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पद्य

वादियाँ बुला रही है
कविता

वादियाँ बुला रही है

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** शहरी चकाचौंध से दूर, कोलाहल से इतर, सुकूं से गुजारने दो पल, ये वादियाँ बुला रही हैं। पक्षियों का कलरव, नदियों की कल-कल, प्रकृति का संगीत सुनाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। फूलों से सजी ये घाटियाँ, बर्फीली ये चोटियाँ, इन्हें जी भर निहारने, ये वादियाँ बुला रही हैं। पर्वतों की सर्पिल डगर, झरनों की ये झर-झर, नजारों को मन में बसाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। चारों ओर बिखरी हरियाली, उगते सूरज की लाली, उर में भरने आनंद समंदर, ये वादियाँ बुला रही हैं। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एव...
हे! नारी तू उठ
कविता

हे! नारी तू उठ

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** हे! नारी तू उठ जा विजयपथ पर जीत का परचम लहरा जा तू मत डर आंधी की तरह बढ़ आगे डटी रहो जीवन रथ पर अरमानों को मत दबा रख बाजुओं पर भार अपना चल पड़, निकल ले उठा ले खुद को। राहों में मिलेंगे टेढ़े-मेढ़े रास्ते मत डरना मत रुकना डटी रहना पथ पर मंजिल की कुछ दूरी पर होगी तू डांवाडोल जरूर फिर ऊर्जा से भर जाना रास्ता अब नजदीक है पथ पर पहुंचेगी ठोकरे होंगी हजारों सीमा ठोकरों को मार ठोकर बढ़ जाना विजय की ओर परचम जीत का लहरा देना मर्दानी तू, दुर्गा रूप में खड़ी रहना सिंह पर हो सवार डटी रहना विजय रथ पर लहरा देना जीत का परचम है नारी तू डटना यूं ही परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ ब...
नए-नए संस्कार
कविता

नए-नए संस्कार

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** प्रकृति और संस्कृति मे नए-नए संस्कार आने लगे हैं पनघट की रौनक और महिलाओं के घुंघट गायब होने लगे हैं। आ गई है नई संस्कृति नए-नए नजारे आने लगे हैं पहले मनाते थे होली दिवाली अब वैलेंटाइन डे मनाने लगे हैं। होती थी रोनक घरों में त्योहारों के आने से लोग अब होटलों में जाने लगे हैं भूल गए गुजिया मालपुआ को बर्गर पिज़्ज़ा खाने लगे हैं। बच्चे भूल गए बुआ फूफा को ताऊ जी अंकल कहलाने लगे हैं खाते थे साथ बैठकर खाना अब टेबल कुर्सी सजाने लगे हैं। रहते थे साथ में दादा दादी भूल गए दादा दादी को पापा भी संडे संडे घर आने लगे हैं। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि। प्रकाशित काव्य पुस्तक : पाल की चांदनी। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सु...
नव सृजन
भजन

नव सृजन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मानवता की सेवा में लग , तू भी अपना भाग्य जगा ले। ईश्वर है करुणा का सागर, तू भी उसकी करुणा पा ले। मानवता की सेवा......... ईश्वर ने करुणा कर मानव तन, मुक्ति के हेतु दिया है। पर माया के दल दल में, फंसकर हमने दुरपयोग किया है। जो जग माया में उलझेह हैं, उनको तू प्रभु धाम दिखा दे मानवता की.......... जिनको प्रभुका धाम भा गया, प्रभु भक्ति में रम जाएंगे। सुमिरन होने लगा नाम का, तो माया से बच जाएंगे। तीर्थाटन का स्वाद चखने को जीवन उद्देश्य बना ले। मानवता........... जिसको प्रभु सम्पन्न बनाता, वो धन का उपयोग करेगा, नहीं बढ़े पग सन्मार्ग पर, तो धन का दुलयोग करेगा तू सन्मार्ग दिखाकर उसमो, उसके धन को धन्य बना ले। मानवता की........ परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
मेरी बिटिया रानी
कविता

मेरी बिटिया रानी

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** आँखों की ठंडक तू, दिल का सुकून तू सून मेरी बिटिया रानी जान तू, जहान तू कुलोंका है मान तू, वंशो की आन तू संसकृतीयोंका मिलाफ तू , मानवता की शान तू शक्तीस्वरूपा वरदा भक्ति का गुमान तू संपदा सुखदा मोक्षदा वात्सल्य की खान तू पुर्वजोंगी आस तू भविष्य का प्रकाश तू जननी है अवतारों की मातृत्व का अर्श तू आंगण मे खेलती परमात्मा की छाँव तू, घर की है शोभा मेरे, सपनों का संसार तू नाज़ हो मानव को तुझ पे ऐसा करना काम तू परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
ऊँचाई में स्वयं हिमालय
कविता

ऊँचाई में स्वयं हिमालय

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सहनशीलता वसुधा जैसी, सागर-सी गहराई। ऊँचाई में स्वयं हिमालय, माँ-सी ममता पाई। नारी हर मानव की जननी, जगत जननि कहलाती। दुख पीड़ा में जब शिशु होता, तब उसको सहलाती। अपने आँचल की छाया दे, सुख सौभाग्य जगाती। जीवन की सारी बाधायें, दे आशीष भगाती। अपने तन को गार-गार कर, देती रूप सलोना। हर बच्चा होता है अपनी, माँ के दिल का कोना। अपने मन की करुण वेदना, मुख से ना कह पाती। पृथ्वी जैसी सहनशील है, सब कुछ सहती जाती। जब अन्याय अधिक होता है, सहनशीलता खोती। गौ का रूप धारकर पृथ्वी, प्रभु समीप जा रोती। हर अपमान,घृणा सहकर भी, कभी अधीर न होती। अपने उर को बना समंदर, मन ही मन में रोती। एक-एक आँसू नारी का, पड़ जाता है भारी। मानव तेरी क्या विसात है, डर जाते त्रिपुरारी। है अवतार सृष्टि का नारी, करें सृ...
विडंबना
कविता

विडंबना

अजय गुप्ता "अजेय" जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) ******************** हर साॅंझ डूबता है सूरज, प्रातः फिर उग आता है। तन-थकन,मन-विषाद भगा, संचार-चेतना लाता है। सुबह सबेरे खेतों पर, हर मौसम में जाता है। हर साॅंझ डूबते सूरज तक, थकहार लौट घर आता है। अपने खून पसीने से सींच, धरती पर अन्न उगाता है। अपने परिवार के साथ-साथ जग भर की भूख मिटाता है। सर्दी-गर्मी हर मौसम में, महानगर को जाता है। चढ़ बांस-फूंस की सीढ़ी पर, सपनों के महल बनाता है। अपने जीवन के जोखिम पर, चंद कौर से भूख मिटाता है। भट्टी पर देह तपा अपनी, उपयोगी बर्तन बनाता है। हो फूलदान या हो मूरत, सुंदर रंगों से सजाता है। नित भोर किरन से पहिले, तांवा-पीतल को गलाता है। फिर रेत-रगड़ चमकाकर, घुंघरू-झंकार सुनाता है। मंदिर की घंटी या हो घंटा, बिन जिसके न बन पाता है। भट्टी-घरिया धुंआ-नीला, सांसों को बहुत फ...
हरिहर संग खेले फाग
कविता

हरिहर संग खेले फाग

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** फागुन आयौ, होली लायौ। मस्ती भरो माहौल चहुंओर छायौ। आओ हम सब हरिहर संग। खेले फाग हम सब गोपियां बन। होली अंतस हर्ष हिलौरें ले अपार। आओ-आओ हम सब हरि संग। खेले ऐसे फाग। खूब ढोल, मंजीरा बजावे। मस्त हो नाचे-कूदे धूम मचावे। लाल, गुलाबी, हरा, पीला। गुलाल हरी मस्तक लगावै। आओ-आओ हम सब। हरिहर संग ऐसी होली खेले। मन मस्त हो। हम सब लाल, हरा, गुलाबी, नीला, पीला रंग पिचकारी। भर-भर हरी बसन पर डारे। हम सब हरिहर के पीछे रंग। डालने पिचकारी ले भागे। हरि हम सब गोपियों से बचने। छुप-छुप जावे। भीगने से बचने और चुपके से हम। गोपियों पर रंग रंगभरी पिचकारी मारे। कभी-कभी हम गोपियों को पकड़। हमारे गाल पर लाल गुलाल लगावे। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : ...
होली अइसे खेलहु
आंचलिक बोली, कविता

होली अइसे खेलहु

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली होली अइसे खेलहु कि सब ला खुशी होये, अइसे झन खेलहु कि मां बाप के नाम बदनामी होये.! हरियर, पिवरी, लाल, गुलाबी लगाहु सबला रंग जी, भाई-चारा के रिश्ता निभाहु सबला रखहु संग जी.! मया-पिरित के गोठ गोठियाहु बबा-दाई ला रंग लगाहु, उत्साह-उमंग के साथ मनाहु होली तिहार जी.! ऐकता अउ खुशहाली के तिहार ये, येला भगवान भी मनाये बर करथे इंतिजार ये.! बबा के गीत जोरदार हे.. होली खेले रघुवीरा अवध में,, इही हमर संस्कृति अउ परम्परा जोरदार हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
रंगों का त्यौहार
कविता

रंगों का त्यौहार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** रंगों का त्यौहार है, तरंगो का त्यौहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है रंगे रंग एक-दूजे को मिट जाये मलाल रंग दे प्रेम के रंग से, नीला,पीला,ग़ुलाल रंगों की फुलवारी में स्वागत बार-बार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है आत्मा से परमात्मा रंगे, मिल जाये कृष्णा रंगे जीवन को रंगों से मिट जाये हर तृष्णा परमात्मा से मिलन की अब तो मनुहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है पाप की होली जला भस्म से ले संकल्प धर्म पथ पर चले दूजा ना कोई विकल्प कर्म कर अब बदलना निज व्यवहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है होली सदा ही सदभावना का त्यौहार है मानव से मानवता का बनेगा व्यवहार है श्याम रंग में रंग जाये, यही सदव्यवहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है रंगों और तरंगो संग आओ खेले होली जाति ...
रंगों की बहार आई
धनाक्षरी

रंगों की बहार आई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी रंगों की बहार आई, खुशियाँ हज़ार लाई, तन मन भीग रहा, फाग सब गाइए। भूल कर द्वेष भाव, याद रखना सद्भाव, सब अच्छे सब अच्छा, शत्रुता बिसारिए। पर्यावरण प्रियता, प्रकृति संरक्षणता, सूखे सरस रंगों से, उत्सव मनाइए। राम की मर्यादा रहे, कर्मवीर सारे बने, प्रहलाद की रक्षा हो, होलिका जलाइए। परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
तुम होली पर आ जाओ
गीत

तुम होली पर आ जाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम होली पर आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। मक्कारों की बन आई है, फूहड़ता की महफिल। फेंक रहे सब नकली पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, मातम का है मेला। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला।। हे नटनागर ! रासरचैया, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इति...
अपनापन तो होली
ग़ज़ल

अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** समझें अपनापन तो होली। रक्खें अच्छा मन तो होली। साथ हमारे आज अगर हो, सम्बन्धों का धन तो होली। आपस में रहने ,जीने का, सीखें सच्चा फ़न तो होली। साथ-साथ जो मन को भाये, भीगे ऐसा तन तो होली। खुल जाएँ गाँठे रिश्तों की, मिट जाएँ अनबन तो होली। ऊँच -नीच का भेद भुला कर, मिल जाये जन-जन तो होली। रंगों में हैं सच जीवन का, कर लें सब मंथन तो होली, परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
काश ये भी गुलाबी हो जाएँ
कविता

काश ये भी गुलाबी हो जाएँ

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** सिर्फ़ मेरे जिस्म को रंगीन करना चाहते हों, होली जी भर मेरे संग खेलना चाहते हो, क्या कोई ऐसी भी क़वायद हैं भला जिसमें मेरी रूह भी रंग जाये। मेरी स्वाँसों में फिर से जान आ जायें, सिर्फ़ मिठास मुँह तक ही ना रहें मेरी रूह में भी चासनी घुल जायें। मन के आँगन में वर्षों से ये जो काले सायें घेरें हैं, काश ये भी गुलाबी हों जायें। मेरा रोम रोम भीग जायें, सभी राग द्वेष काश मिट जायें तुम भी वैसे ही समर्पित हो पाओं जैसा मैं चाहती हूँ, सिर्फ़ बदलने की चेष्टा लेके ना आना, कुछ तुम भी बदल कर आना, मेरें अन्तर्मन को झंकृत कर जाना, बड़ी सुनसान हैं ये गलियाँ मेरी कुछ मधुर तान सुना जाना, काश की तुम ऐसा कर पाओं, जो कर पाना तभी आना, फिर जी भर खेलूँगी में भी होली, अपने सपनों की होली, मेरा रोम रोम पुलकित होगा श्री राधा जी जैसा रास अपना भी होग...
पी गया वह पीर
ग़ज़ल

पी गया वह पीर

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** पी गया वह पीर ताड़ी की तरह । सकपकाया फिर अनाड़ी की तरह ।। लोग उसकी बात कैसे मानते, जीभ चलती थी कुल्हाड़ी की तरह ।। जिन्दगी पर अब मुसीबत नित नई, टूट पड़ती है पहाड़ी की तरह ।। सिन्धियों सी कर ख़रीदी माल की, बेच दे फिर मारवाड़ी की तरह ।। एक बदली एक पागल के लिये, सज रही थी एक लाड़ी की तरह ।। जा रहा था दूर कछुए सा चला, लौट आया रेलगाड़ी की तरह ।। "प्राण" पंछी तो उड़ेगा डाल से, लोग ढूँढेगे कवाड़ी की तरह ।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
मिलने के बाद
मुक्तक

मिलने के बाद

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मिलने के बाद सब बेगाने हो जाते हैं आने के बाद सावन के, सब झूलों में खो जाते हैं सुनहरी धूप का आंचल हर कोई ओढ़ लेता है कठिन कंटक में कोई चलना नहीं चाहता हर कोई फूलों की महक के दीवाने हो जाते हैं। हालत की उलझनों में उलझे हुए कौन तसल्ली देता है किसे सब अपनों में अपने है बेगानो का सिर्फ खुला आसमा होता है परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखि...
मौन
कविता

मौन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हर एक बात कही जाए, ये जरूरी तो नहीं अनकहे शब्द भी बोलते हैं ग़र सुनो कभी क्यूँ नष्ट करें शब्दों के निधान मौन ही चुना है बाकी बचे सफर के लिए इतने गहरे और लंबे सन्नाटे से गुजरे हैं हम, कितना कुछ कहना चाहा कितनी कोशिशें की कितनी चाह थी की दुनिया को पता हो जाए, दर्द की जिद थी चुप रहकर ही बसर हो जाए, आहटें और आवाज तो सबके लिए है जो अंतरात्मा को सुनाई दे उसे ही तो निशब्दता कहते हैं ! अब तो हालत भी ऐसी है, ना कही जाएंगी अनकही बातेँ अविरल धारा में बहती जाएंगी मजबूरियां टूट चुकी है हिम्मत और मजबूतियां उत्तर तो प्रत्येक सवाल का दे ही देते मगर बड़े विश्वास से टूटा भरोसा, फिर बने जरूरी तो नहीं जो करना चाहो अराधना कभी, सुनना सीखना भी तो जरूरी है सुना है हृदय के "मौन" में ईश्वर बसता है। ...
आरंभ
कविता

आरंभ

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवीन पथ पर बड़ चला नव संगठित समाज है मनमुटाव भूलो विनोद करो ओ मनोज ! मन में ओज भरो अभी छूना आकाश है आस की डोर थाम कर कर्म कर ना विश्राम कर पाऐंगे मंजील ये विश्वास है क्या अंधेरा मिटाऐंगें धृतराष्ट्र और सारथी ना 'सत्य का प्रकाश' है कोई लाख दबाये सच को झूठ मुँह की खाएगा 'राजन' ये 'इन्द्र' की आवाज है युवा कर्ण कम नहीं सत-राज-योग-इन्द्र को गम नहीं ध्वज थामे अश्व सवार है जुगनु रूप बदल रहे दीपक बनकर जल रहे त्वीशा और अंगार हैं चन्द्र की सी प्रभा में स्मित मधु हास में हो रहा विकास है किशन-राम-शिव साथ है अशोक बने मणी माथ है सुमन' की 'नवल' सुवास है परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २...
अथाह अनुभूति
कविता

अथाह अनुभूति

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हजारों तंत्र हो मुझ में हजारों मंत्र हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहू तुझ में। न ज्ञान का अहंकार हो मुझ में न आज्ञान का भंडार हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहू तुझ में। योग का भंडार हो मुझ में तत्व का महाज्ञान हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहू तुझ में। न जीत का एहसास हो मुझ में न हार का ह्रास हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहू तुझ में। न जीवन की चाह हो मुझ में न मृत्यु की राह हो मुझ में मैं फिर भी लीन रहू तुझ में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
फागुन आया
कविता

फागुन आया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** फागुन मास आया। संग फाग लाया। चहुंओर हर्ष छाया। होलिका दहन कराया। हम सब वसंतोत्सव मनाए। सकल भारतवासी होली उत्सव मनावै। हम सब लाल, गुलाबी, हरा, नारंगी रंग अरु। गुलाल एक-दूजे के गाल पर मल-मल। सब रंग भर-भर पिचकारी चलावे। होली आपस में प्रेम बढ़ावें। ब्रज, मथुरा, होली राधा-कृष्ण। होली याद दिलावे। ब्रज, गोकुल, वृंदावन, मथुरा। फूलों की होली खूब। धमाल मचावे। लठमार होली खूब धूम मचावै। होली पर शक्ति उर उमंग छावे। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
ऋतुराज वसन्त में हूॅं
कविता

ऋतुराज वसन्त में हूॅं

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** मैं वर्षा में, शिशिर में, ऋतुराज वसन्त में हूॅं। मैं पूरब में, मैं पश्चिम में, मैं सारे दिगन्त में हूॅं।। मैं गेंदा में, गुड़हल में, गुलाब और पलाश में हूॅं । मैं इच्छा में आकांक्षा में, मैं आप की आश में हूॅं ।। मैं रक्षाबंधन में, दीपावली में और होली में हूॅं। मैं कुमकुम में, चंदन में और रंगोली में हूॅं।। मैं दोस्त में, मैं दुश्मन में, जागते में सपनों में हूॅं । मैं शत्रु में, मैं मित्र में, मैं पराये और अपनों में हूॅं।। मैं अलक्तक में, महावर में,चूड़ी और कङ्गन में हूॅं। मैं पूजन में, अर्चन में, नमन और वन्दन में हूॅं ।। मैं भारत माता के माथे पर शोभित बिंदी में हूॅं। मैं पंजाबी, गुजराती, मराठी और हिन्दी में हूॅं ।। मैं युद्ध में, मैं बुद्ध में, मैं कृष्ण में, मैं राम में हूॅं। मैं दिन में, मैं ...
खेलो रंग से होली
कविता

खेलो रंग से होली

डॉ. अखिल बंसल जयपुर (राजस्थान) ******************** मदमाता ऋतुराज है आया, खेलो रंग से होली, रंग-गुलाल लगादो तन से, बन जाओ हमजोली। पूनम का तुम चांद प्रियतमा, जाग उठी तरुणाई, पागल पलास नित दहक रहा है, कोयल कूकी भाई। सखी-सजन का प्यार अनोखा, दखल न उसमें भाए, ऐसा रंग लगे गालों पर, कभी न मिटने पाए। तन यौवन नित बहक रहा है, ऋतु बसंत निराली, जो बगिया सुरभित हो गाती, तुम हो उसके माली। महक रहा है सारा उपवन, भ्रमर फूल पर मरता, आओ खेलें हिलमिल होली, तू क्यों इतना डरता। देवर-भाभी, सखी सजन सब, पिचकारी रंग भरते, 'अखिल' जगत में भातृ भाव हो, यही संदेशा कहते। परिचय :- डॉ. अखिल बंसल (पत्रकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी), डिप्लोमा-पत्रकारिता, पीएच. डी. मौलिक कृति : ८ संपादित कृति : १७ संपादन : समन्वय वाणी (पा.) पुरस्कार : पत्रकारिता एवं साहित्यिक क्षेत्र ...
लो आ गई होली
कविता

लो आ गई होली

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** लो आ गई होली मन में है उल्लास दिलों मे भरा उत्साह आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली हर घर-आँगन गाँव-मढैया होली गावें हर गाँव गवैया वृंदावन की कुंज गलिन में प्रेम रंग में रंगकर होली खेलें रास रचैया भक्ति रस में डूब-डूबकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली गाँव-नगर चौपाल-क्लब आ गए बालम और कुमार भांग खुमार, रंग, गुलाल बोला सबके सर चढ़कर होली के रंगों में रंग कर आओ हम सब खेलें होली। "लो आ गई होली" क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख-इसाई मनमुटाव द्वेष बुराई भुला कर दुनिया को भाईचारे की राह दिखा कर मानवता के रंग में रंगकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली बच्चों की पिचकारी रंगों से भरे गुब्बारे जीवन में भर रहे रंग बारम्बार विविध रंगों से विद्यमान आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली एक अन...
कपड़े काट बनाता है दिल
कविता

कपड़े काट बनाता है दिल

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कपड़े के टुकड़ों के जैसा, कोई दिल सिल पाता। ऐसा कारीगर दुनिया में, कहीं मुझे मिल जाता। कपड़े काट,बनाता है दिल, फिर आपस में जोड़े। छोटा-बड़ा बने जैसा भी, पर उसको ना तोड़े। बड़े प्यार से इन्हें बनाता, मन ही मन खुश होता। ये दिल सबको मोहित करते, दादा हो या पोता। कपड़े का दिल नहीं धड़कता, फिर भी प्यारा लगता। इन्हें देखकर हर इंसा के, उर मैं प्यार पनपता। इनमें रक्त नहीं बहता है, धड़कन भी ना होती। इनमें प्यार नहीं होता है, नहीं भावना होती। फिर भी कपड़ों के नाजुक दिल, मन को अच्छे लगते। इन्हें देख कर मधुर प्यार के, भाव हृदय में पगते। अब सोचो ऊपर वाले ने, दिल अनमोल बनाया। नादाँ तू अनमोल रत्न की, कीमत समझ न पाया। तू कठोर,मिथ्या वाणी से, दिल के टुकड़े करता। कर अधर्म तू सब को मारे, बिना मौत...
हम राजस्थानी
कविता

हम राजस्थानी

इंद्रजीत सिहाग गोरखाना नोहर (राजस्थान) ******************** हम सबसे सच्चे सबसे अच्छे वो राजस्थानी हैं, हम गोगानवमी को गोगामेड़ी में जाकर बजाते टन्नी हैं। हम देवनारायण जी की फड़ सबसे लम्बी बताते हैं, हम पाबूजी की फड़ सबसे छोटी पढ़ाते हैं। हम रामदेव जी के रामदेवरा में धोक लगातें हैं, हम उस तेजाजी की लीलण सी धूम मचाते हैं। हम करणी माता के वो सफेद काबा कहलाते हैं , हम जीण माता का सबसे लम्बा गीत गाते हैं। हम शीतला माता के बास्योङा का भोग लगाते हैं, हम उस सुगाली माता के वंशज हैं जिसको क्रांति का योग बताते हैं। हम उस खाटूश्याम के सेवक हैं जो शिश के दानी हैं, हम सबसे सच्चे सबसे अच्छे वो राजस्थानी हैं। हम उस हल्दी घाटी की मिट्टी से तिलक सजाते हैं, हम दुश्मन को सूरजमल सी झलक दिखलाते हैं। हम राव जोधा के जोधपुर को बसाने वाले हैं, हम सबको पुष्कर झील दिखाने वाले हैं। हम ...