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पद्य

मनभावन ऋतु है बसन्त
कविता

मनभावन ऋतु है बसन्त

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बसन्त ऋतु का मौसम है कितना सुनहरा जिधर देखो दिखे प्रकृति का रूप सुनहरा सुहावना प्यारा मौसम खिलता हरा भरा अनुपम मनोरम दिखे नजारा हरा भरा वृक्ष होतेहरेभरे चढ़े लता रँगभरे फूल पत्ते प्रकृति का मनवभावन खिलता नजारा प्रकृति पर अनोखी चढ़ती है लालिमा नया नया रूप सुनहरा वादियों में मनोरमा जब आता है ऋतुओं का महीना फागुन उत्साह ऊर्जा यौवन ऋतु बसन्त की धुन खिलखिलाती है प्रकृति, महकता है मन मनमोहकता मस्ती में रहता ऋतु बसन्त चढ़ाता है प्रकृति में अपरिसीम उमंग तरंग कुदरत की फैलती हर कोने में खुशबू खुशियों की बहार में उमंग तरंग संग करती है बसन्त ऋतु मन ह्रदय प्रसन्न बसन्तपँचमी का आये शुभ मंगल दिन बीणापाणी के साधक करते आराधना मांशारदे तनमन से करते पूजा और वंदन सरस्वती पूजा में साहित्य सँगीत साधक लगाते ध्यान करते विनती दे दो...
बचपन
कविता

बचपन

सुमन मीना "अदिति" दिल्ली ******************** वो छोटी-छोटी शरारतें वो मस्तियां, वो नादानियां वो परियों वाली कहानियां वो कलियां, वो तितलियां वो खिलौनों वाली दुनियां वो गुड्डे गुड़ियां का खेल वो आंचल में जा छिप जाना वो थपकियां, वो लोरियां वो हर बात पर जिद्द करना वो लाड़ प्यार, वो दुलार वो बारिश बूंदों की रिमझिम वो पैरों की छप छप वो बारिश का पानी वो कागज़ नांव की कश्तियां वो मासूमियत भरी मुस्कान वो धूल मिट्टी, वो शोर वो कच्ची आम की कैरियां वो पगडंडियां, वो खुशियां वो सुनहरे सपनों से सजी रातें वो सुकुनियत, वो बेफिक्री वो सीधा सरल जीवन वो नासमझी, वो निश्छलता। “कीमत जो भी होगी चुका दूंगी..., गर कोई लौटा देगा बचपन के इन दिनों को।” परिचय - सुमन मीना "अदिति" निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
तो समझो बसंत आया है
कविता

तो समझो बसंत आया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पलाश भी अब झूम उठे नव कोपल भी खिल उठे पत्ता और डाली हर्षाया है तो समझो बसंत आया है कोयल की राग है नियारी सबकी लगती अति प्यारी सुन्दर राग भी तो गाया है तो समझो बसंत आया है करवट बदलती है फिज़ा सबसे अलग और है जुदा प्रकृति में खुमार आया है तो समझो बसंत आया है तन प्रफुल्लित हो जाये मन प्रफुल्लित हो जाये प्रीत मन में गर समाया है तो समझो बसंत आया है फिज़ा में निखार है आई मदमस्त बाहर भी है छाई भंवरों का मन ललचाया है तो समझो बसंत आया है जीवन में नव-नव हर्ष देने सौन्दर्य का सहज स्पर्श देने हरियाली से जग सजाया है तो समझो बसंत आया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(ब...
आगे बसंत
आंचलिक बोली, कविता

आगे बसंत

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पियर-पियर सरसो फूले, पियर उड़े पतंग, पियर पगड़ी पहिर के, आगे ऋतु राज बसंत। अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन हा पुलकत हे। सरर-सरर चले पुरवाही, मन मयुर झूमें नाचे, फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे। पातर-कवर गांव के गोरी, झुले कान के बाली, मया-पिरीत के बांधे, डोरी हंसी अऊ ठिठोली। मन भावन उत्साह, अऊ उमंग ज्ञानी, गुनी ,संत, मन मा खुशी गजब, सुग्घर लागे आगे बसंत। कतिक करव बखान, तोर हे ऋतु राज बसंत, तोर महीमा ल बताइन, दिनकर, वर्मा अऊ पंत। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
वसन्त जब आये
कविता

वसन्त जब आये

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** आम्र वृक्ष पर बौर आए, पलास खिलकर मुस्कुराए, कोयल मीठे तराने गाये, वसन्त आये, वसन्त आये। अमलताश मन को है भाये, पतझड़ से क्यों घबराए, परिवर्तन का उत्सव मनाये, वसन्त आये, वसन्त आये। शीत ऋतु लौट के जाये, खुशनुमा मौसम हो जाये, झरबेरी के बेर ललचाये, वसन्त आये, वसन्त आये। विविधरंगी पुष्प खिले, पीतवर्णी सरसों फूले, सुरभित सी पवन बहे, वसन्त आये ये कहे । वसन्त ऋतुराज कहाये, शोभा इसकी बरनी न जाये, उर में है आनंद समाये, वसन्त आये, वसन्त आये। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
मेरा गाँव
दोहा

मेरा गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगे, लगता नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ही ख़...
बसंत
कविता

बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** अधरों पर मंद स्मित सजाएं, बसंत पूरब से लालिमा लिए। सुरभित सुमन रजनीगंधा के, आ गया पात पात आनंद किए। पीत वसन मुख चांदनी सा, शीतल मन्द समीर लिए। हरी दूब से शबनम चुनता, हलधर दौड़े बसंत लिए। कली फूल चितचोर बने, लता यौवन मकरंद लिए। घर आंगन में उतर गया, ऋतुराज आंखें चार किए। सज स्नेहिल हरित वसुधा, नेह मिलन की आस लिए। फागुन में गौरी बाठ निहारे, यादों की खुशबू पास लिए। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
हूँ …मैं
कविता

हूँ …मैं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । जीने की हर कोशिश में बहुत -बार मरा हूं मैं। सैकड़ों बार टूट -टूट के फिर उन टुकड़ों को जोड़ कर जुड़ा हूँ.. मैं। अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । अपनों ने ही खींचे थे पाँव। सैकड़ो बार गिरकर लड़खड़ाते हुए फिर भी खड़ा हूँ ..मैं। मिले तो थे हाथ साथ मगर। जिंदगी की राह पर फिर भी अकेला चला हूँ.. मैं। अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । सवाल बन के क्यों... रह गई जिंदगी। हर उस जवाब की तलाश में अब चला हूँ...मैं। उम्मीदों से छुड़ाकर हाथ अपना। आज आपने साथ पहली बार चला हूँ...मैं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
रामरस
कविता

रामरस

माधवी तारे लंदन ******************** ये क्या हुआ कब हुआ, क्यों हुआ जब हुआ, तब हुआ ओ छोड़ो, ये न सोचो हम क्यों शिकवा करें झूठा जो हुआ वो अच्छा हुआ सपना पुराना था मोदी जी ने पूरा किया फिर क्या हुआ? हमने तो सुना था, जाना था मामला पांच सौ साल पुराना था, नेताओं ने भी उस पर चुनावी जामा चढ़ाया, रामलला को भी उन्होंने टेंट में बिठा दिया था... फिर क्या हुआ? न्यायविदों ने जब न्याय का आदेश दिया तब जा के बाईस जनवरी का शुभ-दिन आया फिर क्या हुआ? मंदिर बन के तैयार हुआ रामलला को भी विधि से मंदिर में बिठा दिया फिर क्या हुआ? देश सारा राम रस में डूबता चला गया दीवाली जैसा माहौल विश्व में फैल गया विश्व में फैल गया... परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
ऋतुराज वसंत
कविता

ऋतुराज वसंत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ों की पत्तियां झड़ रही मद्धम हवा के झोकों से चिड़िया विस्मित चहक रही ऋतुराज वसंत धीमे से आरहा आमों पर मोर फूल की खुशबू संग हवा के संकेत देने लगी टेसू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए वो बता नहीं पा रहा पेड़ का दर्द लोग समझेंगे बेवजह राइ का पर्वत पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया मै हूँ तो तुम हो तुम ही तो कर रही वसंत का अभिवादन गिरी नहीं तुम बिछ गई हो और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज कर रही वसंत के आने इंतजार कोयल के मीठी राग अलाप से लग रहा वादन हो जैसे शहनाई का गुंजायमान हो रही वादियाँ में गुम हुआ पहाड़ का दर्द जो खुद अपने सूनेपन को टेसू की चादर से ढाक रहा कुछ समय के लिए अपना तन। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि ...
मकड़ी का जाल
कविता

मकड़ी का जाल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाल मकड़ी का बुना है, खो गयी संवेदनाएँ। द्वेष के फूटे पटाखे, जल रहीं हैं नित चिताएँ।। कर रहे क्रंदन सितारे, चाँद भी खामोश रहता। हर तरफ छाया तिमिर की, अब नहीं कुछ होश रहता।। आपदा की बलि चढ़े सब, चल रहीं पागल हवाएँ। शोक घर -घर हो रहा है, मौत की छाया पड़ी है। आँधियाँ सुनती नहीं कुछ, झोपड़ी सहमी खड़ी है।। छा रही है बस निराशा, टूटती सारी लताएँ। भूलती चिड़िया चहकना, साँस बिखरी कह रहीं अब, कौन सुरक्षित इस जग में, पीर अँखियाँ सह रहीं सब संत्रासों की माया है , छा गईं काली घटाएँ। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका ...
संवादहीन जो …
कविता

संवादहीन जो …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* संवादहीन जो मौन खड़ा है अंधियारे में ये कौन खड़ा है आकुल प्रश्न ये बहुत बड़ा है ये सत्य, जो स्वीकार नहीं है मत सोच ये तेरी हार नहीं है प्रयास रहे तो स्वर्ग धरा है पाप पुण्य का लेखा जोखा करो तुझको है किसने रोका तपे वही जो स्वर्ण खरा है पीड़ा का परिसीमन क्या है जीवन क्या है, मरण क्या है समयचक्र में सभी पड़ा है मृत्यु द्वार पर जीवन नाचे पाप पुण्य के किस्से बाँचे युग युग की यही परंपरा है विकट प्रश्न ये बहुत बड़ा है परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
कलम का हत्यारा
कविता

कलम का हत्यारा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब इसे कहूं तुम्हारी हताशा या लहू से हाथ रंगने का जुनून, बड़ी आसानी से बोल रहा है कि मैंने कर डाला कलम का खून, ऐसा करके तूने की है वाहियात कोशिश मिटाने की बुद्ध के विचारों को, कबीर, रैदास के विचारों को, ज्योतिबा,सावित्री के सरोकारों को, चुनौती देते पेरियार के दहकते अंगारों को, बाबा साहब के बोये संस्कारों को, जागरूक करते कांशी के पंद्रह-पच्चासी वाले बहुजन विचारों को, पर भूलना मत कि कत्ले-कलम से फिर पैदा होंगे अनगिनत कलम, उस काल्पनिक रक्तबीज की तरह, तब तू पड़ा रहेगा ताउम्र गाली खाते अपनों से, खुद से, क्या तुम्हें अब भी उम्मीद है कि कलम फिर से लिखेगा वो काल्पनिक बहकावे जिसके चपेट में तू आ गया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्...
वीणापाणि
कविता

वीणापाणि

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां सरस्वती की कृपा हे पाई, उनके मुख से कविता गई। जब भी उनकी वीणा बजती , मुख से कविता है यह बहती। वीणापाणि हे तु शारद, विद्या बुद्धि संगीत की दायक। गीत संगीत तुझसे हम पाते, तेरी वंदना नित्य हम गाते। हाथ में पुस्तक वीणा धारिणी, श्वेत वस्त्र हंस वाहिनी। गौ लोक मे वास तेरा, कृष्ण के अधरों पर तुम रहती। बंसी की हे तान सुरीली, सरस्वती उसमें है बहती। किरण पर आशीर्वाद है तेरा, कविता का हे गान में करती। उनके चरणों में शीश झुकाऊ, तेरा गान हमेशा गावु। तेरी भक्ति नित्य में पाऊं। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय श...
पारितोषिक
कविता

पारितोषिक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जाने के बाद, मेरा ये प्रेम ये स्नेह यादों मे सजाए रखना मैं वहीं पारितोषिक हूँ, जिसे पाने की चाहत में खो दिया तुमने बहुत कुछ खो रहे हो, समय, तन, मन धन और बहुत कुछ मैं तुम्हारी स्मृतियों में किसी पहाड़ी जीव की तरह कुलांचे भरता यहां वहां विचरण करता रहूँगा , मेरी उपस्थिति तुम्हें राहों में, गलियों,कूंचो में दिखाई देगी तुमने तो सजाया था मुझे अपने मुकुट के मान सा औरों को ना हो पाया कभी उसका भान सा मेरे आंसुओं को खारा पानी समझ झटका करते थे जो उनकी सोच में मेरे आंसुओं की मिठास बोओगे तुम सोचता रहा उम्र भर तरसता रहा प्रेम करुना, सम्मान को जिस, मधुकर रिश्ता बनाओगे, है विश्वास इस बात का ! जब मैं विदा लुंगी, लूँगा, महसूस करोगे मुझे किसी फूल सा, महाकाया जिसने था कभी कोई घर आँगन मेरी याद क...
कोशिश
कविता

कोशिश

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** कोशिश जब करते हैं मेहनत रंग ला जाती है हौसला गर कर गुजरने का पथ आसान हो जाती है दीपक स्वयं जलकर सब के जीवन को रौशन कर जाती है संघर्ष जितनी गहरी होती है परिणाम उतना ही शोर मचाती है कामयाबी जब मिलती है गुलशन में भी बहार आ जाते है ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksha...
तथागत
कविता

तथागत

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी पीड़ा को कभी समझ लो तथागत.... खुद को खुद से दुर करने में लगी हूँ मुझे खुद से कभी मिला दो तथागत.... संभलना नही आया मुझे अभी तक टुटने से पहले ही समेट लो तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी पीड़ा को कभी हर लो तथागत अंधेरी रातों से डर लगता है मुझे, तुम यूँ बिन बताएं घर से निकला न करों तथागत... राहें बहुत परेशानियों से भरी हुई है हाथ पकड़कर कांटों पर चलना सीखाओ तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी खामोशी को कभी सुन लो तथागत... अकेले जीवन गुजारना संभव नहीं बीतने से पहले हाथ थाम लो तथागत... मेरी गलियों से कभी तो गुजरों तथागत... यशोधरा राह तके अब घर लौट आओं तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... यशोधरा पुकारे कभी सुन लो तथागत... ...
अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे
कविता

अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आजादी की लड़ाई में भेदभाव रहित देशवासी झलकाये अनेकताओं में एकता स्नेह प्यार समन्वय, विश्वास आपस में था सबका साथ मिलकर सब लड़ते गए लम्बी लड़ाई देशवासी अहिंसा से लड़ने की अपनी अहम विशेषता दिखलाई विदेशियों की हिंसात्मक योजनाएं देशवासियों की एकता में पड़ी खटाई में, जमीन पर आई थके नहीं देशवासी लड़े गए अहिंसा की लड़ाई अंत तक नहीं तोड़े धैर्य हिम्मत सफलता की सीढ़ी पर ऊंचाई सीना तान चढ़ आई देशवासी ने अपनी हिम्मत बढ़ाई गाँधीजी का था अग्रणी कुशल नेतृत्व परास्त करने का सबने किया था अटल ब्रत संघर्षों में चलाया आपसी विचार विमर्श अंत तक सबने रखा प्रेम स्नेह एकमत देशवासी जब स्वतः कूदे पड़े जंग में नेस्तनाबूत शिथिल पड़ी वर्षो की गुलामी भारतीयों के मन में चढ़ आया उत्साह, उमंग, तरंग असहयोग का देशभर में हो गया संग ख...
वो समझ ना पाई
कविता

वो समझ ना पाई

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं, न वो इधर की, न वो उधर की समझी जाती हैं, हाँ वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं। उसको तो तुमने दो हिस्सो में बांटा हैं, जन्म से लेकर बीस वर्ष तक, तुमने नाजुक कली सा पाला हैं, अपने दिल के टुकड़े को, किसी और के हाथ थमाया हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं। तुम कहते हो, वो इस घर की बेटी हैं, वो कहते हैं, वो उस घर की बहू हैं, इसी में उसकी पहचान मिट जाती हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फंसी रहे जाती हैं। कली से फूल बन महका रही वो उपवन, गमो को पी के बढ़ा रही वो वंश, फिर भी, न जाने कहां है इसका अंत, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को स...
हिंसा
कविता

हिंसा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  धर्मनिरपेक्षता हिंसा को पहचान नहीं पा रही उकसावे में जल रही दुनिया या किसी की शह पर चल रही हिंसा की शतरंज चाले अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ाने वाले कबूतर के पंख जल चुके बेवजह की हिंसा में विकास की राहें साँप सीढ़ी के खेल समान होने लगी ऊपर तक पहुँचने पर हिंसा का साँप बेगुनाहों को काट लेता वो फिर जन धन की हानि के साथ वापस नीचे आ जाते कब रुकेगी हिंसा कौन रोकेगा हिंसा को हर बार भड़कने से भय के काले बादल छाए रहते धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में भाई तो है मगर चारा हिंसा में जलने लगा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में...
मेरे राम आ गए
कविता

मेरे राम आ गए

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जय-जय श्री राम। परम सुख के धाम।। जन-जन के सहारा। विष्णु के अवतारा।। राम में ही शक्ति है। राम में ही भक्ति है।। राम ही तो दृष्टि है। राम ही तो सृष्टि है।। राम नाम जपता हूँ। राम-राम कहता हूँ।। राम चारों धाम है। राम ही सत्य नाम है।। राम ही केशव है। राम ही तो माधव है।। राम नाम सार है। राम से ही संसार है।। राम ही तो धर्म है। राम ही तो कर्म है।। राम ही सगुण है। राम ही तो निर्गुण है।। राम में आस्था है। राम से ही वास्ता है।। राम में आशा है। राम तृप्त बिपाशा है।। अयोध्या में धूम मची। गली फूलों से सजी।। घी के दीप जल उठे। नगर में पटाखे फूटे।। राम से ही प्रेम है। राम नाम में सप्रेम है।। मेरे प्रभु राम आ गए। राम राज्य आ गए।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष रा...
अयोध्या से अयोध्याधाम
कविता

अयोध्या से अयोध्याधाम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज जब अयोध्या में राममंदिर का भव्य निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा का इंतजाम हो रहा है, तब अयोध्या के चहुंमुखी विकास का कार्य भी बड़े जोर शोर से आगे बढ़ रहा है। आज अयोध्या को दुनिया में अपनी गरिमा, उचित पहचान, स्थायित्व और सम्मान प्राप्त हो रहा है, राम और मंदिर-मस्जिद विवाद से कल तक अयोध्या जानी पहचानी जाती थी, आज अयोध्या राम, भव्य राम मंदिर और चहुँमुखी विकास से पहचानी जाने लगी है, राम जी के विग्रह की अब जब प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल रही है। कोई माने या माने दुनिया तो मान रही है अयोध्या अब सिर्फ राममंदिर से नहीं अयोध्याधाम बन खूब इतराने लगी है। देश ही नहीं दुनिया भर में अब अयोध्याधाम अपनी चर्चा हर रोज हर पल कराने लगी है, बिना किसी घोषणा के ही अब तक की अयोध्या अयोध्याधाम ब...
अनसुलझी अजब पहेली
कविता

अनसुलझी अजब पहेली

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** कौन भटकता, घन जिसको? गगन कहाँ? कोना ना मिला! वह मिटी, धरा की प्यास बुझी, बगिया में सुंदर फूल खिला, सुमन देख, इठलता कौन? थपकी दे, लोरी गाता है, चुप रह चलते-हलके हलके, पलकन में मंद मुस्काता है। कौन बिछड़ के, तेज तपन से, फिर फिर बादल बन जाता, फूल कहीं मुरझा जाए! वह उमड-घुमड कर अकुलाता, बार-बार गिरि से टकराकर, कौन स्वयं मिट जाता है? दिखता है, जब फसल उगाये, फसल पके, कित जाता है? कौन है वो? कुछ भेद बताऊं, थोड़ा सा, संकेत बताऊं? ममता की क्षमता से निर्मल, दूध की सरिता बहती है, लल्ला बनकर पलना झूलें, देवों के मन में रहती है, अंजनी थी, हनुमान के लिए, राम की कौशल्या, हरि की जसोदा, बोलो जल्दी बोलो क्या तुमने सोचा? वह नहीं होती तो मैं नहीं होता? सारे मिलकर काम करें जो, कर लेती थी एक अकेली, पूरी उम्र समझ ना पाया, माँ, अन...
जाति की ख्याति
कविता

जाति की ख्याति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जातियों के भीड़ में हर जगह नजर आ जाता है जाति, जिसके साये में रहकर ही लोग पाना चाहते हैं ख्याति, मुंह सुख गया हो और प्यास से तड़पने मरने की जब आ चुकी हो नौबत तब भी अपने से नीची माने जाने वाले लोगों के हाथों से पानी पीने से इंकार करते हुए देखा हूं लोगों को, काश ऐसे लोग मर ही जाते, क्यों इंसान को इंसान नहीं सुहाते, एक तरीके से पैदा होते, एक जैसे शरीर रखते, एक जैसे जिंदगी का स्वाद चखते, हर लम्हा एक सा गुजारते, पर एक दूजे को देख जाति की नजरों से निहारते, चीथड़ों में पड़ा व्यक्ति भी केवल जाति के कारण कुलीन सा दिखने वाले को देखता है हिराक़त की नजरों से, मुस्कान छोड़ गाली छोड़ते हैं अधरों से, ये किस तरह की समूह के लोग हैं, वो जाति ही एकमात्र आधार है नित अंगूठा काटने के लिए, इसने अब तक नफरत ...
सैनिक का प्रेम
कविता

सैनिक का प्रेम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हाथों में यह कलम ना होती, निकलते न ये भाव, आंखें कभी ना रोती तन्हाई हमें यूं न चुभती, यदि तुम मेरे पास होती आने वाला पल याद तुम्हारी लाता है जाने वाला पर टीस पीछे छोड़ जाता है जितना चाहा तुम्हें भूलना उतना ही तुम याद आती हो तुम्हें याद करने की जरूरत ना होती यदि तुम मेरे पास होती तुम्हें कुछ लिखना चाहा, जब भी मैंने भावों को शब्दों में ना बांध पाया दिल की आवाज सुन लेती आंखों की जुबान समझ लेती यदि तुम मेरे पास होती बाहों में तुझे ले लूँ, चाह ये बार-बार होती दामन में तेरे, सर रख रोता सिंदूर मांग में तेरी भर देता सोचते-सोचते दिन कितने गुजर गए हालत हमारी यूं ना होती यदि तुम मेरे पास होती।। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा...