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पद्य

मेरी परी
कविता

मेरी परी

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज अभी-अभी तो दुनिया में आई थी मेरी दुनिया में खुशियां लाई थी छोटी सी मुस्कान उसके मुख पर आई थी मेरे दिल में उसने ममता जगाई थी। छोटी-छोटी उंगलियों ने मेरी उंगली को कसा था उसका यह प्यारा नन्ना सा चेहरा मेरे दिल में बसा था उसकी तोतली बोली मेरे होश उड़ा गई नन्हे कदमों में पायल की छम-छम से मेरा मन हॅंसा था कभी नाराज, तो कभी उसकी ढेर सारी बातें पूरी दिनचर्या की, कभी न खत्म होने वाली बातें दिल को प्यारी लगती है उसकी मुझे ये सारी बातें उसे देख कर ही बीत जाती है मेरी प्यारी रातें हर पल हर लम्हा उसे देखकर मैंने जिया है हद से ज्यादा मैंने उसे प्यार किया है जिंदगी की हर खुशी मिले आपको सूरज की तरह नाम मिले आपको प्रभु भी अपनी कृपा बनाए रखें और आप पर आशीर्वाद बनाए रखें सफलता कदम चूमे आपके बड़ों का आशीर्वाद रहे सदा साथ आ...
लगता नहीं
कविता

लगता नहीं

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आदत स्वभाव पसंद नापसंद तो बड़ा सबब है, हाले दिल बयान कहे साथ रहा हुआ लगता नहीं। हवा पानी आवेश भावमय गुजरता ये जीवन, जाने क्यूं नए दौर की धार बहा हुआ लगता नहीं। जी तोड़ कमरतोड़ संयोग बनता रहा काम का, मगर प्रेम पगा मन, प्रेम में गहा हुआ लगता नहीं। मनुज रूप जनम में अनेक कमियां होती जरूर, गुण दोष वाला जीवन दूध नहा हुआ लगता नहीं। सहनशक्ति जाने अंजाने में समझना आसां नहीं, आंच में तपा इंसान भी तो सहा हुआ लगता नहीं। हौसला भरोसा भी तो किसी चिड़िया का नाम है, चौथेपन उड़ान संग स्वभाव ढहा हुआ लगता नहीं। मानने सोचने समझने की ताकत कम हुई विजय, तरकश तीरों सा लहजा भी कहा हुआ लगता नहीं। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्...
गणपति वंदना
कविता

गणपति वंदना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** भादो मास तिथि चतुर्थी, प्रभु विराजते पृथ्वी पर। भक्तजन उनकी सेवा करें, विनायक सबके कष्ट हरें। बुद्धि ज्ञान के तुम हो दाता, प्रथम पूज्य देवेश्वरा। मेरी तुमसे याचना, विघ्न हरो विघ्नेश्वरा। महादेव के तुम हो नंदन, कार्तिकेय के भ्राता। रिद्धी-सिद्धी के तुम हो स्वामी, लाभ शुभ प्रदाता। मूसक को वाहन बनाया, हे! वक्रतुण्ड महाकाय। मोदक का तुम्हें भोग लगे, हे! अष्टसिद्धी के दाता। मैं बालक नादान हूँ स्वामी, निशदिन करूँ आराधना। सबके विघ्नों का नाश करो, स्वीकार करो मेरी प्रार्थना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
घर एक मंदिर
आलेख, कविता

घर एक मंदिर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर" शब्द में जितनी मिठास भरी है, वह "मकान" में कहाँ। लोगों को अक्सर कहते सुना है, "अरे, बस अब घर पहुँच ही रहे हैं। आराम से घर पर ही सब सुकून से करेंगे।" जहाँ तक घर के संदर्भ में मेरे संस्मरण हैं, कुछ हट कर हैं। बचपन बीता हवेली में। पढ़ाई हेतु देवास में दो कमरों का किराए का मकान। रहने वाले माँ और हम पाँच भाई बहन। ऊपर से आने वाले मेहमान अलग से। पढ़ाई के साथ सबका खाना व घर के अन्य काम। बड़ी बहन तो होती ही है जिम्मेदार। सामान बहुत कम, पंखा भी नहीं। सजावट के नाम को सबकी किताबें। ब्याह के पश्चात सरकारी क्वार्टर्स मिलते रहे। एक ईमानदार पुलिसवाले के यहाँ सोफ़ा वगैरह के लिए सामान पैक करने के खोखों का उपयोग होता। उन्हें कपड़ो के कव्हर से सजा दिया जाता। एक दो साल हुए नहीं कि स्थानान्तर झेलो। बंजारों के माफ़िक़ सामान बाँध एक डेरे से दूसरे डेरे...
गणेश स्तुति
भजन, स्तुति

गणेश स्तुति

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** भाद्रचतुर्थी तिथि अति पावन । शंभु उमा के पुत्र गजानन ।। शुभम दिवस जन्में श्री कंता । संकट नाशक प्रभु भगवंता ।। प्रथम पूज्य हे गिरिजानंदन। प्रतिपल करूँ तुम्हारा वंदन ।। मातु-पिता के तुम हो प्यारे। गौरी नन्दन शंभु दुलारे ।। बुद्धि प्रदाता हे गणनायक। संतति सुख के तुम हो दायक ।। सकल मनोरथ पूरण करते । भक्तों के प्रभु दुख हैं हरते ।। हे लंबोदर भवभय हारी । शूर्पकर्ण पीताम्बरधारी ।। लड्डू मोदक अति मन भावे । नरियल का नित भोग लगावे ।। दूब-शमी प्रभु को है प्यारी । धूप-दीप प्रभु पे बलिहारी ।। सच्चे मन जो करते सेवा । पूर्ण मनोरथ करते देवा ।। तुम्हरी महिमा जग से न्यारी । मूषक की तुम करो सवारी । जिन पर होती कृपा तुम्हारी । धन्य-धन्य होते नर-नारी ।। हे गजवंदन हे गणनायक । भक्तों के प्रभु तुम हो तारक ।। ...
श्री गणेश स्तुति
भजन, स्तुति

श्री गणेश स्तुति

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** गौरी नंदन शंकर सुत, हे गजानन महराज। देव संग आन पधारो, पूरन कर दो काज।। हे गणेश महराज, जय-जय गणेश महराज.. प्रथम पुज्य हो गणपति, लंबोदर महराज। मूषक वाहन चढ़ा करें, हे मंगलमूर्ति काज।। हे गणेश महराज, जय-जय गणेश महराज.. एकदंत हे भालचंद्र, हे सिद्धि विनायक नाथ। वक्रतुंड मृत्युंजय, नमस्तुते हे नाथ।। हे गणेश महराज, जय-जय गणेश महराज.. पीतांबर भूषण सजे, मोदक लगे हैं प्यार। हे बुद्धिनाथ कृपा करें, भक्तों पर हर बार।। हे गणेश महराज, जय-जय गणेश महराज.. हे विघ्नराज संकट हरन, चतुर्भुज गणराज। वरद विनायक वर दे, मनवांछित फल आज।। हे गणेश महराज, जय-जय गणेश महराज.. परिचय :-  राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान :...
जीवन
कविता

जीवन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** डर वही चलना साथी जो होकंटक विहीन जीवन सर्व में होती है राह बड़ी कठिन। कठिन, कठोर, कंटक फैले इन राहों के तल में संभाल-संभल पग धरना साथी इस डगमग जीवन में। पथ नेक पथिक अनेक गुजर गए पथ से पाया सच्चा प्यार उसी ने जिसने कर ली भेट प्रभु से। विकट, विकल राहेे हैं तेरी अगम पंथ है अन्ध कूप इस भव में शांति देने एकनाथ है वैभव भूप। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तम...
विधाता छंद
छंद, मुक्तक

विधाता छंद

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मुक्तक विधाता छंद गजानन बुद्धि के दाता, उमा शिव के बड़े प्यारे। प्रथम हो पूज्य इस जग में, तुम्हे पूजे जगत सारे।। दरश को मैं चला आया, सुमन भर भाव का लाया। चरण में है नमन अर्पण, इसे अब आप स्वीकारें।। चतुर्थी है बड़ा पावन, तिथि भादों की शुभकारी। लिए अवतार हैं इस दिन, छवि सुंदर है मनुहारी।। बजे कैलाश में बाजे, मनोहर रूप सब साजे। खुशी की आज वेला है, मनाते लोग हैं भारी।। गगन से देवगण सारे, देखकर खूब हर्षाऍ। दरश की लालसा मन में, लिए कैलाश में आऍ।। गणों के हो तुम्हीं स्वामी, प्रभु तुम हो अंतर्यामी। विनय सुन लो हमारी भी, तुम्हारे द्वार पर आऍ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं य...
मौजूदगी दिखाना जरूरी है
कविता

मौजूदगी दिखाना जरूरी है

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बहरो को सुनाना जरूरी है मौजूदगी दिखाना जरूरी है रखवाले हम बताना जरूरी है हिम बन खड़े जताना जरूरी है जिन्हें अपना मानना जरूरी है उन्हें दिखाना भी जरूरी है घूम रहे उन्हें दिखलाना जरूरी है उनका नहीं वतन बतलाना जरूरी है मिटाने आए उन्हें भगाना जरूरी है यहां एक हजारों से मिलाना जरूरी है विभिनता में भी हंसना जरूरी है गद्दारों को रुलाना जरूरी है इश्क मोहब्बत से जताना जरूरी है नफरत को भगाना जरूरी है ना माने उन्हें उखाड़ना जरूरी है उन्हें मिट्टी में दबाना जरूरी है गर कमजोर को ताकना जरूरी है फौलादी बन फटना जरूर है परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, र...
मैं उसी शास्वत की वंशज
कविता

मैं उसी शास्वत की वंशज

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** जो काल चक्र का दास नहीं जो समय बनाने वाला है जो है अक्षुण्ण सनातन से जो कभी ना मिटने वाला है.... जिसने प्रतिपल संसार समर में धैर्य ज्ञान को बरसाया जिसने रेवा के जल सा निर्मल वेद तत्व है बिखराया.... जो उपमानों की उपमा है जो सर्प्रथम जग में आया जिसने रागों की रचना की जिसने तानों को झनकाया.... जो वनस्पति में परिणित हो हर पात हरि बन बैठ गए जो भाव भक्त की विनती पर चिर-क्षीर सिंधु में लेट गए.... जो योग ज्ञान से नर को भी नारायण करने वाला है. जो सात रंग में स्वयं विवर्जित सृष्टि सजाने वाला है... जो बार-बार संसार बनाकर उसे मिटाने वाला है मैं उसी शास्वत की वंशज जो अविचल रहने वाला है.... जो जल का है जो थल का है जो गगन भूमि सरिता का है जो शशि-कांत की ज्योत्स्ना जो सूर्य प्रभा ललिता का है..... जो प्रलय सिंधु की गो...
युद्ध
कविता

युद्ध

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गुलामी की दास्तां को हमसे है कोई पूछें कितने जुल्म को सहना यह भारत से वह पूछे नहीं कोई साथ है देता नहीं कोई साथ ही रहता, अपने मुल्क की आजादी यही स्वाभिमान है अपना, किसी कमजोर से लड़ना यह ताकत नहीं उसकी सहारा दे उठाकर फिर चलना मर्दागी है उसकी गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर इस तरह रहना, इससे तो यही बेहतर की थोडे मै है खुश रहना, किसी भी मुल्क पर हमला तबाही और मंजर है, सकुन तुम को नहीं मिलता, सुकून किस को नहीं मिलता, कितने घर तो हे उजड़े, कितने बेघर को वह समझे किसी ने बाप खोया है किसी का सिंदूर है उजड़े एक दौलत के है खातिर हजारों लाश देखी है, इन्हें इतिहास के पन्ने किस निगाहों से देखेगा, एक देश भक्ति से हे पूजे, एक अत्याचार से जाने, किरण ! हम उस शक्ति से पहचाने, जिसे संसार है पूजे, भारत श...
तुलसी के राम
कविता

तुलसी के राम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** तुलसी के राम ही शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। तुलसी के राम की छवि बड़ी निराली कण-कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस सांस में है बसा नाम तुम्हारा तुलसी जे राम ही तो है बस मेरा सहारा। हे तुलसी के राम सारा जग तो है तुम्हारा जग में तुम बिन कोई नही है हमारा। पूजन करो और बोलो जय श्रीराम दुःख सारे दूर होंगे मिलेगा सुख आराम। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरव...
पिता
कविता

पिता

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** बरगद की विशाल शाखाओं जैसी, अपनी बाँहे फैलाए। ख़ड़े रहकर धूप और छाँव में, हर मौसम की मार झेल जाये।। कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है। कठोर भाव, पर अव्यक्त प्रेम का आसन। सख्ती से चलनें वाला परिवार का अनुशासन।। संबल, शक्ति, संस्कारों की मूर्ति। परिवार के सभी इच्छाओं की पूर्ति।। कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है। बिन कहे जो बच्चों का अरमान भांप ले। बाँहे फैलाये तो सारा आसमान नाप ले।। थरथराते, काँपते, नन्हे पँखों को। उड़ान का हौसला देनें वाला।। कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है। न जानें अपने अंदर कितनें मर्म छुपाये। दिल में आह हो, तो भी मुस्कुराये।। अपनी ख्वाहिशों की चिता से, घर को रौशन करनें वाला। कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है। ईश्वर की अद्भुत रचना, जो ईश्वर का ही रुप लगता है। गढ़ता है जो अप...
चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें …
कविता

चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें ... कलियाँ ही खिल कर बनती है सुमन सुवासित होता है जिससे सदा चमन चलो फिर से कलियों को नया बाग दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे गुल मे खिलते ही रहेंगे सुमन सदा बादलो की बदलती रहे नित अदा अब हर मौसम को नया सुर साज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे बहारो मे कलरव करती है पंछीया गूंजती है जिससे प्रतिदिन वादिया चलो वादियों को नया आगाज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे अब तो हर दिन एक नई बात हो अंधेरों के शहर मे कभी प्रभात हो हर सुबह को एक नया आज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे अब हर शहर मे अमन का हो बसर खुशियो का जहाँ मे होता रहे असर अमन का सदा जग को पैगाम दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस...
वो खत कहाँ गए?
कविता

वो खत कहाँ गए?

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** सप्ताह, महीनों का होता था बड़े सिद्दत से मीठा इंतजार। दौड़ पड़ते, सुन डाकिया के, साइकिल की घण्टी की गुहार। प्रेयसी की जिसमें होती थी बेबसी, विरह वेदना। प्रियतम के वापसी का होता था हरपल इंतजार। सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए? प्रेयसी को लुभाने होती थी प्यार भरी वो बातें। यादों ही यादों में होती मिलन की वो सौगातें। एक दूजे संग जीने मरने के होते थे कसमें वादे। सात जन्मों तक साथ निभाने की होती थी बातें। सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए? छुपा होता था जिसमें अपनों से अपनों का प्यार। कागज़ के पन्नों पर होता था दर्द ए दिल बेशुमार। जिसमें हाल ए दिल लिखा होता था। हर शब्द में ही उनका चेहरा दिखता था। सच में कोई तो बताओ वो खत कहाँ गए? बहना ने भेजा है लिखकर खत, भैया को रक्षा सूत्र। भ्राता ने ल...
जीवन-मृत्यु
कविता

जीवन-मृत्यु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जीवन मृत्यु का भेद तुमको कुछ बतलाऊंगा। हो सका तो तुमको सच्चा जीवन निर्वाह सिखलाऊंगा। क्षणभर का जीवन क्षणभर की मृत्यु फिर भी तुमको कुछ बतलाऊंगा। भेदभाव की नीव जो रखी तुमनें उसको भी एक दिन मिटाऊंगा। धर्म के नाम पर अधर्म तुम करते हो धर्म की परिभाषा भी तुम अपनी मर्जी से बदलते हो, तुमको सच्चा धर्म एक दिन जरूर सिखलाऊंगा। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
कविराज
कविता

कविराज

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** प्रिय से फुलवारी में मिलकर प्रेम की वर्षा, अद्भुत आनंद की अनुभूति करता रसराज। एकांत में किसी दिन डूब जाता गहरी सोच, शब्द जाल फैला काव्य लिखता कविराज।। भावों को अभिसिंचित अभिव्यक्ति देकर, बनता हूं रचनात्मक क्रान्तदर्शी महाकवि। जाता कहीं भी कल्पनाओं की उड़ान भर, घोर अंधकार को उजाला करता मैं हूं रवि। गगन से उतार देता हूं जमीन पर चांद को, मैं बनाकर विश्वसुंदरी, मनमोहिनी,अप्सरा। टिमटिमाते तारों से जड़ित अंग आभूषण, नील परिधान से सुसज्जित लगती सुंदरा।। छंदों में बंध कर नाचती अपनी नृत्यशैली, अलंकारों से बढ़ता रूपवती वनिता शोभा। गुण विशिष्टता से परिपूर्ण कविता की रानी, नव शब्दशक्ति से फैलाती चहुंओर आभा।। रुप यौवन की रोशनी मुझ पर हुई आभासी, समा गई दिलदार दिल मुझे करके दीवाना। उनसे बात करता हूं अकेले में चुपके-चुप...
नादिया बइला के तिहार
आंचलिक बोली

नादिया बइला के तिहार

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता खेती-किसानी किसनहा के तिहार ये, छत्तीसगढ़ मा नादिया बइला के तिहार हे ! जम्मो ढीह डेवहारिन मा नादिया बइला चघाये, हुम धुम ले जम्मो देवता धामी ला प्रसन्न कराये ! पोरा जाता नादिया बइला के पुजा करथे जम्मो किसान हा, बरा सुहारी के भोग लगाथे, अउ गांव-गांव आनी बानी के खेल कराथे ! पोरा जाता नोनी खेले, बाबु टुरा नादिया बइला सन खेले, बुढ़वा जवान गेड़ी जागे, दाई वोला मुच मुच मुसकाये ! पोरा तिहार के बिहानदिन तेल हरदी रोटी गांव भर के सकलाये, नार बोर कहिके जम्मो गेड़ी ला गांव के निइकलती मा छोड़ आये !! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
ना निराश हो
कविता

ना निराश हो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** ख़ुश नहीं हो आजकल, क्या बात है मुझ से निराश हो, क्या यही जज़्बात हैं, हम ने तो दे दिया है, ये दिल अब तुम्हें, तुम ही बताओ, फिर दिल क्यों निराश है, रहते हैं तेरे प्यार में, हम तो मशगूल यहाँ, तुम भी संग चलो मेरे, यहीं ख्यालात हैं, रहकर भी दूर तुम से, है वफ़ा हमें वहीं, जान जाओ अब, मेरे दिल का यही हाल है, ना नाराज रहो हम से, हम हैं तुम्हारे, मिल कर तो देख लो, हमारी वहीं बात है, इश्क लगाया है, सिर्फ तुम से ही मैंने, मेरा तो अब दिल, तुम से ही गुलज़ार है, ना निराश हो कभी, जीवन में अपने तुम, जब तक है जिंदा हम, निराशा की क्या बात है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
मेरे देश की चंदन पावन माटी है
कविता

मेरे देश की चंदन पावन माटी है

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे देश की चंदन पावन माटी है यह तो अनमोल हमारी थाती है इस मिट्टी में ही शस्य श्यामला है जहां की हरियाली रंग-रंगीला है। यहां ही बहते सरिता निर्मल है जहां त्रिवेणी संगम कलकल है जहां गंगा जमुना.. की धारा है जो पतित पावन जग से न्यारा है। यह देव धर्म की पावन धरती है जहां ज्ञान भक्ति धारा बहती है यहां पुण्य तीरथ चारो धाम है तेरा अखंड भारत पावन नाम है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता
कविता

बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** खुद गरीब पर बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता कभी कंधे पर बिठाकर मेला दिखाते हैं पिता कभी घोड़ा बनकर घुमाते हैं पिता ऐसे सभी लोकों के महान देवता है पिता संकट में पतवार बन खड़े होते हैं पिता परिवार की हिम्मत विश्वास है पिता उम्मीद की आस पहचान है पिता जग में अपने नाम से पहचान दिलाते हैं पिता कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान हैं पिता मां अगर पैरों पर चलना सिखाती है तो पैरों पर खड़ा होना सिखाते हैं पिता कभी धरती तो कभी आसमान है पिता परिवार की इच्छाओं को पूरा करते हैं पिता हर किसी का ध्यान रखते हैं पिता धरा पर ईश्वर अल्लाह का नाम है पिता जग में अपने नाम से पहचान दिलाते हैं पिता परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रच...
परम पिता
कविता

परम पिता

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** पिता है जनक हमारे जननी है प्यारी मां। यही है दुनिया हमारी अवतारिणी है मां।। पिता की आंख है प्रगति बच्चों के वास्ते। पिता ही बनाते सरल सुगम रास्ते।। पिता के सिवाय हितेषी कोई नहीं हमारा। सारे जहां से अच्छा परम पिता सहारा।। पिता की दिव्यता से, प्रकाशित हुए हैं हम। पिता की पूर्णता से है श्रेष्ठ हर कर्म।। पिता से मार्ग पाया जीवन का श्रेष्ठमयी। पिता की श्रेष्ठता से विशेषता पायी कयी।। पावन पूनित पिता का होना जीवन की श्रेष्ठता हैं। कर्तव्यनिष्ठता से पिता की महानता हैं। आरोग्यता मिली है पिता की वजह से हमें निष्काम भाव की शुद्धता हैं।। पिता की आराधना जो कोई करें कृष्णा। उस मानव की पिता पूर्ण करें सारी तृष्णा।। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृत...
खत
कविता

खत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** खत रुला भी सकता यदि यादें जुड़ी हो खत कोई ऐसे ही नहीं होते बोल दिया यानि एक से सुना दूसरे से निकाल दिया विचारो के शब्दों का ऐसा सम्मोहन जिसे हजारो साल बाद भी पढ़ों तो लगे जैसे आज की बात हो। मृत्यु से परे शब्द इसलिए तो अमर होते वे शब्दों को जन्म देते कलम और कागज प्रेम का खत प्रेयसी लिफाफे के किनारों पर लगे गोंद से अपने होठों से चिपकाती। वो बात इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में कहाँ खत संदूक में किताबों में ईश्वर की तरह पूजे जाते आखिर प्रेम ही के ढाई अक्षर ताउम्र साथ रहते और दिल के कोने में उनका प्रेम का भी मकान भी रहता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्र...
ग़मों का काफ़िला
ग़ज़ल

ग़मों का काफ़िला

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ग़मों का काफ़िला जाता नहीं है। ख़ुशी का सिलसिला आता नहीं है। हमेशा मैं कहूँ क्यों बात अपनी, मुझे ये क़ायदा भाता नहीं है । भरोसा ही उसे मुझ पर नहीं जब, मुझे उस पर यकीं आता नहीं है। जताता है वो मेरी गलतियों को, कभी जो राह दिखलाता नहीं है। लबों पर भी हँसी आती नहीं है, कभी दिल भी सुकूँ पाता नहीं है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
स्पर्श में संवाद
कविता

स्पर्श में संवाद

मनीषा श्रीवास्तव प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) ******************** हाथ हमारे सख्त भले हों, पर मन है अतिशय सुकुमार। कोमल सा स्पर्श तुम्हारा, मेरी खुशियों का भंडार। तेरा पिता अतुल अनुगामी, तुम हो श्रवण का आशीर्वाद। दादा-पोते की पीढ़ी अब, हाथ पकड़ करते संवाद। जीवन का आरंभ है तेरा, अभी तो तुम हो अनुभव शून्य। पर इस नैसर्गिकता ने, कर दिया है मुझको अनुभव पूर्ण। कुमकुम जैसी लाल हथेली, बता रही तुम हो विद्वान। तेरे इस बूढ़े दादा को, अभी से तुझपर है अभिमान। काम जो पूरा न कर पाऊं, तुम करना मेरे उपरांत। सदा सत्य की राह पे चलना, रखना अपने मन को शांत।। छोटों को स्नेह जताना, बड़ों का करना तुम सम्मान। बस! इतना ही कहना मुझको, अब मैं करता हूँ प्रस्थान। नहीं है दादू हाथ सख्त, मैं कर लूँगा स्पर्श अभ्यास। पापा का श्रवण बनूं मैं, बना रहे घर का विन्यास। दीदी तुम संग खेली जितना, मैं भी खेलूं ...