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पद्य

मातृभाषा हिन्दी और हम
कविता

मातृभाषा हिन्दी और हम

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हिंद देश का वासी हूॅं मैं, हिन्दी मेरी भाषा है। इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है।। रक्त बूॅंद बनकर मेरी यह, रग रग में बहती हर पल। ज्यों जल की धारा बहती है, नदियों में करती कल-कल।। तृषित जनों को सिंचित करती, जीवन की यह आशा है इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है जननी जन्मभूमि सी प्यारी, मातृभाषा है यह श्रेष्ठ। एक यही हो भाषा सबकी, हो इसका उपयोग यथेष्ठ।। वर्षों की मेहनत से इसको, हमने खूब तराशा है इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है हिन्दी प्राण है हिन्दुतां की, इसके बिन मृतप्राय सभी। इसका कर्ज चुका ना सकते, हम सारे ताउम्र कभी।। शांत इसी को पढ़कर होती, मन की सब जिज्ञासा है इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है हिन्दी हिंदुस्तान का झंडा, विश्व गगन ...
बासंती छटा
कविता

बासंती छटा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** माहिया- १२,१०,१२ आई-आई-आई रितुओं की रानी बासन्ती चहुँ छाई बौराई अमराई कोकिल कू कूके खुल कलियाँ मुसकाई फूली सरसों रानी धरती ने रंगी अपनी चूनर धानी जब रह-रहकर बोले पपिहा पिउ कहवां मनवां विरही हौले सूना-सूना लगता दुअरा घर-आंगन बिन साजन ना फबता रिमझिम-रिमझिम बरसे बारिश की बूँदें कैसे न हिया हुलसे नयना निंदिया घेरे अलसाई घरनी सपनों में ले फेरे अँखियाँ खुशियाँ लौरे महके जब मधुबन करते गुन-गुन भँवरे कलियाँ चहकीं महकीं मदमाती डगराँ बातें करतीं बहकीं घुल-मिल कर मन नाचे झूमे यूँ गाये मनहर बतियाँ बाँचे परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
ओ यशोदा मैया
भजन, स्तुति

ओ यशोदा मैया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** माता यशोदा की गोद में खेले कृष्ण कन्हाई अब सोच रहे हैं कैसे करूं मैं अब मैया से विनती, खाने को सखा राह देख रहे हैं।। खेल-खेल में कृष्ण सखाओं संग, मक्खन की हांडी को ताड़ रहे हैं जैसे ही मैया हांडी माखन से भरदे मैया को मक्खन के लिए बोल रहे हैं। अब आई बारी मक्खन खाने की मैया दे मधुर मुस्कान वे बोले रहे हैं ओ री यशोदा माई मैं तेरा लल्ला करवा देना मेरा मक्खन से मुंह झूठा।। माटी ना खाऊंगा सच में कहता हूं गईया चराऊंगा में नित सांझ,सवेरे एक हांडी भर दे माखन से मेरी तू राधा ,सखा सब रास्ता देख रहें है।। कोई की मैया ना देवे हैं मक्खन जितनी प्यारी है तू ओ मेरी मैया चोरी करूंगा न मक्खन की अब से दे जो तू मुझे एक माखन की हंडिया ।। ओ मैया जब देगी मक्खन की हंडिया कन्हैया का तेरा यह वादा है ओ मैया काम...
हिचकी
कविता

हिचकी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कौन याद कर रहा है मुझे? हिचकी आई, कोई तो हमारा है तभी तो मुझे हिचकी आई, दूर बैठे हैं मेरे प्रियतम! भारत माता की रक्षा में, उसने मुझे याद किया होगा? तभी तो मुझको हिचकी आई, चिट्ठी नहीं कोई संदेश! हिचकी है उनका संदेश, मैं भी नहीं इसको है मिटाउ, प्रीतम की याद में भी इससे पाऊं, नहीं उन्होंने मुझे बिसारा, मुझको याद किया है उसने, तभी तो मुझको हिचकी आई, पल पल तेरी याद हे आती, मुझको तो दिन रात सताती, तेरा एहसास मुझे दिलाती, तभी तो मुझको हिचकी आती, कब सोने का सूरज निकले नई किरण की आस भी जगले, प्रीतम के आने की उम्मीद है जागी, पर फुर्सत में मुझे हिचकी आती परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
मृत्यु
कविता

मृत्यु

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मृत्यु अवस्था है जीवन की। बस काया के परिवर्तन की।। मोक्ष मिला तो लय जीवन है, जन्म मिला तो जय जीवन है। लोग सोचते हैं बस इतना, मरने तक का भय जीवन है।। जब कि अमर की मृत्यु कहाँ है? इससे सच्चा‌ सत्य कहाँ है ? कथा नहीं यह व्यथा कथन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। दिखती नहीं अग्नि काठों में, कहाँ दूध में घी दिखता है? कहाँ बादलों पर बर्तन हैं, कौन कहाँ कविता लिखता है।। यह माया है साथ चलेगी, हर पड़ाव के बाद मिलेगी।। रही बात उत्थान पतन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। पल - पल मृत्यु पा रहे तुम हो, पल - पल जन्म ले रहे तुम हो। तुममें प्राण उपस्थित पल पल, जीवन के भी जीवन तुम हो।। नाहक चिन्ता पाल रहे हो, दुविधा में क्यों डाल रहे हो। बातें करते हो दर्शन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। चल...
गांव और शहर
कविता

गांव और शहर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शहर जागता देर रात गांव जल्द सो जाता सुबह जल्द गांव उठता शहर उठता देर से खरगोश कछुए की कहानी की तरह। गांव उठेगा तो ही शहर जागेगा क्योंकि दूध चाय का गांव से ही तो आता। आती है ताजी सब्जियां गांव से जल्द सो जल्द उठो स्वास्थ्य का होता मंत्र सूरज की पहली किरण के दर्शन देवस्थानों से बजती घंटी पंछियों का कलरव पशु सेवा के पुनीत कार्य ईश्वरीय आराधना नित्य बनते ये क्रम गांव शहर का आधार बनाता सर्वसुविधा होती ये शहर दर्शाता गांवों में होती कहां सर्वसुविधा इसलिए तो गांव-गांव कहलाता शहर इसलिए तो इतराता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
वसंत ऋतु आगमन
कविता

वसंत ऋतु आगमन

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आया वसंत, आया वसंत, कर शरद शिशिर का पूर्ण अंत। आया वसंत, आया वसंत।। जाड़े से आई जड़ता जो, जीवन संवेग को थाम लिया, जमता कर्तापन इससे पहले, किस ऋतु ने उसे विराम दिया, है महक उठी प्रकृति सारी, संग महका सारा दिग दिगंत। आया वसंत, आया वसंत।। स्वागत करने को सज संग, पछुआ लेकर आया पतझड़, जीर्ण शीर्ण पत्रक उतार, तरु लता कुंज बनकर निर्मल, नूतन स्वरूप हर शाखा पर, अनुपम सौंदर्य लेकर हेमंत। आया वसंत, आया वसंत।। पाटल मंदार के पुष्प गुच्छ, गेंदा कनेर के पीत पुष्प, खेतों में लहराती सरसों, उन पर भी पीले खिले पुष्प, भू पीत वर्ण श्रृंगार किए, बिखरा सर्वत्र बसंती रंग। आया वसंत, आया वसंत।। नस नस में जगाता नया जोश, जड़ चेतन सब हुए मदहोश, कलियों में हवन अंगड़ाई भरता, हर भ्रमर देख खो ...
सूर्यवंश के हंगामी
कविता

सूर्यवंश के हंगामी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। नेक काज पर प्रोत्साहन, स्व स्फूर्त सहज ही बढ़ना कुछ कमियों की अनदेखी, तिरस्कार मार्ग से हटना लगते लोग नागवार ऐसे, भाए आंख चुराकर रहना कुछ अद्भुत उपलब्धि से, जीत की ताली ना बजना ऐसे लोग बहुत हैं जग में, खुशहाल व्यक्ति पर रोते। कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। सम्मान समय पर जो होता, वही कद्र बनती मिसाल बुद्धि घट में कई छिद्र जड़े, उन्हें पूछना सिर्फ सवाल स्वभाव ही तो पहचान बने, कर्म योग रोशन मशाल दूध पी सांप जहर उगले, चारा खा धेनु दूध कमाल। गाय प्राणदायिनी सभी को, कृष्ण गौ सेवा में खोते। कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। अ...
मनमीत बनल केहु ना
आंचलिक बोली

मनमीत बनल केहु ना

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** मनमीत बनल केहु ना, अब हीत बनल केहु ना। सूर के हमरा सजावेला, संगीत बनल केहु ना। सब कोस रहल बा हमके। छवलस बदरिया गम के।। हम कोसी ए दुनिया के। या खुद अपना हीं करम के।। बा खेल इ बदलल हमरो। अब जीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। किस्मत के लड़ाई बा। लगले हीं खाई बा।। अब साथ छोड़त हमरो। अपने परछाई बा।। मझधार में जीवन नइया बा। रण प्रीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। लिखनी बहुतेरे कहानी। आफत में खुद हम बानी।। एह गैर के महफिल में। अब के हमके पहचानी।। अनुमान गलत नईखे। जनगीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। जज्बा बा जीत हीं जाईब। खुद से हीं किरिया खाइब।। आनंद ए कठिन डगर में। हमहुॅ किरदार निभाइब।। बनके देखलाइब हम अब। दुनिया के एक नमू...
सीखो
कविता

सीखो

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** खुद की लड़ाई खुद लड़ना सीखो खा कर ठोकर सम्हलना सीखो..!! खुशी और गम आएंगे जिंदगी मे स्वीकार दोनों को करना सीखो..!!1 नदियों सा हर दम बहना सिखों सूरज की तरह निकलना सीखों..!! थककर ना बैठ मंजिल के मुसाफिर मंजिल की राह पर चलना सीखों..!! मुश्किलों से डटकर लड़ना सीखों पाने के लिए कुछ करना सीखों..!! बिन मेहनत के नहीं मिलता कुछ मेहनत पर भरोसा करना सीखों..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
ईर्ष्या हुई गझिन…
कविता

ईर्ष्या हुई गझिन…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** ताज और तलवार चुभोते, चौराहे पर पिन। सद्भावों के कलधौती दिन, होने लगे मलिन।। ढीली गाँठे कसने बैठा, संविधान स्वैच्छिक। प्यास बुझाने लगे लहू से, नर पिशाच वैदिक।। आग लगा जाती बस्ती में, ईर्ष्या हुई गझिन।। रोज स्वार्थ का कुंभ नहाते, कपटी वैरागी। उजला दिखने फेंक रहे हैं, कालिख ही दागी।। गले लगाकर घोंप रहा है, छुरा पेट नलिन।। शब्दों के कृषकों ने बो दी, अपघाती फसलें। पगलाई है चर कर जिसको, मानव की नस्लें।। सरल प्रश्न जीवन के सत्ता, करती रही कठिन।। वरक चढ़े रिश्ते परकोटे, कर देते नंगे। जयकारे है सम्मुख पीछे, प्रायोजित पंगे।। डुबो गया है भाटा फिर से, निकले नये पुलिन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
हर पल ऐसे ही जीना है
कविता

हर पल ऐसे ही जीना है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** कल की चिंता में न डूबकर आज ही तो जीवन सोचकर बहाना तुझे पसीना है हर पल ऐसे ही जीना है। तेरा-मेरा से ऊपर उठकर सबका सच्चा साथी बनकर पल से पल को सीना है हर पल ऐसे ही जीना है। क्या लाए, क्या जाओ लेकर दुनिया को मीठे बोल ही देकर बजती जीवन वीणा है हर पल ऐसे ही जीना है। अहं भाव को सदा ही तजकर दुर्गम पथ का राही बनकर हर मन को यूं ही जीतना है हर पल ऐसे ही जीना है।। अंतर्मन के द्वंद से उठकर मन में आशा की लहरें भरकर जीवन का मधुरस पीना है हर पल ऐसे ही जीना है। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
आश्वस्त हूं
कविता

आश्वस्त हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** फांसी ले लूं या दे दो मतलब एक ही है, मेरा आकलन क्या है न पूछो इरादा नेक ही है, शायद मैं अपनी जिम्मेदारी न निभा पाया, अपने जज़्बात किसी को न बता पाया, शायद नजरिये का फ़र्क अजूबा है, मेरे या उनके सोचने का तरीका दूजा है, मैं अपने घर की मजबूत दीवार लग रहा था, पर कोई तो था जिन्हें मैं बीमार लग रहा था, संभाल पाना सबको शायद मेरी औकात नहीं, या हो सकता है अब शायद यह सोचना न पड़े कि अब मुझमें उस तरह की जज्बात नहीं, अब तो अब मैं तब भी खरा सोना था, मेरी जद में हर कोना था, नकार दो मेरा वजूद पर मैं शाश्वत हूं, समझा जाएगा मुझे कभी मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
नशा नाश का मूल
कविता

नशा नाश का मूल

विकास सैनी बापू गांव, कोटखावदा, (जयपुर) ******************** छोड़ो धुम्रपान और शराब, नशा नाश का मूल है। जो नर नशें को अपनाता, जीवन में बोता शूल है। नशा जिसने अपना लिया, यह जीवन की भूल है। गांजा गुटखा बीड़ी पीता, मानव जीवन धूल है। नशा जो करें उसे बुलावा, यम का स्वीकार है। बर्बाद होकर पहुंचे श्मशान, रोता उसका परिवार है। पीकर भांग धतूरा दारू, मौत गले लगाते है। कंचन सी काया को यूं, सब धूएं में उड़ाते हैं। परिचय : विकास सैनी निवासी : बापू गांव, कोटखावदा, (जयपुर) शिक्षा : कक्षा ९वीं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बापू गांव, कोटखावदा, जयपुर। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
बस इतनी सी चाह
कविता

बस इतनी सी चाह

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बस इतनी सी चाह, चल सकूं नेकी की राह। ईमानदारी से हो जीवन निर्वाह, लूं न किसी बेबस की आह। अच्छाइयों को लूं मैं अपना, बुराइयों का करूं मैं दाह। प्रेम का हो मन में प्रवाह, घृणा को दूं मैं जला। ईश्वर की बनी रहे कृपा, सत्य की राह चलूं सदा। जीवन में बना रहे उत्साह, परपीड़ा में उठूं मैं कराह। बेईमानी की पड़े न मुझ पर छाँह, काबिलियत पर कर सकूं मैं वाह। गुणों को सभी के सकूं मैं सराह, अपनों की कर सकूं मैं परवाह। मिलती रहे सज्जनों की सलाह, दुर्जनों से मैं दूर ही भला। बस इतनी सी चाह। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

  अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आओ साथी मिलकर सभी गणतंत्र दिवस मनाएंगे। स्वतंत्रता, समता, एकता और अखंडता को अपनाएंगे।। नया सूर्योदय, नया प्रभात, उमंग और उत्साह होगा। देश प्रेम की भावना लिये जन-जन में उल्लास होगा।। हर हाथों में तिरंगा झंडा लहराता प्रभात फेरी निकलेगी। भारत माता की जयगान मुख से वंदे मातरम निकलेगी।। शांति, साहस, सत्य और पवित्रता के ध्वजा फहराएंगे। आओ साथी मिलकर सभी गणतंत्र दिवस मनाएंगे।। वीर जवानों और अधिनायकों की कुर्बानी को याद करो। भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब को याद करो।। व्यक्ति बने समाजवादी मन में हो बंधुत्व की भावना। न्याय, अवसर और अधिकार मिले यही है कामना।। बच्चे, जवान और वृद्ध मिलकर राष्ट्रगान हम गाएंगे। आओ साथी मिलकर सभी गणतंत्र दिवस मनाएंगे।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली...
प्यासा
कविता

प्यासा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहीं कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए क्यों हूक सी उठती है, फिर मिलने के लिए तमाम शबखोया रहा खयाल में उसके जो खो जाता है चांद घटाओं में न जाने कब तक रोती रहीं, आंखें बेदर्द। हाल मेरा देखकर दीवारें भी शिकवे करने लगी उसके। कहीं कोई बिता लम्हा, बीता अरसा, सावन बीता, भादो बिता हर कोई था यहां सब का अपना-अपना नदी किनारे मैं ही था, सिर्फ, प्यासा, प्यासा। कई-कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत ...
सबको सबका अधिकार मिला
कविता

सबको सबका अधिकार मिला

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** लागु हुआ जब संविधान हमारा, हुआ गणतंत्र भारत देश हमारा, लिखा जब बाबा आंबेडकर ने संविधान, जिससे देश को प्रगति का आगाज़ मिला, जीने का एक नया उत्साह हुआ, सबको वोट का अधिकार मिला, एक सूत्र में बंधा देश हमारा, चैन से जीने का रास्ता मिला, बंटी हुकुमतों से छुटकारा हुआ, मार-काट लुट-पाट से निजात मिला, इन्सानों के अधिकार सुरक्षित हुए, महिलाओं को देश में सम्मान मिला, गरीब मजलूमों का जीवन सुधरा, पढ़ने- लिखने में उनको स्थान मिला, गणतंत्र हुआ जब देश हमारा, सबको सबका अधिकार मिला, देश गणतंत्र होने के बाद ही, भारत को नया स्थान मिला परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
मुझे याद आता
कविता

मुझे याद आता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बचपन की बातें हैं सपनों सी लगती नींदों में जैसे वो मुझको सुलाती वो रूहानी बचपन मुझे याद आता... वो माँ का आँचल और लोरी सुनाना बाबा के कांधों को अपना घोडा बनाना वो ममतालु बचपन मुझे याद आता... गुनगुनाता सावन वो बिलखती बिदाई वो राखी का उत्सव खिलखिलाती सखियाँ वो सुहाना बचपन मुझे याद आता... पचपन में दादी नानी बनना वो ही बातें व अठखेलियाँ नन्हे मुन्नों को गोदी खिलाना यादों का ऐसे लौट के आना इस बुढ़ापे में बचपन मुझे याद आता... परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
आज़ादी के मतवाले
गीत

आज़ादी के मतवाले

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारत माँ की आज़ादी को, बहुत यहाँ क़ुर्बान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। हमने रच डाली नव गाथा, लेकर खडग हाथ अपने नहीं हटाये बढ़े हुये पग, पूर्ण किए सारे सपने माटी को निज माथ लगाकर, सारे मंगलगान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। शत्रु नहीं बच पाया हमसे, पूतों ने हुंकार भरी भगतसिंह जैसे मतवाले, विजयघोष-जयकार भरी आज़ादी ने माँगी क़ीमत, वीर सभी बलिदान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। इंकलाब की लाज निभाने, तीन रंग का मान बने जन गण मन का नग़मा गाया, तीन रंग की शान बने भारत छोड़ो के नारे के, मतवाले सहगान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। बिस्मिल, आज़ादों के कारण, हमने आज़ादी पाई नेहरू-गांधी के नारों ने, तन पर तो खादी पाई ब्रिटिश हु...
क्या तुम जागा करते हो
कविता

क्या तुम जागा करते हो

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या तुम जागा करते हो, भारत माता के रखवाले, क्या तुम कभी सोते हो?, तुम तो जागा करते हो कोई दुश्मन ना आने पाए, अडिग खड़े तुम रहते हो, आंधी तूफान हो या बारिश, हिमपात या हो विपदा, कभी नहीं तुम डिगते हो, अपना हौसला बुलंद तुम रखते, वीर योद्धा तुम भारत के हो, क्या तुम जागा करते हो, भारत भूमि की शान तुम्ही से, आन बान और स्वाभिमान तुम्ही से, निंद्रा पर विजय हे पाकर, तुम सदैव जागा करते हो, तुम पर नाज हमें हे भाई, तन मन धन न्योछावर करके, तुम तो जागा करते हो, देश के नौजवानों जागो, बहुत सोए अब तो जागो, समय बीतता जाता है, अपने जीवन को अभी सँवारों समय गुजरता जाता है, कुछ पाने के हे खातिर, कुछ तो खोना पड़ता है, कुछ करने की राह पकड़ लो, संघर्षों से भरा ये जीवन है, रोडे भाटे और कठिनाई, सब ...
विवेकानंद
कविता

विवेकानंद

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** धर्म ध्वजा फहराए जग में, युवा एक संन्यासी है। नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी हैं।। बचपन में थे मातु पिता ने, नाम नरेंद्र दिया प्यारा। बालक पन में ही पाया है, उसने ज्ञान बहुत सारा।। जो आनंद विवेक पूर्ण हो, माया उसकी दासी है नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी है रामकृष्ण को गुरु बनाकर, उनसे ही शिक्षा पाई। जली ज्ञान की ज्योति हृदय में, मिटी अंधेरी परछाई।। तेज पुंज था मुख पर जैसे, चंदा पूरण मासी है नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी हैं हिन्दू सभ्यता संस्कारों का, उनने ही उत्थान किया। जाकर सागर पार धर्म का, सुंदर वह व्याख्यान दिया।। धर्म और अध्यात्म जहाॅं में, अमर यही अविनाशी है नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी है बाद युगों के इस धरती पर, एक कोई मानव आता। सुप्त...
गणतन्त्र-दिवस
कविता

गणतन्त्र-दिवस

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गणतंत्र है पाठ पढ़ाता इक अनुशासन का । जनता का, जनता पर, जनता द्वारा शासन का ।। व्यवस्थापिका नियम बनाती, कार्यपालिका लागू करती न्यायपालिका दोनों के संग सामंजस्य स्थापित करती कितना सुंदर पावन दिखता रूप प्रशासन का ।। जनता का.... बिना भेद के नागरिकों को मूल-अधिकार मिले हुए हैं प्रतिमानों को पूरा करने नियमों संग सब सधे हुए हैं संविधान नियमों का संग्रह संशय नहीं कुशासन का ।। जनता का.... लोक भलाई के कामों में सरकारें सब लगी हुई हैं बेहतर से बेहतर सुविधाएं जनमानस में रमी हुई हैं कमजोरों को कोटा सिस्टम टोटा न अन्नप्राशन का ।। जनता का.... है अनेकता में भी एकता सब आपस में भाई-भाई फिरका परस्ती में कुछ भटके जाने क्यूँ कर रहे बुराई भलमनसाहत भेंट चढ़ गई सिक्का चले दुशासन का ।। जनता का.... मन में बस...
सत्य कभी ना हारा
कविता

सत्य कभी ना हारा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया में 'हे राम' आपकी, क्या है होने वाला। घर बाहर सारी धरती पर, नहीं सुरक्षित बाला। मन में सोच बना दी प्रभु ने, भरी प्यार से दुनिया। असुरक्षित लाचार गेह में, क्यों प्यारी सी मुनिया। भोग, भोग चौरासी पाया, तन अनमोल खजाना। धन वैभव शोहरत पाकर तू, प्रभु को ना पहचाना। मर्यादा पुरुषोत्तम बन कर, रखा मान नारी का। लाज बचाई थी कृष्णा की, धरा रूप सारी का। भूल गए अपनी मर्यादा, तुम्हें लाज ना आती। व्यभिचारी बन घूम रहे हो, है विदीर्ण माँ छाती। माँ का दूध लजाते हो तुम, बनकर नमक हरामी। तेरे सारे कर्म देखते, हैं प्रभु अंतर्यामी। वैष्णव जन तो तेने कहिए, राष्ट्रपिता थे गाते। जो जन जाने पीर पराई, उसको राम बताते। गोली खाई जब सीने पर, तब 'हे राम' पुकारा। दिखा दिया बापू ने जग को, सत्य कभी ना हारा।...
आंसू
कविता

आंसू

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** आँखो के फुलवारी में आंसू महकते हैं दुनिया के दामन को प्यार से भिगोते हैं अस्थाओंका विश्वास छलकाते हुये अरमानों की माला पिरोते हैं अश्को की नमी से दिल को सिंचते हैं प्यार के गुलशन में फूलों को खिलाते हैं ममता के आँचल में कारवाँ चलते हैं दिल की बात जूबातक लाते हैं कभी दर्दे दिल की दवा बन जाते हैं कभी प्यार की दुवा बन जाते हैं कभी खामोशी की जबा बन जाते हैं अक्सर दिल का हाल बया कर जाते हैं परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...