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पद्य

याद तुम्हारी मैं बन पाता
कविता

याद तुम्हारी मैं बन पाता

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** याद तुम्हारी मैं बन पाता। तो जीवन जीवन होता। मुझे बुलाती ख़्वाबों में तुम अपना मधुर मिलन होता। रोज मुझे तुम लिखती पाती उसमें सब सपने लिखती। जितने ख्वाब संजोए मैंने उनको तुम अपने लिखती। लिखती प्रियतम मुझको अपना मुझपर सब अर्पण होता। याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। लोग नगर के सभी पूछते तुमसे मेरा हाल पता। अधर तुम्हारे चुप ही रहते सबकुछ देते नयन बता। दूर भले ही हम तुम रहते जन्मों का बंधन होता। याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। तुम्हें चिढ़ाती सखियां सारी नाम हमारा ले लेकर। झुंझलाती चिल्लाती सबपर खुश होती तुम छिप-छिप कर। मेरी छवि तुमको दिखलाता इक ऐसा दर्पण होता। याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। परिचय :-  रमाकान्त चौधरी शिक्षा : परास्नातक व्य...
संस्कारों की गुल्लक
कविता, बाल कविताएं

संस्कारों की गुल्लक

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे बच्चे मेरे पास आकर कहते हैं, माँ हमें पैसे दो हम अपनी गुल्लक भरेंगे। मैने मुस्कराकर कहा आओ न, करती हूँ मलामाल तुमको, मुझे मिली परवरिश के संस्कारों की दौलत से, सुंदर आचरण करेगें।। समाहित करूँगी तुम्हारे व्यक्तित्व में एक अच्छी आदत। संघर्षों में साहस, सच का सामना करने में हो ना घबराहट।। बड़े-बुजुर्गों, गुरुओं हर नारी का हो सम्मान। छोटों से हो प्रेम परस्पर, हृदय ना हो अभिमान।। दूसरों की मदद करुणा दया सेवा भाव हो शामिल। आत्मविश्वास-उमंग आध्यात्मिकता प्रेम सहानुभूति से परस्पर रहें घुल-मिल।। विनम्रता आत्म निर्भरता, सच्चाई के साथ सदा खुश रहना। सादा जीवन, सादा भोजन, बुरा ना कुछ मुँह से कहना।। श्री हरि नाम से काज शुरूँ हों, नित्य पढें अच्छी पुस्तक, सादे-सच्चे दोस्त बनाये...
जिस रोज तुम …
कविता

जिस रोज तुम …

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिस रोज तुम गए थे ..... मुझे छोड़ कर। दो शब्द भी हिस्से न आयें मेरे। कुछ तो कहा..... होता कुछ बोल कर।। जिस रोज तुम गए थे मुझे छोड़ कर।। इंतजार को छोड़ा था मैंने जिस मोड़ पर। दिल को तोड़ा था तूने दिल से जोड़ कर। मैं फरियादें कहा करता रब से कुछ बोल कर। जिस रोज तुम गए थे .... मुझे छोड़ कर।। ना जाते हुए देखा नज़र भर कर। मैं देखता ही रहा... खामोशी से उस मोड़ तक। आज सोचता हूँ.... क्यों रोका नहीं उसे अपनी कसम बोल कर। जब कि वो चला गया मेरी जिंदगी से बिना ... कुछ बोल कर।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं
कविता

बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अहसास से सींचे हर एक रिश्तों को जग मे साथ निभाते हर फरिश्ते को दिल जो मिले आश अधूरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं कभी कम या ज्यादा मिल जाता है बागो मे भी कई फूल खिल जाता है अरमा के फूल खिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं अब अहसासों से रिश्ते निभाते रहें जीवन के गीले शिकवे मिटाते रहें रूबरू मिलना भी जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं जो मिला है वो भी उसकी मेहर है सुख अमृत है तो दुख ही जहर है सदा सुख मिले हमें जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं है इश्क अगर तो दर्द मिलेगा जरूर कांटों मे नित गुलाब खिलेगा जरूर प्यार मे अंजाम मिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं दुख-सुख तो जीवन का हिस्सा है जीवन भी एक अनोखा किस्सा है जीवो हंस के कोई मजबूरी नह...
पुरुष
मुक्तक

पुरुष

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा - मुक्तक मात्रा भार - ३० घर के हर सदस्य के प्रति, कर्तव्य सारे निभाता है पसीना दिन-रात बहाता व अधिकार भूल जाता है जो आधार स्थम्भ है परिवाररूपी इक इमारत का सबकी खुशी में ही खुश रहता वह पुरुष कहलाता है घिसी स्लीपरें पहनकर, सबको ब्रांडेड शूज़ दिलाएँ तन ढाँके उतरन-पुतरन से, बच्चों को नये सिलाए तन-मन-धन सब परिवार पर अर्पण कर देता है पुरुष करके रात पाली थककर, सबकी दिवाली मनवाए परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
सागर का वसन्त अनंत
कविता

सागर का वसन्त अनंत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर का वसंत हैअनंत कभी न मरने वाली, अटखेली करती मतवाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। सागर को तर करने वाली, कूलों को बालू से भरने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। चंदा को रिझाने वाली, सूरज को चमकाने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। प्रस्तर को मृदु करने वाली, वृक्षों का सिंचन करने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। कमसिन सी जल भरने वाली, मीठी तान सुनाने वाली लहरों का है संग, तो क्यों न हो सागर का वसंत अनंत। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी...
तुलसी आँगन की
गीत

तुलसी आँगन की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँद खिला दिव्य निशा, आस पिया आवन की। प्रीति चकोरी कहती, बूँद गिरी सावन की।। रात हुई याद करूँ, श्याम गले आज लगा। रूठ गये स्वप्न सभी, गीत सुना प्रेम जगा।। भोर हुई चैन मिला, पंख लगे ग्वाल सखी। वेणु बजे प्रीति निभा, ढूँढत गोपाल सखी।। प्रेमिल बाजे धुन भी, बात करे साजन की। वंशी की तान कहे, यौवन के तीर चले।। रास रचा आज मिलें, रात कभी ये न ढले।। सोलह शृंगार किये, झूमत गोरी कहती। बाजत है कंगन भी, कुंतल वेणी सजती।। दुग्ध धवल धार बहे, बात करें पावन की। प्राण पिया काम बसे, वाण चले हैं छलिया। प्रेम सुधा आज पिला, अंतस् में हो रसिया।। सांस मिले साँस पिया, बंधन तोड़ो सजना। घूँघट को खोल पिया, देख रही हूँ सपना।। नित्य निहारे छवि भी, ये तुलसी आँगन की। परिचय :- मीना भट्ट...
जातियता को त्यागे कौन
कविता

जातियता को त्यागे कौन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सो रहा समता का दिल तो खुद से होकर जागे कौन, स्व को दूजे से ऊंचा समझे जातियता को त्यागे कौन। आने और जाने के क्रम में, सभी बराबर क्यों हो भ्रम में, कदकाठी तन सबका एक, नहीं यहां पर कोई विशेष, खून में सबके लाल रंग है, पेट खातिर सबका जंग है, मानवता बंधुत्व भाव को देखो अब तो सिराजे कौन, जातियता को त्यागे कौन। बंटे हुये हैं लोग हजारों में, लेकर विष घूमे विचारों में, घमंड जात का दिखलाते है नजरों और नजारों में, नहीं खाते हैं एक दूजे घर, भूख से भले ही जाये मर, कब लाएंगे सीने में अपने भाईचारा और बड़ा जिगर, नफरतों को हवा दे देकर दिलों में अब बिराजे कौन, जातियता को त्यागे कौन। नहीं किसी को फिक्र देश की, बातों में नहीं जिक्र देश की, जाति पकड़ कर घूम रहे सब दिल में नहीं है चित्र देश की, ऊंच नीच सर ...
बोनी उड़ान
कविता

बोनी उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फसलों को निहारते मुस्कुराते किसान की खुशियां हो जाती रफूचक्कर जब हो अतिवृष्टि कहर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता किसान इनके आगे हार जाता उसके सपने और उम्मीदों की बोनी उड़ान से सपने बिखर जाते उड़ान भरता मरती फसलों को बचाने की मगर उसकी बोनी उड़ान नहीं बचा सकती आपदाओं के आगे उसकी उड़ान से आर्थिकता के सूरज से पंख जल जो जाते कर्ज की तेज आंधी उसके जीवन की उड़ान को बोनी कर जाती ये आपदाएं। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्...
सत्ता की गलियारों में
कविता

सत्ता की गलियारों में

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सत्ता की गलियारों में आहट नहीं होती है बिना लड़े गुलामी से राहत नहीं मिलती है हर फूल सिर्फ कीचड़ में ही नहीं खिलती है रात के अंधेरी साया के बाद ही सुबह होती है आत्मविश्वास को अहंकार मत बनने दे ! पैसा रास्ते को सिर्फ आसान बनाती है नतीजे से पहले जीत का दावा ना कर समय का रेत धीरे-धीरे खत्म हो रहा है जरा रूक जा इंतजार करना सीख जीत का इतना बेसब्री से इंतजार न कर ! अपने दिल को पत्थर सा मजबूत बना ले हार को भी हँसकर सहन करना सीख सत्ता की गलियारों में सिर्फ तू अकेला ही नहीं है अपने पीछे भी मुड़कर देख ले, बड़े ही खामोशी से तेरा पीछा कोई और भी कर रहा है। अपनी स्वार्थ को हद से ज्यादा सोपान न चढ़ा जीतने के लिए आँख मूंदकर झूठ का उफ़ान न बढ़ा तू अपनी ताकत से किसी के बढ़ते कदम को रोक सकता है उसके राह में...
जीत की दहाड़
धनाक्षरी

जीत की दहाड़

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** घनाक्षरी बहार खूब जोश की, खेल ट्रिक सुधार से, मंच अति रोमांच का, जीत से पछाड़ हो। दस विजय सतत, हार का नहीं सबब, हर जीत कथा यही, लेश ना जुगाड़ हो। दशा वक्त अनुरूप, रहे नहीं सदा भूप, देश जीते विश्व रूप, कुछ ना बिगाड़ हो। पसीना महक अब, पूरा जग सुरभित, चाल वही कॉल सही, बॉल मार धाड़ हो। एक सुर रीत रहे, टीम मन मीत बने, नायक का रंग ढंग, खोलता किवाड़ है। उमंग नहीं जंग ही, जीत वाली तरंग से, जीत जश्न जयघोष, तोड़ता पहाड़ है। हलचल धड़कन, अटकल दमखम व्यर्थ नहीं चक चक, आज ही उखाड़ हो। तन मन हवन से, फतह बल चहल, विश्व कप में पहल, जीत की दहाड़ हो। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मं...
छठ व्रत की महिमा
कविता

छठ व्रत की महिमा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सूर्यदेवता के चरणों में सूर्यास्त की किरणों से सूर्योदय की किरणों तक सूर्यदेव की उपासना में व्यस्त सूर्यदेव का करते है व्रत, दीपोत्सव के छह दिन के बाद आता यह, कहलाता छठपर्व व्रतधारी हर नियम धर्म है रखते जलकुंड नदी तालाब पोखरे छठपर्व पर शुद्ध और पूजित होते सूर्यदेवता के आगे नतमस्तक होते नवाते ब्रतधारी जल में खड़े हो अपने शीश दण्डवत करके दऊरा लेके गाते छठ के गीत सूर्यदेव की करते सेवाभक्ति जल में उतरते अर्ध्य देने को तनमन में ब्रतधारी की शक्ति भक्तिमय रूपरंग में व्रतधारी सूर्यदेवता की करते सेवाभक्ति फल फूल ठेकुआ करते अर्पित स्नान ध्यान कर सूर्यदेवता का जल में खड़े करते है प्रणाम व्रतधारी छठपर्व पर करते ध्यान सूर्यपूजा, व्रतधारी का अन्तर्मन भक्तिभाव में लगता तन-मन लौकी भात खीर आदि पूर्व खाते छ...
नियति चक्र
कविता

नियति चक्र

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जीवन की अंतर्तम गहराई को छलकाने वाले ओ। नयनों की बूँद, तुम्हें कैसे समझाऊँ ! जीवन को सपनों की घाटी बतलाकर ओ नयनों के अश्रु, तुम्हें कैसे बहलाऊँ! मृग तृष्णा बन विश्व चक्र यों घूम रहा है अन्तर की कस्तूरी को, नहीं कोई पहचान रहा है ज्ञात नियति को ख़ुद न समझने वाले ओ नयनों के दीप तुम्हें कैसे समझाऊँ ! जीवन क्या है, क्यों है, नहीं किसी ने जाना इसका कौन रचयिता, नहीं कोई पहचाना किसके अंतर की ज्वाला धधक रही धरती पर ओ नयनों की बूँद तुम्हें कैसे बतलाऊँ ! प्रकृति के हैं रूप अनेक, बसी जहाँ अनुपम माया कहीं रूप है, कहीं रंग है, कहीं रहे केवल छाया प्रकृति शाश्वत, काया नश्वर यह यथार्थ तुम स्वीकार करो ओ नयनों के दीप, तुम्हें कैसे सहलाऊँ !! परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी स...
लंबी उम्र मिले भाई को
कविता

लंबी उम्र मिले भाई को

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भाई बहन के मधुर प्यार का, दूज पर्व है पावन। जैसे बारिश में आता है, रक्षाबंधन सावन। भाई दूज कहाती है यह, तिलक भाल पर लगता। भाई -बहन का सघन प्यार ही, अतुल नेह में पगता। तिलक लगा आरती उतारें, उसकी खैर मनायें। भैया भाभी रहें प्यार से, घर को स्वर्ग बनायें। घर आँगन में खेलें बच्चे, माता-पिता सुखी हों। परिजन पुरिजन सारे रिश्ते, फूलें सूर्यमुखी हों। सजा आरती टीका करतीं, खूब बलईंयाँ लेतीं। खुशी रहे परिवार भाई का, भर आशीषें देतीं। दूज पूजकर सारी बहनें, माथे तिलक लगातीं। करें आरती स्वयं भाइ की, मंगल थाल सजातीं। लंबी उम्र मिले भाई को, प्रभु से विनती करतीं। हो पीहर खुशहाल हमारा, मन उमंग से भरतीं। दे उपहार भाइ,बहनों को, आशीषें लेता है। सारे जीवन भर रक्षा का, वचन वही देता है। भाई बहन का प्य...
सच्चाई की राह में
कविता

सच्चाई की राह में

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** बहुत कांटे मिलेंगे सच्चाई की राह में। बहुत लोग रोड़ा लगायेंगे सच्चाई की राह में। आसान नहीं है चलना सच्चाई की राह में। दोस्त दुश्मन बन जायेंगे सच्चाई की राह में। ये दुनियां सच्चाई पसंद नहीं करती है। झूठ बोल कर अपना गुजारा करती है। जो भी सच्चाई की राह में चला है। उसको अपनो ने ही छला है। झूठ का कोई भविष्य नहीं सच हमेशा जीतेगा। चलते रहिये सच्चाई की राह पर भविष्य उज्जवल रहेगा। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
प्रेम की गांठे
कविता

प्रेम की गांठे

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ठंडी हवा मचलकर न चल ठंड की आबो हवा कही चुरा न ले जिया बैचेन तकती निगाहे मौसम में देखती दरख्तों को सोचता मन कह उठता बहारे भी जवान होती। धड़कने बढ़ जाती प्रेमियों की जाने क्यों जब जब बहारे आती-जाती बांधी थी कभी मनोकामना के लिए प्रेम की गांठे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित संस्थाओ...
आराध्य राम
गीत

आराध्य राम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आराध्य राम की पूजा में, मैं सारी उम्र बिताऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। धर्म-नीति के जो रक्षक, हैं नित्य सदा ही हितकारी। उनकी गरिमा-महिमा पर मैं, हूँ बार-बार बलिहारी।। आराध्य राम की गाथा को, मैं संग समर्पण गाऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। अंतर मेरा पावन होगा, जब राम नित्य मैं बोलूँगा। तब साँच सदा मुखरित होगा, जब भी मैं मुँह को खोलूँगा।। आराध्य राम मंगलमय हैं, मैं बार-बार दोहराऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। पाप,शोक,संताप मिटे, मैं हर सुख से भर जाऊँगा। सब होंगे मेरे नित प्यारे, मैं भी तब सबको भाऊँगा।। आराध्य राम नित हितकारी, मैं जीवन-सुमन खिलाऊँगा। जयराम कहूंगा अधरों से, मैं भवसागर तर जाऊँगा।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारा...
चलो चुनाव कराते हैं
कविता

चलो चुनाव कराते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गलती की कोई गुंजाइश नहीं, खुद की कोई ख्वाहिश नहीं, पता नहीं कहां कितनी दूर जाते हैं, चलो चुनाव कराते हैं, प्रत्यक्ष शिक्षण, कड़ा प्रशिक्षण, कान लगाकर सुनना, ध्यान लगाकर सुनना, खत्म प्रशिक्षण भोर में आओ, बोरी बिस्तर साथ में लाओ, सामान उठाओ, चेकलिस्ट मिलाओ, फिर वाहन में बैठो, जरा न ऐंठो, शहर या जंगल में जाओ, मताधिकार केंद्र को खुद सजाओ, कुछ मिल गया तो जल्दी खाओ, वर्ना भूखे ही सो जाओ, सुबह उठो मॉक पोल दिखाओ, दिनभर फिर चुनाव कराओ, ना लो झपकी ना ही लेटो, जल्दी से सामान समेटो, गाड़ी में बैठो वापस आओ, सारा सामान अब जमा कराओ, न हुई दुर्घटना खुशी मानते हैं, चलो चुनाव कराते हैं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार...
बाल दिवस
कविता

बाल दिवस

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** हर घर में होते हैं बच्चे, माता-पिता की जान। अपने हुनर से वे बढ़ाते, अपने देश का मान।। इतनी प्यारी दुनिया इनकी, इतनी मधुर मुस्कान। श्रेष्ठ विचार रोप सके यदि, संभव होगा उत्थान।। बाल रूप में जनम लिया, यशोदा घर भगवान। बच्चों के मन में बसते हैं, सदा स्वयं भगवान।। इक बार माता यशोदा ने, कान्हा को दुलराया। किलकारी भर हंसा यों वो, मानो हृद भरमाया।। माता यशोदा उसी विधि से, बच्चे-सा बन करके। रहे खिलाते बड़ी देर तक, जैसे खुद खो करके।। बच्चों में दिखता भारत का, उज्ज्वल स्वर्ण विहान। बच्चों के उर में बसते हैं, सदा स्वयं भगवान।। बच्चे यदि संस्कार पा गए, देश सबल यह होगा। बच्चों की प्रश्नावलियों से, अब सवाल हल होगा।। फतेह सिंह और जोरावर, बलिदान नमनीय है। जिनका बलिदान देश के लिए, जीवन अतुलनीय है...
भाई-बहन का स्नेह
कविता

भाई-बहन का स्नेह

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आना मेरे घर में तुम भैया, आपको निमंत्रण देती हूँ। आकर प्रीति भोज खाना, पकवान बनाकर रखी हूँ।। जल्दी आना, देर मत करना, मैं राह तुम्हारे देखूँगी। मेरे भैया आ रहे हैं, अपनी सखी-सहेलियों से कहूँगी।। शुभ आसन पर बिठाकर, रोली से तिलक लगाऊँगी। बाँधकर हाथ में मौली, लंबी उम्र की कामना करूँगी।। मंगलमय होगा, सुख आएगा, सारी इच्छाएँ पूरी होगी। यमराज का भय नहीं रहेगा, जीवन में समृद्धि मिलेगी।। यह भाई-बहन का त्यौहार, स्नेह का बंधन है अटूट। आतिथ्य स्वीकार करो, भक्ति और आदर है अद्भुत।। उपवास रहूँगी सुबह से, तोडूँगी आप आओगे तभी। रक्षा करने दौड़े चले आना, दुःख में पुकारूँगी कभी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग स...
मैं जयपुर हूं
कविता

मैं जयपुर हूं

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मैं गुलाबी नगरी जयपुर हूं। लो अपनी कथा सुनाता हूं। समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर, इतिहास बनकर अंकित हूं। मैं सत्रह सौ सताइस में जन्मा, सवाई जयसिंह का चित्रित हूं। जयनगर से जयपुर बनकर, वैभवी चरित्र नगर गुलाबी हूं। अरावली की सुरम्य श्रृंखला, अचल शिखरों से संरक्षित हूं। जयगढ़ नाहरगढ़ जंतर-मंतर, आमेर हवा महल में विकसित हूं। सिटी पैलेस सरगासूली गलता, सात द्वार परकोटे में विस्तारित हूं। प्रकृति की गोद में प्रफुल्लित, मैं गालव ऋषि की तपोभूमि हूं। गढ़ गणेश मोतीडूंगरी विराजित, पावन मैं तीर्थों में छोटी काशी हूं। नगर नियोजित विश्व पटल पर, मोहक हरियाली से आच्छादित हूं। शील शिष्ट नैतिक मूल्यों से युक्त, कर्तव्य परायण गुणों से भरपूर हूं। वाशिंदे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, मैं धर्मों में गंगा-...
हे मम आत्म सखि
कविता

हे मम आत्म सखि

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** संसार के किसी अन्य व्यक्ति से नहीं एक मात्र तुमसे आशा थी कि-हम-तुम... 'साथ बिताए न बिताए हर इक समय'- अन्तिम समय से पहले एक दूसरे के समक्ष- सत्य के साथ बिताएंगे! बहुत लम्बी जिन्दगी जी लिया हम दोनो ने पर जाने क्यों लगता है कि- 'मेरा सम्पूर्ण सत्य तुम्हारे थोड़े से असत्य से भी बहुत छोटा है!' जीवन के तमाम सम्मेलनों में एक मात्र तुमसे ही सारे असत्य कह लेने की छटपटाहट थी! एक मात्र तुम्हारे ही समक्ष अपने हर एक मौन पर बयान करने..रो-लेने... सान्त्वना पा-लेने... और हर एक गॉठ खोलकर शून्य के समान हल्का हो लेने का मन था बस थोड़ा सा ही तुमसे जानना था कि- 'क्या सोचती हो तुम फिर कभी हमारे साथ के बारे में!' यद्यपि हम दोनो के कर्म अलग-अलग हैं तो परिणाम भी अलग होंगे! पर क्या अपने सम्पूर्ण सत्य से मेरे स...
दिप से दिप जले
कविता

दिप से दिप जले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आया हैं प्रकाश पर्व देहरी सजी, सजी है हर घर आंगन दीपों से जगमगाया है रंग तरंग से सजी रंगोली आंगन, आंगन इठलातीं। झिलमिल करतीं दिप बाती रंगोली से बतियातीं। बही बयार संग सुगथ मिठास की सबका मन ललचा रही नाच रही आंगन में बिटिया छुम छुम पायल बाज रही, उमंग, उत्साह का प्रकाश पर्व आया है चलो, बैठें सब हिलमिल कर यह सन्देश उज्जवल पव् लाया है सब हैं अपने, कोई न पराया एक दिप से, जले हजारों दिप हिन्दी रक्षक मंच ने सिखाया है ऐसे ही सतत प्रकाश दे मंच। झिलमिल प्रकाश पर्व पर मेरा सभी हिन्दी रक्षकों को अभिवादन, नमन परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप स...
रूप चौदस श्रृंगार
कविता

रूप चौदस श्रृंगार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मन सुन्दर सा हे बने, आत्मा का श्रृंगार, तन प्रभु की सेवा मै लगे, कंचन काया निखार। चित्त रहे निर्मल सदा, सोच रहे विशाल, विवेक बुद्धि ज्ञान धन, भरा रहे भण्डार। करे भलाई, दान, पुण्य, सेवा और सत्कार, दीनदुखियो की सेवा ही, काया का श्रृंगार। रूप चौदस, नरक चौदस, धन्वन्तरि दे आशीष, स्वस्थ रहे मानव सभी, सुर्य किरण से स्वस्थ। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत घोषणा पत्र : मैं य...
दीप
कविता

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राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुनो! दीपों का त्यौहार आ रहा है कुछ रोशनी अपने अंदर भी कर लेना। सुना है ! अंधकार बहुत है तुम्हारे अंदर भी तभी दिखता नहीं तुम्हें औरों का व्यक्तित्व। मगर दिख जाता है सत्य की रोशनी में औरों को तुम्हारा अहम। क्या मिट जाएगा? इस बार दीपों की रोशनी में तुम्हारा ज़िदी अहम। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...