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पद्य

जंगल में चुनाव
कविता

जंगल में चुनाव

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन चुनाव की बात समूचा जंगल ही हो उठा अधीर। माँस चीथनेवाले हिंसक खाने लगे महेरी खीर।। धर्म-कर्म का हुआ जागरण आलस उड़ कर हुआ कपूर। देने लगे दुहाई सत की असत हो उठा कोसों दूर।। बिकने लगे जनेऊ जमकर दिखने लगे तिलक तिरपुण्ड। जानवरों के मरियल नायक बन बैठे हैं सण्ड-मुसण्ड।। ऊपर से मतभेद भुलाकर भीतर भरे रखे मन भेद। तू-तू मैं-मैं करके सरके आसमान में करके छेद।। श्वान न्यौतने लगे बिल्लियाँ बिल्ली न्यौते मूषक राज। देखी दरियादिली चील की बुलबुल की कर उठी मसाज।। लूलों ने तलवार थाम ली लँगड़े चढ़ने लगे पहाड़। बूढ़े श्वान भूलकर भौं भौं बकने लगे दहाड़ दहाड़।। भालू भैंस भेड़िए गीदड़ गिद्ध तेंदुए चीते चील। बकरी बन्दर बाघिन बगुले साँवर गैंडे हिरन अबील।। एक दूसरे के सब दुश्मन हुए इकट्ठे वन में यार। चले...
आम सी लड़की
कविता

आम सी लड़की

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुन कर मोहब्बत के अधूरे किस्से सहम जाती है आम सी लड़की। अजनबी लोगों को देख घबराकर छुप जाती है आम सी लड़की। माँ के आंचल को, पापा के कंधे को अपनी ढाल समझती हैं आम सी लड़की। इश्क़ तो दूर उसके नाम से भी डर जाती है आम सी लड़की। इश्क़ लिखती है, इश्क़ पढ़ती है मगर इश्क़ करने से डरती है आम सी लड़की। मिलती नहीं, दिखती नहीं कहीं भी आजकल आम सी लड़की। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है
गीत

आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आस मिलन की माँ बापू से, फिर इस साल अधूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।। पैरोकार नहीं है कोई, निष्ठुर यहाँ जमाने में।। सदय ससुर पर मिर्ची ननदी, शातिर है भड़काने में। कटुक करेले-सी सासू के, मुख में बस अंगारे है, माहिर हैं सब पास पड़ोसी, घर में आग लगाने में।। गऊ सरीखे जीजा तेरे, देवर मीठी छूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।१ बीज खाद की चढ़ी उधारी, गेह गिरस्थी है घायल। खेतों में हो सकी बुआई, जब गिरवी रख दी पायल। भैंस बियानी घर की जब से, बंद दूध की चंदी पर, मुझे दिहाड़ी मिल जाती है, पंचायत जो है कायल।। पेट पालने को सच भैया, कुछ श्रमदान जरूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।२ नाम लिखाया है काॅलिज में, बिटिया का रजधानी में। फेल हो गया गुड्डू ...
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे
गीत

हम तेरे मधु-गीत बनेंगे

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे प्रिय! हम-तुम दोनों मिलकर, जीवन का संगीत रचेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे ।। दर्द-दर्द जब उभरे होंगे, भाव-भाव जब निखरे होंगे, अक्षर-अक्षर आँसू बनके- शब्द-शब्द में बिखरे होंगे! तब हम ‌ छन्दों की माला में, बिरहा के सब रीत लिखेंगे! तुम मेरी कविते बन ‌ जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। जब लहर उठेगी यादों की, जब आह! उठेगी वादों की, 'कितना सुन्दर साथ हमारा, ज्यों मिलन दोपहर-रातों की!' सुखदा-संध्या के मौसम में- बारहमासा - प्रीत लिखेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। कभी-कहीं सुर-साज मिलेंगे, तालों पे जब ताल चलेंगे, कैसे रोक - सकेंगे मन को, नर्तन को जब पॉव उठेंगे! तेरी लय पाने की खातिर- सरगम के कुछ नीत रखेंगे! तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनें...
छंदमुक्त – क्षणिकाएँ
कविता

छंदमुक्त – क्षणिकाएँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त - क्षणिकाएँ भूख- मासूमा खड़ी चौराहे पे हाथ में ले कटोरा एक साया खाना लिए ले गया अँधेरे में भरपेट खिलाया उसे सहलाया पुचकारा ख़ुद भी भूखा था जी भरकर मिटाई अपनी देह की भूख एक दीया- मत जलाना दीए किसी भी दिवाली पर न राहें या चौराहें न घर न बाहर न मंदिर या मस्ज़िद में न यहाँ न वहाँ व्यर्थ उजाले की न हो चाह याद से लगाना एक दीया सरहद के शहीदों के नाम क्या हो- प्रदूषित सृष्टि जल-थल-नभ अशुद्ध हरीतिमा विलुप्त मरुथल विस्तृत पशु संपदा संतप्त नदियाँ अतृप्त जल-जीव मृत दम घोटती मलय पंछी विहल बचे पर्यावरण क्या हो भवितव्य न से नः तक- न ना से नदी व नारी नि से निशदिन व्यस्त नी से नीयत शुद्ध नु से नुमाइश न करे नू से नूतन सदा ही ने से नेकी ही करे नै से नैतिकता निभाए नो ये कभी नहीं कहे नौ से नौनिहाल द...
चंचल लहरें
कविता

चंचल लहरें

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मचल उठे चंचल, लहरों के साथ कगारे। माझी के अधरों ने, नूतन गान सँवारे। ज्वार उठा सागर में, अनगिन घन मँडरायें। लहर लहर सागर में, ताँडव नृत्य दिखाये। घिर घिर कर आता, अम्बर में घोर अंधेरा, ज्वार उठा सागर में, मांझी दूर सवेरा। भीषण लहरों पर, तिरती आशा की कश्ती। कर में मांझी ने ली, बाँध प्रलय की मस्ती। गर्जन तर्जन में माँझी, मंजिल रहा निहारें। माँझी के अधरों ने, नूतन गान सँवारे। बिन्दु बिन्दु ने आज, सिंन्धु में विष फैलाया, करना है विषपान, सोच माँझी मुस्काया। देख प्रलय ने अपनी, भाषा में कुछ बोला, सुन माँझी ने अपने, मन में साहस तोला। प्रलय तुम्हारी लहरें, तट धरती के सारे। माँझी के अधरों ने, नूतन गान संवारे। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्...
मैं स्त्री
कविता

मैं स्त्री

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पिता पति दो तटबंधों के मध्य, आजीवन नदी बन बहती रहूं। मैं स्त्री हर कदम पर वर्जनाएं, जन्म से मरण तक सहती रहूं। क्यूं नर जन्म पर बजती थाली, और मैं पराया धन सुनती रहूं। मेरे ही जल से सिंचित जीवन, सदियों से अबला बनती रहूं। मैं जिस आंगन में पली बढ़ी, वो घर बाबुल का सुनती रहूं। ठुमकी मचली जिस देहरी में, कब चिड़िया बन उड़ती रहूं। फल फूल खुश्बू से सरोबार, मैं तरु माफ़िक फलती रहूं। पिता पति के घर को भला, कैसे! मैं अपना बुनती रहूं। पापा रोती होगी तेरी काया, जब मैं दूजे घर जलती रहूं। कोख सिसकती रही मां की, लाल जोड़े में लटकती रहूं। मैं प्रकृति को संवार कर भी, नर से जीवन भर छलती रहूं। सीता अहिल्या द्रोपदी बन, सदा हर युग में बुझती रहूं। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) ...
आहट
गीत

आहट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आहट सुनकर बौराती हूँ, तकती निशिदिन द्वार। तुझ बिन सूना घर आँगन है, लगता जीवन भार।। स्वप्न सजाए लाखों मैने, पुष्प बिछाये पाथ। प्यास बुझाने मेह बुलाए, लगा न कुछ भी हाथ।। बंधन सारे तोड़ चला तू, मानी मैंने हार।। कंचन थाली काम न आई, भूखा सोया लाल। यम ने बाहुपाश में बाँधा, बलशाली है काल।। नयनों से बस नीर बहे है, उर जलते अंगार।। तंत्र- मंत्र सब खाली जाते, आया है अवसाद। मुरझाई प्रेमिल बगिया है, शेष रही है याद।। फेंक मौत का जाल मौन अब, बैठ गया करतार। पीड़ा माँ की कौन जानता, जाने बस सिद्धार्थ। ममता ने दी बस आशीषें, भूलो मत तुम पार्थ।। मानव केवल दास नियति का, बात करो स्वीकार। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पा...
हम सहेलियाँ
कविता

हम सहेलियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सखियाँ, हम सहेलियाँ, हम हैं हमजोलियां, बात बहुत पुरानी है, पर प्यार, स्नेह, लगाव, परवाह अभी भी नया है जीवन की राह में मिलती हैं कई सखियाँ किन्तु कुछ ही प्रिय और अनमोल बन पाती हैं सहेलियाँ, हम भी हैं कुछ वैसी ही सलोनीयां बरसों साथ रहे, सुख दुख भी बांटे साथ-साथ बच्चे भी बन गए आपस में सहेलियाँ! कभी कहीं जाते कभी कहीं जाते, साथ थिरकते साथ गाते साथ ही साथ हर उत्सव मानते! कभी कोई रूठता कभी कोई टूटता, आपस में मिलकर उसे मनाते और फिर से जुड़ जाते गहरी सहेलियाँ! समय बीता, साल बीते, बच्चे बड़े हुए थोड़ा दूर निकल गए बालों में सफ़ेदी की चमक आई, चेहरे पर सिलवटें भी आ गयीं, थोड़ा कमर भी छुकी थोड़ा मध्यम हुए, जिम्मेदारी के बोझ तले कभी असहाय-लाचार भी हुईं हम सहेलियाँ, मगर सबको साथ लेक...
पंडित जी के मोक्ष
कविता

पंडित जी के मोक्ष

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** कंधे से कंधे मिला कर चलने वाला दोस्त, जब आपको कंधो पर बैठाकर समूचा बस्तर दशहरा दिखा दिया हो! एक ऐसा दोस्त जो हॉस्टल से घर जाने के बाद सेमेस्टर ब्रेक में भी आपको कॉल करता हो... और हर बार ये फोन लगाकर पूछता हो कि "कब आथस बे?" एक ऐसा दोस्त जिसे घर पहुँच कर बताना पड़े की "हां पहुँच गे हो बे" जो तुम्हें हॉस्टल आने की हर खबर सुनते ही बस स्टेशन पर हर बार लेने पहुँच जाए। वो हर एक दोस्त का बेस्ट फ्रेंड है पर उसके नज़र में हर एक दोस्त बेस्ट है। वो जंहा बैठे वंहा महफ़िल बन जाए मुझे वो कुछ इस तरह मिला गया जैसे देवभोग के खदान से हीरा बेस्ट सीआर, यारों का यार, सीनियरस का मान, कॉलेज की शान सभी के दिलों में राज करने वाला नाम है - मोक्ष परिचय :- उत्कर्ष सोनबोइर (विधार्थी) निवासी : खुर्सीपार भिला...
शिक्षक: एक भविष्य निर्माता
कविता

शिक्षक: एक भविष्य निर्माता

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** ज्ञान की पाठशाला में, जो सबको पढ़ाई करवाता है। वो शिक्षक ही तो है, जो बगिया में फूल खिलाता है।। सादे कोरे कागज में, शब्द लिखकर चित्र बनाता है। बच्चे कच्ची मिट्टी के समान, उन्हें आकार दे जाता है।। स्वयं चलता दुर्गम राह में, शिष्यों के लिए सुगम बनाने। स्वयं तपता है भट्टी में, कच्चे लोहे से औजार बनाने।। सड़क के जैसे पड़ा है, विद्यार्थी आते-जाते अनजाने। चले जा रहे रफ्तार से, मुसाफिर के मंजिल है सुहाने।। एक लक्ष्य, एक राह, मन में पैदा करता है सदा जुनून। हौसलों को बुलंद कर, अनुभव की चक्की से पीसे घुन।। शिक्षादूत, ज्ञानदीप, शिक्षाविद् ही दूर करता है अवगुन। जीत दिलाने अध्येता को, त्याग देता है चैन और सुकून।। कर्म औषधि जड़ी-बूटी को, अज्ञानियों को खिलाता है। ज्ञान गंगा प्रवाहित कर, ज्ञान अमृत सबको पिलाता है।...
शिक्षक ज्ञान का संसार …
कविता

शिक्षक ज्ञान का संसार …

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जब था हमारा विद्यार्थी जीवन विद्यालय जाने की चढ़ती धुन समय शिक्षक संग बिताते थे हम मित्रों और शिक्षको के संग कैसे हंसी खुशी बीत जाता बचपन कक्षा में बैठकर पढ़ने में लीन होने की धुन कभी नहीं होती थी हममें कम पढ़ने की चढ़ती थी उमंग तरंग कतार में खड़े होकर नियमित प्रार्थना गाते थे हम तनमन से शिक्षक के समक्ष कुर्सी पर बैठ जाते थे हम घण्टी बजते ही शिक्षक खाता लेकर कक्षा में आते आते ही सम्मान करते, खड़े हो जाते हम हाजरी वे सबसे पहले लगाते, अपनी उपस्थिति हम बताते बचपन में वो हमें अक्षर ज्ञान के पाठ सिखने को संग बिठाते, पढ़ाने में लीन कराते अन्तर्मन से अक्षर बचपन में खूब समझाते पढ़ने की हर जिज्ञासा को पल में अन्तर्मन में रमाते रटा रटा कर लिखना पढ़ना हम बच्चो को खूब सिखाते नए नए ज्ञान की नितप्रतिदिन जीवन घुं...
दुनियादारी
कविता

दुनियादारी

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** सामाजिक संबंधों से जब मैं, हो जाऊंगा निराश और हताश, तब मेरे मुंह से निकलेगा अनायास, कि धोखे की नींव पर, टिकी है यह‌ सारी दुनिया, कि जिसकी नींव ही धोखा हो, हकीकत ‌हो सकती है, भला उसकी मंजिल कभी? फिर मैं कहूंगा, चिरस्थाई नहीं है, इस संसार के लिए जो, वह मेरे लिए कैसे स्थाई हो सकता है, जो भी आया है जीवन में किसी के, जाएगा तो अनिवार्यतः ही, यह परम सत्ता, तो प्रतिपल परिवर्तनशील है, उसने कहा था कि, परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है, और जो शाश्वत होता है, वह कभी भी अशास्वत कैसे हो सकता है? इसलिए उसका बदलना, उसके भीतर के दोषों को नहीं दिखता, बल्कि दिखाता है, उसके भीतर की दुनियावी सास्वतता...!! परिचय :- शैल यादव निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) सम्प्रति : शिक्षक- जीआईसी घोषणा ...
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर
कविता

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
बुरा क्या है …?
कविता

बुरा क्या है …?

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बंदिशों का पिंजरा तोड़, उड़ जाने को जी चाहे। तो बुरा क्या है? अपने लिए कुछ वक्त, चुराने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? समझदारियों की बातें छोड़, नादानियाँ करने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? छोड़ बनावटी हँसी, रूठ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? न सुन जमाने की, मनमानी कर जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? सपनों को सच करने, जी जान लगाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? जी हुजूरी छोड़, करने को बगावत जी चाहे, तो बुरा क्या है? अन्याय होता देख, आवाज उठाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? भीड़ से अलग, पहचान बनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? हक के लिए, लड़ भिड़ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? दिखावे को छोड़, असलियत अपनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : ...
मेरी माटी मेरा देश
कविता

मेरी माटी मेरा देश

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेरी माटी मेरा देश .. भारत का यही संदेश .. आओ मिल-जुल गाओ जी .. भारत का मान बढ़ाओ जी .. अमर शहीदों के कुर्बानी से, मिली है हमें आजादी जी। जय हिंद के नारा लगाकर, अमृत उत्सव मनाओ जी। तिरंगा का तो प्रतीक है, आन, बान और शान जी। आओ इन्हें नमन करें हम, भारतवासी हिंदुस्तान जी। मानव बनकर मानवता का, भाईचारा का भाव गढ़ों। इंसान बनकर इंसानियत का, देशप्रेम का पाठ पढ़ो। हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई, संस्कृति का संवर्धन करो। जन-गण-मन गान कर सब, राष्ट्रीयता का पहचान करो। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
आजादी के दीवाने
कविता

आजादी के दीवाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पावन क्षण, तश्तरियों में सज नहीं आयी है, रणबांकुरे रहे और भी, सबने मिलजुल लड़ी लड़ाई है। बांके चमार, मातादीन भंगी, ये भी आजादी के दीवाने थे, नाक में दम कर रखा फिरंगियों के,ऐसे ये परवाने थे। सिद्धू संथाल और गोची मांझी,युद्ध कला में थे निपुण, ताड़ पेड़ पर चढ़ तीर चलाये, अंग्रेजों ने भी माना गुण। नाहर खां और उदईया, गोरों के थे कट्टर विरोधी, फांसी पर चढ़ गया उदईया, धूल थी माटी की सोंधी। चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर को, इतिहासकारों ने भूला दिया, हुए कुर्बान देश की आन में, गोली से जिन्हें मार उड़ा दिया। झलकारी बाई के रण कौशल ने, अंग्रेजों को हैरान किया, हमशक्ल लक्ष्मी की थी वीरांगना, नहीं कोई गुणगान किया। उदादेवी पासी चिनहट युद्ध की, बलिदानी नारी योद्धा थी, छत्तीस गोरों को गोली से भूना, आजादी ...
चाँद मेरा बेदाग है
कविता

चाँद मेरा बेदाग है

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** ए चाँद, जरा मेरे इस चांँद को देख। है तुझसे भी ज्यादा कमसिन हसीं।। तुझमें तो दूर से दाग नजर आता है, मेरा चाँद तो बिल्कुल बेदाग है।। ए दागदार चाँद, नजर मत डाल, मेरे इस मासूम से चाँद पर। सामने इसके तू कुछ भी नहीं, मुझे गुरुर है, मेरे इस चाँद पर।। भोली सी सूरत, लबों की लाली सुनहरे रंग लिए कानों की बाली रेशम से केश, हो जुल्फों की बदली, चाल इनकी बेहद मस्त मतवाली।। इनकी रंगत, इनकी संगत सुहाना सफ़र है, मेरा चाँद, मेरी जिंदगी का हमसफर है।। तू बस घूम रहा है, यूंँ बादलों में इर्द-गिर्द मेरा चाँद तो मेरे पास नजरें जमाए बैठी है।। मेरे इस चाँद को देख कर, फलक भी शरमा जाए।। फूलों सी नजाकत लिए हैं, चाँद मेरा देवबाला नजर आए।। नख-शिख-रुप, अखियांँ नूरानी, वो है मेरी सजनी, पगली, दीवानी।।...
पृथ्वी बनी
कविता

पृथ्वी बनी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पृथ्वी बनी, उस पर पर्वत बने ताकि पृथ्वी लुप्त न हो जाए फिर पर्वत पर पर्व बने ताकि संस्कृति नष्ट न हो जाए। मनु बने, शतरूपा बनी ताकि सृष्टि रची जाए सृष्टि पर फिर भाव बने ताकि सृष्टि नष्ट न हो जाए। भाव बने, ग्रंथ बने ताकि संस्कृति बढ़ती जाए संस्कृति से सब सभ्य बने ताकि सृष्टि उन्नत हो जाए। मानव ने फिर महल रचे ताकि सभ्यता नष्ट न हो जाए युगों-युगों तक बहे प्रेम की धारा ताकि मनु की रचना बच जाए। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की क...
तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में
छंद

तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** महाश्रृंगार छन्द कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार। कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।। कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार। कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।। कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार। कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।। बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार। कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।। किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार। किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।। किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार। किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार। किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रहा सार।। ...
आंखें
कविता

आंखें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** किसी के लिए नहीं रोता है दिल शरारत है सिर्फ इन आंखों की कहीं दिल है रोता, कहीं यह है हंसता शिकायत है सिर्फ इन आंखों से। दर्दो जिगर को संभाले तो कोई शिरकत है सिर्फ इन आंखों की जज्बातों पर काबू करे ना करे कोई मजबूरी है इन आंखों की आंखों के समंदर में डूबे न कोई साहिल का यहां ठिकाना नहीं है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से ज...
गुरुवर वंदना
गीत

गुरुवर वंदना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंतस में विश्वास भरो प्रभु, तामस को चीर। प्रेम भाव से जीवन बीते, दूर हो सब पीर।। मान प्रतिष्ठा मिले जगत में, उर यही है आस। शीतल पावन निर्मल तन हो, सुखद हो आभास।। कोई मैं विधा नहीं जानूँ, गुरु सुनो भगवान। भरदो शिक्षा से तुम झोली, दो ज्ञान वरदान।। शिष्य बना लो अर्जुन जैसा, धनुषधारी वीर। बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी, खोलो प्रभो द्वार। न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं, टूटे नहीं तार।। आप कृपा के हो सागर, प्रभो जीवन सार। रज चरणों की अपने देदो, गुरु सुनो आधार।। सेवा में दिनरात करूँ प्रभु, रहूँ नहीं अधीर। एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं, रचूँ फिर इतिहास। सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ, हो जग उजास।। ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो, कहें तीरथ धाम। रसधार बहादो अमरित की, जपूँ आठों याम।। दीपक ज्ञान का अब जला दो, ...
होली
कविता

होली

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** गिर गया झुमका सैया की ठिठोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में सहेली का संग छोड़ सैया संग खेली में बड़ा नशा आया अबकी होली में। सैया ने पकड़ी मोरी कलाई रंगों की बौछार गालों पर छाई भीगी मोरी चोली में शरमाई सैया ने नहीं छोड़ी मोरी कलाई गिर गया झुमका दोनों की ठिठोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में। सैया ने मारी भर भर पिचकारी मोरा अंग अंग रंग डाला छुपाया था अंग वह भी रंग डाला कहीं लाल कहीं पीला कहीं काला कर डाला गिर गया झुमका न जाने किस की झोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में। ढूंढ ढूंढ झुमका में हार गई रे सैया की ठिठोली मुझे मार गई रे नहीं मिला झुमका रंगों के बाजार में बड़ा मजा आया रे होली के त्यौहार में। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि।...
विश्व गुरु भारत
कविता

विश्व गुरु भारत

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आचार विचार सत्य सही और मन संकल्पित चरम। राज पथ नाम बदलकर कर्तव्य-पथ पर चलते हम। गांधी का भारत छोड़ो, नेताजी चलो दिल्ली शीघ्रम। कर्तव्य पथ वतन से ही हटाई गई मूर्ति जॉर्ज पंचम। नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे,अमर हैं वंदे मातरम। वैश्विक महामारी कोरोना में देश देखे अदभुत कदम। विकसित देशों का दुनिया ने भी टूटते देखा है भरम। गुणवत्ता प्रधान दवा समुचित सेवा सहयोग निश्चयम। अन्य राष्ट्र से पुरातन वस्तु वापसी विरासत का धरम। वंदे-भारत ट्रेन सेवा की सौगात देश को वंदे मातरम। डिजिटल क्रांति इंटरनेट डेटा जैसे कई सारे लक्षणम। आतंकवाद पत्थरबाज कश्मीर में अमन चैन शरणम। पांच सदी कानून जंग से राम मंदिर अयोध्या प्रसादम। अमृत महोत्सव वर्ष घोषित चौबीस रामलला दर्शनम। भारतमाला परियोजना से सड़क नेटवर्क वंदे मातरम। दमदार दहाड़ते देश विरोधी का अब...
स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम
कविता

स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम, वीरो के गुण गाये हम, दासता मिटाने जान गवां दिए जो, उन पर बलि - बलि जाएं हम, स्वतंत्रता ... थी कभी सोने की चिड़िया, सजी-धजी सी इक गुड़िया, फूट डालकर फिरंगियों ने, लगा दी दासता की बेड़ियां, अब बेड़ियाँ तो टूट गए, पर भाईचारा छूट गए? आओ मिलजुलकर अमन फैलाये हम, स्वतंत्रता ... चुनौती हर दशक में नया-नया, कभी गरीबी होती नही बयां, कभी आधुनिकता के अंधे, भ्रष्टाचार-घूसखोरी धंधे, कुछ नेक बंदे हैं, कुछ राजनीति वश गंदे है , गंदगी दूर भगाए हम, स्वतंत्रता ... रोजगार की मारामारी है, कहीं कालाबाजारी है, किसान मजदूर हो चला, उनकी विवशता लाचारी है, नई सोच से सबके हित, स्वरोजगार सृजाएँ हम, स्वतंत्रता ... सीमा पर युद्व विराम नही, सेना को आराम नही, पड़ोसी नासमझ, न समझे तो, चुप रहना काम ...