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पद्य

मनुष्य
कविता

मनुष्य

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** यदि मनुष्य हो, मनुष्यता को अपनाओ धर्म अधर्म, रंग रूप, के भेदभाव को छोडो ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना हो, श्रेष्ठ बनकर दिखाओ! स्वयं के ज्ञान चक्षु को खोलो, धर्म की ध्वनि को पहचानो, निकल पडो इस दुरूह पथ पर पथिक बनकर, वहीं रुकना, मनुष्य की परिभाषा ढूँढने, जहां वो मिलेगा जीवों के रूप में, जो नहीं होगा घृणा, द्वेष, ईर्ष्या से संचित, वहीं मिलेगी परिभाषा तुम्हें मनुजता की, निश्चल प्रेम, स्नेह, करुणा भक्ति और बहुत कुछ, अज्ञानता के बोझ से निकल कर शाश्वत सत्य को पहचानो, यदि मानव बन मानवता को समझ सके, तो लौट आना परिपूर्ण बन अपनी उसी कुटिया में, जहाँ मिलेगा ईश्वर, अल्लाह, खुदा, हंसता-मुस्कराता, निश्चल प्रेम से सराबोर जीवों के रूप में तब कह देना तुम, सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना हो मनुष्य के रूप में!...
कथा आजादी की
कविता

कथा आजादी की

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** दो शतकों तक देश में रहकर मिटा न पाए जिसकी हस्ती भारत ही वह पुण्य धरा है जन-जन के जो हृदय में बसती।। लॉर्ड कैनिंग से जनरल डायर तक लूट रहे थे सब धन को पर तोड़ न पाया फिर भी कोई देश प्रेम भरे मन को।। सर्वस्व निछावर करने बैठे माँ के थे वो सच्चे लाल और झुका न पाया कोई फिरंगी उनके गर्वित, उन्नत भाल।। राजगुरु, सुखदेव, भगत और लाल, बाल या पाल सभी डटे रहे वो महासमर में कि गौरव वसुधा का न घटे कभी।। बहते लहू पर वतन की मिट्टी जोश दिलों में जगा रही थी देश प्रेम की ज्वाला मन में आजादी का भाव जगा रही थी।। जलियाँवाला बाग की घटना रोक न पाई इंकलाब को आँखों ने जो देख रखा था स्वतंत्र देश के पुण्य ख्वाब को।। आंदोलन की सतत आँधी ने अंग्रेजों की नींव हिला दी असहयोग और भारत छोड़ो ने उनको नानी याद दिला दी।। क्रांति का पर...
वीर शहीदों को नमन
कविता

वीर शहीदों को नमन

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** खून से लथपथ भीगकर, सह गए गोरों के अत्याचार। जुबां पर फिर भी एक ही नाम,जय हिन्द की पुकार।। रानी लक्ष्मी, दुर्गावती, अवंतिका, झलकारी ने ललकारी। मां भारती की धरा पर ऐसी वीरांगना थी दमदार।। आजाद, बोस, भगत, गुरु, सुखदेव, अशफ़ाक थे तेज तलवार। दासता की बेड़ी तोड़ने, आज़ादी के दीवानों की थी भरमार।। तन-मन-धन सब वार दिए, झेल गए गोलियों की बौछार। नमन है उन वीर शहीदों को, कोटिशः नमन है बारम्बार।। फांसी पर झूल गए हँसकर, भारत माता के लाल। हँसकर शीश कटा गए, झुकने न दिए हिन्द के भाल।। वीर शहीदों के साहस से, मिली है हमें आज़ादी। ऐसे वीर शहीदों का है, हम सब पर उपकार।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
मेरी माटी, मेरा देश
कविता

मेरी माटी, मेरा देश

नवनीत सेमवाल सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) ******************** कश्मीर तेरी, कन्याकुमारी तेरी, उत्तर-दक्षिण सब है तेरा तिरंगा लहराऊं सबसे पहले होगा मांगलिक दिन जब तेरा।। स्वतंत्र यहां अभिव्यक्ति है, बाईस इसकी शैली हैं, स्वदेशी पवित्र है लहू तेरा, धारा विदेशी मैली है।। माटी है मेरी, देश है मेरा, अभिमान मेरा, गर्व मेरा, करते क्यों नहीं जयघोष तेरी विचार उनसे पूछता हमारा।। ध्वज संहिता सीखाती हमें, लहराओ चाहे, चाह जितनी, ढंग तुम्हारा बताए मान का, माटी के प्रति श्रद्धा कितनी।। स्वीकार सबकी पुकार है, ललकार किसी की स्वीकार्य नहीं, भारत का दामन उज्ज्वल हो? प्रश्न यही आज विचार्य है।। परिचय :-  नवनीत सेमवाल निवास : सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
अच्छी आदत सब अपनाएं
कविता

अच्छी आदत सब अपनाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छी आदत हर दम अपने, जीवन में अपनायें। पा आशीषें वृद्ध जनों की, जीवन सफल बनायें। सूरज से, पहले जग जाना, प्रातः काल नहाना। गुरु जागें, तुम उनसे पहले, रोज-रोज, जग जाना। पूजा-पाठ, संग गृह कारज, जो, जीवन में करते। उनसे प्रभु प्रसीद होते हैं, खुशियाँ दामन भरते। गुरु पद सेवा, मंदिर जाना, जीवन में अपनायें। दुनिया देख,न विचलित हों हम, प्रभु से खैर मनायें। मात-पिता की सेवा करना, है अति प्यारी आदत। साक्षात भगवान समझना, सच्ची यही इबादत। दीन दुखी की सेवा करना, उनमें हिम्मत भरना। सबसे अच्छी आदत जग में, सब की सेवा करना। सेवा से,मन निर्मल होता, मैल दूर हो जाता। निर्मल मन जिसका हो जाता, वही प्रभु को पाता। लें संकल्प, सदा जीवन में, हम शुभ काम करेंगे। दीन-दुखी सबके जीवन में, उर आनंद भरेंगे। अ...
चलो इसमें पते की बात तो है
ग़ज़ल

चलो इसमें पते की बात तो है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलो इसमें पते की बात तो है। सफ़र में इक सहारा साथ तो है। ज़ुबाँ ये पूछती है इन लबों से, भला दिल में कहीं ईमान तो है। तबीयत है बड़ी नासाज़ लेक़िन, चलो इसमें ज़रा आराम तो है। हमारा है, हमेशा, ये जताकर, कि हमसे शख़्श वो नाराज़ तो है। बनाता है सभी जो काम अपने, किसी का सिर पे अपने हाथ तो है। कही वैसी, रही है सोच जैसी, हमारी शायरी बेबाक़ तो है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
केदारनाथ से विनती
भजन

केदारनाथ से विनती

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मुझे अपने दर पर बुलालो ओ बाबा, दरस को तेरे प्राण अटके हुए है। है माया ने घेरा, तुम्हारी है माया, उसी में है भटके और लटके हुए हैं। मुझे अपने दर... जिन्हें किया प्रेरित, वे पहुंचे तेरे दर, मगर मैं अभागा, पहुंच ही न पाया। दुबारा गए तेरे दर, भक्त काफी, मगर घोर बारिस, ने वापस भगाया। पसीजोगे एक दिन, तड़प पर मेरी तुम, इसी आस डोरी से लटके हुये हैं। मुझे अपने दर... तेरे ग्यारह लिंगों के, दर्शन गए हो, हुए ज्यों ही दर्शन, तो मन शांति पाया। लगा हूँ ,कई वर्षो से पंक्ति तेरी, मगर तुमने मेरे संदेशा, न पाया। किया काठमांडू, में तेरा शिवार्चन, उन्हें भी बताया, कि भटके हुए हैं। मुझे अपने दर... ७८ बरस होगये, मेरे पूरे, बुला लो जन्मदिन, तेरे दर मनाऊं। परम भाग्य जागेगा, मेरा उसी दिन, जिस दिन बाबा तेरे, मैं दर्शन को पाऊँ...
खपरैल में हीरे जड़े हैं
कविता

खपरैल में हीरे जड़े हैं

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़ें हें, क्या बताऊँ वो मेरी महनत की कमाई से चढ़े हें ! दफ्तर में बैठकर हवा नहीं खाई साहब, उनमें मेरे पसीने के कतरे पड़े हैं। उनके बंगले की छत लाखों की हें मगर मेरे घर के साये भी, मेरे लिये महंगे बड़े हैं। आप भी क्या दे सकोगे आपके बच्चों को सु:ख बरसात में तिरपाल लेकर सारी रात हम खड़े हें महंगि बहुत हैं मेरे घर की, यह कच्ची जमीन क्या कहूँ जिसमें मेरे अनगिनत आंसू पड़े हैं। हौसलों से हैं खड़ी दीवारें मेरे घर की जनाब बल्लियों पर चारों तरफ टाट के फट्टे चढ़े हैं। किसी बड़े होटल से भी, महंगे निवाले हें मेरे जिनको पाने के लिये, कीचड़ में मेरे कपड़े भिड़े हैं। क्या मोल लगाओगे मेरे बच्चों की, एक मुस्कान का ये आपकी दिखावटी मुस्कान से, बिल्कुल परे हैं। मेंरे घर के खपरैल में हीरे जड़े हैं, ...
यह कैसी है आजादी?
कविता

यह कैसी है आजादी?

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** नारी घर से निकल नहीं सकती, शातिर भेड़िये ताक रहे। उल्लू और चमगादड़, देकर संदेश कोटर से झाँक रहे।। सुख-चैन और नींद को छीनने, गली-गली घूमते हैं पापी। बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी? कोई दहेज के लिए प्रताड़ित होकर, जल रही हैं आग में? जुल्म और सितम को सहना, लिखा है नारियों के भाग में।। कम उम्र में ही कर दी जाती है जोर-जबरदस्ती से शादी। बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी? शराबी पति शेर बन दहाड़ रहे, पत्नी को समझकर बकरी। दुःख के पलड़े में झूल रही जिंदगी, नरक की तौल-तखरी।। व्याकुल मन की चीख-पुकार अब खोल रही द्वार बर्बादी। बेटियाँ सुरक्षित नहीं है भारत में, यह कैसी है आजादी? प्राचीन काल से ही गौरव नारी हुई थी शोषण का शिकार। अब दुर्गा बन कलयुगी दानव महिषासुर का करो संहा...
आजादी पाने को
कविता

आजादी पाने को

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आजादी पाने को देशवासियों की ताकत कभी नहीं थी डगमगाई देश की खातिर लड़ने को देशवासियो ने क्रांति बढ़ाई आजादी की एकता आई देशवासी लड़े आजादी की लम्बी लड़ाई।। देश की खातिर मर मिटने की देशवासियो ने हिम्मत बनाई हौसले बढ़ाकर लड़ने की देशवासियों ने सचमुच कसम खाई और लडने की ताकत दिखलाई।। देश के हर कोने में जागरूकता देशवासी ने खूब फैलाई गुलामी की लड़ाई में बुनियाद मजबूत बनाई कंधा से कंधा मिलाया देशवासियों में नया जोश आया आश्चर्यजनक हिम्मत आई मन मस्तिष्क बाजुओं में गुलामी से मुक्त होने की अटल जिद्द चली आई अंग्रेजो के खिलाफ कमजोर नहीं कामयाबी की राह मजबूत बनाई।। गुलामी से आजादी पाने की कूट -कूट भरी थी अद्भुत शक्ति कठिन डगर कठिन सफर थी वो घड़ियां चारो पहर समस्या थी तमाम विचारधारा थी देशवासियों में समान ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो झोंक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है शिकार मानसिक-शारीरिक प्रताड़नाओं और अपने परायों से बलात्कार की हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता संस्कृति ...
मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा
कविता

मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा। दर्द मेरे जख्मों का होगा तेरा अल्फाज होगा।। तेरी बेवफाई पर कई सवाल उठेंगे । भरी महफिल में मैं तुझे दोषी बनाऊंगा।। न तेरे पास फिर इसका कोई जवाब होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। यह बेरुखी यह अकड़पन सब धरी रह जाएंगी। बस याद मेरी तुझे रात भर सताएगी।। अकेले में मेरा तकिया भी न तेरा हमराज होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। हम तो नजाकत और सब्र के सागर में डूबे हैं। बता तूने कब मनाया है जब भी हम रूठे हैं।। मरते दम तक भी तुझसे मनाए जाने का ख्वाब होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। बस और ज्यादा जख्मों को कुरेद कर क्या कहूं। अब कलम श्याही के तौर पर मांगती है लहू।। जाने से पहले तेरी यादों की ओढ़नी मेरा लिबाज होगा...
बोली
आंचलिक बोली, कविता

बोली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली झिनकर भरोसा के सबो बोलहि गुरतुर बोली, कोनो कस्सा बोलहि, कोनो गुरतुर बोलहि, कोनो जहर मौहरा कस बोलहि, त कोनो नुनछुर बोलहि, पढ़हे लिखे मनखे ले मत पालव उम्मीद, के गाबेच करहि मीठ-मीठ गीत, पढ़ेच होय ले का होही, जात के गरभ म अतका घमंड हे जागतेच रइही कभू नई सोही, एक ठीन बेरा रहिस रिस्ता नता अनुसार सबो मीठ बोलय, मीत मितान मन तो गोठियाय के पहिली मुंहे म सक्कर ल घोलय, फेर आज सब नंदावत हे, गियां, महापरसाद ल छोड़ संगी दाई, ददा, भाई तक ल भुलावत हें, कहां गइस मया अउ कहां गइस दया, आज सबो हे सुवारथ खातिर सिरिफ बासी खया, सत ल बताय बेरा चिचियाथें, अउ मीठ बोली म चेता के धमकाथें, मोला तो कोनो नई दिखत हें बिन सुवारथ के मीठ बोलवा, बोली के दोस नई हे आज सबो एके रद्दा म रेंगत हें ब्यवह...
भारत का इतिहास
कविता

भारत का इतिहास

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कभी हम भारतवासियों ने एक, सपना देखा था,चंद्रमॉं पर तिरंगा फहराना, ये भारतीयों का सपना आज पूर्ण हुआ। तेईस अगस्त दो हजार तेईस संध्याकाल। चंद्रयान-तीन चॉंद के धरातल पर आया। भारत में चहुंओर और खुशियां लाया। भारतवासियों के उर अपार आनंद छाया। भारत में नव इतिहास रचाया। सकल विश्व में भारत का सिर गर्व से ऊंचा करवाया। आज अतीत में देखा स्वप्न पूर्ण हुआ। इसरो के वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान, इन सभी को देते भारतीय हार्दिक बधाई। सारे विश्व को चौका दिया दक्षिण ध्रुव पर, विक्रम को कुशलतापूर्वक पहुॅंचा कर। अब तो हम चाॉंद पर झंडा फहराकर, जन-गण-मन राष्ट्रगान गाऍंगे, राष्ट्रगीत वंदेमातरम गाऍंगे। जय हिंद,जय हिंद गाऍंगे। भारत विश्व गुरु कहलायेगा। भारत की सफलता से हम सब हर्षाऍंगे। हम सभी भारतवासी उ...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** रिमझिम सावन की है फुहार, रक्षाबंधन की है पावन त्यौहार। सज-धज कर अब भाई बैठे है तैयार, बहना बंधेगे राखी और मिलेगे उपहार।। प्रेम-प्यार स्नेह संग खुशियां मिले अपार, रक्षाबंधन अटूट विश्वास आशीष और दुलार।। कच्चे धागे बांध प्रीत की है संचार, पावन सा है राखी का त्यौहार।। जिनकी नही है बहना वो दुखी है अपार, सावन की झड़ी और भाई- बहन का प्यार।। राधा की उम्मीद और कान्हा का प्यार, मुबारक हो आप सभी को रक्षाबंधन का त्यौहार।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रका...
चलो चांद की ओर
हास्य

चलो चांद की ओर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये क्या कर रहे हो यार अभी-अभी तो चंद्रयान पहुँचा ही है और आपके मुंह में भी पानी आने लगा, कम से कम कुछ सभ्यता सीखो, मानवता दिखाओ। अभी थोड़ा इंतजार तो करो अपने सब्र का जिगरा तो दिखाओ। अभी चंद्रयान को ही मामा की आवभगत का भरपूर आनंद तो लेने तो, मामा के बात व्यवहार औकात का कुछ पता तो लगने दो, इतना न हड़बड़ाओ, नग्नता पर न उतर आओ अपनी धरती मां का अपमान तो न कराओ इतना भुक्खड़ हो ये चंदा मामा से छिपाओ शरीफ भांजे बनकर तो दिखाओ। क्या पता मामा का रहन सहन घर बार कैसा है? इतना पता तो लगने दो चंद्रयान की चिट्ठी तार, स्क्रीन शॉट तो आने दो मामा को भी इतना तो मौका दो कि वे हमारे खाने पीने रहने का इंतजाम तो कर सकें। ऐसी भी जल्दबाजी न करो कि हमें बेशर्म मानकर रुठ जायें खाने-पीने के नाम ...
वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा
चौपाई

वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा

कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** दोहा :- जगहित जलता दीप सम, सहज, मृदुल व्यवहार। शिक्षक बनता है सदा, ज्ञान सृजन आधार।। चौपाई :- जयति जगत के ज्ञान प्रभाकर। शिक्षक तमहर श्री सुखसागर।।-१ वंदनीय विद्या विज्ञापक। अभिनंदन अधिगुण अध्यापक।।-२ आप राष्ट्र के भाग्य विधाता। सदा सर्वहित ज्ञान प्रदाता।।-३ जन-जन जीवनदायी तरुवर। प्रथम पूज्य हैं सदैव गुरुवर।।-४ शिक्षित शिष्ट शुभंकर शिक्षक। विज्ञ विवेचक विनयी वीक्षक।।-५ अतुलित आदर के अधिकारी। उर उदार उपनत उपहारी।।-६ लघुता के हो लौकिक लक्षक। सजग, सचेतक सत हित रक्षक।।-७ वेदित विद्यावान विशोभित। प्रज्ञापति हो, कहाँ प्रलोभित?-८ अंतर्दर्शी हैं आप अभीक्षक। प्रमुख प्रबोधी प्रबुध परीक्षक।।-९ विद्याधिप विभु विषय विशारद। उच्चशिखर चमके यश पारद।।-१० विश्व प्रतिष्ठित प्रबलक पारस। ढुनमुनिया मति के दृढ़ ढ...
धागों का त्योहार
गीत

धागों का त्योहार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष। कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।। उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास। सावन के इस माह में, आया है विश्वास।। गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग। रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।। राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत। गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।। नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...
सावन की घटा
कविता

सावन की घटा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहले सावन की संध्या आंचल प्रसार रही रजनीगंधा वृक्षों के झुरमुट में खगवृद बोलत पी पुकारते मधुर स्वर में गाते। दामिनी दमक रही चम्पई शाम है पहले सावन के घीर आऐ मेघा है लहर रही मंद पवन जैसे कुछ गाती नीलकण की बौछारें सहम-सहम जाती। कन्दुभी वर्ण सजा मेघ के भाल पर नाच रहे गा रहे मयूर मधुरताल पर तरु, तड़ाग पल्लवित है चंपई शाम आ रही पहले सावन की घटा बार-बार छा रही।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इं...
रक्षाबंधन तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई
आंचलिक बोली, कविता

रक्षाबंधन तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ के भूंइया म, आथे जी तिहार। रक्षासूत्र म बंध जाथे, भाई बहन के प्यार।। माथा म तिलक लगाके, हाथ म बंधाय डोर। बहन के सुरक्षा खातिर, भइया लगाय जोर।। एक दुसर मीठा खिलाके, देवत हे उपहार। चरण छुके आशीष मांगे, बने प्रेम व्यवहार।। परब सावन महीना म, आथे साल तिहार। संस्कृति ल संवारे बर, करत हे घर परिवार।। युवा भाई मिलजुल के, करव बेटी उद्धार। बेटी के ईही रुप हरे, जानव ए अधिकार।। वसुंधरा के पहुंचे ले, जगत म उड़गे शोर।। चंदा मामा खुश होगे, बांधिस प्रीत के डोर। मंगलकामना पठोवत, श्रवण करत पुकार। रक्षाबंधन के तिहार म, लाओ खुशी बहार।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
दीवारें पत्थर की
गीत

दीवारें पत्थर की

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ हथौड़ी ले शिक्षा की, छेनी साथ हुनर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।। जकड़े थे कोमल भावों पर, रूढ़िवाद के बंधन। हाथ-पाँव चक्की-चूल्हे में, झुलसे बनकर ईंधन। परंपराओं की कैंची ने, बचपन से पर काटे, पाषाणी सदियों ने इनके, सुनें न अब तक क्रंदन।। प्रीति युक्त जिनके चरित्र को, पुड़िया कहा जहर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।१ कसी कसौटी पर छलना के, आदिम युग से नारी। वत्सल पर धधकाई जग ने, लांछन की चिनगारी। धरा तुल्य उपकारी जिसके, भाव रहे हो उर्वर, हुए नहीं संतुष्ट भोग कर, रागी स्वेच्छाचारी।। हर पड़ाव पर बनी निशाना, व्यंग्य युक्त नश्तर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।२ उठ पौरुष के अहंकार ने, पग-पग डाले रोड़े। गाँठ प्रीति की जिनसे बाँधी, ताने सबने कोड़े...
टूटा दिल
कविता

टूटा दिल

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** दिल टूटा है, मैं टूटी हु, साथ देने वाला कोई नही। सपने टूटे हैं, अपने रूठे है समझने वाला कोई नही। जिसे समझा था अपना सबकुछ, वो ही साथ छोड़ गया। इस भीड़ मैं न जाने कहा वो खो गया। अरे...ये क्या ? उसे और कोई मिल गया, बेचारा दिल...फिर से टूट गया। तुमको देखती थी तो, ऐसा लगता था तुम सिर्फ मेरे हो... अब तुम्हें देखती हु तो, लगता हैं कितनी पागल थी मैं... अब तुम्हें इस दिल से निकाल दूँगी मैं अपने आप को संभाल लुंगी मैं, बेशक... ये सब इतना आसान नहीं है फ़िर भी, तुम्हारी खुशी के लिए सब कर लूंगी मैं। प्यार का इजहार करने वाली थी मैं अच्छा हुआ तुमने मेरी आँखे खोल दी, अब ये उषा पहले वाली उषा नहीं रहेगी, MSG क्या ? मेरे नाम के नोटिफिकेशन के लिए भी तरस जाओगे।... परिचय :- उषा ...
कुछ.. ही सही
कविता

कुछ.. ही सही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला ...... और मिला मुझको कुछ भी नहीं। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । जीवन के सफर में जब निकले कभी। किनारों की तरह चले थे सभी। साथ तेरा दो कदमों का ही सही। तू चला..... और मिली मुझको मंजिल नही। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला... और मिला मुझको कुछ भी नहीं। सब किस्से मोहब्बत के अधूरे सही। है मोहब्बत तुमसे इतना ही सही। पूरी न हो सकी...चल अधूरी सही।। सब मिला... और फिर भी कुछ भी नहीं।। चाहतों के समंदर में तैरा था कभी आसमानों को किस्सों में उतारा कभी। नाम तेरा लेकर जी लेगें हम। तू मिला पूरे दिल से कभी भी नहीं। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला और मिला मुझको कुछ भी नहीं।। जिंदगी दुआओं से मिलती नहीं। दे बददुआएं कि जान भी निकलती नहीं। जिस कदर अजनबी करके ...
मेरा सच्चा साथी
कविता

मेरा सच्चा साथी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा सच्चा साथी माता और पिता है, जिसने पालन-पोषण कर बड़ा किया। मेरा सच्चा साथी महाज्ञानी गुरुदेव है, जिसने मुझे काबिल बनने ज्ञान दिया।। मेरा सच्चा साथी शिक्षामणी पुस्तक है, जिसे पढ़कर मैंने सफलता प्राप्त की। मेरा सच्चा साथी हर वो नेक इंसान है, जिसने दुःख के समय में मेरी मदद की।। मेरा सच्चा साथी शरीर के प्रत्येक अंग है, जो मुझे कर्म करने के लिए किया प्रेरित। मेरा सच्चा साथी हमउम्र के सभी मित्र है, जो गुणों और अवगुणों को किये चित्रित।। सच्चा साथी भगवान कृष्ण और सुदामा थे, केवल नाम सुनकर ही प्रभु दौड़े चले आये। विप्र के मनोकामना पूरी हुई, खुशियाँ मिली, सखा को भाव विभोर होकर गले से लगाये।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ...
राष्ट्रप्रेम की कुंडलिया
कुण्डलियाँ

राष्ट्रप्रेम की कुंडलिया

कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** मातृभूमि चंदन है माटी यहाँ, तिलक लगाएँ भाल। जोड़ें मन संवेदना, रखिए खून उबाल।। रखिए खून उबाल, देशहित को अपनाएँ। गर चाहें अधिकार, कर्म पहले दिखलाएँ।। कहे अमित यह आज, हृदय से हो अभिनंदन। अपना भारत देश, यहाँ की माटी चंदन।। तिरंगा- १ रंग तिरंगा देखिए, भारत की है शान। वैभव पूरे देश का, जनगण मन की आन।। जनगण मन की आन, एकता का यह दर्पण। एक सूत्र में राष्ट्र, करें सब प्राण समर्पण।। कहे अमित यह आज, गगन दिखता सतरंगा। सदा उठाकर भाल, करें हम नमन तिरंगा।। तिरंगा- २ ध्वजा तिरंगा देखकर, अरिदल भी घबराय। साथ हवा के शान से, झंडा जब लहराय।। झंडा जब लहराय, गगन में अतिशय फर-फर। केसरिया को देख, शत्रु सब काँपे थर-थर।। कहे अमित यह आज, लगे रिपु कीट पतंगा। आन-बान यह शान, राष्ट्र की ध्वजा तिरंगा।। तिरंगा- ३ ...