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पद्य

सत्य की कठोरता को
कविता

सत्य की कठोरता को

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य, काव्य में रसत्व का आनन्द नहीं होता तो।। रूखे सूखे ज्ञान को भी सरस बनाता कौन, कवि जो स्वतन्त्र स्वच्छन्द नहीं होता तो।‌। लय में लालित्य नाद, भाव माधुरी में राग, मिट जाते कविता में, छ्न्द नहीं होता तो।। कटता न काटे एक पल ऊब जाते "प्राण" लोगों को कवित्व जो पसन्द नहीं होता तो।‌। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानि...
अभिवादन धरा का
कविता

अभिवादन धरा का

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि का स्वागत करने हेतु, ओस लाऐ रजत हार तरु हंसते मन्द हास्य छोड़कर मधुर राग। खिलती कलियां महकते फ़ूल बढ़ाते उपवन का सौन्दर्य। मद मस्त पवन के झोंकों का उपवन में खिलते फूलों का मानव मन करता रसास्वादन। करता झुक कर धरा का अभिवादन। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
लगता ये मन भी पागल है
कविता

लगता ये मन भी पागल है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरे मौन से तड़प उठा हूॅ, हृदय आज फिर-से घायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है। जाने क्या तुझमें भाषित है, प्रिये-कल्पना कुछ शासित है; अन्यमनस्क तुझको देखा हूॅ, भाग्य, प्रेम पर फिर हासित है! कैसे खुद को समझाऊॅ मैं, छिना प्रेम का ज्यों ऑचल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। उच्च भाल पे शिकन पड़ी है, भौंह बीच इक बूॅद जड़ी है; स्वर्णहार गलहार- सुशोभित, कीर-नासिका-नथन-लड़ी है; कर्णफूल हैं लटके जैसे- श्रवणद्वार पे इक सॉकल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। 'दृढ़-छरहरी, सुन्दरी-काया, रंग-ढंग की मोहक-माया; खुला-केश करधन तक बिखरे.. जैसे नाग-मणि की छाया'; अब ना श्रद्धा इन बातों में- बिछिया-चुप, मुखरित-पायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगत...
बेटी
कविता

बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे जीवन की प्रथम कविता १६.०४.२०२० बेटा और बेटी तराजू के दो पलड़े हैं, बेटी प्रकृति का वरदान है, बेटी प्रभात की किरण की मुस्कान है, बेटी ना होती तो दुर्गा पूजा कहां होती, बेटी तू दुर्गा है बेटी वृषभान दुलारी है, बेटी जनक नंदिनी है, बेटी मीरा भक्ति का वरदान है, बेटी कृष्ण की कर्मा है, बेटी लक्ष्मीबाई तलवार की धार है। बेटी तो प्रतिभा की खान है, बेटी इंदिरा है बेटी विलियम हे, बेटी शक्ति है बेटी साहस हे, बेटी ममता ललिता और रमन है। बेटी तो मां की आत्मा और पिता के दिल का टुकड़ा है, बेटी बिन जग अधूरा है। बेटी ज्योति है बेटी दाऊ है बेटी ममता की छांव है, बेटी आँगन मे पायल की झंकार है, बेटी लाल चुनरी में दीपक का प्रकाश है, बेटी आयु है बेटी निधि है, बेटी तो आंगन में तुलसी सी बहार है। बेटी किरण की मुस्कान है,...
क्रोध क्षमा की म्यान
कविता

क्रोध क्षमा की म्यान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शब्द लघु हैं गुस्सा क्षमा, व्यापक है प्रभाव। एक म्यान में एक का, चलता है स्वभाव।। द्वंद्व इनमें ना रहे, गुण विशेष का ताज। अति दोनों की है बुरी, गुम हो जाती लाज।। सटीक व्याख्या क्रोध की, करना हो श्रीमान। भिन्न स्वरूप जांचिए, बहुत जरूरी ज्ञान।। गलत सदा अवमानना, जिद चले प्रतिकूल। छोटे बड़े काज जहाँ, वृहद लघु भी भूल।। बिन गलती या डांट से, ना पले व्यवहार। अनुशासन के नियम ही, देते हैं संस्कार।। जब गलती खुद आपकी, होता क्रोध फिजूल। अन्य किसी पर थोपना, अवश्य रहे निर्मूल।। संत ऋषि मुनि गण सभी, दिखलाते आवेश। सुंदर भविष्य के लिए, समय समय आदेश।। दुर्वासा परशुराम का, तप बल ही वरदान। खूबी बगैर क्रोध का, अनुचित है अरमान।। त्रेता युग में ’राम’ का, सागर से अनुरोध। अवमानना पयोधि की, तब भड़का था क्रोध।। करते रहो ...
हम भी क्या सोचे
कविता

हम भी क्या सोचे

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" आमला बैतूल (मध्यप्रदेश) ******************** कोई तो होगा इतना वफा करे क्यों, वो बेचैन रहे हरदम हम भी क्या सोचे। इतना भी करे कोई मिलने को तरसे, आस उनकी भी रही हम भी क्या सोचे। ऐसी लागी उनसे लगन अच्छा हुआ, मिलने को आतुर हुए हम भी क्या सोचे। जहां में इतना तो कोई प्यारा होगा, मोहब्बत क्यों उम्मीद करे हम भी क्या सोचे। सलोनी सी सूरत क्या ऐसे देंखे, मनचले से पूंछो तो कोई हम भी क्या सोचे। ये समां कोई जलाए भी तो ऐसे, परवाना पूंछे क्या उनसे हम भी क्या सोचे। चांद के पार चले जाना तो कोई, रुक ना जाए राहों में हम भी क्या सोचे। वो आए भी क्या इस तरह जहां में, सोचा हमने भी ऐसा सही हम भी क्या सोचे। कोई तो होगा अपना अब प्यारा, खिलौना हो गया सपना हम भी क्या सोचे। 'दीया' ने क्या दिया जिसे दिया जब, आस के भरोसे मांगे सिर्फ हम भी क्या सोचे। ...
आत्मशुद्धि कराता दसलक्षण ब्रत
भजन

आत्मशुद्धि कराता दसलक्षण ब्रत

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आत्मशुद्धि की पवित्रता का आता हर वर्ष दशलक्षण पर्व दस सोलह बत्तीस दिन भक्तिभजन सत्संग ध्यान में एकाग्रता में लीन कराता दशलक्षण व्रत पर्व तनमन से व्रत का पालन अन्नत्याग कर आंतरिकता से आध्यत्मिक भक्ति में आत्मशुद्धि की शक्ति खूब लाता अन्तर्मन के रग रग में दसलक्षण पर्व भाद्र पद का पवित्र महीना आराधना, उपासना और बन जाता साधना का आत्मशुद्धि की शरण में सिखलाता जीवन जीना सबजन को सिखलाता कितना है नियम कठिन बतलाता दसलक्षण पर्व अनर्गल आपाधापी त्यागकर अपनेआप को करता एकांत रहना है भक्तिभजन नियम में नियम धर्म की संगत में खुद हो जाता शांत ब्रत उपवास पालन करता मनाता दसलक्षण पर्व छोड़कर मोहमाया काया को देता आराम त्यागकर अंधाधुंध भागदौड़ ब्रत करता अन्तर्मन से ईश्वर से आत्मशक्ति की विनती करता कहता सफल...
क्या वो दिन आयेंगे …?
कविता

क्या वो दिन आयेंगे …?

विश्वम्भर पाण्डे "व्यग्र" गंगापुर सिटी (राजस्थान) ******************** मैं सदियों से शोभा थी तेरे आंगन की तू सजाता/सॅवारता/बचाता आया दुनियां के हर संताप से पर, आज मैं खरपतबार समझ, आंगन से हटा दी गई जैसे जन्म से पहले नष्ट कर दी जाती बिटिया और बिसार दी गई 'वो रीति' दकियानूसी समझ। मेरा स्थान पा लिया है अब उन गंधहीन 'कैक्टसों' ने जिन्हें, तू पाल रहा है, आज सुपुत्रों की तरह, जो दे नहीं सकते, तुझे सुवास, सिवाय काँटों के। मैंने तुझे पहचान दी तेरी बचाई जान जिसे तू जानता और जानता विज्ञान पर हाय! इस बात को तू कब समझेगा? हटाकर कटीले झाड़ मुझे फिर से आंगन में रोपेगा! सच बता, क्या वो दिन आयेंगे?? जब मैं आंगन में, तेरे लहलहाऊंगी और एक बिटिया की तरह सुखद अहसास कराऊँगी... परिचय :-  विश्वम्भर पाण्डे "व्यग्र" निवासी : गंगापुर सिटी (राजस्था...
बर्फ़ाब
ग़ज़ल

बर्फ़ाब

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** जो मिल गया सो मिल गया अब तो दिल में ख़्वाब सजा लीजिए ले के मुझे बाँहों में तुम यूँ आँखों में क़दह-ए-शराब बना लीजिए। कहते है जोड़े आसमान में बनते है हमने तो कभी सोचा नहीं ये बात है तो कच्चे डोर में बाँधके मुहब्बत के बाब आ चलिए। इश्क़ में जुर्म कर बैठे कोई बात नहीं इश्क़ की तामीर की जाए अब पीछे भी क्या हटना आप फ़र्द–ए–हिसाब सुना दीजिए। हाए! नाक पे गुस्सा फिर भी बड़े शौक़–हसीं लगते हो तुम तो हमने तो होंठों पे लिया नाम तुम्हारा चलो इताब बना लीजिए। ख़्यालों को ज़ेहन में रखते हैं छोटे से दिल में अरमान बड़े रखते है सुनो मीठे मीठे सवालों का मज़ा अपने ही हिसाब का लीजिए। हल्की हल्की बारिश की बूंदें मेरे गालों पे क्या पड़ने लगी कि जैसे फिज़ा साजिशें करनी लगी बहाके ले जाने को सैलाब बना दीजिए। आ बैठ मेरे सम्त काली नज़...
मानवता
गीत

मानवता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता हृदय में भरी हो, सुख की भावना। गंगा जैसा पावन मन हो , उर प्रभु साधना।। चले धर्म की राह नित्य ही, विचार कीजिए। राग-द्वेष से दूर रहें हम , सुवास दीजिए।। दीन दुखी का बने सहारा, हो शुभ कामना। शूल पथ में लाख आएँ पर, तुम मत डोलना। दोष सारे दूर कर बढ़ना, कुछ मत बोलना।। लक्ष्य फिर तुमको मिलेगा प्रभु, बाँहें थामना।। राम हिय बसते सदा तेरे, अमरित पीजिए। नैनों में मनहर छवि बसती, दरशन लीजिए।। जाप लो नित नाम प्रभु होगा, निश्चय सामना।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य...
आस्तीन के सांप
कविता

आस्तीन के सांप

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमारे देश में वैसे तो हर तरह के सांप पाये जाते हैं, सामने आ जाये तो डर से मारे जाते हैं या भगाये जाते हैं, सांप तेजी से डसते हैं, इसलिए लोग इससे बचते हैं, पर दुनिया का सबसे खतरनाक सांप आस्तीन के सांप होते हैं, इससे रूबरू होने से कोई नहीं बचते हैं, ये हर पल आपके साथ रहेंगे, साथ सुख दुख सहेंगे, मगर अपना असली रंग ये तब दिखाता है, जब कोई खास मौका आता है, ये किसी को भी डस सकता है, डस कर ये भागता नहीं बल्कि सबको स्पष्ट नजर आता है, तब आप झुंझलाने के सिवा कुछ भी नहीं कर सकते, इसका गर्दन या पूंछ कुछ भी नहीं धर सकते, वैसे तो इनसे बचकर रहना चाहिए पर बच नहीं पाएंगे, आप संगठन वाले हों, मिशन वाले हों इनसे बिल्कुल बच नहीं पाएंगे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
सोलह कलाओं के अवतार
स्तुति

सोलह कलाओं के अवतार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रमा विष्णु के तुम अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम। जब जब नाश धर्म का होता, तब-तब जन्म सुरेश का होता सोलह कलाओं के अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम।। बने राम अहिल्या तारी, रूप कृष्ण में पूतना मारी तुम अवतारी गोकुल धाम, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। बंसी बजाएँ सबको बुलाएँ, राधा के मुरलीधर घनश्याम बैरन मुरली छीन लई, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। रास रचाएँ, गोपी नचाएँ, गोपों के तुम मितवा श्याम जय-जय कृष्ण राधे श्याम, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। वृंदावन की कुंज गलिन को, छोड चले तुम राधा के श्याम मथुरा में जा कंस संघारे, यशोदा नंदन तुम्हें प्रणाम।। रणछोड़ भए द्वारिका बसाई, अर्जुन सम्मुख गीता रचाई जय सुखधाम, जय सुखधाम, देवकीनन्दन तुम्हें प्रणाम।। सोलह कलाओं के अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम ...
मां अंजनी के लाल
भजन

मां अंजनी के लाल

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां अंजनी के लाल है, पवन पुत्र हनुमान है, राम जी के दास है, रुद्र काअवतार है। तेजपुंज हनुमान है, महावीर बलवान है। राम काज में सदा है तत्पर, ऐसे संकट मोचन हनुमान है। बाल्यकाल में सूर्य को निगले, पृथ्वी पर हाहाकार है, सौ योजन समुंद्र को लागे, पवन पुत्र हनुमान है। लंका दहन किया है तुमने, मां सीता का पता लगाया है। राम की मुद्रिका सीता को दिनी, चूड़ामणि राम को लाए विश्वास के तुम सागर हैं। द्रोणागिरी पर्वत को लाए, बूटी घोट पिलाई है। लक्ष्मण के तो प्राण बचाए, ऐसे रक्षक बलशाली है। रावण जिससे डरा हमेशा, ऐसे मर्कट हनुमंत लाल है। राक्षसों का नाश कर आये, राम सिया का मिलन कराया, रामचरण अनुराग है। ह्रदय में सीताराम है, राम जी के दास है। आज्ञाकारी सेवक देखो, मां अंजनी का लाल है। परिचय :...
परायापन
कविता

परायापन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक एक शब्द तुम्हारा भेद़ गया। मन की कोमल दीवारों को मां के भाव शूलसे चुभ गए क्षण भर में स्तब्ध रह गई मस्तिष्क अवरुद्ध हो गया। एकाएक मन ने जागृत किया झकझोरा मुझे कहा उसने सच है, सही तो कहा उसने तुम, तुम पराए हो तू मुढ हो इस जग में। भावुक, विक्षिप्त होते हैं वह लोग जिन्हें वेअपना कहते हें। और जगहमें पराया कहता है शायद यही अति, श्रुति, रीति है जगती की।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं...
वह पद और मद में चूर हो गए
कविता

वह पद और मद में चूर हो गए

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** वह पद और मद में चूर हो गए। उनको लगा वह मशहूर हो गए।। गर सच्चाई कुछ और ही निकली आज वह अपनों से ही दूर हो गए।। वह पद और मद में चूर हो गए। जो कहते थे कि मन है उसका कोयले से भी काला आज उनकी नजर में भी वह कोहिनूर हो गए।। वह पद और मद में चूर हो गए। "अरविंद" कहे वक्त नहीं रहता सबका एक सा वक्त की मार से वह भी चकनाचूर हो गए। वह पद और मद में चूर हो गए। परिचय :-  अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
कितने क्यों मौन हो
कविता

कितने क्यों मौन हो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कितने क्यों मौन हो क्या आती नही अभिव्यक्ति ? या फिर जाती नही अब भी अहम भक्ति ? छोड़ दो न छंदों अलंकारों को कम से कम करो न आत्म अभिव्यक्ति। या फिर जाती नहीं अब भी शकी अभिव्यक्ति ? हिंदू हिंदुस्तान की शान है थोड़ा तो सम्मान रख लो आता नहीं रस तो भाव ही अभिव्यक्त कर लो या फिर आती नहीं भाव की अभिव्यक्ति भी? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
कौन हूँ मैं….?
कविता

कौन हूँ मैं….?

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** कौन हूँ मैं.....ऐ जिंदगी तू ही बता, थक गया हूँ मैं खुद को ढूँढते-ढूँढते I अब कोई ख्वाहिश नहीं पालता मन में, विरक्ति हो गई है नित एक ही ख्वाब बुनते-बुनते I सुनता हूँ जीवन में फूल भी हैं, काँटे भी हैं, मेरा जीवन बीत गया काँटे ही चुनते-चुनते I तानों कलंकों के बीच, जिंदगी से हारा नहीं हूँ मैं, लोगों की चुभती बातों से, धैर्य टूट जाता सहते-सहते I किसी से शिकायत नहीं अपनी व्यथा पर, मुझे चले जाना है दुनिया से यूँही चलते-चलते I ऊपरवाला भी व्यथित होगा मेरी नियति पर, रो रहा होगा, मेरी करुण-वेदना सुनते-सुनते I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
पल दो पल की साँसें तेरी
कविता

पल दो पल की साँसें तेरी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नाजुक बड़ी, साँस की डोरी, आओ इसे सम्हालें। टूटेगी कब, पता नहीं कुछ, जल्दी मंजिल पालें। पल दो पल की साँसें तेरी, पल दो पल की काया। छोड़ जगत सबको जाना है, कहाँ कोई रुक पाया। पानी कैसा बना बुलबुला, यह मानव तन तेरा। जीवन नहीं हमेशा तेरा, है पल भर का डेरा। आया है जो, वो जाएगा, स्थिर नहीं ठिकाना। सदा लगा रहता दुनिया में, सबका आना-जाना। दुनिया रैन बसेरा तेरा, क्यों इतना इतराता। प्राण पखेरू कब उड़ जाए, पता नहीं चल पाता। करता है गुमान तू भारी, अपनी देख जवानी। नाम शेष रह जाता जग में, रहती शेष कहानी। धन-वैभव, माया में उलझा, भूला दुनियादारी। चार दिवस का जीवन तेरा, चलने की तैयारी। पूजन भजन किया नहिं तूने, रहा जवानी सोता। बुला रहा दर्प में हरदम, पछताए क्या होता? छोड़ सकल जंजाल जगत के, प्र...
वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी
कविता

वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हिज्र तक़दीर नहीं वस्ल का वा'दा भी नहीं हम ने खोया भी नहीं आप को पाया भी नहीं अब वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी है अब कोई मुझ से है वाबस्ता तमाशा भी नहीं कभी मुस्काए कभी रोए तिरी यादों में बिन तिरे मैं ने कोई लम्हा गुज़ारा भी नहीं वो न जाने क्यों मोहब्बत का गुमाँ रखने लगा मेरी जानिब से अभी ऐसा इशारा भी नहीं ख़ुद को दीवाना मिरा सब को बताता है मगर मेरा दीवाना मिरे नख़रे उठाता भी नहीं मेरी तन्हाई मुझे और दिखाएगी भी क्या अब मिरे आसमाँ में एक सितारा भी नहीं डूब जाना ही मुक़द्दर हुआ जाता है क्या अब मयस्सर मुझे तिनके का सहारा भी नहीं चारागर फिर तू बने क्यों है मसीहा सब का मेरे ज़ख़्मों का तिरे पास मुदावा भी नहीं दिल के सहरा को 'अनन्या' जो बनाए गुलशन ख़ुश्क आँखों में वो शादाब नज़ारा भी नही...
श्याम पधारो
गीत, स्तुति

श्याम पधारो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रक्षक बनकर श्याम पधारो, ले लो फिर अवतार। पावन भारत की धरती पर, अब जन्मो करतार।। घोर निराशा मन में छाई, मानव है कमजोर। काम क्रोध मद मोह हृदय में, थामो जीवन डोर।। शरण तुम्हारी कान्हा आए, तिमिर बढ़ा घनघोर। अब भी चीर दुशासन हरते, दुष्टों का है जोर।। सतपथ में बाधक बनते हैं, बढ़ते अत्याचार। गीता का भी पाठ पढ़ा दो, व्याकुल होते लाल। नैतिकता की दे दो शिक्षा, बन कर सबकी ढाल।। आनंदित इस जग को कर दो, चमकें सबके भाल। धर्म सनातन हो आभूषण, बदले टेढ़ी चाल।। राग छोड़कर पश्चिम का हम, रखें पूर्व संस्कार। त्याग समर्पण पाथ चलें नित, हमको दो वरदान। शील सादगी को अपनाकर, नित्य करें उत्थान। सत्य निष्ठ गंम्भीर बनें हम, दे दो जीवन दान। जीवन सार्थक कर लें अपना, कृपा करो भगवान।। मर्यादा के रक्षक प्रभु तुम, ज...
अमृत की धारा
गीत

अमृत की धारा

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** ओ ओ ओ ओ .. राम भगति ध्यान में ध्यान जो लगाएं ... भवसागर से मुक्ति वह पाए, तुम्हारे भगति में तुम्हारी भगति में...२ हो ओ हो ओ हो.. पत्थर स्पर्श किया जो तुमने श्रापमुक्त हुए अहिल्या माई तुम्हारी भगति से, मां सबरी के जुठे बेर तुमने जो खाए ममता की भाग जो बढ़ाए तुम्हारी भगति ने ....२ हो ओ हो ओ.. गणिका को ज्ञान से अवगत करवाएं कुरूक्षेत्र में अर्जुन को गीता सार है सुनाई तुम्हारी भगति ने....२ हो ओ हो ओ.. मीरा ने पी लिया था विष का जो प्याला, वह बन गई अमृत की धारा तुम्हारी भगति में...२ हो ओ हो ओ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सूत्र
कविता

सूत्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खबर बनाना और बेचना खबरचियों और चैनलों का शानदार और कमाऊ धंधा है, इस धंधे में प्रॉफिट बहुत है धंधा बिल्कुल नहीं मंदा है, पहले की बात और थी पर आज खबरें बनाये जाते हैं, झूठ को सच का जामा पहनाये जाते हैं, पैसे देकर खबरें बनवाये जाते हैं, वक़्त आने पर उसे भुनाये जाते हैं, तब पत्रकार बन जाते हैं पत्तलकार, पत्रकारिता बन जाता है व्यापार, इनके सूत्र होते हैं मजबूत, जिसका होता नहीं वास्तविक वजूद, सूत्रों का नाम ले दिखा जाते हैं चरित्र, एक ही थैली के चट्टे बट्टे होते हैं सारे मित्र, कभी कभी सूत्र होते हैं विश्वनीय, असल में जो होते हैं निंदनीय, ये खुद को कहते हैं लोकतंत्र का चौथा खंभा, जिसे ये अपने कर्मों से साबित कर कमाने लग जाते हैं हरे रंग की अम्मा, अब बताओ सूत्र फर्जी खबरों का आधार नहीं हो सकता, सूत्र...
गणेश-वंदना
स्तुति

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं
कविता

मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** बड़े बुजुर्गों की कहावत सच है कि हाथी के दांत दिखाने खाने के और हैं मेरी पोल खोलना मत मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं बड़े बुजुर्गों की कहावत है कि एक उंगली दूसरे पर उठा तीन उंगली ख़ुदपर उठेगी मैं भी दूसरों पर उंगली उठाता हूं पर तीन उंगलियां का मैं दोषी हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं अपने संस्था के प्रोग्राम में मुख्य अतिथि एसपी की पत्नी जज़अधिकारी को बुलाता हूं उनमें मेरे कई बहुत काम फ़सते हैं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं मैं खुद प्राकृतिक संसाधनों का अवैध दोहन कर शासन को चुना लगाता हूं अधिकारियों के हाथ गर्म करता हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं हर गलत काम जो अवैध करता हूं समाज में सफेदपोश बनकर रहता हूं नामी संस्था का संस्थापक हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं यह सब बाते...
हिन्दी लावणी छंद
छंद

हिन्दी लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है। निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।। सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है। जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।। प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया। हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।। अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने। फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।। देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी। हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।। है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की। हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।। ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना। विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।। जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दय...