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पद्य

बेचारा आवारा
कविता

बेचारा आवारा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** थक कर बैठ गया हूँ थोड़े विराम के लिए मगर सोच मत लेना कि मैं जीवन से हार गया हूँ। बदलते रहते हैं जीवन के पड़ाव मगर सोच मत लेना मैं दूसरों के सहारे हो गया हूँ। बदलते हुए जमाने के साथ थोड़ा बदल सा गया हूँ मगर सोच मत लेना कि अब मैं आवारा हो गया। गुमसुम सा रहता हूँ गुमनाम लोगों के बीच मगर सोच मत लेना कि अब मैं बेचारा हो गया। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
निरोगी इंसान
कविता

निरोगी इंसान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पंछियों का कोलाहल दुबके इंसान घरों में मुंडेर पर बोलता कौआ अब मेहमान नही आता संकेत लग रहे हो जैसे मानों भ्रम जाल में हो फंसे। नही बंधे झूले सावन में पेड़ों पर उन्मुक्त जीवन बंधन हुआ अलग-अलग हुए अनमने से विचार बाहर जाने से पहले मन में उपजे भय से विचार। क्योंकि स्वस्थ्य धरा निरोगी इंसान बनना और बनाना इंसानों के हाथों में तो है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में ले...
लक्ष्मी का अवतार राधिका
स्तुति

लक्ष्मी का अवतार राधिका

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी का अवतार राधिका, बरसाने में आई। विष्णु स्वयं, अवतार कृष्ण हैं, गोकुल बजे वधाई। राधा बिना,कृष्ण आधा है, राधा ही कान्हा है। कान्हा बिना,अधूरी राधा, राधा बिन कान्हा है। राधा-माधव, युगल मनोहर, झाँकी सुंदर, प्यारी। करती हैं निर्मूल दुखों को, श्री वृषभानु दुलारी। हैं बड़भाग, राधिका रानी, कृष्ण बने अनुगामी। तीन लोक आधीन आपके, बारंबार नमामि। लीला मधुर,राधिका जी की, अविरल गंगा धारा। सुखद छटा, राधा-मोहन की, मनमोहन अति प्यारा। चरण शरण जो रहे युगल की, पाप, ताप मिट जाते। जनम-मरण के भव बंधन से, सब छुटकारा पाते। विष्णु रूप में जन्मे कान्हा, लक्ष्मी रूप में राधा। युगल रूप जो दर्शन करता, हट जाती है बाधा। देह रुप हैं कृष्ण कन्हाई, बनी आत्मा राधा। कृष्ण अधूरे हैं राधा बिन, बिन कान्हा के रा...
गांधी व स्वच्छता
कविता

गांधी व स्वच्छता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** देश के हर कोने में, जागरूकता में जारी स्वच्छता का वृहत अभियान गाँधीजी के जन्मदिन पर, तूल पकड़ रहा जोरो पर देशभर के हर कोने कोने में स्वच्छता का वृहत अभियान देशवासियों ने हर जगह बढ़ा दिया स्वच्छता का मान सन्मान, स्वच्छता की कमी न रखने का किया जा रहा है, गांव से शहर तक देशभर की जनता में ऐलान जारी है जारी रखो स्वच्छता का यह वृहत अभियान गाँधी जी स्वयं स्वच्छता में बढ़चढ़कर खुद समर्पित रहकर किये योगदान देशवासियो ने अब समझ लिया गाँधी जी ने बताया चलाया स्वच्छता का कितना आवश्यक है काम स्वच्छता का यह वृहत अभियान चपरासी से अधिकारी जुड़कर सफल बना रहा है झाड़ू पकड़कर देशव्यापी स्वच्छता का सफल स्वच्छता का यह वृहत अभियान गाँधी जी के जन्मदिनपर हर गली मोहल्ले में चलता है यह अभियान जोरो पर जुटते है हर तबके के ल...
तुझमें है काबिलियत
कविता

तुझमें है काबिलियत

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** नापना हो डगर तुझे, लांघ जाना हो पर्वत। मुश्किलों से ना घबराना, आ जाए कोई आफत।। राह में तेरे रोड़े अटकाए, बाधाएं अनगिन टकराए। साहस कभी ना खोना तुम, आ जाए कोई मुसीबत।। दोगले भी मिलेंगे राहों में, आदमी की परख कर लेना। पग नापना फूँक-फूँक कर, चाहे कोई दे तुम्हें नसीहत।। रौंदे जाते यहां ईमान-धरम, सत्य का पैर जमाए रखना। पहचान भीड़ में बना जाना, तुझमें ही है इंसानियत।। मुकाबला जरा डटकर करना, बन जाना अभिमन्यू तुम। तोड़ जाना चक्रव्यूह,कौरवों का, है तुझमें ही काबिलियत।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हमारा लोकतंत्र
कविता

हमारा लोकतंत्र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते, तीन रंग हर्षाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।। सत्य,प्रेम और सद्भावों के, बादलतो नित छाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। ज्ञान और विज्ञान की गाथा, हमने अंतरिक्ष जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। कला और साहित्य प्रगतिके, पैमाने तो भाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदितहैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं, विश्व गुरू कहलाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। जीव...
नवनिर्माण
गीत

नवनिर्माण

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बीती बातें भूले हम सब, आओ नवनिर्माण करें। नवल रचें इतिहास पुनः अब , जन-जन का कल्याण करें।। रहे मीत सच्चाई के हम , झूठों से मुख मोड़ चलें। निश्छलता हो प्रेम सुधा रस , भेद-भाव को छोड़ चलें।। सबक सिखा कर जयचंदो को, हर दुख का परित्राण करें। बने तिरंगे के हम रक्षक, शत्रु भाव का अंत रहे। शीश झुका दे हर रिपु का हम, हर ऋतु देख वसंत रहे।। देश भक्ति की रहे भावना, न्योछावर हम प्राण करें। नैतिकता की राह चलें हम, भौतिकता का त्याग रहे। मानवता की कर लें सेवा, दुखियों से अनुराग रहे।। अंतस बीज प्रेम के बोएँ, पाठन वेद -पुराण करें। राम -राज्य धरती पर लाएँ, अपनों का विश्वास बनें। तोड़ बेड़ियाँ अब सारी हम, भारत माँ की आस बनें ।। रूढिवाद को दूर भगाकर, हम कुरीति निर्वाण करें। परिचय :- मीना भट्ट "स...
मानवता
कविता

मानवता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक संपूर्ण मानवीय गुण है मानवता, जिसमें भरा होता है, सौहार्द, बंधुत्व, समता और समानता, इसमें समाहित रहता है सद्भाव, प्रेम, सदाचारिता और सद्चरित्र, यहीं भाव होता है मानव में पवित्र, सुख समृद्धि एवं शांति से जीवन हो परिपूर्ण, मानवता के लिए ये विचार महत्वपूर्ण, इसमें मानवीय जीवन निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं, जो है सर्वथा उपयुक्त व सही, लोकमंगल की भावना तथा उत्कृष्ट विचार, ये सब मानवता के परिवार, भौतिकता से ऊपर है आदर्शों का स्थान, सिर्फ अपने सुख की चाह नहीं छुपा इसमें सबका मान सम्मान। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
बेरंग होते रंग
कविता

बेरंग होते रंग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त रचना सच, कितना कठिन, दूभर होता है एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना उससे भी कठिन औरों को समझाना ज़िन्दगी के हर रंग में एकरस हो जाना नदी सी यात्रा कर सागर में समा जाना जन्म से तो मिलता प्यारा गुलाबी रंग असमानी रंग आने से धुंधलाने लगता अधिकारों पे कर्तव्य हावी होने लगते भूल जाती है गुड़िया हक़ का प्यार वार देती भय्यू पर सारा लाड़ दुलार लाल रंग की चूनर ओढ़े जाए पियाघर कड़छुल बन जाती दाल हिलाने को वार त्योहार पर ही ओढ़ती चुनरिया फ़िर बरसों सन्दूक में ही रखी रहती समा जाता लाल रंग काल के ग्रास में वह सोचती है सबके लिए दिल से ही ख़याल रखती सभी का हर तरह से फ़िर फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा बस और बस उसी के सिर पर आख़िर व सारे वो सुहाने रंग बदरंग होते जाते पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके स...
द्वयक्षरीय रचना
कविता

द्वयक्षरीय रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे हरिहरी ! राहु रारी है, रह-रह हरा रहा है राह। हीरे राही हार रहे हैं , हेरो हार हरो हुर्राह।। हाहा हीही हूहू हेहे, होहो हूँह हो रही रार। रो - रो रहा हरे हर राही, राहें हेर - हेर हर हार।। अर्थात - हे विष्णु भगवान ! राहु बड़ा ही झगड़ालू है, वह रह - रह कर हर रास्ते में सबको सता रहा है। इसलिए इस रार में होने वाली हार को देखो और उसको हरो अर्थात हार से बचाओ, क्योंकि जीवन पथ पर चलने वाले हीरे जैसे हर राहगीर को यह हार बहुत ही कष्ट कारी हो गई है। चारों ओर हा-हा ही-ही हू-हू हे-हे हो-हो हूँ-हूँ की त्राहि-त्राहि मची हुई है। हे हरि ! हर राह का हर राहगीर अपनी हार देख - देख कर बुरी तरह रो रहा है। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि म...
तो उपकार हमारा होता …
कविता

तो उपकार हमारा होता …

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ हम कहते, कुछ तुम सुनती, कितना सरल सहारा होता... प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। तीसो दिन जो साथ कभी था, अब इक-दिन भी पास न आए, कहाँ गया वह निष्ठुर होकर, कहाँ भाग्य ने खेल दिखाए, कभी-कभी जो दर्शन होता, तो संसार हमारा होता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। जब से मुझसे दूर हुई तुम, मैं एकांत से निकल न पाया, तेरे दर्शन को उर तरसे, मन व्याकुल होकर बौराया, संग व्यतीत की याद न आती, तो भी गुजर हमारा होता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। सावन-बरसा, कजरी आयी, तुमको कब मेरी सुधि आयी हम तो जरे-बरे भादौ में, तुझे क्वार की बात न भायी, चौमासे की बूंँद बिसारी, तन-मन जाए प्यासा-रोता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। कतकी-पूनो,...
बेटी
कविता

बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** तप है बेटी त्याग है बेटी राधा और सीता है बेटी। ध्यान है बेटी योग है बेटी, गवरा और गायत्री है बेटी। भक्ति बेटी संस्कार है बेटी, "मीरा" भक्ति का वरदान है बेटी। साहस बेटी शक्ति है बेटी, रणचण्डी "लक्ष्मी" है बेटी। क्षमा और शील बेटी हे, देवी अहिल्या सी पावन और पवित्र है बेटी। माधुर्य ममता रक्षा है बेटी, ज्योति पुँज आयु है बेटी। आँगन की तुलसी है बेटी, पायल की झंकार है बेटी। मान सम्मान और स्वाभिमान है बेटी। संयम प्रतीज्ञा और परिक्षा है बेटी, राम की प्रतिक्षा "अहिल्या" है बेटी। माता का अभिमान है बेटी, पिता का स्वाभिमान है बेटी। किरण-विजय के लबो पर रहती, प्यारी सी मुस्कान है बेटी। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ...
पुरानी यादें
कविता

पुरानी यादें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पुरानी यादों में कहां खो गई तुम अतीत के अनुभव रोमांचित व सुखद है देखो कहीं डूब उतरना नहीं उन परछाइयों के साथ नहीं तो वृत की छाया दामन छुड़ाकर भाग जावेगी। चक्र में घूम जाओगी। जड़ चेतन के साथ समय को रीता मत छोड़ो यही अतीत का रक्षक बन तुम्हें डरा देगा और तुम वृत पकड़ने के लिए फिर तुम नहीं सुबह या रात की शीतल चांदनी में झिझकतीं चली जावोगी, घुटजाओगी और पुनः वृतमें आने के लिए तुम्हें इस समय को पकड़ना ही पड़ेगा दौड़कर, गिरकर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले...
वो लड़की हूँ
कविता

वो लड़की हूँ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हाँ मैं एक लडक़ी हूँ हाँ मैं वो ही लडक़ी हूँ जो अपनी हो तो चार दीवारी में कैद रखतें हो। किसी ओर की हो तो चार दीवारी में भी नज़रे गड़ाए रखतें हों। हाँ मैं एक लडक़ी हूँ हाँ मैं वो ही लडक़ी हूँ जो अपनी हो तो घर की इज्जत समझते हो। किसी ओर की हो तो सरेआम चार लोगों के बीच उसकी इज्जत उछालते हो। हाँ मैं एक लडक़ी हूँ हाँ मैं वो ही लडक़ी हूँ जो अपनी हो तो प्यार,मोहब्बत से दूर रखते हो किसी ओर की हो तो मोहब्बत के नाम से उसके जिस्म की ख्वाहिश करते हो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
ज़वानी में क्या रखा है
ग़ज़ल

ज़वानी में क्या रखा है

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** तू मेरी आँखों के सामने है तो माज़ी में क्या रखा है तेरी फ़लसफ़ी तस्लीम करूँ कहानी में क्या रखा है। ज़हनी नफ़सियाती का कोई मर्ज़ नहीं दर्द क्यों ज़र्द तो टूटे दिल–ए–मशरिक़ की रवानी में क्या रखा है। मेरी साँसें इतनी आरिज़ी थी जितनी बेकल थी बेख़ुदी तेरी आँखों में तैर जाऊँ तो फिर सूनामी में क्या रखा है। कोहिनूर क्या है पत्थर है तू तो जीता जागता हुस्न है तेरे इश्क़ में डूब न जाऊँ तो सुहानी में क्या रखा है। तेरी निगाहों की जाज़बियत दिल में दवा सा असर करे तुझसे प्यार मैं क्यों न करूँ यूँ बेइमानी में क्या रखा है। सारे आईनों को जंग लग जाए आँखें धुँधली हो जाए तू न बन पाए हमसफ़र तो फिर ज़वानी में क्या रखा है। शब्दार्थ :– माज़ी :– अतीत ज़हनी नफ़सियाती :– दिमाग़ी मनोरोग मशरिक़ :– पूरब, पूर्व दिशा आरिज़ी :– व्यथित सु...
नेता जी
कविता

नेता जी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** फिर आया मौसम चुनावों का। नेता करेंगे अब दौरा गांवों का। कैसे हाथ जोड़कर ढोंक लगाते, प्यारे नेता शहर गली चौबारे का। कभी पांच साल में हाल ना पूछें, यूं कहते जन सेवक जनता का। सदा चमचमाती लाल मर्सिडीज, धूल उड़ाता काफिला कारों का। भोले बगुले सी पोशाक पहनकर, गले महके हार सजीले फूलों का। कितने जय जयकारे जोर लगाते, संग झुंड छुठ भैया नेताओं का। कभी वादे इनको याद नहीं रहते, रहे यह चश्मा लगाकर लोभ का। चुनाव में पैर पकड़ते अम्माजी के, यूं साष्टांग दंडवत करते ताऊ का। कितने भोले - भाले देश के नेता, पल-पल रंग बदलते गिरगिट का। यह लोकतंत्र के रोबीले राजा, क्यों सगे कहां कब जनता का। सरोकार नहीं विकास से इन्हें, नेता बस ध्यान रखेंगे जेबों का। जीत चुनाव पाते जादूई छड़ी, माल दोनों हाथ बटोरें देश क...
सतरंगी सपने
गीत

सतरंगी सपने

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सतरंगी सपने बुनकर के, तुम बढ़ते रहना। चाहे कितना दुष्कर पथ हो, तुम चलते रहना।। उच्च शिखर चढ़ना है तुमको, तन-मन शुद्ध करो। नित्य मिले आशीष बड़ों का, उत्तम भाव भरो।। थाम डोर विश्वास नदी -सम, तुम बहते रहना। सत्कर्मों के पथ चलकर तुम, चंदा -सम दमको। ऊंँची भरो उड़ानें नभ में, तारों-सम चमको।। संबल हिय पाएगा साहस, बस भरते रहना। सपन सलौने पाओगे तुम, धीरज बस रखना। करो साधना राम नाम की, फल मधुरिम चखना।। तमस् दूर करने को दीपक, सम जलते रहना। अथक प्रयासों से ही जग में, लक्ष्य सदा मिलता। सुरभित जीवन बगिया होती, पुष्ष हृदय खिलता।। सारी दुविधाओं को तज कर, श्रम करते रहना। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : ...
हां, हूं नशे में …
कविता

हां, हूं नशे में …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उस नशे का कोई मोल नहीं जो किसी और दुनिया की सैर न कराए, दूसरी दुनिया का एक एक बंदा अपनी बात लेकर न टकराए, मैंने भी किया है नशा जिस नशे में मैं चूर रहता हूं, जिसका लिए हरदम सुरूर रहता हूं, इस नशे के कारण मैंने एक और बहुत बड़ी दुनिया जाना, जहां बना लिया अपना ठिकाना, वो दुनिया है बेबस मजबूर लोगों का, पाई पाई के लिए कशमकश करते भूखे,प्यासे मजदूर लोगों का, जिन्हें नहीं पता अपना हक़, लिए घूम रहे हैं माथे पर मिथक, खा रहा है कोई जिनके हिस्से की रोटी, जिन्हें पड़ रहा बार बार सीना लंगोटी, उन्हें खबर ही नहीं बहुत लोग खड़े हैं चोरी करने किसी और की टोंटी, हां है मुझे लोगों को जागरूक करना, क्योंकि अभी भी है मुझमें नशा हावी, साहू-फुलेवाद का, अम्बेडकरवाद का, पेरियारवाद का, संविधानवाद का, और यहीं नशा मुझे सैर क...
बेटी कभी न बोझ
कुण्डलियाँ

बेटी कभी न बोझ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) करना मत तुम भेद अब, बेटा-बेटी एक। बेटी प्रति यदि हेयता, वह बंदा नहिं नेक।। वह बंदा नहिं नेक, करे दुर्गुण को पोषित। बेटी हो मायूस, व्यर्थ ही होती शोषित।। दूषित हो संसार, पड़ेगा हमको भरना। संतानों में भेद, बुरा होता है करना।। (२) बेटा कुल का नूर है, तो बेटी है लाज। बेटा है संगीत तो, बेटी लगती साज़।। बेटी कभी न बोझ, बढ़ाती दो कुल आगे। उससे डरकर दूर, सदा अँधियारा भागे।। जहाँ पल रहा भेद, वहाँ तो मौसम हेटा। नहिं किंचित उत्थान, जहाँ बस भाता बेटा।। (३) गाओ प्रियवर गीत तुम, समरसता के आज। सुता और सुत एक हैं, जाने सकल समाज।। जाने सकल समाज, बराबर दोनों मानो। बेटी कभी न बोझ, बात यह चोखी जानो।। संतानों से नेह, बराबर उर में लाओ। फिर सब कुछ जयकार, अमन के नग़मे गाओ।। (४) जाने कैसी भिन्नता, मान रहे हैं लोग।...
व्यथा मणिपुर की
कविता

व्यथा मणिपुर की

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** मूक बधिर हुआ धृतराष्ट्र द्वापर जैसी फिर चूक हुई सत्ताधारी अब चुप क्यों है, राज सभा क्यूं अब मुक हुई।। लोक तंत्र की आड़ न लेना क्या बोटो के ही सब गुलाम है या द्वापर जैसी सभा हुई एक पांचाली आज भी समक्ष सबके निर्वस्त्र हुई सरे आम है।। क्या कोई पुरुष नही हुआ होगा या कलयुग का ही सारा काम है क्या कृष्ण नही किंचित भी कही धर्म धारण करने का क्यूं फिर स्वांग है।। कलयुग में क्या धर्म यूंही हर पल पग से कुचला जाएगा क्या स्त्री के सम्मान की खातिर अब कोई पुरुष न कभी आएगा।। क्यूं चुप थे सभी पुरुष पुरोधा, आज मानवता हुई शर्मसार हैं हैवानियत देखो ये कैसी थी कि, आज हर स्त्री फिर क्यूं लाचार हैं।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : म...
ओ साहेब इधर-उधर मत देख
कविता

ओ साहेब इधर-उधर मत देख

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** ओ साहेब इधर-उधर मत देख। चांद पे भारत जाता देख।। देख सोमनाथ की शोभा न्यारी। वृंदावन एक नगरी प्यारी।। कृष्ण को माटी खाता देख। चांद पे भारत जाता देख।। उत्तर में देख हिमालय को। अमरनाथ केदारनाथ शिवालय को।। दक्षिण में शिवलिंग राम बनाता देख। चांद पे भारत जाता देख।। गंगा यमुना की निर्मल धार देख। क्षमाशील मेरा हथियार देख।। यही सूरज को पहली किरण बरसता देख। चांद पे भारत जाता देख।। परिचय :- नरेंद्र शास्त्री निवासी : कुरुक्षेत्र घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
सत्य की कठोरता को
कविता

सत्य की कठोरता को

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य, काव्य में रसत्व का आनन्द नहीं होता तो।। रूखे सूखे ज्ञान को भी सरस बनाता कौन, कवि जो स्वतन्त्र स्वच्छन्द नहीं होता तो।‌। लय में लालित्य नाद, भाव माधुरी में राग, मिट जाते कविता में, छ्न्द नहीं होता तो।। कटता न काटे एक पल ऊब जाते "प्राण" लोगों को कवित्व जो पसन्द नहीं होता तो।‌। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानि...
अभिवादन धरा का
कविता

अभिवादन धरा का

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि का स्वागत करने हेतु, ओस लाऐ रजत हार तरु हंसते मन्द हास्य छोड़कर मधुर राग। खिलती कलियां महकते फ़ूल बढ़ाते उपवन का सौन्दर्य। मद मस्त पवन के झोंकों का उपवन में खिलते फूलों का मानव मन करता रसास्वादन। करता झुक कर धरा का अभिवादन। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
लगता ये मन भी पागल है
कविता

लगता ये मन भी पागल है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरे मौन से तड़प उठा हूॅ, हृदय आज फिर-से घायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है। जाने क्या तुझमें भाषित है, प्रिये-कल्पना कुछ शासित है; अन्यमनस्क तुझको देखा हूॅ, भाग्य, प्रेम पर फिर हासित है! कैसे खुद को समझाऊॅ मैं, छिना प्रेम का ज्यों ऑचल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। उच्च भाल पे शिकन पड़ी है, भौंह बीच इक बूॅद जड़ी है; स्वर्णहार गलहार- सुशोभित, कीर-नासिका-नथन-लड़ी है; कर्णफूल हैं लटके जैसे- श्रवणद्वार पे इक सॉकल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। 'दृढ़-छरहरी, सुन्दरी-काया, रंग-ढंग की मोहक-माया; खुला-केश करधन तक बिखरे.. जैसे नाग-मणि की छाया'; अब ना श्रद्धा इन बातों में- बिछिया-चुप, मुखरित-पायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगत...
बेटी
कविता

बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे जीवन की प्रथम कविता १६.०४.२०२० बेटा और बेटी तराजू के दो पलड़े हैं, बेटी प्रकृति का वरदान है, बेटी प्रभात की किरण की मुस्कान है, बेटी ना होती तो दुर्गा पूजा कहां होती, बेटी तू दुर्गा है बेटी वृषभान दुलारी है, बेटी जनक नंदिनी है, बेटी मीरा भक्ति का वरदान है, बेटी कृष्ण की कर्मा है, बेटी लक्ष्मीबाई तलवार की धार है। बेटी तो प्रतिभा की खान है, बेटी इंदिरा है बेटी विलियम हे, बेटी शक्ति है बेटी साहस हे, बेटी ममता ललिता और रमन है। बेटी तो मां की आत्मा और पिता के दिल का टुकड़ा है, बेटी बिन जग अधूरा है। बेटी ज्योति है बेटी दाऊ है बेटी ममता की छांव है, बेटी आँगन मे पायल की झंकार है, बेटी लाल चुनरी में दीपक का प्रकाश है, बेटी आयु है बेटी निधि है, बेटी तो आंगन में तुलसी सी बहार है। बेटी किरण की मुस्कान है,...