्य की नीव रखी, ऐसे राष्ट्रभूषण और महाराष्ट्र में घर घर पूजे जाने वाले, छत्रपति श्री शिवाजी महाराज का यहाँ इस शहर में इस चौराहे पर काले घोड़े पर विराजमान सुन्दर ऐसा मनमोहक बड़ा सा पुतला गर्व के साथ आने जाने वालों का बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता हैं। घोडा भी दो पावों को ऊपर कर, गर्दन ऊंची कर, मानों युद्ध में जाने के लिए तैयार हो इसी अंदाज में अकड के साथ खडा है। चौराहे के बायीं ओर थोडा ऊपर की ओर चढ़ने के बाद हनुमानजी का मंदिर हैं, और थोडा आगे जाने के बाद मेरा ऑफिस था। एकदम बायीं ओर मुड़ते ही कुछ झोपड़ियाँ थी। अब मेरा ऑफिस में जाने का रोज का यहीं रस्ता था। मैं भी क्या कर सकता था? रोज मुझे छत्रपति श्री शिवाजी महाराज और बजरंगबली के दर्शन अनायास हो ही जाते थे। हाल ही में मेरा तब...
मृत्यु का सुख
कहानी

मृत्यु का सुख

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** ताराबाई के शरीर से प्राण निकले और आखिरकार इस भवसागर से उसको मुक्ति मिल गई। अब ताराबाई के शरीर से प्राण निकले जरुर पर उसकी आत्मा का क्या? भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं, ‘जो मरता हैं वह शरीर। आत्मा कभी नहीं मरती। और प्रत्येक शरीर में एक अदद आत्मा भी तो होती ही हैं। अर्थात जिसे मृत्यु के मुख में जाना होता हैं वह शरीर और जिसका मृत्यु कुछ भी नहीं बिगाड सकती वह अजरामर आत्मा। इसीलिए हम सब को हमेशा यहीं बताया जाता हैं कि आत्मा हर जन्म में हमेशा शरीर रूपी कपडे बदलती रहती हैं और यह कि आत्मा अमर होती हैं । अब सवाल यह कि ताराबाई की मृत्यु के बाद ताराबाई का शरीर छोड़ने वाली और ताराबाई की अमर कहलाने वाली आत्मा अभी तक कहाँ भटक रही होगी? ज़रा ठहरिए। कहाँ भटकेगी? अभी तो इसी घर में, नहीं-नहीं इसी कमरें में भटक रहीं होगी? अभी तो ताराबाई की मृत देह जम...