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पद्य

समय बड़ा बलवान
कविता

समय बड़ा बलवान

समय बड़ा बलवान =========================================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी समय बड़ा ही बलवान है, वो कहाँ का पहलवान है, कई आये और गए यहाँ, न कोई टिका धनवान है। हम हिफाज़त अब करते है वह कौन सा दरबान है।। यहाँ हर कोई कलाकार है, सब तीसमारखाँ सलमान है अपना चमन खुद उजाड़े , आज का ऐसा बागवान है शिद्दत से किये कार्य व्यर्थ है दिखावे में सारा जहान है। ये देख हैरान है, इक़बाल इंसा खुद बन बैठा,भगवान है। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन मुंबई, टेलीविजन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई प्रतिनिधित्व :- विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल ...
प्रजातंत्र बोलेगा
कविता

प्रजातंत्र बोलेगा

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर आये हैँ चुनाव, लगे दिल पर घाव अब प्रजातंत्र बोलेगा । जनसेवक होशियार तू रहना, सिंहासन डोलेगा।।. .. . पाँच बर्ष तक मनमानी की, नेताजी झूठे तुम। भोली जनता को छल बल से, कई बरस लूटे तुम।। कई योजना बनी तुम्हारी सार्थक एक नहीं । जहां से गिनती शुरू हुई थी , पहुंचे आज वही ।। दंगे और फसादों को अब, जन - जन तौलेगा ।। जनसेवक होशियार तू रहना, सिंहासन डोलेगा ।।. ... राम का मंदिर बना नहीं, कसमें झूठी तुम खाए । राम लला तंबू में रोवे, माँ सीता घबराये।। बेशर्मी की हद होती है, किंतु लांघ तुम पार गये। सत्ता के मद में सब भूले, वादे, स्वर्ग सिधार गये।। आने वाला कल पापों की, गठरी खोलेगा।।.... जनसेवक होशियार तू रहना, सिंहासन डोलेगा ।।. ... वर्ण व्यवस्था छिन्न-भिन्न कर, आपस में लड़वाते । न्यायपालिका के आंगन, अन्याय का वृक्ष लगाते।। स्वर्ण-दलित आंदोलित होकर...
छोटा- सा जीवन
कविता

छोटा- सा जीवन

छोटा- सा जीवन रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी छोटा- सा जीवन है ये, तो मस्त रहे हर हाल में। गाड़ी का क्यो रस्ता देखे , मस्त रहे पदचाल में।। हर पल मुस्काते ही बोले , आंसू में क्यो दुबे हम, जीवन सुंदर मौज मनाये ,मस्त रहे हर काल मे।। ऊंचे ख्वाब तसव्वुर झूठे, लगते सब बेमानी ये, क्यो पनीर के ख्वाब सजाये, मस्त रहे घर-दाल में।। जीवन है तो नित चुनौतियां ,आएंगी ही सदा यहाँ, करे सामना डटकर इनका, मस्त रहे हर ताल में।। कौन करोड़ीमल, कौन अरबपति हो,इससे क्या, फटेहाल' इक़बाल' ठीक है, मस्त रहे निज माल में।।   परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन...
परीक्षाव्रत
कविता

परीक्षाव्रत

परीक्षाव्रत रचयिता : भारत भूषण पाठक दोहा - परीक्षापुरी के घाट पर भई परीक्षाव्रती के भीर।           परीक्षार्थी कलम घिसै ध्यान देत परीक्षक बलबीर।। सुन्दर पावन पुनीत बेला । चहुँओर दृश्य अलबेला।। कभी अधिगम कभी समागम। और मध्य में बार-बार फूटता बम।। कलरव का था लगा समाहार । हर तरफ केवल एक प्रश्न की गुहार।। प्रतीत था होता हाहाकार । उस पर प्रचण्ड गर्मी का प्रहार।। चल रहा था विषय पर्यावरण। था निर्मित अद्भुत वातावरण ।। था हो रहा हर तरफ पूछताछ का अधिगम । और परीक्षक फूट रहे  थे बन कर बम।। मेरी दशा को देखकर। कहा परीक्षक ने तनिक सोचकर।। आप भी  कुछ जुगाड़ बिठाइए । तभी मैंने कहा मैं शाकाहारी हूँ ...... इसलिए मुहतरमा आप मुझसे परे हो जाइये।। उसने पुन: कहा मैं समझी नहीं । मैंने तब उन्हें समझाया ।। मुहतरमा आज अपन का उपवास है। संग अपने पर पूर्ण विश्वास है। इतने में आने को हुए ...
पर्यावरण दिवस 
कविता

पर्यावरण दिवस 

पर्यावरण दिवस  रचयिता : मनोरमा जोशी हरे भरे उपवन का बन जाये, हर घटक राष्ट्र का माली। क्लेश काल का बने ग्रास नित, काल निशा हो कभी न काली। लेकर के संकल्प आज हम, ऐक ऐक पेड़ लगाएं, पर्यावरण बचाएं। वन जब घटा हैं बड़ा है प्रदूषण, जन जन में फैली है बीमारी भीषण। यह संताप मिटाएं। आओ ऐक पेड़ लगाएं। पर्यावरण बिन सूना जग सारा, इसी से है जीवन सारा, इससें ही हैं सब गतिमान, हम सब रक्खे इसका ध्यान , स्वस्थय सुखी संसार बसायें। आओ हम एक पेड़ लगायें। अपना देश बचायें। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का...
गिरकर उठना
कविता

गिरकर उठना

गिरकर उठना रचयिता : मनोरमा जोशी गिरकर उठना, उठकर चलना यह काम है संसार का। कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। जो भी होता है घटना क्रम, रचता स्यंम विधाता है। आज लगे जो दंड वहीं पुरस्कार बन जाता हैं। निशिचत होगा प्रबल समर्थन, अपने सत्य विचार का, कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। कर्मो का रोना रोने से, कभी न कोई जीता है, जो विष धारण कर सकता है, वह अमृत को भी पी लेता है। संबल यह विश्वास ही है, अपने दृढ़ आघार का। कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र...
हिस्से में माँ
गीत

हिस्से में माँ

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' अब मुझे किस बात, की तन्हाई है जब मेरे हिस्से में, मेरी माँ आई है जब भी कोई मुसीबत मुझे सताने लगे माँ के चरणॊ में मेरा ध्यान जाने लगे, घर का कोना-कोना मेरी माँ से सजा देखकर मेरे मन ने ये खुशी से अँगड़ाई ली है अब मुझे किस बात, की,तन्हाई है जब मेरे हिस्से में मेरी माँ आई है आसमाँ भी खुशी और जहाँ भी खुशी मस्ती में झूमे पवन और रवि अब फिर माँ की चर्चाएं दुनियाँ में शुरू हुई हैं अब मुझे किस बात, की तन्हाई है जब मेरे हिस्से में, मेरी माँ आई है लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म 07 जुलाई सन् 1998 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :-...
फिर इस बार होली पर वो …
कविता

फिर इस बार होली पर वो …

फिर इस बार होली पर वो ... पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर इस बार होली पर वो, सच कितना इठलाई होगी.. सत रंगों की बारिश में वो, छककर खूब नहाईं होगी….। भूले से भी मन में उसके, याद जो मेरी आई होगी.. होली में उसने नफरत अपनी, शायद आज जलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! ये क्या हुआ जो बहने लगी, मंद गति शीतल सी ‘पवन’.. याद में मेरी शायद उसने, फिर से ली अंगड़ाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! कैसी है ये अनजान महक, चारों तरफ फैली है जो.. मुझे रंगने को शायद उसने, कैसर हाथों से मिलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! पीले,लाल, गुलाबी रंग की, मेहँदी उसने रचाई होगी.. आएगा कोई मुझसे खेलने होली, उसने आस लगाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! डबडबाई आँखों से उसने, मेरी राह निहारी होगी..। पूर्णिमा के चाँद पे जैसे, आज चकोर बलिहारी होगी….। फिर इस बार होली...