Saturday, February 1राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

स्त्री और रंग
कविता

स्त्री और रंग

माधवी तारे लंदन ******************** दुनिया की आधी आबादी की, अटल अमिट शान है स्त्री जीवन को रंगीन बनाने वाली, चिर प्रेरणादायिनी है स्त्री कभी चांद सी शीतल, कभी सूर्य सी दाहक, प्रेम इज़हारी, दंडदायिनी है स्त्री. कभी पदार्थाभाविनि, रसस्वादिनी, पाकगृह की कुशल, स्वामिनी है स्त्री शिव की शक्ति, हरि की चरण दासी, समर क्षेत्र में रणरागिणी है स्त्री संत विद्वानों की जन्मदात्री, रत्न प्रसविनी है स्त्री रंग उसका हो कौन सा भी, रस रंगहीन है स्त्री बिन जिंदगी प्रातः स्मरणीय पंच कन्याओं की स्मृति, पंच रंगयुता पाप विनाशिनी है स्त्री परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
एक रात आप …
ग़ज़ल

एक रात आप …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** साहब एक रात आप यतीमखाने में रहिए, दौलत के भूखे न बन खुदगर्ज जमाने में रहिए। हर शहंशाह ने लिखवाए कसीदे अपने दौर में, चर्चे रहे फकीरों के फकीर बन ज़माने में रहिए। मेरे संगे बुनियाद की तामीर में तो पत्थर नहीं है, आप हुजूर एक रोज मेरे भी गरीबखाने में रहिए। प्यार खुलूस इज्ज़त चाहत सब है मेरी बस्ती में, त्यौहार में कभी आप मेरे आशियाने में रहिए। मुसीबतों से जो लड़ते-लड़ते फौलाद बना हूं मैं, लाख हो नशा दौलत का मगर पैमाने में रहिए। तख्तियां कितनी भी हो मगर दरार नहीं मुझ में, वो शख्स जैसा हो आप रिश्ता निभाने में रहिए। मेरे घर के तमाम पाए ज़मींदोज़ हो चुके आब, आप सच लिख के जालिम के निशाने में रहिए। खुले आसमान में रहते हैं बहुत से लोग शाहरुख़, कभी एक रात आप उनके शामियाने में रहिए। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया...
अकस्मात नहीं होता
कविता

अकस्मात नहीं होता

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते हमें मिल जाते हैं मगर यह फरिश्ते नहीं मिलते साहित्य के सफर में गर तुम्हारा यह साथ नहीं होता। फिर हमारे झुके कंधों पर किसी का हाथ नहीं होता। तुम्हारे ही शीर्षको ने साहित्य का ये जहां दिखाया है तुम्हारी बेरुखी होती तो दिल मे जज्बात नहीं होता। मेरे लिए जो दुश्वारियां उठाई मुझे इसका एहसास है दिल से दोस्ती है इसमें कभी विश्वासघात नहीं होता। रिश्ते हमे मिल जाते हैं मगर यह फरिश्ते नहीं मिलते अगर मिल जाए फरिश्ता वह जाने हयात नहीं होता। मेरे शब्दों से अगर कोई ठेस पहुंची हो तो माफ करना दिल से निकली ये दुआ से कभी आघात नहीं होता। ये तो मेरा नसीब है कि तुम्हारा यहां मुझे साथ मिला नसीब से मिला ये साथ कभी भी खैरात नहीं होता। रिश्ता हमने वजूद से नहीं तुम्हारे दिल से बनाया है दिल का रिश्ता दिल से है यह अकस्म...
जल राशि
कविता

जल राशि

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जल राशि कभी लगती मचलती सी कभी लगती उबलती सी कभी लहराती, कभी इठलाती। रवि किरणो मैं नहाती सी। किरणों से बतियाती सी क्या कहुं तुझे अगाध जल राशि अन अनेक करतब दिखाकर करती थी प्रकृति को श्रृंगारित। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
उनकी याद में
कविता

उनकी याद में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उनकी याद में ऑखें लगी, बरसात हो गई! बीते सपनों से मुझे जगा, ये 'रात' सो गई !! यही रात जो प्यासे जग की किस्से सुनती थी यही रात जो चॉदनियों में हॅस-हॅस मिलती थी यही रात कि जिसमें छत पे पायल छमके थे यही रात जो अभिसारों में खोकर रहती थी यही रात आज ऑसुओ की लड़ियॉ पिरो गईं! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई!! यही रात जिसमें सब-लुटकर तुमको पाया था यही रात जिसमें गीतों-से हृदय सजाया था यही रात जिसमें अम्बर में तारे बिखरे थे यही रात, रूप से तेरे, हम भी निखरे थे यही रात आज हर सुख पे संघात हो गई ! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई !! यही रात है जिसमें तुमको अपलक देखा था यही रात है जिसने तुमसे विधि को लेखा था यही रात में रूपवती इक सजनी सोई थी यही रात है जिसने मीठी यादें बोई थी यही रात आज विरहों-भरी इक...
प्राण का अक्षरजाल
कविता

प्राण का अक्षरजाल

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** "उठ विषज्ञ फणधर थम अञ्चल, इस ऊपर भय ऋक्ष शङ्ख दह। औघड़ कई छत्र तज आए , बढ़ डग ऐन ओढ झट अं अ:।।" अर्थात - विष के स्वाद को जानने वाले हे नागराज! रुको और उठकर सुनो। इस क्षेत्र के ऊपर जंगली रीछ, गहरे पानी के भँवर और उनमें बसने वाले शंखों का भय है। इस कारण ही कई औगढ अघोरी सन्त, जिन्हें श्मशान में भी भय नहीं लगता है वे भी अपने - अपने छत्र त्याग कर डग बढ़ाते हुए अंग वसन स्वरूप 'अं अ:' अर्थात जो न तो स्वर हैं और न व्यंजन हैं, को ओढ़कर यहाँ आ गए हैं। इसलिए तुम भी उधर मत जाओ। विशेष - ===== उक्त पँक्तियों में हिन्दी की पूरी वर्णमाला है। केवल व पर इ की मात्रा है जो शक्ति की और ङ और ञ स्वर रहित औघढ़ सन्तों के प्रतीक हैं जो अपने छत्रों को छोड़कर चले आए हैं। शेष सभी स्वर सहित व्यंजन हैं या पूर्ण स्वर हैं जो सां...
आओ माँ कुष्माण्डा
स्तुति

आओ माँ कुष्माण्डा

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** काषाय कल्मष सब जिनसे हैं हारे हे कुष्माण्डा देवी, आओ हमारे द्वारे नवरातों में तेरे भक्त लगाते गुहारे शैलजा भवानी आओ हमारे द्वारे कर जोड़ करें हम‌ विनती तिहारे दु:ख क्लेश सब मिटा दे तू हमारे जय माता दी, कह, भक्त बुलाते सारे गिरिजा भवानी, आओ हमारे द्वारे शक्ति, स्फूर्ति, ज्योति तेरे ही सहारे क्षमा ज्ञान, दया मातु तेरे ही आधारे शत्रु-दल का करे तू ही तो संहारे हे माता पार्वती, आओ हमारे द्वारे स्वागत हेतु लाये हैं नैवेद्य हम सारे आकर बढा जगदम्बिके मान हमारे करुणामयी ! हम हाथ हैं देखो पसारे मातेश्वरी!आ भी जाओ हमारे द्वारे। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर...
द्रोपदी
स्तुति

द्रोपदी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या दोष मेरा था पांडु पुत्र, जो दांव पर मुझे लगाया है, क्या अबला समझकर मुझको तुमने दाँव पेच पर लगवाया है, क्यों मौन बैठे तुम रहते हो, कहा गया गांडीव धनुर्धर? भीम की गदा की शक्ति कहा, तलवार क्यों पडी धरा पर आज। क्यो झुका हुआ हे मस्तक पितामह का? अधर्म की ओर आज झुका हुआ? बंधे राजधर्म की जंजीरो से है, एक लाज द्रोपदी की लगी है आज। पासो मै हारी है द्रोपदी, द्रुत क्रीड़ा की पासे हे वो बनी, दुर्योधन अधर्मी बुद्धि, दुशाशन निर्वस्त्र करो तुम आज दुशाशन साडी तुम खिंचो निर्वस्त्र करो द्रोपदी को तुम, पाँचो पाँडव हारे बैठे, द्रोपदी ने जब सबको पुकारा है, नही गांडीव चला अर्जुन का है, नही गदा चली भीम की है। अधर्म के आगे धर्मराज, आज मौन हुये भीष्म पितामह है, द्रोपदी की लाज पे आच आज दुसाशन खींच रहा साडी, अबला ...
बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है
ग़ज़ल

बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
अब कोई भी गीत न होगा
कविता

अब कोई भी गीत न होगा

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा! अब ना कोई कविता होगी अब कोई भी गीत न होगा! जिस प्रकृति में चित्र है तेरा वो अब कितना रिक्त रहेगा जिस पानी में दर्पण तेरा उन झीलों को कौन सहेगा जिन झरनों में कभी नहाए उनमें कैसे विम्ब भरेंगे जिन वृन्तों को छूते थे तुम वो कैसे अब हरे रहेंगे कैसे तुम्हें बताऊॅ प्रियतम! तुम सा कोई मीत न होगा! दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा।। सूने पनघट पर कब जाने गोरी तेरे पॉव पड़ेंगे अतृप्त हुए यदि मानस-हंसा कैसे उनके दिन बहुरेंगे जिन बागों की तुम्हीं मोरनी उनमें कैसे स्वर बिखरेगा जिन डालों पर कूजी कोयल उनमें कैसे बौर भरेगा कैसे तुम्हें बताऊॅ प्रियतम! तुम बिन मौसम-शीत न होगा। दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा!! शरद-चॉदनी में कब जाने ...
मां कालरात्रि
भजन

मां कालरात्रि

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माता तेरा रूप निराला, कहीं शांत कहीं आग की ज्वाला। कहीं अंबे कहीं काली माता, कही खड़ग कही खप्पर ज्वाला। सौम्य रूप तुझमें हम पाते, महिषासुर मर्दिनी है तु काली। शिव के ऊँपर चढ़कर तू भागी, चंडी रूप ले रक्तबीज संहारे। नर मुंड की माला धारे, असंख्य रूप में शुंभ निशुंभ संहारे। हाथों में तलवार खड्ग मां, विद्युत की है गले में माला। चक्र त्रिशूल वज्र तुम्ह धारे, चंडी रूप से शिव भी भागे। भक्तो की हे मां यही पुकार, कलयुग में मां तुम्ही पधारे, असंख्य राक्षस आतताई माता। कन्या का अति शोषण करते, कन्या असुरक्षित है यहां माता। आज खड़क ले आओ मां, निशाचरो को मिटाओ मां। दुष्टों का वध कर जाओ मां। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन...
कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …
ग़ज़ल

कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** होती नहीं उजागर, तो और बात होती। होती जो बात घर पर, तो और बात होती।। पहरे लगे हुए थे, वातावरण था भय का, होता नहीं अगर डर, तो और बात होती।। कुछ दूरियाँ बना लो, सब लोग क्या कहेंगे, होते कहीं जो बाहर, तो और बात होती।। सरनाम थे कभी जो, बदनाम इश्क में हैं, करते न प्यार पथ पर, तो और बात होती।। मन में दबा रखी है, हर बात बावरी ने, होती जो बात खुलकर, तो और बात होती।। आकाश के सितारे, लटके हुए टंँगे हैं, बसते अगर धरा पर, तो और बात होती।। कैसा सवाल था यह, तुम भी न कर सके हल, देते सटीक उत्तर, तो और बात होती।। पानी यहाँ कहाँ है, मरुथल मलाल का है, मिलता अगर सरोवर, तो और बात होती।। यह जान भी न जाती, नुकसान भी न होता, लाते जो "प्राण" को घर, तो और बात होती।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौर...
मेरी आस
कविता

मेरी आस

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि रश्मि से लेकर शिक्षा बढ़ते रहो घने तम में तिमिर दूर होगा एक दिन तो शांति मिलेगी जीवन में। शीतल, श्वेत, स्वच्छ, अंतर मन तू जैसे चंद्र का शीतल प्रकाश जीवन रण में उज्जवल हो तुम यही एक मेरी आस। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं ...
हरिगीतिका छन्द
छंद

हरिगीतिका छन्द

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** हरिगीतिका छन्द हे माँ भवानी ! हम खड़े कबसे, तुम्हारे धाम हैं। हे शक्ति रूपा नित्य रटते, नाम आठों याम हैं। आए शरण जो आस लेकर, पूर्ण करती काम हैं । हम भूल सकते एक पल भी, कब तुम्हारा नाम हैं।। माँ कर कृपा इतनी हृदय से, द्वेष ईर्ष्या दूर हो। मंगल महकते भाव मन में, चेतना भरपूर हो। हुंकार माँ ऐसी भरो सब, आलसी जन शूर हों। मन के तिमिर सब दूर होकर, सूर्य-सा नित नूर हो।। वाणी मधुर हम बोल कर मन, में अमिय रस घोल दें। इतनी कृपा कर दो कि दिल के, द्वार सबके खोल दें। माँ दो अभय वरदान हमको, सत्य सबसे बोल दें। हम सत्य के पथ पर चलें यह, साधना अनमोल दें।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गु...
सपने सजाये बैठा हूँ
कविता

सपने सजाये बैठा हूँ

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दिल मे कितना बोझ लिये बैठा हूँ दिल मे दर्द के सैलाब लिए बैठा हूँ बहुत दूर तलक है अंधेरा ही मगर पर उम्मीदों की दिये जलाये बैठा हूँ अंधेरा भी मिट जायेगा एक दिन बाहरें फिर लौट आयेगी एक दिन एक दिन आयेगी रौशनी कंही से मन को अब ये समझाये बैठा हूँ रात के बाद दिन का आना तय है दुख के बाद सुख का आना तय है आयेगी नूतन किरण अब नभ से अब सूरज से नजर मिलाये बैठा हूँ अरमानो से सजी सब रातें होंगी खुशियों की नित अब बातें होंगी हर दिन होगी खुशियों का मेला मन मे यह विश्वास जगाये बैठा है कितने सपने भी अब टूट रहें है कितने अपने भी अब छुट रहें है टूटती तारों संग जाने क्यों कर नवीनतम सपने सजाये बैठा हूँ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- ...
चंदन पटली की चौकी पर
भजन

चंदन पटली की चौकी पर

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** शारदेय नवरात्रि आ गई, अब पांडाल सजे हैं। घर-घर बंदनवार शोभते, औ रण तूर्य बजे हैं। माता रानी आज आ रहीं, घर-घर बजे बधाई। हुआ आगमन शुभ्र शरदका, आज शुभ घड़ी आई। नवराते माता रानी के, मिलकर सभी मनाते। वंदनवार फूल मालायें, चुन-चुन पुष्प बनाते। चंदन पटली की चौकी पर, माता आज बिराजें। सुंदर कलश सजे हैं प्यारे, मृदु धुन बाजे बाजें। मंगल गीत गूँजते चहुँ दिश, लगा रहे जयकारा। सजा हुआ माता रानी का, है पंडाल न्यारा। भक्त मंडली भजन गा रही, चौकी है माता की। बनी रहे सारे भक्तों पर, कृपा आज दाता की। पूजा की थाली लेकर अब, भक्त मंडली जाती। लाल चुनरिया ओढ़ शीश पर, भजन प्रेमसे गाती। रक्त पुष्प सँग लाल चुनरिया, माता को भाती है। भक्त मंडली माँ दुर्गा से, आशीषें पाती है। माता की चौकी अति प्यारी, माँ को मोहित करती। मानव के जी...
अंतिम संस्कार
कविता

अंतिम संस्कार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नाम बदलिये अपने महत्वपूर्ण संस्कारों के साहबानों, सिर्फ मुझे पता है आपके संस्कारों के नाम पर अब तक कितना लुटा चुका हूं, अपनी जमीन भी गंवा चुका हूं, मृत्यु पूर्व इलाज कराना मेरा फर्ज़ था, मृतक के दिए जीवन का चुकाना कर्ज़ था, मृत्यु के दिन, जोर देकर सभी की उपस्थिति में आपने कहा था ये अंतिम संस्कार जरूरी है, किया मैंने अंतिम संस्कार, जिसके लिए कर दिया था और भी जरूरी कार्यों को दरकिनार, विधान कह करवा सम्पूर्ण श्रृंगार, कहा कर लो आखिरी दीदार, मिट्टी कार्य के बाद तीसरे और दसवें दिन फिर करने पड़े थे कुछ संस्कार, जिसे आपने नाम दिया है मृत्युभोज, अब तक हैरान हूं ये है किसकी खोज, गांव, परिवार, रिश्ते नाते सबको खिलाया, घर के अंतिम दाने को भी मिलाया, बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों में जिंदगी को पटरी पर ला ...
मेरी कामना
कविता

मेरी कामना

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हे नारी तुम नि:संदेह बहुत शक्तिशाली हो, हजारों मर्दों की भीड़ भी तुम्हें देखकर खामोश हो जाती है। इतिहास में एक वीरांगना लक्ष्मीबाई ऐसी भी थी, जिसके सिर्फ ख्यालों से ही पूरी नारी जाति जोश में आ जाती है। हे नारी तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, सभी व्रतों, त्यौहारों में सिर्फ तुम ही उपवास रहती हो। सभी धर्मों, परंपराओं को मर्दों ने ही बनाया है, लेकिन तुम ही परंपराओं को निभाती रहती हो। हे नारी तुझमें बहुत सहनशीलता है, तुमनें सदियों से बहुत यातनाएं झेली है। कभी सती प्रथा के नाम पर चिता में जिंदा जली है, तो कभी दहेज के नाम पर प्रताड़ना झेली है। हे नारी तुम्हारे भीतर असीम शक्ति छिपी हुई है, तुम्हें अपनी शक्ति को नये आयाम के साथ गढ़नी होगी। आज दिन पर दिन तुम पर अत्याचार हो रहें है, अपने स्वाभिमान के ...
आया है नवरात्रि का त्योहार
भजन

आया है नवरात्रि का त्योहार

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** आया है नवरात्रि का त्योहार। नवरात्रि में माँ का सजेगा दरबार। गली-गली गूँजेंगे भजन कीर्तन, माँ अंबे की होगी जय जय कार।। आयी है होकर शेरों पर सवार। माता ने किये है सोलह श्रृंगार। लगे सौम्य सुंदर मुखड़ा माँ का, दिखता आँखों में असीम प्यार।। माँ ने करने को भक्तों का उद्धार। नवरात्रि में लिये थे नौ अवतार। पाप जब बढ़ गया था दुष्टों का, किया था माँ ने असुरों का संहार।। मेरा हृदय है मइया आपका द्वार। आपकी कृपा से होगा बेड़ा पार। सुख, समृद्ध, स्वस्थ हो प्रियजन, सुनो इतनी अरज करो उपकार।। जगदम्बे अब फिर से लो अवतार। या भर दो बेटियों में शक्ति अपार। डाले जो कोई उनपर गन्दी नजर, चंडी बनके कर दे दुष्टों का संहार।। परिचय - सोनल मंजू श्री ओमर निवासी : राजकोट (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
पापा
कविता

पापा

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** लड़खड़ा कर गिरा पहली बार जब मैं, तुमने बाहें बढ़ाकर संभाला मुझे; उंगली थामी थी तुमने मेरी ज़ोर से, फिर गिरने से पहले उठाया मुझे। लड़खड़ा ...... घोड़ा बनने को जब मैंने तुमसे कहा, तुमने पीठ पर अपनी मुझको चढ़ाया; हराया था मैंने दोस्त को दौड़ में, मेरे बस्ते को तब तुमने उठाया। लड़खड़ा ...... कंटक भरी राह पर चलना सिखाया, तुमने उड़ना सिखाया सपनों को मेरे; पहचान कराया स्वाभिमान से मेरा, मेरा अभिमान हो पापा तुम मेरे। लड़खड़ा ..... मैं खड़ा जब हुआ अपने पैर पर, सोचा बोझ तुम्हारा कुछ कम करूं; तुम बोले कि मैं हूं पापा तेरा, अब मित्र बनकर सदा हम रहें। लड़खड़ा ...... आयु ने पापा को कभी छेड़ा नहीं, कंधे उनके अभी भी झुके ही नहीं; मेरे बेटे के साथ लगाते ठहाका, मैं किनारे खड़ा मुस्कुराता रहा। लड़खड़ा .... ...
बेटी
कविता

बेटी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अनचाही होकर भी बेटी मन को सम्मोहित कर लेती है उसकी नन्हीं चितवन ही अनचाही को चाही कर देती है ह्रदय मर्म को छूनेवाली वही एक नारी है किन्तु भावनाशून्य पिता को वही एक भारी है बेटी न केवल पुत्री है रमा, शारदा, वह दुर्गा है बलिदान, त्याग, ममता की मूर्ति अमित सौहार्द, सहनशक्ति गृहलक्ष्मी बन असहज क्षणों में सखी-सहेली बन जाती है माँ बन वह ममता का सारा कोष लुटाती है भगिनी बनकर स्नेहसूत्र में बाँध सभी को लेती है पत्नी बन वह न्योछावर साँसें अपनी कर देती है। शिक्षित होकर वह माँ सरस्वती बन जाती है प्रश्न उठे गृहरक्षा का जब दुर्गारूप वह धर लेती है इसीलिए वरदान है बेटी मात-पिता का मान है बेटी दो कुलों की तारक है अतुल शक्ति की खान है बेटी। जयहिन्द जय हिन्द की बेटी परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी...
दर्शन दो दुर्गा माँ
दोहा

दर्शन दो दुर्गा माँ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप। संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।। बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार। करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।। भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान। हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।। सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन। दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।। छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप। उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।। हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम। दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।। ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम। यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।। दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम। धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।। दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण। नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।। सिंहव...
सुधार में पाठ्यक्रम
कविता

सुधार में पाठ्यक्रम

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारतीय समाज के सुधार में ... आठवीं कक्षा के पाठ आठ में ... हिंदू पुराणिक कथाओं का, व्याख्यान किया जा रहा है। सती को दक्ष की, पत्नी बताया जा रहा है। इतने से भी सुधारकों का मन नहीं भरा जब। सती प्रथा को सती से जोड़कर जोहर बताया जा रहा है। पुराणों की यह कैसी ... कथाएं बता रहे हैं। विद्यार्थियों में कैसे भ्रम उठाए जा रहे हैं। सिलेबस में इस तरह जोड़ कर पुराणों को अपनी समझ से तोल कर। शिव पुराण कथा में ... काश सती-महादेव को थोड़ा-सा टोटोल कर। सती दक्ष की पत्नी नहीं पुत्री थी। पौराणिक कथाओं को मनगढ़ंत कहानी बोल कर। भारतीय सभ्यता को हर दौर में अपनी गलतियों को सुधारने के लिए बुद्धिजीवी सुधार करते रहे। इतिहास को इस तरह से जोड़ा की सभ्यता का विनाश करते रहे।। परिचय :- प्री...
जीवन की भूल
हास्य

जीवन की भूल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** इधर पांच राज्यों में चुनावी तारीखों का एलान हुआ, नेताओं में खुशियां थीं पर मेरा बुरा हाल हुआ। एक एक करके कई बड़े नेताओं का फोन पार्टी स्टार प्रचारक का आफर के साथ आया मैं हैरान परेशान हो गया ये सब क्या से क्या हो गया। अब इन सबको समझाना मुश्किल हो रहा था स्टार प्रचारक बनकर क्या झंडा हिलाना है। मैंने भी दिमाग चलाया एक को अपने जाल में फंसाया बड़े बुद्धिमान हो तो मुझे पार्टी का चेहरा बनाओ कहीं से भी चुनाव लड़वाओ मेहनत करोगे तो जीत ही जाऊंगा, मुख्यमंत्री बनाओगे तो दूसरी पार्टी के विधायकों को तोड़ लाऊंगा। पहले करोड़ों का खुला आफर दूंगा फेल हुआ तो धमकियां दूंगा, कुर्सी के लिए दो चार विकेट भी लेना पड़ा तो ले लूंगा, बिल्कुल नहीं शरमाऊँगा पर मुख्यमंत्री तो मैं ही बनूंगा। मेरा आफर...
अंतस् पीड़ा
गीत

अंतस् पीड़ा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** तन खंडित मन खंडित अब तो, चले आँधियाँ दीप बुझाएँ, पीड़ा अंतस् की है भारी, कैसे अब मन को समझाएँ।। छलक रहे नैनों से सागर, नही मिला अपनों का संबल। गहन तिमिर,उजियार नही है, घोर उदासी के हैं बादल।। अपने सभी पराए लगते, व्यथा कथा हम किसे सुनाएँ। टूट गए अनुबंध सभी हैं, नियति चक्र से जीवन हारे। अभिशापित है मदिर-प्रीति भी, भटक रहे बन के बंजारे।। तूफानों में फँसी नाव है, अनुगामी बस हैं विपदाएँ। संत्रासों में जीवन बीते, नही हाथ में सुख की रेखा। चलते हम हैं अंगारों पर, कैसा विधि का है प्रभु लेखा।। मरुथल-सा जीवन है सारा, धूमिल होती सब आशाएँ। घोर निराशा है जीवन में, प्यासा पनघट सूखी डाली। जाल बिछा है आघातों का, पड़ी ग्रहण की छाया काली।। बोझिल होते स्वर सरगम के, मिली धूल में अभिलाषाएँ। ...