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लघुकथा

बिजी लोग
लघुकथा

बिजी लोग

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** आज छुट्टी थी, ऑफिस की और मैं फ्री था। बहुत दिनों से फेसबुक और मैसेंजर नहीं देख पाया था, दोपहर के खाने के बाद सब पोस्ट देख लूँगा टाइम निकालकर, दोपहर में नींद की झपकी लेना कैंसिल। पत्नी भी पहले तो दोपहर घर के काम काज से फ्री होकर होकर पास-पड़ोस में महिलाओं के घर चली जाती थी बतियाने। लेकिन अब वो भी दोपहर में मोबाइल लेकर बैठ जाती है, टाइम पास कर लेती है, इधर-उधर मोहल्ले की औरतों से तो मोबाइल ही भला, बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब दोनों दोपहर में साथ होते हैं। ज्यादातर तो छुट्टी के दिन भी वो ऑफिस निकल जाता है। लंच वगैरह से फ्री होकर उसने मोबाइल उठाया तो महिला मित्र की हॉट पिक सामने आ गई, यह महिला मित्र हमेशा ही अपने पिक डालती रहती थी, और उसने "वेरी नाइस" "सुपर" गिफ्ट कमेंट भेज दिया, फिर उसके बाद दूसरी पोस्ट को भी देखने लगा ज्यादातर...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी बातों को ...
ताड़न की अधिकारी
लघुकथा

ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी। तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। "अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।" आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई। बोलो क्या बात है? "तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस! क्या है यह महिला दिवस ! तुम औरतें भी ना ! पता नहीं कौन सा फितूर सवार है ! घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने। तुलसीदास जी ने सही कहा है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सब ताड़न के अधिकारी।। यह सुनते ही...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी मजबूरी है ब...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
जानवर जाने जानवर की भाषा
लघुकथा

जानवर जाने जानवर की भाषा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक अजीब सा चिड़ियाघर था जो किसी शहर में न होकर एक गॉंव के जंगल में स्थित था। इस चिड़ियाघर में अन्य जानवरों के साथ गीदड़ो को भी रखा गया था जो देखने में बहुत खूॅंखार थे। उनके दॉंत डरवाने लगते थे और उनके दॉंतो में लम्बे-लम्बे दॉंत जिन्हें कीलें कहा जाता है, उनके खूॅंखार होने का प्रमाण देते थे। हमारे गॉंव के लोगों के खेत भी उसी चिड़ियाघर के आस-पास ही स्थित थे। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ अपने खेत पर गया हुआ था और हम अपने खेत पर आम के पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रहे थे। तभी अचानक उस चिड़ियाघर से एक गीदड़ का बच्चा निकल कर हमारे पास आ गया। मैं उसे पकड़कर वापस चिड़ियाघर की तरफ ले जाने का प्रयास कर रहा था और इसी पकड़म पकड़ाई में उसका एक दॉंत मेरी उंगली में लग गया लेकिन मैं उसके दॉंत लगने के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुआ क्योंकि ...
सच्चा भक्त
लघुकथा

सच्चा भक्त

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग-अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं। मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन मे...
बदलाव
लघुकथा

बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया। "आज कैसे फुर्सत मिल गई?" शम्भू ने कहा- "कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।" "बोलो क्या बात है?" "आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।' उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए। बहु अनामिका सोचने लगी- "पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!" इतने में काशीनाथ जी घर आ गए। "शम्भू कहा है?" "ऑफिस गए है" बहू ने कमरे से जवाब दिया। शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- "...
संवेदना
लघुकथा

संवेदना

माधवी तारे (लन्दन से) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ट्रिंग-ट्रिंगsss मोबाईल की रिंगटोन बज रही थी। रखमा की राह देखते-देखते घर के आवश्यक कार्य सम्पन्न कर प्रतिभा जरा-सी लेटी ही थी। ढेरे सारे काम अभी अधूरे थी। 'बाद में देखूँगी'- कहकर आराम करने के मूड में थी वह, पर दीर्घ काल तक बजती रिंगटोन ने हैरान कर दिया। फोन उठाना ही पड़ा। हैलो !! कौन बोल रहा है? आवाज अपरिचित-सी लग रही थी। मैं बोल रही हूँ मैडम! रखमा बाई की बड़ी बेटी हूँ। क्या कहना है? मॅडम जी! आज सवेरे मम्मी फिसलकर गिर गई है। उसके पैर में फ्रैक्चर हुआ है। उसे मैं सरकारी अस्पताल में प्लास्टर लगाने के लिये ले आयी हूँ। आधी-अधूरी बेहोशी की अवस्था में उन्होंने मुझे सिर्फ आपके घर में यह बात सूचित करने को कहा है। अरे, भगवान! ये कैसी आफ़त आन पड़ी है? अब क्या करूं? काहे का आराम? उठ जाओ, अधूरे सारे काम मुझे ही पूर्ण करने हैं। घर क...
घर वापसी
लघुकथा

घर वापसी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "रमाकांत जी ! यहाँ से जाने के बाद हमें भूल तो नहीं जाओगे"? अरे ! कैसी बात करते हैं आप? बीच बीच में आप सब से मिलने आता रहूँगा। आज पूरे पाँच वर्षों बाद रमाकांत जी का पोता उन्हें लेने आया है, एक-एक दिन गिन रहे थे आखिर वह दिन आ ही गया। संगी-साथी छेड़ते रहते थे "अरे यार ! स्वीकार कर लो वृद्धाश्रम को, यही हम लोगों का घर है।" पर वे कहते रहे- न वह आवेगा जरूर। मृदुभाषी रमाकांत जी ने सबको बतलाया था कि बहू बेटा सड़क दुर्घटना में मारे गये, पोता नवोदय विद्यालय के होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। उसको मैंने समझाया था- "कि तू पढाई पूरी कर, कुछ बन तब तक मैं वृद्धाश्रम में रह लूँगा।" आज वह एक अच्छी नौकरी कर रहा है, उसने मुझसे वायदा किया था कि नौकरी लगते ही वह मुझे लेने आ जाऐगा, और वह आ गया" कहते कहते खुशी से रमाकांत जी का गला रूद्...
वो प्यारी सी मुस्कान लिए
लघुकथा, सत्यकथा

वो प्यारी सी मुस्कान लिए

स्वप्निल जैन छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के कुछ दिन बाद की बात है, मैं अपनी दुकान पर बैठा था, तभी कुछ ९-१० साल की उम्र के आस-पास की वो प्यारी सी मुस्कान लिए दिल में कुछ अरमान लिए हाथों में सिर्फ हां सिर्फ दो गुब्बारे लिए मेरे पास आई। मैंने पूछा हां बेटा बोलो, वो बिटिया बोली भैया मेरे गुब्बारे खरीद लो, मुझे जरूरत नही थी बलून की पर वो मासूम सी बच्ची निरास स्वर में उम्मीदों से बोली थी, उस समय तो मै सोच में पड़ गया कि इस बच्ची को क्या कहूँ। फिर आखिर मैंने उससे पूछ ही लिया बेटा क्या आप पढ़ाई भी करते हो, वो बोली नहीं मुझे खाने के लिये गुब्बारे बेचने जाना होता है, उस मासूम की इतनी बातें सुनते ही मेरा हृदय पसीज सा गया मैंने एक पल भी देर ना कि और उस बच्ची के दोनों गुब्बारे खरीद लिये, उसका चेहरा मंद-मंद खिल सा गया। वो प्यारी सी मुस्कान लिए कुछ बोली, भैया यदि आपके पा...
स्वर की मधुरता
लघुकथा

स्वर की मधुरता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १० साल की आरिया काफी समय बाद आज अपने कमरे की खिड़की से, अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा से रक्ताभ हुए आकाश में पंख पसारे पक्षियों की चहचहाहट को केवल महसूस कर पा रही थी। ४ महीने पहले "कनेक्टिव टिशु डिसऑर्डर" नाम की बीमारी ने उसकी सुनने की क्षमता को छीन लिया था। आरिया मतलब मेलोडी माने स्वर की मधुरता। ४ साल की उम्र से ही आरिया का संगीत में रुझान था। जब उसकी उंगलियां गिटार पर चलती और खनकती आवाज़ में वो कोई गाना गाती तो लोग अपनी सुध बुध भूल जाते। संगीत के प्रति उसका लगाव धीरे-धीरे उसका जुनून बनने लगा था, उसका सपना था कि एक दिन वह एक मशहूर सिंगर बनेगी। लेकिन आज पक्षियों के कलरव ने उसे आशा की नई किरण दी थी। धीरे-धीरे आरिया में आत्मविश्वास बढ़ने लगा, क्या हुआ अगर वो सुन नहीं सकती थी, उसने संगीत को महसूस करना शुरू कर ...
सुंदर
लघुकथा

सुंदर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** पार्टी में रंग बिरंगे परिधानों में गहरे श्रंगार करे दादी की सहेलियों को देख आशू ने अपनी साधारण सी दिख रही दादी से कहा, "दादी, आपकी सब सहेलियां कितनी सुंदर लग रही हैं, आप उतनी सुंदर नहीं हैं।" अपने आठ वर्षीय पोते की बात सुन कपिला मुस्कुरा दी, कैसे वह इस बच्चे को बताए कि ये सब गाढ़े श्रंगार करके अपनी असली उम्र को छिपाने का प्रयास कर रही हैं। उसी रात में आशू के साथ टहलते समय ठंड से ठिठुरती एक गरीब वृद्धा को देख कपिला ने अपना शॉल कंधे से उतारकर उसको उढ़ा दिया। वृद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर बोली, "बेटी, तू बहुत सुंदर है।" आशू ने अपनी दादी के चेहरे की ओर देखा, उसे अपनी दादी बहुत सुंदर लग रही थीं। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद वि...
नेहानुबन्ध
लघुकथा

नेहानुबन्ध

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम की लंबी उम्र बहुधा उसकी निस्वार्थता पर निर्भर करती हैं। मधु जब अपने बाबुल का अंगना छोड़ पी की देहरी आई तो मन मे एक दृढ़ संकल्प तो था पर एक अनजान सा भय मिश्रित आनंद भी था। बचपन से सौतली माँ के कठोर सानिध्य में पली मधु ने कष्टो व दुखो को बहुत नजदीक से देखा था। बात बात पर पिटना, भूखे ही सो जाना आदि की तो मधु को खूब आदत थी। पर कितनी भी कठोर क्यों न हो, मधु अपनी मां को हृदय से चाहती थी। ससुराल में तो धन दौलत वैभव सब कुछ मधु को मिल गया था। पर मधु माँ को नही भूल पाई थी। ससुराल में सिर्फ उसके ससुर और पति बस दो ही लोग थे। विवाह के लगभग एक साल बाद मधु के पिताजी यकायक चल बसे। घर का सारा काम मधु से करवाने वाली मां पर मानो वज्रपात पड गया। दुकान बंद हो गई और कुछ ही दिनों में खाने के लाले पड़ने लगे। मां को रह-रह कर अपनी सौत...
पितृ देव
लघुकथा

पितृ देव

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तुम सो रही क्या? एक हट्टा-कट्टा कद्दावर पुरुष श्वेत वस्त्रधारी, लम्बी श्वेत कपसीली दाढ़ी और सिर में बड़े-बड़े सफेद बाल, निर्मल छवि देख विनीता अचकचाकर उठ बैठी। उस महापुरुष के मुखमंडल पर ऋषि-मुनियों की तरह आभा झलक रही थी। विनीता चरण स्पर्ष करते हुए बोली-बाबा आप यहां ! बाहर कोई नही है क्या? बाबा जी आप यहां आने का कष्ट क्यों किये। मै वहीं आ जाती। नही बेटी-मुझे तुमसे ही मिलना था इसलिए मैं उधर गया ही नही। सीधे यहीं चला आया। अच्छा ! कहिए ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ। बेटी ! मैं बस यही कहने आया हूँ कि अब पितृ पक्ष आ गया है। लोग श्राद्ध के बहाने अनेकों तरह के दिखावे और भुलावे में आ जाते हैं। कम से कम पांच-सात पंडितों को आमंत्रित करेंगे। घर परिवार या दोस्तों को बुलाएंगे। एक वृहद भोज का आयोजन होगा। ऐसा लगेगा जैसे कोई जलस...
धोखा
लघुकथा

धोखा

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रमा और राज साथ ही पढ़ते थे, रमा उसकी लच्छेदार बातों पर खूब हँसती जल्द ही बीस साला प्यार के गिरफ्त में आ गए दोनों। कस्मे-वादों की फेहरिस्त भी बना ली दोनों ने। रमा ने उसे अपना सब कुछ मान लिया, राज पर ऐतबार उसे इतना कि एक दिन घर से चुपचाप उसके साथ चल दी, सब कुछ छोड़-छाड़ कर अपना अशियाना सजाने के लिए। प्यार में डूबे दोनों ने रजत के एक दोस्त के यहॉँ पनाह ली। सपनों में खोयी रमा को अपना घर बनाने की तमन्ना थी, दो दिन बाद ही रमा बोली अब आगे? चलें कहीं और? नौकरी करनी होगी वरना कैसे चलेगा काम? रजत ने लापरवाही से कहा क्या जल्दी है? अभी आराम से रहो रमा ने फिर पूछा "पैसे कहाँ से आएंगे जो मैं लायी थी वो ख़त्म हो गए" अब रजत झटके से तुरंत बोला ये है ना सुरेश ये देगा। रमा को शंका होने लगी अरे तो चुकाओगे कैसे? रजत ने धीरे से कहा तुम चुकाओ...
दया भावना
लघुकथा

दया भावना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कड़ाके की ठंड में लोग घरों में दुबके बैठे थे गली मोहल्ले में इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। एकाएक सड़क पर भजन गाने की आवाज सुन मेरे नव वर्ष के पोते ने खिड़की से झांक कर देखा उसे भजन गाने वाला एक भिकारी दिखाई दिया जिसके तन पर केवल एक फटा कंबल और कंधे पर एक झोला लटका दिख रहा था। वह दुनिया से बेखबर अपने में मस्त भजन गाता चला जा रहा था ना किसी से आशा ना ही मन में कोई इच्छा थी। हम सब अपने सुबह के कामों में व्यस्त थे पोते ने उसे अपने घर के आंगन में बुलाया और बिठा कर दो क्या हुआ दादी के पास आकर बोला दादी दादी बाहर एक भिखारी बैठा है क्या मैं उसे अपना छोटा कंबल ओढ़ने के लिए दे दूं। उसके पास फटा कंबल है थारी बोली तुम्हारा कमल बहुत छोटा है तो मेरा बड़ा कंबल उसे दे दो पोता ध्रुव मां से बोला मां उसे कुछ खाने को दोगी क्या...। बेचारा ...
नीरू की जिद
लघुकथा

नीरू की जिद

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** इस बार अर्धवार्षिक परीक्षा में नम्बर क्या कम आया कि नीरू पूरी तरह से जिद पर उतारू हो गई। कहने लगी कि मुझे तो दीदी वाला ही रूम चाहिए। दूसरे रूम में बाहर के शोर शराबे में पढ़ाई नहीं हो पाती। मुझे तो यही वाला रूम चाहिए। चारू प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है उसे किसी तरह का व्यवधान न हो इसलिए एकान्त कमरा दे दिया गया था। बार-बार समझाने के बाद भी जब नीरू नहीं मान रही थी तो नंदिता को अचानक उसकी और भी पुराने जिदें याद आने लगीं। सोचने लगी- इसे बार-बार हर बार दीदी की ही चीजें क्यों चाहिए? खीझ भरे मन में अनायास ही अतीत के पन्ने पलटने शुरू हो गए। जब अपने जन्म दिन पर उसने फ्राक के लिए जिद कर लिया था। बोलने लगी थी माँ मुझे भी अपने जन्म दिन में दीदी जैसी ही फ्राक चाहिए। नहीं बेटा! तुम्हारे लिए उससे भी अच्छी फ्राक आएगी। दीदी की ...
जो मुझे भा गई
लघुकथा

जो मुझे भा गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दो वर्ष पश्चात घर जा रहा हूँ। टेक्सी में बैठे-बैठे पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। सौंदर्य प्रतियोगिता पर नज़र पड़ते ही मुझे बहन के ब्याह का नज़ारा याद आ गया। बहन की वह परी सी सहेली मानो आकाश से उतर कर आई हो। सितारों जड़ी झक श्वेत साड़ी व लम्बे लहराते बालों में बिखरी मोगरे की लड़िया। नाम मात्र के गहने कह रहे थे... मोहताज नहीं जेवर का जिसे खूबी ख़ुदा ने दी। उसका पूरी जिम्मेदारी से माँ का हाथ बटाना मैं आज तक नहीं भुला नहीं पाया। इसी बीच माँ पापा ने कई रिश्ते सुझाए। बहन से उस सुंदरी के बारे में कई बार पूछा। विदेश में रह रही बहन उसका पता नहीं लगा पाई। चाय की तलब लगने पर टेक्सी रुकवाई। रेस्तरां में लगा कि मोगरे की खुशबू फैल रही है। सामने टेबल पर श्वेत पौशाक में पीठ किए बैठी एक युवती बैठी है। हाँ, बस लम्बी चोटी ही लहराती दिखी। ज्यों ही वह पलटी म...
विश्वास
लघुकथा

विश्वास

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** रूपल का कॉलेज में ग्रेजुएशन का अंतिम साल था। परीक्षा शुरू होने के पहले सभी सहेलियों ने अंतिम पार्टी रखी थी। ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है, फिर कब और कहां मुलाकात होगी, यही वार्तालाप चल रही थी। सीमा बीच में बोल पड़ी...अरे रूपल जी ...रंजन जीजू आई मीन रंजन बाबू का क्या होगा.. हमें भी तो बताओ। रंजन कॉलेज का सबसे होनहार व अनुशासित लड़का था। वह रूपल की सादगी व सुन्दरता पर मरता था। जब पहली बार रूपल कॉलेज ज्वॉइन किया था तो रूपल के पिता महेश बाबू ने रूपल से बस इतना ही कहा था की, बेटा तुम्हारे साथ मेरी लाज भी कॉलेज जा रही है। मेरी लाज अब तुम्हारे हाथों में हैं, यह हमेशा महसूस करना। मुझे पूरा विश्वास है मेरी बेटी मेरा शीश नहीं झुकने देगी। रूपल ने रंजन के बारे में केवल अपनी मां को बताया था। महेश बाबू घर के आंगन में चा...
नजीर
लघुकथा

नजीर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद्रकांत पांडे, जिसे बबलू पांडे........"भैया जी" कहकर पुकारता था। टीवी के हर चैनल पर सब उसके खूंखार अपराधी हत्यारे होने का सबूत दे रहे थे। जबकि....बार-बार उसकी आंखों के सामने चंद्रकांत पांडे का चेहरा सामने आ रहा था जब उसने आखिरी बार उसे देखा था। उसके चेहरे और आंखों में इतनी मायूसियत थी। वह खूंखार अपराधी जिसे मीडिया आंतकवादी भगोड़े का नाम दे रही थी जिस पर दो लाख का इनाम पुलिस रख चुकी थी। उसकी जिंदगी का सच यह था जिसे हर पार्टी उसे अपने साथ मिलना चाहती थी क्योंकि वह उनके लिए वोट इकट्ठी करने का माध्यम है और हर पार्टी एक से एक लालच देकर उसे अपनी तरफ करना चाहती थी उसको अपने हाथ की कठपुतली बनाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी नें कैसे मोहरा बनाकर आज एक खूंखार अपराधी घोषित कर दिया था। आज वह हार गया था। क्योंकि हर तरफ से ...
बटवारा
लघुकथा

बटवारा

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** घर भर में कोहराम मचा था, तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी, जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे। लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है, जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं, और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है, ...
योग्यता पर भरोसा
लघुकथा

योग्यता पर भरोसा

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************  रोज की तरह दूर से आती मधुर संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि आज माधवी को बिल्कुल नहीं भा रही थी ... पता नहीं लोग २४ घंटे क्यों संगीत सुनते रहते हैं?... उसके बेटे का चयन जो नहीं हुआ था-संगीत प्रतियोगिता में... योग्यता की कोई कद्र ही नहीं है... उसे चुन लिया जिसे संगीत की कोई समझ नहीं... बड़े बाप का बेटा जो ठहरा... एक कड़वाहट-सी उसके भीतर घुलकर उसके शरीर को कसैला बना रही थी... तभी महरी की आवाज ने उसे चौंका दिया- "बीबी जी हमार बचवा का एडमिसन बड़े सकूल में हो गया है ! वो मोहल्ला के सकूल वालों ने तो भरतीच नी किया था...पर मेरे को उसकी योग्यता पे भरोसा था..."कहकर अपने ‌काम में लग गई, लेकिन अनजाने ही माधवी को योग्यता पर भरोसा रखने का संदेश दे गई। अब माधवी का मन हल्का हो गया था। उसे अब वह संगीत की ध्वनि ‌पुनः मधुर लगने ‌‌लगी ...
आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में
लघुकथा

आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अपनी पचासवीं लघु कथा पुस्तक के विमोचन की ख़ुशी में मैं प्रकृति की गोद में अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजस्थान से कश्मीर गई। सुबह की ठंडी-ठंडी हवाएँ मन को सहला रही थी व तन को रह-रह कर सुकून दे रही थी। हाथ में चाय का कप था। हल्की-हल्की बारिश की बूँदे भी थी जो बरस कर भी दिखाई नहीं दे रही थी। इतना मनोरम दृश्य किसी सूटकेस में भर करके मन सहेजकर रख लेना चाहता था। पलकें अकिंचन भाव से अनिमेष हो चुकी थी मानों पर्वत-शृंखलाएँ चिरनिद्रा में सो रही है बिलकुल शांत। इसी बीच एक कुत्ते के बच्चे की आवाज़ें आई। उसने मेरी मंत्रमुग्ध तंद्रा को भंग कर दिया था इसलिए मैं रौद्र भाव से उसकी ओर गई। मेरे आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब मैंने उसे एक छोटे से बालक के हाथ में देखा। दोनों में मासूमियत कूट-कूट कर भरी थी उतनी ही उनके चेहरे पर दरिद्रता भ...
अधिकार
लघुकथा

अधिकार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता का रो-रो कर बुरा हाल था।पति को खो देने की पीड़ा ने उसे तोड़ कर रख दिया था। अभी शादी को कुछ ही साल हुए थे। दो छोटे-छोटे फूल से बच्चे थे। जो रोज पापा का इंतजार कर रहे थे। मम्मी, पापा कब आएंगे? उनके मासूम सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे। देखते ही देखते साल गुजर गया था। पर उसकी आँखों के आँसू सूख नहीं रहे थे। वह बुरी तरह से टूट गई थी। उसे अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में लग रहा था। कहने को पति का भरा-पूरा परिवार था। जेठ, देवर सभी थे। पर भाई के मरने के बाद, उसे कोई भी सहारा देने को तैयार नहीं था। उन्हें उसकी चिंता नहीं थी। पूरा परिवार ज़ायदाद के पीछे था। उन्होंने उसका हिस्सा भी हड़प लिया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर, उसे घर से बाहर कर दिया था। वह अपनी माँ के घर पर ही निराशा में दिन तोड़ रही थी। माँ भी अपनी बढ़ती उम्र से परेशान ...