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पद्य

सावन
कविता

सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेघ आच्छादित नभ क्षितिज तक, झर- झर बरसती काली घटाएं, मन विकल करती शीतल बूंदें, हिय को झकझोरती चंचल पुरवाई। यह सावन भी बड़ा बेदर्दी है, खेलता है कभी पलकों से, अल्हड़ फुहारें जला देती है तन से मन तक उदासी की अगन। भरी बरसात में दहन उठता है अलाव उनकी यादों का, नीम की डाल पर तड़प रहा है झूला आंगन में, मेरे साजन का। हुई थी बात कल रात सैनिक से, बाढ़ राहत शिविर में लगा हूं, बोलें थे बड़े रुआंसे होकर... यह सावन बड़ा बेइमान है। बरसते हैं बादल जी भरकर, प्रति वर्ष सजीले सावन में, बहती है यौवन से परिपूर्ण नदी, लेकिन मिटती नहीं मन की प्यास। अधूरी रह गई गत वर्ष की भांति, इस वर्ष भी चाह झूला झूलने की चल पड़ी गांव के पोखर पर चादर, आत्मा फिर भी प्यासी की प्यासी। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्य...
बरसात की बूंदे
कविता

बरसात की बूंदे

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** बरसात की धीमे से गिरती बूँदें, मानो धरती को एक प्रेम पत्र लिखा जा रहा हो। मैं और तुम, इस अमृतमयी प्रभात के साक्षी, जहां हर बूँद में छिपी एक कहानी, एक गीत। वह बूँद जो तुम्हारी पलकों पर ठहरी, वो रूपक बन गया जीवन के संघर्षों का। मेरी बातें, तुम्हारे शब्द, मानो व्यंजना बन जोड़ रही हो दो आत्माओं को। क्या देख रहे हो इस पानी का चंचल नाच? इसकी मासूम नादानी और अठखेलियों को , जैसे तुम्हारी मुस्कान में खिल रहा है है खुशी का अप्रतिम सौन्दर्य। बरसात का यह मौसम, ये रिमझिम फुहारें, साक्षी हैं हमारी प्रेम कथा के, जिसमें हर शब्द, हर वाक्य बुन रहा है है आशाओं का परिधान। मैं और तुम, इस बारिश में भीगते हुए, नये सपने, नयी आशाएँ, नयी उम्मीदें बुनते हुए। जैसे नव वर्षा की बूँदें, लिख रहीं हों ह...
जय आदिवासी
कविता

जय आदिवासी

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** हम आदिवासी जल जंगल जमीन हमारे प्राण प्यारे।। आदिवासी संस्कृति प्रकृति पूजक शुभ मंगल पूज्य जंगल।। तीर कमान हर आदिवासी करे अभिमान पहचान अतुल्य।। मानव सभ्यता सहेजे सृस्टि पर आदिवासी अमिट अविनाशी।। प्रकृति संरक्षण करता रहा अदम्य सहासी जय आदिवासी।। प्रकृति धर्म समझा आदिवासी अंतस्थ मर्म जय भौमिया।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
राखी में तो प्रीति है
दोहा

राखी में तो प्रीति है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो प्रीति है, सच्चाई का गीत। बहना-भाई हर्ष में, पावनता की जीत।। नेह निष्कपट भावना, मंगलमय सम्बंध। फैली है चहुँओर अब, मलयानिली सुगंध।। राखी तो सुधिगान है, बचपन की हर याद। कर रहता खाली अगर, भाई को अवसाद।। बहना-भाई दूर यदि, डाक निभाती साथ। शोभित होते हैं सदा, क़िस्मत वाले हाथ।। युगों-युगों से चल रहा, संस्कारों का पर्व। कौन नहीं जो चेतना, पर करता नहिं गर्व।। नहीं सहोदर देश में, पर आया संदेश। बहना के आशीष ने, दूर किया है क्लेश।। दुनिया की सब दौलतें, खो देतीं है मोल। जब भी राखी बोलती, अधर खोल दो बोल।। राखी रक्षा का वचन, प्रेम और विश्वास। दुआ, कामना, भावना, दृढ़ता वाली आस।। धर्म कहे रिश्ता सदा, रहे निभाता रीति। सूत कहे मैं हूँ लिए, शुभता की नव नीति।। सभी दिशाओं ने किया, राखी का यशगान...
कहाँ है आजादी
हास्य

कहाँ है आजादी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसी आज़ादी है? जहां हमें तो कोई आज़ादी ही नहीं है, कदम-कदम पर अंकुश है नियमों की बंदिशें, कानूनों का डर है अपराध, हिंसा की न छूट है साम्प्रदायिक दंगा फैलाने की भी कहाँ आज़ादी है? लूटमार, हत्या, बलात्कार की बात क्या करें भ्रष्टाचार, बेईमानी और धोखाधड़ी की भी तो तनिक न छूट है। सब कहते हैं देश शहीदों की शहादत से मिला है, तो भला इसमें मेरा क्या दोष है? उन्हें शहीद होने का कीड़ा कुलबुलाया था पर शहीद होकर भला क्या पाया था, कौन याद करता है आज उन्हें ईमानदारी से कोई तो बताए हमें। वे सब सिर्फ़ औपचारिकता वश ही याद किए जाते, बहुत हुआ तो पुतला बनाकर खड़े कर दिए जाते हैं सौ दो सो मीटर जगह घेरने के अलावा सिर्फ धूल-धक्कड़ से नहाते हैं , जाड़ा, गर्मी, बरसात सहकर हर समय तने रहते हैं, हमें लगता वे अभी तक श...
गुलामी से आजादी
कविता

गुलामी से आजादी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** गरीबी, दरिद्रता और बेबसी जन मन का प्रतीक, समर्पण, चाटुकारिता, दासता, हैं उनके साथी। सलाहकार बन बैठे हैं निराशा और असत्य दल, अब कब मिलेगी मानसिक गुलामी से आजादी? असफलताओं की बेड़ियों में जकड़ी है जीवन, नकारात्मक मनोभाव अंग्रेजों से परतंत्रता है। कर्म, साहस और उत्साह वतन रक्षक फौजी, सफलता और मंजिल की प्राप्ति स्वतंत्रता है।। दिव्य शक्ति का संचार कर अंतर्मन में हिलोर, धर्म चक्र आत्म शांति जन-जन का सहारा। मन, वचन में मातृभूमि की समृद्धि, पवित्रता, प्रगति पथ अशोक चक्र निर्मित तिरंगा प्यारा।। सत्य और अहिंसा सिद्धांत राष्ट्रपिता गाँधी जी, भगत सिंह की देश भक्ति ने कोहराम मचाया‌। वीरांगना झाँसी की रानी ने गोरों से लोहा ली, बाबा साहेब ने समानता का संविधान बनाया।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) ...
कर्म
कविता

कर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने आप मे गुम भुरभुरी सी मिट्टी में पांव के निशान कुरेदते, सोच की धारा में मन डूबने लगा! जीवन के दो पहलू है सुख-दुख, बाकी सब पार्थिव है यहां !! इसी मिट्टी में विलीन हो जाता सबकुछ, एक कर्म है जो पार्थिव नहीं होता। वर्तमान, भूत, भविष्य हैं इनपर निर्भर पुण्य पाप इन्हीं के कहने पर भाव हैं इनका आधार। कोई कहता सांसारिक सुख हैं भाग्य कोई मानता ईश्वर से मिलन बडभाग। हर ओर कर्मों का अधिग्रहण, हम हैं तो भी वो है, हम नहीं हैं तो भी तो वो हैं! मेरे जन्म से अंत तक मेरे साथ है जो है, जो होगा वो मेरा कर्म, धारा का प्रवाह थोड़ा क्षीण हुआ, स्वयं से स्वयं की अनुभूति हुई, ये जीवन "जीव" के काम आए ये भी तो कर्म है।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार...
आजादी के वीर सपूत
कविता

आजादी के वीर सपूत

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी के वीरों सपूतों का, आओ यश गान करें! श्रद्धा, सुमन अर्पित कर, उनका हम सम्मान करें !! कतरा कतरा खून देकर, जो देश बचाया करते है..! ऐसे वीर सपूतों का, हम सब यश गाया करते है !! घर से दूर सरहद में रहकर, देश का गान करते है! सर्दी, गर्मी, बरसात सहकर, तिरंगे की मान रखते है !! दुश्मनों से लड़ते-लड़ते, जो वीर गति को पाते है! ऐसे वीर सपूत जग में, मरकर अमर हो जाते हैं..!! आओ मिलकर देशहित में, कुछ अच्छा काम करें! पेड़ लगाकर धरती में, वीरों के हम नाम करें..! राष्ट्रहित में मर मिटने को जीवन अर्पण करते है ! ऐसे वीर सपूतों का हम, शत-शत वंदन करते है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
मन के पंछी
कविता

मन के पंछी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। अब तो नीरस लगा दीखने, मुझको यह संसार। आना जाना नियम यहाँ का,फिर भी महल बनाते। कोई यहाँ ठहर न पाता, सब हैं आते जाते। मेरा घर इस पर बना है, साजन हैं उस पार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। बीच भँवर में डोले नैया, मन हिचकोले खाता। दूर-दूर तक दिखे न कोई, समझ नहीं कुछ आता। बन जा मेरे प्यारे कान्हा, तू ही खेवनहार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। माया दिखती बिल्कुल सच्ची, सबको उलझाती है। जीवन की है कठिन पहेली, समझ नहीं आती है। माया तो आनी जानी है, झूठा यह संसार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार। वशीभूत माया के होकर, ठोकर ही खाता है। खाली हाथ आगमन तेरा, खाली ही जाता है। सबके पालन हार राम हैं, जीवन के आधार। ले चल मन के पंछी मुझको, तू स...
माँ
कविता

माँ

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां सारे पुण्यों का परिणाम हो तुम, इस संसार में आया जब मेरे कोरे मन पर, लिखा पहला नाम हो तुम। स्मृति में तुम्हारी भूली बिसरी आती हैं यादें। यादों से आंखें नम हो जाती है। आपकी त्याग, तपस्या, कर्तव्य निष्ठा, स्नेह की तस्वीर, नजर आती है। सब-कुछ पा कर भी तुम्हारी, कमी रह जाती है। बीते तुम्हारे दिनों की, सदा याद आती है। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
भगति म मन ल लगाबो
आंचलिक बोली, भजन

भगति म मन ल लगाबो

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी भजन भगति म मन ल लगाबो चल भईया भगति म मन ल रमाबो रे जिनगी ले मुक्ति हम पाबो रे भव सागर ले तर जाबो रे चल भईया भगति म ... चल दीदी अमृत गंगा म डुबकी लगाबो जी राम कथा म मन ल रमाबो जी जिनगी ल सुफल बनाबो... (२) शबरी ल जानने, मीरा ल मानेन भगति के मिशाल हे..(२) मोर भाई.. बढ़ निक लागे तुलसी के बानी जिनगी बर हावे...( २) संजोए मोर भाई राम कथा ल गांव- गांव..(२) पहुंचाबोन जी जिनगी ल सुफल बनाबो भव सागर ले तर जाबो जी... चल भईया चल दीदी भगति म मन ल लगाबो जी... जिनगी ले मुक्ति हम पाबो जी दुनिया म अंजोर बगराबो जी भव सागर ले तर जाबो जी मोर भईया मोर दीदी भगति म मन रमाबो जी... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
ताड़व
कविता

ताड़व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मृत्यु तुम क्यों आ रही हो यू क्यों बार-बार मुस्कुरा रही हो? क्या प्रलय करता हुआ जल तुमको भाँता है? क्या सड़ती हुई लाशें तुम्हें सुकून देती है? क्या तुमको कभी किसी ने पुकारा है? क्या तुमको कभी किसी ने ठुकराया है? किस क्रोध में तुम बरस रही? किस दर्द में तुम तूफा बन बहक रही? क्या देवों की भूमि में आ बसे है राक्षस? तुम जिनका अब नरसंहार कर रही? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छ...
राखी
कविता

राखी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** आषाढ़ की बादली, सावन की रिमझिम सी, नेह सिंचित राखी लिए, बहिन छबीली आई। चमकीली रेशम की डोरी, भाव जड़ी माणिक, वात्सल्य की बहती गंगा, रिश्तों के सागर आई। भाई बहिन के प्रेम की, नन्हीं राखी प्रति छाया, अमर आत्मिक गाथा, सुख-दुःख की यह पुरवाई। संकट से जब घिरी बहिन, तो भाई बना रक्षक, आन पड़ी जब भ्राता पर, बहिन फ़र्ज़ निभाई। खुशियों की सौगात, अपनों की मिठास राखी, अटूट बंधन नेह समरस, वचन मोली कहलाईं। पंख पैर में लगा आत्मजा, बाबुल के घर पहुंचे, भर - भर आंगन निरखती, प्रीत नैहर की पाई। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मेरे पापा
कविता, बाल कविताएं

मेरे पापा

रीति सिन्हा हाजीपुर ******************** कहो अगर गुड़िया लाने को, ले आते वो पूरी दुकान। मेरे लिए जादूगर है वो और मैं हूँ उनकी जान। सुबह में काम पर जल्दी जाते रात को देर से लौट के आते। खून पसीना करके एक, घर को क्या वो खूब चलाते। सारे सपने भूल के अपने, सपनों से बढ़कर है अपने। वही तो हैं घर का रखवाला, उन्हीं ने तो घर को सँभाला। अपने दर्द का जिक्र न करते, परिवार की फिक्र हैं करते। मुझे जरा सी चोट लगे तो, पापा कच्ची नींद में सोते। माँ की आँखें बरबस रोती, पिता अश्रु को पी जाता है। माँ का नेह सभी को दिखता, पिता भी तो छुपकर रोता है। परिचय :-  रीति सिन्हा निवासी :  हाजीपुर शिक्षा : संत पाॅल्स हाई स्कूल कक्षा - 6 घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
ख्वाब अधूरे रह जाते है
कविता

ख्वाब अधूरे रह जाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** इस जीवन के आपाधापी में कितने गलती और माफ़ी में सपने ख्यालो में सज पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है अपना अब कोई नहीं होता है आँखे बरबस ही अब रोता है अपने सब बेगाने हो जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है इस जगत की जद्दोजहद में कोई हद और कोई बेहद में कैसे कब सफल हो पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है एक मिट्टी के घरौंदा के लिये कुछ दिल की चाहत के लिये अपनों को भी भूलाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है कोई कहाँ जग में सदा रहेगा अपनी बीती किस से कहेगा राज सीने में दफनाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.ए...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जन्म इकतीस जुलाई अट्ठारह सौ‌ अस्सी। जन्मस्थल उत्तर प्रदेश के लमही जिला काशी।। माता‌ थी आनंदी पिता थे अजायब राय। धनपत राय बचपन का नाम उर्दू में नवाब राय।। अमृत राय पुत्र का नाम पत्नी का शिवरानी। लिखकर चले गए लगभग तीन सौ कहानी।। कहानियों का संग्रह है 'मानसरोवर' नाम से। प्रसिद्धि उनकी विश्व में लेखन के काम से।। बनारस से निकालते थे वे पत्रिका 'हंस'। लेखन में अब तक चल रहा है इनका वंश।। 'बड़े भाई साहब' पढ़ा पहुंचे जब अष्टम् में। दो बैलों की कथा पढ़ी आ गये जब नवम् में।। फटे जूते के बहाने मौका मिला दशवीं में। ईदगाह पढ़ने का मौका मिला ग्यारहवीं में।। 'प्रेमचंद घर में', 'कलम का सिपाही' की कहानी। पत्नी और पुत्र ने लिख डाला उनकी जीवनी।। गद्य की विधाओं में उनकी बहुत पकड़ थी। नम्र थे विनम्र थे ‌उ...
विश्वगुरु
कविता

विश्वगुरु

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** शर्म हुई बेशर्म लोक हुआ शर्मशार। लोक-लाज लज्जित हुई फिर भी इज़्ज़तदार। यही तो मर्म हमारा।। धर्म-सुख की चाह में हिन्द का बण्टाधार। बन गयी पहचान हमारी नफरत की झंकार। यही वसूल हमारा।। हमें भारत है प्यारा।। वैष्णवी हो गये राम जी, शंकर शैव समाज। टुकड़े-टुकड़े बांट रहे हैं, नेता ग़रीबनवाज़। यही है रीति हमारी और हम सब पर भारी।। यही सुकृत्य हमारा।। हमें भारत है प्यारा।। नफ़रत से नफ़रत मिटे और दंगे से दंगा। खुल कर करें सियासत अब होकर नंगम -नंगा। मणिपुर जैसे मुद्दों पर बन जाएं हम अंधा। सनातन धर्म हमारा हमें प्राणों से प्यारा। गाँधी थे अधनंगे हम होंगे पूरा नंगा। उनसे आगे जाना हमको, सब हो जाए चंगा।। यही है कर्म हमारा हमारा हिन्द है न्यारा। नैतिकता-मर्यादा का जब कोई करे उल्लंघन। नेता-नेता कहने ...
भूख के भजन
गीत

भूख के भजन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** सत्ता की सड़कों पर फिसल रहें मन। और अधिक मेघ नहीं बरसाओं धन।। लूट गये व्यापारी खेत की तिजोरी। पेट ये बखारी-सा भर न सका होरी। धनिया के माथे की, बढ़ रही थकन।। छूट गई फूलों के हाथों की डोरी। बाँध गए अंटी में नोट सब सटोरी।। महँगा है आज सखे मौत से कफ़न।। काट गई है कैंची, प्रीति की सिलाई। टीस रही पंछी को, धर्म की चिनाई।। थोप दिए हैं मन पर, भूख के भजन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
पक्षियों का सुखी संसार
कविता

पक्षियों का सुखी संसार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** ये पक्षियों का अपना जीवन जीने की अपनी इनकी शैली कितनी सूंदर कितनी होती अलबेली निर्भरता बिन खुद खुशियों में बीतती पशु पक्षियों की कार्यशैली करते काम वही जिनमें लगता आराम घोंसला स्वयं बनाते एक एक पत्तियों तिनखे चुगने को निकल जाते भोर में शाम तक ये प्यारे न्यारे पक्षी अपना काम जिमेवारी से स्वयं निभाते किसी को किसी से नहीं होता भरोसा खुद घरौंदा बनाने निकल जाते बच्चो को पहले खिलाते जुगाड़ में दूर दूर तक जाकर उदरपूर्ति के जुगाड़ में उड़ जाते पक्षियों की अलबेली दुनिया शांति सुख से जीवन बिताते पेड़ पर रहने का बसेरे एक एक तिनका चुगकर मुहं में लपेट लपेटकर अपना आवास बेरोकटोक बनाते किसी पर निर्भरता नहीं ये पक्षियों का संसार हंसते हंसते जिंदगी जीना हमको सिखलाते हरे भरे घने जंगलों पेड़ो पौधे में चिंतामुक्त ये...
तेरी शहादत अमर रहेगी
कविता

तेरी शहादत अमर रहेगी

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** जब तक अर्श-जमी रहेगी, तेरी शहादत अमर रहेगी। होंगे चर्चे तुम्हारे ही दर-दर, हस-हस शूरता समर सहेगी।। फ़िर होगा न कारगिल-सा, छल-छदम भरा संग्राम। मुस्तेद खड़े प्रहरी सीमा के, हो निर्भय अविचल अविराम।। भारतीय वीर बांकुरें पलते, पल-पल तूफ़ानी आगोश में। लेगा न प्रतिपक्षी फ़िर पंगा, आकर कभी क्षणिक जोश में।। सैंकड़ों शहीदों की कुर्बानी, नही,व्यर्थ जाने दी हमने। ख़ून का बदला सिर्फ़ ख़ून, कुछ को फ़िर मारा ग़म ने।। कारगिल विजय दिवस पर, है सादर नमन तुम्हें हमारा। अमर रहेगा बलिदान यह, रहेगा गर्वित भारत प्यारा।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
हे औघड़दानी
दोहा

हे औघड़दानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम प्रामाणिक स्वमेव । पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव।। श्रावण में जिसने भी पूजा, उसने तुमको पाया। पूजन से यह मौसम भूषित, शुभ-मंगल है आया।। कार्तिके़य, गजानन आये, बनकर पुत्र तुम्हारे। संतों, देवों ने सुख पाया, भक्त करें जयकारे।। आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव। नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव ।। तुम फलदायी, सबके स्वामी, तुम हो दयानिधान। जीवन महके हर पल मेरा, दो ऐसा वरदान।। कष्ट निवारण सबके करते, तुम हो श्री गौरीश। देते हो भक्तों को हरदम, तुम तो नित आशीष।। तुम हो स्वामी, अंतर्यामी, केशों में है गंगा। ध्यान धरा जिसने भी स्वामी, उसका मन हो चंगा।। तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव। भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव।। तुम त्रिप...
दिलवाले बहुजन
कविता

दिलवाले बहुजन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गा खेल कूद या नाच, भरपूर समय है तुम्हारे पास, जगराता कर, उपवास रह या महीने भर कांवड़ उठा, मस्तिष्क में सिर्फ इसी बात को बिठा, यहीं सब तो कर सकते हो, यहीं तो सबसे महत्वपूर्ण प्रतियोगी परीक्षाएं हैं, पूरे समाज को यहीं सब करने की आपसे अपेक्षाएं हैं, बरसते फूलों का आनंद लीजिए, घोर आस्थावान होने का परिचय दीजिए, पढ़ाई लिखाई की क्या जरूरत है, देखो भंडारे कराने की कब मुहूरत है, डॉक्टर, इंजीनियर,कलेक्टर, या कोई भी नौकरी करने की, वकील, न्यायाधीश बनने की, बताओ भला आवश्यकता ही क्यों है, खुश रहो भले मानुषों प्राचीन काल से तुम्हारी स्थिति ज्यों की त्यों है, बिजिनेस करने, धंधा करने, विधायक, सांसद, मंत्री बनने, या सत्ता हासिल करने का झंझट भूलकर भी मत लेना, देने वालों में से हो हमेशा दूसरों को ही अपना हिस्...
शब्द
कविता

शब्द

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** १८ दिनों के संग्राम ने द्रौपदी को ८० वर्ष का कर दिया ! द्रौपदी कृष्ण से लिपट कर रो पड़ती हैं, कृष्ण उनको ढाढस नहीं बंधाते रोने देते हैं, द्रौपदी का दिल डूब रहा है, उसके दिल की व्यथा आंसुओ में बह रही है। बोल पड़ती हैं, मैंने ये कदापि नहीं सोचा था, केशव समझा रहे हैं, नियति क्रूर भी होती है, वो हमारे सोचने से नहीं चलती हमारे शब्द भी उसका निर्धारण करते हैं। तुम्हारा प्रतिशोध तो पूर्ण हुआ कौरवों का विध्वंस हुआ।। द्रौपदी पूछ पड़ती है केशव से क्या विनाश का कारण बनी मैं?? या विनाश लीला की उत्तर दाई हूँ?? नही हो इतनी महत्वपूर्ण तुम, क्रूर बनी परिस्थितियां, होती दूरदर्शी तुम जो बदली होती स्थितियाँ, नहीं पाती घोर कष्ट, यातना और अपमान!! क्यों मौन रही जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो हांक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना और अपने परायों से बलात्कार की शिकार. हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता...
निर्धनता है मन का भाव
कविता

निर्धनता है मन का भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** स्वाभिमानी जन श्रम का मान किया करते है जो न श्रम का सम्मान करें निर्धन वही हुआ करते हैं। नहीं भावना हो जिनमे न श्रम का वो मान करें जो शब्दों के बाण चलाते अंतस् उनके रीते रहते हैं। श्रम करना ही मानवता श्रम का फल मीठा मीठा मन का श्रम, तन का श्रम पुष्ट रहे सारा तन-मन। कुटुंब, समाज या मानवता हित जो भरपूर परिश्रम करते हैं कड़ी धूप या जल प्लावन हो स्वाभिमानी वो पूज्य हुआ करते हैं। भीषण लू गर्मी में स्वेद बहा कर घर बाहर भोज्य बनाकर महल अटारी सबको दिलवा कर सबको तृप्त किया करते हैं। जिसकी जो सामर्थ्य जिसको जो आता है उसमें अपना सर्वस्व लुटाकर वो जन मानस को तुष्ट किया करते हैं मान सम्मान के असली अधिकारी वो हर रोज़ हुआ करते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलि...