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लघुकथा

सुख
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सुख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** भागमभाग की जिंदगी। कभी व्यापार के सिलसिले में दस दिन बाहर तो कभी-कभी शहर में रहकर भी रात, बारह बजे तक घर नहीं आना। जिंदगी बड़ी तेजी से भागी जा रही थी और मुकेश को पल भर भी फुरसत नही थी। मां कहती तो कह देते कि, यही समय है कमाने का। पत्नि कहती तो कभी-कभी गुस्से में पारा चढ़ जाता की,....कमाउंगा नहीं तो यह सब सुविधाएं कहां से मिलेगी। तुमको घर में बैठकर क्या पता चलता है। हर दिन व्यंग सुनकर वीणा ने बोलना ही बंद कर दिया। अचानक परिस्थितियों ने सबको घर में रहने को मजबूर कर दिया। मुकेश को इन दिनों में लगा की कितना भागा में। जरुरत तो परिवार के प्यार की थी, जरूरत तो स्नेह की थी। भौतिक सुखों में आज कुछ काम नहीं आ रहा था। बस एक साथ बैठकर बतियाता परिवार सब सुखों से उपर था। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमी...
पिंजरा
लघुकथा

पिंजरा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** लॉकडाउन के दौरान घर की बालकनी में खड़ी मीरा आम के पेड़ पर बैठी चिड़ियां की बाते सुन रही थी। एक गौरैया पास बैठी डॉक्टर चिड़िया से बोली-"क्यो बहन आजकल इतना सन्नाटा क्यों हैं? सारे इंसान कहाँ गायब हो गए? डॉक्टर चिड़िया बोली - "हाँ बहन सुना है कोई कोरेना वायरस आया है, पूरे विश्व मे इंसानों को मार रहा है। लोग एक दूसरे से दूर रहेंगे तो बचेंगे वरना मर जायेंगे।" गौरैया बड़ी दुखी हुई और कुछ सोचने लगी! फिर बोली - "एक बार मैं उड़ती हुई एक घर मे चली गई थी, बहुत बड़ा और सुंदर घर था। वहाँ एक बड़े पिंजरे में तरह-तरह के पंछी थे। खूब सारा दान रखा था पर पीने के पानी के कटोरे औंधे पड़े थे। शहरों में इंसानों के खुद के लिए पानी की किल्लत है तो पंछी भी प्यासे थे। मुझे देख सारे पंछी उड़ने को फड़फड़ाने लगे। आज इंसान भी वैसा ही अनुभव कर रहे होंगे ना!" डॉक्टर चिड़िया ...
चुनौती
लघुकथा

चुनौती

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** अच्छा बच्चों अब हम कल नया पाठ पढ़ेंगे...कहते हुए नीलिमा ने मोबाइल ऑफ कर दिया। नीलिमा हायर सेकेंडरी स्कूल में रसायन शास्त्र व्याख्याता के पद पर पदस्थ है और इस लॉक डाउन के समय में मोबाइल पर ज़ूम एप के माध्यम से बच्चों को विज्ञान, केमिस्ट्री,बायोलॉजी आदि विषयों के पाठ पढ़ा रही है। मम्मी-मम्मी आपका फ़ोन दो ना, मुझे गेम खेलना है कहते हुए मिनी ने नीलिमा के हाथ से मोबाइल ले लिया, मिनी नीलिमा की बिटिया है जिसे अभी नौंवी कक्षा में जनरल प्रमोशन मिला है। ठीक है थोड़ी देर गेम खेलकर कुछ देर साइंस भी पढ़ लेना बेटा, नीलिमा ने मिनी को समझाते हुए कहा। ओके मम्मा,कहते हुए मिनी फ़ोन पर गेम खेलने लगी, नीलिमा किचन में जाकर खाने की तैयारी करने लगी, थोड़ी ही देर में मिनी आकर नीलिमा से बोली मम्मा ये फेस बुक पर चारु आंटी का चैलेंज है आपके लिए साड़ी में फ़ोटो डा...
गौरी मौसी
लघुकथा

गौरी मौसी

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** लोकडाउन के तीसरे दिन पडोसन गौरी मौसी दीन भाव से अध्यापिका डॉ. अर्पिता से कहती हैं : "बहन जी पाँच सौ रूपये की मदद हो सके तो करो न ! तीन दिन से मेरी अगरबत्ती का ठेला बन्द है। जब लोकडाउन पूरा होगा तब आपको लौटा दूँगी।" डॉ. अर्पिता बिना कुछ कहे, पूछे मधुर स्मित के साथ एक हज़ार रूपये उनके हाथ में थमा देती है। "चिंता मत करो, जरुरत पड़े तो माँग लेना, पर अपने घर में ही रहना। "इसके बाद डॉ. अर्पिता रोज जान बूझकर ज्यादा रसोई बना के उसे देती है : मौसी आज मुझसे ज्यादा बन गया है, लीजिए। "गौरी मौसी का चेहरा अहोभाव से खिल उठा....।। . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच...
अफवाह
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अफवाह

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** वह बदहवास सी दौड़ती आई थी। अम्माजी मुझे काम से न हटाइये, अम्माजी मुझ गरीब पर दया कीजिए। क्या हुआ कमली..... अचानक ऐसे क्यों दौड़ी चली आई है। कहा था ना तुझे अभी काम पर नहीं आना है। नहीं-नहीं अम्माजी मुझे कुछ नहीं हुआ है। कुछ लोग बोल रहे थे .... अब काम बंद तो पैसा बंद। महिने की पगार नहीं मिलेगी। अम्माजी बच्चों को क्या खिलाऊंगी। काम पर आती हूं तो सब घर से मुझे थोड़ा बहुत बचा हुआ खाने को मिल जाता है, मुझे भी चाय मिल जाती है। पगार भी नही और बचा-खुचा भोजन भी नहीं? बच्चें बीमारी से नहीं भूख से ...? नही-नही कमली तू इन फालतू की अफवाह पर ध्यान न दे और घर जा। रूलाई आ गई कमली को... बेबस कमली बस आंखों में बोल पड़ी... महामारी का नाश हो। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद...
देश राग
लघुकथा

देश राग

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां.. इतनी सी है दिल की आरज़ू.... .. दीदी आज तो आपने सबको भावुक कर दिया, आप कितना मीठा गाती हो, प्रीति का गाना पूरा होते ही पास में खड़े बिट्टू ने प्रीति से कहा और सभी ने अपने अपने घरों से तालियां बजायीं। प्रीति कॉलेज में प्रोफेसर है, गरीब बस्तियों के बच्चों की शिक्षा पर भी काम करती है साथ ही अच्छी गायिका भी है। लॉक डाउन के दौरान आसपास वालों की फरमाइश पर वो रोज शाम को अपने घर के सामने ट्रैक पर माइक और स्पीकर लगाकर सभी को गाने सुनाती है। आज जब उसने ये गीत गाया तो सभी लोग देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत होकर भावुक हो गए। गाते गाते प्रीति की आंखें भी भीग गयीं, दीदी मुझे भी गाना सीखना है, आप मुझे सिखाओगी, बिट्टू ने माइक और स्पीकर उठाते हुए पूछा, हाँ हाँ बिट्टू क्यों नहीं? जरूर, प्रीति ने...
गुल्लक
लघुकथा

गुल्लक

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ आशा आंटी का फोन है... बेटा मुझे फोन देते हुए बोला... मैने पोछा बाल्टी में फेकते हुए दुपट्टे से हाथ पोछे और बेटे के हाथ से फोन झपट लिया। कैसी हो दीदी उधर से आवाज आई ! .ठीक है हम सब तू कैसी है? और तेरे परिवार के लोग.....मैं एक सी सांस मे कह गई? नहीं दीदी...वह रूकती हुई बोली - पर आपको सब काम हाथ से ही करना पड रहा है ना? और आपके पैरो का दर्द कैसा है? उधर से बुझी सी आवाज आई। हम लोग मिलजुल कर मैनेज कर रहे है। बच्चें भी काम मे हाथ बँटा रहे है.... वो सब तो ठीक है पर तू बता तुम लोग गाँव तो नहीं गए ना? और तेरे पति क्या अभी भी सब्जी बेचने जाते है? मै उसकी खैरियत पूछने के लिए एक सांस मे सब कह गई। वो दीदी मालिक मकान किराया मांगने लगा था। और फिर हमारे घर में खाने का सामान भी इन आठ दिनों मे खतम होने लगा था। आटा दाल का इंतजाम तो करना ही था सो जान जोख...
कैलाश यात्रा
लघुकथा

कैलाश यात्रा

डॉ . भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** गाय दुहने के बाद माँ चिराग को आवाज देती हैं... बेटा, शिव के अभिषेक का दूध तैयार है, अरे हाँ, आज इक्यावन रूपये लेते जाना, शिव के चरणों में अर्पण कर देना। चिराग - जी मम्मी और कुछ ? बस भोलेनाथ सबको कुशल रखें। चिराग रोज मंदिर न जाकर अभिषेक का दूध एक वृद्धा बुढ़िया को पिलाके आशीर्वाद प्राप्त करता था। आज दूध के साथ फल लेकर गया था। पहली बार सोई हुई बुढ़िया को जगाकर फल और दूध का नास्ता खिलाके बहुत खुश था। शायद बुढ़िया का वह आखिर दिन होगा। शाम को वह कैलाश सिधार जाती है। दूसरे दिन माँ चिराग को शिव के अभिषेक के लिए पुकारती है तो वह कहता है... "आज भोलेनाथ मंदिर में नहीं है, कल से कैलास यात्रा के लिए गये हैं।" . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ ...
कुछ लिख रही हूँ
लघुकथा

कुछ लिख रही हूँ

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पति थका हारा आफिस से आता है पत्नि को आवाज़ देता है... सोनम ज़रा एक गिलास पानी और चाय देना आज बहुत थक गया हूँ, सर दर्द कर रहा है, चाय दे कर थोड़ा सा बाम सर में मल दो थोडा सो जाऊँगा तो आराम हो जायेगा। सोनम मैं कुछ लिख रही हूँ। आप पानी लेकर पी लो मैं बस यह लिख कर आप को चाय बना कर लाती हूँ फिर बाम लगा कर सर दबा दूंगी। पति जी पानी लेकर पी लेते हैं और कमरे में आकर कपडे बदल कर हाथ मुँह धोकर भगवान को अगरबत्ती भी जला देते है पर सोनम चाय लेकर नहीं आती। वो फिर आवाज़ देते है क्या हुआ चाय नहीं बनी... अरे बना रही हूँ, ला रही हूँ आप आराम करो ला रही हूँ... काफ़ी देर बात सोनम चाय लेकर आती है तो पति देव पूछ ही बैठते हैं... आप सारा दिन क्या लिंखती रहती है क्या कोई किताब लिख रही है? सोनम नहीं किताब नहीं सारा दिन मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती है, फ़ेस बुक, वाट...
अंतर्मन
लघुकथा

अंतर्मन

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** आंटी आंटी हमारी बॉल अंदर आ गई, प्लीज् दे दीजिए ना, दीप्ति ने खिड़की से झांककर देखा तो कॉलोनी में खेलते हुए बच्चे उसके घर के गेट पर खड़े होकर आवाज़ दे रहे थे, दीप्ति एक लेखिका और समाजसेवी है। आज रविवार होने से वह घर पर ही अपने लैपटॉप पर कोई आर्टिकल लिख रही थी। जिसका शीर्षक था "अंतर्मन"। दीप्ति ने बाहर निकलकर बच्चों को बॉल दी और फिर आकर लिखने बैठ गयी। तभी कॉलोनी की सफाईकर्मी मालती भाभी ने दरवाजा खटखटाया, दीप्ति के पूछने पर उसने कहा कि बेटी को कॉपी और पेन की जरूरत है और कल जन्मदिन है तो वो नए कपड़ों की जिद कर रही है। दीप्ति ने उसे कॉपी पेन देते हुए कहा की भाभी ऐसे ही बिटिया की पढ़ाई पर ध्यान देना और जो भी जरूरत हो आकर बात देना। दीदी आपकी बजह से ही तो मेरी बिटिया पढ़ रही है, अगर आप फीस नही भरती, स्कूल में एडमिशन नही दिलाती तो हमारी हैस...
समर्पण
लघुकथा

समर्पण

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** कोरोना वायरस की वजह से सरकार ने २१ दिन की छुट्टी की योजना बनाई। सुमा और उसका परिवार खुशी से झूम उठा। कुछ दिनों से सुमा सोशल मीडिया पर फनी वीडियो देख रही थी, बड़े मजेदार थे, "मैं भी कॉमेडी वीडियो बनाऊंगी।" बैग लेकर सीधा उसके पति के वहां पहुंची, सुमा के पति के ऑफिस के कॉल चल रहे थे। कुछ इस तरह बात चल रही थी - इंप्लॉय को किस तरह काम करने में परेशानी आ रही है, किसी को नेटवर्क ना मिलने के कारण वह नीम के पेड़ के नीचे बैठकर काम कर रहा है, तो कोई छोटे रूम में, तो किसी को संयुक्त परिवार होने के कारण काम में परेशानी आ रही थी। सुमा यह सब दरवाजे के पास खड़ी-खड़ी सुन रही थी, जिस उत्साह से वह बैग लाई थी वीडियो बनाने के लिए, ग्लानि से बैग जमीन पर गिर गया। सुमा ने सभी एंप्लॉय का काम के प्रति समर्पण का भाव देखकर मन ही मन उस ने सभी इंप्लॉय के प्रति सम्म...
कलर
लघुकथा

कलर

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** आशा ने सभी को हिदायत दी की होली के कलर से कोई गंदागी नहीं करेगा, यह कैसा त्यौहार है। आशा के कहते ही घर में सन्नाटा छा गया। दूसरी ओर पड़ोसी ने एक माह पूर्व से ही होली की तैयारी शुरू कर दी थी। शोरगुल की आवाज आते ही आशा अपनी बालकनी में देखने आई की आवाज कैसी है? पड़ोसी के वहां मित्र एवं रिश्तेदार होली का उत्सव मनाने आए। सभी ने धूम मचाई रंग जमाया बच्चों की शोरगुल की आवाज मन को आनंदित कर रही थी। घर में प्रेम और खुशी के रंग बिखरे हुए थे। हर रंग कुछ कह रहा था। यह सब नजारा आशा अपनी बालकनी से देख रही थी, "आशा के अंदर भी रंगो की तरंग दोड़ने लगी" . परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
बुढ़ापा
लघुकथा

बुढ़ापा

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** वह हाँपता-काँपता-खाँसता झुककर दोहरी झुकी कमर को तनिक सीधा करने का असफल प्रयत्न करता हुआ बुरी तरह से,छटपटा रहा था । अकस्मात मृत्यु ने प्रत्यक्ष होकर कहा, हमारा मिलन तो अटल ही था, फिर तू क्यों भयभीत हो रहा है? अगर तू सोचता हैं, झुककर मेरी नजरों से बच जायगा तो यह तेरा भ्रम है। मैं तुझसे भयभीत नहीं हूँ मैं तो तेरा स्वागत करने को तैयार बैठा हूँ, बुढ़ापे ने बिलखकर जवाब दिया। मेरे झुकने का कारण भी तेरी, नजरों से बचना नहीं बल्कि मेरी कमर तो झुक रही है, संसार से लिये हुए अपार कर्ज और भार से। मुझे हर समय यह ध्यान रहता है कि संसार से जितना मैने लिया, उसका एकांश भी चुका नहीं पाया। इसलिए मेरी कमर कर्ज भार से, और गर्दन ग्लानि से झुकी रहती है। यह सुनकर मृत्यु ने भी अपनी गर्दन झुका ली.... . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इ...
नसीबो का नसीबा
लघुकथा

नसीबो का नसीबा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** लाला जी, थके हारे घर पहुंचे थे। क्या ....बना नसीबो की शादी का लड़के वालों ने हां कि नहीं। या इस बार भी जन्मपत्री नहीं मिली का बहाना कहकर मना कर दिया है। इससे पहले लाला जी को कितने ही रिश्ते मना कर चुके थे। जब भी रिश्ते की बात चलती तब सिर्फ एक ही बात निकलती कि आप इसी गांव के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। आजादी के बाद कितने ही लोगों की जिंदगी इस एक शब्द पर थम गई थी कि आप यहां के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। घर-बाहर तो छूटा ही, काम धंधा भी छूट गया। ऊपर से जिनकी बेटियां थी उसकी शादी करने के लिए कितने सवालों से गुजरना पड़ता था। कुछ यही हो रहा था। नसीबो के साथ ....जिस किसी रिश्ते की बात चल रही थी वही मना कर देता था कि पाकिस्तान से आए हैं वहां से आने वाली किसी भी लड़की को छोड़ा नहीं था, और यह ऐसी सोच थी जिसके लिए कोई भी...
होली और शर्त
लघुकथा

होली और शर्त

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** होली के दिन सभी मित्र होली मिलन के लिए रमेश के घर गए। मित्रों ने सबसे पहले बुजुर्गों के चरणों में गुलाल लगाकर बड़ों का आशीर्वाद लेकर होली का प्रारंभ किया। अब मित्रों ने आपस में गुलाल लगाकर एक दूसरे को गले लगाया इतने में मां होली का स्वादिष्ट पकवान ले आई, क्या बात है हम लोग त्योहारों का इंतजार करते हैं, पकवान के लिए.... बात करते-करते रमेश के मित्र की निगाह सामने वाले बालकनी में पड़ी, वहां सुंदर लड़की खड़ी थी। सभी मित्र रमेश से शर्त लगाते हैं की यदि तुमने उस लड़की को होली खिला दी तो आज तेरे जन्मदिन की पार्टी हमारी तरफ से। रमेश बोलता है, "अरे क्या बात कर रहे हो तुम लोग, मोहल्ले में किसी से बात नहीं करती वह और गुस्से वाली लड़की है। मित्रों ने रमेश को उकसाया कि तू कुछ नहीं कर सकता। रमेश दौड़ता हुआ गया, रमेश की धड़कने तेज थी डर लग रहा था। वह...
प्रेम का अंतिम आभास
लघुकथा

प्रेम का अंतिम आभास

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** भोले और उसके ससुर जी का ३६ का आंकड़ा था। जबसे भोले की शादी हुई थी तब से ही उसकी सास ससुर से नहीं बनी। सास तो फिर भी मान जाती थी किंतु ससुर जी नहीं मानते थे। शायद वह मुंह के बहुत बड़बोले थे। और दिल के साफ भोले इस बात को कभी समझ नहीं पाया। किंतु कभी कबार उनकी अच्छी बातों से भोले को लगता था कि व्यक्ति तो वह अच्छे है। किंतु अपने बहु बेटों का सारा गुस्सा मुझ पर ही निकाल देते थे। कुछ दिन पहले एक शादी के दौरान भोले और ससुर जी का एक बहुत ही अच्छा रिश्ता बन गया पहली बार भोले ने उनके साथ कुछ खाया और अच्छा बोल बोले। पहली बार उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा मेरे साथ एक फोटो खिंचवा लो। एक बड़बोले इंसान को गलत समझ लेना भोले कि बहुत बड़ी भूल थी। अभी कुछ दिन पहले ही भोले को पता पड़ा कि ससुर जी किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती हैं जहां डॉक्टरों ...
कोयल की कॅूक
लघुकथा

कोयल की कॅूक

डॉ. सुरेखा भारती *************** दीदी sss ......ओ दीदी ! आंगन में झाडू लगा रही मुन्नी, आवाज लगी रही थी। अब इसको क्या हो गया..... मैंने झल्लाते हुए अन्दर से ही बोला, क्या है? क्यो चिल्ला रही हो..? दीदी बाहर तो आओ sss ..... मैं बाहर आंगन में पहुंची, देखा मुन्नी दीवार के एक कौने मैं चुपचाप खड़ी है। ‘देखो...देखो कोयल कॅूक रही है.....’। उसे देखकर मैं ने भी सहसा कोयल की बोली सुनने का प्रयत्न किया। दूर कही कोयल बोल रही थी, कुछ पल के लिए मुझे भी अच्छा लगा। थोडी देर मुन्नी उसकी आवाज सुनती रही। कोयल की बोली बंद हो गई। उसने मेरी तरफ देखा और कहने लगी - दीदी, गाँव में हमारे आंगन में बड़ा सा आम का पेड़ था। इन दिनों कोयल उस पर बैठ कर कॅूकती थी, मैं भी उसके जैसी आवाज निकालकर उसे चिढ़ाती थी, फिर वह चूप हो जाती, फिर थोडी बाद कूँकती थी। अब शहर में आ गए हैं, अब कहाँ कोयल की कूक सनाई देती है। मेरा सारा दिन तो इस...
आखिरी सफर
लघुकथा

आखिरी सफर

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** मंजुला के पार्थिव शरीर को देखकर कोई कह नहीं सकता कितना संघर्ष से भरा जीवन रहा होगा उसका। चेहरे पर वही सौम्यता और शांति थी। किरण टकटकी लगाए मंजुला के बेजान शरीर को देख रही थी। आंखों से रिमझिम रिमझिम बरस रही थी। अतीत की यादें आ जा रही थी। मंजुला और किरण बचपन की सहेलियां थी। जीवन के उतार-चढ़ाव सुख-दुख की भागीदार। एक दूसरे की सीक्रेट डायरी जैसी। जिसमें इंसान अपने अंदर के सब विचार खोल देता है। आज मंजुला का अंतिम सफर था किरण को अकेला महसूस हो रहा था। अब किससे वह अपने दिल की बात कह पाएगी। कुछ देर में मंजुला का शरीर भी नहीं रहेगा। आने जाने वाले सभी लोग मंजुला के जीवन पर चर्चा कर रहे थे। बेहद शांत मधुर सादगी वाली थी मंजुला। हर हाल में खुश रहने वाली ईश्वर पर भरोसा करने वाली इस तरह की कई बातें रिश्तेदार और अन्य आने जाने वाले कर रहे थे। किरण ही जानती थी कि ...
खूबसूरत चेहरे
लघुकथा

खूबसूरत चेहरे

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** मूवी देखकर लौट रही दिव्या ने अपना टू-व्हीलर स्टार्ट करने के पहले दुपट्टे से मुंह इस तरह लपेटा कि बस उसकी आंखें ही शेष बची थीं उस पर गागिल चढ़ा लिया। मनीषा पीछे की सीट पर बैठते हुए बोली तुम भी यार... क्योंं पडी रहती हो इस झंझट में, मुझे देखो मैं तो कभी चेहरा नहीं ढ़क सकती, फिर भी क्या तुम्हें मेरे चेहरे की चमक कम दिखती है? "अभी अभी तू छपाक देखकर लौट रही है फिर भी ऐसे सवाल करती है" "मुझे किसी का डर नहीं न ही मैंने कोई ग़लत काम किया है" पर चेहरा तो खूबसूरत है, कहते हुए दिव्या ने गाड़ी बढ़ा दी। ओह..... तभी मै सोचूं खूबसूरत चेहरे आजकल दिखाई क्यों नहीं देते। . परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्श...
सीख
लघुकथा

सीख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** हर समय उलाहनों की बारिश करती रहती थी सासू मां। 'हमारे समय में बहुत सख्ती थी, अब देखो निर्लज्लता से घूमती है बहुएं'! हर समय अपनी बराबरी बहुओं से करते रहना। रामलाल जी परेशान थे, अपनी पत्नी की आदतों को। कभी स्वयं ससुराल में नहीं रही वह। रामलाल जी के बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। बड़ी बहन और ननिहाल वालों ने शिक्षा दी, बड़ा किया। शादी के बाद पिता गांव में ही रहे और अपनी नवोढ़ा को लेकर रामलाल जी दूसरे शहर चले गये। बच्चों की पढ़ाई नौकरी मे तबादला इसके कारण कभी कभी पिता के पास बच्चों को ले जाते फिर अकेले रह जाते पिता। गांव में अकेले रहते थे। लोग कहते चले जाओ बहू के पास लेकिन अनुभवी आंख एक बार में ही अपनी बहू को जान गई थी। वह अपने बेटे को दुखी नहीं देख सकते थे। रामलाल जी की किस्मत अच्छी थी। चार बहूएं गुणी पढ़ी लिखी। सम्म...
रौनक
लघुकथा

रौनक

कुमुद दुबे इंदौर म.प्र. ******************** आँफिस से लौटे साठे जी, घर मे कदम रखते ही पत्नी शोभा से बोले शोभा ! मैं कुछ दिनों से देख रहा हूॅ अपनी कालोनी के अतुल जी के यहाँ, जहाँ हमेशा सन्नाटा छाया रहता था, आजकल रौनक बनी हुयी है। देर रात तक घर की लाईटें जलती रहती हैं और लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। क्या बात है? शोभा बोली! मैने उनकी पडोसन माला से पूछा था, वह बता रही थी-अतुल जी के माता पिता साथ ही रहते थे। दम्पती बहुत ही मिलनसार, व्यवहारिक और काॅलोनी के लोगों की किसी भी प्रकार की परेशानी हो सहायता के लिये सदा तत्पर! बच्चे बडे बूढे सभी के चहेते रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद अधिकांशतः समय अपने गाँव में ही व्यतीत कर रहे हैं! फिलहाल कुछ दिनों के लिये आये हुये हैं। . लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मैं बिलासपुर स्टेशन से इंदौर आई। जैसे ही मैं स्टेशन पर ट्रेन से नीचे उतरी। एक बूढ़ा व्यक्ति जिसकी कमर झुकी हुई थी, आंखों में मोटे ग्लास का चश्मा था, मुंह में झुर्रियां पड़ गई थीं, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। मेरे पास जल्दी-जल्दी आया और बोला मैडम आपको कहां जाना है? मैं आपको छोड़ देता हूं, और मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरा सूटकेस लेकर चलने लगा मैं उसके पीछे-पीछे चलने लगी, जब मैं उसके रिक्शे में बैठी तो उसने रिक्शा खींचना शुरू किया, कुछ ही दूर जाकर उसका श्वास फूलने लगा। वह पसीना पसीना हो गया मैं तुरंत उसके से उतर गई और सौ का नोट उसके हाथ में रख दिया। बड़ी हिम्मत करके मैने पूछ ही लिया, कि बाबा आप बूढ़े हो गए हो, और आपकी उम्र रिक्शा चलाने की नहीं आराम करने की है। तुम्हें इस उम्र में रिक्शा में रिक्शा नहीं चलाना चाहिए। क्या करूं मेडम...
मान
लघुकथा

मान

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** अरी  सुलक्षणा कल "हरतालिका तीज" है, याद है ना। अरे माँ मैं तो भूल ही गई थी। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, ठीक है कर लूँगी। "अरे माँ आपने अभी तक चाय नहीं बनाई सुबह-सुबह किसको फोन करने बैठ गयीं?" सीमा अपनी माँ के गले में हाथ डालते हुए बोली।" तेरी भाभी को ही फोन लगा रही थी, उसे याद दिला रही थी कल हरतालिका तीज है, व्रत कर लेना "और भाभी ने कहा होगा ठीक है मैं कर लूंगी। "हां तेरी भाभी बोल रही थी कि माँ मैं तो भूल ही गई थी अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।"  देख मैं उसे याद दिला देती हूं तो निधि बड़ी खुश हो जाती है। पर माँ आपको पता है न कि भाभी व्रत नहीं कर पाती हैं, उन्हें भूख सहन नहीं होती है। फिर क्यों याद दिलाती हो? अब उसकी इच्छा होगी तो कर लेगी नहीं तो कोई बात नहीं है। मैंनें अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। पर देख बेटा मेरा मान तो रख लेती है। कभी म...
मेज के उस पार की कुर्सी
लघुकथा

मेज के उस पार की कुर्सी

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** सुनों आज भी मैं खिडकी के पास रखी कुर्सी पर बैठी हूँ। बाहर बगीचे में ओस से भीगा आँवले से लदा पेड हरे काँच की बूँदों सा लग रहा है। इन दिनों गुलाब में भी बहार आई हुई है। सुर्ख लाल गुलाब पर मंडराती रंग-बिरंगी तितलियां मौसम को और भी खुशनुमा बना रही है। मौसम भी इस बार कुछ ज्यादा ही उतावला है नवम्बर में ही गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है। ये गर्म काँफी मुझे अब वो गर्माहट नहीं देती क्योंकि मेज के उस पार खाली कुर्सी और काँफी मग का वो रिक्त स्थान तुम्हारी कमी महसूस करवा रहा है। मै अपनी बेबसी ठंडी कर काँफी के हर घूँट के साथ पीती जा रही हूँ। जानते हो ये हवा जो ठंड से भीगी हुई है, ये अब भीगोती नही है। भीगना और गीले होने का अंतर तुम्हारे बिना समझ में आया। मैं हथेलियों की सरसराहट से उस गर्माहट को महसूस करना चाहती हूँ, जो कभी तुम्हारी हथेलियों ने थाम कर गर्मा...
अपना घर
लघुकथा

अपना घर

सीमा निगम रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** अपने घर का सपना सबका रहता है और आज मेरे घर का सपना पूरा होने जा रहा है तो आप अम्मा-बाबूजी को साथ चलने के लिए मत कहना। "मानसी अपने पति अमित को सख्त लहजे में बोल रही थी। "ये कैसी बात कर रही हो तुम एक ही शहर में अम्मा बाबूजी को अलग छोड़कर रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे" अमित ने समझाया पर मानसी जिद में अड़ी रही अम्मा-बाबूजी ने दुखी मन से जाने की इजाजत दे दी। पिछले साल ही किश्तो में कर्ज लेकर नई कालोनी में घर लिये थे नये घर मे आकर मानसी उसे सजाने संवारने में लग गयी। गृहप्रवेश भी बहुत धूमधाम से किया। नये घर का आकर्षण अकेले रहने का रोमांच मानसी को लग रहा था कि जिन्दगी में सुख ही सुख है। हर रविवार को अमित अम्मा-बाबूजी से मिलने जाता व उनकी दवाई और जरूरी सामान रख आता।                    अपने घर में रहते मानसी को छः माह हो गए। धीरे-धीरे आर्थिक समस्या ह...