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पद्य

मुस्कान सौंदर्य
कविता

मुस्कान सौंदर्य

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अंग सौंदर्य आभा हीरक दिव्यमान। सुरलोक की अप्सरा मेरी मुस्कान।। काले कुंतल कमर झूले वृहद रेशमी। लट मुख शोभित घुंघराले लुभावनी।। सुरम्य मुख चंद्रमा की सोलह कलाएं। निशा की प्रहर जगमग करती लीलाएं।। कनिष्ठ कर्णफूल लटक कर टिमटिमाते। लाल भाल बिंदिया प्रिय देख शरमाते।। ग्रीवा शोभित मोती जड़ित नौलखा हार। प्रियतम दृश्य अंकित छवि झलका प्यार।। हस्त कोमल साजन नाम मेहंदी चित्रकारी। विश्व सुंदरी, मोहिनी लगती हो बड़ी प्यारी।। मानसरोवर हंसिनी सदृश कृश कमरिया। मोंगरा, चमेली की खुशबू लेता सांवरिया।। चंचल चाल मृगी चलती बन मिस इंडिया। मैं छूलूं तुझे और पालूं तब आए निंदिया।। जिस दिन जब छुओगी आसमान की बुलंदी। तब मिलेगी सुख,शांति, अशोक, गर्व, आनंदी।। आपके जीवन में सदा खुशियों की बहार हो। चारों दिशाओं में तुम्हारी ही जय-जयकार ...
गहरे अँधियारे
गीत

गहरे अँधियारे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** श्रद्धा का विषवर्धक दरिया, तोड़ रहा नित नर्म किनारे। स्वच्छ पुलिन को निक्षेपण में, सौंप रहा गहरे अँधियारे।। छल के पाँसे लेकर बैठी, मैले मन की मथुरा काशी। पाप-पुण्य की ले दोधारी, हरिद्वार हो गया विनाशी। यहाँ लगाती साँझ सबेरे, भूख निमज्जन कर जयकारे।। क्रत्रिम दिनकर ने ही की है, ऊँच-नीच की हेराफेरी। पोथी के पन्ने-पन्ने पर, छल-छंदों ने जीत उकेरी।। अधनंगे मजरे-टोले के, हिस्से आये आँसू खारे।। सुप्त देह में चेतनता की, जब-जब उठती रही तरंगें जितने बिल से बाहर निकले, उतनी गहरी हुई सुरंगें।। रक्त-बीज से उगते परचम, जिह्वा पर रखते अंगारे।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
रोना
कविता

रोना

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** रोने में कोई बंदिश नहीं रोने में कोई मनाही नहीं रोने में टैक्स नही लगता रोने को कोई नहीं रोकता। जब इच्छा हुई रोलो रोना व्यक्तिगत भावना है आंसू हमारी संपत्ति है रोलो हल्के हो जाओ। सारी समस्याओं का हल रोना किसी को इससे आपत्ति नही रुंधे गले से रो, हिचकियां ले रो अविरल रो, सिसक के रो। आर्तनाद करो, चीख के रो छुपके रो, असहाय हो तो रो छाती पीट के रो, रुदाली बनो बेतहाशा, फफक के रो। रोना एक ऐसी कुंजी है जो हर विपदा से बचने हेतु राहत का ताला खोलती है रोना आंखों को धोता है रोना मन को निर्मल करता है। अश्रुसिक्त नयन सौन्दर्य सूचक, मनमोहक आकर्षण के द्योतक कमल नयन, मृगनयन रोने के पश्चात, मन में उत्साह, उम्मीद के संचारक आंसू, पुनः हंसी और मिलन का स्वागत करते हैं । परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवा...
दशहरा
कविता

दशहरा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दस विकारो को जीत बढ़ चले प्रगति पथ पर जीत सार्थक तब, जब अछून्न रह सके जीत पर जब मरे विचारों का रावण तब दशहरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा संकल्प लेंगे नहीं हटेंगे अच्छाई की राह से दूर ही रहेंगे काम, क्रोध व लालच की चाह से पवित्र हो विचार तो स्वाभिमान जाग जायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा सत्कर्म की राह पर चलकर पायेंगे लक्ष्य को कर्म करके बताएँगे, जीवन के सब साक्ष्य को कर्मो से ही जीवन मे नित नया सवेरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा मन के गलियारे मे सज्जनता का होगा बसेरा अरमानो का नित होता हो जहाँ सुखद सवेरा ऐसे नर ही जग मे लक्ष्मी नारायण बन पायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा राम बनना है तो राम सा चरित्र बनाना होगा भीतर के रावण को खुद ही हमें मिटाना हो...
गहन ज्ञान का लोक प्रदाता
गीत

गहन ज्ञान का लोक प्रदाता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गहन ज्ञान का लोक प्रदाता, गुरु सर्जक कहलाता है। शत-शत वंदन हम करते हैं, शिक्षक भाग्य विधाता है।। कच्ची माटी को मथता है, शिल्पी है देख निराला । प्रतिभाओं को पंथ सुझाए, आदर्शों की है शाला।। सदाचार संयम से पावन, शिक्षा अलख जगाता है। लोक आचरण उत्तम अनुपम, शुभ मंगल भी व्यवहारी। आलोकित करता है जग को, सत्कर्मी है उपकारी।। मानवता की शिक्षा देता, सत्य पंथ ले जाता है। अनुशासन का पाठ पढ़ाता, सच्चा योगी है न्यारा। मार्ग -प्रणेता और समीक्षक, संस्कृति-पोषक भी प्यारा।। शिक्षा का उत्थान करे नित, पारस सबको भाता है। ज्ञान प्रभाकर है सुखसागर, शिक्षा में भी गहराई। दोष निवारक है शिष्यों का, विनयशील है सुखदाई।। ब्रह्म-ज्ञान का भव संवाहक, यश वैभव दिलवाता है।। शिष्यों का कल्याण करे नित, धवल लोक की अभिल...
माँ कौशिकी
स्तुति

माँ कौशिकी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिव शक्तियों के स्वरूप में नौ देवियाँ अवतरित हैं हुई दुर्गा मैया करती वार पे वार दुर्गुणों का कर देती संहार अन्नपूर्णा सबकी पालनहार भरपूर रखे सदा अन्न भंडार माँ का काली का ये अवतार मिटाए संसार के सब विकार सहनशीला माता जगदम्बा है प्रेम लुटाती सब पे अपरम्पार धैर्यशीला महान सन्तोषी माँ गुण अवगुण सब हैं स्वीकार बड़ी पारखी हैं गायत्री मात न्याय का ही करती हिमायत विद्या की निर्णय की ज्ञाता ज्ञान प्रकाश से इनका नाता सबसे अलग हैं कौशिकी विस्तार को सार में बदले पार्वती की अंशिका है ये रूप लावण्य की प्रतिमूर्ति रेशम सी हैं संवेदनशीला पूरित हैं भाव लीलाओं से माँ का सौंदर्य है मन भाए उग्र तारा का प्रतिरूप धारे वचन उद्गारे महिष्मति ने उसकी हार बने जय हार सब राक्षसगण भ्रमित हुए अंगाररूप से शुम्...
नवरात्रि और नारी
कविता, स्तुति

नवरात्रि और नारी

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** नारी जिससे देवता भी हारे काली जिससे स्वयं शंभु हारे द्रौपदी जिससे पांडव कौरव हारे वो स्वयं किल्ला कंकालिन तो आदि दुरगहीन माँ चण्डिका है कभी नरसिंह अवतार की भगिनी रतनपुर की माँ महामाया है राजा कामदल की आशापुरा वो डोंगरगढ़ बमलाई है वो बाबा बर्फानी की आरध्या नंदगहिन माँ पाताल भैरवी है वो बस्तर की माई महतारी देवी दंतेश्वरी शक्ति स्वरूपा है कोरबा की मंगल धारणी सर्वमंगला देवी स्वरूप है वो झलमाल गंगा मइया जैसे शीतल गांव-गांव की शीतला महारानी है। दुर्गम राक्षस मर्दानी देवी दुर्गा चण्ड मुण्ड संघारणी महिसासुरमर्दिनि है शशि शीश धारणी, त्रिनेत्र शोभनी वो त्रि देव पूजनीय माँ शक्ति है नारी है वो जग अवतारी वो सृष्टि की महतारी है। जिससे रावण, पांडव, राम, कृष्ण, विष्णु, स्वयं शंभु भी हारे है वो नारी है जिससे देवता...
जिद
कविता

जिद

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** वो जिद में अड़े रहे कि घर में लक्ष्मी आयी है, कुछ के मन में था कि खुशियां लायी है, पर उनके मन में था मुसीबत आयी है, पता नहीं किन मनहूसों ने कब से ये भ्रांतियां फैलायी है, वो जिद पर अड़े रहे लड़की है सिर्फ चूल्हा फूंकेगी, वो चूल्हा फूंकती रही, क़िताबों से हवा देते चूल्हे को, अक्षरों के भंडार लूटती रही, पर वह भी जिद पर थी अज्ञानता, निरक्षरता को चूल्हे में आग के हवाले निरंतर करती रही, फिर चुपके से सायकल चलायी, स्कूटी चलायी, कार चलायी, ट्रेन चलायी, एरोप्लेन चलायी, पर वो पुराने खयालात वाले का जिद अभी भी है लड़की चूल्हा फूंकेगी, जनाब अब तो अपने भंवर से बाहर आकर देख, तुम्हारे कलुषित अरमानों की धज्जियां उड़ाते हुए वो देश भी बखूबी चला लेती है, तुम्हारे दूषित संस्कार, ढकोसले, पाखण्डों को मटियामेट करती हुई, सार...
दो अक्टूबर दो पुष्प
कविता

दो अक्टूबर दो पुष्प

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** भारत-भू पर दो अक्टूबर। दो पुष्प अवतरित हो। भारत उपवन में खिले। पहले लाल बहादुर शास्त्री। दूजे महात्मा गांधी। दोनों पावन आत्माएं। भारत-भू पर श्रेष्ठ कर्म। करने आई, दोनों महान। विभूतियां दोनों का व्यक्तित्व। अद्भुत गुणों की खान। लाल बहादुर शास्त्री। विनम्र स्वभाव धनी। गुदड़ी के लाल। जय जवान जय किसान। नारा लगा दोनों का सम्मान। सदा किया। गांधीजी चले सत्य। अहिंसा मार्ग बापू कहलाए। करो या मरो नारा अपना। मौन रह सत्याग्रह कर। भारत स्वतंत्र करावाएं। अंग्रेजों की गुलामी से। अंग्रेजों को भारत से बाहर। खदेड़ भारत बापू बन गए। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
साथिया
कविता

साथिया

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** जीवन के विकट मोड़ पर , जब थाम लिया तूने मेरा हाथ .......!! सफर रहा मुश्किलो में भी, अपना हर मौसम में साथ-साथ .....!! बेदर्द जमाना लगाए बैठा था घात, सहते रहे हम दिलो पर आघात .....!! दिल करता हैं, चीर दू , अपने जिस्म के ज़खीरे को ...........!! और डाल के भीतर हाथ, मुट्ठी में भींच कर निकाल लूं .........!! उसे खींचकर बाहर औऱ , जोर से उछाल कर फेंक दू .........!! तुम्हारे पद - पंकजो में , फिर  तो यकीन होगा मुझ पर .......!! कि मुझे  तुमसे  बेइंतहा , मुहब्बत है जन्म -जन्मान्तर से ......!!! परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं म...
क्या है समाज…?
कविता

क्या है समाज…?

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** क्या है समाज...? मैं पूछती हु क्या है समाज ? लड़का- लड़की में भेदभाव करता है समाज... लड़को को आजादी और लड़की को बंधन में बाँधता है समाज...। मुँह पर तारीफ और पीठ- पीछे हीन बाते करता है समाज...। इक्कीस मी सदी के लोग यह कैसा जीवन जीते है ...... हर-पल समाज-समाज की रट लगाते रहते है...। मैं मानती हुँ... ! हर इंसान समाज के आधीन होता है... समाज क्या कहेगा यह सवाल सब के दिल में होता है...। अपनी इस सोच को मिलकर बदलते है...... एक आधुनिक एवं नवीन विचारशील समाज की रचना करते हैं...। परिचय :- उषा बेन मांना भाई खांट निवासी : वालीनाथ ना मुवाडा, जिला- अरवल्ली (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ की रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
ठहाके जनकपुर में
कविता

ठहाके जनकपुर में

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जनकपुरी में सखी करें मजाक, राम लखन से करें तकरार। दशरथ के घर एक अचंभा? बिना पिता के भये संतान, खीर खाए पैदा बेटा भये, एक नहीं चार चार महाराज।। सखी सहेली करे ठिठोली, गजब खीर से हुए हैं पुत्र रत्न, दशरथ घर भयी संतान। हंसी मस्करी कर लक्ष्मण मुस्काने, गजब अचंभा जनक के घर का, हमरे तो माता के भय ललना, तुमरे जनक में नहीं माता-पिता से, पैदा भयी देखो संतान।। तुम्हारे यहां तो धरती उपजे है, खेती कर निबजे संतान। ले ठहाका लक्ष्मण मुस्काने, राम लला मंद-मंद मुसकाने, सखियों के चेहरे कुमलाने, सखी राम सब करें मजाक, जनकपुर में गारी खावे हे राम। "किरण विजय" कहे जनक सखी यू, हंसी-खुशी रहे युगल जोड़ी सरकार।। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं य...
माँ चंद्रघंटा
स्तुति

माँ चंद्रघंटा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तृतीय रूप माता रानी का, घंटा चंद्र कहाता। देती माँ संतुष्टि सभी को, धन आरोग्य प्रदाता। घंटा चंद्र विराजित जिनके, माता सौम्य स्वरूपा। शरण रहें जो भक्त आपकी, दूर रहें भव कूपा। हाथ त्रिशूल धारती माता, अर्ध चंद्रमा सोहे। सौम्य स्वरूप देख माता का, जन जन का मन मोहे। अक्षत पुष्प चढ़ा माता को, दीपक ज्योति जलाते। शरण रहें जो भक्त आपकी, मनवांछित फल पाते। धनुष गदा तलवार हाथ में, अर्ध चंद्रमा प्यारा। है त्रिदेव की शक्ति समाहित, मोहित है जग सारा। केसर दूध चढ़ाकर माँ को, फल मिष्ठान चढ़ाते। पा आशीष चंद्रघंटा का, अपना वंश बढ़ाते। शहद प्रसाद परम प्रिय माँ को, पीत वर्ण है प्यारा, श्वेत वस्त्र सिंदूर पुष्प से, माँ का रूप सँवारा। सारे जग की पालनकर्ता, संकट दूर करो माँ। राक्षस पापी नीच जनों का, तु...
सुन्दर कहानी
कविता

सुन्दर कहानी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बचपन की सुन्दर कहानी, एक राजा एक रानी और होते थे राजकुमार एवं राजकुमारी, कहानियाँ मासूम और प्यारी थी, उनका संदेश अर्थ पूर्ण होता था. निश्छल किरदार होते थे, कुछ ही बेकार होते थे, समय के साथ कहानियां बदली, उनके मायने बदले कहानी के कलाकार भी बदल गए ! अब तो है राग द्वेष की कहानी, अमीर गरीब की कहानी मरने मारने की कहानी, ऊंच नीच की कहानी इन कहानियों में गुम हो गई सच्चे जीवन की कहानी बाकी बची सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ की कहानी!! हर एक की है अलग और अपनी कहानी, पर कौन सुने किसी और की कहानी सभी हैँ अपने में उलझे से और अभिमानी, किसी को किसी की परवाह कहाँ, इंसान को इंसान से प्यार कहाँ काश हम लौट पाते उन्हीं पुरानी कहानियो और किरदारों में जिनमें डूब कर जीवन संवार लेते कुछ पल ही सही वापस बचपन को...
स्मृति
कविता

स्मृति

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** स्मृति के पथ पर तुमको खोज पाना थोड़ा कठिन था। फिर भी तुमको खोज पाया मैं स्वयं की आत्म अनुभूति में। स्मृति के पथ पर जो शेष रह गया था वो सब धुंधला-धुंधला सा ही था। फिर भी तुम को खोज पाया मैं स्वयं के आत्ममंथन में। स्मृति के पंथ पर तुमको भूल जाना नामुमकिन था फिर भी भूल कर भी न भूल पाया अंतर्मन में तुमको। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
क्या लिखूँ
कविता

क्या लिखूँ

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** काली कजरारी तेरी आंखों को लिखूँ। या फना होता तुम पे अपनी हालातों को लिखूँ। क्या लिखूँ? लटकती कानों में बाली को लिखूँ। या रसभरी होंठों की लाली को लिखूँ। क्या लिखूँ? मेहंदी से सजे खूबसूरत हाथों को लिखूँ। या कोयल सी मीठी बातों को लिखूँ। क्या लिखूँ? पहाड़ियों में बसा तुम्हारा गांव लिखूँ। या तेरी घनी बिखरी बालों का छांव लिखूँ। क्या लिखूँ? छन-छन करती तेरी पायल की झनकार लिखूँ। या तीर नजरों से घायल सीने के आर-पार लिखूँ। क्या लिखूँ? चाहता हूँ दिल की अपनी हर बात लिखूँ। सपनों के सागर में डूबा अपना जज्बात लिखूँ।। और क्या लिखूँ? दे दो हाथों में हाथ फिर एक नया आगाज लिखता हूँ। मिला दो सुर में सुर फिर एक नई आवाज लिखता हूँ।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
जीवन सफल बना दो माँ
भजन, स्तुति

जीवन सफल बना दो माँ

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** जीवन के अंधेरों को दूर भगा दो माँ, नैया मेरी पार लगा दो माँ, ये जीवन जो तुमने दिया, जीवन की राह आसान बना दो माँ, आते हैं तेरे दर पर, बन कर सब सवाली, मुझ पर भी कृपा कर, मेरा भविष्य उज्जवल बना दो मांँ, दुःख दर्द सब दुर कर, मेरा जीवन सफल बना दो माँ, लक्ष्य जीवन का मेरे, उसको साकार बना दो माँ, मांँ होकर सब जानती हो, दीन दुखियों का दर्द पहचानती हो, मुझ पर भी दया दृष्टि बनाकर, सब काम मेरे आसान बना दो माँ, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्द...
दुनिया में सभी सुखी रहें
कविता

दुनिया में सभी सुखी रहें

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** दुनिया में सभी सुखी रहें जीवन भर सभी के मन शांत रहें दूसरों की परेशानी में मदद करें यह भाव हर मानवीय जीव में रहे कभी किसी को दुख का भागी ना बनना पड़े यह कामना हर मानवीय जीवन में रहे जीवन में किसी जीव को परेशान बुराई ना करने का मंत्र ज्ञान मस्तिष्क में रहे सभी जीवन में सुखी रहें दुनिया में कोई दुखी ना रहे सभी जीवन भर रोग मुक्त रहे मंगलमय के हर पल के सभी साक्षी रहे सभी श्लोकों को पढ़कर जीवन में आनंद करें महापुरुषों के ग्रंथों को पढ़कर सही रास्ते पर चलकर सभी में यह सोच भरें किसी की बुराई और परेशान ना करें भारतीय संस्कारों को जीवन में अपनाते रहें सभी जीवो का कल्याण का कार्य करते रहें किसी के दुखों का भागी कारण न बने सभी की भलाई निस्वार्थ करते रहें परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) ...
गांधी के तीन बंदर
दोहा

गांधी के तीन बंदर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बंदर गुण पर नजर थी, जो गिनती में तीन। गांधी अनुयायी सही, लाख बजा लो बीन।। साथ रखे वो घूमते, व्यापक था प्रभाव। एक सदी से दिख रहा, बहुत विचित्र स्वभाव।। गलत देख कर गुम हुए, पाए जो संस्कार। पट्टी आंख पर है चढ़ी, हो रहा व्यभिचार।। व्यर्थ वानर अब खड़ा, पनप रहे कुविचार। अभिभावक के सामने, बिगड़ रहा परिवार।। छठी इंद्रिय तेज है, असमंजस कपिराज। गांधी तेरे देश में, अखर रहे हैं काज।। हम कानों से क्या सुनें, सुनती जब दीवार। कर्ण कपि खुद नाच रहा, अनर्थ मय तकरार।। सुनना भी पसंद नहीं, सुंदर भी जब बोल। वानर थाम रहे तुला, कैसे खोलें पोल।। बड़बोला मानव हुआ, एक रहे नित काम। मुख पट्टी भी कपीश की, कचरा गई तमाम।। गांधी के बंदर पले, बहुत बरस की भोर। जीवनकाल खत्म हुआ, चलन दूर का शोर।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १...
महागौरी वन्दन
भजन, स्तुति

महागौरी वन्दन

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** महामाता महागौरी जगत कल्याणकारी हैं। तुम्हारी आस हमनें नाव दरिया में उतारी है।। शिवानी शैलजा अम्बा त्र्यम्बक तोषिणी गौरी। चतुर्भुज रूप है अनुपम, धरे हैं चंद्रमा मौरी।। लिए त्रयशूल दाएँ कर, बजातीं वामकर डमरू। वृषभ आरूढ़ हैं माता, चलें हैं संग में भैरू।। जिन्होनें भक्त के कल्याण हित लीला प्रसारी है।।१! सुता हिमवान की हो तुम, चुना पति शंभु शंकर को। कठिन तप से पड़ी काली, रिझाया तब शुभंकर को।। पिया सितकंठ आये तब, दिया वर गौर वर्णा हो। बनी शंकर प्रिया शुभ्रा, शिवानी हो अपर्णा हो।। तभी से गौरवर्णा हो, वदन कर्पूर क्यारी है।!२! तुम्हीं दुर्गा तुम्हीं काली, तुम्हीं तो अन्नपूर्णा हो। तुम्हीं शाकाम्भरी देवी, महिष की दम्भ चूर्णा हो।। सुनैना दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गतारिणि हो। भवानी दुर्गभा अम्बा, श...
सात गुण सात रोग
कविता

सात गुण सात रोग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात गुण सात रोग शक्ति स्वरूपा देवियों से प्राप्त गुणों से भगाएँ रोग। स्नेह प्यार की शीतल बयार ह्रदय रोगों से बचाती संसार क्यों न प्यार दें और प्यार ले शान्ति का चहुँ ओर हो प्रसार श्वास अस्थमा नहीं आए द्वार तभी कहते शान्ति से सांस लो संतोष व सुख का करो संचार पेट रोग अपच सब मानेंगे हार सुना है, सुख से दो जून खाओ फैलाओ सदा ज्ञान का प्रकाश मानसिक रोगों का होता नाश चिंता नहीं, चिंतन में लीन रहो शरीर के दर्दों से पाओ निज़ात जाग्रत अष्ट शक्तियाँ है निदान अन्तर्निहित ऊर्जाएं न गवाओ कर्मेन्द्रियां अपना ले पवित्रता प्रतिरोधक दिलाए रोगमुक्तता सोचो-सब अच्छे, सब अच्छा संतोषी सदाचारी निर्विकारी बने परम् आंनद के अधिकारी दुआ दो, भला करो, मगन रहो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
पुतले का दहन
कुण्डलियाँ, छंद

पुतले का दहन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां - छंद करके पुतले का दहन, हर्षित है इंसान। रावण अब मारा गया, कहता है नादान।। कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता। पुतले को निज हाथ, जलाते सदियों बीता।। कहे राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके। मना रहा है पर्व, दहन पुतले का करके।। मरना रावण का नहीं, है इतना आसान। जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान।। भरा हुआ ‌अभिमान, यही रावण कहलाता। फिर पुतले पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता।। कहे राम अभिमान, हमें है निज का हरना। तब होगा आसान, दुष्ट रावण का मरना।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
जड़ों का अस्तित्व
कविता

जड़ों का अस्तित्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमीन में दबी हुई जड़ों के जंजाल को जीवित रखने के लिए। वृक्षों की विभिन्न शाखाएं देखिए कैसे अवनी अंबर में समझौता करने के लिए अडिग है। उच्च श्रृंग शिखरवृक्ष का संदेश सुनाता अंबर को कहता अवनी आश्वस्त है तप्त रवि जब किरणें फैलाता। फैले वृक्ष छाया करते अवनी पर गोलाई, चौड़ाई, चतुर्भुज, लंबाई गणित बैठाती है शाखाएं। पर्णों का स्वर संगीत सुनाती तपती दोपहरी में ठंडी पवन आड़ी तिरछी शाखाएं वृक्षों की आलिंगन करती अवनी का। मानोकहो रही हो वृक्षशाखाएं हे अवनी हम तुम्हें संभाल लेंगे क्योंकि नीचे की जड़ों का तुम ही तो आधार हो। वृक्षों के कई आकार छोटे लंबे गोलाकार देते सदैव अंबर को अवनी का अस्तित्व आभास। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी ...
भगत सिंह को दिल करे प्रणाम
कविता

भगत सिंह को दिल करे प्रणाम

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** कोटि-कोटि नमन है शहीद तुझे, मन पर हस्ताक्षर ले मातृभूमि का, करते रहे सदा देश की सेवा तुम मिट गए पर झुके नहीं गैरों के आगे करते हुए इस समाज का कल्याण ।। अपने से विचारों से ला दी थी तुमने, युवाओं में क्रांति आजादी के नाम की हर घर एक भगत हो रहा था तैयार सत्य सभी को दिखलाया देश हित में, ऐसे भगत को हैं कोटि-कोटि प्रणाम ।। ना भूलेंगे हम तुम्हारी शहादत कभी कैसे किया तुमने मातृभूमि का सम्मान, ऊंच-नीच का भेद नहीं था तुमको कभी, सिखलाया हंसकर जीना सबको गले लगाकर किया सभी से सदैव भगत ने प्रेम अपार ।। गुलामी की जंजीरों से करना थे बस तुमको स्वतंत्र इस देश में सभी के विचार इसीलिए हर मार्ग चुना सावधानी से स्वतंत्रता की खातिर करते गए तुम साथ लेकर सबको ही अपना काम ।। तुम्हारे बलिदान को व्यर्थ नहीं समझा हम...
श्रम
कविता

श्रम

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** श्रम पूजा श्रम ईश्वर श्रम ईश्वर का रूप कर्म विधान श्रमिक तु ईश्वर का प्रतिरूप।। पत्थर फोड़े नहरें खोदी खोद रहा खदान गगन चुंबी इमारतों में चढ़ करता विश्व से आह्वान।। जलते पग जलती भू जल रहा आकाश पानी की एक एक बूंद को ढूंढ रहा हताश।। जलता ज़मीर जलता ख़्वाब पिस रहा लाचार भाग्य के हम भाग्य विधाता श्रम करता प्रतिगान।। जलते अंगारों में सुसज्जित निर्धन का गलियार जर्रे जर्रे मर मर कर श्रम करता फरियाद।। श्रम जीवन का मार्ग प्रशस्त करता काया कल्प शोषक शासक नाम मात्र का करता राजतंत्र।। शोषित शोषण के अंधकार में जलता निमग्न काम ऐश्वर्य के पूर्ण अर्थ से देश बना विपन्न।। लोकतंत्र के शासन में नीति दलों का द्वंद देश की अर्थ व्यवस्था दाव में जलमग्न।। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७...