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गद्य

भारत शादी प्रधान देश
व्यंग्य

भारत शादी प्रधान देश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** क्या कहा... भारत कृषि प्रधान देश है? नहीं जी, मुझे तो लगता है कि भारत शादी प्रधान देश है। भारत परंपराओं का देश भी है, और इस नजरिए से देखें तो यहाँ की प्रमुख परंपरा शादी ही है। शादियाँ यहाँ का मुख्य व्यवसाय, खानपान, परंपरा, रीति-रिवाज... सब कुछ हैं! यूँ तो शादियों का भी एक मौसम होता है, जैसे फसलों का रबी और खरीफ होता है। हिन्दू धर्मावलम्बियों में तो यह खासकर देवताओं की दिनचर्या के अनुकूल होता है। देवता जब अपने शयन काल से बाहर आते हैं, यानी देव उठनी एकादशी से शादियों का सीजन शुरू होता है। लेकिन आजकल शादियाँ हर मौसम में पाई जाती हैं! इस देश का आदमी जब कुछ नहीं कर रहा होता या करने को कुछ नहीं होता, या उसे करने लायक कुछ नहीं छोड़ा गया होता है, तो वो शादी निपटा लेता है! खुद की, नहीं तो पड़ो...
दिवाली का दिवालियापन
व्यंग्य

दिवाली का दिवालियापन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली आ रही है। वैसे दिवाली का क्रेज़ बच्चों में था। अब उन्हें पहनने के लिए नए कपड़े, फोड़ने के लिए पटाखे, और चलाने के लिए फुलझड़ियां चाहिए। खाने के लिए दूध, मावे और चीनी की मिठाई चाहिए। अब तो दिवाली आते ही ग्रीन ट्रिब्यूनल वालों का रोना शुरू हो जाता है। एक्यूआई इंडेक्स एकदम सेंसेक्स की तरह उछलने लगता है। सुप्रीम कोर्ट हरकत में आ जाता है। पटाखे और फुलझड़ियां बेचारे गोदामों में घुटन में जीने को मजबूर हो रहे हैं। उधर आदमी एक्यूआई के बढ़ने की सूचना के साथ ही घुटन महसूस करने लगता है। प्रदूषण का धुआँ ठंडे बस्ते में बैठ जाता है। अब दिवाली के एक महीने पहले और बाद तक जो भी प्रदूषण होगा, उसमें दोषारोपण पराली पर नहीं, वह जले या न जले, दोषारोपण तो पटाखों पर ही होगा। आम आदमी को टैक्स स्लैब में छूट ...
भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश
व्यंग्य

भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आइए, आज मैं आपको एक ऐसी रेसिपी बताने जा रहा हूँ, जो एक सीक्रेट फॉर्मूला है, बिल्कुल कोला कंपनी के सीक्रेट फॉर्मूला की तरह। मजाल है कि पेपर लीक की तरह यह लीक हो जाए। इसका नाम है "भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश"। यह एक ऐसा च्यवनप्राश है जिसे आप किसी भी उम्र के पड़ाव में इस्तेमाल कर सकते हैं, जब आपको नेता बनने का कीड़ा कुलबुलाने लगे। लेकिन अगर आप देखते हैं कि आपके पूत के पांव पालने में ही नेताओं की दुम की तरह हिलते हैं, बच्चे के चेहरे पर भ्रष्ट नेता की तरह कुटिल मुस्कान है, और बच्चा हर सेकंड में मगरमच्छी आँसू बहाता है, तो समझ जाइए कि यह बच्चा आपके सात पीढ़ियों का नाम डुबोने के लिए भ्रष्ट नेता बनने के लिए अवतरित हुआ है। यदि आप बचपन से ही ऐसे बच्चे को यह च्यवनप्राश चटाएंगे, तो निश्चित ही ...
मुझे भी वायरल होना है
व्यंग्य

मुझे भी वायरल होना है

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं परेशान, थका-हारा देवाधिदेव, पतिदेव, अभी बिस्तर पर उल्टे मुँह पड़ा ही था कि न जाने कहाँ से नींद ने मुझे आगोश में ले लिया और मुझे सपना भी आया। जी हाँ, वैसे तो नींद के खर्राटों की आवाज़ से डरकर सपने पास आते ही नहीं, जब घरवाले पास नहीं आते तो सपनों की क्या मजाल। खैर, सपना भी अच्छा था, हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं रखता था। मैं सेलिब्रिटी बन गया था, जी हाँ, एक बहुत बड़ी सेलिब्रिटी। रातों-रात स्टार बनने वाली सेलिब्रिटी, अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर छपने वाली सेलिब्रिटी, चमचमाती गाड़ी के खुले दरवाजे से सटकर पोज़ देने वाली सेलिब्रिटी, मैगज़ीन के पेज थ्री में छपने वाली सेलिब्रिटी, पपराज़ी की शिकार सेलिब्रिटी। जी हाँ, मेरा एक शॉर्ट वीडियो, जिसे रील कहते हैं, वायरल हो गया। यह रील भी कोई मेरी तुच्छ ब...
छोटी दिवाली
व्यंग्य

छोटी दिवाली

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दीवाली दो होती हैं - बड़ी दीवाली और छोटी दीवाली। कब से दीवाली को इस तरह विभाजित किया गया है, इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन मुझे लगता है इसका भी कोई राजनीतिक कारण होगा। शायद एक मांग उठी होगी जैसे पाकिस्तान देश से अलग हुआ था, वैसे ही। लेकिन गनीमत ये रही कि छोटी दीवाली ने अपना नाम नहीं बदला, जबकि छोटे भारत ने अपना नाम बदलकर पाकिस्तान कर लिया। मैंने देखा है कि बड़ा जो होता है, वह अपनी तानाशाही गाहे-बगाहे चला ही लेता है, छोटे को छोटेपन का अहसास ही बड़ा ही कराता है, चाहे छोटे के दो-चार छोटे और क्यों न हो गए हों। अब पाकिस्तान चाहे अपने आकाओं के इशारे पर नंगा नाच दिखाए, लेकिन हम भारतवासी तो भारत को पाकिस्तान का बाप ही मानते हैं! छोटी दीवाली भी अपनी शिकायत लेकर पहुँची कि मुझे छोटी कहकर सब चिढ़...
अपनी माटी
लघुकथा

अपनी माटी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्यों कलुआ की माँ, शहर चलना है क्या?" "नहीं कलुआ के बापू हमें तो अपना गाँव ही भलौ है। क्या, करेंगे शहर जाकर?" "हां! दो-चार दिन जाकर रहने की बात और है, पर हमेशा को बिल्कुल नहीं, कलुआ की माँ।" "हाँ! आप ठीक कह रहे हो। कलुआ तो सरकारी नौकर हो गया है, अब वह तो गाँव लौटने से रहा, कलुआ के बापू।" "बिल्कुल सही! पर हमारे तो अपने गांव, अपनी ज़मीन-जायदाद, अपनी माटी, अपनी खेती-बाड़ी में जान बसती है, कलुआ की माँ।" "अच्छा ठीक है हम कहीं नहीं जा रहे, पर तुम खाना तो खा लो। गरमागरम रोटियाँ चूल्हे पर सिकी।" "हाँ सही बात है, पर उधर शहर में तो सब कुछ मशीनों से चलता है। चाहे रोटी हो चाहे ज़िन्दगी, यह देशी स्वाद कहाँ।" इस पर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदे...
हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण
आलेख

हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि में विश्व की लगभग सभी भाषाओं की ध्वनियों केलिए पृथक ध्वनिचिह्न प्राप्त हैं। कुछ नहीं भी हैं तो हिंदी का ´विकासशीलता´ का गुण उसे अपना कर नया चिह्न दे देता है यथा, क=क़, ग=ग़, ज=ज़ आदि। चूँकि अंग्रेज़ी स्वयं में एक वैश्विक भाषा का रूप ले चुकी है तथा हिंदी के लगभग सभी पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेज़ी में प्राप्त हैं, प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे मे समस्या तब आती है जब राम को Rama कृष्ण को Krishna, सुग्रीव को Sugriva, Omkara, Veda, Chanakya, Ashoka आदि लिखा जाता है तथा रामा, कृष्णा, नारदा, चाणक्या ओमकारा, वेदा, अशोका लोग बोलने भी लगे हैं। इससे मूल शब्दों के अर्थ का अनर्थ भी हो रहा है। अहिंदी भाषियों, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले प्रवासी भारतीयों, विदेशों में जन्मे भारतीय बच्चों तथा भारत म...
राजनीति का जलेबीकरण
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राजनीति का जलेबीकरण

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली की सजावट बाज़ार में जोर पकड़ रही है। हलवाई की दुकान पर खड़ा हूं। पत्नी ने १ किलो जलेबी लाने के लिए कहा है। पता नहीं पिछले दस दिनों से उसकी ज़ुबान पर भी जलेबी चढ़ी हुई है। पहले तो कभी इस मिठाई का नाम भी नहीं लिया कभी। काजू कतली से नीचे बात ही नहीं होती थी। हमने तो सोचा था कि दूध-जलेबी की स्वाद जो गांवों में मिलता था, वो कहीं बचपन में ही छूट गया। अब ताज्नीति के धुरंधर बात भी कर रहे हैं तो जलेबी की ही..दूध की कोई नहीं कर रहा.. ..अभी दूध की बात करें तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए.. । हमारा तो बचपन ही जबेली कहने से जलेबी कहने के बीच का सफ़र है बस ...। गरीबों की दिवाली भी जलेबी से ही मनती थी। उनकी लक्ष्मी पूजा में अगर दो जलेबियाँ मिल जाए, तो कहते फिरते थे, "इस बार दिवाली अच्छी र...
न जन्म सहज न मृत्यु सहज
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न जन्म सहज न मृत्यु सहज

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** पुराने समय में महिलाएं प्रसव घर पर ही करती थी। उस समय दाईया होती थी जो सुरक्षित प्रसव कराती थी। अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। न कोई ज्यादा खर्च न कोई झंझट सरलता से प्रसव हो जाता था। वर्तमान युग में प्रत्येक प्रसव अस्पताल में हो रहा है और डॉक्टर पैसा कमाने के चक्कर में साधारण प्रसव के स्थान पर आपरेशन द्वारा प्रसव कराते है। बच्चे के जन्म के साथ परिवार में खुशियां आती है और प्रसव आपरेशन द्वारा होता है तो डॉक्टर का बिल बढ़ जाता है इसलिए आपकी खुशी के साथ साथ डॉक्टर भी खुश हो जाता है। पहिले जब कोई व्यक्ति बीमार या दुर्घटना ग्रस्त होता था तो डॉक्टर यथा संभव साधनों द्वारा उसका उपचार करते थे। उनकी भावना मरीज को ठीक करने की होती थी। जब हमारा उद्देश्य सही होता है तो स्वयं भगवान आपकी मदद करने के लिए आ जाते है और अक्स...
घूंघट के पट खोल
व्यंग्य

घूंघट के पट खोल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं कुछ अति मित्रताप्रेमी किस्म का बंदा हूँ, जल्दी से फेसबुक पर अपने ५ के का टारगेट रीच करना चाहता हूँ, ताकि मेरा पेज भी पब्लिक फिगर बन जाए। सच पूछो तो कुछ सेलिब्रिटी जैसी फीलिंग आती है, शायद मेरी ये भावना फेसबुक के खोजी कुत्ते ने सूंघ ली है। फेसबुक की कृत्रिम बुद्धीमता भी आजकल लोगों की फीलिंग के सूंघ-सूंघ कर पहचान रहा है। फीलिंग के साथ खिलवाड़ करने से पहले सूंघना पड़ता है कि फीलिंग क्या है, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए। पहले तो मुझे टैग करवाने में बड़ा मज़ा आता था, तो रोज़ मेरे टैगवीर दोस्त मुझे दस-दस तस्वीरों के साथ टैग कर देते थे। पूरी टाइम लाइन इन टैग वीरों के सुहागरात, वर्षगाँठ, सत्य, असत्य विचार, देवी-देवताओं राक्षसों गंदार्भ किन्नरों के फोटो से भरी रहती थी। फिर कहीं से मुझे पता ल...
अब तो दरश दिखा जा
व्यंग्य

अब तो दरश दिखा जा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** हे लौह पथ गामिनी, अब तो दरश दिखाओ। देखो मेरी स्थिति पर तरस खाओ। पिछली बार तो मैं खुद था जो एक शांत प्रेमी की तरह घंटों तुम्हारा इंतज़ार करता रहा, बहुत इंतज़ार के बाद आखिर तुम आयी ..इठलाती हुई। तुमने एक नज़र मिलाकर भी मेरी तरफ देखना मुनासिब नहीं समझा। मैं भी तुम्हारे हज़ारों आशिकों की भीड़ में कुछ पुराने घायल प्रेमी की तरह "लैला लैला" चिल्लाए तुम्हारे पीछे दौड़ता रहा। वो तो शुक्र है एक मेरे ही जैसे दिलजले का जिसने हाथ पकड़ कर मुझे चढ़ा लिया। लेकिन आज तो मैं मेरे अतिथि को छोड़ने आया हूँ, इस अतिथि ने पिछले १० दिन से मुझे पकड़ रखा है। आज बड़ी मुश्किल से इनका जाने का मन हुआ है। घर से चला था, तुम्हारे ऑफिशियल समय से आधा घंटा लेट चला था, अभी आधा घंटा और हो गया है लेकिन तुम्हारे दर्शन मुझे इस ...
खुद से खुद की मुलाकात
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खुद से खुद की मुलाकात

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ध्यान योग साधना से खुद को खुद के अंदर झाँककर, एक मुलाकात खुद ने खुद से की। मैं किस जगह और किस डगर पर हूं और मुझे कहां पहुंचना है? जब मैं खुद को खुद से पहचानी, तो महसूस किया मैं एक कवियत्री हूं मैं अपने भावों के द्वारा अपने विचार सबके सामने रखती हूं। मैं प्रकृति, एक दूसरे के भाव विचार, धरती, अंबर, जलवायु, हरियाली, नदी, पर्वत समन्दर से रूबरू होकर अपने भाव प्रकट करती हूं। मैं एक आर्टिस्ट हू मैं अपनी कला को प्रदर्शित कर, कविता के माध्यम से उसके अंदर तन्मय और लीन कर देती हूं, सोचने और समझने पर बाध्य कर देती हूं। अरे! मेरी कला तो इतने सालों तक छिपी हुई थी इन मंचो के द्वारा व आप सबके द्वारा पसंद करने पर मेरी कला को में प्रदर्शित कर सकी और अपने आप को पहचान सकी, की प्रभु ने भी मुझे कुछ सीखा कर भेजा है जो कला हर व्यक्ति में रह...
पितरों की शान्ति
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पितरों की शान्ति

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पिंड और प्राण का संयोग कोई विशेष लक्ष्य लिए होता है। वह पूरा होते ही वियोग निश्चित होता है। तात्पर्य यह हैं कि शरीर और आत्मा ये दोनों ही अलग है। आत्मा अविनाशी, चेतन ज्योति बिन्दु, शान्त स्वरूप होती है। शरीर हाड, मांस, रक्त से बनी भगवान की अनुपम कृति है। जिस अवचेतन में चेतनता आत्मा के संयोग से आती है। आत्मा में ८४, जन्मों के कर्मों का लेखा-जोखा जमा होता है। वह उसे जन्म मृत्यु के चक्र में पूरा करती है। इस प्रकार चार युग सतयुग त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग में आत्मा अपने घर ब्रह्म तत्व से स्थुल लोक पृथ्वी पर समय अनुसार आकर अपना पार्ट इस शरीर के माध्यम से सृष्टि रुपी रंगमंच पर अदा करती है। ठीक पांच हजार साल के सृष्टि चक्र में उसे चक्र लगाना होता है। अतः देह से ही सारे संबंध होते हैं। आत्मा ने देह छोड़ा वैसे ही सारे संबंध दूसरे जन्...
प्यार की नौटंकी
व्यंग्य

प्यार की नौटंकी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ज़िंदगी में सब कुछ तेजी से बदल रहा है। इतनी तेजी से तो मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में मूवी भी नहीं बदल रही है। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है, तो वह है प्यार! जी हां, प्यार जिसे आप प्रेम, अनुराग, आसक्ति, मोह, स्नेह, रति, प्रीति, अनुरंजन, लगाव, अनुरक्त, इश्क़, मोहब्बत, स्नेहसिक्त, प्रेमभाव, राग, नेह, उल्फ़त, चाहत, वफ़ा, रफ़ाक़त और दिल्लगी जैसे साहित्यिक नामों से या हालात-ए-सूरत की असली शब्दावली से निकले शब्द जैसे प्रेम का पेंडेमिक, मोहब्बत का मीज़ल्स, प्यार का पीलिया, चाहत का चिकनगुनिया, आकर्षण का ऐंठन, रूमानी रूबेला, स्नेह का स्वाइन फ्लू, दिल का डेंगू, मोह का मलेरिया, दिल्लगी का दस्त, प्रीत की पथरी, मजनूं का मस्तिष्क ज्वर, माशूका का मतिभ्रम, लगाव का लूज मोशन, चाहत का चेचक, इश्क़ का बुखार, साजन ...
मैं देश नही बेचता
लघुकथा

मैं देश नही बेचता

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ********************  बनारसी दास जी सताधारी पार्टी के बहुत बड़े नेता था। बहुत ही तिकड़मी और प्रभाव शाली थे। वे जब भी गाड़ी से अपने ऑफिस जाते थे तो एक ट्रैफिक सिग्नल पर उनकी मुलाकात एक बच्चे से होती थी वह बच्चा कभी गुब्बारे बेचता कभी फल बेचता था।सीजन के हिसाब से कुछ न कुछ बेचता रहता था। आज भी जब बनारसी जी की गाड़ी सिग्नल पर रुकी। तो बच्चा छाता लेकर के बनारसी दास के पास आया और उनसे खरीदने के लिए बिनती करने लगा। बनारसी दास जी ने इस बच्चे से पूछा- तुम रोज नई-नई चीजें बेचते हो? ऐसी कौन सी चीज है जो तुम नहीं बेचते हो? साहब मैं देश नही बेचता हूं। यह कहकर बालक चुप हो गया परन्तु उस वक्त बनारसी दास जी के चेहरे से रंगत उड़ रही थी। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता ...
भेड़ियों का आतंक
आलेख

भेड़ियों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर का पुलिस थाना, समय दिन का ही कोई.., वैसे भी पुलिस थाने तो २४ घंटे खुले रहते हैं, आखिर अपराध कोई समय देखकर थोड़े ही किए जाते हैं। पहले अपराध रात को होते थे और थाने दिन में खुलते थे, तो बड़ी परेशानी थी। पुलिस वालों को अपनी नींद हराम करनी पड़ती थी। वैसे भी हरामखोरी पुलिस की कार्यप्रणाली में रहे तो ठीक है, अब ये ये नींद में भी आ गई तो पुलिस वालों ने बगावत कर दी। इसलिए उनकी सुविधा के लिए अपराध दिन में ही होने लगे, पुलिस वालों के ऑफिस टाइम से मैच करते हुए। तो हाँ, पुलिस थाने का सीन वैसा ही, जैसा देश के हर कोने में किसी भी पुलिस स्टेशन का हो सकता है। ऑफिस के बरामदे में चार पांच कुर्सियाँ डली हुईं, उनके आगे एक कॉमन राउंड टेबल बिछी हुई। कुछ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सा सीन है जी..। थाने की ...
आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता
आलेख

आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ********************  अच्छा शिक्षक उत्साही, मिलनसार, सहज, शिक्षार्थियों के साथ तालमेल विकसित करने में सक्षम, अपने छात्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, मिलनसार, शिक्षार्थियों में लोकप्रिय और आदर्श प्रतिमान के रूप में अपनी स्थिति के प्रति हमेशा सचेत होता है। एक अच्छे शिक्षक में कई तरह के हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स भी होते हैं जिन्हें प्रभावी शिक्षकों को निखारना चाहिए, जैसे कि कक्षा प्रबंधन से लेकर भावनात्मक बुद्धिमत्ता तक। अपने सबसे अच्छे शिक्षक के बारे में सोचें। जब शिक्षकों के पास आवश्यक ज्ञान और कौशल होगा, तभी वे इतना बड़ा कार्य करने की स्थिति में होंगे। एक सफल या आदर्श शिक्षक वह शिक्षक होता है जिसे छात्र प्रसन्नता से याद करते हैं, अच्छी तरह से पढ़ाना जानते हैं कि प्रत्येक छात्र समझता है। यह वह शिक्षक है जो स्पष्ट रूप से, संक्षेप में और विषय पर ...
हिंदी माता
व्यंग्य

हिंदी माता

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ओपीडी में बैठा था कि एक मक्कार मानस नुमा, झूठ-प्रपंच शिरोमणि, मेरे दूर के रिश्तेदार और एक फ्रॉड संस्था में उच्च पद पर काबिज एक महाशय चैंबर में आ धमके। सुबह-सुबह आयी इस पनौती से आज दिन भर का ओपीडी प्रभावित होने की आशंका से ही मन खिन्न सा हो गया। क्या करें? दूर के रिश्तेदार से वैसे मैं दूरी बनाकर चलता हूँ, दूर के रिश्तेदार और सड़क पर सांड कब पटखनी दे दे, कह नहीं सकते। कई बार अपनी पटखनी दिला भी चुका हूँ। खैर, आशा के विपरीत आज तो महाशय एक आमंत्रण कार्ड साथ में लेकर आये। आमंत्रण था ‘चौदह सितम्बर’ को ‘हिंदी दिवस’ पर वो भी मुख्य अतिथि के रूप में। न जाने कैसे उन्हें पता लग गया था कि मैं आजकल हिंदी में लिखने लग गया हूँ। लेकिन हिंदी में लिखने मात्र से ही मैं हिंदी का खेवनहार तो नहीं बन गया। मुझे ...
जामुन का पेड़
कहानी

जामुन का पेड़

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** उज्ज्वल अपनी मां से बोला, मां मैं कल शहर चला जाऊंगा तो फिर एक महिने बाद ही आना होगा। इसलिए में अपने दोस्त केशव से मिलकर आता हूं, वो भी परसों अपनी नौकरी पर चला जायगा। फिर ना जाने कब मिलना होगा। अभी आता हूं। हां, चला तो जा पर शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना, तेरी बुआ आयेगी तुझसे मिलने, हां ठीक है। उज्ज्वल अभी घर से निकला ही था कि बरसात होने लगी एक बार तो सोचा वापस घर जाकर छाता ले आता हूं। तभी विद्यालय की ओर से आती हुई घंटी की आवाज उज्ज्वल के कानों में पड़ी, उसने सोचा क्यों ना स्कूल की दीवार के पास खड़ा हो जाता हूं। जिससे बरसात में भीगने से बच जाऊंगा। बच्चों के शोरगुल की आवाज ने उसके मन में भी स्कूल के दिनों की याद ताजा कर दी थी। बरसात कुछ देर रुक गई। पर पेड़ो के पत्तो पर ठहरा पानी अभी भी धीरे-धीरे करके टपक रहा था। उज्ज्वल अब चल पड़ा...
अनासक्ति भाव
आलेख

अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** द्वारिकाधीश स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन सम्पत्ति,मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहेपरिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के बी...
टेंशन नहीं होने की टेंशन
व्यंग्य

टेंशन नहीं होने की टेंशन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज का दिन भाई ऐसा तो कभी सोचा नहीं, दिन भर सब कुछ बढ़िया चल रहा है- घर भी, बाहर भी, बच्चे सेटल्ड, कोई अनुचित डिमांड कहीं से नहीं। लाइफ स्मूथ जैसे हाईवे पर चल रही सौ की स्पीड में कार। क्या हुआ आज मेरे दिन को, इतना बढ़िया दिन ! आज बीवी से भी कोई खटपट नहीं, घर पे काम वाली भी समय पर आ गई, वरना उसका गुस्सा मुझ पर ही निकलता। बेटे का भी कोई फोन नहीं आया। बेटे के फोन का मतलब, जैसे एटीएम मशीन में कार्ड लगाना होता है। मरीज भी बिना कोई उलझन भरे प्रश्न किए, चुपचाप मेरे बताए निर्देशों का पालन करते नजर आ रहे हैं। क्या बात है, आज स्टाफ भी समय पर आ गया। स्वीपर ने सफाई भी बढ़िया कर दी है। ओपीडी भी फुल है। शाम तक मेरे को थोड़ी सी घबराहट होने लगी। ये क्या हो रहा है आज? टेंशन क्यूँ नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता...
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४
आलेख

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** (चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं है) संकलनकर्ता - भीष्म कुकरेती ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा, उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ, बाड्यों, छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है), दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी, उत्तर में पाली गाँव हैं। ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है - लोक गायन व नृत्य - आम लोग, स्त्रियां गाती हैं, गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति...
माखन लीला
व्यंग्य

माखन लीला

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** जन्माष्टमी पर कान्हा और उनकी माखन लीला बड़ी याद आती है। यूँ तो कृष्ण भगवान् का तो पूरा जीवन ही लीलामय है, लेकिन मुझे हमेशा सबसे ज्यादा आकर्षित किया है तो उनकी माखन लीला ने। “मुख माखन लिपटा दिखे, कान्हा पकड़े कान। बाल रूप में सज रहे, कैसे श्री भगवान।“ यूं तो बचपन में माताजी हमें भी कान्हा बना के ही रखती थीं। सुबह सुबह ही यसुदा मैया की तरह माथे पर चौड़ा सा कला टीका लगा देती थी। हम दिन भर मोहल्ले की गलियन की धुल फांकते शाम को घर पहुँचते तो माताजी को अपना लगाया काला टीका कहीं नजर नहीं आता था। नख से शिख तक कृष्ण वर्ण के बन कर माताजी के सामने उपस्थित होते थे। गाय चराने तो नहीं जाते थे, हां दिन भर रेंदा-पेंदा धनसुख मनसुख की टोलियां हमारी भी थी जो गली के कुत्तों को चराते डोलते थे। मक्खन हमें भी ...
बाढ़ पर्यटन
व्यंग्य

बाढ़ पर्यटन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर की एक पॉश कॉलोनी, दिन का समय, एक बहुमंजिली ईमारत के बहु कक्षीय फ्लैट में वातानुकूलित वातावरण में एक पार्टी चल रही है। ये बहुत कुछ नाईट पार्टियों की तरह ही है बस दिन में इनका नाम किट्टी पार्टी हो जाता है। कुछ किटटीयाँ मेरा मतलब संभ्रांत महिलाएं सजी धजी काया के साथ और टॉपिंग के रूप लिपस्टिक क्रीम पाउडर धारण कर, अपने वॉलेट में पति के क्रेडिट कार्ड और पति की जेब से सेंध लगाकर निकाली हुई धनराशी के साथ एकत्रित होती हैं। हंसी-ठिठोली के माहौल में, एक किट्टी जो उस दिन पार्टी में नहीं आयी, उसकी टीन टप्पड उखाड़ने का काम रहता है। उन्हीं में एक महिला जिनके हाव-भाव से और जिस तरह से उन्हें भाव दिया जा रहा था, साफ नजर आ रहा था कि यह कोई बहुत ही शक्तिशाली महिला है, किट्टी पार्टी की सदस्य नहीं लेकिन जिसके घर पार्टी है...
थम के बरस ओ जरा जम के बरस
व्यंग्य

थम के बरस ओ जरा जम के बरस

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जब मौसम विज्ञान इतना अपडेट नहीं था तब बारिश भी इतनी चतुर सुजान नहीं थी और सुनिश्चित समय पर आरंभ हो जाती थी। आज मौसम विभाग के तरक्की का दौर है बारिश को लेकर जितने भी अटकलें मौसम विभाग लगाता है करीब-करीब सभी अटकलें केवल अटकलें ही रह जाती हैं। आज बारिश के ये हालात हो चलें कि मौसम विभाग जहां अतिबारिश बताता है वहां सूखा पड़ जाता है। और जहां सूखे की आशंकाएं जताई जाती हैं वहां बाढ़ आ जाती है। अब बारिश बहुत होशियार और चालाक हो चुकी है पूरी तरह भारतीय नेताओं के जैसे जब आप घर से बाहर हों तभी बारिश होती है जब आपके पास छाता न हो जब आपके पास रेनकोट न हो तभी बारिश होती है। आदमी को भिगोकर अपने होने का सबूत देती है। इस वर्ष बारिश किसी घोटाले की तरह आई और किसी जांच दल की तरह चुपचाप जा रही है। बचपन में जब रात को तेज बारिश हो रही होती थी त...