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पद्य

वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा
चौपाई

वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा

कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** दोहा :- जगहित जलता दीप सम, सहज, मृदुल व्यवहार। शिक्षक बनता है सदा, ज्ञान सृजन आधार।। चौपाई :- जयति जगत के ज्ञान प्रभाकर। शिक्षक तमहर श्री सुखसागर।।-१ वंदनीय विद्या विज्ञापक। अभिनंदन अधिगुण अध्यापक।।-२ आप राष्ट्र के भाग्य विधाता। सदा सर्वहित ज्ञान प्रदाता।।-३ जन-जन जीवनदायी तरुवर। प्रथम पूज्य हैं सदैव गुरुवर।।-४ शिक्षित शिष्ट शुभंकर शिक्षक। विज्ञ विवेचक विनयी वीक्षक।।-५ अतुलित आदर के अधिकारी। उर उदार उपनत उपहारी।।-६ लघुता के हो लौकिक लक्षक। सजग, सचेतक सत हित रक्षक।।-७ वेदित विद्यावान विशोभित। प्रज्ञापति हो, कहाँ प्रलोभित?-८ अंतर्दर्शी हैं आप अभीक्षक। प्रमुख प्रबोधी प्रबुध परीक्षक।।-९ विद्याधिप विभु विषय विशारद। उच्चशिखर चमके यश पारद।।-१० विश्व प्रतिष्ठित प्रबलक पारस। ढुनमुनिया मति के दृढ़ ढ...
धागों का त्योहार
गीत

धागों का त्योहार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष। कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।। उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास। सावन के इस माह में, आया है विश्वास।। गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग। रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।। राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत। गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।। नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...
सावन की घटा
कविता

सावन की घटा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहले सावन की संध्या आंचल प्रसार रही रजनीगंधा वृक्षों के झुरमुट में खगवृद बोलत पी पुकारते मधुर स्वर में गाते। दामिनी दमक रही चम्पई शाम है पहले सावन के घीर आऐ मेघा है लहर रही मंद पवन जैसे कुछ गाती नीलकण की बौछारें सहम-सहम जाती। कन्दुभी वर्ण सजा मेघ के भाल पर नाच रहे गा रहे मयूर मधुरताल पर तरु, तड़ाग पल्लवित है चंपई शाम आ रही पहले सावन की घटा बार-बार छा रही।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इं...
रक्षाबंधन तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई
आंचलिक बोली, कविता

रक्षाबंधन तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ के भूंइया म, आथे जी तिहार। रक्षासूत्र म बंध जाथे, भाई बहन के प्यार।। माथा म तिलक लगाके, हाथ म बंधाय डोर। बहन के सुरक्षा खातिर, भइया लगाय जोर।। एक दुसर मीठा खिलाके, देवत हे उपहार। चरण छुके आशीष मांगे, बने प्रेम व्यवहार।। परब सावन महीना म, आथे साल तिहार। संस्कृति ल संवारे बर, करत हे घर परिवार।। युवा भाई मिलजुल के, करव बेटी उद्धार। बेटी के ईही रुप हरे, जानव ए अधिकार।। वसुंधरा के पहुंचे ले, जगत म उड़गे शोर।। चंदा मामा खुश होगे, बांधिस प्रीत के डोर। मंगलकामना पठोवत, श्रवण करत पुकार। रक्षाबंधन के तिहार म, लाओ खुशी बहार।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
दीवारें पत्थर की
गीत

दीवारें पत्थर की

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ हथौड़ी ले शिक्षा की, छेनी साथ हुनर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।। जकड़े थे कोमल भावों पर, रूढ़िवाद के बंधन। हाथ-पाँव चक्की-चूल्हे में, झुलसे बनकर ईंधन। परंपराओं की कैंची ने, बचपन से पर काटे, पाषाणी सदियों ने इनके, सुनें न अब तक क्रंदन।। प्रीति युक्त जिनके चरित्र को, पुड़िया कहा जहर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।१ कसी कसौटी पर छलना के, आदिम युग से नारी। वत्सल पर धधकाई जग ने, लांछन की चिनगारी। धरा तुल्य उपकारी जिसके, भाव रहे हो उर्वर, हुए नहीं संतुष्ट भोग कर, रागी स्वेच्छाचारी।। हर पड़ाव पर बनी निशाना, व्यंग्य युक्त नश्तर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।२ उठ पौरुष के अहंकार ने, पग-पग डाले रोड़े। गाँठ प्रीति की जिनसे बाँधी, ताने सबने कोड़े...
टूटा दिल
कविता

टूटा दिल

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** दिल टूटा है, मैं टूटी हु, साथ देने वाला कोई नही। सपने टूटे हैं, अपने रूठे है समझने वाला कोई नही। जिसे समझा था अपना सबकुछ, वो ही साथ छोड़ गया। इस भीड़ मैं न जाने कहा वो खो गया। अरे...ये क्या ? उसे और कोई मिल गया, बेचारा दिल...फिर से टूट गया। तुमको देखती थी तो, ऐसा लगता था तुम सिर्फ मेरे हो... अब तुम्हें देखती हु तो, लगता हैं कितनी पागल थी मैं... अब तुम्हें इस दिल से निकाल दूँगी मैं अपने आप को संभाल लुंगी मैं, बेशक... ये सब इतना आसान नहीं है फ़िर भी, तुम्हारी खुशी के लिए सब कर लूंगी मैं। प्यार का इजहार करने वाली थी मैं अच्छा हुआ तुमने मेरी आँखे खोल दी, अब ये उषा पहले वाली उषा नहीं रहेगी, MSG क्या ? मेरे नाम के नोटिफिकेशन के लिए भी तरस जाओगे।... परिचय :- उषा ...
कुछ.. ही सही
कविता

कुछ.. ही सही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला ...... और मिला मुझको कुछ भी नहीं। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । जीवन के सफर में जब निकले कभी। किनारों की तरह चले थे सभी। साथ तेरा दो कदमों का ही सही। तू चला..... और मिली मुझको मंजिल नही। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला... और मिला मुझको कुछ भी नहीं। सब किस्से मोहब्बत के अधूरे सही। है मोहब्बत तुमसे इतना ही सही। पूरी न हो सकी...चल अधूरी सही।। सब मिला... और फिर भी कुछ भी नहीं।। चाहतों के समंदर में तैरा था कभी आसमानों को किस्सों में उतारा कभी। नाम तेरा लेकर जी लेगें हम। तू मिला पूरे दिल से कभी भी नहीं। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला और मिला मुझको कुछ भी नहीं।। जिंदगी दुआओं से मिलती नहीं। दे बददुआएं कि जान भी निकलती नहीं। जिस कदर अजनबी करके ...
मेरा सच्चा साथी
कविता

मेरा सच्चा साथी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा सच्चा साथी माता और पिता है, जिसने पालन-पोषण कर बड़ा किया। मेरा सच्चा साथी महाज्ञानी गुरुदेव है, जिसने मुझे काबिल बनने ज्ञान दिया।। मेरा सच्चा साथी शिक्षामणी पुस्तक है, जिसे पढ़कर मैंने सफलता प्राप्त की। मेरा सच्चा साथी हर वो नेक इंसान है, जिसने दुःख के समय में मेरी मदद की।। मेरा सच्चा साथी शरीर के प्रत्येक अंग है, जो मुझे कर्म करने के लिए किया प्रेरित। मेरा सच्चा साथी हमउम्र के सभी मित्र है, जो गुणों और अवगुणों को किये चित्रित।। सच्चा साथी भगवान कृष्ण और सुदामा थे, केवल नाम सुनकर ही प्रभु दौड़े चले आये। विप्र के मनोकामना पूरी हुई, खुशियाँ मिली, सखा को भाव विभोर होकर गले से लगाये।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ...
राष्ट्रप्रेम की कुंडलिया
कुण्डलियाँ

राष्ट्रप्रेम की कुंडलिया

कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** मातृभूमि चंदन है माटी यहाँ, तिलक लगाएँ भाल। जोड़ें मन संवेदना, रखिए खून उबाल।। रखिए खून उबाल, देशहित को अपनाएँ। गर चाहें अधिकार, कर्म पहले दिखलाएँ।। कहे अमित यह आज, हृदय से हो अभिनंदन। अपना भारत देश, यहाँ की माटी चंदन।। तिरंगा- १ रंग तिरंगा देखिए, भारत की है शान। वैभव पूरे देश का, जनगण मन की आन।। जनगण मन की आन, एकता का यह दर्पण। एक सूत्र में राष्ट्र, करें सब प्राण समर्पण।। कहे अमित यह आज, गगन दिखता सतरंगा। सदा उठाकर भाल, करें हम नमन तिरंगा।। तिरंगा- २ ध्वजा तिरंगा देखकर, अरिदल भी घबराय। साथ हवा के शान से, झंडा जब लहराय।। झंडा जब लहराय, गगन में अतिशय फर-फर। केसरिया को देख, शत्रु सब काँपे थर-थर।। कहे अमित यह आज, लगे रिपु कीट पतंगा। आन-बान यह शान, राष्ट्र की ध्वजा तिरंगा।। तिरंगा- ३ ...
सृष्टि का आधार नारी
स्तुति

सृष्टि का आधार नारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नारी की पूजा करिए सब, वह परमेश्वर का वरदान। तन-मन करती सदा समर्पित, जननी प्रज्ञा को दो मान।। है आधार सृष्टि की नारी, करो सदा उसका सत्कार। दुर्गा काली है रणचंडी, नारी देवी का अवतार।। रानी लक्ष्मीबाई साहस, पराक्रमी दुर्गा पहचान। त्यागमूर्ति है वह करुणा की, बसती बच्चों में है जान।। जगजननी माता है नारी, पावन गंगा की है धार। प्रेम त्याग की वह है मूरत, जीवन का अनुपम शृंगार।। नारी धरती का है गौरव, देती सबको दुर्लभ ज्ञान। शत- शत नमन करो नारी को, नित करना उसका जयगान।। लक्ष्मी देवी नारी घर की, नहीं रही वह अबला आज। पुरुषों से भी वह है बढ़कर, उससे उन्नत लोक समाज।। जान देशरक्षा में देतीं , करती रहती हैं बलिदान। राह दिखाती है विकास की, सत्कर्मों की लौकिक खान।। चीर-हरण रोको नारी का, करते क्यों ह...
शिव महिमा
स्तुति

शिव महिमा

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** तुम ही आदि अनादि अनन्त हो घट-घट वासी सर्व दिग् दिगन्त हो गौरा को अमर कथा गुहा में सुनाये उभय कपोतों को भी सहज अमर बनाये सर्वत्र व्याप्त अविनाशी समान्त हो त्रिनेत्र धारी अविकल व प्रशान्त हो सहज प्रसन्न होते, हो अति ही भोले अंग भस्म रमाते, हो गले सर्प डाले सर्व हितकारी शिव सर्वत्र रमन्त हो त्रिशूलधारी डम-डम डमरू बजन्त हो हलाहल पीकर नीलकंठ कहलाये जटा बाँध गंगा, गंगाधर कहलाये भक्तन हितकारी, सदा सर्व सुखन्त हो उर्ध्व अध विराजित, नितान्त एकान्त हो। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य ...
नव भारत का निर्माण करें
कविता

नव भारत का निर्माण करें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** युवा बाल और वृद्ध सभी मिल, नव भारत का निर्माण करें श्रृंगी ऋषि और भरद्वाज के भारत का उद्धार करें कश्यप ऋषि की कश्मीरी को, आर्यावर्त की संस्कृति को विष्णु शर्मा के पंचतंत्र को, नया वितान प्रदान करें, नव भारत का निर्माण करें। वेद ,शास्त्र, उपनिषद, पुराण, भरतमुनि का नाट्य शास्त्र आदिनाथ की पुरा परम्परा, नए भारत का परिधान बनें चरक, च्यवन और सुश्रुत, आर्यभट्ट, पुन भारत के प्राण बनें नागार्जुन, बौधायन, कणाद का, हम फिर से सम्मान करें, नव भारत का निर्माण करें। खड़ा हिमालय पावन धरती पर, गंगा यमुना औ रेवा तट पर व्यास, सरस्वती, कृष्णा, कावेरी, की सीमाओं का विस्तार करें जय जय जय भारत की सेना, है भारत की प्रस्तर प्रहरी वह भारत का अक्षुण्ण बल है, उन्हें नमन हम आज करें, नव भारत का निर्माण करें। अपन...
मुसाफिर
कविता

मुसाफिर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जो व्यक्ति कर रहा होता है सफर। उसे ही हम कहते है मुसाफिर। ****** इस दुनिया में हम मुसाफिर है मगर हमने यहां के स्थायी निवासी की गलत फहमी पाल ली है। ****** यदि अच्छा मिल जाता हैं हमसफर तो बहुत अच्छे से कटता है मुसाफिर का सफर। ****** अपने सफर को खुशनुमा बनाये, जब भी बने मुसाफिर समान कम ले जाये। ****** मंजिल मिल जाने पर पूरा हो जाता हैं सफर फिर चलने वाला नहीं होता मुसाफिर। ****** थक सा गया हूं जिंदगी के सफर में, अब मुझसे मुसाफिरी नहीं होती । ****** इस जिंदगी में कभी खुशी कभी गम आते है, परंतु मुसाफिर हर दौर में मुस्कुराते हैं। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
भीगता मन-दर्पण
कविता

भीगता मन-दर्पण

डॉ. आनन्द किशोर मौजपुर, नॉर्थ (दिल्ली) ******************** फिर से गर्मी में ठंडक आई। आषाढ़ की बारिश ख़ुशियाँ लाई।। पिघला जाए बारिश में ये तन, खिलता जाए है विरहन का मन। भीग रहा है ये मन का दर्पण, मेघों ने बूँदें हैं बरसाई।। फिर से गर्मी में ठंडक आई। आषाढ़ की बारिश ख़ुशियाँ लाई।। गर्मी ने हालत पतली कर दी, कब से तपती है मन की धरती। मन की ज़मीन है प्यासी प्यासी, मन में फिर से हरियाली छाई।। मन का दर्पण है सीला सीला, चिंहुक उठा है मन ये अलबेला। कितनी अद्भुत वर्षा की लीला, आषाढ़ की बारिश हंसती आई।। फिर से गर्मी में ठंडक आई। आषाढ़ की बारिश ख़ुशियाँ लाई।। परिचय :-  डॉ. आनन्द किशोर जन्मतिथि : ०४/१२/१९६२ शिक्षा : एम.बी.बी.एस (दिल्ली) निवासी : मौजपुर, नॉर्थ (दिल्ली) प्रकाशन : एकल ग़ज़ल संग्रह- 'मोहब्बत हो गई है', साझा ग़ज़ल संग्रह - ४५ प्राप्त पुरस्कार/सम्मान : (१) बेकल उत्...
नया काम नई शान
कविता

नया काम नई शान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नए काम में नई शान से, सभी उत्साह जगाते हैं अक्ल मेहनत साथ इंडिया, अच्छी दुकान चलाते हैं पर शब्दों की जादूगरी से, यश सम्मान भी पाते हैं कहीं तकदीर वश घूरे से, सोना भी उपजाते हैं हंसते खेलते जो दिखते, गलियों में चौराहों में, अंतर्मन उनका घिरा रहे, निहित अवसाद आहों में, सेवा सृजन ऊर्जा उमंग, अंतर्मन की चाहों में, हंसते हुए ही जो मिलते, अति व्यस्त ही पाते हैं पर शब्दों की जादूगरी से, यश सम्मान भी पाते हैं कहीं तकदीर वश घूरे से, सोना भी उपजाते हैं रोजी दिहाड़ी मांगते वो, सारे मजदूर परखिए अक्सर काम लगाना चाहो, रंग ढंग आप देखिए गुजरबसर के साधन सारे, ताकत में आय समझिए छोटी बड़ी अपनी जरूरत, सब पूरी कर जाते हैं पर शब्दों की जादूगरी से, यश सम्मान भी पाते हैं कहीं तकदीर वश घूरे से, सोना भी उपजाते ह...
हरियाली
कविता

हरियाली

सुनील कुमार अवधिया डिण्डौरी (मध्य प्रदेश) ******************** चारों और घटा छाई, बरस रहा है पानी। अति सुंदर छटा वनों में छाई, दिख रही हरियाली।। कितनी सुंदर शोभा छाई, मधुर-मधुर निराली। चारों ओर घटा छाई, अति सुंदर हरियाली।। चहचहा रही मधुर गौरैया, हरियाली की रानी। सूखे पेड़ हरे हो गए, चारों ओर घनी छाई हरियाली।। नदी नालों में बह रहा है, देखो कितना पानी। वर्षा की बूंदों से धरा, हो गई खूबसुहानी।। खेतों में हलचल रहे, दिखे जहां हरियाली। रिमझिम-रिमझिम बरस रहा है पानी, सावन की रितु है आयी मस्तानी।। मनमोर नाच रहा है बारिश में मेरा, चुग रही चिड़िया आंगन में दानापानी।। घुमड़़-घुमड़़ के बादल छाये। दामनि दमक रही दमकाये।। मोर पपीहा नाघ रहे है। आनंदित हो सब हरषाये।। सावन की रितु है मस्तानी। सबको लगे बड़़ी सुहानी।। परिचय :  सुनील कुमार अवधिया 'मुक्तानिल' निवासी : गाड़ा...
संस्कृति
कविता

संस्कृति

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** संस्कृति शब्द में ही, संस्कृति का अर्थ समाया है, भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। खाने से लेकर पहनावे तक, सब में है विभिन्नता, त्योहारों की तो बात है निराली, भाषा की तो कहावत है जानी, 'कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी।' भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। जाति, धर्म का भेद न जाना, सबको अपना है माना, मान सम्मान में सबसे ऊपर, पधारो नी म्हारे "देस" कहकर सबको अपनी ओर बुलाएं, ऐसे भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
समता की बातें
कविता

समता की बातें

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में नारी अपने ख्वाबों का आकाश चुने पाने को अपनी हर मंजिल अपना दृढ़ विश्वास बुने। जीवन की हर खुशियों पर उसको नित अधिकार मिले बाबुल हो या आंगन प्रिय का आदर और सम्मान मिले। सूनी राहों पर बैठे गीदड़ चरित्र हीन तिनका भर हैं जो दंभ भरे अपने पौरुष का क्या सच में भी वो नर हैं? कदम-कदम पर अबला को लूट रहे जो अभिमानी दुःशासन से दानव देखो राह सरे करते मनमानी। जन्मी बेटी है बोझ बढ़ेगा ये सोच नहीं बर्बादी है करते हैं जो गर्भ में हत्या परिजन वे भी अपराधी हैं। नारी से ही जन्मा नर है भूल रहा क्यों ये सच्चाई माँ, बहन, पत्नी और बेटी संग रही बनकर परछाई। उसे भी हक है पंख फैलाए आसमान में उड़ने का पाने को बेटों सा मान सदा अपनों से भी लड़ने का। दिल्ली हो या राहें मणिपुर की खौफ न हो नारी के मन में दहेज प्रताड़न...
सोशल मीडिया वाला प्यार
कविता

सोशल मीडिया वाला प्यार

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** ऑनलाइन मुलाकात फिर नंबर मिला, बात हुई ढेरो फिर मिलने की जगी आस......! बारिस का दौर मिलने की चाह, तड़प थी इतनी नजरो को था उनका इंतजार......! चाय पकौड़े छोड़कर मोहब्बत की भूख, चढ़ा जो नशा हमे उतरता वो कहा जल्दी......! प्यार हो जाये तो बारिस और ठंड लगती अच्छी, वो दिन भी आया जब चलकर वो आयी......! काश बारिस भी आती तो मोहब्बत हमारी निखर जाती, खैर मिलकर कुछ उसने और सब कुछ हमने कहा......! नही थी आगे और बात की जरूरत, देखकर उसकी उम्र हमे निकलना ही सही लगा......! फिर पहुँचे दोस्तो की महफ़िल दर्द हमारा बाहर आया बिन देखे मोहब्बत न करना, जिसको कहाँ था बाबू-सोना वो निकली मोहल्ले की एक अम्मा......!! परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रक...
खुद शर्म आज शर्मिंदा है
कविता

खुद शर्म आज शर्मिंदा है

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** विपक्ष का मुद्दा मणिपुर सरकार का राजस्थान सब राज नेताओं ने मील के कर दिया इस देश का बंटाधार।। जनता गयी तेल लगाने, जिसे जीना है जीए, जिसे मरना है मर जाए बस मेरी प्यारी कुर्सी कभी ना जाए बस यही हमारी तमन्ना और यही हमारा एजेंडा भाई जो कुछ हो रहा है उस पर तो जनता शर्मिंदा है हम नही हम ने तो कब की शर्म बेच खाई तभी तो हम राजनेता है भले ही खुद शर्म आज शर्मिंदा हो हम बेशर्मो की तरह ही बयान बाजी करेंगे दुनिया मे भला कोन दूध का धुला है, जो हम पे आरोप धरेंगें जनता के सेवक बस कहने की बात है साहब असलियत मे तो हम सम्राटों के भी सम्राट है भला हमे काहे का डर दुनिया में नही बची अक्ल दो हमारा क्या दोष? जनता को नही समझ आती बात तो हम क्या करे हम सब तो कब से चीख-चीख कहे रहे है की हम झूठे मक्कार है बस...
मैं मुर्दों के शहर में रहती हूँ
कविता

मैं मुर्दों के शहर में रहती हूँ

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** मैं मुर्दों के शहर में रहती हूँ जहाँ सिर्फ़ आरोप और आरोप सिर्फ़ और सिर्फ़ इल्ज़ाम स्त्री मन क्या चाहता है कोई परवाह नहीं कोई इतना भी बुरा कैसे हो सकता है कोई पास फटके ही ना सिर्फ़ और सिर्फ़ आरोप दिमाग़ जैसे फट के कई टुकड़ों में विभाजित हो गया क्या क्या उम्मीद उस से सब बेकार जैसे वो सिर्फ़ एक सड़ी हुई बीमार लाश सिर्फ़ बदबूदार इतनी सड़न की जहाँ जायें सब जगह बीमारी फैला आयें वो इतनी बेबस है आज सबके हाथ में ज़ुबान रूपी पत्थर कैसे-कैसे कहाँ-कहाँ फेकें सबने खून के रिश्तें भी बेकार किसी को नहीं वो स्वीकार ऐसे में कहाँ वो जाएँ कहाँ अपना सिर छुपाये सबके लिए अब वो बेकार नहीं किसी को वो स्वीकार कोई तो, कहीं नहीं किसी का नामोनिशान जिसे वो हो एक प्रतिशत भी स्वीकार मरी हुई लाश सी पड़ी है, बदबू ही बदबू, कटे फटे अंग जमा हुआ...
नंदी
कविता

नंदी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** शिव है सत्य, नंदी हैं धर्म नंदी के बिन शिव अराधना है व्यर्थ नंदी को हमने छोड़ दिया, गौ वंशों का संहार किया भूख प्यास से तड़प तड़प, सड़कों पर दम तोड़ रहे ये कैसी पूजा है शिव की ये कैसे भक्त बने शिव के ??? बछड़ो को अधिकार है जीने का, नंदी बन पूजे जाने का कैसे कहलाएंगे सनातनी, अपनी ही संस्कृति भूल रहे !! नंदी की विह्वल पुकार सुन, दिल रोता पल प्रतिपल, इनके अश्रु विध्वंस बने, विकराल, प्रचंड, विनाश बने जो लील रहा है जन-जीवन ये आँसू वो सैलाब बने! हे मनुज उठो हे जन जागो, रोको ये ध्वंस, विनाश, प्रलय, मानव के भीतर दानव का अब उठ कर के संहार करो नव चेतना नव विज्ञान से संचित करो अनमोल है हैं ये नंदी ही नंदीश्वर हैं, यही साधना नील कंठ की, नंदी ही ना बच पाए जो कैसे होगा फिर शिव पूजन!! परि...
पर्यावरण के बनें हम पहरेदार
कविता

पर्यावरण के बनें हम पहरेदार

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** धरणी स्वच्छ हो, स्वच्छ हो अम्बर, हरियाली फैलाना है। पेड़-पौधों की करें सुरक्षा, हमें जागरूकता लाना है। पेड़-पौधों से हम सबकी, सांसें गतिमान है। आओ पेड़ लगाएं, इनसे ही हम सबका प्राण है। सांसों को सांसों से है जोड़ना, कुंठा की कड़ी को है तोड़ना। आओ मिलकर हम पेड़ लगाएं, धरा हरियाली कर जाएं। पड़ रही है सांसे कम, हो रहा है चहुंदिशी दंगल। हरा - भरा हो जंगल, तब हो पाएगा जीवन मंगल। यदि हर एक आदमी ख़ुद से एक-एक पेड़ लगा जाए। उनका जीवन हो सार्थक, जीवन सफल बना जावें। पर्यावरण के बनें हम पहरेदार, यही जीवन का आधार। इनसे मुंह ना मोड़े हम, नाता इनसे जोड़े हम। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ...
बढ़ती दुनिया
कविता

बढ़ती दुनिया

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आज का आधुनिक युग डिजीटल युग में बेहिसाब सा बदल गया बेहिसाब लोगों का बेहिसाब दैनिक कामकाज डिजीटल युग की प्रक्रियाओं में सरल कर रहा डिजीटल का भरोसा बढ़कर सम्पर्क अब खूब बढ़ सा रहा कामकाज का रूप बेहिसाब सबका एक नया अध्याय खड़ा कर रहा डिजीटल की दुनिया में कामकाज का नमूना खूब बदल गया शिक्षित क्या अशिक्षित हाथ से लिखने की आदत से हट रहा कामकाजी रूप को डिजीटल खूब कर रहा हाथों के कामकाज को विराम करने में भलाई समझ रहा डिजीटल के भरोसे दैनिक काम मानव खूब लगन से कर रहा कलम पकड़ने का मन प्रायः लोगो का नहीं रहा कागज में लिखने का प्रायःमन हट सा गया डिजीटल में मानव कामकाज का रूप खूब सरल करता ख़ुद स्मार्ट और डिजीटल कर रहा समय की बचत करता डिजीटल में मानव का सबसे सम्पर्क चंद मिनट में हो रहा रोजगार पर्यटन व्या...
हम प्रभु जी की कठपुतली हैं
भजन

हम प्रभु जी की कठपुतली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सबके जीवन के रक्षक हैं, कान्हा मुरली वाले। सदा बदलते धवल ज्योति में, जीवन के दिन काले। बीच भँवर में डोल रही है, हम भक्तों की नैया। तुम ही मेरे जीवन रक्षक, तुम ही नाव खिवैया। जीवन डोर हाथ है प्रभु के, प्रभु जी सदा बचाते। हम प्रभु जी की कठपुतली हैं, प्रभु जी हमें नचाते। भक्तों की जीवन नैया को, खेते स्वयं विधाता। भक्तों की रक्षा करने को, खुद रक्षक बन जाता। गज अरु ग्राह लड़े जल भीतर, अंत समय गज हारा। गज की रक्षा करने के हित, श्रीहरि बने सहारा। बन जाते हरि सबके रक्षक, करते सदा सुरक्षा। अपने भक्तों के जीवन की, हर पल करते रक्षा। रक्षक बनकर लखन लाल ने, चौदह बरस बिताए। मार दशानन, सिया सहित प्रभु, लौट अवधपुर आए। रक्षक बने, विभीषण के प्रभु, अपना दास बनाया। आया शरण विभीषण प्रभु की, लंकापति ...