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मजदूर
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मजदूर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हमारे देश में मजदूरों की दशा कभी भी अच्छी नहीं रही। यह अलग बात है कि वर्तमान में सरकारों के द्वारा मजदूरों के लिए काफी कुछ किया गया। लेकिन मजदूरों की दशा में मूलभूत सुधार नहीं हो पाया। आज भी हमारे देश का मजदूर अपने मूलभूत जरूरतों के दल-दल को पार नहीं कर पाया है। मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं। परिवार स्वास्थ्य शिक्षा उनकी मूलभूत समस्याएं हैं। जिस पर कार्य किए जाने की जरूरत सभी प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि मजदूरों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएं और उसका सख्ती से पालन कराएं। सरकारों को यह भी देखना होगा कि उनके द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना धरातल पर उतर रहा है। कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हुई है, वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह काफी असहनीय और राष्ट्र समाज के शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी। ...
जिन्दगी का अर्थ समझे
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जिन्दगी का अर्थ समझे

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** सत्य है कि ईश्वर का दिया यह जीवन हर व्यक्ति के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं। यह एक सुंदर उपहार है। इसे स्वीकार करते हुए बस अपने दम पर जिंदगी को सुकूनभरा बनाते जाएं यह प्रयास हमें ही करना होंगे। इसलिए हमेशा जिंदगी का धन्यवाद करें और उसने जो दिया है उसी में प्रसन्न रहना ही उचित होगा। जीवन अविरल और अविनाशी यात्रा हैं। सृष्टि चक्र के साथ मानव प्राणी भी अपने कर्मों मुताबिक पार्ट करने हेतु साकार शरीर धारण करता है।यह गतिशील चक्र ठीक पांच हजार वर्षों का है। जिसमें मनुष्य प्राणी सिर्फ ८४ जन्म कम या पूरे लेता है। अतः मनुष्य का हर जन्म महत्वपूर्ण हैं। जन्म मृत्यु का चक्र जो समझ लेता है वह अपने भविष्य को सार्थक बनाने में जुट जाता है। ८४ लाख योनी का कोई हिसाब नहीं होता है।यह जीवन रहस्य जो समझे वह प्रति सेकंड का सदुपयोग करता है। वह ईश्वर के प्रति हर जन्म...
गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा
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गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** तारा जयंती विशेष जयंती चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस वर्ष महातारा जयंती २१ अप्रैल २०२१, के दिन मनाई जाएगी। चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों और उनके भक्तों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। दस महाविद्याओं में से एक हैं-भगवती तारा। महाकाली के बाद मां तारा का स्थान आता है। जब इस दुनिया में कुछ भी नहीं था तब अंधकार रूपी ब्रह्मांड में सिर्फ देवी काली थीं। इस अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई जो माता तारा कहलाईं। मां तारा को नील तारा भी कहा जाता है। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप मान...
ओरा और कोरा
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ओरा और कोरा

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** ओरा के विषय में बहुत लोग जानते हैं। ओरा मनुष्य के विचार और कर्मों का शूक्ष्म प्रकाश होता है जो शरीर के बाहर प्रकट होता रहता है। इसे तेज भी कहा जा सकता है। जब हम किसी संत या महात्मा या चिंतक के करीब पहुंचते हैं तो उनके ओरा क्षेत्र में हमारे विचार बदल जाते हैं क्योंकि यह एक सूक्ष्म प्रकाश है और प्रकाश किसी को दिखाई नहीं देता बल्कि उससे वस्तुएं दिखाई देती हैं। भले ही वह वायु में तैरती धूल या अन्य वस्तुएं हों। इसी प्रकार ओरा किसी को दिखाई नहीं देता अच्छे विचारों के प्रभाव से हमारी बुद्धि अच्छा महसूस करने लगती है और यह भी होता है कि हमारी अपनी समस्याएं उस क्षेत्र में आकर अपने आप सुलझने लगती हैं। यही ओरा का प्रकाश होता है। यह प्रकाश दूसरे व्यक्ति को पकड़ भी लेता है या दिया भी जा सकता है। यह गंध जैसा घ्राण इंद्रिय द्वारा भी प्राप्त क...
घटते पाठक, बढ़ती चिंता
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घटते पाठक, बढ़ती चिंता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************   यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि शिक्षा और साहित्य के विस्तार के बावजूद पाठक वर्ग का अभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह कैसा जूनून है कि हम लिखते जा रहे हैं, औरों से अपने सृजन को पढ़कर प्रतिक्रिया भी चाहते हैं। परंतु अफसोस कि हम औरों को पढ़ना ही नहीं चाहते। आखिर हम जो सोचते हैं, वैसा ही कुछ और लोग भी तो सोचते हैं। तभी भी रचनकार अधिक और प्रतिक्रिया देने वाले मात्र गिने चुने ही होते प्रायः दिख जाते हैं। जो हमें ही आइना दिखाते प्रतीत होते हैं। हो भी क्यों न? बढ़ते आधुनिकीकरण ने हर क्षेत्र में सकारात्मक/नकारात्मक असर डाला है। फिर भला सृजन, पाठन कैसे अछूता रह सकता है। आज जब सृजन क्षमता का विकास अत्यधिक तेजी से हो रहा है, नये सृजनकार तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष कर कोरोना काल में साहित्य के क्षेत्र मे...
शिव तत्व को आत्मसात करवाता नालागढ़ हिमाचल का प्राचीन पंचमुखी शिव मंदिर
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शिव तत्व को आत्मसात करवाता नालागढ़ हिमाचल का प्राचीन पंचमुखी शिव मंदिर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** देव-भूमि हिमाचल में जहां कण-कण में भगवान शिव विराजमान है। बस आपको अपने भीतर शिव तत्व को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जब आप ईश्वर का साक्षरताकार पा जाते हैं तो फिर आप बाहरी आडंबर, उनकी परिकल्पना से परे हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में नालागढ़ क्षेत्र के अंतर्गत भगवान शिव का पंचमुखी शिव मंदिर का इतिहास सोलहवीं सदी के लगभग माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना की बड़ी ही रोचक कथा है कहां जाता है कि राजा नलसेन जो कि उस समय के राजा थे महल परिसर में शिव मंदिर की स्थापना करवा रहे थे, पहाड़ पर ले जाते हुए अचानक उनके हाथ से भगवान शिव का प्रतिरूप शिवलिंग छूट गया और नीचे चोए में गिर गया। चोया हिमाचली भाषा में पानी के उस स्त्रोत को कहते हैं जो पहाड़ी क्षेत्रों में बहता रहता है। इस मंदिर का एक अन्य नाम चोय वाला मंदिर भी है। कहा जाता...
संयोग
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संयोग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है। अक्सर आभासी दुनियाँ में ...
प्रेम का वास्तविक स्वरूप
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प्रेम का वास्तविक स्वरूप

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने मित्र के व्हाट्सएप स्टेटस पर प्रथम बार गीत सुना "मुझे तु राजी लगती है जीती हुई बाजी लगती है" प्रेम का यह स्वरूप जब देखा तो लगा हम यह कहां आ गए? जिस प्रेम की पराकाष्ठा भक्ति है, जो प्रेम उस निर्गुण निराकार परमात्मा को सगुण साकार स्वरूप में धारण करने के लिए विवश कर देता है, वह एक हार जीत की बाजी हो गया। मेरे विचारों में यह प्रेम का सबसे विकृत रूप है। प्रेम तत्व मे तो दो होता ही नहीं है, प्रेम की पराकाष्ठा एक तत्व में विलीन हो जाना है और यदि प्रेम मे जब द्वेत भी होता है तो उस में समर्पण होता है, त्याग होता है, हारना होता है। प्रेम की किताब में या प्रेम के जगत में "जो जीता है वास्तव में वह तो हार ही गया है और जो हारता है वही वास्तव में जीता है" किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जो डूब गया सो पार गया, जो पार गया सो डूब गया" आज की युव...
पिता का मर्म और कर्म
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पिता का मर्म और कर्म

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                              माँ की ममता की चर्चा तो खूब होती है,पर पिता के मर्म को, उसके कर्म को, उस की अनुभूति को वही समझ सकता है जिसने उसके संघर्षमय जीवन के एहसास को महसूसा हो। ऐसे भाग्यशाली पिता बहुत कम हैं, जिनके बच्चे ऐसे हैं अधिकतर तो जीवन में थोड़ा सा मुकाम पाते ही कह देते हैं, तुमने हमारे लिये किया ही क्या है, नई पीढ़ी की सोच पूरी तरह से आत्मकेंद्रित हो गई है। पिता सूरज की तरह गर्म हैं पर न हों तो अंधेरा ही है। पिता खुशियों का इंतज़ार हैं, पिता से ही हजारों सपने हैं, बाजार के हर खिलौने अपने हैं।पिता से परिवार हैं, उसी से ही माँ को मिला माँ कहने का अधिकार है। बिन्दी, सुहाग, ममता का आधार है। पिता के फैसले भले ही कड़े हों, पर हम उसी से ही खड़े होते हैं। बच्चे यह बड़े हो कर यह भूल जाते हैं, माँ से जीवन का सार ह...
ईश्वर की आवाज
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ईश्वर की आवाज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             सभी जानते, मानते हैं कि हम ईश्वर की ही सृष्टि हैं, ईश्वर का ही निर्माण हैं। फिर यह भी यथार्थ है कि बिना ईश्वरीय विधान के पत्ता तख नहीं हिलता। ऐसे में कर्ता तो मात्र ईश्वर ही हुआ न। फिर भी मानव अपने स्वभाव के अनुरूप खुद को ही सर्व समर्थ मानने की गर्वोक्ति करता रहता है। परंतु सच यह है कि ईश्वर के हाथों में ही हमारे सारे क्रियाकलापों की डोर है, तब यह मानना ही पड़ता है कि जो भी हम करते हैं वह ईश्वरीय इच्छा है। ठीक इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वह ईश्वर की ही आवाज़ है, हम वही बोलते हैं जो ईश्वर चाहता है या यूं कहें कि हम मात्र ईश्वरीय प्रतिनिधि के तौर पर इस दुनियाँ में हैं और प्रतिनिधि को वही सब करने की बाध्यता है, जो उसका नियोक्ता चाहता है। ऐसे में यह हमें अच्छी तरह जितनी जल्दी समझ में आ जाये तो ब...
देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंँगा" इस सम्मोहक कालजयी नारे के प्रणेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के देदीप्यमान सितारे और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। जिन्होंने भारत के आजादी के लिए प्राण-प्रण से लड़ाई की और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी के नाजी नेतृत्व और जापान के शाही सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन कर उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया और उन्हें इस देश को छोड़कर अपनी जन्मभूमि जाने पर विवश कर दिया। अत्यंत प्रभावशाली युवा व्यक्तित्व श्री सुभाष ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दरम्यान भारतीय राष्ट्रीय सेना (आई एन ए) की स्थापना की और उसमें अपनी प्रभावशाली भूमिका एवं अग्रणी प्रखर नेतृत्व के द्वारा "नेताजी" की उपाधि अर्जित की! आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व उन्हें बड़े ...
मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द
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मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जीवन मे मुझे कुछ शब्दों से काफी नाराज़गी मिली जो कभी पूरा हुआ ही नही भले उसे किसी तरह उपयोग किया जाये अगर हुआ भी तो सिर्फ भाग्य-वालो का ही ! जैसे-रिश्ता जिसमे कभी ना कभी मन-मुटाव आ ही जाता है कैसा भी रिश्ता हो माँ से बेटा का, पिता से बेटा का, चाचा से भतीजे से, भाई से भाई का, बहन से भाई का प्रेमी से प्रेमिका का रिश्ता जैसे हाल ही मे बहुत घटना पेपर, टी.वी पर सुनने को मिलता है, आरूषी तलवार का रिश्ता माँ बाप का रिस्त्ता ! इसी प्रकार प्यार या प्रेम का रिश्ता जो जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है जिसका जीवन मे सबसे ज्यादा एव खास स्थान है! वो बिरले ही पूरा होता है खास तौर पे देखा जाये तो अधूरा ही होता है जैसा प्रेमी प्रेमिका, माता-पिता, भाई-बहन इस आधुनिकता मे अधूरा एक शौक हो गया है जैसे लैला मजनु का रिश्ता, शीरी फरहाद का रिश्ता आदी! अगला ले ले तो...
प्रकृति और किसान
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प्रकृति और किसान

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ********************                              प्रकृति हमारी माता है, हमारी जगत जननी है। प्रकृति के द्वारा है हम सभी प्राणी पृथ्वी पर जीवित रह पाते हैं। प्रकृति के द्वारा ही हम पृथ्वी पर अपने जीवन को सुचारू रूप से चला पाते हैं और सरलता पूर्वक अपना जीवन बिताते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर उपस्थित सभी छोटे-बड़े प्राणियों को प्रकृति के द्वारा कुछ ना कुछ मिलता रहता है ,जिससे सभी प्राणियों का जीविकोपार्जन होता है और सभी प्राणी सांस ले पाते हैं। प्रकृति सदा देना जानती है और हमेशा कुछ न कुछ देती रहती है। उदाहरण के तौर पर :- शुद्ध जल, शुद्ध हवा, फल, सब्जियां, जड़ी बूटियां और भी बहुत सारी आवश्यकताओं की वस्तुएं इत्यादि हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है। कभी-कभी तो मन करता है कि प्रकृति के विशाल और ममतामयी गोंद में जाके बैठ जाऊं और उसके प्रेम को महसूस करूं, उसका आलिंग...
खुद का निर्माण करें
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खुद का निर्माण करें

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          मानव जीवन अनमोल है, इस बात से इंकार कोई नहीं करता। परंतु यह भी विडंबना ही है कि ईश्वर अंश रूपी शरीर का हम उतना मान सम्मान नहीं करते, जितना वास्तव में हमें करना चाहिए। यह सच है कि हम अपने मिट्टी के पुतले सरीखे शरीर के ऊपरी सौंदर्य की चिंता बहुत करते हैं, अनेकानेक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग निरंतर करते हैं, किंतु इस शरीर के भीतर बैठे ईश्वर और उसके निवास रुपी मंदिर के प्रति कभी सचेत होना ही नहीं चाहते। इसीलिए हम वाहृय निर्माण और भौतिक सुख दुख के चक्रव्यूह में उलझे रह जाते हैं और खुद के निर्माण के प्रति लापरवाह बने रहते हैं।जिसका खामियाजा न केवल खुद हमें बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और समूचे संसार को किसी न किसी रुप में भुगतना ही पड़ता है। आज की अगर सबसे बड़ी जरूरत की बात करें तो वह है खुद के निर्...
आओ लौट चलें अपने गांव…
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आओ लौट चलें अपने गांव…

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   अचानक आज शाम को राम निहोर काका की याद आ गई, आए भी क्यों न, शाम को वर्षों तक किस्सा सुनाते जो आए थे। एक थे राजा, एक थी रानी (राजा ब्रिज व रानी सारंगा) से शुरू होकर, राजमहल से जंगल तक की सैर कराते थे, मिलन, विरह, श्रृंगार, करुण, वीर सभी रसों से सराबोर कर देते थे। कभी-कभी आकाश विचरण भी करा देते थे, चारपाई पर लेटे-लेटे ही, मैं और बड़े भाई-कम-बचपन से आज तक के जिगरी दोस्त डॉ सेवाराम चौधरी (अवकाश प्राप्त वरिष्ठ जेल अधीक्षक) हुंकारी भरते-भरते कब सो जाया करते थे, पता ही नहीं चलता था, मानों काका हम लोगों को सुलाने ही आते थे। आज राम निहोर काका चिर निद्रा में चिर शांति के लिए विलीन हो गए हैं, उनकी याद में आंख का कोना गीला हो जाना स्वाभाविक है। उन्हें परमात्मा शांति दें व अपने चरणों में स्थान। हम लोग...
२४ दिसम्बर : मोहम्मद रफ़ी की जयंती पर
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२४ दिसम्बर : मोहम्मद रफ़ी की जयंती पर

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अपनी शख्सियत की खुशबू फैलाकर इस दुनिया से चला गया वो अपनी आवाज का जादू बिखेर कर हमारे दिलों में रह गया वो अपनी मधुर आवाज से अपनी अलग पहचान बनाने वाले भारतीय संगीत परंपरा एवं हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय एवं श्रेष्ठ पार्श्व गायकों में से एक थे मोहम्मद रफ़ी। आपका जन्म २४ दिसंबर १९२४ में पंजाब के अमृतसर जिले में सुल्तान कोटला सिंह गांव में हुआ था। जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हुई थी। उनके परिवार का संगीत से कोई संबंध नहीं था। संगीत की ओर मोहम्मद रफ़ी का रुझान ७ वर्ष की उम्र में अपने गांव के एक फकीर के गाने को सुनकर हुआ था! रफी के संगीत उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवनलाल मट्टू एवं फिरोज निजामी थे। संगीतकार श्याम सुंदर के निर्देशन में १९४४ ईस्वी में रफ़ी ने पहली बार पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया था। सन् १९४६ में वे मुंबई आ गए और संगीतका...
खुशी की चाहत
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खुशी की चाहत

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                                हर समय खुश रहना कौन नहीं चाहता! खुशी हमारी चाहत है! खुशी हमारी चाहना है पर सिर्फ चाहने से क्या होता है? खुशी को अपना नैसर्गिक स्वभाव बनाना होगा, यह कहना जितना आसान है, इस पर अमल करना उतना ही अधिक मुश्किल! जब बरसों से सँजोई अपेक्षायें कुछ ही समय में टूट जाये, अपनों से ही उपेक्षा, तिरस्कार मिले, बहुत मेहनत करने के बाद अपेक्षित सफलता न मिले या किसी स्वजन का साथ एकाएक छूट जाये तो ख़ुशी बरकरार रखने के लिये स्वयँ को अन्दर से मज़बूत कर इसे प्रभु की मर्ज़ी स्वीकार कर अपने अन्दर की खिलखिलाहट को फिर से बाहर लाना होगा। खुशी तो हमारे मन का एहसास है, भावनाओं की अभिव्यक्ति है। अपने ही सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा ववास्तविकता को स्वीकार न करने की प्रवर्ति खुशी की राह में सबसे बड़ी बाधा है कोई कभी ...
जीवन : एक यात्रा
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जीवन : एक यात्रा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मानव जीवन जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा तक पहुंच कर खत्म होती है। परंतु यह विडंबना ही है कि इस यात्रा के किसी। भी पड़ाव पर आपको ठहरने की आजादी नहीं है। जीवन के हर पल में आपको अपनी सतत यात्रा जारी रखनी होती है। आपके हालात, परिस्थिति और समय कैसे भी हों, आपकी यात्रा जारी ही रहती है। आप खुश हैं, दुखी हैं, सुख में हैं या किसी परेशानी में है। आपकी अन्य गतिविधियां, क्रियाकलाप ठहर सकते हैं, मगर कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जीवन यात्रा ग्रहों की तरह ही चलायमान है। संभवत ऐसा इसलिए भी है कि यह हमें प्रेरित करने, चलते रहने का सूत्र दे रहा है और हम उसे नजरअंदाज करने की कोशिश में भ्रम का शिकार बने बैठे हैं। यदि हमें अपनी जीवनयात्रा को सरल, सुगम और निर्विरोध बनाना है तो हमें बुराइयों से बचना होगा। ईर्ष्या, ...
क्या हम क्या हमारा
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क्या हम क्या हमारा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   यह विचारणीय तथ्य है मित्रों कि जब हमारा जन्म होता है तब हम वस्त्र विहीन होते हैं और जब आखिरी समय पर लाश चिता पर लिटाई जाती है तब भी जिस कफ़न से शरीर ढका जाता है वह कफ़न आग की लपटों में पहले ही जल जाता है और इंसान का शरीर फिर वस्त्र विहीन हो जाता है। अर्थात दुनिया में बिना लिबास के आए और बिना लिबास चलते बने फिर समझ नहीं आता कि सारी उम्र इंसान ये तमाशाई दुसाले ओढ़ कर आखिर किसको भरमाने की कोशिश करता है खुद को या औरों को ? ये गाड़ी, बंगला, धन, दौलत, गुरुर, घमंड, सोना, जवाहरात, जमीन, परिवार? जब तन को ढँके कपड़े भी पहले जले, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति धन दौलत जतन-जतन कर पाई-पाई जोड़ी लड़ाई-झगड़ा भी किया। कोर्ट कचहरी थाना तहसीली दुनिया भर के स्वांग रचे इस धरती पर आकर तुम ने। पर क...
खेत-खलिहान : खेती बचाइए, किसान बचाइए, देश को खुशहाल बनाइए
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खेत-खलिहान : खेती बचाइए, किसान बचाइए, देश को खुशहाल बनाइए

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                    दुनियां में सबसे ज्यादा कीमत तीन चीजों की है- जमीन, कच्चे तेल और हथियारों की। इनमें से एक चीज किसान के पास है फ़िर भी किसान आत्महत्या की दर १०,००० प्रतिवर्ष से अधिक है। एक दुकानदार, व्यापारी या व्यवसायी के पास अगर ५० लाख का माल दुकान में भरा है तो वो महीने का ५० हज़ार तो कम से कम कमा ही लेता है। जबकि भारत में ७-१० बीघा जमीन की कीमत भी इस से ज्यादा होती है और उतनी जमीन में ५० हज़ार महीना मतलब ६ लाख सालाना की बचत नहीं होती। बचत छोड़ो ४-५ बीघा वाले किसान को छोटा किसान समझा जाता है। ४-५ बीघा खेत वाला किसान अपने बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा सकता, बीमार हो जाने पर अच्छा इलाज नहीं करवा सकता है, और न ही अच्छे कपड़े आदि खरीद सकता है। उसका खर्च मुश्किल से चलता है। वह देश की अर्थव्यवस्था के ...
राजनीति की गँगा-कितनी मैली और विषैली
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राजनीति की गँगा-कितनी मैली और विषैली

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                                 आखिर राजनीति में ये सब क्या हो रहा है, राजनीति की गंगा कितनी मैली और विषैली हो गई है। अपने को दूसरों से अलग बताने वाली भाजपा अब अलग नहीं रही, सब दल सत्ता को किसी भी तरह हथियाने के चक्कर में गहरे दलदल का रूप ले चुके हैं, बाहर कोई नहीं निकल पा रहा, हर बार नैतिकता कोसों दूर खड़ी आँसू बहाती रह जाती है। भाजपा व उसके साथी दल जैसे तैसे बिहार में सत्ता में आ तो गए, बड़े सोच विचार के बाद बने १४ सदस्यी मंत्री मंडल में ९ पर तो आपराधिक मामले दर्ज मिले, बेचारे, शिक्षा मंत्री मेवालाल जी सत्ता का मेवा कुछ घँटे ही चख पाये, पुराने घोटाले जो उन्होंने कुलपति रहने के दौरान किये थे, को विपक्षी दलों के उजागर करने पर त्यागपत्र दे बाहर हो गए। देश की राजनीति में अपराधियों का बढ़ता वर्चस्व चिंता का विषय तो ह...
नवरात्रि उत्सव
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नवरात्रि उत्सव

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** हमारे क्षेत्र का नवरात्रि का उत्सव श्रद्धा, आस्था और उपासना के रंग में सरोबार रहता है। मध्यप्रदेश में देवास जिले में एक छोटा सा हमारा गाँव मोखापीपल्या है। वहाँ की कुलदेवी माँ अम्बा है। हम अम्बे माता कहते है। नवरात्रि के नौ दिन वहाँ धूप होती हैं जिसे ज्योत धूप कहते है। नवमी शाम और दशहरा की सुबह धाया पाठ की बैठक होती हैं। धाया पाठ नवरात्रि के नौ दिन होने के बाद भगवान की विदाई को कहते है। इसे संस्कृत में उत्तरार्ध कहते हैं। परिवार में सात पीढ़ी का वरदान है, ईश्वर आप के द्वारे आयेंगे। ऐसी मान्यता है कि ये जोड़ी के रूप में आते हैं, जिन्हे भीलट और कवाजा नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर दो पाटों को पूजा जाता हैं जिन्हें थानक कहते हैं। इनकी सवारी किसी व्यक्ति पर आती है। सभी भक्ति भाव भेंट द्वारा उन्हें संतुष्ट करते हैं। बहुत ही श्रद्धामय वातावरण ह...
गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (२४ नवंबर बलिदान दिवस विशेष)
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गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (२४ नवंबर बलिदान दिवस विशेष)

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) **********************                                               सनातन धर्म की रक्षा में गुरुओं के बलिदानों का विशेष स्थान है, उनके पराक्रम व बलिदानों से बहुत हद तक सनातन धर्म की रक्षा सुनिश्चित हुई। औरंगजेब का शासन था, उसके दरबार में एक कश्मीरी पंडित प्रतिदिन उसे गीता के श्लोक सुनाता था, एक बार उसकी तबियत खराब थी, उसने अपने पुत्र को दरबार में श्लोक पढ़ने भेजा। किन्तु वह उसे बताना भूल गया था कि कौनसे श्लोक दरबार में नही पढ़ना। पुत्र ने औरंगजेब को गीता के सारे श्लोक अर्थ सहित पढ़कर सुनाए। गीता के श्लोकों को सुनकर औरंगजेब बोखला गया वह इस्लाम को ही सर्वश्रेष्ठ मानता था गीता के श्लोकों से उसका यह भ्रम टूट गया था और उसे यह आभास हो गया था कि सनातन धर्म मैं ऐसे कई ग्रंथ व धार्मिक साहित्य है जो हिंदुओं को अपने धर्म पर अडिग रहने के लिए प्रेरित करता है। यह ज...
महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें
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महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ जहां कहीं एकता अखंडित, जहां प्रेम का स्वर है। देश-देश में वहां खड़ा, भारत जीवित भास्वर है।। कविवर श्रेष्ठ दिनकर जी की पंक्तियां 'एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है।' सम्पूर्ण विश्व में भारत का एक अनुपम और अनूठा स्थान है, तो इसका बहुत सा श्रेय यहां की कालजई सभ्यता व संस्कृति का है, को प्राकृतिक रूप से हम सभी में विद्यमान है। प्रकृति की ही देन सारा विश्व है। भारत प्राकृतिक एवं भौगोलिक सुन्दरता को दृष्टि से विश्व का अनोखा और अद्भुत राष्ट्र है। लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोक प्रथाओं, सामाजिक मान्यताओं, मनोविनोद के साधनों की बहुलता व विविधता से हमारा भारतीय समाज ओत प्रोत है। किसी भी समाज या राष्ट्र के परिष्कार की सुदीर्घ परंपरा होती है। उस परंपरा में प्रचलित उन्नत, उदात्त व उत्तम विचारों की श्र...
नैतिकता-अनैतिकता
आलेख

नैतिकता-अनैतिकता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** “बना-बना के दुनिया फिर से मिटाई जाती है जरुर हम में ही कोई कमी पाई जाती है!" नैतिकता क्या होती हैं और अनैतिकता क्या होती हैं? यह प्रश्न अक्सर अनेकों को संभ्रमित करता रहता हैं। नैतिकता के मापदंड क्या होते हैं? रोजमर्रा के व्यवहार में उसका क्या महत्व होता हैं? व्यवहार में कहाँ तक हम इन बातों का विचार कर सकते हैं? या इन बातों का कितना महत्व होना चाहियें या नैतिकता को हम कितना सहन कर सकते हैं? या अनैतिकता हमें कितना प्रभावित या परेशान कर सकती हैं? समाज में व्यक्ति की एक दूसरे से नैतिकता की कितनी और क्या अपेक्षाएं रहती हैं? या नैतिकता और अनैतिकता की ओर देखने का हर एक का द्रष्टिकोण कैसा होना चाहियें? धर्म, संस्कार, प्रथा और परम्पराएं इनका नैतिकता से क्या सम्बन्ध हैं? नैतिकता सिर्फ धर्म पालन के लिए ही होती हैं क्या? नैतिकता का मूल्यमापन कैसे हो? औ...