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स्मृति

उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द
स्मृति

उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वाराणसी के पूत प्रेमचन्द साहित्य के तेजस्वी नक्षत्र उपन्यास चक्र के केंद्रबिंदु भाव विचारों के महासिंधु बीसवीं सदी के युग पुरुष कला के धनी धनपत राय आदर्शों से यथार्थ की ओर नगरीय ग्रामीण सम्मिश्रण दलितों, महिलाओं, कृषकों सामाजिक परिवेश की ओर चलती रही लेखनी निरंतर कलम के नायाब सिपाही की सेवासदन से हुआ आरंभ अधूरा रह गया मंगलसूत्र कर्मभूमि रंगभूमि गोदान प्रेमाश्रम रूठीरानी गबन कायाकल्प प्रतिज्ञा आदि श्रृंखला उपन्यासों की बनी देशभक्त व मूर्धन्य वक्ता थे सफल कहानीकार भी थे जो निर्धनता स्वयं ने झेली उन्हीं के वे हिमायती थे दलित निर्धन प्रताड़ित ही सजीव हुए पात्र रूप में समाजसुधार की दिशा में विधवा शिवरानी से विवाह निर्मला पात्र बनी विमाता हर चरित्र लिया आसपास से जीवंत चित्रण समाज का समेटा पन्द्रह उप...
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
कविता, स्मृति

डॉ. राजेंद्र प्रसाद

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सादा जीवन और थे उच्च विचार ! सत्यनिष्ठ, शांत, निर्मल व्यवहार !! निष्ठावान उच्च मूल्यों को अर्पित ! राष्ट्र सेवा हेतु जीवन समर्पित !! कर्तव्यनिष्ठ देशभक्त राजनेता ! महान व्यक्तित्व ज्यो सतयुग त्रेता!! बिहार जीरादेई सिवान जिला ! कमलेश्वरी गोद अप्रतिम कमल खिला!! सामान्य जमींदार परिवार में पले... कोलकाता लॉ कालेज स्नातक पढ़े!! वहीं उच्च न्यायालय में किया अभ्यास! फिर पटना तबादले का किया प्रयास !! गांधी के आह्वान पर होकर विकल! कानून की प्रैक्टिसे छोड़ दी सकल !! महात्मा गांधी थे उनके आदर्श ! सत्य अहिंसा का लघु जीवन विमर्श !! असहयोग, सत्याग्रह, भारत छोड़ो! मे सक्रिय रह बोले ब्रिटिश बल तोड़ो!! भोगी कारावास की यातनाएँ ! आत्मबल समक्ष नत रही विपदाएं!! राष्ट्रहित हेतु बने सक्रिय पत्रकार ! हिंदी हित आजीवन राष्...
छत्र-छाया में
कविता, स्मृति

छत्र-छाया में

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** होता परिवार छत्रछाया में, कितने निश्चिंत रहते आज | पिता होते नब्बे वर्ष के आज, माताश्री होती तिरासी वर्ष की आज || जीने नहीं दिया बावन वर्ष भी, सपने देखता नब्बे वर्ष का | जननी भी तो जी नहीं सकी, जीवन अपना नब्बे वर्ष का || मूल्य आदर्शो के धनी पिता का, अनुशासन हम पर सदा रहता | वैदिक नियम के दृढ पालन से, अनुशासित मन सदा रहता || जीवन संघर्ष की प्रबल शिक्षा, मिलती पिता के जीवन से | संस्कार संयम की संयुक्त शिक्षा, मिलती रहती माँ के जीवन से || यदि होते दोनों सिर पर आज, परिवार हमारा अलौकिक होता | चलता शासन पिता का आज, समाज हमारा अलौकिक होता || न होती जयंती-पुण्यतिथि की चर्चा, जन्मोत्सव घर में होता आज | होती लधूनेश्वर महादेव की पूजा, पूजनोत्सव घर में होता आज || होता परिवार छत्रछाया में, कितने निश्चिंत रहते आज | ...
लिए संग-संग आपको जीती… मैं आपका ही अंश
स्मृति

लिए संग-संग आपको जीती… मैं आपका ही अंश

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** बड़ा अभिमान होता है मुझे कि मैं मानवता के पैरोकार, ४८ पुस्तकों के रचनाकार प्रोफेसर श्यामनंदन शास्त्री जी की बेटी हूंँ! जिन्होंने आज से आधी सदी पूर्व ईश्वर से विकल प्रार्थना में मुझे मांँगा और मेरे जन्मोत्सव में विवाह जैसा भव्य आयोजन कर रिश्तेदारों में १०,००० के कपड़े मारे खुशी के बाँट दिए....... ये सब उस देश, प्रदेश और समाज में जहांँ बेटियों के जन्म की खबर पाकर मांँ-बाप और रिश्तेदारों की छाती सूख जाती है! चेहरे पर मुर्दनी छा जाती है!! तथा मन और घर में मातम पसर जाता है!!!.... जहांँ आज के इस इकीसवीं सदी में भी कन्या भ्रुण-हत्या जैसा क्रूर, घिनौना और अमानवीय कृत्य बेखटके चलन में है!! फिर बड़े नेह से, छोह से, जतन से पाला मुझे.... रेशा-रेशा गढ़ा मुझे ... भाइयों से जायदा दुलारा मुझे... पढ़ाया मुझे... डबल एम.ए., पीएच. डी. नेट. स्लेट कराया मुझे....
ऐसे थे दासाब
कविता, स्मृति

ऐसे थे दासाब

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे प्रस्तुत रचना मैंने “पिता दिवस” पर अपने ससुर जी स्व.पं.नारायण राव जी दुबे, जिन्हें हम दासाब कहते थे, की स्मृति में लिखी है। मेरे ससुर जी मां दुर्गा के अनन्य भक्त रहे। उनका जन्म दुर्गा अष्टमी को हुआ और दुर्गा अष्टमी को ही वे इच्छा मृत्यु को प्राप्त हुए। इन्दौर, उज्जैन और देवास जिले के लगभग ४०-५० गांवों में वे कर्मकाण्ड के साथ जीवनपर्यन्त भागवत प्रवचन करते रहे। उनके जीवन से जुडे एवं इस रचना में समाहित, उन संस्मरणों को प्रत्यक्ष देखने समझने का अवसर तो मुझे नहीं मिला। लेकिन जो कुछ मुझे इस परिवार में आकर देखने-सुनने को मिला उसी के आधार पर यह कविता मेरी उनके प्रति स्वरचित श्रद्धांजली है। जब दासाब भागवत प्रवचन कर लौटते खादी का धोती कुर्ता पहने दिखते थे तालाब के पार हम पगडंडी-पगडंडी दौडते हो लेते थे उनके सा...
वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल
आलेख, नैतिक शिक्षा, स्मृति

वर्तमान परिदृश्य और भूतकाल के 45 साल

रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" बालमन के भी स्वप्न है, वे भी कल्पना लोक में विचरण करते है उनके भी मन मे लालसा के साथ जिज्ञासा होती है। बच्चों के बचपन को पुस्तकों, ग्रीष्म कालीन,शीतकालीन शिविरों में झोंका जा रहा है। छुट्टियां भी कम होती जा रही है। प्रातःकाल घूमना, दौड़ लगाना, खेलकूद आदि तो जैसे जड़वत होते जा रहे है। उनकी जगह मोबाइल फोन दूरदर्शन आदि ने ले ली है। वीडियो गेम से खेल की कमी को पूरा किया जा रहा है। इससे एक तेजतर्रार व मजबूत नस्ल की अपेक्षा नही की जा सकती। कमजोर बच्चे भले पढ़ने - लिखने में आगे हो जाये लेकिन उनमें सामान्य ज्ञान का अभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। पहले हम पढ़ाई के साथ पट्टी पहाड़े में पाव, अद्दा, पौन आदि भी सीखते थे। लेकिन आज के बच्चों को यह सब समझ नही आता। आज बच्चों को कोई सामान लाने का कहा जाए तो वह आना कानी शुरू कर देते है या बहाना बना लेते है। जबकि पहले अगर पड़ोसी भी...