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पद्य

खुद को, खुद से ही समझाया जाए
कविता

खुद को, खुद से ही समझाया जाए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** रख कर दिल में, जज़्बात अपने, ना किसी और को, बताया जाए, दर्द जो उसने दिया, दिल को मेरे, अब खुद ही इसे, तड़पाया जाए, वादे तो हमसे, हसीन किए थे उसने, मगर उन सबको, अब भुलाया जाए, दिया है ग़म उसने, तो ग़म ही सही, अपने दर्द को अब, दिल में समाया जाए, ज़माने से कह, हसीं उड़वानी है अपनी, ज़ख्म जो मिले, खुद ही मरहम लगाया जाए, उसने तो जो किया, समझ है उसकी, अब खुद को, खुद से ही समझाया जाए, बड़ा दर्द दिल में, दे जाता है प्यार करना, आंसुओं को अब, ज़माने से छिपाया जाए परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
हाँ ! मैं लड़की हूँ
कविता

हाँ ! मैं लड़की हूँ

शैलेश यादव "शैल" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** हाँ! मैं लड़की हूँ। हमारे जन्म लेते ही, घरवाले हो जाते हैं मायूस, सोहर नहीं होता हमारे जन्म पर, नहीं बाँटी जाती मिठाइयाँ, कभी तो इस जहाँ में आने से पहले ही, भेज दी जाती हूँ दूसरे जहाँ में, हमें अपनो द्वारा ही बोझ समझा जाता है, अपनों के द्वारा ही सुनती बहुत घुड़की हूँ, छोटी हूँ, मझली हूँ या मैं बड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ! मैं लड़की हूँ। संसार के श्वानों की आंखों में गड़ती हूँ, दिन-रात गिद्धों से लड़ती झगड़ती हूँ, सारा काम घर का मैं ही तो करती हूँ, फिर भी दुनिया से मैं ही डरती हूँ, जहाँ देखें वहीं, खाती मैं झिड़की हूँ हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ। मुझे पराया धन माना जाता है, मुझे दान किया जाता है, कभी सारी सभा के बीच में अपमान किया जाता है, कभी सौंदर्य का कभी पीड़ा का गुणगान किया जात...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा तस्वीर में ही रहा। तस्वीर में छलकते चेहरे को निहारता।। अब अपने मन को समझाता। तस्वीर की झूलती माला को असहाय से देखता ।। भूली बिसरी यादों को अपनी यादों से जोड़ता। मां के आशीषों एवं आंचल को खोजता।। यादों में खोकर बीते कल को खोजता। अब तुम्हारी यादों में आंसुओं को बहाता।। अपनी नई-नई बातों को तुमसे जोड़ता। बीते कल को तुमसे जोड़ता।। अब तुम्हारे बिना अपनी ख्वाहिश किसको बताऊं। अपनी मुश्किलों और दुख किसको सुनवाऊं।। मां तुम्हारे बिना अपना वजूद बचा ना सका। अब अपनी जिद्द किसी से पूरी करवा न सका।। अपने नए नए सपने, खुशियां किसी को बतला ना सका।। अब मुझे घर में गले से लगाने वाला ना रहा। मेरी आवाज को सुनने वाला कोई ना रहा।। अपनी सफलता का जश्न मनाने वाला, कोई ना रहा। अब तुम्हारा मुस्क...
शहीदों की वीरगाथा
कविता

शहीदों की वीरगाथा

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** चौदह फरवरी दो हजार उन्नीस का दिन, कभी विस्मृति वश भी भूल ना पाएंगे। पुलवामा में हुए शहीदों की वीरगाथा, कर नमन हम आज फिर से दोहराएंगे।... जम्मू से अठत्तर वाहनों में हो सवार, निकला था सुरक्षाकर्मियों काफ़िला। बीच राह अवन्तिपोरा के निकट हुआ, लेथपोरा इलाके में आत्मघाती वाकया। अपराधी जैश-ए-मौहम्मद के कायराना, मनसूबों से चालीस जवानों का लहू बहा। कर्त्तव्य पथ पर मां भारती के वीरों की, शहादत का हम भारतीयों ने जो दर्द सहा। वीर योद्धाओं के शौर्य साहस पराक्रम को, कर सलाम आज अपना शीश झुकाएंगे।... है नाज़ सदा उन जांबाज वीरों पर जो वतन से मोहब्बत इस कदर निभा गए। इस जहान आज मोहब्बत के दिन जो, निज वतन पर जान अपनी लुटा गए। राष्ट्र रक्षा में प्राणोत्सर्ग करने वालों के लिए, भारतीय युवा मिलकर प्रण ले...
मधुमास
कविता

मधुमास

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरा मांग सिंदूर सजाकर, झिलमिल करती आई भोर। खग कलरव भ्रमर गुंजन, चहुं दिस नाच रहे वन मोर। सुगंध शीतल मन्द समीर, बहती मलयाचल की ओर। पहने प्रकृति पट पीत पराग, पुष्पित पल्लवित महि छौर। रवि आहट से छिपी यामिनी, चारूं चंचल चंद्रिका घोर। मुस्काती उषा गज गामिनी, कंचन किरण केसर कुसुम पोर। महकें मेघ मल्लिका रूपसी, मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर। मदहोश मचलती मतवाली, किरणें नभ भाल पर करती शोर। सुरभित गुलशन बाग बगीचे, कोयल कूके कुसुमाकर का जोर। नवयौवना सरसों अलौकिक, गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर। मनमोहक वासंतिक मधुमास, नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर। कृषक हिय प्रफुल्लित आनन्दित, अभिसारित तरु रसाल पर बौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
प्रभु स्वरूप साजन पाना
कविता

प्रभु स्वरूप साजन पाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर्णिम स्वप्न सँजो कर बैठी, डोली में बिटिया रानी। होठों पर लालिमा मनोहर, नैनों में दुख का पानी। कभी सोचती अपने मन में, मुझे पिया के घर जाना, झाँक-झाँक पर्दे से कहती,j भैया मुझे लिवा जाना। नयन नीर हाथों से पौंछे, पिता सिसकियाँ भरता है। पहली बार पिता बेटी को, घर से बाहर करता है। प्यार सुरक्षा अपनापन दे, माता रखती थी घर में। कन्यादान पिता ने करके, सौंप दिया वर के कर में। आँखों से ओझल होते ही, व्याकुल होते थे पापा। मुझको आज बिठा डोली में, क्यों ओझल होते पापा। रुठा करती थी पल-पल में, आज क्यों नहीं मैं रूठी। कोई रोक नहीं पायेगा, सब उम्मीदें हैं झूठी। जाना होगा आज सजन घर, समझ गई बिटिया रानी। सजल नयन हैं आज खुशी से, उम्मीदों का है पानी। सोच रही थी मन ही मन में, इतने में भाई आया। नीर ...
बेड़ियाँ लाचारियों की
ग़ज़ल

बेड़ियाँ लाचारियों की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** लगी है बेड़ियाँ लाचारियों की। कठिन है राह जिम्मेंदारियों की। करेंगे हम हमेशा बात उनकी, रिवायत सीख ली ख़ुद्दारियों की। अग़र हो वक़्त पर, वो काम पूरा, ज़रूरत है बड़ी तैयारियों की। जहाँ राजा दिखाये रोब अपना, वहाँ चलती नहीं दरबारियों की। रखेंगे किस तरह वो भाईचारा, रही आदत जिन्हें ग़द्दारीयों की। उन्हें वो देखता है, सीखता है, जिसे दरकार है फ़नकारियों की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
क्या मैं इतना बुरा हूंँ
कविता

क्या मैं इतना बुरा हूंँ

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या मैं आज इतना बुरा लगने लगा हूंँ, जो आज सत्ता मुझे कभी दीवार बनाकर तो कभी शामियानों के कपड़ों की दीवार बनाकर छिपाने का भरसक काम करती है, क्योंकि उन्हें मेरी मुफ़लिसी पसंद नहीं, मेरा चेहरा उन्हें भाता ना हो, उनकी चकाचौंध के लिए तो मेरा शरीर सदैव सेवा में तैयार रहता है, कभी मुझे सड़क किनारे अपनी फटी पुरानी चादर या मेरी टूटी-फूटी रेहड़ी पर कुछ रखकर बेचने से रोका जाता है तो लाठी-डंडों से और ना सुनने वाली गालियां देकर पिटवाया जाता है, कभी मेरी घास-फूंस की झोपड़ियों को तहस-नहस कर भगाया जाता है, आखिर क्यों ये राजसत्ता मुझे अपनाने को तैयार क्यों नहीं ? हाँ मुझे एक जगह बहुत खुश करने का बहुत काम होता है और वो है राजनेताओं का मेरी ग़रीबी और मुफ़लिसी को दूर करने का भाषण, चुनाव के समय सब मेरे इर्द-गिर्द गिद्धों...
बदलते रिश्ते
कविता

बदलते रिश्ते

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रंग बदलते खून के रिश्ते देख अब तक की उम्र में रिश्तों को हमने खंगाला है। माना सबको अपने जैसा पर कोई सनकी, कोई लालची, कोई गुरूर वाला है। खंजर छुपा कर रखे हैं ताक में पसीना तो पसीना खून चूसकर मचलने वाला है। रूप रंग पर कभी मत जाना यारों जितना तन उजला उससे ज्यादा ही मन काला है। चीर कर दिखा चुका अपना हृदय पर पिशाचों का मन इतने में कहां भरने वाला है। उन्नति में भभक धधक उठेंगे शोले मशाल ले जलाएंगे अरमां उदर में जाता निवाला है। जब तक देख न लें नेस्तनाबूद होते तानों बानों से उलझा ये रिश्तों का श्याह जाला है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
२१ लाख दीपो की श्रृंखला
कविता

२१ लाख दीपो की श्रृंखला

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** उज्जैन जगमगाया, देख नजारा रामघाट का, विश्व स्तब्थ खडा सा पाया विश्व रिकॉर्ड तोड़ा उज्जैन ने, विश्व मे नाम कमाया, क्यों ना चमके उज्जैन जगत मे, महाकाल जहां हे पाया, विक्रमादित्य कालिदास की नगरी नवरत्न जहां है पाये, राजा भर्तहरी, पीर मछंदर, शक्तिपीठ, दर्शन जहाँ हे पाये, पुरानी चमक फिर से यहाँ चमके, इसलिए दीपो से जगमगाया, अवंतिका तो अवंतिका हे, अवन्तिकानाथ जहाँ हे पाया, ३२ पुतलियाँ करे हे निर्णय सिंहासन धर्राया, नतमस्तक हो गई हे दुनिया, जहां महाकाल मै काल समाया, नित्य मुर्दे की भस्म चढे शीश पर, साधु संत मन भाया, देख नजारा रामघाट का जीवन धन्य धन्य हो पाया परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
कुछ भी स्थिर नहीं है जग में
कविता

कुछ भी स्थिर नहीं है जग में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ भी स्थिर नहीं है जग में 'रूप-रंग' झुठलाना होगा! ठुकरा कर 'प्रणय-निवेदन' मेरा प्रिय, इक दिन पछताना होगा...!! ज्यों-तेरा बचपन है बीता त्यों-बीतेंगे दिन यौवन के साँझ घिरी आती है देखो, 'इन्द्रजाल-जीवन-अम्बर-के!' ये 'गगन-सिन्दुरी' भी जाएगी... 'सब-स्याह-में-खो-जाना होगा!' ठुकरा-कर प्रणय-निवेदन मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। मैं मन्दिर में देख रहा हूँ, 'प्रत्युष का इक दीप बुझ रहा, जहाँ अगुरु-धूम सुवासित था, वहाँ उमस औ घुटन उठ रहा', 'मन-सुकून' था जिस दर्शन में- अब-लगे न फिर पाना होगा... ठुकरा-कर 'प्रणय निवेदन' मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। 'नव-मूरत' का मोह है केवल 'न-विग्रह-प्राण-प्रतिष्ठित' है अन्तर्मन में झाँक के देखो! 'सत-सुन्दर-छवि' स्थापित है 'नयन-यवनिका' फिर से खोलो 'चिर-सत्य-प्रेम-द...
बसंती बयार
कविता

बसंती बयार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बसंती बयार बह रही घर आंगन चौखट द्वारे रवि किरण लजा रही छुप, चुप कर गगन में।। पेड़ों के झुरमुट से झांकती कलियां भौरो का गुंजन होता पुष्प पराग से पेड़ों के पत्ते हिल-हिल कर लेते बलैय्या मां सरस्वती को बसंत देता बधाइयां कहीं कोयल कुकती स्वागत में कहीं झरनों की फुहारें भरें स्फुरण। कहीं झरना नहलाता बसंत को तो पलाश टेसु टीका लगाता रक्तिम भरमाए भागते बादल बसंत से धूप-छांव का खेल खेलते। नदी, तडाग की लहरें देती बसंत को झूले मीन मिलकर नृत्य करती बसंत की अगवानी में। आओ देखे हम भी मिलकर नर्तन बसंत आगमन में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं ...
शिव-गौरी विवाह
भजन, स्तुति

शिव-गौरी विवाह

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बूढ़े बैल असवार, आये हिमगिरि के द्वार, ब्याहन गौरी सरकार, भोले भंडारी।। गल माहीं लिपटा है विषधर माथे बाल विधू है सुंदर डमरू संग हांथ तिरसूला नीलकंठ गंगाधर शंकर छाती नर मुंडन कै हार, बिछुआ कनवा झूलनदार है अद्भुत रूप सिंगार भोले भंडारी.... दीखैं रंग रंग बाराती कोऊ मोटा ताजा माती बिन मुख हांथ पाँउ बा केऊ केउतउ बहु अंगन जामाती कूकुर सुअर सियार, गदहा मुखन आकार, नाहीं इनकै है संभार भोले भंडारी.... नाचत भूतन सँगे परेता डाकिनी शाकिनी समेता जोगिनी संगती भिड़ावैं ढ़ोलक पिशाचिनी जमेता बैठी सकल जिंवार, रही बरातिन निहार, खोले सजरा हजार भोले भंडारी.... चहुँमुख बजे हैं नगाड़े ब्रह्मा विष्नु हैं पधारे सगरे देवा हैं पहुँचे राजा हिमाँचली द्वारे लखिके दमदा लीलार, मैंना पीटैं कापार, विधिन...
मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ
भजन, स्तुति

मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ, दे दो मेरा अधिकार मुझे। वापी में हैं मेरे बाबा, कर दो सम्मुख-साकार मुझे।। अब तो जागो हे सनातनी, डम-डमडम डमरू बोल रहा। न्यायालय आकर वापी में, इतिहास पुराने खोल रहा।। अब बहुत छुप चुके हे बाबा, करने दो जय-जयकार मुझे। एक विदेशी खानदान ने, मंदिर को नापाक किया था। मूल निवासी सनातनी के, काट कलेजा चाक किया था।। औरंगजेब नाम था उसका, वह धर्मांध विनाशक था। भारत माता के आँचल का, वह कपूत था, नाशक था।। आस्तीन में साँप पले थे, बहु बार मिली थी हार मुझे। ले रहा समय अब अँगड़ाई, खुल रहे नयन सुविचार करो। बहुत सो चुके हे मनु वंशज, उठ पुनः नया उपचार करो।। लख रहा दूर से बेसुध मैं, वर्षों से बाबा दिखे नहीं। मैं अपलक चक्षु निहार रहा, विधि भी आकर कुछ लिखे नहीं।। अवध अहिल्या...
रास्ते का अंधा बटोही …
कविता

रास्ते का अंधा बटोही …

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** मंजिल कितनी दूर है! देख ले सपना कितना सच है! देख ले सपना है! मंजिल की पहुंच अपना है! सपने का मंजिल देख ले मंजिल की राह कांटो से भरी कंकड़ सड़क जाते मंजिल चटक-भटक मंजिल कितनी दूर है! सपना कितना सुदूर है! बटोही नहीं देखे राह अपनी कौन कहे यह कहानी अपनी घर आते आते ढल जाती है! संध्या सुबह होते-होते भूल जाते हैं! सपना परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति
छंद

त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति १ जय -जय शिव शंकर, प्रभु अभ्यंकर, नाथ महेश्वर, भंडारी। हे जग अखिलेश्वर, प्रभु परमेश्वर, हे गिरिजेश्वर, त्रिपुरारी।। यह मन है चंचल, होता विह्वल, घुलता पल-पल, माया में। प्रभु पार लगाओ, दरश दिखाओ, मत भटकाओ, काया में।। २ मद लोभ फँसी मैं, क्रोध धँसी मैं, विरह हँंसी मैं, हे भगवन्। माया में अटकी, दर-दर भटकी, दुख में लटकी, हे त्रिभुवन।। उर पीर बड़ी है , विकट घड़ी है, नीर झड़ी है, गिरिजेश्वर। हे नाथ उबारो, संकट टारो, मुझे सम्हारो, अखिलेश्वर।। ३ रोते हैं नैना, उर बेचैना, पीड़ित बैना, प्रभु मेरे। हूँ लाज गड़ी मैं, द्वार खड़ी मैं, शरण पड़ी मैं ,प्रभु तेरे।। मम त्रास मिटाओ , हृदय लगाओ, अंक बिठाओ, हे दाता। प्रभु विनती करती , नाम सुमिरती , धीरज धरती, जग त्राता।। ४ हे नाथ महेश्वर, हे ...
बहराइच
कविता

बहराइच

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत में उत्तर प्रदेश का एक जिला बहराइच देवीपाटन क्षेत्र का एक भाग है बहराइच घना जंगल और नदी की बहाव यहाँ पर तेज भर राजवंश की राजधानी बहराइच, भारिच प्रकृति की मनोहर छटा बहराइच की पहचान ग्यारहवीं सदी में एक राजा हुए बहुत महान सैयद सालार मसूद गा़ज़ी को दी थी शिकस्त महाराज सुहेलदेव की गौरवगाथा महान उत्तर में नेपाल की है अंतरराष्ट्रीय सीमा दक्षिण भाग में है सीतापुर और बाराबंकी पूरब में श्रावस्ती से स्पर्श करता है बहराइच पश्चिम भाग में इसके गोंडा जिला और खीरी पुरूषोत्तम श्रीराम और लव का यहाँ राज्य कतर्निया वन्यजीव अभयारण्य यहाँ शान पर्यटकों को लुभाता है यहाँ का सुंदर दृश्य ब्रह्मा जी का रचा हुआ ऋषियों का स्थल जप तप और साधना को सुंदर बसा स्थान पांडव कालीन सिद्धनाथ मंदिर यहाँ बीच पांडव को जब वनवास बह...
खुला आसमां
मुक्तक

खुला आसमां

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मिलने के बाद सब बेगाने हो जाते हैं आने के बाद सावन के, सब झूलों में खो जाते हैं सुनहरी धूप का आंचल हर कोई ओढ़ लेता है कठिन कंटक में कोई चलना नहीं चाहता हर कोई फूलों की महक के दीवाने हो जाते हैं। हालत की उलझनों में उलझे हुए कौन तसल्ली देता है किसे सब अपनों में अपने है बेगानो का सिर्फ खुला आसमां होता है परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका...
वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका
छंद

वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण, जगण, दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) (ॐ स विष्णवे नम:) श्री विष्णु पूजन करो, उठते सवेरे। एकादशी अति शुभी, जपले लबेरे।। पीतांबरी तन गछी, कर शंख राधे। बैजंति माल गल में, गद चक्र साधे।। दैत्यासुरा दल दिखे, भयभीत भाजे। पापी कुकर्म बझिके, कबहूँ न छाजे।। फैले प्रकाश हिय में, जब भान होगा। सत्ता उसी परम की, तब ज्ञान होगा।। मानो न बात उलटी, न बनो कुगामी। सोचो मिले न कुछ भी, घुमिए गुनामी।। आगे बढ़ें सपथ पे, न चलें कुचालें। पैनी रखें नजर यूँ, डग भी सँभालें।। लिखा वही करम का, लिखता-मिटाता। भाषा न जान सकता, कितना छुपाता।। है कर्म सुंदर जभी, तब ही सुहाता। धर्ता वही जगत का, वह ही प्रदाता।। आओ विचार करलें, भरलें चिता में। कूर्मा सरूप...
भारत की प्रथम महिला सरोजनी नायडू
कविता

भारत की प्रथम महिला सरोजनी नायडू

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** सशक्तिकरण महिला का चेहरा सरोजिनी जी के रूप में जान रहे, उनके संघर्षों के पथ से उनको राजनीति तक आज पहचान रहे। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, वे सदैव बड़ा मनोवल रखती थी भारत को लेखन से जोड़कर वीर काव्य यह कहती थी यह भारत तुम्हारा है ... यह इतिहास तुम्हारा है ... झुक ना जाए जीवन पथ पर, सर ओ मातृभूमि के लाडलो रक्षा के अधिकारी बनो तुम, यह सर्वसिद्धि हित तुम्हारा है।। सरोजिनी जी के सम्मान में हम नमन आज करते हैं उनकी जैसा कोन यहां, भारत में कोई सितारा हैं।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
ख्वाब
कविता

ख्वाब

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ख्वाब में तुझे जब से देखा, चाहने की तमन्ना थी, मन में बड़ी उम्मीद थी, दिल में बड़ी उमंग थी, रब ने तुझे मेरे लिए ही भेजा, खयालों में दिन रात आती हो मेरे, ख्वाबों में सदा बस्ती हो तुम मेरे, नही ओझल होती हो तुम निगाहो से, वो नशीली आंखें मद होश, हर पल करती है मुझे, मुस्कान पर तेरी बिछा दूं, पलकों की चादर, मदहोश करती है हर अदा यह तेरी, वह होठ का तिल जो है वह जान है मेरी, गुलाबी होठों पर लाली जैसे गुलाबी फूल का खिलना, उड़ती जुल्फे है जो बिखरी, हवा की ओर जो उड़ती, लटकती लट जो हे तेरी, हर अदा पे वो बिखरी, ख्वाब तो बस ख्वाब था, जब होश है आया, वह अलग और मैं अलग, बस कहानी सपनों की थी। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प...
चहुँ ओर
कविता

चहुँ ओर

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम सृष्टि के कण-कण में हो। तुम मानव के मन-मन में हो। तुम बीतते वक्त के क्षण-क्षण में हो। तुम सोचते-विचारते जन-जन में हो। तुम बनती बिगड़ती परिकल्पना के पल-पल में। तुम अनंत व्योम के चमकते सितारे-सितारे में हो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
मुँह मीठा मन खारा
ग़ज़ल

मुँह मीठा मन खारा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मुँह मीठा मन खारा मत कर। जीती बाजी हारा मत कर। धूप, हवा से डर कर अपने, आँगन को चौबारा मत कर। रुक जाए पैमाना लब पर, इतना मन को मारा मत कर। न कहने की कहकर बातें, दिल का बोझ उतारा मत कर। अपनी है उस हद से ज़्यादा, अपने पैर पसारा मत कर। साथ रहें हैं जो रस्ते भर , उनके साथ किनारा मत कर। मिलना है मिल जाएगा वो, इतना, उतना, सारा मत कर। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
इतिहास गाथा
कविता

इतिहास गाथा

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** है रही सुसज्जित ये धानी प्राचीन काल में वैभव से है पत्थर पर अभिलेख यहां पाषाण काल के उद्भव से सुनकर इस गौरव गाथा को अपने अतीत का मान करो जो इतिहासो के पन्नों में तुम कथा वही अविराम कहो। सोलंकी राज धवल के सुत गुजरात राज्य से थे आए जिनके कारण यह राज्य बना जो व्याघ्र देव थे कहलाए हो चंद्रवंश या सूर्यवंश या शीतल तपिश हि नाम कहो जो इतिहासो के पन्नों में तुम कथा वहीं अविराम कहो हो सारनाथ का वह वैभव सांची की अमर निशानी हो गौतम का हो उपदेश यहां चाहे संतों की वाणी हो जो क्रूर हृदय कोमल कर दे ऐसे जातक सरेआम कहो जो इतिहासो के पन्नों में तुम कथा वही अविराम कहो है धन्य धरा इस भारत की और धन्य हमारी माटी है हर पग में है संस्कार यहां यहां संस्कृत की परिपाटी है हर कला सुसज्जित पत्थर में चाहे खजु...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ताऊ जी श्री रामचंद्रलाल श्रीवास्तव को विनम्र शब्दांजलि पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में एक डर सा समाया रहता था, पर उसका आशय क्या है बस! यही समझ नहीं आ रहा था। पर आज सामने आ गया जब मेरे सिर पर अपनी अनवरत सुरक्षा छाया देने वाला विशालकाय वटवृक्ष अचानक ही गिर गया। निस्तेज, निष्प्राण, अनंत मौन होकर भी हमें संबल दे रहा था, जैसे अब भी हमारे पास होने का हमें विश्वास दिला रहा था। पर सच्चाई तो ये है कि हमें झूठी तसल्ली दे रहा था। या शायद हमें अपने कंधे मजबूत करने का संदेश दे रहा था। जो भी हो पर हमें भी पता है अब वो वटवृक्ष न कभी खड़ा होगा न शीतल हवा देगा न ही हमें सुरक्षा मिश्रित भाव ही देगा। क्योंकि वो तो जा चुका है अपनी अनंत यात्रा पर बहुत दूर जिसकी स्मृतियां हमें रुलाएगी दूर होक...