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पद्य

राजनीति रोटी
कविता

राजनीति रोटी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजनीति की रोटियां, जितनी चाहो सेंक। सत्य तथ्य रखते परे, निडर मानकर फेंक।। भ्रष्ट रोटी जो मिले, मानें खुद को शूर। पर होता इंसाफ है, होकर लज्जित दूर।। मुनि संतों के देश में, शैतानों का उत्पात। वनवास काल ’राम’ ने, दी चुन चुनकर मात।। काम किसी के आ सकें, खुल जाता था द्वार। अदभुत दधीचि दान था, केवल अब कुविचार।। चलता देश विवेक से, रखें सभी अभिमान। फिर मनचाहा तो नहीं, होता है गुणगान।। मुल्क नीति अवमानना, विचलित दिखे अनेक। सिर्फ भ्रम फैला रहे, रोटी लालच एक।। देश प्राण जब एक है, भारत माता आन। समान घटना नजर से, क्यों रहते अनजान।। बोली बहुत मुखर हुई, देते बात मरोड़। ’मुन्ना’ तर्क इस राह से, निकले कोई तोड़।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज द...
प्रीति गगरिया
गीत

प्रीति गगरिया

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीति गगरिया छलक रही है, भटक रहा हिय बंजारा। चातक मन निष्प्राण हुआ है, मरुथल है जीवन सारा।। प्रीत घरौंदा टूट गया है, करें चूड़ियाँ हैं क्रंदन। मौन पायलों की रुनझुन है, भूल गया है उर स्पंदन ।। कैद पड़ी पिंजरे में मैना, दूर करो अब अँधियारा। अवसादों में प्रीत घिरी अब, सहमी तो शहनाई है। कुंठित हुई रागिनी सरगम, प्रेम -वलय मुरझाई है।। अवगुंठन में छिपा चाँद है, पट खोलो हो उजियारा। जर्जर ये जीवन की नैया, हिचकोले पल -पल खाती। बहती हैं विपरीत हवाएं, भूले प्रिय लिखना पाती।। गूँगी बहरी दसों दिशाएँ, बहे आँसुओं की धारा। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
औरत
कविता

औरत

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिसने जन्म दिया उसका मान नही है क्या? ममता की कंही सम्मान नही है जिस्म के लिए यह कैसे व्याभिचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है खूब लगाते नारीवाद के नारे सभी क्या सम्मान दे पाये नर उन्हें अभी क्या? वो जीने के अधिकारी नही है औरत को औरत होने की लाचारी है समता का जब उनको अधिकार है क्यों रखते उनके प्रति दुर्व्यवहार है घात लगाकर बैठे क्यों शिकारी है औरत को औरत होने की लाचारी है क्यों उनको सब अधिकार देते नही बराबर का अधिकार क्यों देते नही क्यों कहलाई जा रही वह बेचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है अब सम्मान और समता से जीये क्यो जीवन भर वह विष को पिये स्वाभिमान से जीने के अधिकारी है समता, स्वभिमान के वो अधिकारी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाच...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों को पूर्ण वीराम ना लगाओ शब्द, तार है मन सरगम का छंद अलंकारों से श्रृंगारित शब्द अवलंबन है जिव्हा का। कर, लेखनी, काली स्याही व्यंजन, परिमार्जन शब्दों का शब्द चमत्कृत, शब्द झंकृत शब्द-शब्द से कहानी है। स्वर व्यंजन से रचा गढ है परकोटा है अलंकारों का अंदर बाहर गिरि गव्हर है नव रसों की फुलवारी। व्यंग, राग का परी तोषण करते हास्य करें मनुहारी, क्रोध, शांत रस दर्शाते मानव मन के भाव को तू अकेला नहीं, कहता कोई अभिन्न मित्र बना लो शब्दों को। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से नि...
लहरें
कविता

लहरें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सदियों से चलती रहतीं, लगातार तुम धरती सी सूरज, चंदा, ग्रह और तारे, साथी, संगी हैं तुम्हारे पवन तुम्हारी रक्षा करती, धूप कलेवर चाँदी का देती वृक्ष तुम्हें पा हरिया जाते, और तीर गदगद हो जाते तुम धरती को जीवन देतीं, खेतों में धान उगातीं आत्मा में प्राण जगाकर, कृतज्ञता कर्ता को दर्शातीं अगाध नीर की नीली स्वामिनी तुम सा जीवन लासानी, तुम सा जीवन लासानी। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आ...
सपनों का आसमान
कविता

सपनों का आसमान

संगीता दरक मनासा, नीमच (मध्यप्रदेश) ******************** ना बंदिशों की परवाह है ना बंदिशों की परवाह है, ना परंपराओं की जकड़न आत्मविश्वास का पहना, मैंने अचकन उम्मीद से भरे पंख मेरे, हौसलों से भरी उड़ान है , समेट लूँ आज,सारा जहां में कि साथ मेरे सपनों का आसमान है। ना मन को समझाऊं मैं, ना पग धरु पीछे में, ना ख्वाहिशों को अपनी छिपाऊँ में, काबिलियत अपनी सारे जहां को दिखाऊँ मैं। कि साथ मेरे सपनों का आसमान है। तारों के साथ आज, उजाले की बात करते हैं। काले अँधेरो पर आज रौशनी बिखेरते है। सपनों के आसमान में सूरज सा जगमगाते है, धरती के तिमिर को पल में हराते है। बस इतना सा अरमान है, साथ मेंरे आज सपनों का आसमान है। परिचय :- संगीता दरक निवास :  मनासा जिला नीमच (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
ख़्वाब जो नींद में देखा होगा
ग़ज़ल

ख़्वाब जो नींद में देखा होगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ख़्वाब जो नींद में देखा होगा। जागकर सोचने से क्या होगा। आपके जो क़रीब आया है, जान पहचान का रहा होगा। जान पाया है हाल महफ़िल का, शख़्श वो रात भर जगा होगा। साथ चलकर कहीं बिछुड़ना फिर, इस ज़माने का सिलसिला होगा। जो निभाया गया है मुश्क़िल से, सख़्त वो दिल का क़ायदा होगा। पास आएगा छोड़कर सबको, साथ में जिसके वास्ता होगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
माथे का सिंदूर
गीत

माथे का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहे अमर श्रंगार नित्य ही, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर दे हर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही ...
हां सब कुछ मेरा है पर
कविता

हां सब कुछ मेरा है पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सूरज मेरा है, चांद मेरी है, हवा मेरा है, कुदरती दवा मेरा है, ये फूल, पवन पुरवाइयां मेरी है, मेहनत मेरे हैं, पर जमीन उनका है, हर नाजनीन उनका है, सर्वत्र घूम रहे हैं जहरीले सर्प और बीन उनका है, व्यवहार मेरा है, संस्कार मेरा है, सारे पाखंडों पर लूट जाने का अधिकार मेरा है, पर सारे नियम उनके हैं, जिनकी नजरों में हम तिनके हैं, भले बाजुओं में दम है, हमारे सीनों में गम है, उनके लिए लफंगे हम हैं, कीड़े मकोड़े, भिनभिनाती कीट पतंगे हम हैं, पर चिराग उनका है, झपट्टे मारता हर बाज उनका है, जंगल पहाड़ हमारे हैं, सद्व्यवहार हमारे हैं, नैतिक मूल्य, व्यवहार हमारे हैं, पर व्यवस्था में बड़ा आकार उनका है, तन हमारे हैं, मन हमारे हैं, जन हमारे हैं, खोट हमारा है, वोट हमारा है, पर सम्पूर्ण सत्ता उनका है...
सवेरा
गीत

सवेरा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाग सखी री!उतर क्षितिज से आया सुखकर भोर। उदयाचल से झाँक रहा है, देखो शुभदे दिनकर। बादल अभिनंदन करते हैं, सूर्यदेव का हँसकर।। तुहिन कणों के अगणित मोती, बिखरे चारों ओर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर ।। देखो महकी सुभग वाटिका, लदी सुमन से डाली। पंचम स्वर में कूक रही है, कोयलिया मतवाली।। मन को आनंदित करता सखि! मधुप वृंद का शोर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। सरिता के तट चकवा चकवी, गीत प्रणय के गाते। बड़े सवेरे उठे बटोही, अपने पथ पर जाते।। नभ में ओझल हुआ सुधाकर, दिखता व्यथित चकोर। जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मो...
भक्त और भगवान
स्तुति

भक्त और भगवान

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभात वंदना में विनती, अरज सुन लो श्याम जी। भक्त और भगवान की लड़ाई है, अब तुझे सुनना ही पड़ेगा। भक्त की अरज सुन लो, श्याम जी यशोदा मैया के दरबार में, हाजिरी लगाउंगा। भक्त और भगवान की लड़ाई है श्याम जी, यशोदा के दरबार में हार जाओगे। भक्त और भगवान की लड़ाई है तुम्हें सुनना ही पड़ेगा। न सुनोगे तो श्याम जी जन्मो तक लड़ता जाऊंगा। भक्त की अपील सुन लो वरना राधा रानी से अर्जी लगाउंगा । जारी होगा तुम्हें सम्मन भक्त की विनती को सुनना पड़ेगा । भक्त की अरज सुन लो श्यामजी, यशोदा के दरबार में आना पड़ेगा। श्याम जी यशोदा के दरबार में ऐसी दलील दूंगा, भक्त की लड़ाई है, अब तो श्याम जी हार जाओगे। यशोदा के दरबार में रूक्मिणी जी से ऐसी अपील करवाउंगा, भक्त के पक्ष में होंगे सारे फैसले, मेरे श्यामजी। अब तो श...
शहीद बिरसा मुंडा जी
कविता

शहीद बिरसा मुंडा जी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** वीर जन्मा जनजाति अभियान के लिए जल जंगल जमीन स्वाभिमान के लिए हमको देने जीवन दान, वीरसा हो गए कुर्बान। चले हथेली लेके जान। वीरसा हो गए कुर्बान।। अदम्य साहस निडर वीरता से भरपूर। आदिवासी क्रांतिकारी नाम से मशहूर। भुजा सजे तीर कमान। वीरसा चले सीना तान।। चले हथेली लेके जान। वीरसा हो गए कुर्बान।। स्वतंत्रता सेनानी आदिवासी लोक नायक थे। ब्रिटिश शासन हिलाने वाले प्रेरणादायक थे।। नीति नियम की मार, दर्द झेल आदिवासी। चरम पर नर-संहार, कितने झूल गए फांसी।। इतिहास के पन्ने बने शान वीरसा हो गए महान।। चले हथेली लेके जान। वीरसा हो गए कुर्बान।। जमी के ठेकेदार कैसे हक छीन जाते थे? उनके मुँह का निवाला कैसे लूट खाते थे? मालिकाना हक से अब बनने लगे मजदूर। कसूरवार ठहराए, जबकि वो थे बेकसूर।। आदिवासियों के शान ...
बेड़ियां
मुक्तक

बेड़ियां

जय चौहान देपालपुर, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 परम्परा की बेड़ियों में जकड़ी हुई बेटियाँ सदियों से ज़ुल्म सहती रही है बेटियांँ यह कैसा कुकर्म फैला समाज में युगों युगों से अर्थी पर सजती रही बेटियांँ। बंधन बांधकर पहले अधिकार बनाया, जीवन भर फिर गुलाम बेटियों को बनाया परम्परा रिवाज के नाम पर चुप रखा घर को कोने में सिसकती रही बेटियांँ। ऐसे रिवाज परम्परा बनाई, आँखो में आँसू फिर भी मुस्कुराई मायके और ससुराल में अपना घर ढुंढती पर दो दो घर फिर भी बेटियांँ पराई। कभी दहेज के नाम पर जलाई बेटियांँ कभी इज्जत के नाम पर भेंट चढ़ी बेटियांँ तोड़ दो यह गुलामी की बेड़...
बेड़ियां
गीत

बेड़ियां

अंजली शर्मा दमोह, जबलपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 सच की राह चल सको तो अब मुकरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत कुछ कहेंगे अपशब्द, कुछ कहेंगे बुरा भी तुम्हे सादर शीष झुकाना, बाते उनकी सुनना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और पैरो में पड़ी बेड़ियां, जो तुमने अब तोड़ी है खुद को संवार कर झूठी राह छोड़ी है ना दबना गलत बात पर, गलत पैरो में गिरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और जो आए तुम्हे खींचने, बांह तुम्हारी मरोड़ने हिंसा, जख्म और जख्मी दिल को कचोड़ने रोक देना हाथ वही, दिल अपना पसीजना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत टूटी आशा आंखे सू...
बंधन जरूरी है
कविता

बंधन जरूरी है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। इक पैर तेरा, संकल्प का। दूजा चरण, संयम भरा।। ठान ले तू, ना बहकेगी कभी प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। सर पर पल्लू, भले कर ले। दुपट्टा तन पे, भले धर ले।। पढ़ ले, जीवन गढ़ ले पायल से बंधे रहना खड़ी।। प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। स्त्री आजादी के, घाव गहरे हैं। उजले दिखते, स्याह चेहरे हैं।। बंधन बांध कर भी तू बन सकती है रण चंडी।। प्यारी परी, नन्ही कली। तेरी डगर, आशा से भरी।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्...
आम को इमली बताने आ गए
ग़ज़ल

आम को इमली बताने आ गए

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** ज़लज़ला दिल में मचाने आ गए जाम आँखों से पिलाने आ गए आम को इमली बताने आ गए ह़क़ ग़रीबों का चुराने आ गए है नहीं ईमां बचा दिल में ज़रा झूठ के किस्से सुनाने आ गए बेच कर अपने वतन की आन को मूर्ख जनता को बनाने आ गए कब समंदर से बुझी है तिश्नगी लब के साग़र में डुबाने आ गए साग़र-जाम रह न पाए वे हमारे बिन तभी शाम को मिलने मिलाने आ गए क़त्ल करते हो स्वयं ऐ दिलरुबा ख़ून फिर मुझ पर लगाने आ गए माँ के आँचल में पला खुद ईश है हम वहीं सिर को झुकाने आ गए अम्न की बातें न जिनको हैं पसंद अब्र वे अंबर पे छाने आ गए क़ह्र कम होता न *रजनी* पे कभी नैन से नैना लड़ाने आ गए परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मति...
हमारा भी जमाना था
कविता

हमारा भी जमाना था

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ी देखे चरम बदलाव, चिंता बिन अफसाना था। भला=बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। बिन शर्म संकोच बचपन में, पैदल साइकल जो हुआ। दूर_पास विचार नहीं संग, मां पिता गुरु ईश दुआ। चला करते पीढ़ी के रिश्ते, चाचा मामा बहन बुआ। ढपोरशंख पदवी से दूर, प्रतिशत उच्च अंक छुआ। बगैर संकोच पुस्तक शॉप, क्रय विक्रय ठिकाना था। परिवार सहयोग में कितनी, लाइन भी लग जाना था। अपनी पीढ़ी चरम बदलाव, बिन चिंता अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। प्रभु प्रलोभन मिठाई का, कम मेहनत विनय करते। पढ़ाई खर्च का बोझ वहन, कभी उजागर ना करते। सिलवटी ड्रेस सस्ते खेल से, जमकर खुशियां पा लेते। कंचा भौंरा पिट्टुल कौंडी, लूडो चेस चला करते। जरा सी पॉकेट मनी बचे, अन्य शौक भी पाना था। घर का मुरमुरा चूड़ा भेल, अपना श...
सरज़मीं
कविता

सरज़मीं

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** वो मेरा है ये जमाने को बताना है सोहनी मैं महीवाल उसे बनाना है सजा सख्त पाई दिल लगाने की मोहब्बत के दर्द को यूँ छुपाना है वो ही मेरी शोख यादों में समाया है दिल की सरजमी पर उसे लाना है नजर न लगे कहीं बेदर्द जमाने की हर एक शय से बस उसे बचाना है स्वाति की बूँद का वो मोती सा है साँसों की तसबी में उसे पिरोना है कर न पाया इज़हार-ए-इश़्क कभी मुहब्बत भरा एक लुटा खजाना है मैं वो आँसू हूँ जो छलका ही नहीँ मेरा निगाहों को बस मुस्कुराना है वो मसीहा सारे जमाने भर का है उसकी बेवफाई से दिल लगाना है वो मेरे नाम की गहराई में छुपा है अधरों पर "मधु" उसे ही सजाना है परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
महादेव
स्तुति

महादेव

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** शिव शंभू हितकारी महादेव जटाओं में समा गंगा गले में रख नाग। चले विषधारी हरने कष्ट जगत के अनोखी छवि देखते सभी इनकी। ना रह पाता अछूता आराधना से इनकी नाम भोले भंडारी पल में जाते मान। सावन में बजते ढोल बजाते शंख पूजन करते शिवलिंग पर नर-नार। ओंकारेश्वर कष्टनिवारक विषधारी हटते कष्ट देख ना पाते तड़प लालायित रहते करने मदद। देखो जरा, लगा भस्म बाबा नंगे पांव आए हरने कष्ट भक्तों के, संग पार्वती मैया। विष अपना, रख सर्प, लगा भस्म उठा डमरू, ले त्रिशूल निकल पड़े नागेश्वर। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ व...
बोलो पीर सहूँ मैं कब तक
कविता

बोलो पीर सहूँ मैं कब तक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बोलो पीर सहूँ मैं कब तक, तुम्हें दया नहिं आती। पेड़ काट कर गिरा रहे हो, फटती मेरी छाती। धरती माता बोल रही हूँ, अपना दर्द सुनाती। माँ का सीना छलनी करते, तुझे लाज नहिं आती। तेरा बचपन मुझ पर बीता, अब यौवन पाया है। अपने आँचल तुझे दुलारा, दी शीतल छाया है। पर्वत सब उरोज हैं मेरे, बनी वृक्ष से काया। माँ का कर्ज आज तक तूने, क्यों कर नहीं चुकाया? सभी जीव छाया पाते हैं, कोयल मधुरिम गाती। जब कटते हैं वृक्ष धरा से, छलनी होती छाती। ओ निष्ठुर, बेदर्दी मानव, पीर बढ़ा मत मेरी। कब तक पीर सहूँ मैं बोलो? माता हूँ मैं तेरी। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निव...
इंसान से इंसानियत खो गया है
कविता

इंसान से इंसानियत खो गया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** परहित परोपकार की बातें करना समाज के लिए जीना और मरना सब कुछ खोखली बातें हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है अच्छे-बुरे की अब परख नही है जीने-मरने मे कोई फरक नही है स्वार्थी अब हर इंसान हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है प्यार-मोहब्बत सब झूठी बातें बेईमानी मे कटती है अब रातें दगा देना,नामे वफा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है पल-पल बदलती जग की तस्वीर जाने लिखने वाला सबकी तकदीर जीवन कोई फलसफा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है विकास का क्या असर हो गया है मानव से मानवता ही खो गया है क्यूँ इंसान अब ऐसा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्ष...
वज़न
कविता

वज़न

रंजना श्रीवास्तव नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की हिम्मत रखती हूँ, हवाओं के विपरीत चलने का जिगर रखती हूँ, इसलिए मैं भीड़ में अलग दिखती हूँ। खटकता है मेरा आत्मविश्वास और तड़पाती है मेरी ईमानदारी व सच्चाई, नहीं करने देती मनमानी। रोड़ा बन जाता है मेरा हुनर, परेशान करती है लोगों के बीच मेरी पहचान। हाँ !! अकेली ही स्वयं में पर्याप्त हूँ। भीतर बसा हुआ है मेरे भरा पूरा ज़माना। दिल से खिलखिलाती हूँ, बाँटती हूँ मुस्कुराहटें और खुशियाँ, पहचानते हैं कुछ काबिल लोग मेरी काबिलियत को। बस यही... बुरा लगता है कौरवों को और शकुनि के साथ मिलकर रचने लगते हैं चक्रव्यूह। स्वयं में कितने कमजोर हैं!! पैने झूठे वारों से खत्म कर देना चाहते हैं मिलकर मेरे आत्मविश्वास को, मेरे वजूद को। चतुरंगिणी सेना घेर लेती है चारों ओर से मुझे। अक्सर....
दिल में आया है एक ख्याल सुनहरा सुनहरा
कविता

दिल में आया है एक ख्याल सुनहरा सुनहरा

अलका जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल में आया है एक ख्याल सुनहरा सुनहरा निजी गुलशन में लगाए एक अंगूर की डाल खट्टी मीठी याने तेरे नाम की हरिभरी बेल दिल में आया है एक ख्याल सुनहरा सुनहरा गलि मे लगा डालूं एक चंदन का पेड़ सावन में ओर प्राप्त करु भीनी-भीनी तेरे बदन सी खुशबू दिल में आया है एक ख्याल सुनहरा सुनहरा सा किसी गुलशन में लगाए जाये गुलाब के फूल यार प्राप्त करूं गुलाब यानी तेरे लब से सुर्ख लाल गुल दिल में आया है एक ख्याल सुनहरा सुनहरा सा किसी दिन कराया जाये मुकाबला हुस्न और गुल में शायद गुल जीते जाये हुस्न भी है दावेदार मुकाबले मे सुनंदरता के इस मुकाबले में टक्कर कांटे की होगी सुनो चाहे हुस्न जीते या गुलशन के फूल दोनों मेरे अपने हुस्न और गुलशन हिफाज़त करना फर्ज दिवानो का पर्यावरण जब रक्षा होगी समाज की हिफाज़त होगी ...
प्रकृति संरक्षण
कविता

प्रकृति संरक्षण

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** प्रकृति का दोहन करते हो, और पर्यावरण दिवस मनाते हो, हम सबको मिलकर, प्रकृति संरक्षण करना है, पेड़-पौधे नित नव लगाना हैं, पेड़ काटने से रोकना हैं, वायु प्रदूषण रोकना हैं, व्यर्थ जल बहने से रोकना हैं, जल संरक्षण का संकल्प लेना हैं। अधिक से अधिक पेड़ लगाना हैं, जन्मदिन पर एक पेड़ अवशय लगाना हैं, यही नारा चहुंओर फैला कर, जन-जन को जागृत करना है, वैवाहिक वर्षगांठ पर, एक पौधा उपहार में भेट देना है, वायु प्रदूषण रोकना हैं, अपने मित्र के जन्मदिन पर, एक पौधा अवश्य भेंट करना है, जो भी फल खाएं, उसके बीज संभाल कर रखना हैं। जब कभी अपने शहर से बाहर जाएं, तो रास्ते में किनारे पर, फेंकते जाना है, अपनी कॉलोनी और पूरे मोहल्ले में संगठित हो, अधिक से अधिक को पौधे लगाना हैं। सारे भारतवासियों क...
पिता
कविता

पिता

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां धरती और पिता आकाश है, टिमटिमाते तारों का विश्वास है, पिता रब की,सच्ची अरदास है, जीवन में इनकी जगह, खास है। टूटे हुए मनोबल का सहारा हैं, ऊंगली पकड़ चलना सीखाते है, मां वर्तमान को ही संवारती हैं, पिता भविष्य की चिंता करते है। पिता पतझड़ में भी मधुमास है, माता-पिता ही हमारे भगवान है, जिस घर में पिता का साया न हो वह घर नहीं, उजड़ा रेगिस्तान है। पिता साथ हैं तो दुनिया रंगीन है, वर्ना जीवन में, उदासी के साए हैं, रिश्ते, व्यवहार सब पिता से ही हैं, वर्ना तो सारे अपने भी, पराए हैं। पिता तो बस नाव की पतवार है, उनसे होते सारे सपने साकार है, पिता ही परिवार का पालनहार है वही सिखाते सभ्यता, संस्कार है। पिता से ही बच्चों की पहचान है, मॉ के मंगलसूत्र का वही शान है, हिमालय बनकर रक्षा करते सदा उनसे ह...