मुरलीधर पर मुक्तक
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रचयिता : रशीद अहमद शेख 'रशीद'
ब्रज, बाबा, बलराम, यशोदा मैया की।
राधा, गोपी, ग्वाल, बाँसुरी, गैया की।
याद आती है वृन्दावन की, यमुना की,
चर्चा जब चलती है कृष्ण-कन्हैया की।
कन्हैया मीरा के प्रियतम हो गए।
मोह सारे जगत के कम हो गए।
पराजित कठिनाइयाँ सब हो गईं,
विषम पथ संसार के सम हो गए।
वर पाया जब मनमोहन यदुवंशी से।
हुए प्रसारित स्वर सुन्दर तब वंशी से।
खड़ा रह गया साश्चर्य कानन में बांस,
प्रकट हुई जब सरगम उसके अंशी से।
ग्राम, क़स्बा, नगर, पुर अथवा पुरी।
सर्वकालिक सतत् वह स्वर माधुरी।
क्यों न हो संसार में उसका महत्व,
मुरलीधर की मुँह लगी है बांसुरी।
लेखक परिचय :- नाम ~ रशीद अहमद शेख
साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’
जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१
जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत
शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्...