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पद्य

शूलों से भरा प्रेम पथ
गीत

शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
दीपक-महिमा
दोहा

दीपक-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दीपक का संदेश है, अहंकार की हार। नीति, सत्य अरु धर्म से, पलता है उजियार।। उजियारे की वंदना, दीपक का संदेश। कितना भी सामर्थ्य पर, रहे मनुज का वेश।। मद में भरना मत कभी, करना मत अभिमान। दीपक करने आ गया, आज तिमिर-अवसान।। दीपों के सँग है सजा, विजयभाव -आवेश। विनत भाव से जो रहे, परे करे क्लेश।। निज गरिमा को त्यागकर, बनना नहीं असंत। वरना असमय ही सदा, हो जाता है अंत।। पूजा में दीपक जले, जलकर रचता धर्म। समझ-बूझ लें आप सब, यही पर्व का मर्म।। कहे दीप की श्रंखला, सम्मानित हर नार। नारी के सम्मान से, हो जग में उजियार।। उजियारा सबने किया, हुई राम की जीत। आओ हम गरिमा रखें, बनें सत्य के मीत।। कोशिश करके मारना, अंतर का अँधियार। भीतर जो अँधियार है, देना उसको मार।। अहंकार मत पोसना, वरना तय अवसान । उजियारे...
हम बासी उपमाओं से
गीत

हम बासी उपमाओं से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से। साध लिया है लक्ष्य व्यंजना ने जुगाड़ कर। हार गया अभिधा का भाषण लट्ठमार कर।। जीत न पाये जीवन का रण प्रतिमाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। १ वंचित रहे विशेषण अपने कर्म पंथ पर। सर्वनाम हम, हिस्से आया गरल सरासर।। जान बचाने भाग रहे हम संज्ञाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। २ कूड़ा-करकट धूल हुए उपमान हमारे। संबंधों की नदियों ने दो दिए किनारे।। किंतु बहें हम नौ रस बन के कविताओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ३ तथ्य हीन शब्दों के जाले में नित उलझे। प्रश्न प्यास के रहे उम्र भर ही अनसुलझे।। हाथ जलाते रहे रोज हम समिधाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ४ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
मेरा गाँव
कविता

मेरा गाँव

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बड़ा प्यारा था मेरा गाँव, आँगन में थी पीपल छाँव। जहाँ चलते हम पाँव -पाँव, रुकने के थे अनेको ठाँव। संगी, संगवारी बचपन के साथी, खेल-खिलौने, कबरी गाय। इन संग खेले बड़े हुए हम, पीते कुएँ का मीठा पानी। दादी-नानी की कहानी, याद हमें रहती थी जुबानी। दादा जी की मीठी बानी, आसान बनाती थी जिंदगानी। भोर की सुनहरी लाली, हरी चादर ओढ़े धरती मतवाली। फसलों का खेतों में लहराना, धूम-धाम से हर त्यौहार मनाना। पंछी को दाने खिलाना, मीलों पैदल चलते जाना। साथियों संग धूम मचाना, बफिक्री में वक्त बीताना। एक दूजे का हाथ बँटाना, संग-संग रोना मुस्कुराना। हर किसी से रिश्ता जुड़ जाना, मिलकर गीत खुशी के गाना। रोजी रोटी के चक्कर में, छूट गया अब गाँव हमारा। शेष रहा अब यही फसाना, होगा मेरा कब लौट के जाना। परिचय - सोनल ...
घड़ी
कविता

घड़ी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कांटे की घूमती, सिखाती कहती बिन थमे चलती हूं, हर दिन हर पल नाम है घड़ी, बिन गति बदल मेरी टिक टिक, आती है आवाज समय है कीमती टिक टिक में कहती समय, घड़ी, पल की दिलाती याद न रुका न रुकेगा, कीमती पल साथ घड़ी कहती समय पल घड़ी मत बदल मत रुक एक पल, मूल्यवान हर पल समय व्यर्थ कर न आज, न कर कल न समय न घड़ी न एक पल आएगा कल नाम है घड़ी मेरा, चलती बिन गति बदल हर पल हर दिन रहती अविराम बदलती नहीं बिल्कुल भी गति समझो सीखो कर लो पल कीमती नाम है एक घड़ी, कभी नहीं रुकती समय घड़ी पल की जिमेवारी रखती मैं रुकती नहीं, तू भी मत रुक, कर्म करते बढ़ते कभी न थक न थम न थक बस चल हर पल बिन सांस, चलती हूं हर पल हूं घड़ी, चलती हूं कांटे के बल धूप बरसात न मौसम की बात जब समय घड़ी में आये विध्न बाधा न चिंता तू आज कर, न कर कल चलती हूं ...
हें अनादि परमेश्वर मेरे
कविता, स्तुति

हें अनादि परमेश्वर मेरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसका आदि अंत न होता, वह अनादि कहलाता। अंत रहित, प्रभु सदा सर्वदा, हैं अनंत फल दाता। जो शाश्वत हैं, सदा सनातन, वह अनादि भगवन हैं। गर्भवास से मुक्त रहें जो, बसते जो जन मन हैं। आदि अंत से रहित अविद्या, दोष न जिसको होता। नस-नाड़ी बंधन से विलगित, कोई जनक न होता। जो प्रारंभ नहीं होता है, सदा सनातन रहता। आदि रहित उस परम तत्व को, मानव भगवन कहता। जिसकी प्रकृति अनंत अनादी, परमात्मा है प्यारा। सदा अजन्मा, शाश्वत है जो, सारे जग से न्यारा। प्रकृति, जीव, परमात्मा तीनों, आदि अंत से ऊपर। नाशवान वह है दुनिया में, जो आया है भूपर। हैं अनादि परमेश्वर मेरे, अंत रहित हैं स्वामी। सारे जग के पालन कर्ता, हैं प्रभु अंतर्यामी। रूप, रंग, आकार रहित प्रभु, हैं अनादि कहलाते। प्रभु से सब जन्मे, सब जाकर, प्रभु ...
गोरैया (अवतार छंद )
छंद

गोरैया (अवतार छंद )

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अवतार छंद विधान अवतार छंद २३ मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है। यह १३ और १० मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- २ २२२२ १२, २ ३ २१२ चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः २ को ११ में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत २१२ (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है। फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे। चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।। मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे। तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।। चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती। अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।। छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी। है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।। ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में। है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।। म...
हे! कृष्ण-कन्हैया
स्तुति

हे! कृष्ण-कन्हैया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** द्वापर के है! कृष्ण-कन्हैया, कलियुग में आ जाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। अर्जुन आज हुआ एकाकी, नहीं सखा है कोई। राधा तो अब भटक रही है, प्रीति आज है खोई।। गायों की रक्षा करने को, नेह-सुधा बरसाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। इतराते अनगिन दुर्योधन, पांडव पीड़ाओं में। आओ अब संतों की ख़ातिर, फिर से लीलाओं में।। भटके मनुजों को अब तो तुम, गीतापाठ सुनाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। माखन, दूध-दही का टोटा, कंसों की मस्ती है। सच्चों को केवल दुख हासिल, झूठों की बस्ती है।। गोवर्धन को आज उठाकर, वन-रक्षण कर जाओ। पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा, अपना चक्र चलाओ।। अभिमन्यु जाने कितने हैं, घिरे चक्रव्यूहों में। भटक रहा है अब तो मानव, जीवन की राहों में।। कपट म...
बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जिंदगी का सच सुबह आईने में देखा खुद ही का चेहरा कितना बदल चूका मन के भाव आज जवान चेहरे पड़ी झुर्रियां को ढांकने की कोशिश बालो को काला करके युवाओं की होड़ में शामिल होने की ललक में थक चुके कई इंसान ऐसा लगता बुजुर्गी का मानो कोई इम्तिहान हो आवाज में कंपन घुटनो में दर्द मानों सब खेल मुंह मोड़ चुके बतियाने को रहा गया अनुभवों का खजाना और फ्लेस बैक यादों का आईने में अकेला निहारता चेहरा और बुदबुदाता सभी को तो बूढ़ा होना ही एक न एक दिन युवा बात करे पल भर हमसे भागदौड़ की दुनिया से हटकर मन को सुकून मिल जायेगा अकेले बतियाने और आईने में चेहरे को देखकर सोचता हूँ, बुढ़ापा क्या ऐसा ही आता है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्...
बेशक मैं …
कविता

बेशक मैं …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बेशक मैं अब दुश्मन की श्रेणी में आता हूं। पर जब भी मेरे अपनों को जरूरत पड़ी दिल से दुआएं दे जाता हूं, हां होता रहता है अपनों के बीच गिले शिकवे नाराजगियां, मुसीबतों में खुद से सबकी बलाएं ले जाता हूं, महरूम हूं लाड़ प्यार दुलार से, नाराज नहीं किसी के गाली गलौज या लताड़ से, झंझावतों से जूझते रहने का नाम ही है जिंदगी, पर किया हूं दिल से हर रिश्ते की बंदगी, पर मैं वो जालिम नहीं कि बंधे बंधन की डोर पर बिजली गिराता हूं, बेशक मैं अब दुश्मन की श्रेणी में आता हूं। नहीं मेरे पास अकूत संपत्ति, रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद, रूठों को मनाने किसे करूं फरियाद, चल रही है मेरे परिवार की गाड़ी जैसे तैसे, तूफानों से घिर बचा हूं कैसे, मौत से पहले शायद मना न सकूं रूठों को पर अपने हिस्से का फर्ज़ निभाता हूं, बेशक ...
जंजीर
कविता

जंजीर

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** शादी कर जंजीरों में ना बांधे, मुझे जीवन में कुछ करना है, मेरा हक मेरे भविष्य को अभी तो मुझे सँवारना है, स्कूल जाने का समय है मेरा, नहीं ससुराल में जाने का, डॉक्टर वकील प्रोफ़ेसर है बनना, हक ना छिनो मेरा है, घर के जंजीरों से ना जकड़ो, ना बेडी डालो तुम? स्कूल चले स्कूल चले स्कूल चले सब मिलकर हम, सभ्यता संस्कारों की जननी, "स्कूल" मेरे भविष्य का भाग्य विधाता, शिखर छूकर मुझे हे आना, मेरे पैरों मै जंजीरे ना बाँध तुम, आधुनिक भारत का सपना, आत्मनिर्भर भारत का सपना, साकार तभी हो सकता है, "बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ" तभी साकार हो सकता है, "मेरी पढ़ाई मेरा भविष्य" इसको नहीं गँवाना है, उम्र से पढ़ना, एक उम्र में शादी यही जीवन की सफलता है, "हम पढ़ेंगे हम बढ़ेंगे" नहीं शादी की जंजीरों में बाँधो तुम, अपना "भविष...
सर्व-दीपक जला हम उजाला किए…
कविता

सर्व-दीपक जला हम उजाला किए…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सर्व-दीपक जला हम उजाला किए, दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा। दीप की संस्कृति आज उज्ज्वल हुई, अब चली जा रही है गहनतम अमा। हर नगर हर निलय आज रौशन हुआ, हर जगह आज दीपित है एक शमा। मन हर्षित हुआ, तन है पुलकित हुआ, सप्तरंग सजी है दीया अरु दशा। सर्व-दीपक जला हम उजाला किए, दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।। 'राग-दीपक' अलापित कहीं हो रहा, ये हृदय आज स्वर में कहीं खो रहा! उठ रही है चहक आज हर द्वार पे, जैसे बाती-दीया का प्रणय हो रहा ! गीत-माला हृदय की महकने लगी, अरु बहकने लगी है हर एक दिशा। सर्व-दीपक जला हम उजाला किए, दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।। ये 'प्रकट-बाह्य-अन्तर-की' ज्योति जली, जो मन-उत्सवी का सद्व्यवहार है। है सदा ही सृजन जिस मनुज के हृदय, ऐसे हर्षे-रसिक का व्यापार है। समशीतोष्ण-जलवायु प्रकृति ...
चलायमान पथ
कविता

चलायमान पथ

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घुटन भरी जिंदगी जब जग से उब कर चलते-चलते अलगाव के पडाव पर, कुछ समय रुक ती है सुस्ताती है तो चलायमान पथ उससे पुछता है क्यो तुम रुक गई उड़ नहीं सकतीं पंख नहीं है तुम्हारे चलों उठो आगे बढ़ो मैं साथ हूं तुम्हारे मैं चल दी उठकर उस अचल पथ के साथ उसकी दृढ़ता देख दृढ़ता से निकल पड़ी गंतव्य की खोज में परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ...
सम्पर्क सुख
कविता

सम्पर्क सुख

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** रिमोट बटन कमान में, काम का बदलता रूप हर काम में डिजीटल ले रहा है नया रूप बदलता युग बदला काम डिजीटल से काम की कमान का मानव ले रहा मनचाहा सुख नितप्रतिदिन डिजीटल का बढ़ता बदलता सुख कामकाज का प्रचलन, बनाया सरल बना लिया है बखूब, डिजीटल के काम की आधुनिक पद्धति बना ली है हर क्षेत्र के काम में अपनी बना ली एक स्मार्ट गति दिखता है डिजीटल का काम अनोखा और अद्भुत हाथ से काम की आदतें वे आदते देखने को मिल नहीं रही जिधर देखो वे हाथ की विद्याये डिजीटल के भरोसे अब गई सबकी छूट और अब डिजीटल से ही नजर आता है कैसे कितना बदल डाला है डिजीटल का युग डिजीटल से देख रहा स्थानों को डिजीटल से देखता है सब रुट कर रहा है हर मानव काम, काम कर लिया है आसान जीवनशैली में हर व्यक्ति की भागदौड़ डिजीटल के भरोसे ही ले आय...
याद तुम्हारी मैं बन पाता
कविता

याद तुम्हारी मैं बन पाता

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** याद तुम्हारी मैं बन पाता। तो जीवन जीवन होता। मुझे बुलाती ख़्वाबों में तुम अपना मधुर मिलन होता। रोज मुझे तुम लिखती पाती उसमें सब सपने लिखती। जितने ख्वाब संजोए मैंने उनको तुम अपने लिखती। लिखती प्रियतम मुझको अपना मुझपर सब अर्पण होता। याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। लोग नगर के सभी पूछते तुमसे मेरा हाल पता। अधर तुम्हारे चुप ही रहते सबकुछ देते नयन बता। दूर भले ही हम तुम रहते जन्मों का बंधन होता। याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। तुम्हें चिढ़ाती सखियां सारी नाम हमारा ले लेकर। झुंझलाती चिल्लाती सबपर खुश होती तुम छिप-छिप कर। मेरी छवि तुमको दिखलाता इक ऐसा दर्पण होता। याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। परिचय :-  रमाकान्त चौधरी शिक्षा : परास्नातक व्य...
संस्कारों की गुल्लक
कविता, बाल कविताएं

संस्कारों की गुल्लक

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे बच्चे मेरे पास आकर कहते हैं, माँ हमें पैसे दो हम अपनी गुल्लक भरेंगे। मैने मुस्कराकर कहा आओ न, करती हूँ मलामाल तुमको, मुझे मिली परवरिश के संस्कारों की दौलत से, सुंदर आचरण करेगें।। समाहित करूँगी तुम्हारे व्यक्तित्व में एक अच्छी आदत। संघर्षों में साहस, सच का सामना करने में हो ना घबराहट।। बड़े-बुजुर्गों, गुरुओं हर नारी का हो सम्मान। छोटों से हो प्रेम परस्पर, हृदय ना हो अभिमान।। दूसरों की मदद करुणा दया सेवा भाव हो शामिल। आत्मविश्वास-उमंग आध्यात्मिकता प्रेम सहानुभूति से परस्पर रहें घुल-मिल।। विनम्रता आत्म निर्भरता, सच्चाई के साथ सदा खुश रहना। सादा जीवन, सादा भोजन, बुरा ना कुछ मुँह से कहना।। श्री हरि नाम से काज शुरूँ हों, नित्य पढें अच्छी पुस्तक, सादे-सच्चे दोस्त बनाये...
जिस रोज तुम …
कविता

जिस रोज तुम …

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिस रोज तुम गए थे ..... मुझे छोड़ कर। दो शब्द भी हिस्से न आयें मेरे। कुछ तो कहा..... होता कुछ बोल कर।। जिस रोज तुम गए थे मुझे छोड़ कर।। इंतजार को छोड़ा था मैंने जिस मोड़ पर। दिल को तोड़ा था तूने दिल से जोड़ कर। मैं फरियादें कहा करता रब से कुछ बोल कर। जिस रोज तुम गए थे .... मुझे छोड़ कर।। ना जाते हुए देखा नज़र भर कर। मैं देखता ही रहा... खामोशी से उस मोड़ तक। आज सोचता हूँ.... क्यों रोका नहीं उसे अपनी कसम बोल कर। जब कि वो चला गया मेरी जिंदगी से बिना ... कुछ बोल कर।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं
कविता

बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अहसास से सींचे हर एक रिश्तों को जग मे साथ निभाते हर फरिश्ते को दिल जो मिले आश अधूरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं कभी कम या ज्यादा मिल जाता है बागो मे भी कई फूल खिल जाता है अरमा के फूल खिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं अब अहसासों से रिश्ते निभाते रहें जीवन के गीले शिकवे मिटाते रहें रूबरू मिलना भी जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं जो मिला है वो भी उसकी मेहर है सुख अमृत है तो दुख ही जहर है सदा सुख मिले हमें जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं है इश्क अगर तो दर्द मिलेगा जरूर कांटों मे नित गुलाब खिलेगा जरूर प्यार मे अंजाम मिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं दुख-सुख तो जीवन का हिस्सा है जीवन भी एक अनोखा किस्सा है जीवो हंस के कोई मजबूरी नह...
पुरुष
मुक्तक

पुरुष

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा - मुक्तक मात्रा भार - ३० घर के हर सदस्य के प्रति, कर्तव्य सारे निभाता है पसीना दिन-रात बहाता व अधिकार भूल जाता है जो आधार स्थम्भ है परिवाररूपी इक इमारत का सबकी खुशी में ही खुश रहता वह पुरुष कहलाता है घिसी स्लीपरें पहनकर, सबको ब्रांडेड शूज़ दिलाएँ तन ढाँके उतरन-पुतरन से, बच्चों को नये सिलाए तन-मन-धन सब परिवार पर अर्पण कर देता है पुरुष करके रात पाली थककर, सबकी दिवाली मनवाए परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
सागर का वसन्त अनंत
कविता

सागर का वसन्त अनंत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर का वसंत हैअनंत कभी न मरने वाली, अटखेली करती मतवाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। सागर को तर करने वाली, कूलों को बालू से भरने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। चंदा को रिझाने वाली, सूरज को चमकाने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। प्रस्तर को मृदु करने वाली, वृक्षों का सिंचन करने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। कमसिन सी जल भरने वाली, मीठी तान सुनाने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी...
तुलसी आँगन की
गीत

तुलसी आँगन की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँद खिला दिव्य निशा, आस पिया आवन की। प्रीति चकोरी कहती, बूँद गिरी सावन की।। रात हुई याद करूँ, श्याम गले आज लगा। रूठ गये स्वप्न सभी, गीत सुना प्रेम जगा।। भोर हुई चैन मिला, पंख लगे ग्वाल सखी। वेणु बजे प्रीति निभा, ढूँढत गोपाल सखी।। प्रेमिल बाजे धुन भी, बात करे साजन की। वंशी की तान कहे, यौवन के तीर चले।। रास रचा आज मिलें, रात कभी ये न ढले।। सोलह शृंगार किये, झूमत गोरी कहती। बाजत है कंगन भी, कुंतल वेणी सजती।। दुग्ध धवल धार बहे, बात करें पावन की। प्राण पिया काम बसे, वाण चले हैं छलिया। प्रेम सुधा आज पिला, अंतस् में हो रसिया।। सांस मिले साँस पिया, बंधन तोड़ो सजना। घूँघट को खोल पिया, देख रही हूँ सपना।। नित्य निहारे छवि भी, ये तुलसी आँगन की। परिचय :- मीना भट्ट...
जातियता को त्यागे कौन
कविता

जातियता को त्यागे कौन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सो रहा समता का दिल तो खुद से होकर जागे कौन, स्व को दूजे से ऊंचा समझे जातियता को त्यागे कौन। आने और जाने के क्रम में, सभी बराबर क्यों हो भ्रम में, कदकाठी तन सबका एक, नहीं यहां पर कोई विशेष, खून में सबके लाल रंग है, पेट खातिर सबका जंग है, मानवता बंधुत्व भाव को देखो अब तो सिराजे कौन, जातियता को त्यागे कौन। बंटे हुये हैं लोग हजारों में, लेकर विष घूमे विचारों में, घमंड जात का दिखलाते है नजरों और नजारों में, नहीं खाते हैं एक दूजे घर, भूख से भले ही जाये मर, कब लाएंगे सीने में अपने भाईचारा और बड़ा जिगर, नफरतों को हवा दे देकर दिलों में अब बिराजे कौन, जातियता को त्यागे कौन। नहीं किसी को फिक्र देश की, बातों में नहीं जिक्र देश की, जाति पकड़ कर घूम रहे सब दिल में नहीं है चित्र देश की, ऊंच नीच सर ...
बोनी उड़ान
कविता

बोनी उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फसलों को निहारते मुस्कुराते किसान की खुशियां हो जाती रफूचक्कर जब हो अतिवृष्टि कहर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता किसान इनके आगे हार जाता उसके सपने और उम्मीदों की बोनी उड़ान से सपने बिखर जाते उड़ान भरता मरती फसलों को बचाने की मगर उसकी बोनी उड़ान नहीं बचा सकती आपदाओं के आगे उसकी उड़ान से आर्थिकता के सूरज से पंख जल जो जाते कर्ज की तेज आंधी उसके जीवन की उड़ान को बोनी कर जाती ये आपदाएं। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्...
सत्ता की गलियारों में
कविता

सत्ता की गलियारों में

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सत्ता की गलियारों में आहट नहीं होती है बिना लड़े गुलामी से राहत नहीं मिलती है हर फूल सिर्फ कीचड़ में ही नहीं खिलती है रात के अंधेरी साया के बाद ही सुबह होती है आत्मविश्वास को अहंकार मत बनने दे ! पैसा रास्ते को सिर्फ आसान बनाती है नतीजे से पहले जीत का दावा ना कर समय का रेत धीरे-धीरे खत्म हो रहा है जरा रूक जा इंतजार करना सीख जीत का इतना बेसब्री से इंतजार न कर ! अपने दिल को पत्थर सा मजबूत बना ले हार को भी हँसकर सहन करना सीख सत्ता की गलियारों में सिर्फ तू अकेला ही नहीं है अपने पीछे भी मुड़कर देख ले, बड़े ही खामोशी से तेरा पीछा कोई और भी कर रहा है। अपनी स्वार्थ को हद से ज्यादा सोपान न चढ़ा जीतने के लिए आँख मूंदकर झूठ का उफ़ान न बढ़ा तू अपनी ताकत से किसी के बढ़ते कदम को रोक सकता है उसके राह में...
जीत की दहाड़
धनाक्षरी

जीत की दहाड़

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** घनाक्षरी बहार खूब जोश की, खेल ट्रिक सुधार से, मंच अति रोमांच का, जीत से पछाड़ हो। दस विजय सतत, हार का नहीं सबब, हर जीत कथा यही, लेश ना जुगाड़ हो। दशा वक्त अनुरूप, रहे नहीं सदा भूप, देश जीते विश्व रूप, कुछ ना बिगाड़ हो। पसीना महक अब, पूरा जग सुरभित, चाल वही कॉल सही, बॉल मार धाड़ हो। एक सुर रीत रहे, टीम मन मीत बने, नायक का रंग ढंग, खोलता किवाड़ है। उमंग नहीं जंग ही, जीत वाली तरंग से, जीत जश्न जयघोष, तोड़ता पहाड़ है। हलचल धड़कन, अटकल दमखम व्यर्थ नहीं चक चक, आज ही उखाड़ हो। तन मन हवन से, फतह बल चहल, विश्व कप में पहल, जीत की दहाड़ हो। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मं...