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पद्य

सावन का महिना
कविता

सावन का महिना

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का महिना रिमझिम-रिमझिम देखो बरसे मेघ, पिया प्रियतम देखो झूला झूले हरियाली ओढ़े वन उपवन, फूलों से महके चमन, पपीहा करे वन मै शोर, सावन की उमंग नाचे देखो उन्मद मोर, रिमझिम-रिमझिम सावन की फुहार, कोयल का देखो है शोर, उमड-घुमड कर बरसे बादल, कान्हा के होठौ पर मुरली तान सुनाये मीठे बोल। सखिया देखो भई बावरी, डोलत देखो हे मधुबन, काना की बंशी की धुन पर नाचत देखो ब्रजबाला सब, देखो वन मै झूले राधा संग कृष्ण। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर...
ये पब्लिक है
कविता

ये पब्लिक है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये पब्लिक है कुछ नहीं जानती है, हवाबाज जादूगर जो दिखा दे उसे ही सब कुछ मानती है, कोई कुछ व्हाट्सएप पर फेंक दिया, फेसबुक पर टैग किया, ट्विटर पर बकलोली की, किसी ने हंसी ठिठोली की, और ये पब्लिक मान जाती है, सभी झूठों को सही मान जाती है, आई टी सेल वालों की बातें बन ज्ञान सुहाती है, अब कैसे कहें कि ये पब्लिक है सब जानती है, प्राचीन काल से ही सभी झूठ को सच मानती है, यदि ऐसा है तो क्यों है कभी नहीं लगाती तर्क, मीठे,मनभावन और दिव्य लगते हैं सारे के सारे कुतर्क, जब तक गप्पों को उचित तर्कों से काटेंगे नहीं, सच को वैज्ञानिकता के आधार पर अलग कर छांटेंगे नहीं, तब तक एक ही बात कहता रहूंगा, ये पब्लिक है कुछ भी नहीं जानती। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र...
समय ही समय पर आदमी को नाम देता है
कविता

समय ही समय पर आदमी को नाम देता है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** समय ही समय पर आदमी को नाम देता है। समय ही आदमी को, कर गुमनाम देता है।। वक्त बदले अच्छा तो, तुम मगरूर मत होना। आदमी को गिराता वक्त, बहुत गरूर का होना।। समय की ताकत समझो, ये कर नीलाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।। कुछ लोग वक्त के साथ, अभिमानी हो जाते हैं। कुछ लोग समय के अनुभव से, ज्ञानी हो जाते हैं।। जो वक्त से सीखते, वक्त ही उनको ईनाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।। वक्त में ताकत है, हाथों की लकीर बदलने की। समय में शक्ति है, आदमी की तकदीर बदलने की।। समय हीआदमी को, पहचान और सलाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।। समय का नियम कि, समय कभी रुकता नहीं है। समय की मिसाल है कि, कभी झुकता नहीं है।। समय अपने अनादर पर, नाम बदनाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।।...
रखें हौसला हम जीवन में
कविता

रखें हौसला हम जीवन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मानव जीवन कठिन पहेली, नहीं समझ में आती। सारी दुनिया की आबादी, समझ नहीं क्यों पाती? जीवन में बाधा आ जाना, सहज सरल होता है। बुद्धिमान लड़ता बाधा से, पर कायर रोता है। बिना समस्या वाला जीवन, कभी मान ना पाता। पल-पल घिरा समस्याओं से, कहते जिसे विधाता। परेशानियाँ विपदा आना, जीवन का हिस्सा है। बिना बुलाए आ जाती हैं, यह सच्चा किस्सा है। सम्मुख देख समस्या मानव, पल में घबरा जाते। बुद्धिमान जन इनसे लड़कर, सदा सफलता पाते। डटकर लड़ें समस्याओं से, समाधान पाएंगे। रखें हौसला हम जीवन में, मंजिल पा जाएंगे। ऐसी नहीं समस्या कोई, मिल न सके हल जिसका। भला चढ़े वह क्या पर्वत पर, लगे जिसे वह खिसका? ढूढें समाधान दृढ़ता से, कर विचार निज मन में। कदम सफलता उनके चूमे, पग-पग पर जीवन में। चाहे जैसी द...
श्री गुरु पद पंकज नमन
कविता

श्री गुरु पद पंकज नमन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** बड़ा कठिन सदगुरु बिना, मिलना जग में नव ज्ञान। जो करे कृपा गुरुवर अगर, बन जाता अविज्ञ गुणवान।। प्रथम गुरु कहलाई जाती, निज जननी ही सदा जग में। चुरा ब्रम्हा से खुशियां अगनित लिख देती संतति के भग में।। माटी भी उगलती है मोती, पड़ जाती है जब गुरु दृष्टि। कण-कण कुंदन बन जाता, पग-पग प्रमुदित होती सृष्टि।। कैसी भी आएं बाधा पथ पर, आसा करे गुरुवर की सीख। कलियों से महके स्वप्न-सिंदूरी, ऐतिहासिक बन जाए तारीख।। छल-बल, घृणा, द्वेष मिटाकर, सत्य-न्याय, दया-धर्म प्रचारे। मुखरित हो मानवता जग में, प्रतिपल यही जयघोष उचारे।। गुरु से ही बड़ते हैं यश-वैभव, करते हैं गुरु ही सौभाग्य सृजन। गोविंद की जो कराए अनुभूति ऐंसे, श्री गुरु पद पंकज नमन।। परिचय :-  गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोर...
शिकायत
कविता

शिकायत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** क्या बादल इंसानों से बात नही करते बेचैन निगाहे ताकती बादलों को। मन ही मन दुआएं माँगती ऊपर वाले से बादलों से कहे की बरस जा काले घन को देख मयूर नाचता पीहू पीहू बोल मनाता। बादलअपना अभिमान दुनिया को दिखाता गर्जन कर बिजलियां चमकाता। ये देख रहवासी बरसने की अर्जियां वृक्षों -हवाओं से मौसम की कोर्ट में लगाने लगे। वृक्षो ने खिंचे बादलों को अपनी औऱ हवाएं टकराने लगी बादलों को आपस में। वृक्ष ,हवाओं ने छेड़ दिया युध्द बादलों से अभिमान हुआ खत्म झुकना ही पड़ा आखिर बादलो को। खेतों की फसलों का ग़ुस्सा हुआ थम। सब ने मिलकर की बादलों पर कार्यवाही जब भी घुमडो हमारे सर पर बरसना जरूर। अबकी बार ऐसा नही करोगे तो घन श्याम से करेंगे तुम्हारी शिकायत। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन...
काले-काले जामुन
कविता

काले-काले जामुन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** खट्टे मीठे काले जामुन, बच्चे बूढ़े सबको भाये जामुन, काले काले गोल मटोल, फायदे करते है भरपूर। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल है करते, मोटापे को दूर है करते हैं, चेहरे को चमकाये जामुन, फाइबर से भरपूर हैं जामुन। कोई खट्टे कोई मीठे, खाते ही दाँत कटकटाये जामुन। खाते ही देखो आँख मिचते, आँख मारते हम हे जामुन। भला लगे चाहे बुरा लगे, बस जामुन तो बस होते है जामुन। देखो खट्टे खट्टे जामुन। मीठे जामुन गुटली कड़वी, चूस चुस कर खाते जामुन। मौसम का एक पल है जामुन, स्वास्थवर्धक होते हे जामुन। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय श...
गांव का पेड़
कविता

गांव का पेड़

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रह गया गांव का पेड़ वहीं उसी जगह गांव में, बस, ट्रक, ट्रेन, नाव व जहाज की सफर कर फल पहुंच गए शहर गगनचुंबी कंक्रीटों के छांव में, गांव के पेड़ आज भी कर रहे अपने वादे पूरे, नहीं तोड़ा भरोसा, नहीं छोड़ रहे अधूरे, तोड़ रहा फल बच्चा, बुजुर्ग, किसान, मजदूर और पल-पल रखवाली करती महिलाएं, डंटे रह दूर करती वृक्ष की बलाएं, जो सिर्फ अकेले नहीं खाते कोई फल, मिलकर खा रहे आज व कल, जो लेकर चंद कागज के टुकड़े शहर वालों के जायका व तिजारत के लिए, जो महसूस नहीं कर पाते थोड़ा सा अपनत्व और लगाव, फिर पका डालते है रातों रात रासायनिक क्रिया या हत्या कर उस फल की, फिर इंतजार करते हैं तिजारती कल की, चिंता करते हुए खुद की, बीबी बच्चों व आलीशान महल की, जी हां पेंड़ कभी नहीं जाते शहर और भेज देते हैं अपने जि...
शिव आराधना
दोहा

शिव आराधना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** ब्रह्मरूप हे! योगपति, त्रिपुरारी गिरिनाथ। अवढरदानी हे प्रभु, थामो किंकर हाथ।। त्रिपुरान्तक प्रभु सोम हैं, भोलानाथ महेश। गौरी है अर्धांगिनी, रूप उग्र भूतेश।। भीमेश्वर जगदीश हर, भूतनाथ ओंकार। घुश्मेश्वर नटराज प्रभु, महाकाल सुखसार।। गिरिधन्वा विरुपाक्ष हो, दया करो शिवनाथ। शूलपाणि विनती सुनो, रख दो सिर पर हाथ।। खटवांगी गिरिवर प्रभो, वीरभद्र नटराज। सुरसूदन आराध्य शिव, शोधन सकल समाज।। शशिशेखर शितिकंठ हैं, मृगपाणी भगवान। व्योमकेश गणनाथ प्रभु, त्रिलोकेश पहचान। आनन मले भभूत को, पहने हैं मृग छाल। नंदीपति गणनाथ हैं, महाकाल भव भाल। गरल गले में धारते, नीलकंठ साक्षात। मोक्ष करन प्रभु नाम शुभ, जप मनवा दिन रात।। शंभू जब तांडव करें, डमरू करे निनाद। असुरों का संहार नित, करते बिना विवाद ।। पाशवि...
फुहारों के बीच
कविता

फुहारों के बीच

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम, रिमझिम फुहारों के बीच मदमाती, इठलाती बयार बह रही हरीतिमा धरा को सहलाती नजर आती। पाखी पौधों, पौधों पर मंडराती। उमड़ते-घुमड़ते कजरारे बादलों के बीच विद्युलता चमक, चमक अंधकार मिटातीं मानो वह चमक कर धरा की हरीतिमा निहारतीं पितृ, पृण पर पड़ी बूंदें धरा का अभिषेक करती। नदियां कलकल कर बहती तट बन्धन तोड़ उछल जाती आगे सागर में संगम की आतुरता नदी पर्वत चढ़ झरना बन बहती। चट्टानों से आहत होकर भी किसी रमणी के चरण धोती कहीं धरा की क्षुधा बुझाकर बीजाकुरण कर फसलें लहलहाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक सं...
आत्मा परमात्मा
भजन

आत्मा परमात्मा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** आत्मा परमात्मा का अंश है, स्वीकार करले। और उसके मार्गदर्शन में ही, तू सत्कर्म करले। आत्मा परमात्मा ... आत्मा कर्मो का तेरे, पूरा लेखा है बनाती। इसीसे दुष्कर्म के पहले, सदा तुझको जगाती। इसलिए आत्मा के हर संदेश, को स्वीकार करले। आत्मा परमात्मा ... कमल कीचड़ में है उगता, पर सदा ही स्वक्ष रहता। सांप चंदन में लिपटते, पर नहीं वो विषाक्त होता। तू सुरक्षाकवच अपनी, आत्मा का ही पहनले। आत्मा परमात्मा ... श्रेष्ठतम योनि में भेजा और, रहता साथ हरपल। कार्य सब ईश्वर के मिटकर, होगा तब हर कार्य निश्चल। हांथ जग के कार्य करते, शवांसो को सुमिरन से भर ले। आत्मा परमात्मा ... आत्मा हरपल तेरे कर्मो, की शाक्षी बन रही है। और निज अंशी से जुड़ने, के भी अवसर दे रही है। नहीं जा तू कंदरा में, बस प्रभु की शरण लेले। आत...
वृद्ध हो रहा हूं …
कविता

वृद्ध हो रहा हूं …

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** टूट रही है शाखें, झड़ रही है पत्तियां, धीरे धीरे; चेहरे पर उभरती झुर्रियां, आपस में लड़ रही है... होता शिथिल तन, पुनः बालक सा अब, समृद्ध हो रहा हूं। कांपने लगे हैं हाथ-पैर... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। कंघी केश बिखरने लगे हैं सफेद होना है नियम, धंसने लगी है आंखें भीतर, जड़ें मजबूती है छोड़ रही... उकेरे है जो साल मैंने जीवन की स्लेट पर, उनसे आज प्रसिद्ध हो रहा हूं। धीमी हुई चाल मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। धूंधला होने लगा है सवेरा, स्मृति अभी बदली नहीं, सावन सा योवन बीत रहा, आता जो बसंत की तरह... पल पल, लम्हा लम्हा बीते सूख रहा तना हरा, ठंडा मौसम सा घिरता... माह वो सर्द हो रहा हूं। झुकने लगी है भौंहें मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गां...
राहु
कविता

राहु

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** राहु हूँ नई राह दिखता हूँ। पथ पर अग्रसर कर अपार सफलता दिलवाता हूँ। कर्म बुरे करते तो रोग, शत्रुता और ऋण बढ़ाता हूँ। शुभ कर्मो पर धनार्जन के नये मौके दिखलाता हूँ। शुक्र, शनि, बुध मित्रों संग मिलकर राज पाठ का अधिकारी भी बनाता हूं। १८ साल की महादशा में सब के रंग दिखलाता हूँ। तभी तो अपने रंग में रंगा रह कर कैपुट कहलाता हूँ। जापता जो नाम मेरा महादशा में उसके बिगड़े हर काम बनाता हूँ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
चाँद
कविता

चाँद

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी प्रेम की चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांद सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी भरा जीवन। चांद देखोगी तो मेरी याद आएगी जो जीवन और प्रेम का अदभुत समन्वय बन चांदनी की रोशनी में कर देगा तुम्हें मदहोश। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय ...
परिवर्तन का आगाज
कविता

परिवर्तन का आगाज

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** आओ सौपे तन-मन-धन और जीवन को नव प्रयत्न, नव सृजन और परिवर्तन को परिवर्तन ऐसा कि जिसमें असर हो प्रखर हो, परिवर्तन ऐसा कि जो यकिनन परिवर्तन हो परिवर्तन का आगाज हुआ वह हमसे दूर नहीं पर हमारे पास हुआ बालोद आयोजित समाजिक कार्यक्रम सफलता पूर्वक आगाज हुआ जहां विशाल जनसंख्या लिए सामाजिक बंधुओं का आगमन व जनहित सुकृत काज हुआ परिवर्तन जिसका आगाज़ हुआ जिस भांति विकट परिस्थितियों में भी राम दूत बनकर घर-घर जाकर समाजिक संगठन की महत्ता का संचार किया धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आई समाज को जागृत कर नई कीर्तिमान स्थापित करने का सर्वजन में आशा कि नई किरण छाई और फिर सबने मिलकर विचार किया समाज में क्रांति लाए कैसे ? संगठित समाज की महत्ता सब को बताए कैसे फिर मंनथन से निर्णय निकला जहां-तहां समाजिक बन्धु का निवास है ...
छाई हरियाली (सिहरी)
कविता

छाई हरियाली (सिहरी)

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ छाई हरियाली गाती गीत कोयल काली बरसे बदरा !! २ घिरी घटा लगती मोहक निर्झरिणी छटा उत्ताल तरंग !! ३ बहते निर्झर कली-कली मंडराए मधुकर महके प्रसून !! ४ रिमझिम-रिमझिम रही बरस बरखा रानी पानी-पानी !! ५ प्रकृति हरसाई दुल्हन बन धरा मुस्काई पल्लवित कानन !!! परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हम...
किसी का बसेरा होगा
कविता

किसी का बसेरा होगा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चहकने दो मुझे आंगन में झुलती बेलो के साथ बहने दो मुझे निर्बाध गति के साथ मत बांधो हमें बन्धनों में घेर कर चहकने दो दौड़ने दो आंगन सजेंगे कल, कल करता जल पृथ्वी को सिंचता हरित करेगा श्यामल थरा को हरियाली नाचेगी टेसू फुलेगे रवितामृ वर्ण में बिखरेंगे बसन्त बयार में फूलों से आंगन सजेंगे काटो मत शाखाओं को कहीं पन्छी का ठौर होगा कपिल, किल का कलरव होगा चुग्गा चुगने मुंह खुलता होगा चहक कर चिड़िया गाती होगी कोयल कूक सुनाती होगी काटो मत उसे वह किसी का बसेरा होगा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जु...
भूतकाल का भूत
कविता

भूतकाल का भूत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** भूतकाल के भूतों ने हमको बहुत सताया है, डरने के कारण अपने हिस्से ठेंगा आया है, आभासी कच्चे चिट्ठों पर आज भी करते भरोसा है, टूटता रहता यकीं अपना मिलता केवल धोखा है, किसी के लिए धंधा ये सब पर हमने बहुत गंवाया है, डर डर सब लुटाया हमने कोई थैली भर भर पाया है, भूतकाल के भूतों का शौक देखो मचल गया, देखने का भाव अब ऊंची नीची जाति में बदल गया, तब के समय के सारे नियम अब भी देखो लागू है, अश्पृश्यता, हिंसा, लिंचिंग करके ये बन जाते साधु है, अब भी मन में मैल भरा जिसे नहीं ये धोते हैं, आगे निकल गया दमित तो खून के आंसू रोते हैं, सदनीयत से जब भी कोई संविधान लागू कराएगा, भूतकाल का भूत फिर तो सरपट भागा जाएगा। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
ननद बहन
कविता

ननद बहन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ननद को जीवन में क्या हम समझे? बहन समझे या ननद हम समझे, मायके का एक अंश ननद है। थोड़ा सा अधिकार ननद है, प्रेम भाव का राज ननद है, मेल मिलाप की जगह ननद है। प्यार की एक जगह ननद है। सहेली और बहन का संबंध ननद है भाई का तो प्यार ननद है। मानसिक दुख का इलाज ननद है, भाई की शक्ति तो ननद है, नहीं किसी से लेना देना बस बिगड़े काम बन जाए ननद है। "दीप से दीप जलाती ननद है, एक पंक्तिबद्ध का भाव ननद है" पीहर में खुशहाली ननद है, हल्ला गुल्ला शोर शराबा, देखो एक माहौल ननद है। काम सुधारे काम बनाये, भाई की उलझन का हल है । पिता के दिल का भाव ननद है माता का तो प्यार ननद है, पीहर की ढाका छाबी ननद है। भाई का तो भाव ननद है। मान अपमान का घुट ननद है। पीहर की तो लाज ननद है, अमीरी गरीबी का मान ननद है। सह लेती सब भार ननद है...
विरह अग्नि
गीत

विरह अग्नि

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विरह अग्नि झुलसाती तन को, साजन हमें जलाती है। लौट सजन घर आ जाओ अब, ऋतु मिलन की सुहाती है।। बिलखे है शृंगार हमारा, होंठ अंगारे हो रहे। मतवाले जब बादल उमड़ें, बैठे सजन हम रो रहे।। तन पुरवाई आग लगाती, याद तुम्हारी आती है। तार-तार होता है दामन, मन वृंदावन मुरझाता। प्रेम-पिपासा बढ़ती जाती, कौन बता अब बहलाता।। करें याद क्षण अभिसारों की, सारी रात जगाती है। चालें सर्पिल-सर्पिल आहत, लाल कपोल हुए घायल। तान सुनाती जब पिक मधुरिम, मौन रहे पागल पायल।। आजा सुन अब मनुहारों को, यौवन धार बुलाती है परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : न...
मेरा भी एक गांव है
कविता

मेरा भी एक गांव है

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** हार न होय मेहनत की हार होय ईमानदार सत्य की। गांव के चमकीले साथी उठाकर उत्संग में झूठ को फिरे। जय उसी की जय बोले जो विश्वास माने मिथ्या को। निंदिया बनी हरामी ग्रामीणों पर संकट बनी भविष्य पर। जाग्रत जीवनी उसकी लिखी सत्य पर निर्भर ज्ञान सिखी। दोषारोपण में बीज बोय झूठ का साथ चमकीले साथी उकसाने का। सचेत और ईमानदारी की ना जड़ें फिर भी हम गांव में हैं खड़े। यह कैसी पंक्ति है श्रेणी की यह हमारी संगति है श्रेणी की। ना सचेत ना जागरूक इसीलिए तो अंधकार है। जहां प्रकाश नहीं वहां उजाला कैसा मेरा भी एक गांव है यहां उजाला कैसा। गांव के चमकीले साथी उठाकर उत्संग में झूठ को फिरे। कहीं दाल पुरी तो कहीं खीर पुरी यह सब जगह होती है जरूरी। छोटा-सा क्षेत्र गांव का बड़े रास्ते कानाफूसी के। परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड...
सुरक्षा-संदेश
दोहा

सुरक्षा-संदेश

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बढ़ती जब जनसंख्या, बढ़ता है तब भार। हो जाती हर योजना, तब निश्चित बेकार।। बढ़ता है जन भार जब, दुख पाता परिवार। सभी तरह से देश में, फैले तब अँधियार।। दोपहिया पर बैठ जब, एक साथ परिवार। कहे सुरक्षा आ रहा, दुर्घटना का वार।। ध्यान रखें जो वे रहें, सड़कों पर अनुकूल। बिना कायदे जो रहें, चुभते उनको शूल।। सड़कों पर खिलवाड़ तो, लेती जीवन लील। बहुत कीमती ज़िन्दगी, करो ज़रा तुम फील।। लापरवाही त्याग दो, वरना तय है काल। होगा तुमको हर कदम, वरना "शरद" मलाल।। नियम सदा हित को रचें, उन्हें मान नहिं व्यर्थ। डरो रोड कानून से, समझो उसका अर्थ।। मन में धरकर जोश तुम, गँवा न देना होश। वरना विधि या मौत तो, भर लेंगी आगोश।। होगा जब सीमित यहाँ, हर इक का परिवार। तभी प्रखर प्रतिकूलता, का होगा संहार।। दोपहिया की नहिं अ...
हरे भरे खेत
कविता

हरे भरे खेत

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जब हो हरे भरे खेत तो किसान को तस्सली मिलती है। उसकी की गयी मेहनत फली भूत दिखती है। ****** हरे भरे खेत देखकर किसान खुश हो जाता हैं। और सपनों की दुनियां में खो जाता हैं। ******* हरे भरे खेत किसान की मेहनत का परिणाम है। अपनी जीविका को देता अंजाम है। ****** हरियाली आंखो को भाती हैं। प्रकृति में चारों ओर खुशी छा जाती है। ******* अगर खेत हरे भरे रहेंगे तो देश में खुशहाली आयेगी। और अन्नदाता किसान की जिंदगी बदल जायेगी। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
आपको इश्क हो गया है …
कविता

आपको इश्क हो गया है …

रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** जब किसी के पास अच्छा लगने लगे जब किसी का साथ अच्छा लगने लगे जब किसी की बाते अच्छी लगने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी की खामोशी खलने लगे जब किसी के अल्फाज सताने लगे जब नजर की नजर से बात होने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी के आने से फर्क पड़ने लगे जब किसी के जाने से डर लगने लगे जब किसी के ठहरने का इंतजार होने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी के पास आने से हलचल होने लगे जब किसी के छूने से जज्बात मचलने लगे जब किसी के होंठों से शबाब झलकने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी की बातें हंसाने लगे जब किसी की यादें रुलाने लगे जब किसी का ख्वाब आने लगे तो समझ लेना आपकों इश्क हो गया। जब अपने पराए लगने लगे जब पराए अपने लगने लगे जब मां-बाप की बातें चुभने लगे तो समझ ले...
उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ
कविता

उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ, कब तक जियोगी बनके बेचारी। क्यों लज्जित पग-पग स्वाभिमान, क्यों बढ़ाते नही चीर गिरधारी।। तुम स्वयं सृष्टि की हो सृजक, तुमसे ही कण-कण स्पंदित है। सीने में धधके ज्वालामुखी तेरे तुझसे ही नभ-भू आनन्दित है।। समझो न स्वंय को अब अबला, तुम तो पालक हो महाप्रलय की। तुम ही हो सुख-समृद्धि की दाता, तुम ही हो वर शाश्वत अभय की।। संभव नही मानव जीवन यह, बिन वामांगी के इस संसार में । करो नही मर्दन मान स्वंय का, छल-छदमी कामी व्यवहार में।। अब फिर न दुष्ट दुशासन कोई, केश खींचने का दुःसाहस करे। अब गली-गली दुर्योधन घूमते, सोच-समझकर ही व्यवहार करें।। अनुसुइया-सा तेरा जीवन पावन, फिर क्यों लगे तन पर लिवास भारी। तुम तो हो स्वंय प्रतिमूर्ति सौंदर्य की, तुमसे ही सुरभित यह धरा प...