खेलो रंग से होली
डॉ. अखिल बंसल
जयपुर (राजस्थान)
********************
मदमाता ऋतुराज है आया,
खेलो रंग से होली,
रंग-गुलाल लगादो तन से,
बन जाओ हमजोली।
पूनम का तुम चांद प्रियतमा,
जाग उठी तरुणाई,
पागल पलास नित दहक रहा है,
कोयल कूकी भाई।
सखी-सजन का प्यार अनोखा,
दखल न उसमें भाए,
ऐसा रंग लगे गालों पर,
कभी न मिटने पाए।
तन यौवन नित बहक रहा है,
ऋतु बसंत निराली,
जो बगिया सुरभित हो गाती,
तुम हो उसके माली।
महक रहा है सारा उपवन,
भ्रमर फूल पर मरता,
आओ खेलें हिलमिल होली,
तू क्यों इतना डरता।
देवर-भाभी, सखी सजन सब,
पिचकारी रंग भरते,
'अखिल' जगत में भातृ भाव हो,
यही संदेशा कहते।
परिचय :- डॉ. अखिल बंसल (पत्रकार)
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी), डिप्लोमा-पत्रकारिता, पीएच. डी.
मौलिक कृति : ८
संपादित कृति : १७
संपादन : समन्वय वाणी (पा.)
पुरस्कार : पत्रकारिता एवं साहित्यिक क्षेत्र ...