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पद्य

वही तो नहीं …
कविता

वही तो नहीं …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जिसे देख के बहार आयी थी मेरे मे निखार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। जब ये घटना -घटी तुम थे नायक मै थी नटी निहारती रही कटी सी कटी रह गयी आंखें फटी सी फटी मैं हिस्सो में अब बंटी ही बंटी मन ने माना मै पटी तो पटी उसके लिए स्वर्ग से उतार आयी थी मुर्तिवत खड़ी जैसे उधार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। सांसे मानों थम सी गयीं निगाहें उसपे जम सी गयी मैं थोड़ी सहम सी गयी उसपे जैसे रम सी गयी गुस्सा भी अधम सी गयी ज़िंदगी से ग़म सी गयी मैं लिए जिंदगी के सपने हजार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। मेरे खुशी का ठिकान नहीं था उस जैसा कोई पहलवान नहीं था मुझ जैसा वो नादान नहीं था उसका पटना आसान नहीं था वैसा कोई महान नहीं था अब मेरा कोई अरमान नहीं था उसके मिलने से पहले मैं बीमार आयी थी कहीं तुम वह...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लो फिर आ गया है नव वर्ष, दौड़ता हुआ संकल्पों की गर्द से ढका। पहाड़ी प्रदेशों में भेड़ चराता हुआ, सड़क किनारे टुकड़े लोहे प्लास्टिक के चुनता। भीड़ भरे चौराहे पर वाहनों की रेलमपेल में कटोरी थामें, चंद सिक्कों की खनक से मुस्काता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, आंखों में जीजिविषा भरे मेहनत से सरोकार साइकिल रिक्शा पर पसीने से लथपथ पैडल मारता। पतासी के ठेले पर जीरा नमक संग अपनी जठराग्नि से लड़ता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, खेतों की मेड़ों से, हरी दूब पर पूस की ठंड से विकल, टखनों तक पानी में डूबा। उम्मीद को पगड़ी में बांधे, रात गठरी सा ठिठुरता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, दृढ़ निश्चय, कृत संकल्पित हो। कुछ वादे, कुछ इरादे थामें। कच्ची बस्ती से होता हुआ, मध्यम वर्ग के गलियारों से निकलकर स...
हिमाचल गान
कविता

हिमाचल गान

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उच्च हिमालय बहती नदियां कल कल करती झरनों की आवाजें फैली हरियाली, सुगंधित सुमन महके समीर, बहकी कलियाँ ऐसी गोद हिमाचल की जय-जय-जय हिमाचल की। ऊंचे वृक्ष, नीची नदियां कर्कश करती चट्टानें चहकते पक्षी, महकती फसलें सरसराहट करता पानी गरजते बादल, बसरते घन ऐसी गोद हिमाचल की जय-जय-जय हिमाचल की। बाल ग्वाल, लाल गाल मदमस्त धूप, अनंत गगन मीठी बातें, ठंडी रातें धौलाधार की श्रंखलाएँ देवों की भूमि, सनातन की आन ऐसी गोद हिमाचल की जय-जय-जय हिमाचल की। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
शून्य से शिखर तक
दोहा

शून्य से शिखर तक

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्य को पाकर दिखाना है मुझको। जीत का परचम लहराना है मुझको।। इस दुनिया में कठिन कुछ भी नहीं, शून्य से शिखर तक जाना है मुझको।। यदि जीवन एक खेल है तो मैं खेलूँगा। चाहे लाख मुसीबतें आए मैं झेलूँगा।। प्रेरित होकर ध्यान लगाना है कर्म में, असंभव को संभव करके दिखाऊँगा।। रच सकता है तो रच मेरे लिए चक्रव्यूह। महारथियों के दल चाहे खड़े हो प्रत्यूह।। ज्ञान हासिल किया है मैंने माँ के गर्भ में, इस बार सातवें द्वार को भेदेगा अभिमन्यु।। रह-रह कर अभी जवानी ने ली अँगड़ाई। सुनहरे भविष्य के लिए लड़नी है लड़ाई।। अपने हाथों लिखना है मुझे नया इतिहास, यही सही समय है, शुरू करनी है पढ़ाई।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुय...
नव वर्ष २०२४ पर दोहे
दोहा

नव वर्ष २०२४ पर दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनन्दन नव वर्ष। नई सुबह की नव किरणें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली फूलों से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नये साल के भाल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। शुभ यश जीवन में मिलें, हर्षित हो चहुं ओर। अभिनन्दन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठा कर हाथ। जीव जगत आनंद में, सदा रहें हर छोर। नये साल से आरज़ू, स्वर्णिम करना भोर। नूतन वर्ष शोभित हो सदा, सदी के भाल। दो हज़ार चौबीस में, भारत हो खुशहाल। झोली भर शुभ कामना, आप सभी को आज। मन में जो सपने बुने, होंगे पूरे काज। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
नूतन वर्ष
कविता

नूतन वर्ष

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जीवन है अनमोल मूल्यवान और अनमोल नेकविचार बनाये भेदभाव को दूर भगाएं समाज, देश कल्याण में बेजिझक मिलकर सब आगे आएं, वर्षभर के दिन, महीने और साल लौटकर वापस अब नहीं आयेंगे नववर्ष में आपस में वापस फिर हम मिलते चले जायेंगे करने को है बहुत कुछ समाज, देश जाति के प्रगति के काज जीवन सुख-दुख का सागर है सद्भाव और सुविचारों से अनमोल स्वच्छ विचार बनाएं सबको उठाएं सबको जगाएं सबको मिलकर बढ़ाये समस्त जनों की खातिर मंगल कल्याण का गीत एकसुर में मिलकर गाये निःस्वार्थ सेवाभावना से निर्धन ग़रीबों असहाय के हम मिलकर मददगार क्यों न सभी बन जाएं, इस महत सेवा के रास्ते में भरा है अनन्त असीम प्रेमप्रीतप्यार स्नेहता का खोलता है यह आपस में द्वार यही दीप मिलकर जलाएं सद्धविचार लाएं भेदभाव दूर भगाएं जीवन को भयमुक्त बनाएं नए सा...
अटल बिहारी जी पर दोहे
दोहा

अटल बिहारी जी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अटल दिव्यता के धनी, किया दिलों पर राज। सदियों तक होगा हमें, महारत्न पर नाज।। विनय भाव गहना रहा, प्रतिभा का संसार। भारत मां के आंगना, फैलाया उजियार।। राजनीति के दिव्यजन, देशभक्ति-आयाम। दमका लेकर दिव्यता, अटल बिहारी नाम।। कवि बनकर साहित्य की, रक्खी हरदम लाज। कविता के सुर-ताल थे, वाणी के अधिराज।। संसद के बेटे खरे, गरिमा के उत्कर्ष। युग को वे देते रहे, अंतिम क्षण तक हर्ष।। संघर्षी जीवन रहा, थे गुदड़ी के लाल। अटल बिहारी सूर्य-से, काटा तम का जाल।। महा राष्ट्रनायक बने, शासन के सिरमौर। राष्ट्र-प्रगति के केंद्र बन, दिया शांति को ठौर।। अटल बिहारी के लिए, है सबको सम्मान। उनके तो गुण गा रहा, देखो सकल जहान।। हिंदी के सम्मान का, नारा किया बुलंद। राष्ट्र संघ तक थी पहुंच, हुए पड़ोसी मंद।। जन्मदिन पर ह...
मधु मोह कल्पना नश्वर है
कविता

मधु मोह कल्पना नश्वर है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मैंने सोचा कल्पान्तर में तेरा- मेरा प्यार अमर है। तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह-कल्पना नश्वर है'।। ‌अद्भुत अनन्त आश्चर्य भरी जब प्रथम बार सम्मुख आई। मन ने चाहा बस तुम कह दो; 'हे प्राण! तुम्ही हो सुखदाई। मम-आत्मरूप, आरंभ-शुभम् जीवन की तुम अभिलाषा। तुम हो प्रेम-प्रणय का अम्बर; मैं धरा-लोक की परिभाषा।' कुछ दिन तो सब सच लगा मुझे: 'ना हम-तुममें कुछ अन्तर हैं।' तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह कल्पना नश्वर है'।। निषिद्ध किया ना तूने कभी; जो कुछ भी ईच्छा थी मेरी। रूप- रंजना अभिसारों में; हे समवय! सम- ईप्सा तेरी। प्रियं दर्शिनी, प्रियं भाषिणी गौर-वदन, नयना सुखकारी। तृप्ति-अमरता-आलिंगन-की; भू-लोक-विस्मृता आभा री! चन्द-वर्ष सब ऐसे बीता जैसे, 'बरसे पावस ईसर है'। तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह-कल्प...
नव वर्ष तुम आओ
कविता

नव वर्ष तुम आओ

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है खुशियों को लाओ स्वागत तुम्हारा है। हर कद़म पर चुनौती और सबसे लड़ना है सबको साथ लेकर आगे भी बढ़ना है हमें हिम्मत बंधाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। सबको मिले काम न रहे हाथ खाली न भूख न ग़रीब़ी न रहे तंगहाली सुख समृद्धि पहुंचाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। है अब भी अंधेरा बस्ती में गलियों में उदासी छाई है हर मुरझाई कलियों में इनमें मुस्कुराहट लाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। दुश्मनों से यह देश अपना घिरा है कोई है पागल तो कोई सिरफिरा है हमें इनसे बचाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। हिम्मत से फिर भी हम काम ले रहे हैं एकदूसरे का हाथ हम थाम ले रहे हैं देश को संपन...
इन्तजार
कविता

इन्तजार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** राम नाम ही आधार, राम के मिलन का, राम ही तपस्या थी... शबरी के इंतजार का। भाव ही तो राम था, प्रबल भाव राम था, भाव ही तो भक्ति थी.... राम से अनुराग था। बैर मैं ही भेद था , जो राम से मिलान का, बैर ही बहाना था... राम से मिलान का। और सब बहाना था, बहाना भी मिलान का, शबरी के इन्तजार का... बस राम ही इन्तजार था। जीवन मै राम नाम का, इन्तजार ही तो राम था, इन्तजार जब खत्म हुआ...., दर्शन हुआ राम का। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना ...
जीवांत जीवन
कविता

जीवांत जीवन

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बढो़गे जीवन में तो उड़ते रहोगे जीवांत पक्षी की तरह नहीं तो टूट कर बिखर जाओगे किसी शाख के मुझराये पत्ते की तरह। जीवांत हो तो जीना पड़ेगा सूर्य चांद की तरह नहीं तो पड़े रहोगे शमशान की जली बुझी हुई राख की तरह। जीवांत हो तो महकते रहोगे किसी सुगंधित फूलों की तरह नही तो मुरझा जाओगे किसी टूटे बिखरे फूल की तरह। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते...
तीज त्यौहार
कविता

तीज त्यौहार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आ जाए जैसे तीज त्यौहार बढ़ जाये वाणिज्य व्यापार खरीद बिक्री बढ़ती जाए रहता कोई न बेरोजगार बढ़कर फैले कारोबार आर्थिक लेन देन धुंआधार कोई न रहता लाचार बढ़ती कमाई बढ़ता व्यापार जब आता है तीज त्यौहार कोई भलाई सेवा करता चार कोई जमकर करता व्यापार कोई चाहता मनाये सपरिवार सबको बुलाये मनाये त्यौहार कोई चाहता न रहे दीन दुखी फैले उनके घर खुशी हजार सेवा में उनकी होते तैयार मनाते उनके तीज त्यौहार कोई रद्दी चुनकर लाये कोई रद्दी समझ फिंकवाये कोई रद्दी से रोजगार बढ़ाये कोई उसी से खुशी मनाये कोई घर पर नए दीये लाये कोई पुराने कलात्मक बनाये बुद्धि वृद्वि करते तीज त्यौहार कलाकार वस्तएं बनाये कोई उसका आनंद उठाए दीपावली ऐसा है त्यौहार मनभावन बढ़ती साफ सफाई दीपोत्सव का है पावन त्यौहार बच्चों को रौशनी में होता प्यार ...
चपल चाँदनी
कविता

चपल चाँदनी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम चंदा में चपल चाँदनी, रूप मनोहर प्यारा है। मधुर कल्पना प्रिय जीवन की, कंचन बदन निखारा है।। साँझ सलौना रूप निहारूँ, मन का भौंरा बौराता। काम देव सा रूप तुम्हारा, निरख-निरख मन मुस्काता ।। मधुशाला सी झूम रही मैं, तेरा सजन सहारा है। खिले फूल तन -मन में साजन, कजरा तुम्हें बुलाता है। पढ़ लो प्रियतम मन की भाषा, कंगन शोर मचाता है।। कटि करधनिया कहती साजन, मैंने तुम्हें पुकारा है। देख मिलन की मधुर यामिनी, अंग-अंग गदराया है। अधर रसीले राह देखते, प्रियतम क्यों शरमाया है।। सात जनम का बंधन अपना, कहता हिय-इकतारा है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. ...
महानायक बाबा साहब
कविता

महानायक बाबा साहब

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बाबा साहब ने लिखा विश्व का सबसे बड़ा संविधान मानवता का अधिकार दिया सबको एक समान। अपनी कलम से सदियों तक अमिट इतिहास लिखा संविधान बनाते वक्त दूरदर्शिता का भी ध्यान रखा। क्या होती है कलम की ताकत दुनिया को दिखाया जाति-भेदभाव, छुआछूत को पलभर में मिटाया। जब बाबा साहब ने हक-अधिकार का कानून बनाया तब जाकर देश के गरीबों व मजदूरों को सूकुन आया। सदियों से दलितों को पढ़ने-लिखने का अधिकार न था आरक्षण दिया बाबा साहब ने इसके बिना उद्धार न था। मानवता की रक्षा के लिए धार्मिक राष्ट्र बनने न दिया बाबा साहब ने धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र का प्रस्ताव दिया। भारत को विश्व में सबसे ऊंचा, सबसे प्यारा महान बनाया विविधता से भरी देश में सबके हित के लिए विधान बनाया। किसानों को जंमीदारो के शोषण, अत्याचार से मुक्ति दिलाया ...
लोहा अवसान
दोहा

लोहा अवसान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लोहा लेने जो खड़े, कुछ तो होगी बात। साधन साहस संग हो, दूरी बहुत जज्बात।। अतिशय खिलाफ ही सदा, अपनों से ही बैर। सहमत होते देखते, यथा समय ही गैर।। बात_चीत विरुद्ध खड़े, बोली में ही तंज। सहन_शक्ति सीमा हुई, जिसने पाया रंज।। निर्णय लेता वो सही, खुलकर दे पैगाम। बिगाड़ सदैव ही मिले, संभव नहीं लगाम।। धन जमीन संबंध ही, लाते हैं बिखराव। पारदर्शी गुण पारखी, करते तनिक बचाव।। मसला विवाद मूल है, कलयुग की पहचान। दुनिया सारी खोजती, कैसे हो निपटान।। जीवन लोहा मानते, निर्णय राह उत्थान। अंतिम यात्रा में मिले, कफन रिक्त नादान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
तो मत पूजो कन्या
कविता

तो मत पूजो कन्या

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम उस देश के बाशिंदे हैं जहां औरतों को देवी कहा जाता है, पर उन्हीं औरतों द्वारा इसी देश में सबसे ज्यादा अत्याचार सहा जाता है, घर में, परिवार में, समाज में, कार्यक्षेत्र में, हर जगह उनका शोषण किया जाता है, उनकी विश्वनीयता का बार-बार परीक्षण लिया जाता है, मनहूसियत का तमगा, हर बात पर ताना, साथ में दोगलापन इतना आराध्य मान गा रहे गाना, दहेज के नाम पर जहर, क्या गांव क्या शहर, सिर्फ कहर हो कहर, ऊपर से कन्या पूजन का ढोंग, छेड़छाड़, बलात्कार का दंश, क्षण क्षण सम्मान का विध्वंस, समाज किधर जा रहा, पुरूषत्व सोच तड़पा रहा, ये सब सहकर भी दे रही सुकून, मां के रूप में, पत्नि के रूप में, बेटी के रूप में, थेथरई लिए हुए हम इतने स्वार्थी क्यों? मूढ़ों कल्पना क्यों नहीं करते उनके बिना अपने होने का, गर यही है मं...
रिश्तों की परछाइयाँ…
कविता

रिश्तों की परछाइयाँ…

शुभांगी चौहान लातूर (महाराष्ट्र) ******************** होती हैं ओस की बूंदों सी कभी नजर आती तो कभी ओझल सी रिश्तों की परछाइयाँ देखता हूँ मैं रोज एक दीपक जलता हुआ उस अनाथालय मे और अनायास ही खींचा चला जाता हूँ उस अनाथालय की ओर पुछा मैने उस अनाथ से सवाल क्यों जलाते हो यह दीपक यहाँ क्या देता हैं यह अनाथालय तुम्हें जवाब दिया उसने बुझी सी और बहुत ही धीमी आवाज में बोला साहब...! नही देखी मैने कभी माँ की गोद और पिता का साया इस पाषाण ह्रदय दुनियाँ ने भी कब अपनाया तब इसी निस्वार्थ प्रेम स्वरूपी अनाथालय ने ही मुझे पाला हैं हवा, बारिश तुफान से हमे बचाया हैं इसी ने दिखाया हैं माँ का रूप और पिता का स्वरूप भाई-बहनों सा दूलारा हैं इसी ने और मित्र का भरपूर प्रेम भी दिया हैं इसी अनाथालय ने जब बाहर की बनावटी, आभासी और झूठी दुनियाँ से थक जाता हैं हर सच्चा मन त...
नववर्ष
कविता

नववर्ष

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अंतिम सप्ताह दिसंबर का एक जनवरी को यों तांक रहा विजय पताका सा व्यक्तित्व ज्यों झांक रहा अपने शैशव को, अपने यौवन की तरुणाई को खेल लड़कपन के, स्वप्न किशोरावस्था के चुनाव, तनाव, भटकाव जीवन के पतझड़ के पत्तों का झरण नव पल्लव का आगमन करते चलते लो आ गया अंतिम चरण शिथिल तन किंतु सुस्मित मन अब मुझको भी जाना है मेरे जीवन की अमराई को मेरी संतति को दोहराना है हर वर्ष ने स्वयं को दोहराया है नवजात शिशु की नन्ही चितवन सा जगमग करता मुस्काता सा नया वर्ष फिर आया है। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजरात...
पौष-माघ के तीर
गीत

पौष-माघ के तीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर। भीतर-भीतर महक रहा पर, ख्वाबों का कश्मीर।। काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा। भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा।। मन की विवश टिटिहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।।१ नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी। गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी।। पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।।२ बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा। विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा।। खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
कहीं मन का, कहीं तन का …
ग़ज़ल

कहीं मन का, कहीं तन का …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहीं मन का, कहीं तन का, किसी से वास्ता जो भी। रहे थोड़ा, ज़ियादा या किसी से फ़ासला जो भी। किसी की याद लेकर ही चलें हैं साथ हम लेक़िन, जताते हैं, निभाते हैं, किसी का क़ायदा जो भी। तकाज़ा उम्र का होगा, रही होगी फ़िकर सबकी, नहीं आई हमें नींदें, किया हो रतज़गा जो भी। समझदारी इसी में थी कि पहले साध लें मन को, बुरा कोई, भला कोई, मिले फिर सामना जो भी। मिला अब तक हमें उतना नहीं उम्मीद थी जितनी, कभी इतनी, कभी उतनी, रहे फिर इल्तिज़ा जो भी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान ...
दर्द का अहसास
कविता

दर्द का अहसास

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य लड़की सभी लड़कियों से खास है जीवन दुभर पर जीने की बेशुमार आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी मानसिकता लड़कियों से भी भिन्न है उसकी सोच माँ के गम से सर्वथा अभिन्न है जिसे माँ के अंदर करनी बाप की तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है आँख मे गम के आंसू अक्सर सोचती है क्या आयेगी खुशीयों के अवसर कितने गम है फिर भी नवजीवन की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब-2 से सवाल उसके जेहन मे उठती है जवाब के तलाश मे खुद से भी तो रूठती है जवाब मिलने का उसे अब भी एक आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सब कुछ होकर कुछ भी तो नहीं होता है? ऐसा इत्तेफाक दुनिया मे क्योंकर होता है? तब से मुझे भी उसके उत्तर की तलाश है एक लड़की जिसे...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का ताना-बाना। चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मेला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना। मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत। जीने की जिजीविषा, यहां संघर्षों का रेला। सीख कसौटी, मीठी घुड़की, आंगन में मिलती। जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार। बहन- भाई का रिश्ता, मणियों की मीठी माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन। संबंधों में नैतिकता, परिवार पुनीत यज्ञ शाला। दादा - दादी की सीख, नाना - नानी की परवाह। चाचा-चाची, ताऊ-ताई, यूं रिश्तों की चित्रशाला। वैभवी गीता का ...
फिर भी चलते ही जाना है
कविता

फिर भी चलते ही जाना है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** संघर्षों की अमित कहानी जीवन की सच्चाई है पीड़ा और तंग हाली में भी जिंदगी ने खुशियां पाई है। कष्टों की परिभाषा क्या सोचो और विचार करो कठिन डगर पर भी तुम थोड़ा सुकून तलाश करो कितनों का घर तो देखो खुला आसमान बसेरा है सुख दुःख की क्या बात करें जीवन में कष्ट घनेरा है। फिर भी चलते ही जाना नियति है यह कुदरत की रुको नहीं तुम कर्म करो बदलो रेखा किस्मत की। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
गड्ढे की छलांग (ताटंक)
कविता

गड्ढे की छलांग (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। साहस मेहनत छलांग धरो, अपनी क्षमता बढ़ जाती। बुरा दूसरों का किए बिना, लक्ष्य भेदना सिखलाती। अनुभव बिन उद्योग संचालन, नई राह में लीन हुए। अब शोख शर्मीला बच्चा कहे, दुनियादारी जीत गए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। गड्ढा खोदने में जो तल्लीन, उनके पास समय कम हो। बाधक बनने में खो देते, जो संस्कार जरूरी हो। उनके घर की कलह कहानी, यत्र-तत्र गम गीत नए। बचपन से रहे कलंक ग्रस्त, अब ज्यादा ही दीन हुए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। स्पर्धा कारोबार के स्वामी, भाग्य से बहुत कमाते। हमने सुने कुछ ऐसे बोल, वो सोना चना...
हम नेताओं पर छोड़ दो
कविता

हम नेताओं पर छोड़ दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पहले तो बुदबुदाया, फिर नेताजी जोर से चिल्लाया, क्या जमाना आ गया दुनिया बन रही बुरे कर्मों की दीवानी, बढ़ रही है देखो मनमानी, मन से मनमानी तोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। हर विभाग वाले कर रहे भ्रष्टाचार, काम वे जिससे है आम जनता को सरोकार, युवा बैठे हैं बेकार, आह्वान है नई पीढ़ी से भ्रष्टता की दिशा मोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। गरीबी ऐसी कि नारी देह बेच रही, ऊंचे पद वाले गरीब देश की खुफिया जानकारी खेंच रहे, कुछ देश ही बेच रहे, भाइयों वतन बचाने पर जोर दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। भारत के नेता किससे कमजोर है, हमारे मस्तिष्क का होता बहुत जोर है, भले ही हम नहीं सुधर सकते हैं, पर हम कुछ भी कर सकते हैं, हमारा समर्थन चहुंओर पुरजोर हो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। परिचय :...