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पद्य

सफर
कविता

सफर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मंज़िल तक पहुंचने में किसी के मोहताज नहीं कदम दर कदम कोई हमसफ़र मिलेगा सुकुन से कदम बढा ऐ दोस्त आगे तुझसे कारवां जुड़ेगा। सुकुने दिल को कचोटती है चुनौती अपनों की आंखों से अश्क नहीं बहते दिल रोता है कहने को हम सब हैं अपनों के बीच हर शख्स अपने सफर में अकेला होता हैं। ख्वाहिशों के दरख्तों के साये बहुत लम्बे हैं सायो के सहारे ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त पूरी नही होती ज़माने की नजरें ऐसी बदली कि हम देखते रह गए वक्त गुजरता रहा हम ख्वाब बुनते रहें। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेव...
शब्दो की खामोशी
कविता

शब्दो की खामोशी

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक न एक दिन सब बदल जाते हैं अपने पराए हो जाते हैं रिश्ते-नाते टूट जाते हैं दोस्त-यार छूट जाते हैं धीरे-धीरे रास्ते बदल लेते हैं तुमसे अपने सारे बंधन तोड़ देते है हवा चलते-चलते रुक जाती हैं कली टूट कर जमीं पर बिखर जाती है फूलों से खुशबू उड़ जाती है हरी भरी पत्तियां पीली पड़ जाती है मुलायम नर्म घास सूख जाती है एक दिन उपजाऊ मिट्टी भी बंजर हो जाती है हाथों की लकीरें मिट जाती है चेहरे पर झुर्रियां आ जाती है एक दिन ज़िंदगी भी धोखा दे‌ देती है जिस्म से रूह साथ छोड़ देती है और मौत अपने दामन में लपेट लेती है। ताउम्र के लिए अपना हमसफर बना लेती है परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : ल...
हम जानवर बेजुबान नहीं हैं
कविता

हम जानवर बेजुबान नहीं हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम जानवर बेजुबान नहीं हैं, पर इंसानो की नीयत से अंजान है हमे मरता छोड़ देते ये तो हैवान है, ना जाने क्या है! हमे घर लाते, खूब लाड प्यार दिखाते जब हम बूढे और लाचार हो जाते हमको अंजाने रास्तो पर मरने को छोड़ जाते हम कुछ समझ ही नहीं पाते ठगे से रह जाते ! अपना अपना त्यौहार मनाते खुश होते खुशियां बांटते मग़र ना जाने क्यूँ हमारी बलि चढ़ाते जंगलों में हमारा शिकार करते हमारे बच्चों को अनाथ कर जाते खुद के स्वाद के लिए हमको हलाल करते ये कौन सा और कैसा त्यौहार मनाते हम कुछ समझ नहीं पाते ! हम में से किसी को माता मानते पूजा अर्चना करते उसी के सहारे अपना परिवार चलाते उसके दुधमुंहे बच्चों का दूध खुद पी जाते जब वो बूढी और लाचार हो जाती तब कसाई के हाथों में कटने को सौप देते इंसानी स्वार...
सोचूँ तेरे प्यार को
कविता

सोचूँ तेरे प्यार को

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सभी ढूँढ़ते रूप रंग को, मैं सादे व्यवहार को। साज-शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। बहुत अधिक सुखकारी लगती, प्रिय, अमृत बोली तेरी। जैसे स्वाती की बूँदों से, चू रही घर की ओरी।। पपीहा जब अलाप लगाए, तड़पूँ सुखद विहार को। साज शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। सूरत जैसे धूप शिशिर की, खिली-खिली सरसों आए। जैसे कासों के खेतों में, 'सूप', कर्ण सँजों पाएँ।। लहराते आँचल में देखूँ सहज गोमती धार को। साज शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। गहरी-सिन्दूरी आँखों में, सँझवती लाली छाए। जैसे पलकों की छोरों पर, मदिर-नींद चली आए।। गगन फैलती काली रेखा... खुलते-केश बयार को। साँझ शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। बँसवार-लचकती बाहों में, हरा हुआ तना महके। बनफूल-बहकती साँसो में, हिय...
चमत्कारी काव्य – द्वयक्षरीय रचना
कविता

चमत्कारी काव्य – द्वयक्षरीय रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** द्वयक्षरीय रचना प्रिय मित्रो ! पूर्व में आपको मैंने अपनी एकाक्षरीय रचनाओं से परिचित कराया था। आज भी मात्र दो वर्णों "त" तथा "ल" के मेल से रची अपनी एक ताजी रचना से परिचय कराता हूँ। इसे चित्र काव्य के अन्तर्गत लिया जाता है। रचना की किसी भी पँक्ति को द्रुत गति से आवृत्त करऩे से वक्ता की स्वयं के दाँतों से जीभ कटने का डर रहता है। अनुप्रास के अनुशासन में बँधी द्वयक्षरीय रचना का आनन्द लीजिए। १- तुतला तुतला तुल्लू तेली तेल तौलता तौल तिली। तुलती तिली तुलाती तातिल लता तुलाती तेल लली।। आशय - तुल्लू नाम का एक तेल का व्यापारी तुतलाते तुतलाते तिल्ली तौलने के बाद तेल तौल रहा है।तातिल नाम की महिला तिली तुला रही है और लता नाम की बालिका तेल तुलाती है। २- ताती तिली तोतले तुल्लू लूली ललिता लोल लली। तोला तोला तिल्ल...
धर्म ध्वजा
गीत

धर्म ध्वजा

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** धन्य-धन्य हे तु जननी, हीरा माणक सा लाल जना, है धन्य हुई यह है वसुधा, गोदी में आया बाल जना। धर्म का प्रहरी धर्म रक्षक जग में, सनातनी धर्म की ले धर्म ध्वजा, निकल गया है कमर जो कसकर, निडर बहादुर लाल बना। अपने जीवन की रक्षा किए बिन, निकल गया धर्म डगर पर आज, माता का बलिदान बड़ा है, धन्य ऐसी जननी आज। अपने दिल के टुकड़े की, आहुति दे दी धर्म यज्ञ में है, एक माँ ही माँ को है समझे, क्या दर्द बँया कर सकती आज। दिल पर पत्थर रखकर के वो, जब विदा कर दिया लाल को है, लाखों का पुत्र बना जग में , लाखों के दिल का टुकड़ा है। अब हिंदू राष्ट्र की कल्पना को, साकार रूप ले दिल में वो, नहीं ऊंच-नीच का भेदभाव, हैं लगा लिया दिल से सबको। अब गरीब अमीर की खाई को, आज मिटा दिया हर दिल से वो। चले चलो और बड़े चलो, आज कदम से कद...
डोर
गीत

डोर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ। तुम ही तुम हो इस जीवन में, याद तुम्हें बस करता हूँ।। प्रिये सामने जब तुम रहती, मन पुलकित हो जाता है। लेता है यौवन अँगडाई, माधव फिर प्रिय आता है।। प्रेम सुमन पल-पल खिल जाते, भौरों-सा मैं ठगता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। नेह डोर तुमसे बाँधी है, जन्म-जन्म का बंधन है । साथ कभी छूटे ना अब ये, प्रेम ईश का वंदन है ।। मेरे हिय में तुम बसती हो, नाम सदा ही जपता हूँ । मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। रूप अनूप बड़ा मनमोहन, तन में आग लगाता है । आलिंगन को तरस रहा मन, हमें बहुत तडपाता है।। चंचल चितवन नैन देख कर, ठंडी आहें भरता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। परिचय :- मीना ...
पत्थर की महिमा
दोहा

पत्थर की महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम। मानवता को धारकर, पुलकित कर हर रोम।। पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव। उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।। पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर। करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।। पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून। दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।। पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़। पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।। पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार। बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।। सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज। करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।। पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान। पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (म...
जिस दिन वे अपने घर आ गए
कविता

जिस दिन वे अपने घर आ गए

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छुपा नहीं पा रहे हो, गाहे बगाहे अपनी धृष्टता दिखा रहे हो, आज के इस सभ्य कहे जाने वाले युग में, हांक रहे हो मानव अब भी जातिय चाबुक में, महामहिम बनकर भी, माननीय बनकर भी, दिखा दे रहे हो अपनी जाति का चेहरा, बलात कब्जा किये पद और पॉवर को बनाकर मोहरा, अब तो जता दो मंशा चाहते क्या हो, सड़ी गली व्यवस्था बनी रहे और कुछ भी न नया हो, संवैधानिक, लोकतांत्रिक देश में रह रहे हो मत जाओ भूल, हर दिन हर पल हर सांस दिये जा रहे हो शूल पर शूल, ओछी नीतियों ने देश को कितना तड़पाया होगा, पल पल आंखों से आंसू छलकाया होगा, तिल तिल मर मर चिंतन मनन कर पुरखों ने ये नियम नए लाया होगा, पर आपके भूख और हवस ने कितने बार व्याख्या भटकाया होगा, सारे दुर्गुण काट व्यवस्था जमाया होगा, मत भूलो आप पर भी कोई भारी पड़ सकता ...
जीवन के आश्रम चार
कविता

जीवन के आश्रम चार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पचीस-पचीस वर्षों में बांटा अपने ऋषि मुनियों ने जीवन को प्रथम नाम है ब्रह्मचर्य आश्रम पूर्णरूप से शिक्षित होने को। गृहस्थ आश्रम नवसृजन कर सृष्टि के कर्तव्य निभाने को, नवजीवन का पालन कर संस्कार दे, शिक्षित करने को। तृतीय वानप्रस्थ आश्रम में गृहस्थ जीवन के दायित्व निभाकर,शनै:शनै: जीवन की आकांक्षाओं से मोहभंग-दशा में जाने को। संन्यासआश्रम चतुर्थ स्थिति है मान, अपमान, लोभ, क्रोध की हर सीमा को कर पार इच्छाओं से मुक्ति, त्याग, विरक्ति मन में ईश भक्ति अंतिम यात्रा पूरी करने को। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट को...
नैनों में प्यार है कितना
कविता

नैनों में प्यार है कितना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** नीर भरी आंखे किस-किस से छीपाये स्व की अफलता का कैसे पता लगाये उम्र बढ़ी और बढ़ती गई जिम्मेदारी भी नैनों में प्यार है कितना किसको बताये हृदय की सरलता कैसे समझ पायेगा जितना दिया है उतना ही अब पायेगा अंतर्मन का द्वन्द कोई कैसे जान पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये अपने ही अपने ना रहे फिर आस कैसी सम्मान नहीं फिर उसपर विश्वास कैसी स्वभिमान बेच कर कोई कैसे जी पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये कोई जी भी पाया है क्या खुद के लिए जीवन कुर्बा किया जो अपनों के लिए उस शख्स की पीड़ा कोई जान ना पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये दावानल लगी है जीवन कानन मे अब करुणा का भाव ही नहीं आनन मे अब आप ही बताये जग मे कैसे जीया जाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये स्वार्थ से सजा है रिश्तों के बा...
पांडे की प्राण
कविता

पांडे की प्राण

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** वह भावना शौर्य की जो पहले गई, ना रही राष्ट्र प्रेम और आजादी की स्मृति, नयनाभिराम घटना देखने को आंखें तरसती, कहीं हाड़ी रानी का सिर कटा, वह रानी लक्ष्मी गई, फिर भी इस देश की मेहमानी रही, सन् सत्तावन का संवत्सर, खीज गए सेनानी, पांडे की उग्रता चली, लेफ्टिनेंट की प्राण गई, पहचान रही चिरस्थाई पांडे ने भी प्राण गंवाई, स्वर गूंजा किसानों का, ब्रिटिश का राज हिला, जुड़े गुजराती गांधी, भारत में लाई नई आंधी, अंग्रेजों से लिया लोहा, न था उसमें वज़न, कौड़ी भाव बिका दिया, जनता ने बनाई तलवार, शीश काटे उग्रवादी, उन पर भारी वार, सब बन गए देश के महान पहरेदार, जगह-जगह खेली खून की होली, अंत समय में टूट गई ब्रिटिश राज की झोली, छोड़ निंदिया जाग उठे हिंदुस्तानी, भागने को विवश ब्रिस्टानी।। कुछ सीखना है, इस कलम से सीखो। ...
प्रेम मधुर अहसास है
दोहा

प्रेम मधुर अहसास है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम मधुर अहसास है, प्रेम प्रखर विश्वास। प्रेम मधुर इक भावना, प्रेम लबों पर हास।। प्रेम ह्रदय की चेतना, प्रेम लगे आलोक। प्रेम रचे नित हर्ष को, बना प्रेम से लोक।। प्रेम राधिका-कृष्ण है, राँझा है,अरु हीर। प्रेम मिलन है, प्रीति है, प्रेम हरे सब पीर।। प्रेम गीत, लय, ताल है, प्रेम सदा अनुराग। प्रेम नहीं हो एक का, प्रेम सदा सहभाग।। खिली धूप है प्रेम तो, प्रेम सुहानी छाँव। पावन करता प्रेम नित, नगर, बस्तियाँ,गाँव।। प्रेम दिलों का भाव है, प्रेम खिलाते फूल। मिले प्रेम तो राह के, हट जाते सब शूल।। प्रेम साँस है, आस है, प्रेम लगे आलोक। प्रेम बिना सूना सदा, सचमुच में यह लोक।। प्रेम खुशी है, हर्ष है, प्रेम सदा शुभगान। प्रेम बिना नीरस लगे, निश्चित आज जहान।। प्रेम ईश, अल्लाह है, गीता और कुरान। प्रेम बिना...
मानव तन मुक्ति का साधन
भजन

मानव तन मुक्ति का साधन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मानव तन में भेजा प्रभु ने, जनम मरण से मुक्ति हेतु। राम नाम सुमिरन में लग जा, ये ही बन जाएगा सेतु। मानव तन......... ईश्वर है करुणा का सागर, सबपर करुणा बरसाता है। जिसकी दृढ़ आस्था ईश में, पात्र उसी का भर पाता है। अपने मन को निर्मल करले, अन्तर इष्ट को देखेगा तू। मानव तन............ सारी सृष्टि है प्रभु की रचना, हम सब ही हैं उसके बच्चे। राग द्वेष को दूर भगा दो, बन जाओगे साधक सच्चे। डूब गया प्रभु की भक्ति में, सब में प्रभु को देखेगा तू। मानव तन.......... ईश्वर की सुंदर बगिया में, फूलों की सुगंध बहती है। प्रतिपल प्रेम लुटाता ईश्वर, संतों की वाणी कहती है। आस्था की झोली फैला दे, कृपा के मोती पायेगा तू। मानव तन........... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह ...
साँसों का क्या ठिकाना
कविता

साँसों का क्या ठिकाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब रुक जाएं चलती साँसें, कोई नहीं ठिकाना? चलते रहना तुम जीवन भर, कहीं नहीं रुक जाना। जब तक साँसें, तब तक जीवन, दिल की धड़कन चलती। जब रुक जाती दिल की धड़कन, तब काया है जलती। साँसों से जीवन चलता है, बिना साँस रुक जाता। नहीं ठिकाना है साँसों का, मानव समझ न पाता। मानव गर्भ छोड़कर ज्यों ही, बाहर आ जाता है। चलने लगती साँसें उसकी, जीवन पा जाता है। निर्धारित साँसें मिलती हैं, प्रभु प्रदत्त जीवन में। साँसें ही ऊर्जा भरती हैं, मानव के तन-मन में। साँसों का आना-जाना ही, जीवन कहलाता है। साँसों के रुकते ही मानव, मुर्दा बन जाता है। साँसों का सब लेखा जोखा, परमपिता रखता है। जो जैसा करता जीवन में, वैसा फल चखता है। तूने जितना जीवन पाया, उतनी साँसें तेरी। रखना साँसों को सँभाल कर, हो ना ज...
भाई दूज
गीत

भाई दूज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कहे बहिन की प्रीति सदा ही, भइया रीति चलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। बहिना का है प्रेम निराला, पावन जैसे गंगा धारा। रक्षक भाई है बहना का, नित दूजे पर तन मन वारा।। जुग-जुग जिए बहिन का भाई, यह आशीष दिलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। भाई दूज का पर्व है प्यारा, खुशी हजारों लेकर आता। मंगल पावन तिलक लगाती, बहिना को त्यौहार सुहाता।। प्रेम सदा छलकाता भाई, अद्भुत ज्योति जलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। जुग जुग जिए बहिन का भाई, प्रभु से वर ये माँगे बहिना। सुख समृद्धि सदा घर आये, झोली खुशियों से प्रभु भरना।। कृष्ण सुभद्रा सी है जोड़ी, नेहिल अमिय पिलाते रहना। घर आयेगी रूठी बहिना, भइया नित्य बुलाते रहना।। ...
रहें ना रहें हम
कविता

रहें ना रहें हम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रहें ना रहें हम फिर भी हमारा निशान रह जाएगा! जो बीज रोपे थे बड़े अरमानों के साथ, उनमें खिलते पुष्पों की खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा। उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं, कुछ भावनायें उन्हीं में मेरा निशान मिल जाएगा!! जिस वृक्ष को सींचा था जतन से उसका एक भी आखिरी पत्ता जो हरा रह जाएगा, उसकी निर्मलता में मेरा निशान मिल जाएगा!! कभी जो बैठना सूकून से पंछियों के कलरव और तान सुनना उनके सुर के संगीत में मेरा निशान मिल जाएगा! कल कल बहती रही जीवन भर एक नदी की तरह जो कभी बैठो उसके तट पर, चंद लम्हों के लिए, उसकी गहराईयों में मेरा निशान मिल जाएगा।। खुद के भीतर इन्सानियत को जिंदा रखना कभी जो सुनना किसी जीव की दर्द भरी कराहटें, उनकी करुणा भरी पुकार, उस दर्द में मेरा पता मिल जाएगा!! अपने ...
चीखें
कविता

चीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दीपोत्सव के बाद श्वानों की दुर्दशा देख दिल रो पड़ा, और कुछ शब्द निकल आए बचपन से अवसाद और कष्ट से पीड़ित रहा हूँ मैं समझ नहीं पाता था ये क्या और अखिर क्यों है मैं अपने रक्त रिसते घाव में चीख रहा हूँ क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा??? मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा जो मैं लाचार हो कर अंदर ही अंदर क्रंदन करता हूँ क्या कोई उसे समझ पाएगा???? हे मानव तुम्हारे मुस्कराते चेहरों के पीछे एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है जिसपर नफरत, क्रोध, घृणा, नृशंसता रहती है मेरी सालो साल खामोश चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं मुझे आग में जीते जी जलाते हो मुझे आग से नहलाते हो पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता मगर ये इंसान का कौन सा रूप दिखाते हो???? मैं गलियों, रस्ते, काली धुंध भरी दुनिया मे रहता हूँ मैं क्या बिगाड़ प...
प्रवासी दुनिया
कविता

प्रवासी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** समुंदर का नीलापन आकाश का नीलापन उड़ रहे क्रेन पक्षी एक नया रंग दे रहे प्रकृति को। सुंदरता दिन को दे रही सौंदर्यबोध रात में ले रहा समुंदर करवटे लहरों की। तारों का आँचल ओढ़े चंद्रमा की चाँदनी निहार रही समुंदर को क्रेन पक्षी सो रहे जाग रहा समुंदर। मानों कह रहा हो प्रवास की दुनिया पर जाने से ही दुनिया और भी सुंदर लगती है। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व क...
कानून की चक्की
कविता

कानून की चक्की

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कानून की चक्की में रिश्ते - नाते, सगे - संबंधी सब पीस जाते हैं। अदालत की चक्कर काटते-काटते, जूता - जूती सब घिस जाते हैं।। मौका देख सुनसान गली - चौराहों में, शातिर जुर्म करते हैं रात के अंधेरे में। जोर है पक्ष - विपक्ष के दलीलों में, अदालत को सबूत चाहिए सवेरे में।। कभी - कभी कानून की चक्की, चलते - चलते जाम हो जाती है। लोगों को इंसाफ मांगते - मांगते, सुबह से लेकर शाम हो जाती है।। अच्छा वकील ढूंढने के लिए, खुद को वकील बनना पड़ता है। काले - कोट वालों की भीड़ से, एक को ही चुनना पड़ता है।। वकीलों को भगवान समझकर, नोटों का चढ़ावा देना पड़ता है। अपने दिल पे पत्थर रखकर, रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना पड़ता है।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
लगे जिगर में गोली है
गीत

लगे जिगर में गोली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वोट बैंक के खाते से बस, खेलें नेता होली है। अवसरवादी राजनीति में, रोज़ पदों की डोली है।। धुत्त नशे में अब नेता हैं, कालिख मुख गद्दारी की। हुड़दंगी दल बदलू नाचें, हद होती मक्कारी की।। ढोल -मजीरे स्वयं बजाती, बड़ी प्रजा यह भोली है। घर-घर राजदुलारे जाते, भूल गये सब मर्यादा। दीप-तले ख़ुद अँधियारा है, कुचल गया चलता प्यादा।। फिरती झाड़ू उम्मीदों पर, लगे जिगर में गोली है। दल्लों की भरमार हुई है, आप जान लो सच्चाई । पिचकारी ई डी की चलती, रँगें जेल की अँगनाई।। मुखिया आँख बँधीं पट्टी है, शैतानों की टोली है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति...
दिखाओ अपने अंदर का डर
कविता

दिखाओ अपने अंदर का डर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** तुम्हारा ये डर जाने का कारोबार, लगा जबरदस्त, धमाकेदार, वाकई में डरते बहुत हो, पल पल मरते बहुत हो, हथियारों से लैस तुम्हारे इतने रहबर, क्या नहीं बचा सकते तुम्हें बढ़कर, लोगों का दिमाग,उनके दिए पैसे, थेथरई के साथ खा लेते हो कैसे, फिर मानते आए हो हमें सदा दुश्मन, फिर भी वसूलने की चेष्टा हमसे ही हमारा धन, सुनियोजित रहन सहन, सुशिक्षित पूरा जीवन, सुनियोजित प्रशिक्षित संगठन, जहां समर्पित शत्रुओं का तन मन धन, जगह जगह विराजित तुम्हारेआस्थाई बूत, सर्वज्ञ,शक्तिशाली,सर्वव्यापी मजबूत, मगर डर किस बात का, कहते खुद को उच्च जात का, क्यों घबरा,छटपटा रहे देख विरोधियों के बढ़ते फैलते जाल, कहां खो गया भस्म करते, आकाशवाणी करते,डराते मायाजाल, युगों युगों से चले आ रहे अपने विचारधारा,सिद्धियों पर क्यों भरोसा नहीं ...
नीरोग रहना बड़ी बात है
कविता

नीरोग रहना बड़ी बात है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** शुद्ध भोजन नहीं मिल रहा आजकल, ज़िन्दगी में बढ़ी घात पर घात है। दोष ही दोष बढ़ने लगे रक्त में, आज नीरोग रहना बड़ी बात है।। है धुआँ ही धुआँ वायु दूषित हुई, बाग बीमार हैं पुष्प खिलते नहीं। योग होता नहीं रोग जाता नहीं, वक्त पर वैद्य तक आज मिलते नहीं।। साँस पर घोर संकट हजारों खड़े, मौत से प्राण की नित मुलाकात है दोष ही दोष बढ़ने लगे रक्त में, आज नीरोग रहना बड़ी बात है।। नीर निर्मल नहीं, क्षीर है ही नहीं, क्या लिखा है युवाओं की तकदीर में। देखने को मिलेगी हमें खेलते, बाल वीरों की तस्वीर तस्वीर में।। बात बूढ़ों की तुमको बताऊँ तो क्या, यह समझ लो कि दुक्खों की बरसात है।। दोष ही दोष बढ़ने लगे रक्त में, आज नीरोग रहना बड़ी बात है।। हैं जरूरी बहुत औषधालय बढ़ें, हो चिकित्सा सदा वैद्य मिलते र...
भाईदूज
कविता

भाईदूज

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भाई बहन के प्यार का है यह त्यौहार, भाई दूज पर मनता है प्रेम का यह त्यौहार, यमुना, यम भाई-बहन इनसे ही शुरुआत, करते रक्षा बहन की प्रेम भाव और प्यार, बहना करती भैया का आदर और सत्कार, रोली कुमकुम अक्षत से करती टीका ललाट। प्रेम के रक्षा सूत्र से बँधा दोनों का प्यार जीवन भर निभना रहे भाई बहना (व्यवहार) प्यार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रच...
भगवती वंदना
स्तुति

भगवती वंदना

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मां भगवती सदैव आपकी शरण रहूँ भले दुखों का प्रहार हो भले सुखों की बाहर हो। मां भगवती सदैव आपकी चरणवन्दना करुँ भले लोग मेरे खिलाफ़ हो भले लोग मेरे साथ हो। मां भगवती सदैव आपका चिंतन मनन करुँ भले नर्क की यातना झेलू भले स्वर्ग के आमोद-प्रमोद में रहूँ। मां भगवती सदैव आपके उन्माद में रहूँ। भले मुझ में सिद्धि वास करें भले मुझ में रिद्धि उल्लास करें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...